April 24, 2024

आपका कोना में आज : कितना अंधेरा है ना ‘ए खुदा’

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अंक-41 : 

कितना अंधेरा है ना,

रातों में,  बातों में,  हालातों में, 

कितना अंधेरा है ना,

राहों में,  पनाहों में,  सहारों में,

कितना अंधेरा है ना,

क्यों है इतना अंधेरा खुदा,

जागूँ तो जागूँ कैसे तू बता,

हर कदम-कदम पर हैवानियत है भरी,

भरोसे से एक कदम भी बढाऊं तो  कैसे भला,

शाम छः बजते ही खुद को पाबंद करलूं मैं,

आखिर कब तलक, कब तलक ,

मैं छुपाकर रखूं खुद को इस ज़माने से तू बता?

ऐ खुदा कितना अंधेरा है ना।

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तूझे तो पूजते हैं ये लोग फूलों से,

और मेरी कब्र की तैयारी करते हैं कांटो से,

बेटी में भगवान की छवि देखने वाले ये लोग, 

मुझसे ही खुद राक्षसों सा व्यवहार करते हैं,

कभी सरस्वती , कभी लक्ष्मी, कभी दुर्गा का नाम देते हैं,

और खुद अपनी हैवानियत से मेरा नाम मिटा देते हैं ये लोग, 

कितना अंधेरा है ना ए खुदा।

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जहाँ नाम ज्योति हो ,

तब भी अंधेरे में उसका वजूद मिटा देते हैं ये लोग, 

कोख में भी डरती हैं बेटियाँ अब,

जब सुन ले मर्दों की आवाज ज्यादा, 

कपड़ो का हवाला देकर, 

इस्तेमाल का सामान बनाते हैं जो,

क्या छः महीनें की बच्ची को देख भी अपने जमीर को भूल जाते हैं ये लोग?

ए खुदा कितना अंधेरा है ना।

-मनीषा भट्ट, बी.लिब. छात्रा, नैनीताल  (डॉ.नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

अंक-40 : ‘नशा छोड़ो-दूध पियो’ अभियान: क्योंकि राज्य व राष्ट्र विरोधी तत्व नशेबाजों को गुमराह कर अपराध के रास्ते पर ले जा सकते हैं….

बढ़ता नशा परिवार व समाज के लिए पीड़ा, परेशानी व दहशत का कारण बनता जा रहा है। नशे के कारण कई-कई परिवार संकट से जूझ रहे हैं। नैनीताल सहित पूरे उत्तराखंड में नशे की वजह से अनगिनत दुखदाई घटनायें हुई हैं। कई-कई लोग काल के गाल में समा गए हैं। कितने ही परिवारों के कुल दीपक बचे ही नही, वंश परम्परा तक में विराम लगा है। नशे को हर कोई समझ रहा है, महसूस कर रहा है। नशे से पीड़ित भी घर व परिवार से है, उत्पीड़क भी परिवार का है। जिसे हम अपने आसपास देख सकते हैं। नशे की भयानक स्थिति को समझना होगा। यह भी पढ़ें : कल मां-बेटे पर हमला हुआ था, आज वहीं एक वृद्ध का आधा खाया हुआ शव बरामद…

नशे का कारोबार करने वालों व उनके कारीगरों को पहचानने की जरूरत है। उन पर ठोस प्रहार करने की जरूरत है। नशे के खिलाफ युद्ध छेड़ने की घोषणा करने की जरूरत है, क्योंकि युवक-युवतियों सहित महिलाओं में भी यह प्रवृत्ति बहुत तेजी से बढ़ रही है, और कहीं भी सार्वजनिक रूप से देखा जा सकता है, जो सोचने पर मजबूर कर रहा है। हमारे सामने प्रश्न खड़ा है कि बढ़ते नशे की हर कोई बात करता है। सरकार से लेकर विपक्ष शासन-प्रशासन सभी नशे के खिलाफ अभियान चलाते हैं, फिर भी नशा जिन्न की तरह हर जगह दिखाई देता है। यह भी पढ़ें : पुलिस को देखकर भागने लगीं दो महिलाएं, दौड़कर पकड़ा तो..

कभी शादी समारोह में बड़प्पन दिखाने के लिए हो या चुनावों में डिस्टलरियों से ट्रकों के ट्रक की खेप निकल गरीब आम व खास व्यक्तियों के द्वार तक आसानी से पहुँच जाती है। नशे के चुनिंदा सौदागर गली, शहर से लेकर गाँव-गाँव, गली-गली पहुँच गए हैं जबकि व्यक्तियों को खुश करने के बजाए नशे को हतोत्साहित किया जाना था। वह नहीं किया जाता। हम नशे से छुटकारा तो पाना चाहते हैं, आगे आना नही चाहते हैं। यदि ऐसा किया तो कुछ लोग नाराज होंगे, लेकिन समाज हित में और जनता के हित में व्यक्तिगत हित को दरकिनार करते हुए नशे के विरोध की सख्त आवश्यकता हमेशा रही थी, आज भी है। यह भी पढ़ें : 17 वर्ष की नाबालिग की मजबूरी का फायदा उठाकर रोज करता रहा दुष्कर्म, मिली उम्रकैद की सजा….

यदि ऐसा नहीं किया तो जो देवभूमि कभी ऋषि मुनियों की तपस्थली रही, वीर सपूतों की थाती रही व पवित्र माटी रही। वह युवा जो राज्य और राष्ट्र का भविष्य हैं ना वो बचेगा ना वो हमें माफ करेंगे। नशे की भयानकता को हम जान नहीं रहे हैं। जान रहे तो समझ नही रहे हैं। समझ रहे हैं तो मौन हो जाते हैं। झंझट मोल नहीं लेना नहीं चाहते। हमारे अनुचित को स्वीकार करने के आदी होने के कारण नशे जैसी भयानक कुरीतियों को बढ़ावा मिल रहा है। लाख कोशिशों के बाद भी नशा परिवार व समाज में तबाही बर्बादी ला रहा है। अब नशे की भयानक दुष्प्रभाव को समझना होगा। यह भी पढ़ें : छात्र को शराब पिलाकर नग्न किया और नग्नावस्था में बनाई अश्लील वीडियो, अब मांग रहे हजारों रुपए, मामला दर्ज

व्यक्तियों को खुश करने के बजाए नशे को हतोत्साहित किया जाना चाहिए। नशे से और नुकसान न हो इस हेतु कठोरतम निर्णय लिए जायें। व्यक्ति विशेष को छोड़कर आमजन विशेष कर छोटे बच्चों, महिलाओं, युवाओं व युवतियों के भविष्य को देखते हुए नशे से भविष्य में हो सकने वाले नुकसान को दृष्टिगत रखना आवश्यक है, अन्यथा निकट भविष्य में नशेबाजों को राज्य व राष्ट्र विरोधी तत्व गुमराह कर अपराध के रास्ते पर ले जाकर बड़ी घटनाओं को अन्जाम देने में सफल हो जायेंगे और इस देवभूमि की शान्ति, सुन्दरता, चरित्र व जिन्दादिली जो ऐसी ताकतों के निशाने पर है, उसको बचाने की चुनौती का सामना मुश्किल काम होगा। यह भी पढ़ें : नैनीताल: स्कूल से लौटती छात्रा को मारी कार ने टक्कर, करना पड़ा हल्द्वानी रेफर की धुन

वार्ता करते ग्वल सेना के संस्थापक पूरन मेहरा।

आइए आगामी 6 दिसंबर मंगलवार 2 बजे से तल्लीताल नैनीताल में ग्वल सेना गैरराजनीतिक संगठन द्वारा आयोजित ‘नशा छोड़ो-दूध पियो’ कार्यक्रम में आप सादर आमंत्रित हैं।
पूरन सिंह मेहरा, नैनीताल। (डॉ.नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

अंक-39 : विभागीय मीटर रीडरों की मनमानी से उपभोक्ता परेशान…

बिजली विभाग के मीटर रीडरों की लापरवाही, मनमानी एवं समय पर रीडिंग न लेने के कारण उपभोक्ताओं को हजारों रुपए के मनमाने बिल थोपे और थमाए जा रहे हैं और मीटरों को आरडीएफ यानी खराब दर्शा दिया जा रहा है। जबकि मीटर ठीक हैं और सही रीडिंग दे रहे हैं। इसे कोई भी व्यक्ति साफ-साफ देख सकता है।

इस तरह के मनमाने बिलों के कारण उपभोक्ताओं को पिछले कई महीनों से अधिक भुगतान करने को विवश होना पड़ रहा है। जिससे उन्हें अधिक आर्थिक हानि उठानी पड़ रही है। शिकायत करने पर कोई नहीं सुनता है और न बिजली विभाग के अधिकारी मौके पर ही आते हैं।

बागेश्वर जनपद के गरुड़ ब्लाक के अणां गांव के अधिकांश उपभोक्ताओं के साथ यही हो रहा है। जिससे ग्रामीण लोग बहुत परेशान हैं। कमोबेश यही स्थिति पूरे ब्लॉक के ग्रामीण क्षेत्रों की भी है। बिजली विभाग के अधिकारियों से अनुरोध है कि वे अपने मातहत मीटर रीडरों को दिशा-निर्देशित करें कि वे यथासमय रीडिंग लें और आरडीएफ दर्शाए गए मीटरों को देखें और अपनी मशीनों में फीडिंग ठीक करें। ताकि ग्रामीण उपभोक्ताओं को हो रहे आर्थिक नुकसान से निजात मिल सके।
-रतनसिंह किरमोलिया, ग्राम अणां, गरुड़ (बागेश्वर) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

अंक-38 : बारिश के नाम पर पूरे जिले में छुट्टी करना कितना सही-कितना गलत ?

नमस्कार जोशी जी,

रतन सिंह किरमोलिया

मैं आपके ख्यातिलब्ध चैनल के माध्यम से इस बात को उजागर करना चाहता हूं कि हमारे समय में, ज्यादा नहीं पचास-साठ साल हुए होंगे, मूसलाधार बारिश, वो भी सात-सात दिनों तक लगातार होने वाली बारिश में हम भीगते-भागते इस्कूल जाते थे। ऐसे में भी दुर्घटना हमने कभी सुनी नहीं।

विद्यार्थी जीवन में भी, और एक अध्यापक के रूप में भी। गाड़-गधेरे अतोल हुए रहते थे। तब भी पूरे-पूरे पीरियड लगते थे। जब बस्ते भीग जाते थे। बच्चे अध्यापक सभी भीग के तर हो जाते थे, तो तब ‘रेनी डे’ की छुट्टी के लिए अध्यापक बच्चों से अर्जी लिखवाते थे। सभी कक्षाओं के मॉनीटरों से भी दस्तखत करवाए जाने के बाद प्रधानाचार्य जी के पास अर्जी भेजी जाती थी। तब जाकर कहीं चौथे या पांचवें या छठे वादन बाद छुट्टी हो पाती थी। इसके लिए प्रधानाचार्य अध्यापकों से भी पूछते थे। अर्जी में सभी शिक्षकों के भी हस्ताक्षर लिए जाते थे। मैंने स्वयं अपने अध्यापन काल में भी यह देखा।

और आज मौसम विभाग के कहने पर पहले ही इस्कूलों को बंद कर दिया जा रहा है। देखने में आ रहा है कि कहीं-कहीं धूप हो रही है तो कहीं हल्की छिटपुट बारिश। हां कहीं-कहीं बादल फटने की भी घटनाएं हो रही हैं। बारिश के लिए अधिक खतरे वाले स्थानों में छुट्टी करवाई जा सकती है परंतु सारे जिले में नहीं। इससे बच्चों की पढ़ाई बाधित होती है। देश, काल, परिस्थिति के अनुसार निर्णय लिए जाने चाहिए।
-रतनसिंह किरमोलिया, गरुड़, बागेश्वर। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

अंक-37 : यह भी पढ़ें : पूरे प्रदेश में लागू हो हरिद्वार के जिलाधिकारी की पहल….

प्रिय जोशी जी नमस्कार।
आपके लोकप्रिय चैनल पर महत्वपूर्ण खबर पढ़ने को मिली कि हरिद्वार के जिलाधिकारी ने विद्यालयों में कक्षा शिक्षण के दौरान शिक्षकों द्वारा मोबाइल के इस्तेमाल पर लगाने के आदेश पारित कर दिए हैं। इस पर मैं अपने विचार ‘पाठक कोना’ हेतु निम्नवत प्रेषित कर रहा हूं। देखें सम्बंधित समाचार : जनपद के विद्यालयों में शिक्षकों पर मोबाइल का इस्तेमाल करने पर लगा प्रतिबंध

विद्यालयों में मोबाइल पर प्रतिबंध
एक समाचार के अनुसार हरिद्वार के जिलाधिकारी ने विद्यालय अवधि में शिक्षण के दौरान शिक्षकों द्वारा मोबाइल के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया है। यह जिलाधिकारी का अति महत्वपूर्ण कदम है। क्योंकि अक्सर देखा जाता है कि विद्यालयों में कक्षा शिक्षण के दौरान शिक्षक शिक्षण कार्य छोड़कर मोबाइल पर बात करते रहते हैं। जिससे बच्चों की पढ़ाई में व्यवधान आता है। इस अर्थ में जिलाधिकारी का यह कदम केवल प्रशंसनीय ही नहीं है बल्कि अनुकरणीय भी है।

उत्तराखंड सरकार को इसका तुरंत संज्ञान लेना चाहिए और शिक्षा विभाग को निर्देशित करना चाहिए कि यह आदेश संपूर्ण उत्तराखंड के सभी सरकारी एवं गैर सरकारी विद्यालयों में सख्ती से लागू किया जाए। बल्कि इसे शिक्षण के दौरान डिग्री कालेजों में भी लागू किया जाना चाहिए।

रतन सिंह किरमोलिया

इसके साथ ही समस्त कार्यालयों, अस्पतालों आदि में भी लागू किया जाना चाहिए। केवल अपरिहार्य परिस्थितियों में ही मोबाइल पर बात की जाए। समस्त विभागाध्यक्षों को इसके लिए सख्त दिशानिर्देश दिए जाएं। हरिद्वार के जिलाधिकारी को इसके लिए प्रोत्साहित एवं पुरस्कृत किया जाए। ■■ रतनसिंह किरमोलिया, ग्राम अणां, गरुड़, जिला बागेश्वर, उत्तराखंड। (डॉ.नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

अंक-36 : भूल गया जो कोरोना में नशा करना-चुनाव ने फिर शराबी बना दिया..

यह चुनाव किसी को हंसा गया
और किसी को रुला गया
भाईचारे की जो मिशाल खड़ी थी
दस दिन में उसे ढहा गया
जनसेवा से अर्जित की थी
प्रतिष्ठा मिट्टी में मिला गया
भूल गया था कोरोना में मैं नशा करना
फिर से मुझे शराबी बना गया

वरिष्ठ साहित्यकार दामोदर जोशी ‘देवांशु’।

-दामोदर जोशी ‘देवांशु’

अंक-35 : यह भी पढ़ें : अजब है चुनावी बयार…..

मुफ्त के चुनावी तोहफों पर' 'अदालत की नेक सलाह' - good advice of the court  on free electoral giftsअजब है चुनावी बयार…..
जनता पर है वादों-दावों की मार….
गरीबी की जगह गरीबों को हटाने वाले
रोटी नहीं तो ब्रेड खाने की सलाह देने वाले
कर रहे गरीबी हटाने का करार….
अजब है चुनावी बयार…..
जनता पर है वादों-दावों की मार….

महंगाई भगाने को अलादीन के चिराग ढूंढने वाले
सरकारी पैंसे की लूट पर आंख मूंदने वाले
भ्रष्टाचारी कह रहे हटाएंगे भ्रष्टाचार
महंगाई पर अब कर रहे हाहाकार…
अजब है चुनावी बयार…..
जनता पर है वादों-दावों की मार….

रोके जिन्होंने जनता के पग
शिक्षा-स्वास्थ्य से किया वंचित
कर दिया बेरोजगार
आज देने चले रोजगार
अजब है चुनावी बयार…..
जनता पर है वादों-दावों की मार….

टोपी बदली-पहनी-टोपी पहनाई
बांटा समाज-किया तुष्टीकरण
जिन्होंने रोके विकास के द्वार
अब करेंगे चमत्कार
अजब है चुनावी बयार…..
जनता पर है वादों-दावों की मार….

जनता का पैंसा-अपनी जेब में डाला
पात्रों का हक-कुपात्रों पर लुटा डाला
जिन्होंने गरीबी बढ़ाई, किया बेजार
अब लाएंगे बहार
अजब है चुनावी बयार…..
जनता पर है वादों-दावों की मार….

कुमाउनी अंतरण : अजब छू चुनावी बयार….

अजब छू चुनावी बयार….
जनता पारि छू वादों-दावों कि मार….
गरीबोंकि जा्ग गरीबों कें हटूंणी वा्ल
र्वाटों्क भुखों कें ब्रेड खांणैकि सला दिणीं वा्ल
करणंईं गरीबी हटूंणक करार….
अजब छू चुनावी बयार….
जनता पारि छू वादों-दावों कि मार….

महंगाइ भजूंण हुं अलादीनक चिरांण ढुंढणी वा्ल
सरकारि डबलूंकि लूट पारि आंख बुजणीं वा्ल
भ्रष्टाचारी कूंणईं हटाल भ्रष्टाचार
महंगाई पारि आ्ब करणंई हाहाकार…
अजब छू चुनावी बयार….
जनता पारि छू वादों-दावों कि मार….

रोकीं जनूंल जनताक खुट
शिक्षा-स्वास्थ्य में लै लुट
करि दे बेरोजगार
आज दिंणैकि बात करणैईं रुजगार…
अजब छू चुनावी बयार….
जनता पारि छू वादों-दावों कि मार….

टोपि बदलि-पैरि-टोपी पैरूंणी
समाज कें बांटणी-तुष्टीकरण करणीं
जनूंल रोकीं विकासा्क द्वार
आ्ब करा्ल चमत्कार…
अजब छू चुनावी बयार….
जनता पारि छू वादों-दावों कि मार….

जनताक डबल-आपंणि खल्दी में डालीं
पात्रोंक हक-कुपात्रों पारि लुटूंणीं
गरीबी बणूंणी-करणीं बेकार
आ्ब लाल बहार….
अजब छू चुनावी बयार….
जनता पारि छू वादों-दावों कि मार….

-नवेंदु, नैनीताल

अंक-35 : मतदाताओं के नाम संदेश

’मत’ देने में मत, मत कहना
आया चुनाव, प्रजातंत्र का, कहता चीख पुकार।
लोकतंत्र का महापर्व यह, मतदाता का मताधिकार।
सभी चुनें और सही चुनें, करें बूथ में सब मतदान।
मत देने घर से तुम निकलो, मतदाता का यह सम्मान।
मत तेरा एक मोल-अमोल, अपना भी मत उसमें जोड़।
कर जाकर मतदान तू दाता, काम-काज सब छोड़।
साल पाँचवे, हर बालिग के, हाथों से एक दान हो।
गाँव-मुहल्ले, गली-गली से, शत प्रतिशत मतदान हो।
ईवीएम में अपने मन का, बटन दबा के लगा दो ताला।
आहुति अपनी अर्पण कर दो, सजी हुई है मतशाला।
सुनो सभी की, करनी अपनी, ताव-भाव में मत बहना।
स्वाभिमान से जीवन जीना, पराधीनता अब मत सहना।
कर अधिकार का सत्कार, सबको यह बतलाना है।
तीज तर्जनी तुझको आज, काला तिलक लगाना है।
चाहो यदि तुम प्रजातंत्र के, जन-गण तंत्र में रहना।
भय्या बहना रखना याद, ’मत’ देने में मत, मत कहना।
-बी.बी.भट्ट, प्राचार्य, महर्षि विद्या मंदिर, सीनियर सेकेंडरी स्कूल, अल्मोडा (उत्तराखंड)

अंक-34 : पलायन पर बात-रोइए नहीं काम करिए…..

पहाड़ के एक गाँव में पलायन के बाद वीरान पड़ा एक संभ्रांत परिवार का घर और मंदिर

पलायन का कारण वह नहीं जो हमारे तमाम लोग पलायन की चरणवंदना गाते-गाते नहीं अघा रहे हैं। एक कारण यह भी हो सकता है कि नौकरी या रोजगार की तलाश में लोग सपरिवार पहाड़ छोडकर बाहर बस जा रहे हैं। परंतु यह बड़ा कारण नहीं। मुख्य कारण तो बस देखा देखी लग रहा है। पड़ोसी यदि किसी मजबूरी के कारण पलायन कर रहा है तो उसका पड़ोसी भी देखा देखी सब कुछ छोड़ छाड़ कर बाहर शहरों की ओर चले जा रहे हैं।

बच्चों की अच्छी पढ़ाई एवं स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव भी पलायन का एक  कारण है ।

अति सुविधाकांक्षी इंसान को आज सड़क घर आंगन तक चाहिए हो रही है। काम के नाम पर दिन भर गांवों की दुकानों में बैठ कर ताश खेलना आम बात है। शाम को पव्वा पीकर घर जाना तो पहाड़ की खासी विडंबना ही है।। खेती पशुपालन एवं बागवानी जैसे पुश्तैनी धंधे अब धीरे धीरे समाप्ति की ओर है। खेती को जंगली जानवरों द्वारा पहुंचाया जा रहा नुकसान लोगों का खेती की तरफ रुझान कम होना मुख्य कारण है। फिर भी अधिसंख्य गांव आज भी आबाद हैं।

खेती पशुपालन बागवानी एवं इनके अनुषंगी उपक्रमों से संबंधित विकास खंड स्तर के अधिकारी एवं कर्मचारी कभी गांवों का रुख नहीं करते।जिला स्तरीय अधिकारी एवं कर्मचारियों की बात तो छोड़ो। यहां यह कहने में कोई संकोच या अतिशयोक्ति नहीं कि विकास खंड स्तर से लेकर जिला स्तर तक के अधिकारी और कर्मचारियों पर सरकार का कोई अंकुश ही नहीं रह गया है। सभी कागजी कार्यवाही एवं फर्जी आंकड़े एकत्रित करने में लगे रहते हैं।

जनता जन सुविधाओं के लिए लाख चिल्लाती रहे। सरकार नई नई योजनाओं की घोषणाएं करती नहीं अघाती और नित्यप्रति शिलान्यास एवं लोकार्पण करती रहती है। लेकिन धरातल पर कुछ सार्थक नजर नहीं आता है। या बमुश्किल बीस-तीस फीसद काम कहीं हो जाए तो बड़ी बात है। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि देखने सुनने वाला कोई नहीं है। या फिर जनता हर स्तर पर टालमटोली ही भुगतने को विवश होकर रह जाती है। जनप्रतिनिधियों को इन सबसे कोई लेना देना नहीं नजर आता है। वे तो बस पांच साल बाद ऐन चुनाव के वक्त ही बमुश्किल नजर आ जाते हैं।

सचमुच यदि सरकार चाहती हो कि जन सुविधाओं का लाभ आमजन को मिले तो जन सुविधाओं को धरातल पर अमली जामा पहनाया जाए तो इसके लिए उस अधिकारी एवं कर्मचारियों को सख्त निर्देश देने होंगे, तथा उच्चाधिकारियों को योजनाओं की मॉनिटरिंग के लिए कहा जाए। धरातल पर वो सब कुछ हो सकता है जो सरकार चाहती है। जरूरत है दृढ़ इच्छाशक्ति की। 

रतन सिंह किरमोलिया

■ रतनसिंह किरमोलिया, अणां-गरुड़ (बैजनाथ), बागेश्वर।

अंक-33 : ऐसा हो प्रत्याशी हमारा

Public Will Not Vote For Racist Leader In UP Election 2017 News In Hindi -  #UPElection2017 प्रत्याशी अनेक, जनता की मांग सिर्फ एक | Patrika Newsउत्तराखंड में चुनावी घोषणा हो चुकी है। चुनाव आयोग ने अपनी सभी तैयारियां पूरी कर ली हैं। आगामी 14 फरवरी को मतदान की तिथि भी तय कर दी गई है। परंतु राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने अभी तक अपने प्रत्याशियों की सूची निर्गत नहीं की ।  

अधिकांश सीटों पर एकाधिक उम्मीदवार मैदान में दीख रहे हैं। सभी की नजरें अपने अपने आकाओं के माध्यम से हाई कमान पर टिकी हुई हैं। पार्टियों के पर्यवेक्षक भी कई मर्तबा अपने अपने जनपदों की बैठकें ले चुके हैं। प्रत्याशियों की ग्राउंड रिपोर्ट भी तैयार कर ली गई है। स्क्रीनिंग पार्टियों ने भी उम्मीदवारों का आकलन कर रिपोर्ट हाई कमान तक पहुंचा दी है। यानी उम्मीदवार के नाम तय हो चुके हैं। बस हाई कमान  द्वारा सूचियों के ऐलान का इंतजार किया जा रहा है।

इन सब बातों का असली पारखी निर्णायक वोटर को भी पता है। हां यह हो सकता है कि पार्टी कार्यकर्ता फिलहाल अपने अपने चहेते उम्मीदवार के खेमे में खड़े हों। एकाधिक उम्मीदवारों के कारण अधिकांश कार्यकर्ता भी असमंजस में दिखाई दे रहे हैं। इसका दुष्प्रभाव आने वाले दिनों में घोषित पार्टी प्रत्याशी के भविष्य पर भी पड़ सकता है। इसलिए हर किसी को बहुत संभलकर चलने की आवश्यकता है।

रतन सिंह किरमोलिया

हालात बयां कर रहे हैं कि विगत वर्षों में जनता बहुत ठगी गई है। अब वह भी फूंक फूंक कर प्रत्याशी को देख परख कर वोट देने के पक्ष में है।इस बार जनता उस उम्मीदवार को वोट देने के पक्ष में है जो उनके दु:ख-सुख को साझा कर सके। उनकी समस्याओं को दूर करने की क्षमता रखता हो। उसके पास विकास का स्पष्ट रोडमैप हो। जो आम जन समस्याओं के अलावा शिक्षा एवं बिगड़ी हुई स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार लाने का प्रयास कर सके। बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार सृजन की सोच रखता हो।        ■ रतनसिंह किरमोलिया, अणां-गरुड़ (बैजनाथ), बागेश्वर।

अंक-32 : सरकारी शिक्षा में सुधार की दरकार

राजनीति: बुनियादी बदलाव की दरकार - Jansattaहमारे उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में आज करीब करीब हर ग्राम पंचायत में एक प्राईमरी इस्कूल है। कयेक तोकों में तो दो-दो प्राईमरी इस्कूल, एक जूनियर हाईस्कूल या एक राजकीय हाईस्कूल या एक इंटर कालेज है। परंतु देखने में आ रहा है कि इनकी दशा और दिशा सरकार एवं शिक्षा विभाग की अनदेखी एवं हीलाहवाली के कारण दयनीय बनी हुई है। इस कारण कयेक प्राईमरी इस्कूलबंद हो चुके हैं। कयेक बंदी के कगार पर है और अंतिम सांसें गिन रहे हैं। जो जीवित हैं, उनमें अधिकांश एकल शिक्षक के बलबूते सांस ले रहे हैं। एकल शिक्षक के जी के जंजाल बने हुए हैं विभागीय ट्रेनिंग प्रोग्राम, तरह तरह की कागजी कार्यवाहियां एवं अन्य कार्यों का बौदरेशन। ऐसी हालात में बच्चों की पढ़ाई लिखाई प्रभावित होना लाजमी है। यही कारण है कि माता-पिता अपने बच्चों को लेकर प्राईवेट इस्कूलों की शरण में जाने को मजबूर हैं। इन इस्कूलों की फीस इतनी अधिक है कि गांव के रहने वाले सामान्य अभिभावकों के बूते से बाहर है। परंतु क्या करें। जैसे-तैसे बच्चों को तो पढ़ाना लिखाना ही है। ‘मरता क्या न करता’  वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। 

आज शिक्षा व्यवस्था की ये हालत है कि प्राईमरी से लेकर डिग्री कालेजों तक में शिक्षकों के सैकड़ों पद रिक्त पड़े हुए हैं। विषयाध्यापकों के अभाव में बच्चों का भविष्य नित्यप्रति चौपट होते जा रहा है। जबकि सर्वथा सुयोग्य एवं विषय विशेषज्ञ अध्यापकों का होना हर इस्कूल कालेजों में होना जरूरी है। यह जिम्मेदारी सरकारों की है। सुयोग्य शिक्षक, संसाधन संपन्न विद्यालय एवं छात्रों के लिए जीवनोपयोगी बहुआयामी पाठ्यक्रम का होना जरूरी है। पाठ्यक्रम के साथ साथ पाठ्यसहगामी क्रियाकलापों का भी अपना महत्वपूर्ण स्थान है।

अगर सरकार सरकारी इस्कूलों/कालेजों की व्यवस्था सुधारने की तरफ ध्यान दे तो इन इस्कूल/कालेजों के दिन फिर बहुर सकते हैं। इनकी पुरानी रौनक लौटाई जा सकती है। जरूरत है एक ईमानदार पहल कर उसे अमलीजामा पहनाने की।

अत्यंत आश्चर्य की बात है। थोड़ा ही समय बीता है जबकी जिला स्तर से प्रदेश स्तर तक एक-एक अधिकारी ही हुआ करते थे। हां, प्राईमरी शिक्षा अंगरेजों के शासनकाल से ही थोड़ी भिन्न और बदस्तूर थी। जिले में एक जिला विद्यालय निरीक्षक, मंडल में एक शिक्षा उप निदेशक और प्रदेश में एक शिक्षा निदेशक ही हुआ करते थे। शिक्षा निदेशक तक विद्यालयों का समय-समय पर औचक निरीक्षण किया करते रहते थे।
माध्यमिक सभी सरकारी और अर्धसरकारी विद्यालयों में पर्याप्त विषय विशेषज्ञ अध्यापक एवं अन्य स्टाफ नियुक्त रहता था। दूरदराज के प्राईमरी इस्कूलों तक कम से कम दो शिक्षक नियुक्त रहते थे। अध्यापक अपने पठन पाठन पर ही अधिक ध्यान दिया करते थे।अन्य कार्यों का बबाल नहीं के बराबर रहता था। प्राईवेट इस्कूलों की बात तो लोग जानते तक न थे।

आज शिक्षा एवं शिक्षा व्यवस्था के नाम पर तथाकथित शिक्षाविदों ने शिक्षा को एक प्रयोग और विद्यालयों को एक प्रयोगशाला बना कर रख दिया है एवं बच्चों को एक प्रकार की प्रयोग सामग्री । इन प्रयोगधर्मी कार्यक्रमों से शिक्षक, अभिभावक एवं विद्यार्थी सभी परेशान हैं। उधर ब्लॉक स्तर से प्रदेश स्तर तक अधिकारियों की भारीभरकम फौज खड़ी कर दी गई है और शिक्षकों के हजारों पद बर्षों से रिक्त चल रहे हैं। यही कारण है कि इन सरकारी इस्कूलों की छात्रसंख्या का ग्राफ निरंतर गिरते जा रहा है। और आज स्थिति अत्यंत दयनीय बन चुकी है।

जब एक अधिकारी हुआ करता था। तब विद्यालयों का निरंतर निरीक्षण मुआयना हुआ करता था। अब यह भारी-भरकम फौज कहीं नजर नहीं आती है। ट्रेनिंग, पाठ्यक्रम में बदलाव एवं निर्माण तथा शोध के नाम पर अरबों रुपए का वारान्यारा हो रहा है। बच्चों की पढ़ाई लिखाई सिफर। एक किस्सा है—‘जैक लिजी धोति लगाइ उ नाङड़ै’। पता नहीं कैसी सरकार हो गई है और कैसा उसका शिक्षा विभाग एवं आज के ये तथाकथित शिक्षाविद।?।

हाल-हाल ही में इ्सी बीच प्राईवेट इस्कूल/कालेजों के नाम पर गांव गली से लेकर शहर चौराहों तक शिक्षा के नाम पर नईं-नईं दुकानें खुल गई हैं।शिक्षा अब शिक्षा नहीं व्यापार बन चुकी है।सरकारी शिक्षा हाशिए पर धकेल दी जा रही है।ये सब सरकारों की नाकामी दर्शाती हैं।यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि सरकारें ही नहीं चाहती हैं कि सरकारी शिक्षा में सुधार हो।अन्यथा ऐसी कौन सी चीज है जो सरकार चाहे और वह.न हो ।आज सरकार को अंगूठाछाप वोटर चाहिए न कि एक पढ़ा लिखा सुसंस्कृत समाज।

आज नितांत आवश्यकता है संविधान प्रदत्त शिक्षा जैसे मूल अधिकार एवं मूलभूत जरूरत के मध्येनजर सरकार को सरकारी शिक्षाव्यवस्था को सुधारने के ईमानदार प्रयास करने की। अधिकारी हो या कर्मचारी। जनप्रतिनिधि हो या मंत्री सभी पाल्य इन्हीं सरकारी इस्कूल/ कालेजों में ही अनिवार्य रूप से पढ़ें। ऐसे प्रावधान बनाए जाएं एवं उनका कड़ाई से पालन हो। परंतु क्या वर्तमान सरकारें ऐसी दृढ़ इच्छाशक्ति दिखा पाएंगी।?।

रतन सिंह किरमोलिया

■रतन सिंह किरमोलिया
अणां-गरुड़ (बागेश्वर)

अंक-31 : रक्षाबंधन पर एक बहन के वचन की अनोखी कहानी – श्रावणी

वो सावन के महीने में पैदा हुई थी इसलिए उसके बाबा ने बड़े प्यार से उसका नाम श्रावणी रखा था।
बहुत लाड़ली थी श्रावणी अपने बाबा की।
दिन भर में ना जाने कितने सपने देखा किया करते थे उसके बाबा उसके लिए। उनकी तो जैसे पूरी दुनिया ही बस श्रावणी थी।

श्रावणी जब 7 साल की थी तब उसका भाई बसंत पैदा हुआ। श्रावणी की खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था। पूरा घर उसने सर पर उठा लिया था। घूम घूम कर मोहल्ले में सब को बताती फिर रही थी कि उसके घर कितना प्यारा चांद सा भाई आया है।

उसे कितना गर्व महसूस हुआ था जब उसके बाबा ने उससे कहा था कि अब से बसन्त तुम्हारी जिम्मेदारी है। अब हमेशा तुम्हें ही उसका खयाल रखना है। और उस दिन से जैसे बसन्त का ख्याल रखना ही उसका सबसे जरूरी काम था। उसे खिलाने-पिलाने और सुलाने से लेकर उसे घुमाने तक सारा काम अब जैसे उसके ही जिम्मे था। स्कूल से आते ही श्रावणी पूरे जोश से अपने काम में लग जाती। सारा-सारा दिन वो अपने भाई के आगे-पीछे ही घूमती रहती।

राखी का त्यौहार तो जैसे उसके लिए सबसे स्पेशल होता था। चुनकर सबसे खूबसूरत राखी अपने छोटे भाई के लिए लेकर आती और बड़े लाड़ से उसकी कलाई पर बांधती और तोहफे में उसे वचन देती कि हमेशा तेरी रक्षा करूंगी।

सब कुछ ऐसे ही चल रहा था… और फिर अचानक उसकी खुशियों को जैसे किसी की नजर लग गई। उसकी पूरी दुनिया ही बर्बाद हो गई।
एक दिन श्रावणी स्कूल से घर वापस आई तो उसने देखा की बसंत जमीन पर बैठा जोर-जोर से रो रहा था, और पास ही पलंग पर उसके मां बाबा पड़े हुए थे। उसने दौड़कर बसंत को उठाया और अपने गले से लगा लिया। फिर अपने मां-बाप के पास पहुंची पर आसपास के लोगों ने उसे वही रोक लिया। उसे मां-बाप के पास जाने नहीं दिया। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है। उसे किसी की आवाज सुनाई दी। बेचारे कर्ज के बोझ तले इतना दब गए थे कि अपनी जिंदगी ही खत्म कर ली। अब इन मासूम बच्चों का क्या होगा ???

श्रावणी खामोश हो बसंत को खुद से चिपकाए एक कोने में बैठी हुई थी उसकी पूरी दुनिया उजड़ चुकी थी उसके पास था तो केवल उसका भाई बसंत। उसके बाबा की कही हुई बात कि बसंत की जिम्मेदारी श्रावणी पर है, हमेशा उसके कान में गूंजती रहती।
छोटी सी बच्ची ने ठान लिया था कि अब उसे सिर्फ बसंत के लिए ही जीना है, और उसका पूरी जिंदगी खयाल रखना है।

और तभी से श्रावणी की तपस्या शुरू हो गई। वह अपने भाई की ढाल बन गई थी। भाई की जिम्मेदारी उठाने के लिए उसने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और मेहनत मजदूरी करने लगी, ताकि अपने भाई को एक अच्छी जिंदगी दे सके। अपने बारे में तो उसने सोचना ही छोड़ दिया था। उसके लिए बसंत ही सब कुछ था। उसने अपने भाई का दाखिला एक अच्छे स्कूल में करा दिया और उसकी फीस और पढ़ाई का खर्चा उठाने के लिए दोगुनी मेहनत करने लगी। बसंत भी पढ़ने में होशियार था। वह देखता था कि कैसे उसकी बहन उसका भविष्य बनाने के लिए अपने भविष्य को मिट्टी करने में लगी हुई है। उसे बहुत दुःख होता था। पर जब भी यह बात श्रावणी से कहने की कोशिश करता तो श्रावणी हमेशा उसको यह कह कर चुप कर देती कि तेरा भविष्य ही मेरा भविष्य है। मुझे अपने बाबा की बात को पूरा करना है कि तू मेरी जिम्मेदारी है। मुझे तेरा पूरा खयाल रखना है हमेशा….।

और वो कुछ ना कह पाता। वक्त बीतता गया। बसंत की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी और एक बहुत ही अच्छी कंपनी से उसे नौकरी के लिए बुलावा भी आ गया। बड़ी खुशी-खुशी बसंत और श्रावणी उसके इंटरव्यू की तैयारी कर रहे थ।े बसंत जानता था कि अगर ये नौकरी उसे मिल गई तो वह अपनी दीदी के, उनके भविष्य के लिए कुछ अच्छा कर सकेगा और अब वो अपनी दीदी की जिम्मेदारी नहीं रहेगा, बल्कि वह खुद इतना जिम्मेदार बनेगा कि अपनी बहन की जिम्मेदारी उठा सके। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। इंटरव्यू को जाते वक्त बसंत का एक भयानक एक्सीडेंट हो गया। उसको पेट में बहुत ज्यादा गहरे घाव हो गये थे। उसका खून बहुत ज्यादा बह गया था।

चिकित्सक भी निश्चित नहीं थे कि उसको बचा पाएंगे या नहीं। श्रावणी की आंखों के आगे अंधेरा छा गया। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे।

2 दिन बाद राखी का त्यौहार था। हर रक्षाबंधन पर श्रावणी अपने भाई से वादा करती थी कि उसकी रक्षा करेगी, पर इस रक्षाबंधन पर क्या वह अपने इस वादे को निभा पाएगी, यह सोच-सोच कर उसका दिल बैठा जा रहा था। वह अस्पताल के एक कोने में बेंच पर पत्थर का बुत बनी बैठी थी। उसके होठों से केवल अपने भाई के लिए प्रार्थना के स्वर ही निकल रहे थे।

तभी चिकित्सक ने उसके पास आकर कहा कि बसंत के पेट में गहरे घाव होने के कारण उसकी दोनों किडनियां डैमेज हो चुकी हैं और अगर उसकी जान बचानी है तो तुरंत ही उसके लिए एक डोनर का इंतजाम करना होगा तभी उसकी जान बच सकती थी बसंत का खून काफी बह चुका था श्रावणी सोच में पड़ गई…….

आज राखी का दिन था और हर राखी को अपने भाई के रक्षा करने का वचन देने वाली श्रावणी ने आज अपना वचन निभाया था, उसने अपनी एक किडनी अपने भाई को दे दी थी। उसकी रक्षा करने के लिए। उस वचन को निभाने के लिए जो उसने अपने बाबा को दिया था, कि वह हमेशा बसंत की रक्षा करेगी। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे, पर ये आंसू खुशी के थे… सुकून के थे, जो वादा वो हमेशा अपने भाई से करती आई थी सही मायने में आज उसने उस वादे को निभाया था।

उसके भाई की जान बच गई थी अस्पताल में बेड पर लेटे लेटे वह यही सोच रही थी कि आज भले ही उसने अपने भाई की कलाई पर राखी नहीं बांधी पर.. राखी के फर्ज को……
खुद को दिए हुए वचन को बखूबी निभाया है……।
-मानी बंगारी, नैनीताल।

अंक-30 : ऐलक बखत

रतन सिंह किरमोलिया

लूण तेल कूंछी पैंली,
खाणी तेलै ख्वर रुख्यूणौ।
भल भलांकि लै हाव खराब,
पेट्रोल त आग लगूणौ।।
बजाराक हाल देखि,
मैंस कैं मैंस बुकूणौ।
नाङाक नांच देखि,
भल मैंस मुनई लुकूणौ।।
बखतक बयाव यां,
गरीबौं कैं उडू़णौं।
मनखिक करम धरम,
डडूर जस उर्यूणौ।।
रोग लै अजब गजब,
कुकूर जस हुकूणौ।
मन भौत डरन हैगो,
शरीरै कैं दुखूणौ।
हमर ही तो हमेश,
जन्यो जस पुर्यूणौ।
पर यो खुदगर्ज बयाव,
भल भलांक गव सुकूणौ।।
-रतन सिंह किरमोलिया, गरुण, अल्मोड़ा।

अंक-29 : दुनियां में एक इंसान के लिए 422 जबकि हिंदुस्तान में सिर्फ 28 पेड़ बचे हैं…

एक एकड़ में लगे पेड़ एक वर्ष में एक कार द्वारा 41000 किमी चलने पर छोड़ी जाने वाली कार्बन डाइआक्साइड सोख लेते हैं….
डॉ. ललित तिवारी नवीन समाचार, 14 जुलाई 2021। पेड़ धरती पर सबसे पुराने जीव हैं। यह कभी भी ज्यादा उम्र की वजह से नही मरते। हर वर्ष 5 अरब पेड़ लगाए जा रहे है लेकिन हर वर्ष 10 अरब पेड़ काटे भी जा रहे हैं। एक पेड़ दिन में इतनी आक्सीजन देता है कि चार आदमी जीवित रह सकें। दुनिया में सबसे अधिक पेड़ रूस में है उसके बाद कनाडा में उसके बाद ब्राजील में फिर अमेरिका में और उसके बाद भारत में केवल 35 अरब पेड़ बचे हैं। एक इंसान के लिए 422 पेड़ बचे है लेकिन अगर भारत की बात करें तो एक हिंदुस्तानी के लिए सिर्फ 28 पेड़ बचे हैं।

पेड़ों की कतार धूल-मिट्टी के स्तर को 75 प्रतिशत तक कम कर देती है और 50 प्रतिशत तक शोर को कम करती है। एक पेड़ इतनी ठंडक पैदा करता है जितनी एक एसी 10 कमरों में 20 घंटो तक चलने पर करता है। जो इलाका पेड़ों से घिरा होता है वह दूसरे इलाकों की तुलना में 9 डिग्री तक ठंडा रहता है। पेड़ अपनी 10 प्रतिशत खुराक मिट्टी से और 90 प्रतिशत खुराक हवा से लेते है। एक एकड़ में लगे हुए पेड़ एक वर्ष में इतनी कार्बन डाइआक्साइड सोख लेते है जिनती एक कार 41000 किमी चलने पर छोड़ती है। दुनिया की 20 प्रतिशत आक्सीजन अमेजन के वनों द्वारा पैदा की जाती है। ये वन 8 करोड़ 15 लाख एकड़ में फैले हुए हैं। पेड़ की जड़ें बहुत नीचे तक जा सकती है। दक्षिण अफ्रिका में एक अंजीर के पेड़ की जड़ें 400 फीट नीचे तक पायी गयी थीं।

दुनिया का सबसे पुराना पेड़ स्वीडन के डलारना प्रान्त में है। स्प्रूस का यह पेड़ 9,500 वर्ष पुराना है। किसी एक पेड़ का नाम लेना मुश्किल है लेकिन तुलसी, पीपल, नीम और बरगद दूसरों के मुकाबले अधिक आक्सीजन पैदा करते हैं। विश्व में वनों की प्रतिशतता 31 प्रतिशत, भारत में 20-88 प्रतिशत और उत्तराखंड में 65 प्रतिशत है। विश्व में पेड़ों की 60,065 प्रजातियाँ और भारत में 18,000 प्रजातियाँ पायी जाती है। भारत का राष्ट्रीय वृक्ष बरगद है। आइये इस धरा के पर्यावरण को बचाने के लिए एक वृक्ष का पौधा अवश्य लगायें।
(लेखक डॉ. ललित तिवारी कुमाऊं विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान विभाग के प्राध्यापक एवं शोध निदेशक हैं।) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

अंक-28 : भाजपा से जुडे एक व्यवसायी की दो टूक: पर्यटन के नाम पर दी जा रही छूट आपराधिक लापरवाही…

वार्ता करते ग्वल सेना के संस्थापक पूरन मेहरा।

नवीन समाचार, नैनीताल, 13 जुलाई 2021। कोरोना संक्रमण बढ़ता जा रहा है, लाखों लोग मर रहे हैं। करोड़ों लोग अस्वस्थ हो चुके हैं। हजारों लोग रोज अस्वस्थ हो रहे हैं। कई घर वीरान हो चुके हैं। अब अगला निशाना बच्चे हैं। सरकारें कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर से बचने के लिए नई-नई जुगत कर रही हैं। अभी तक केवल 30 फीसद आबादी का ही टीकाकरण हो पाया है। महाराष्ट्र, अरुणाचल प्रदेश, असम, त्रिपुरा, केरल, मणिपुर, मेघालय व नागालैंड के आंकड़े लगातार डरावने होते जा रहे हैं। इन प्रदेशों के कई जिलों में लॉक डाउन लागू है। ये सभी पर्यटक प्रदेश माने जाते हैं। और इन राज्यों में देश के पर्यटकों का आना-जाना निरंतर जारी रहता है। लॉकडाउन लगने से सरकारी पाबंदियों के कारण वहां के पर्यटक अब हिल स्टेशनों की ओर भारी मात्रा में रुख कर रहे हैं। इससे आम आदमी के सेहत के साथ कुठाराघात किया जा रहा है। घूमने-फिरने की आजादी के नाम पर पर्यटकों का दुस्साहस बढ़ता जा रहा है।

कोविड की पहली व दूसरी लहर के बाद लगता है, हम तीसरी लहर आने तक इसके अभ्यस्त हो चुके होंगे। लेकिन पर्यटन के नाम पर जो छूट दी जा रही है क्या वह अपराधिक लापरवाही नहीं है? जब लोग घरों में रहने के अभ्यस्त हो चुके हैं तो उन्हें अचानक पहाड़ों के हिल स्टेशन पर क्यों सैर सपाटे के लिए समुद्री लहरों की तरह आक्रामक तरीके से आने की खुली छूट दी जा रही है। पहाड़ों की रानी मसूरी व स्विटजरलैंड के नाम से विख्यात नैनीताल सहित तमाम हिल स्टेशनों को बजबजाता शहर क्यों बनाया जा रहा है ? इस जघन्य अपराध के लिए कौन जिम्मेदार होगा ? राजनेता, अधिकारी या पर्यटक जिन्हें इस बात का एहसास नहीं है।

यदि कोरोना की तीसरी लहर ने अपना रौद्र रूप दिखाना शुरू किया तो क्या हिल स्टेशनों की ओर लापरवाही से रुख करने वाले संभावित लहर के कहर से छूट पाएंगे ? क्योंकि पर्यटक अधिकतर हिल स्टेशनों में जाकर वहां के वातावरण को भारी नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ वहां के स्थानीय निवासियों की जान को भी जोखिम में डाल रहे हैं। जबकि अभी भी अधिकतर परिवार कोरोना महामारी की दूसरी लहर से उबर नहीं पाए हैं। जानकार तीसरी लहर के पहली व दूसरी लहर से भी ज्यादा कहर बरपाने की बात कर रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार केवल उत्तराखंड में लगभग 40,00,000 बच्चों में बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टरों की मात्र चार पांच सौ भी नहीं है। एक तरफ सरकार कोविड-19 की तीसरी लहर से बचाव हेतु तरह-तरह के विज्ञापन जारी कर रही है। जन जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। यहां तक न्यायिक अधिकारियों द्वारा भी तरह-तरह के रस्म अदायगी वाले बयान जारी कर सरकार पर दबाव बनाने के संभव-असंभव प्रयास कर अपने कर्तव्य की इतिश्री की जा रही है। कोर्ट द्वारा हर मामले को सुनने के कारण उसकी चेतावनी का कोई खास फर्क पड़ता नहीं दिखाई दे रहा।

लगता है नौकरशाही की जकड़न अभी समाप्त होने वाली नहीं है। उत्तराखंड की आराम तलब नौकरशाही इस पहाड़ी राज्य में तेजी से कम हुई कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर को अवसर समझकर पर्यटन को बढ़ाना चाहती हैं। जो जलती आग में घी डालने के समान हो सकता है। कोरोना संक्रमण को जब तक एक बार ठीक से चलता नहीं किया जाता, तब तक किसी भी तरह की लापरवाही जनता की जान को जोखिम में डालती रहेगी। यह वक्त अभी आर्थिक लाभ-हानि का नहीं बल्कि जीवन बचाने का समय है। आज भी कई लोग दो जून की रोटी के लिए फुटपाथ पर भूखे पेट व बेसहारा पड़े रहते हैं। कई बच्चे कुपोषण का शिकार हैं, कई माताएं पति की मृत्यु के बाद बेसहारा बच्चों को अन्न-कण उपलब्ध कराने के लिए अपनी आबरू, जान जोखिम में डालकर शहरों में भटकती दिखाई देती हैं।

सरकारी व्यवस्था के नाम पर आजादी के सात दशक के बाद भी हमने देखा ऑक्सीजन के लिए लोग कैसे भटक रहे थे ? अस्पतालों में बेड नहीं है, डॉक्टर नहीं हैं, टेक्नीशियनों का अभाव है। ग्रामीण क्षेत्रों का हाल तो और भी ज्यादा खराब है। लाख प्रयास के बावजूद लोग मास्क नहीं पहन रहे हैं। पर्यटक स्थलों पर लाखों-हजारों पर्यटकों को लाकर कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वह सामाजिक दूरी का पालन करेंग,े जबकि अभी भी टीकाकरण सुचारू रूप से नहीं चल पा रहा है ? हमें सच्चाई का सामना करना चाहिए। सारे संसार में मंदी फैली हुई है। रोटी हर व्यक्ति को चाहिए। चाहे वह अमीर हो या गरीब। जीने का माध्यम रोटी है। धन जुटाने में लिप्त रहना ही जीवन नहीं है। इस तरह पर्यटन, देशाटन, तीर्थाटन के नाम पर खूली छूट क्या सभी समाज के लिए सुकून भरी हो सकती है ? जो किसी की भी जान जोखिम में डाल दे। सरकार सब कुछ नहीं कर सकती है। प्रयास हमें भी करने चाहिए। कोरोना संक्रमण एक तरफ जनता की मजबूरी को दर्शाता है तो दूसरी तरफ है राजनीतिक खेल। अभी जून माह में कोरोना से रिकॉर्ड मौतें हुई हैं, अभी भी कई राज्यों में कई जिलों में पूर्ण लॉकडाउन है जानवरों में तक डेल्टा वेरियंट्स मिला है। उम्मीद है तीसरी लहर धन्नासेठ पर्यटकों के आसरे छोड़ने के बजाय सरकारी नियंत्रण में रहेगी।
(नोटः लेखक पूरन मेहरा भारतीय जनता पार्टी के जनसंघ के जमाने से जुड़े नेता एवं व्यापार मंडलों में भी सक्रिय रहे नैनीताल के व्यवसायी हैं।) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

अंक-27 : यह भी पढ़ें : अनुभव की बात: कोरोना काल में टूट रहे रिश्ते, इस कारण पर्यटन नगरों में कोरोना का भय भी पीछे छूट रहा

नवीन समाचार, नैनीताल, 11 जुलाई 2021। राष्ट्रीय सहारा, समाचार पत्र के लिए कार्य करते हुए मुझे करीब 14 वर्ष हो चुके हैं। कोरोना महामारी के कारण पिछले वर्ष से पूरी दुनिया परेशान हैं। पूरे विश्व के लोगों ने इस महामारी में अपनों को खोया है। कई लाख बच्चे अनाथ हुए। बेरोजगारी बढ़ी, तनावग्रस्त जीवन जीते हुए रिश्तों का टूटना भी इस महामारी में खूब हुआ। पिछले साल से लगातार हमने देखा कि हमारे अखबार में ‘‘सम्बन्ध-विच्छेद’’ वर्गीकृत विज्ञापनों की संख्या में काफी इजाफा हुआ। कहीं सास-ससुर ने बेटे-बहु से सम्बन्ध विच्छेद किया तो कइयों ने अपनी संतानों को बेदखल किया। इस तरह के विज्ञापनों में अचानक बढ़ोत्तरी हुई। राष्ट्रीय सहारा के अखबार का अन्य दैनिक अखबारों से वर्गीकृत विज्ञापनों की दर कम होने के कारण ज्यादातर लोग इसी अखबार में प्रकाशन करवाते हैं। कम से कम 100 से ज्यादा लोगों को मैंने स्वयं उनके ऐसे विज्ञापनों के प्रकाशन के लिए मना किया। क्योंकि ये वो लोग थे जो अपनी पत्नी या पति से सम्बन्ध विच्छेद करना चाहते थे। इस प्रकार के विज्ञापनों का प्रकाशन अखबार में हो भी नहीं हो सकता। क्योंकि पति-पत्नी के संबंध विच्छेद करने का अधिकार सिर्फ न्यायालय को है। ऐसे कई मामले आने के बाद मैं सोचने पर मजबूर हुआ कि समाज का सिस्टम इतना खराब क्यों हुआ ? क्या सिर्फ व्यस्त जीवनशैली ही आजकल के रिश्तों का आधार है ? क्या हर सप्ताह घूमना-फिरना, बड़े-बड़े शॉपिंग मॉल में खरीददारी करना, महंगे उपहारों से एक-दूसरे को नवाजना… क्या यही रिश्तों का आधार है ?

सरकार द्वारा कोविड कर्फ्यू में कुछ ढील दी गयी तो शिमला से लेकर मसूरी और नैनीताल तक लोगों की भीड़ जमा हो गयी। उच्च न्यायालय से लेकर प्रधानमंत्री को भी ऐसी भीड़ पर अपनी चिंता व्यक्त करनी पड़ी। सरकार व सभी लोग न्यूज चैनलों द्वारा दिखाये जाने वाली ऐसी भीड़ पर सिर्फ चिंता व्यक्त करते हैं, चिंतन नहीं करते हैं। चिंतन समाज को ही करना पड़ेगा। ये जितने भी लोग शिमला, मसूरी, नैनीताल या अन्य पर्यटन स्थलों पर जा कर भीड़ इकट्ठी कर रहे हैं ये सब बेवकूफ नहीं हैं। बल्कि मजबूर हैं। मुझे लगता ये लोग इन्हीं टूटते रिश्तों को एक नया आयाम देने के लिए यहां भीड़ के रूप में जुटते हैं। अगर कोई पत्रकार पूछता है कि आप मसूरी या शिमला या नैनीताल कब और क्यों आये तो बड़ी ही मासूमियत के साथ दूसरे तरफ से जवाब आता है-We are very happy to be here- And seeing the views of nature became even more fun.. लेकिन अगले ही पल जब पत्रकार पूछ देता है कि कोरोना की तीसरी लहर का खतरा लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में आपने मास्क भी नहीं पहना है, और पत्नी के साथ-सााथ बच्चों का जीवन भी खतरे में डाल रहे हैं ? फिर उनके चेहरे पर मायूसी छा जाती है, और चेहते पर यह भाव भी उभरता है जैसे रिश्ते बिखरने से बेहतर तो कोरोना झेलना अच्छा है।

मैं उत्तराखण्ड का ही रहने वाला हूं। कुछ वर्ष पूर्व तक हमने देखा है कि सारे रिश्तेदार चचा-ताऊ, सम्पूर्ण परिवार एक ही कॉलोनी में या कहीं-कहीं तो एक ही घर में निवास करते थे। लेकिन फिर भी खुश रहते थे। और रिश्तों के प्रति सद्भाव रखते थे। आज एक परिवार मां-बाप के साथ भी कुछ महीने साथ नहीं रह पा रहे हैं। इसका कारण हमारी कथित विकसित सोच है। पर असलियत यह है कि हमारी यह विकसित सोच पारिवारिक दृष्टिकोण से विकासशील भी नहीं है। क्योंकि पश्चिमी सभ्यता का इतना बड़ा प्रभाव हमारी संस्कृति पर पड़ चुका है कि यह प्रभाव कभी न सही होने वाले घाव का रूप ले चुका है जो समय के साथ-साथ नासूर बनता जायेगा-बनता ही जायेगा, और एक दिन रिश्तों की जीवनलीला यूं ही समाप्त होती जायेगी। इस विषय पर चिंतन सभी को करना चाहिए।
-केएस गुरानी, राष्ट्रीय सहारा, देहरादून।

अंक-26 : मुबारक होली

रंग-बिरंगे फूलों के वस्त्र पहने,
वृक्ष सारे बन गए हैं होल्यार।
धरा भी रंगों से पुत गई है
द्वार पर खड़ा होली का त्योहार।।
जो नर-नार जीवें खेलें फाग
बस बढ़े दिलों का प्यार दुलार।
आप सभी को तहे दिल से
मुबारक हो होली का त्योहार।।

-रतन सिंह किरमोलिया।

अंक-25 : क्या करें लॉक डाउन में उत्तराखंड लौटे प्रवासी

कोरोना वायरस यानी कोविड-19 की वजह से हमारे उत्तराखंडी सैकड़ों युवा एवं अन्य लोग अपने घरों को लौटे। इससे पुरा कहावत चरितार्थ हुई कि अंततः घर घर ही होता है। जहां जब चाहो जैसे चाहो आसरा जरूर मिलता है। गांवों में पुनः खूब हलचल शुरू हो गई। कुछ गांव तो एकदम वीरान हो चुके थे। कुछ घरों में सदा सदा के लिए ताले लटक गए थे। कुछ महीनों के लिए ही सही ताले खुले तो सही। गांव घरों में जैसे रौनक पुनः लौट आई। होते हवाते पांच छह महीने बीत गए। घर और बाहर से कमाई पूंजी समाप्त हो चुकी है । समस्याएं बढ़ने लगी। इसी बीच लॉकडाउन में कुछ ढील बरती गई। कुछ कंपनियां खुलने लगी। उन्होंने अपने कर्मचारियों को बुलाना शुरू कर दिया। कतिपय युवा चले भी गए। कुछ जाने की तैयारी में बैठे हैं। शेष युवाओं का मन भी विचलित है।

कोरोना वायरस की भयावहता को देख कर पारिवारिक जनों को थोड़ा सुकून तो मिला कि उनके आत्मीय जन सुरक्षित तो हैं घर मेंं। देखते देखते पांच-छह महीने बीत गए। धीरे धीरे लगने लगा जिंदगी पटरी पर आने लगी । एक मोटामोटी अनुमान के अनुसार करीब पंद्रह फीसद युवा लौट चुके हैं। शेष युवा फिलहाल घरों में ही हैं। ये लोग बड़ी असमंजस की स्थिति में हैं। इनमें कुछ लोग पहाड़ में रुकना तो चाहते हैं परंतु स्थाई रूप से रुकने के लिए स्थाई रोजगार तो चाहिए ही। ऐसा रोजगार जिससे परिवार का भरण पोषण तो हो ही, बच्चों को अच्छी शिक्षा भी दिलाई जा सके।

स्वास्थ्य, शिक्षा एवं पारिवारिक सुव्यवस्था के लिए अच्छा रोजगार तो चाहिए ही। यद्यपि यहां उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों से रोजगारसृजन की पर्याप्त संभावनाएं तो हैं परंतु तुरंत एक अच्छा आर्थिक आधार सुदृढ़ हो जाए। ऐसा अभी आशा करना बेमानी होगा । हां इस क्षेत्र में बड़े आर्थिक संसाधनों की दरकार होगी। इसके लिए बड़े पूंजीपतियों को आमंत्रित किए जाने की जरूरत है । यह काम सरकार कर सकती है। यहां उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों से रोजगार सृजन इकाइयों की स्थापना आर्थिक संसाधन विहीन हमारे युवाओं की सामर्थ्य की बात नहीं। बड़ी पूंजी के साथ विशेषज्ञता एवं अनुभव की जरूरत होगी। बैंकों से ऋण लेकर रोजगार करना अधिक भरोसेमंद नहीं। यह सत्य है कि हमारे जितने भी लोग उत्तराखंड लौटे हैं। उनके पास न आर्थिक संसाधन हैं, न इस क्षेत्र में विशेषज्ञता और न अनुभव। ऐसी स्थिति में वे यहां रुकना भी चाहें तो कैसे संभव हो सकता है। सरकार से अपेक्षा करना बहुत अधिक भरोसेमंद नहीं है। इन परिस्थितियों में हमारे इन युवाओं को आज नहीं तो कल बाहरी प्रदेशों का रुख करना ही पड़ेगा । जो लोग यहां कुछ कर पाने की स्थिति में हैं। वे अंगुलियों में गिने जा सकते हैं। इसलिए उत्तराखंड लौटे युवा फिलहाल किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति में हैं।
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● रतनसिंह किरमोलिया
● अणां-गरुड़( बागेश्वर)

अंक-24 : हिंदी दी-अंगरेजी बहन

ओ हिंदी दी !
तुम हमारी हो
बस हमारी हो 
ओ अंगरेजी बहन !
तुम सात समंदर पार की हो 
फिर भी हमें प्यारी हो 
ओ हिंदी दी ! तुम हमारे 
संविधान की अनुसूची में हो 
अंगरेजी बहन ! तुम फिर भी 
हमारी अनुभूति में हो 
आओ हिंदी दी ! तुम हमारी
बगल में बैठ जाओ 
अंगरेजी बहन !तुम हमारी 
शकल में बैठ जाओ 
अंगरेजी बहन ! अरे बाप रे बाप 
बहुत गजब ऐंठ गई 
हमारी हिंदी दी तो
चुपचाप आकर बैठ गई
हिंदी दी ! तुम्हारे प्रति हमारे लोगों की 
दीखती कितनी निष्क्रियता है
अंगरेजी बहन ! तुम्हारे प्रति हमारे लोगों की 
दीखती कितनी लोकप्रियता है 
ओ हिंदी दी ! तुम फिर भी कभी 
निराश नहीं होती हो 
राजकाज की हेयता के बावजूद 
तुम कभी उदास नहीं होती हो 
तुम धन्य हो ओ हिंदी दी !
तुम्हें हमारा शत शत नमन है 
हृदयतल से अभिनंदन है 
मन से तुम्हारा वंदन है ।
      ■ रतनसिंह किरमोलिया, अणां-गरुड़( बागेश्वर).

अंक-23 : हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या पर एक रचना हिन्दी दिवस 

 
हिन्दी दिवस
तुम
साल में
एक बार
आ ही जाते हो,
 
अच्छा लगता है
तब 
मंचों से
तुम्हारा सत्कार,
 
किसी पुराने
रिश्तेदार की तरह
तुमसे बतियाना
और
याद करना
वो पुराने दिन।
 
हिन्दी दिवस
गोदान, गबन,
रश्मिरथी, कामायनी,साकेत, 
आदि-आदि 
पढ़ने वाली पीढ़ी
अब विलुप्त हो गयी,
पता नहीं
कहां जाने,
 
फिर भी
शगुन ही सही, 
तुम
बिखेर देते हो
रस, छंद, अलंकार,
 
और मैं
टकटकी लगाए
तुम्हारे
आने-जाने के बीच
मौन श्रोता
बना रहता हूं
हमेशा – हमेशा।
 
 
-अनुपम उपाध्याय, नैनीताल।

अंक-22 : पहाड़ में काम करने को तो चाहिए ‘काठ’क खुट-लुव’क कपाव’

हमारे घर-गांवों में प्रदेश से लौटे प्रवासी भाईवृंद इस समय अपने पारिवारिक सदस्यों के साथ थोड़ी बहुत संजोई जमापूंजी करीब-करीब खर्च कर चुके हैं। ऐसे में अब मानसिक, शारीरिक, आर्थिक एवं पारिवारिक परिस्थितियां दिनों-दिन और गंभीर होती जा रही हैं।
सबसे बड़ी बात है कि अब ये लोग पहाड़ में रह कर हाड़-तोड़ मेहनत करने लायक भी नहीं रह गए हैं। इनकी यहां काम करने की आदत नही रह पाई है, क्योंकि मैदानों में काम करना और पहाड़ में काम करने में धरती आसमान का अंतर है। कहते हैं, पहाड़ में रह कर जीवनयापन करने वालों के लिए ‘काठ’क खुट-लुव’क कपाव’ चाहिए। यानी काठ के पांव और लोहे का कपाल जैसी मजबूती चाहिए।
वर्तमान परिस्थितियों से लगता है कि कोरोना काल की स्थिति जैसे ही पटरी पर आती हैं, इन लोगों को रोजगार के लिए पुनः उत्तराखंड से बाहर जाना ही जाना है। बल्कि कयेक बंधु तो चले भी गए हैं और यह क्रम धीरे-धीरे जारी है।
गाहे-बगाहे यहीं रह कर दर गुजर करने की बहुत बातें होती रही हैं। लेकिन सरकारी स्तर पर भी ऐसे कोई सकारात्मक प्रयास होते नजर नहीं आ रहे हैं। सारी बातें हवा-हवाई ही लग रही हैं।
यहां इस समय न खेती गुजर बसर लायक रह गई है, न पशुपालन और न बागवानी ही। वन्य जीवों द्वारा पहुंचाए जा रहे नुकसान को रोक पाना आसमान से तारे तोड़कर लाना जैसा हो गया है। स्व-रोजगार के लिए पर्याप्त आर्थिक संसाधन उपलब्ध नहीं हैं। सरकारी स्तर से भी कोई आशाजनक प्रयास नजर नहीं आ रहे हैं।
यहां स्थाई रूप से रह रहे एवं प्रवासी भाईवृंद जो यहां धरातल पर कुछ करना चाहते हैं। उन्हें अपनी कार्ययोजना तैयार करनी होगी। इसके लिए सरकार को आर्थिक संसाधन जुटाने में मदद करनी होगी। यद्यपि यहां संभावनाएं अनंत हैं। परंतु देश काल एवं परिस्थितियों को नजर में रखते हुए इन कार्ययोजनाओं को मूर्तरूप देना असंभव नहीं तो जटिल जरूर है।
■ रतनसिंह किरमोलिया,
अणां-गरुड़ बागेश्वर।

अंक-21 : हृदय में भक्ति उमड़ रही, मैय्या से मिलने को तड़प रही….

हृदय में भक्ति उमड़ रही,
मैय्या से मिलने को तड़प रही
इस बार भी मेला आया है,
माँ नंदा-सुनंदा को लाया है।
फिर से हर्षोल्लास छाया है,
मैय्या को सबने दिल से बुलाया है।
 
माना इस बार मज़बूर हैं हम,
दर्शनों से आपके दूर हैं हम।
सब भक्त हुए हैं विवश यहाँ,
आ न सकें दर्शनों को वहाँ।
 
माँ हृदय में हमारे विराजित हो,
हम बच्चों की सदा सहायक हो।
हृदय में भक्ति उमड़ रही,
मैय्या से मिलने को तड़प रही।
 
न कदली-नारियल, न धूप- दीप,
न श्रृंगार- पिटारी, न बगिया के फूल।
कर सकते नहीं कुछ अर्पित तुमको,
बस भक्ति-सुमन ही स्वीकार करो।
 
आपके ममतामयी रूप को निहारा है माँ, 
इस बार केवल ऑन लाइन दर्शन का सहारा है माँ।
अपने अबोध बच्चों पर कृपा दृष्टि रखना माँ,
इस विषम परिस्थिति में सभी को स्वस्थ- सुरक्षित रखना माँ।
 
                जय माँ नंदा,
                जय माँ सुनंदा।
    हृदय से निकले इस जयघोष को माँ,
       इस बार सहर्ष स्वीकार करो माँ।
 
                                         -पूनम चौहान 
                                   हिंदी अध्यापिका
                             लौंगव्यू पब्लिक स्कूल
                             नैनीताल

अंक-20 : मां नंदा-सुनंदा, क्या रूठ गई है तू हमसे….

माँ नंदा सुनंदा,
है भक्तों बिना अधूरी,
विश्वास के डोर से बँधी थी जो डोरी।
कण-कण में तू है बसी,
अपने आँचल की छाव् में ले लें हमें माँ,
क्या रूठ गई तू हमसे इतना,
थक गई होगी शायद तू भी माँ,
मनुष्य की झूठे मोह और दिखलावे के विश्वास से।
कुछ तो इशारा दो अपनी जगमगाते नैनों से,
हो गई जो भूल हमसे,
क्षमा कर हमें एक बार फिर,
अपने आँचल में समेट ले हमें।
माँ तू रूठी,
तो रह् जाएंगे सिर्फ राख के,
कैसे आएँगे फिर तेरे द्वार पे।
रो तो तू भी रही होगी,
है तेरा आँगन भी सूना,
कुछ तो अपने होने का एहसास करवाओ न माँ ।
आस्तिकता से नास्तिकता कहीं जाग ना जाए,
कहीं प्रेम-विश्वास की डोरी कमजोर हो दूरी बढ़ ना जाए,
चाहेंगे नहीं कभी तेरे आँचल से दूर होना,
एक बार आँचल में समेट ले न माँ।
मेरी इस व्यथा को दूर भगाकर,
एक बार अपने आँचल की छांव में ले ले न माँ।
-ज्योति।

अंक-19 : पिता दिवस के उपलक्ष्य में पापा के लिए कविता-पापा

पापा आप हो सबसे खास।
हमारी छोटी सी जिन्दगी की सबसे बड़ी आस।।

बचपन के वो दिन वो खिलौने याद आते हैं।
जो बिना कहे हमें सब कुछ दे जाते हैं।।

खामोश रहकर सबकुछ सहकर ख्वाईशें पूरी करते हो।
सबकी फिक्र इतनी कि अपनी इच्छाएं अधुरी रखते हो।।

पिता ही सपनों की उड़ान है।
पिता ही अपने बच्चों का प्यारा जहान है।।

पिता माँ का सुहाग है, पिता बच्चों के जीवन का अनुराग है।
पिता पर सब की जिम्मेदारी है, उन्हें बस परिवार की खुशियाँ प्यारी हैं।

हर कदम पर साथ देते वो, हमारे मुकाम तक पहुंचाते है हरपल।।
महसूस नही होने देते कोई भी कमी, ताकि मजबूत बने हमारा आने वाला कल।।

पापा है तो “हम हैं” “हमारे सपने हैं”।

-श्रीमती ममता तिवारी, जज फार्म हल्द्वानी। 

अंक-18 : आओ करें योग रहें नीरोग

आओ करें योग रहें नीरोग
दुर्लभ जीवन का बड़ा संयोग
प्रभु प्रदत्त निधि काया की
भर दिये उसमें हमने रोग
शरीर समृद्धि भोग में नहीं
मूल मंत्र है उसका योग
आओ पहनें कवच योग का
शास्त्र सम्मत है यह नियोग
तन मन प्राणों की शुचिता से
नहीं रहेगा फिर कोई शोक।
-दामोदर, जोशी ‘देवांशु’, देवांशु कुंज, संपादक-कुमगढ़, पश्चिमी खेड़ा, गौलापार, हल्द्वानी।

अंक-17 : हिंदी पत्रकारिता दिवस पर आज हिंदी पत्रकारिता से बने प्रधानमंत्री पर कविता (30 मई 2020)

पत्रकार की कलम से कविता लिखी
कविताएँ धीरे-धीरे भाषण बनते दिखीं
भाषण पढ़े तब तक नेता थे बन चुके
नेता की छवि जानने तक प्रधानमंत्री दिखे||
 
जन्म हुआ जब इसाईयों का था बड़ा दिन
तभी तो उनकी छवि थी हर किसी से भिन्न
कद राजनीति में था बहुत बड़ा
कठोर परिस्थितियों में वो डटकर था खड़ा ||
 
भाषण मानो समर्थकों के लिए पर्व
वीआइपी होने पर ना किया कभी भी गर्व
आम आदमी सी थी उनकी शैली
विरोधियों में भी प्रेम की लहर थी फैली||
 
शब्दों में मानो जादू था अपार
सड़कों के जरिए खोल दिए कई रोजगार
हिम्मत से हर क्षण भरे रहते थे
देश का विकास परम धर्म यह कहते थे||
 
पत्रकार बनकर पेशा शुरू किया
1942 में “भारत छोडो़ आंदोलन” में हिस्सा लिया
1951 में पत्रकारिता छोड़ी
जनसंध के साथ तारें जोड़ी || 
 
1957 में बलरामपुर चुनाव से संसद गए
भारत के फिर वह बने विदेश मंत्री नए
पोखरण परमाणु परीक्षण बनाया सफल
दुनिया को बताया भारत नहीं है अब विफल ||
 
दुनिया को हिंदी की ताकत समझाई,
भारत की नई छवि दुनिया को दिखाई,
कवि की कल्पना को सबको दिखाया,
ज़ुबान कोमल है ,पर फैसले मजबूत बताया||
 
खाने का वह खूब शौक रखते, 
जो कुछ खाने का लाता उस तुरंत चखते,
पाकिस्तान से धोखा मिला तो कारगिल जीता लिया,
पाकिस्तान तक उन्होंने बसों को पहुंचा दिया||
 
दलों को जोड़ने की वह मिसाल थे,
नेता से पहले कवि विशाल थे,
कविताओं में नेता नहीं कवि दिखा,
कभी संदेश तो कभी सोचने पर मजबूर किया||
 
2009 के बाद सार्वजनिक जीवन से दूरी करी, 
जिसे देख लोगों की आंखें आंसुओं से भरी,
बदन में जैकेट, आंखों में चश्मा काला,
कमर पर धोती बांधे अटल जी का व्यक्तित्व निराला …!!!
 
2015 में सम्मान हुआ भारत रत्न से
2018 में हताश हुए सब उनके निधन से
चला गया था एक पत्रकार और कवि
नेता, अभिभावक और दोस्त की थी जिसमें छवि ||

-सोनाली मिश्रा,

पीजी डिप्लोमा इन जर्नलिज्म एंड मास कम्यूनिकेशन, द्वितीय सेमेस्टर, अटल पत्रकारिता एवं जनसंचार केंद्र, डीएसबी परिसर नैनीताल।

अंक-16 : क्यों कोरोना जकड़ रहा है ?

आओ मिलकर प्रकृति बचायें, मानव जीवन स्वर्ग बनायें।
जिम्मेदारी समझ के अपनी, धरती माँ का मान बढ़ायें।
 
हरा – भरा बनायें, वृक्ष लगायें, जन – जन को यह बात बतायें।
मानोगे जब बात हमारी, तभी प्रकृति होगी तुम्हारी।
 
पेड़ हमें जीवन देते हैं, हम उनका जीवन लेते हैं।
आज के मानव की ये कहानी, सुन लो अब उसकी ही जुबानी।
 
अपने स्वार्थ के लिए अब, पेड़ों को ही काट रहा है।
बंजर धरती हो गयी है, फिर भी मानव बस ताक रहा है ।
 
ताप बढ़ गया धरती का ये, नदियाँ ये सब सूख गयीं।
महामारी फैल चुकी सारे जग में, क्योंकि प्रकृति हमसे रूठ गयी।
 
धुऑ ही धुऑ उठ रहा है, प्रदूषण ये बढ़ रहा है।
पूरे विश्व को अपनी बाँहो में, कोरोना भी अब जकड़ रहा है।
 
एक – एक पेड़ की अब कीमत तुम जानो।
यही है जीवन, अब तुम मानो।
 
जिन्दगी अगर प्यारी है तो, प्रकृति का रखें ख़्याल ।
हर मानव संकल्प लें, तभी आने वाला कल होगा खुशहाल ।
 
वृक्ष लगायें,  धरती बचायें।
 
लेखिका- श्रीमती ममता तिवारी 
जज फार्म हल्द्वानी-19/05/2020 ।

अंक-15 : ओ देश के वीर जवानो…

● ओ जवानों देश के, हिम्मत न हारना कभी ।
 तुम पर टिकी है देश की रक्षा, इसे देखो सभी ।
सीमा पर जब रहते हो तुम, दुश्मन को मात देने को। 
मौत भी डर जाती है  यहाँ, जिन्दगी आती है साथ देने को ।
●  न धूप देखें न छाँव देखें, सीमा पे तत्पर शान से। 
हो जाये अगर दुश्मन से युद्ध, तो खेलते हो अपनी जान से ।
महफ़ूज रखे जिन्दगी सभी की, खुद है  पहरेदार बनें ।
देश के लिये ही, खुद को न्योछावर करें ।
● बढ़ गये हैं जुल्म – अत्याचार अब सभी जगह, चारों तरफ दुश्मनी फैली है बिना वजह ।
फर्ज है हर जवान का, ये मिटा दे उठती दुश्मनी को।
नमन है ऐसे वीर जवानों को, ना भूलें इनके हर एक बलिदान को।
● आओ संकल्प करेंगे हम सब मिलकर,  प्रण करें आन – बान से।
सभी के दिलों में हर एक जवान, तो डर नहीं है इस जहान से ।
 अपनी मातृभूमि के लिए,  ये देते हैं अपना बलिदान ।
नारा है मेरा इनको अब॰॰॰॰

-ममता तिवारी, जज फार्म हल्द्वानी।

अंक-14 : आज नर भयभीत है

एक अविदित कल्पना में  
आज नर भयभीत है।
   
भूल बैठा था मनुज 
उस जगत पालनहार को, 
पवन,सरिता,विटप,रवि,
धरणी सकल उपकार को !
कृपा से जिनकी सकल
संसार अनुगृहीत है,
ताप, शरद, बसंत, वर्षा 
नम्र हिमयुत शीत है !!
याद करता कष्ट में बस
यह जगत की रीत है, 
आज नर भयभीत है !!
 
विकल दिखता जन स्वयं में
शब्द-स्वर से मौन है,
लुप्त है अभिकल्पना सब
कहाँ किसका कौन है !      
भूल बैठा कौन बैरी 
कौन किसका मीत है,
सहम कर बैठा मनुज जो
सोचता था अजीत है !!
मान बैठा हृदय से  
संसार कालातीत है, 
आज नर भयभीत है !!
 
ध्यान से देखो तनिक तो 
हो गए हैं नेत्र निर्जल, 
भीरु आनन, मंदगति और
दीखता है मनुज दुर्बल !
स्वाद नहिं जिह्वा में, 
दिखती बात में नहिं प्रीत है,    
नहिं बुभुक्षा, स्तब्ध है, 
चाहे धरा नवनीत है !!
ठगा सा रह गया मानव 
खड़ा वह ज्यों भीत है !
आज नर भयभीत है !!
   
विज्ञान भी नि:शब्द है 
परजा निलय में बंद हैं, 
मगर पशु, जलचर,गगनचर
विचरते स्वच्छंद हैं !
और लगता आज यह
ब्रह्माण्ड भी अनुनीत है   
क्या नियति है सृष्टि की 
कैसा प्रकृति का गीत है,
हार मानव की कहूं, 
या यह प्रकृति की जीत है 
आज नर भयभीत है !!
 
           – नवीन जोशी ‘नवल’

अंक-13 : सुबह-ए-नैनीताल

सर्द हवाओं का तो कभी हल्की नमी का एहसास कराती हैं सुबह-ए-नैनीताल।
कभी ओंस की बूंदों से तो कभी पाले से ढकी सड़कें दिखाती है सुबह-ए-नैनीताल।
कभी हल्की सी बूंदा-बांदी तो कभी बारिश की फुहार से नहलाती है सुबह-ए-नैनीताल।
कभी गौरैया से तो कभी प्रवासी पक्षियों से भी मिलाती है सुबह-ए-नैनीताल।
कभी कुछ जाने तो कभी कुछ अनजाने चेहरों से भी बात कराती है सुबह-ए-नैनीताल।
कभी एक प्याली चाय से तो कभी जलेबियों के थाल से, ना जाने कितनी ही संस्कृतियों से मिलाती है सुबह-ए-नैनीताल।
यूं तो रूबरू हुआ हूं मैं और भी शहरों की सुबहों स,े पर उन सब से ज्यादा अपनेपन का एहसास दिलाती है सुबह-ए-नैनीताल।

-प्रमोद प्रसाद

अंक-12 : कोरोना के अष्टक  दोहे 

 
कोरोना के कहर से, कांप रहा संसार ।
कहीं  मर्ज सता रहा है, कहीं होत संहार ।।
जंग लड़े एक विषाणु से,मिलकर देश अनेक ।
एक कोरोना कर गया,सारी दुनिया  एक ।।
सर्दी खांसी अरू जुकाम, रहे गले में पीर।
कठिनाई हो सांस में, तपने लगे शरीर ।।
हाथ मिले न गले मिलें,रहे दूर ही गात।
अभिवादन हो दूर से,दूर-दूर से बात ।।
भीड़ भाड़ को छोड़ कर,घर पर कीजे टास्क ।
हाथ धुलें साबुन संग,नाक- मुँह में मास्क ।।
कड़ी तोड़ करोना की, घर में रहे एकांत ।
मिलना-जुलना बंद हो,व्याधि बड़ी संक्रांत ।।
आसन-ध्यान-प्राणायम, कीजे योग निरोग।
हाथ जोड़ के नमो नमः, होत विषाणु नियोग।।
प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाओ,छोड़ करोना रोना।
सावधान! बचकर रहना, उसको कुछ न होना 
                                   -बी.बी. भट्ट, अल्मोड़ा

अंक-11 : शहीद के अंतिम शब्द

खुश रहना तुम मेरे यारो ।
खुश रहना तुम मेरे प्यारो।
मैंने तो जान लुटा ये दी।
वतन की शान बचा ये दी।

दर्द नहीं होता वो जब मेरा कत्लेआम करें।
सीना फट जाता है तब, जब देश को कोई बदनाम करें।

सरहद पर रह-रहकर मैं देश की जय जयकार करूं।
तू ही बता मेरे वतन मैं क्यों ना तुझसे प्यार करूं।

मैं रोता हूं जब सुनता हूं कि लोग आपस में लड़ते हैं।
अमन चैन के लिए ही तो हम सरहद पर यूं मरते हैं।

खुद ही खुद में तुम लोगो ना ऐसे वार करो।
मुझसे मत करना लेकिन वतन से तो तुम प्यार करो।

सरहद पर जब किसी ने बुरी नजर लगाई है।
मेरे वतन के वीरों से मुंह की ही तो खाई है।

अब छोड़ कर चलता हूं मेरी जां ने किया इशारा।
तुम भी खुश रहना यारो मेरा वतन ही मुझको प्यारा।

मेरा वतन ही मुझको प्यारा।
जय हिंद 🙏
-माही आर्या
राजकीय इंटर कालेज बबियाड़ धारी, नैनीताल।

अंक-10 : परिन्दे

टूटे हैं घरोंदे भी इन परिंदों के कुछ तो आशियाना बनाने में हमारे।
गुम हुई है चहचहाहट भी इन परिंदों की कुछ तो नवीनीकरण के शोर में हमारे।
रोकी है उड़ान भी इन परिंदों की कुछ तो सपने सजोने में हमारे।
हो चुका जो उसे अब ना दोहरायेंगे, टूटे हुए घरोंदों को फिर से बसायेंगे।
रूठे हैं जो परिन्दे उन्हें फिर से मनायेंगे, गुम हुई चहचहाहट को फिर से ढूंढ लायेंगे।
है वक्त आज फिर एक सपना सजोने का, खोये हुए परिंदों को फिर उनके घर लाने का।
– प्रमोद प्रसाद।

अंक 9 : आज हुआ धरती का श्रृंगार है…

आज हुआ धरती का श्रृंगार है… 
डाली डाली पत्ते पर नव यौवन का अभिसंचार है।
जल स्रोतो को मिली नई जान,
नदी-नालो में आयी नई बहार है।
आज हुआ धरती का श्रृंगार है।
पेड़ पौधों के अनेक रोगों का अंत होगा,
फल-फूलों में आयी नई उमंग है।
आज हुआ धरती का श्रृंगार है।
पर्यटन व्यवसाय को भी नई उम्मीद जग गयी है,
हर व्यवसायी पर खुशी की लहर दौड़ गयी है।
हाँ आज पृथ्वी ने किया श्रृंगार है,
हिम कणों ने सबको फूल बन कर किया श्रृंगार है….।
🌷🌷🌷🌷 – राजीव पांडे, भवाली।

अंक 8 : सबको मिलकर देना होगा पहाड़ के विकास में सहयोग

कल एक व्यक्ति से चर्चा हुई तो बहुत सारे विचार और कुछ प्रश्न मन में आये ,,हमार पहाड के लोग सब शहर की ओर आ रहे है, क्यों रोजगार की कमी, शिक्षा की कमी और स्वास्थ सेवा की कमी के कारण ? इन तीन मुद्दों पर हमेशा से चर्चा हुई है ,,,,पर समाधान नहीं हुआ ,,,, मुझे समझ ये नहीं आया कि सरकार की नीतियों में कमी है या हम में ,,, हमेशा से इन मुद्दों पर चर्चा होती आ रही है पता नहीं कब तक यह चर्चा चलेगी,,,,,,युवा साथियों को जब तक जोश होता है तब तक गुमराह किया जाता है , फिर हिम्मत हार जाने के बाद वही पुराना जीवन ,,,,,,चोट खाये हुए है हमारे युवा साथी ,,,,, क्या कोई रोजगार पहाडों में नहीं खोल सकती सरकारें, क्या पहाडों के हास्पिटलों की स्थिति नही सुधार सकती, क्या शिक्षा का स्तर नहीं बडा सकती,,,,, या फिर मुझे लगता है हम ही जागरुक नहीं है ,,,, कही ना कही मैं खुद अपने समाज की भी कमी समझता हूं ,,,, हर दिन पहाडों की मिट्टी ,रेता ,पानी ,पत्थर से बडे बडे कंकरीट के जंगल तैयार हो रहे है उन पहाडों के लिए क्यों नहीं सोचा जा रहा है ,,,, शहरों में रहकर पहाडों के विकास की बातें बहुत करते है लोग,, हमारे जन प्रतिनिधि ,,,,,, पहाड के लोगों को विकास का प्रलोभन देकर वोट बैंक पूरा कर लिया जाता है फिर दूरस्त क्षेत्रों की ओर झांककर भी नही देखते है ,,,, एक उम्मीद के साथ वोटर वोट देता है परन्तु फिर वही जो आज तक चलता आ रहा है ,, मुझे जन प्रतिनिधियों से आशा है कि आप राजनीति में सेवा भाव से कार्य करेंगे ,,,,, कहना तो बहुत कुछ है परन्तु समय आने पर ,,,,,,,बदलाव करना है तो युवा साथियों आप को आगे आना होगा ,,,,,हर क्षेत्र में,,,, जितने भी लोग अच्छे पद पर है पहाड के आप सब के छोटे से सहयोग प्रयास से पहाड बदल सकता है एक दूसरे की टांग खींचने से अच्छा है आप सब मिलकर पहाडों के लिए सोचिए ,,,,,,,,,,इस सत्यता पर सभी से निवेदन करता हूं विचार जरूर कीजिएगा,,,,,, रमेश चन्द्र टम्टा, सामाजिक कार्यकर्ता।

अंक 7 : नवरात्र पर पढ़ें महामाया श्री जगदम्बा माता की अनेक लीलाओं का वर्णन…

माता श्री त्रिपुर सुंदरी

 

नवरात्र अर्थात अपने संकल्प श्रृष्टि  में आने वाले अवरोधों(अन्धकार) को अपने तेजोमयी ज्योति के प्रकाश से प्रकाशित करना महामाया नौ रात्रियों के अन्धकार को अपने तेज से दूर करके जीवों की आत्मा को प्रकाशित कर उज्जवल बना देती है। जिसमें जीव परमार्थ (मोक्ष) की यात्रा कर सके। वे नौ अवरोध हैं। 1- अहंकार, 2- काम 3- क्रोध 4- लोभ 5- मोह 6- मात्र्सय 7- इष्र्या 8- मद 9- द्वेष ।

श्री देवी भागवत का मूल मंत्र है ‘‘सर्व खलिवद मेवाहम् नान्यर्दास्त सनातनम” अर्थात मै ना स्त्री हूॅ न पुरूष हूॅॅ अपने ही तेज के प्रकाश से समपन्न हूॅ।
‘‘एकोहम् ब्रह्म द्वितीयम नास्ति” में एक आलौकिक रूप तेज से समपन्न हॅू मैं समस्त ब्रह्माण्डों के परमाणुओं में (इलेक्टोंन, प्रोटोन न्यूट्रोन व पोजीट्रोन ) में उनकी शक्ति रूप से विराजमान हूॅू। मुझसे दूसरा इस अखिल ब्रह्माण्ड में कोई नहीं।
अचानक महामाया के इच्छा, जिसे कौतुक व लीला कहते है ‘‘एकोहम बहुष्यामी” हुई अर्थात अनन्त ब्रह्माण्डों में अनेक रूपो में (चैरासी लाख यौनियों के प्राणी) जो सब मेंरे ही प्रतिबिम्ब (छाया) है। और सब मेरे उदर में संकल्प रूप से विराजमान है द्वारा कौतुक (लीला) करू क्योंकि ए जीव (समस्त श्रष्ठि) मेरी ही चेतना शक्ति द्वारा प्रकाशित है। ऐसा संकल्प करते ही सीमा रहित आकाश अनन्त ब्रह्माण्ड, उनमें रहने , स्थावर (स्थिर रहने वाले पर्वत पहाड़ व वृक्ष ) जंगम,  (चलने व रेंगने वाले प्राणी ) अर्थात चार प्रकार के प्राणी 1. जरायुज (स्तनधारी प्राणी) 2. स्वेदज (पसीने से उतपन्न होने वाले प्राणी जैसे पिस्सू खटमल, कीटाणु, जुएं आदि ) 3. अंडज (अंडो से उत्पन्न प्राणी) उदभिज्ज (जमीन तोड़कर बीज के अंकुरण से उत्पन्न प्राणी) ये चार प्राकर के जीव जो समय समय पर उनकी इच्छा द्वारा उत्पन्न हुए।
सर्वप्रथम महामाया द्वारा ऊंकार का अनाहत नाद हुआ जिससे उनकी संकल्प रूपी आकाश में वायु प्रवृष्टि हुई अनेक ब्रह्माण्ड जो उनके अन्दर में परमाणु रूप से विराजमान थे। बाहर आकाश में बिखर गये वायु से उनका सम्पर्क अर्थात घर्षण हुआ जिससे अग्नि उत्पन्न हुई । अग्नि व वायु के मिलन से जल उत्पन्न हुआ। जल के साथ अनन्त परमाणु गलकर पृथ्वी गृह, नक्ष़त्र, आकाशगंगा अग्नि की उपस्थिति के प्रभाव से ठोस विशाल पृथ्वी व ग्रहों के रूप में परिवर्तित हो गये ये ही पंच महाभूत कहलाए (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश) इनके अन्दर जो शक्ति 1. पृथ्वी में धारण करने की शक्ति 2. जल में सब को गलाने की शक्ति 3. अग्नि में समस्त पदार्थाे को सुखाने की शक्ति 4. वायु में जीवनदायिनी शक्ति 5. आकाश में सब को ग्रहण करने की शक्ति, महामाया द्वारा ही प्राप्त हुई। इसी शक्ति के प्रभाव से पंचभूतों को पंचीकरण हुआ। उसके प्रभाव से जीवन की उत्पत्ति हुई महामाया महालक्ष्मी का अर्थ है जिनका महान लक्षण चेतन शक्तियों को अपने तेज से उत्पन्न करना है। महालक्ष्मी, को ही – महालक्ष्मी, महाकाली, महासरस्वती भी कहते  हैं ये तीनो अलग-अलग नहीं है वरन् एक ही शक्ति हैं। ये उग्र प्रकाश से संपन्न होने के कारण जीवों के नेत्रों में चकाचौंध उत्पन्न कर देती हैं। अतः उनका वास्तविक रूप दिखाई नहीं पड़ता है। अतः सिद्व साधकों वह काली दिखाई पड़ी (जैसे वैल्डिंग मशीन के प्रकाश को नग्न आंखें से देखने के बाद अंधेरा ही अंधेरा आखों के आगे छा जाता है। उनकी जीभ लाल रंग की है। अर्थात महामाया अपने उदर से अनन्त शक्ति से सम्पन्न शीतल तेज उगल रहीं है। महान शक्ति से सम्पन्न होने के कारण वायु के सम्पर्क में आने से गुरूत्वाकर्षण (श्रेष्ठ तत्व का आकर्षण) रूपी चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। चुम्बकीय क्षे़त्र में वायु के विक्षेप से संसारिक विघुत उत्पन्न हो जाती है। (अर्थात डीसी का एसी में परिवर्तन) वही विद्युत चेतन तत्व के रूप में समस्त ब्रह्माण्ड के परमाणुओं के अन्दर विराजमान है। इसी चेतन शक्ति के प्रभाव से स्थावर, जंगम (जरायुग, अण्डज, स्वेदज, उदभिज) ये चार प्रकार के जीव तथा समस्त सृष्टि उत्पन्न हो गई। 
ध्यान देवें महामाया न तो कर्ता है ना उनसे श्रेष्ठ कोई कारण है। उनकी चेतन शक्ति के प्रभाव से सब कुछ स्वयंमेव हो जाता है- जैसे विद्युुत स्वयं कुछ भी कार्य नहीं करती परन्तु विद्युुत के सम्पर्क में आने वाले उपकरण (यथा पंखा, बल्ब, हीटर, एसी  आदि कारखानों की मशीनें अपने आप कार्य करने लगते है।  महामाया की इसी चेतन शक्ति के प्रभाव से श्रृष्टि में निरंतर, उत्पत्ति, पालन व संहार कार्य घटित हो रहे हैं। श्री महाकाली के हाथों में खून से लतपथ जो मस्तक प्रतीक रूप में दर्शाया गया है। उसका अर्थ है वे अपने भक्तों के अंहकार (कामना, वासना रूपी मैं का संकल्प) को खड्ग से काटना है। लाल खून चाटती हुई जीभ प्रतीक रूप में यह दर्शाती है कि माता अपनी श्रद्धालु भक्तों के क्रोध व लोभ को चाटकर उदरस्थ करती है। भयंकर डरावने विशाल, नयनों का प्रतीक रूप में अर्थ है कि माता अपने भक्तों के अंदर उत्पन्न होने वाले मोह, मद, मात्सर्य, ईष्र्या, द्वेष रूपी अनर्थों को भयभीत करती हैं। 
श्री मांकाली इन्हीें आठ अर्थों को निरंतर भक्षण करती हैं (अर्थात भ्रमण योग्य बलि है) कि उनके भक्त इन आठ (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मात्र्मय, ईष्र्या, द्वेष) अनुभवों के अभाव से बनकर महात्मामय की शक्ति को प्राप्त हो जाय परंतु हम कितने जीभ लोलुप संसार की आशक्ति में पड़े हुए मुर्ख हैं। कि महामाया की चेतन शक्ति से उत्पन्न, उनकी श्रृष्टि के जीवों की बलि(हत्या) देते हैं। इन जघन्य कृत्यों से महामाया कितनी रूष्ट होती होगी इसकी कल्पना करते ही सिंहरन होती है। यही पाप है। पाप व पुण्य की इतनी ही परिभाषा है। 
1. जो कार्य सांसारिक कामनाओं से अपने स्वार्थों की सिद्धी के लिए दूसरे जीवों को कष्ट प्रदान कर किया जाता है उसे पाप कहते हैं। यही नर्क(आवागमन रूपी चक्र है) यही बंधन हैं।
2. जो कार्य संसार के समस्त जीवों के कल्याण हेतु किए जाते हैं। जिसमें  अपना स्वंय का हित साधन न हो वरन संसार का निस्काम(कामनारहित) सेवा हेतु शुभ विचार हो। जिसमें नाम, धन, पद, प्रतिष्ठा प्राप्ति हेतु अपना कोई स्वार्थ न हो- यही पुण्य, यही स्वर्ग और मोक्ष है। 
दुर्गा सप्तशती का यह रहस्य परम गोपनीय है इसको श्रद्धालु परमार्थी  भक्त ही समझ सकता है। कामनाओं व वासनाओं से सरोवर संसार में अत्यंत आशक्त व्यक्तियों की समझ से परे हैं। यही भगवान शिव द्वारा दुर्गा सप्तशती का कीलक किया जाना है- अर्थात भोगी के लिए कीलक श्रद्धालु भक्त कामनाओं से रहित योगी के लिए निष्कीलन है। 
प्रधान प्रकृति त्रिगुणमयी (तमोगुण, रजोगुण, सतोगुण) परमेश्वरी महालक्ष्मी ही सबकी आदिकारण है वे ही दृष्य व अदृष्य रूप से संसार को व्याप्त करके स्थित हैं। उन्होंने ही शून्य (कुछ भी नहीं) जगत को अपनी अपनी तेजोराशि ऊर्जा से संपन्न किया है। परमेश्वरी महालक्ष्मी ने जगत को शून्य देखकर अपनी तमोगुण शक्ति से एक नारी को प्रकट किया। जिनकी कान्ति काले काजल, के समान श्यामवर्ण की थी। उनकी चार भुजायंे ढाल, तलवार, प्याले और कटे हुए मस्तक से सुभोभित थी। वह वक्षस्थल पर धड़ तथा मस्तक पर मुण्डों की माला धारण किये हुए थी। इस प्रकार प्रगट हुई तामसी देवी ने महालक्ष्मी से कहा माताजी  आपको नमस्कार। मुझे मेरे नाम व कर्म बताइये। महालक्ष्मी ने कहा तुम्हारे नाम होंगे महामाया, महाकाली, महामारी क्षुधा, तृषा, मिश्रा, तृष्णा, एकवीरा, कालरात्रि तथा दुरत्यय ये तुम्हारे नाम होंगे। 
तदन्तर महालक्ष्मी ने अत्यंत शुद्ध सतोगुण द्वारा दूसरा रूप धारण किया।  जो चंद्रमा के समान गौरवर्ण का था वह नारी अपने हाथों में अक्षमाला अंकुशवीणा और पुस्तक धारण किये हुए थी। महालक्ष्मी ने उन्हे भी नाम दिए महाविद्या, महावाणी, भारती, वाक, सरस्वती, आर्या बा्रहमी, कामधेनू, वेदगमी, बुद्धि की स्वामिनी- ये तुम्हारे नाम होंगे। तदन्तर महालक्ष्मी ने महाकाली और महासरस्वती से कहा देवियो तुम दोनों अपने-अपने गुणों के योग्य स्त्री- पुरूष के जोड़े उत्पन्न करो। ऐसा कहकर महालक्ष्मी ने सर्वप्रथम स्त्री- पुरूष का जोड़ा अपने शरीर से उत्पन्न किया वे दोनों निर्मल ज्ञान से संपन्न थे। महालक्ष्मी ने पुरूष को ब्रहमा धाता विधे  विरिच नाम से संबोधित  किया तथा स्त्री को श्री पद्मा-कमला-लक्ष्मी नाम से पुकारा। इसके बाद महाकाली ने एक स्त्री-पुरूष का जोड़ा उत्पन्न किया। महाकाली ने कण्ठ में नील चिन्ह से युक्त लाल भुजा श्वेत  स्थाणु, कपर्दी और त्रिलोचन के नाम से प्रसिद्ध हुआ तथा स़्त्री  के त्रयी- विद्या- कामधेनु- भाषा- अक्षरा और स्वरा नाम हुए । 
महासरस्वती ने गोरे रंग की स्त्री और श्याम रंग के पुरूष को प्रगट किया- उनसे पुरूष के नाम विष्णु-कृष्ण, हर्षाकेश,-वासुदेव और जर्नादन हुए तथा स्त्री के नाम उमा-गौरी- सती- चण्डी-सुन्दरी सुभगा और शिवा- इन नामों से प्रसिद्ध हुयी। महालक्ष्मी से सर्वप्रथम उत्पन्न महालक्ष्मी- महाकाली- महासरस्वती ने जोड़ा उत्पन्न कर तत्काल पुरूष में परिणित हो गयी। 
उसी पुरूष को ज्ञानीजन, परब्रहम परमात्मा श्रीकृष्ण  एवं श्री गणेश जी भी कहते हैं। अज्ञानी जनों की बुद्धि इस रहस्य को समझने में असमर्थ है।
तदन्तर महालक्ष्मी ने उत्पन्न हुए स्त्री-पुरूष के जोड़ों में से 1. सरस्वती जी को ब्रहमा जी के लिए पत्नी के रूप में समर्पित किया। 2. वरदायिनी गौरी(पार्वती) भगवान शिव  को पत्नी के रूप में दी। 3. भगवान विष्णु(वासुदेव) को लक्ष्मी पत्नी रूप में प्रदान की।
दुर्गतिहारिणी( संसार का हरण करने वाली) दुर्गा की नौ मूर्तियां हैं।  वे सिंह की पीठ पर सवार विराजमान है चारभुजाओं में शंख-चक्र-धनुष-वाण धारण करती है। वे भगवती( भग-छह एश्वर्यों से युक्त) है। संसार में आवागमन(जन्म-मृत्यु) रूपी दुर्गति को दूर करने वाली हैं। उनकी नौ मूर्तियों के नाम हैं।    
1. शैलपुत्री 2. ब्रहमचारिणी 3. चंद्रघंटेति 4. कुष्मांडा 5. स्कन्दमाता(स्वामी कार्तिकेय की माता) 6. कात्यायिनी(षष्टी देवी नवजात शिशुओं की रक्षा करने वाली)7. कालरात्रि( प्रलय के समय-यमराज(मृत्यु) का भी संहार करने वाली 8. महागौरी 9. सिद्धिदात्री।
2.  नौ शक्तियां हैं-  1. बा्रहमी देवी(सवारी हंस) 2. माहेश्वरी (वाहन बृषभ)3. कौमारी (वाहन मयूर)4. वैष्णवी(वाहन गरूड़)5. वाराही (वाहन भैंसा) 6. नारसिंही (वाहन सिंह) 7. एैन्द्वी( वाहन ऐरावत हाथी)8.  शिवदूती(वाहन वृषभ) 9. चामुण्ड (प्रेत पर सवारी करने वाली)                                            
चण्डिका देवी की मूर्तियां :
1. नंदा देवी( उत्तराखंड की कुलदेवी जिनकी पूजा राजजात के रूप में होती है) ये त्रिपुर सुंदरी(तीनों पुरों पृथ्वी, पाताल व स्वर्ग लोक में सबसे सुंदर ) कांतिवाली है। इनके वस्त्र और आभुषण स्वर्गमय है- चार भुजाओं में कमल, अंकुश, पाश, और शंख में सुशोभित है। नंदादेवी को ही श्री इन्दिरा, कमला, लक्ष्मी, और रक्ताम्बुज आसन सवुर्ण के आसन पर विराजमान होती है। 
2. भ्रामरी देवी- भ्रमर के समान अनेक रंगों की तेजोमंडल के कारण तुर्घर्ष है इन्होंने बैजनाथ् मं अरूण दैत्य  का वध भ्रमरों के रूप में किया था। अरूण दैत्य की राजधानी गरूड़ नाम से प्रसिद्ध थी। इन्हें ही रण चण्डिका(कोटामायी) कहा जाता है। 
3. शाकम्भरी देवी- कान्ति नीलकमल के समान है नील कमल का आसन धारण करने वाली हाथों में वाणों की भरी मुष्टि कमल शाक समूह, प्रकाशमान धनुष- शाक समूह, फल-फूलों, अन्न के रसों से भरी है। शाकम्भरी को श्रीशताक्षी और दुर्गा भी कहते हैं। 
4. रक्तदन्तिका- का आकार विशाल ब्रहमांड के समान है। चार हाथों में खड़ग, पानपात्र, मूसल, हल धारण करती है। इन्हे रक्त चामुण्डा और योगेश्वरी भी कहते हैं। 
5.  भीमादेवी- का रूप अत्यंत भयंकर है इन्होंने हिमालय में भीम दैत्य का वध किया था ये हाथों में खड्ग, डमरू, मस्तक , पानपात्र धारण करती है। इन्हे कालरात्रि या कामदा भी कहते हैं। 
ध्यान देवें, महालक्ष्मी के तीन रूप हैं- 1. महालक्ष्मी 2. महाकाली 3. महासरस्वती 
1. महालक्ष्मी- भगवान विष्णु की दुस्तर माया है योगनिद्रा है। समस्त देवताओं के तेज  से इनका प्रादुर्भाव हुआ है इन्होंने ही महिषासुर (अंहकार का प्रतीक) का वध किया। अपनी कान्ति से प्रभावित कमल के आसन पर विराजमान अठारह भुजाओं वाली सर्वदेवमयी और सबकी ईश्वरी है। 
2. महाकाली- भी महालक्ष्मी का ही एक रूप (लीला करने हेतु) है। मधु (अज्ञान-अंधकार) कैटभ (कोहरा, महानमोह) का वध करने वाली महाकाली( नंदादेवी) है। यद्यपि उनका भंयकर रूप है। परंतु भक्तों के लिए उनका रूप अत्यंत कमनीय है महती संपदा(आत्माान व मोक्ष) प्रदान करने वाली- ये दस भुजाओं से संपन्न हैं। 
3. महासरस्वती- महालक्ष्मी का ही एक स्वरूप है। जो एकसमान सतोगुण के आश्रित हो पार्वती से शरीर के आधेभाग(गौरवर्ण) से प्रगट हुयी जिन्हे कौशिकी भी कहते हैं। इन्होंने शुम्भ- निशुंभ (कामना-वासना रूपी प्रतीक) का वध किया। ये साक्षात सरस्वती कही गई। ये आठ भुजाओं से संपन्न हैं। 
श्री पार्वती के आधे शरीर(कृष्णवर्ण) से चामुण्डा उत्पन्न हुयी। इन्होंने चण्ड-मुण्ड (क्रोध मोह रूपी) एवं रक्तबीज(लोभ व संसार की आसक्ति दोष का प्रतीक) आदि असुरों का वध किया। देवी सर्वरूपमयी है तथा संपूर्ण जगत देवीमय है। अतः मै उन विश्वरूपा परमेश्वरी को नमस्कार करता हूं।
-हेम चंद्र उपाध्याय, दुर्गा मंदिर बाजपुर
-हेम चंद्र उपाध्याय, दुर्गा मंदिर बाजपुर (संकलन- श्रीदेवीभागवत व श्रीदुर्गा सप्तशती)

अंक 6 : प्रकृति भी कर रही नव वर्षाभिनंदन…

हर्षित नव मधुमास मनोरम
स्वागत है दोउ जोरि करों से,
नवल वर्ष की प्रथम रश्मि का,
अभिनन्दन शुभ शंख स्वरों से !
 
सज-धज कर नव वत्सर प्रकटे,
ज्यों सवार अरुणिम घोटक पर,
मधुर प्रफुल्लित, प्राची दिशि से,
सुस्वागत करते  हैं दिनकर  !
वन-उपवन-वाटिका पल्लवित,
 
उलसित, कर में पुष्प थार ले,
ठाड़ी अतुल अलंकृत धरणी, 
परम प्रतीक्षित मृदु दुलार ले  !
ज्यों चूमे जननी प्रिय सुत को,
निज कोमल मधुमय अधरों से,
नवल वर्ष की प्रथम रश्मि का,
अभिनन्दन शुभ शंख स्वरों से !!
 
निरखि प्रकृति की छटा अलौकिक, 
जैसे कोष धनाधिप खोले ,   
चहु दिशि सुन्दर शगुन स्वरों में,
वनप्रिय मधुरिम गायन बोले !
सुमधुर पूजन मन्त्र आरती,  
वेद ऋचाएं ‘हरि-गृह’ गूंजें ,
नाना प्रचलित पृथक-पृथक विधि,
निज-निज आराध्यों को पूजें !
सकल धरा अब भई मनोहर,
मानो गुंजित ‘गण-भ्रमरों’ से।
नवल वर्ष की प्रथम रश्मि का,
अभिनन्दन शुभ शंख स्वरों से !!
 
– नवीन जोशी ‘नवल’ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा- वि.सं. २०७६, 
 

अंक 5 : उत्तरांचल में चैत्र माह में बहन-बेटियों से उनके ससुराल जाकर स्नेह-भेंट करने की विलक्षण प्राचीन परंपरा “भिटौली” पर…

 
दिखेँ कहीं राह में पिता या भाई आते ,
कातर दृग एकटक अनंत तक ताकते   
भिटौली क्यों नहीं आई मेरे उस घर से ?
सब ठीक तो हैं ! हृदय हांफता इस डर से 
दूर आता दिखे कोई थैला सा हाथ लिए 
आँखों में जलने लगे शीघ्र स्नेह  के दिये
फिर नर्वस विवस! अरे यह तो है कोई और,
विचलित अंतर्तम में नहीं सुख के लिए ठौर !
  
क्यों विचलित, क्यों वह इतनी आहत है?
क्या मां-पिता, भाई से कुछ उसे चाहत है ?
नहीं!  उसे  तो एक अदृश्य दुलार चाहिए 
जन्म से हैं अपने जो उनका प्यार चाहिए
मेरा परिवार मेरा है, ऐसा विश्वास खोजती,
मेरे पीछे सहारा है, एक अहसास खोजती  !
यह चाहत नहीं एक भावना, एक आस है ,
मैं विस्मृत नहीं हूँ, एक अटूट विश्वास है ! 
 
विकास का युग है, स्वयं को परखना होगा, 
पावन परम्पराओं को जीवित भी रखना होगा
महकती चहकती रही वर्षों जिस आंगन में  
दिवाली, होली, फूलदेई व राखी वाले सावन में  
जहाँ वह उछलती कूदती करती रही ठिठौली
व्यथित होना ही है न जाए वहां से भिटौली !!
 
– नवीन जोशी ‘नवल’, 4 अप्रैल 2019

अंक 5 : महामाया जगदम्बा की स्तुति ‘दुर्गा सप्तशती’ में जानें ‘कीलक  स्तोत्र’ का महत्व 

माता भद्रकाली के मंदिर में माता सरस्वती, लक्ष्मी और महाकाली की तीन प्राकृतिक स्वयंभू पिंडियाँ

महामाया जगदम्बा की स्तुति के ‘दुर्गा सप्तशती पाठ मात्र से साधक के सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं। उसे दुर्लभ वस्तुओं की प्राप्ति हो जाती है तथा वह कल्याण का भागी होकर सिद्ध हो जाता है। उसको मंत्र व औषधि की भी आवश्यकता नहीं पड़ती। उसके समस्त उच्चाटन व अभिचारिक कर्म सिद्ध हो जाते हैं। अत: यह आवश्यक है कि महामाया के साधक को परम परमार्थिक होना चाहिए। जिससे वह ‘दुर्गा सप्तशती’ में, जो माता की अपार शक्ति भरी हुई है, के पाठ मात्र से ही समाज व दु:खी लोगों का भला कर सकें। परंतु कुछ साधक (मार्गभ्रष्ट होकर) धन के लोभवश तथा संसार की झूठी मान प्रतिष्ठा के फेरे में पड़कर ‘दुर्गा सप्तशती’ का दुरुपयोग अपनी साधना के द्वारा समाज के लोगों को अभिचारिक मत्रों द्वारा नुकसान पहुंचाने लगे। अतः श्री भगवान शंकर ने श्रीचंडिका के सप्तशती नामक स्तोत्र को कीलक (अर्थात गुप्त) कर दिया कि दुष्ट विचारधाराओं वाले सांसारिक लोगों को  ‘दुर्गा सप्तशती’ की साधना में सफलता न प्राप्त हो सके जिससे वह समाज का अहित न कर सकें। 

भगवान शिव ने निष्कीलन की विधि भी अपने सानी व आसक्तिहीन भक्तों को समझायी है कि नि:ष्काम भावना रखते हुए समग्र अर्पण (भेंट) महामाया कों कर दें। ध्यान देंवे हम भेंट वह कर सकते हैं जो हमारी स्वंय की वस्तु हो। परंतु यह शरीर व इंद्रिया पंचभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश) से निर्मित हुआ है। यह शरीर भी महामाया ने हमे धरोहर के रुप में दिया है। इसमें हमारा स्वत: अधिकार नही है। हमारा अधिकार हमारी अपनी वस्तुओं केवल (मन) है। मन न तो पंचभूतों से निर्मित हुआ है न ही इसमें कोई चेतन शक्ति है। यह अंधकार के समान (अज्ञान) है। अंधकार को कोई अपना अस्तित्व नहीं होता। प्रकाश (ज्ञान) का न होना ही अंधकार है। अतः अपने अंदर के समस्त संकल्पों को (काम, क्रोध, मोह, मद, मात्सय, ईश्र्या, दोष) जो अज्ञान की उपस्थिति में ही हमारे (मन) द्वारा प्रकट हो जाता है। मन हमारे विपरित दिशा में गति करता है। अर्थात शुभ से अशुभ, देवता से शैतान, सुख से दु:ख, लाभ से हानि में स्थित कर देता है। हमेशा चलायमान रहता है। अत: अब गंभीर समस्या यह है कि मन को महामाया के चरणों में कैसे अर्पण करें। इसका उत्तर श्री महादेव शंकर ने बताया कि संसार व जीवन की प्रत्येक परिस्थिति में सर्वत्र एक महामाया को विराजमान अनुभव करें क्योंकि 84 लाख योनियों में इनकी चेतन शक्ति (ऊर्जा) एक ही है। और उनकी यह समष्टि प्रकृति (जो उनकी अपनी ही छाया-माया है) उन्ही की धरोहर समझकर उन्ही को अर्पण कर दें। तथा एकाग्र चित्त से प्रार्थना करें माता आज से यह न्याय द्वारा कमाया हुआ धन, सपंत्ति तथा अपने आप (अंहकार) को भी मैने आपकी सेवा में अर्पित कर दिया। अब इस पर मेरा कोई स्वत्व नही रहा। फिर अपने ह्दय गुहा में विराजमान भगवती चण्डिका का ध्यान करते हुए यह भावना करें मानो जगदम्बा कह रही हैं मेरे भक्त बेटा संसार यात्रा (पारवध के नाश होने तक) के निर्वाहार्थ तू मेरा यह प्रसाद रुपी धनग्रहण कर मैं तेरी व्यवस्था स्ंवय करुंगी (योग क्षेमं वहाम्यह्म) इस प्रकार देवी क आज्ञा शिरोधार्य कर उस धन को प्रसाद बुद्वि से ग्रहण करें। धर्म शास्त्रों में जो न्याय मार्ग बताए गए हैं। उस मार्ग से धन का सत्य, व्यवहार से व्यय करते हुए सदा देवी के अधीन होकर रहें। देवी की कृपा स्वयमेंव हो जाती है। 

ध्यान देंवे संसार एक एश्वर्य, भोग, सुख व मान-प्रतिष्ठा प्राप्ति हेतु निष्कीलन कदापि नहीं हो सकता। श्रीमहामाया की इच्छा-लीला को सर्वोपरि मानते हुए समाज में दु:खी लोग के कष्ट निवारण हेतु नि:ष्काम भावना से अगर ‘दुर्गा सप्तशती’  का पाठ किया जाय तो श्रीघ्र शुभ फलों की प्राप्ति महामाया करवा देती हैं। मूल मंत्र हैं- ऊं ऐं ह्री क्लीं चाण्मुडाये विच्छै इसका अर्थ हे चित्तस्वरुपणी (आत्मरुपणी) महासरस्वती हे सदरुपणी (स्वंय अपने ही प्रकाश में प्रकाशित), महालक्ष्मी, हे आनंदरुपणी (अपने स्वरुप का ज्ञान द्वारा अनुभव करवाकर आनंद प्रसाद करने वाली) महाकाली जी ब्रह्म विद्या (ब्रहम ज्ञानी) ब्रह्म ज्ञान पाने के लिए हम सब समय तुम्हारा ध्यान करते हैं। हे महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती स्वरुपिणी चण्डिके तुम्हे नमस्कार है। मेरे अज्ञान रुपी रस्सी की दृढ़ गांठ को खोलकर मुझे जो मेरे द्वारा ही बांधे हुए आसक्तिरुपी सांसारिक भ्रम-माया के बंधन हैं उन्हे मुक्त करो।

संकलन-  ‘दुर्गा सप्तशती’  के पाठ से- हेम चंद्र उपाध्याय, दुर्गा मंदिर(शास्त्री मंदिर) बाजपुर, ऊधमसिंहनगर मो. 9410465975

अंक 4 : जानें उत्तराखंड के कुलदेवता-गोलूदेवता (श्रीगोलज्यू) व राजा विक्रमादित्य के बारे में…

उत्तराखंड के कुलदेवता गोलू देवता(श्री गोलज्यूू) एवं उज्जैन नरेश राजा भृतृहरि के अनुज राजा विक्रमादित्य (जिनके नाम पर विक्रमी संवत चल रहा है) चेतन शक्तियां, अवतारी पुरुष हैं, ये सिद्ध महापुरुष हैं। चेतन शक्तियां उन्हें कहा जाता है जो एक ही एक काल में अनेक स्थानों पर आवाह्न किए जाने पर अवतरित हो सकते हैं। इस प्रकार सिद्ध पुरूष, अपनी इच्छानुसार शरीर धारण कर लेते हैं क्योकिं वे अमृततत्व को प्राप्त आत्मा है। अग्नि की तरह परमाणु-परमाणु में विराजमान हैं। 

वैसे तो 84 लाख योनियों के जीव सब महामाया जगदम्बा की कृपा से उनकी चेतनशक्ति द्वारा ही उत्पन्न हुए हैं, परंतु अज्ञान भ्रम के कारण अपने स्वरुप (अमृततत्व) का बोध न होने से वे संसारी जीव कहलाते हैं। 

श्री गोलज्यू एवं राजा विक्रमादित्य भगवान शिव के ग्यारह अवतार (रुद्र-भैरव) में आठवे भैरव के रुप में अवतरित हुए थे। ये दोनो देवता स्वरुप हैं। इन्होंने जीवन भर अन्याय, अधर्म, अराजकता के विरोध में संघर्ष किया और अभी भी सतत न्याय दिलवा रहे हैं। अज्ञान भ्रम का नाश कर रहे हैं। प्रत्येक मनुष्य को उनके स्वरुप (अमृततत्व) का निरंतर बोध प्रदान कर रहे हैं। श्री गोलज्यू का वंश कत्यूरी है। धूमाकोट मंडल (चंपावत) का शासन श्री गोलज्यू के न्यायानुकूल हाथों में था। इनकी वंशावली में राजा तलराई (परदादा), राजा हलराई (दादा जी) एवं राजा झालूराई (पिताश्री) थे। श्री गोलूदेवता आठवें भैरव के अंशावतार हैं। 

श्री बृजेंद्र लाल साह जिनका निवास देवीभजन लाला बाजार अल्मोड़ा में हैं। उन्होंने अति सुंदर गोलू त्रिचालीसा की रचना की है। उसी में से उद्धृत श्री गोलू आरती मानव जीवन का कल्याण करने वाली है। प्रस्तुत है गोलू देवता आरती –

ऊं जयश्री गोलू देवा स्वामी जय गोलू देवा

शरणागत हम स्वामी स्वीकारो सेवा

वंश कत्यूरी तुम्हारो, धूमाकोट वासी, स्वामी धूमाकोट वासी

जय-जय हे करुणाकर, जय-जय सुखरासी

हलराई के पोते, पिता झालूराई

तपस्विनी कालिंका माता कहलाई 

ऊं जय श्रीगोलू देवा

नाम अनेक तुम्हारे ग्वैल, गोलू, गोरिल स्वामी 

गौर भैरव दुधाधारी  बालगौरिया न्यायिल

परजा पालकरक्षक, तुम हो दु:ख हरता

पोषक दीन दयाला, तुम त्राता भरता

पंचदेव के भांजे, भैरव अवतारी

श्वेत अश्व आरु ढ़ी, जयति धनुरधारी

भेंट चढ़े ध्वज घंटी, मिष्ठान अरु मेवा

द्वारा खड़े हम तुम्हरे, स्वीकारो सेवा

शरणागत आरत की पीर हरो देवा

विनवे दास बृजेन्दर साह करे सेवा


संकलन- हेम चंद्र उपाध्याय दुर्गा मंदिर(शास्त्री मंदिर) बाजपुर , ऊधमसिंहनगर 

अंक 3 : अल्मोड़ा (उत्तराखंड) की चेतन शक्तियां  श्रीत्रिपुर सुंदरी, श्री बाला व भोलानाथ (शिव)

अल्मोड़ा के पलटन बाजार में स्थापित बटुक भैरब भोलानाथ जी के मंदिर का गर्भगृह

 

 

जगदंबा माता की दस महाशक्तियां (महाविद्या) हैं : 1. श्रीकाली 2. श्रीतारा 3. श्रीछिन्नमस्ता 4. श्रीषोडस्ती 5. श्रीभुवनेश्वरी 6. त्रिपुर भैरवी 7. श्रीघूमावती 8. श्रीबगुलामुखी 9. श्रीमातंगी माता 10. श्रीकमला माता

माता श्री त्रिपुर सुंदरी

 

 

ये महाविद्यायें (महाशक्तियां) ब्रहमांड की दसों दिशाओं की रक्षा करती हैं। पंद्रहवी व सोलहवीं सताब्दी के मध्य अल्मोड़ा के राजाओं को अकाल व गोरखों के आक्रमण से त्रस्त होना पड़ा था। उस समय वर्मा राज्य (वर्तमान त्रिपुरा प्रदेश) से कुछ संतों की टोली कैलास मानसरोवर यात्रा के दौरान अल्मोड़ा के राजा के वहां आतिथ्य रुप में ठहरी थी। राजा ने उनसे अपना कष्ट निवेदन किया। संतो में एक सिद्ध संत भी थे वे त्रिपुर भैरवी के उपासक थे। वे गृहस्थ भी थे, उनकी पत्नी व पुत्र उनके साथ थे। पत्नी भी श्री त्रिपुर भैरवी भी परम उपासक थी। उन्होंने राजा के कष्ट निवारण हेतु माता त्रिपुर भैरवी का आवाह्न किया, तथा अल्मोड़ा में श्रीत्रिपुर सुंदरी माता का मंदिर निर्माण करवाया। माता की उपासना से कुछ काल के उपरांत राजा के राज्य का कष्ट निवारण हो गया। अत: राजा ने त्रिपुरा (वर्मा) के उन सिद्ध संत का राज्योचित सम्मान किया। इससे राजा के पुरोहित को ईष्या हुई। उसने षड़यंत्र रचकर उन संत की पुत्र व पत्नी समेत हत्या करवा दी। इस पर सिद्ध संतों की आत्माओं ने पूरे शहर में विपल्व मचा दिया। राजा ने प्रायश्चित किया। डोब गांव के एक सिद्ध ब्राहमण थे। उन्होंने राजा से अनुष्ठान करवाया। अपने मंत्र बलों से उन्हें शांत करवाया। उन्होंने उन सिद्ध महात्मा को श्री शिव भोलानाथ, उनकी पत्नी को बर्मी माता तथा उनके पुत्र को श्री बाला भगवान के रुप में स्थान प्रदान किया। आज भी अल्मोड़ा शहर की कन्या का विवाह होता है तो कन्या की रक्षा हेतु उनकी डोली के साथ ये देवता उसके ससुराल में अपनी पूजा व सम्मान हेतु स्थान पाते हैं। अत: ध्यान देवें ये देवता चेतन हैं। ये मृतक आत्मा (भूत देवता) नहीं हैं। हालाँकि अल्मोड़ा क्षेत्र की जनता के आराध्यदेव भोलानाथ को चंद राजवंश के राजकुमार के रूप में भी कथा क्षेत्र में कही जाती है।  उल्लेखनीय है कि श्री त्रिपुर सुंदरी माता का मंदिर त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से 56 किमी दूर उदयपुर (मातावरी) स्थान में है।  मुंडमाला, तंत्रोंत्र महाविद्यास्त्रोत्र में श्रीत्रिपुर सुंदरी की स्तुति है-

त्रिपुरी सुंदरी बाला अबला गण भूषिताम्
शिवदूती शिवाअराध्या शिवध्येया सनातनिम्
सुंदरी तारणी सर्व शिवगण विभूषितम्
नारायणी विष्णुपूज्या ब्रह्म विष्णु हर प्रियाम्
सर्व सिद्धी प्रदा नित्या अनित्या गुण वर्जिताम्
सगुण निर्गुणा घ्येया अर्चिता सर्व सिद्धिकाम
 
(संकलन- हेम चंद्र उपाध्याय, दुर्गा मंदिर (शास्त्री मंदिर) बाजपुर, ऊधमसिंहनगर )

अंक-2 : गांवों से पलायन की पीड़ा पर दिल्ली से अल्मोड़ा मूल के नवीन जोशी ‘नवल’ की अभिव्यक्ति : “मैं तेरा घर-आंगन”

नवीन जोशी “नवल”

बनकर मूक-तपस्वी रहता आस संजोये मन ही मन 
सूना-सूना बाट जोहता वर्षों – “मैं तेरा घर-आंगन”

भरे नेत्रजल राह ताकता, दे प्रियवर अब मुझको तोषिक,
करले मुझको याद कभी तो, मैं तेरा तू मेरा पोषित।
कहाँ गया उल्लास मोद, कहाँ गयी वह अमित प्रीत है,
कहाँ गयीं होली-दीवाली, कहाँ गये वे नवल गीत हैं।
तीज-बसंत विविध अवसर पर, क्यों छोड़ा है मेरा दामन?
सूना-सूना बाट जोहता वर्षों – “मैं तेरा घर-आंगन” ।१।

कितने सावन, कितने फागुन, मैंने देख लिये भर लोचन,
विस्मित कातर भीत बना अब, जो आँगन था नंदन कानन ।
पर छोड़ी ना आस आज लौ, फिर बहुरेगा उपवन मेरा,
उल्लसित किलकित गुंजित होकर, सुरभित हो हर कोना मेरा ।
नव-बसंत, अगणित पतझड़ औ, झेली हैं ऋतुएँ मनभावन,
सूना-सूना बाट जोहता वर्षों – “मैं तेरा घर-आंगन” ।२।

किस सुख की चाहत में मुझको छोड़ा तूने आज बता दे,
क्या खोया-क्या पाया अब लौ, सारी गठरी आज दिखा दे ।
था वैभव गोदी में मेरी, कितना उसको और बढाया ?
संरक्षण की बात नहीं है, संवर्धन कितना कर पाया ?
किंचिद् उस निधि में से मेरी जीर्ण देह तो कर दे पावन,
सूना-सूना बाट जोहता वर्षों -“मैं तेरा घर-आंगन” ।३।

चिर प्रतिक्षित मैं उपेक्षित, जर्जर, दुर्बल, मौन, हताहत,
शिथिल ह्रदय मैं खड़ा आज ले, अपनों से मिलने की चाहत ।
कालकूट सी मेघ गर्जना, भरी दुपहरी, रात घनेरी,
पर विश्वास न छोड़ा अब तक, आयेगी फिर संतति मेरी।
पुन: खिलेंगे पुष्‍प गोद में, फिर आयेगा नूतन सावन,
सूना-सूना बाट जोहता वर्षों – “मैं तेरा घर-आंगन” ।४।

श्री जोशी का पत्र : 

महोदय,

नमस्कार, अत्यंत हर्ष का विषय है कि आपने “आपका कोना” नाम से पाठकों के लिए स्तंभ बनाया है, जो निश्चित ही साहित्य को प्रोत्साहन देने में महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान करेगा।
मैं नवीन जोशी “नवल” मूलतः अल्मोड़ा जिले से हूं, वर्तमान में दिल्ली में निवास है। मैं अपनी स्वरचित कविता प्रकाशन हेतु भेज रहा हूं, यदि संभव हो तो प्रकाशित करने की कृपा करेंगे।

                  – नवीन जोशी “नवल”, ,मूलतः अल्मोड़ा से, वर्तमान में दिल्ली में निवासरत (10 फ़रवरी 2019)

अंक-1, दिल्ली बटी लोक कलाकार जगदीश तिवारी ज्यूकि द्वि कुमाउनी कविता 

1- सड़का तू आई लकी आब आई

सड़का तू आई लकी आब आई
सड़का तू आई लकी आब आई

गौं-बाखई खाली हैगे,
चौथरमॅ बुकिल भौगाव जामिगे
पख दन्यारिम बाघ भै रौ
मलस्यारि बानर, तलस्यारी सूअरा बोई रौ
भितेर टुटि ग्वोठ ऐगो
ग्वठ बयै रै बिराई
सड़का तू आई लकी आब आई
सड़का तू आई लकी आब आई

32 झड़ियॉ कुठुम्ब ओ ईजा
राति शंखक टुटाट, दिन भरी चडमडाट
परबेर गोबिन्दुकरॉक बुड़बाड़ीलै
य तलि है न्है गयीं
हिन्दी में, जानि द्या मिहै कै गयी, हमर द्वार म्वार लै चहै दिये, ताई
सड़का तू आई लकी आब आई
सड़का तू आई लकी आब आई

खेती पाति बड-ख्वड़
तलि-तलि, मलि-मलि
सारी व्वड़ सारिय रै गो
गोरू बछा टान पन
टान टान रै गो
टपकनै टपकनै आखों मजा ऑस लै सुखि गो
बिजुली त छ, बडम, जगहै आब काकै बुलाई
आई लै म्यर नान-तिन एैल, आस सबुल लगै रै, मैल लै लगाई
सड़का तू आई लकी आब आई
सड़का तू आई लकी आब आई

2- नक झन माानिया ईजा, पहाडी छूं पहाड़ी बुलानू

नक झन माानिया ईजा, पहाडी छूं पहाड़ी बुलानू

आफूं कतुकै हिन्दी में बड़बड़ाट पाड़ो, अंग्रेजी में फड़फड़ाट पाड़ो
मिकैं नी लागनी सरम, किलैकि मैं इकैणी माननू आपण धरम करम
आपण भिड़ परि ल्यौण, म्यर उचेणी उचेणी बै खाई छीं
झाल परि हिसाव थ्वप, किलमौड़, काफों, ब्यर
राति पर पॉव पड़ि ताजि, ख्याणा, मिहौव म्यर पचकायी छीं
तुमलै खछा के,
अलघता-परघता नी टावो,
जे नी हल झनप्प हो, में त हर साल एक-द्वी बार, आपण पहाड़ जरूर जानू
नक झन माानिया ईजा, पहाडी छू पहाड़ी बुलानू
नक झन माानिया ईजा, पहाडी छू पहाड़ी बुलानू

ओ ईजा भटक चुड़काणी, गाजड़
गहतक बेडू, डुबुक, मनुवक स्वटमॅ घ्यों पचक
गुनीगुनी ताज्जी छॉ, झोई व छचियै गजैक,कैं
किलै भुलीगोछा,
वू मू-गढेरी साग, आहा पिगौं ककड़ रैत
आज लै पहाड़ जै बेर, पिसी लूणम नीमू राई बेर
पैलियैक जस, मैतै पचकानु
नक झन माानिया ईजा, पहाडी छू पहाड़ी बुलानू
नक झन माानिया ईजा, पहाडी छू पहाड़ी बुलानू

हमर गौं मथै द्यप्ता थान, ठुल बाज्यू रातियै नाई धोई बेर, दुर्गा पाठ, ज्ञान ध्यान
मन्दिरों में ह्यौनों दिनोंक सप्ताह, गमिछिकांे रामलीला
फुल देई फूल, दिवाई ऐपण, उतरैणी गूड़, नाख ठुकुम घ्यांे, कान जडों में जौ
तुमुकै लै याद हुनल,
मैं आजि लै पहाड़ जै बेर, दशहरा द्वार पत्र
आपण हाथोंल आपण द्वारों पै चिपकौनूं
नक झन माानिया ईजा, पहाडी छू पहाड़ी बुलानु
नक झन माानिया ईजा, पहाडी छू पहाड़ी बुलानु

                                              -जगदीश तिवारी, लोक कलाकार, उत्तराखंड, वर्तमान में दिल्ली में निवासरत (9 फरवरी 2019)

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