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March 19, 2024

चीन के दबाव में कालापानी पर नेपाल का दावा भ्रामक और झूठा : कार्की

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हिंदू जागरण मंच के प्रदेश संगठन मंत्री भगवान कार्की।

-हिंदू जागरण मंच के प्रदेश संगठन मंत्री ने कहा विकट परिस्थितियों के बावजूद सीमावर्ती नागरिकों का देशप्रेम का जज्बा अनुकरणीय
-अगले साथ अगस्त 2021 में आदि कैलाश महोत्सव का आयोजन करेगा हिजामं

हिंदू जागरण मंच के प्रदेश संगठन मंत्री भगवान कार्की।

नवीन समाचार, नैनीताल, 18 अक्टूबर 2020। हिंदू जागरण मंच के प्रदेश संगठन मंत्री भगवान कार्की ने एक सप्ताह पूर्व से भारत-नेपाल व चीन सीमा से लगे हुए सीमांत क्षेत्रों की यात्रा पर रविवार को नगर में आयोजित एक बैठक में अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि 1815 में हुई सिगौली की संधि के पश्चात कालापानी क्षेत्र को भारत एवं नेपाल की सीमा के रूप में स्वीकार किया गया था। इसलिए चीन के दबाव में आकर नेपाल द्वारा इस क्षेत्र को अपना बताने का दावा भ्रामक एवं झूठा है।
उन्होंने कहा कि कालापानी एवं लिपुलेख दर्रे भारत के लिए चीनी गतिविधियों पर नजर रखने एवं सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने बताया कि कुछ सीमांत क्षेत्रों में बिजली एवं दूरसंचार की व्यवस्था नहीं है। इस संबंध में वह प्रदेश सरकार से वार्ता कर अति शीघ्र व्यवस्था करवाने का प्रयास करेंगे। उन्होंने कहा कि इतनी विषम एवं विकट परिस्थितियों में भी देशभक्ति की भावनाओं से ओत-प्रोत ग्रामीणों के जज्बे से सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए। यात्रा में उनके साथ आलोक धामी, राजू नेगी, मनोज साही, राजेंद्र बिष्ट एवं दीपक नेगी भी शामिल रहे। उन्होंने कहा कि सीमांत क्षेत्रों में आइटीबीपी के जवानों की कड़ी सुरक्षा व चौकसी में सीमाएं सुरक्षित है। सीमांत क्षेत्रों की जन भावनाओं से जुड़े रहने के उद्देश्य से हिंदू जागरण मंच अगस्त 2021 में आदि कैलाश महोत्सव का आयोजन करेगा। जिसमें मुख्य रूप से आदि कैलाश यात्रा, ओम पर्वत एवं सीमांत क्षेत्रों की यात्रा को प्रारंभ किया जाएगा। बैठक में सचिन मेहता, पान सिंह बिष्ट, नवीन तिवारी, डॉ. केतकी कुमैय्या, भास्कर आर्य, वैभव आर्य, सार्थक गहतोड़ी आदि उपस्थित रहे।

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नवीन समाचार, उत्तरकाशी, 5 सितंबर 2020। लद्दाख में सामरिक तनाव के बीच उत्तरकाशी जिले से लगी भारत-चीन सीमा पर सैन्य हलचल बढ़ गई है। शुक्रवार को भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने यहां गश्त की। सीमा सुरक्षा के लिहाज से बेहद संवेदनशील चिन्यालीसौड हवाई पट्टी के चारों ओर जंगी विमान मंडराये। हालांकि किसी विमान ने टेकऑफ नहीं किया। सैन्य सूत्रों का कहना है कि सेना के आला अधिकारी शनिवार को बेहद संवेदनशील चिन्यालीसौड हवाई पट्टी के दौरे पर पहुंच रहे हैं।
चीन से उत्तराखंड की 345 किलोमीटर सीमा हमेशा से संवदेनशील रही है। इसमें से 122 किलोमीटर उत्तरकाशी जिले में है। सामरिक दृष्टि से संवेदनशील यह सीमाई क्षेत्र जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से करीब 129 किलोमीटर दूर है। विषम भूगोल वाली नेलांग घाटी में सेना और आइटीबीपी के जवान सतर्क हैं। उत्तरकाशी से चीन अधिकृत तिब्बत की करीब 122 किलोमीटर लंबी सीमा जुड़ती है। चमोली से 88 किलोमीटर अंतरराष्ट्रीय सीमा जुड़ी हुई है। चमोली में विगत वर्षों में कई बार भारत-चीन सीमा पर घुसपैठ की खबरें आई हैं। मगर अभी तक उत्तरकाशी से जुड़ी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर किसी प्रकार की घुसपैठ नहीं हुई है। इसका मुख्य कारण सीमा से जुड़ी घाटियों की कठिन विषमताओं को भी माना जाता है। बीते महीने अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुड़ी घाटियों में जिस सेटेलाइट फोन का सिग्नल ट्रेस किया गया था, वह भारत में प्रतिबंधित है।
पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे पर 29-30 अगस्त की दरम्यानी रात और 31 अगस्त की रात चीनी सेना की ओर से घुसपैठ की कोशिश के कारण भारत और चीन के बीच तनातनी जारी है। ब्रिगेडियर स्तर की वार्ता में इसका कोई हल नहीं निकल पाया। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह रूस के तीन दिवसीय दौरे पर हैं। इस दौरे में भारत और रूस ने अत्याधुनिक एके-203 राइफल भारत में बनाने के लिए एक बड़े समझौते को अंतिम रूप दिया है। एके-203 राइफल, एके-47 राइफल का नवीनतम और सर्वाधिक उन्नत प्रारूप है।

यह भी पढ़ें : मोदी की दूसरी डिजिटल सर्जिकल स्ट्राइक : पब्जी सहित 118 एप बैन

नवीन समाचार, नई दिल्ली, 2 सितंबर 2020। भारत-चीन के बीच सीमा पर लंबे समय से चल रहे तनाव के बीच केंद्र सरकार ने बुधवार को एक और अहम फैसला लिया है। सरकार ने चीन पर तीसरी ‘डिजिटल स्ट्राइक’ करते हुए दुनियाभर में लोकप्रिय गेमिंग ऐप PUBG समेत 118 मोबाइल ऐप्स को बैन कर दिया है। इससे पहले भी सरकार कई चीनी कंपनियों की ऐप को बन कर चुकी है। सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने प्रतिबंधित की गईं ऐप्स को देश की सुरक्षा, संप्रभुता, एकता के लिए नुकसानदेह बताया है।
ऐप्स को बैन किए जाने की जानकारी देते हुए आईटी मंत्रालय ने कहा, ‘सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69-ए के तहत इस फैसले को लागू किया है। ये सभी 118 मोबाइल ऐप्स विभिन्न प्रकार के खतरे उत्पन्न कर रही थीं, जिसके चलते इन्हें ब्लॉक किया गया है।’ मंत्रालय ने आगे कहा उपलब्ध जानकारी के मद्देनजर ये ऐप्स ऐसी गतिविधियों में लगे हुए हैं, जो भारत की संप्रभुता और अखंडता, सुरक्षा के लिए नुकसानदायक है।
सरकार ने जिन 118 मोबाइल ऐप्स को बैन किया है, उनमें APUS लॉन्चर प्रो थीम, APUS सिक्योरिटी-एंटीवायरस, APUS टर्बो क्लीनर 2020, शाओमी की शेयर सेव, फेसयू, कट कट, बायडु, कैमकार्ड शामिल हैं। इसके अलावा, वीचैट रीडिंग, पिटू, इन नोट, स्मॉल क्यू ब्रश, साइबर हंटर, लाइफ आफ्टर आदि ऐप्स भी शामिल हैं।
मंत्रालय ने आगे कहा, ‘सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्रालय को विभिन्न स्रोतों से कई शिकायतें प्राप्त हुई हैं, जिनमें चोरी के लिए एंड्रॉइड और आईओएस प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कुछ मोबाइल ऐप के दुरुपयोग और यूजर्स के डेटा का गलत इस्तेमाल शामिल है।’आईटी मंत्रालय ने कहा कि भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र, गृह मंत्रालय ने भी इन ऐप्स को ब्लॉक करने के लिए एक विस्तृत सिफारिश भेजी है। भारत की संप्रभुता के साथ-साथ हमारे नागरिकों की गोपनीयता को नुकसान पहुंचाने वाले ऐप्स के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का फैसला लिया गया है।’

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कहा-प्रधानमंत्री ने भारत ही नहीं, विश्व की ओर से दिया चीन को कड़ा संदेश: ले. जनरल भंडारी
-कहा, प्रधानमंत्री के इस कदम के बाद चीन पर पूरी दुनिया से दबाव बढ़ेगा और सेना के स्तर पर वार्ता का दौर भी शुरू हो जाएगा
नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 3 जुलाई 2020। कारगिल युद्ध में प्रमुख भूमिका निभाने वाले, देश के रक्षा विशेषज्ञ एवं परम विशिष्ट व अति विशिष्ट सेवा मेडल प्राप्त सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल डा. मोहन चंद्र भंडारी ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सेना प्रमुख विपिन रावत के साथ लेह जाने पर बड़ी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि मोदी ने अपने इस कदम से सेना का मनोबल तो आसमान तक कर ही दिया है, साथ ही सबसे बड़ी बात, चीन के लिए ‘विस्तारवादी’ शब्द का प्रयोग कर सामरिक व रणनीतिक संदेश देते हुए पूरे विश्व को बता दिया है कि विस्तारवादी राष्ट्र की नीतियां भारत ही नहीं पूरे विश्व को मंजूर नहीं होंगी। उन्होंने यह भी दर्शाया है कि कुछ मामूली, चीन की तरह की प्रकृति वाले पाकिस्तान सरीखे देशों को छोड़कर पूरा विश्व इस मामले में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के साथ खड़ा है। इस तरह उन्होंने भारत ही नहीं पूरी दुनिया की ओर से चीन को राजनीतिक व सामरिक संदेश दे दिया है कि चीन की विस्तारवादी नीति को भारत कभी स्वीकार नहीं करेगा। गलवान घाटी हमारी है। कोरोना की वजह से भी विश्व आज चीन के खिलाफ और भारत के साथ खड़ा है। कुछ कुछ गलत करेगा तो भारत छोड़ने वाला नहीं हैं।
डा. भंडारी ने बताया कि वे 12 हजाार फिट की ऊंचाई पर नीमू नाम के उस डिविजनल मुख्यालय में रह चुके हैं, जहां आज स्वयं को प्रधान सेवक कहने वाले प्रधानमंत्री स्वयं शारीरिक रूप से पहुंचे हैं। उन्होंने वहां पहुंचकर देश की 130 करोड़ आबादी को सेना केे साथ बताया है। पूरा देश आपके साथ है। आगे उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के लेह पहुंचने के बाद पूरे विश्व का दबाव चीन पर बड़ जाएगा। अमेरिका पहले ही खुले तौर पर चीन के मामले में भारत को पूर्ण समर्थन व्यक्त कर चुका है। इस राजनीतिक संदेश के अलावा दूसरी ओर विदेश मंत्रालय के स्तर पर कूटनीतिक प्रयास भी चल रहे हैं। वहीं तीसरी ओर सबसे महत्वपूर्ण सेना के स्तर पर ‘मिलिट्री डिप्लोमैसी’ भी चल रही है। आज के बाद अगले चार-पांच दिन में भी फिर सेना के स्तर पर बात शुरू हो जाएगी। उन्होंने कहा कि दो जगह हॉट स्प्रिंग मोगरा व गलवान पर दोनों सेनाओं के पीछे हटने पर बात हो चुकी है, जबकि अब पेंगोंग शो पर फिंगर 4 व 8 के बीच के क्षेत्र पर बात अभी फंसी है। उन्होंने कहा कि यह मसला बर्फबारी होने यानी अक्तूबर अंत तक चलता रहेगा। क्योंकि निर्णयों को जमीनी स्तर पर आने पर समय लगता है। आगे यह भी देखने वाली बात होगी कि 1993-1996 में हुए समझौते चलेंगे या नये बनाने पड़ेंगे।

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-कुमाऊं विश्वविद्यालय के रक्षा विशेषज्ञ ने कहा अमेरिका भी चीन को सबक सिखाने का मौका ढूंढ रहा है
चिकित्सकों, पुलिस-पालिका व मीडिया कर्मियों को किया सम्मानित
नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 27 जून 2020। अम्तुल्स पब्लिक स्कूल की ओर से शनिवार को कोरोना की महामारी के संक्रमण काल में तमाम खतरों के बावजूद अपने कार्य में लगे लोगों को ‘कोरोना वॉरियर्स’ के रूप में सम्मानित किया गया। खास बात यह रही कि किसी को विशेष प्रमाण पत्र की जगह नगर के कोतवाली मल्लीताल व थाना तल्लीताल के साथ ही तल्लीताल डांठ व मल्लीताल रिक्शा स्टेंड की पुलिस पोस्ट के समस्त पुलिस कर्मियों, बीडी पांडे जिला चिकित्सालय के समस्त सभी चिकित्सकों, नर्सों एवं चिकित्सा कर्मियों, नगर पालिका के समस्त कर्मचारियांे एवं मीडिया कर्मियों को सम्मानित किया गया। सम्मानित होने वालों में प्रमुख रूप से बीडी पांडे जिला चिकित्सालय के प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक डात्र केएस धामी, वरिष्ठ फिजीशियन डा. एमएस दुग्ताल, मल्लीताल के कोतवाल अशोक कुमार सिंह, तल्लीताल के थाना प्रभारी विजय मेहता, नगर पालिका अध्यक्ष सचिन नेगी प्रमुख रहे। वहीं विद्यालय की ओर से प्रधानाचार्या अनीता खान, मो. जफर, राजेश कुमार सहित व समस्त कर्मी तथा नगर पालिका सभासद गजाला कमाल प्रमुख रूप से मौजूद रहे।
नवीन जोशी, नैनीताल। चीन एवं भारत के बीच इन दिनों चल रही तनातनी दोनों देशों के बीच युद्ध तक नहीं जाएगी। क्योंकि दोनों देश युद्ध नहीं चाहते। वहीं हमेशा से विस्तारवादी नीति पर चलने वाला चीन जो कुछ कर रहा है, वह दुनिया भर में उसके प्रति कोरोना की वजह से फैली नकारात्मकता से ध्यान हटाने के कारण कर रहा है। लेकिन यदि फिर भी भारत एवं चीन के बीच किसी छोटे युद्ध जैसे हालात बनते भी हैं तो इसमें अमेरिका की बड़ी भूमिका होगी। चीन जहां रूस के विघटन के बाद स्वयं को उसके स्थान पर दूसरी महाशक्ति के रूप में प्रतिस्थापित होने की कोशिश कर रहा है, वहीं अमेरिका उसका प्रभाव समाप्त करना चाहता है। वह चीन से आये कोरोना का सबसे बड़ा भुक्तभोगी होने की वजह से भी चीन के खिलाफ कोई कार्रवाई करने का मौका तलाश रहा है। ऐसे में वह कोरोना का प्रकोप शांत होने के बाद अमेरिका ताइवान, हांगकांग को लेकर भी चीन के विरुद्ध अफगानिस्तान, ईरान आदि की तरह छोटी कार्रवाई कर सकता है।
यह बात कुमाऊं विश्वविद्यालय के सीमांत क्षेत्र में स्थित राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय बलुवाकोट में रक्षा एवं स्त्रातजिक अध्ययन में सहायक प्राध्यापक डा. अतुल चंद ने कही है। रक्षा विषयों पर 32 शोध पत्र एवं तीन पुस्तकें प्रकाशित कर चुके राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय बलुवाकोट कार्यकारी प्राचार्य भी रहे डा. चंद ने ‘नवीन समाचार’ से विशेष बातचीत में यह बात कही। उन्होंने कहा कि चीन की सीमा 14 देशों से जुड़ती है, और विस्तारवादी-साम्राज्यवादी मानसिकता वाले चीन की भारत, ताइवान, हांगकांग व जापान सहित कमोबेश सभी देशों से सीमा विवाद है। वह हर ओर अपनी सीमा से आगे दूसरे देशों में बढ़ता रहता है और फिर समझौता होने पर कुछ पीछे आ जाता है, लेकिन इसके बावजूद वह अपनी सीमा से कुछ आगे आ चुका होता हैं। यह उसकी नीति में शामिल है।
उन्होंने फिलहाल आर्थिक कारणों से चीन व भारत के बीच युद्ध की आशंका से इंकार करने के साथ ही कहा कि यदि कोई छोटा युद्ध होता भी है तो चीन हर दृष्टि से भारत के सामने कमजोर साबित होगा। भारत के पास विश्व की सर्वश्रेष्ठ ऊंचाई पर लड़ने वाली सेना है, जबकि चीन की सीमा को वहां लड़ने का कोई अनुभव नहीं है। दूसरे, हथियारों के मोर्चे पर भी भारत के ब्रह्मोस की कोई काट चीन नहीं है। साथ ही भारत ने 1998 में एक किलोवाट से कम क्षमता के परमाणु बम चलाने की खासकर छोटे युद्ध नीति के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण तकनीक भी है, जो विश्व में कुछ ही देशों के पास है। तीसरे, अमेरिका विश्व की 18 फीसद जनसंख्या के स्वामी भारत के एकमुश्त बड़े बाजार एवं हथियारों के बड़े आयातक के रूप में उपयोगी होने के दृष्टिगत, भारत के करीब है। इसलिए वह भारत-चीन के बीच युद्ध की स्थिति में भारत के साथ होगा। इसके अलावा डा. चंद ने बताया कि 1914 से 1933 के नक्शे में पूरा लद्दाख भारत के नक्शों में शामिल था। किंतु माओत्से तुंग के आने के बाद 1957 से चीन ने इस क्षेत्र को अपने क्षेत्र में दिखाना प्रारंभ किया। भारत ने इसका विरोध भी नहीं किया। उन्होंने बताया कि 1959 में लद्दाख में भारत व चीन के बीच पहली भिडं़त हुई थी। जबकि 1962 में चीन ने लद्दाख के क्षेत्र पर अपना कब्जा कर लिया था।

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-प्रसिद्ध इतिहासकार डा. अजय रावत ने कहा पूरी दुनिया के निशाने पर आने तथा अपनी नाराज जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश तथा भारत के है भारत से टकराव

डा. अजय रावत।

नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 23 जून 2020। भारत के प्राचीन इतिहास खासकर उत्तराखंड के सीमावर्ती देशों से ऐतिहासिक संबंधों के जानकार डा. अजय रावत का चीन के साथ बने वर्तमान हालातों पर कहा कि यह कुछ दिन की बात है। चीन भारत के खिलाफ युद्ध की हिम्मत नहीं कर पाएगा। उन्होंने कहा कि चीन की हरकत कोरोना के कारण विश्व भर के देशों के निशाने पर आने और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के अपने देश की जनता में छवि खराब होने के कारण ध्यान भटकाने की कोशिश मात्र है। साथ ही उन्होंने कहा कि चीन के लोग फितरती तौर पर सैनिक नहीं होते। वे लड़ना नहीं चाहते हैं। जबकि भारतीय लोग शक्ति के उपासक होते हैं तथा पुरातन काल से मानते हैं कि देश के लिए लड़कर शहीद होने से देवत्व की प्राप्ति होती है। उत्तराखंड सहित कई राज्यों के लोग स्वभाव से वीर सैनिक हेाते हैं। भारतीय सैनिकों ने 1962 के युद्ध में कपड़े के जूतों जैसी संसाधनविहीन स्थिति में भी 16 से 18 हजार फिट की ऊंचाई पर लड़कर चीन को पटखनी दे दी थी, जबकि आज भारतीय सेना विश्व की सर्वश्रेष्ठ सेना है। वहीं चीन यदि चाहता तो वर्तमान में आये हाथापाई के हालातों में हथियारों से हमला कर चुका होता, किंतु चूंकि उसका सर्वाधिक कारोबार भारत में है। इसलिए वह ऐसा करने की स्थिति में नहीं है। लिहाजा उन्होंने साफ तौर पर कहा कि यदि चीन युद्ध में नहीं जाएगा।
डा. रावत ने कहा कि शी जिनपिंग को चुनाव में हार का भय सता रहा है, इसलिए वे किसी भी अन्य तानाशाह की तरह अपनी जनता का ध्यान भटकाने के लिए भारत के सामने आ रहा है। उन्होंने कहा कि प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध तथा पाकिस्तान द्वारा 1965 व 1971 में भारत के साथ किये गये युद्ध इन्हीें स्थितियों में तत्कालीन तानाशाहों द्वारा ध्यान भटकाने की कोशिशों के तहत किये गये थे। उन्होंने साफ किया कि भारत से टकराव के पीछे भारत के चीन की तरह ही मजबूत होने व सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़क बनाने के कारण चीन में उपजा असुरक्षा का भाव भी है।
उन्होंने कहा कि चीन से आये कोरोना विषाणु के कारण परेशान विश्व के देश चीन से अपने उद्योग हटाने की सोच रहे हैं। यदि ऐसा होगा तो चीन तबाह हो जाएगा। उसके साथ पाकिस्तान व नेपाल भी मुश्किल में आ जाएंगे।

नेपाल का दावा भी बताया आधारहीन
नैनीताल। वहीं नेपाल के भारतीय क्षेत्र लिपूलेख, कालापानी व लिम्पियाधूरा आदि को अपने नक्शे में शामिल करने के दावे पर डा. रावत ने कहा कि नेपाल के दावे का कोई आधार नहीं है। यह क्षेत्र में छठी सदी से भी पहले से भारतीय होने के सबूत हैं। 1962 तक इसी क्षेत्र के लिपुलेख पास से भारत व तिब्बत के बीच व्यापार होता था। जबकि नेपाल 17वीं सदी तक खंड-खंड मंे विभाजित था। सिगौली की संधि में भी यह क्षेत्र भारतीय रहा, जबकि क्षेत्र के भारतीय रं जनजाति के लोगों के टिंकर व एक अन्य गांव नेपाल को दे दिये गये थे। जबकि तब नेपाल खंड-खंड मंे विभाजित था। उन्होंने बताया कि 1815 में अंग्रेजों के आने के साथ हुई सिगौली की संधि में तत्कालीन गढ़वाल को दो हिस्सों-परमार राजवंश की टिहरी रियासत और ब्रिटिश गढ़वाल में बांटा गया और ब्रिटिश गढ़वाल को कुमाऊं कमिश्नरी से जोड़ दिया गया, जिसे तब भारतीय ब्रिटिश कुमाऊं और अंग्रेज कुमाऊं प्रोविंस कहते थे। 1816 में ही कुमाऊं कमिश्नर का पद भी अस्तित्व में आ गया था और इसका मुख्यालय तब अल्मोडा होता था। 1839 में पहली बार ब्रिटिश कुमाऊं में दो जिले-अल्मोड़ा व ब्रिटिश गढ़वाल तथा 1891 में नैनीताल नाम से नया जिला बनाये गये। इसी वर्ष डीएम यानी जिला मजिस्ट्रेट का पद भी सृजित हुआ। इससे पहले सीनियर असिस्टेंट कमिश्नर के पास जिलों की जिम्मेदारी होती थी। इस बीच 1856 के पूर्वार्ध तक कुमाऊं कमिश्नरी का मुख्यालय अल्मोड़ा एवं इसी दौरान नैनीताल लाया गया। उन्होंने कहा कि नेपाल की यह हरकत भी केवल चीन की वजह से और भुखमरी की कगार पर पहुंचे पश्चिमी नेपाल की जनता का ध्यान हटाने की कोशिश मात्र है।

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-रक्षा विशेषज्ञ ने कहा, चीन मानने वाला नहीं, मोदी के सर्वदलीय बैठक में दिये गये बयान के बाद चीन ने साफ किये मंसूबे कि वह मानने वाला नहीं है
-15-16 जून की घटना की सच्चाई चार दिन तक छुपे रहने को बताया चीन की हिम्मत बढ़ाने वाला
नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 20 जून 2020। लद्दाख में भारत और चीन की गद्दारी के बाद लद्दाख से लेकर उत्तराखंड व अरुणांचल की सीमाओं पर दोनों देशों की सेनाओं की सक्रियता के बीच देश के रक्षा विशेषज्ञ एवं परम विशिष्ट व अति विशिष्ट सेवा मेडल प्राप्त सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल डा. मोहन चंद्र भंडारी ने भारत को चाणक्य नीति की याद दिलाई है। कहा है कि भारत के लिए यह समय केवल भावनात्मक बातें करने का नहीं बल्कि डटे रहने और चाणक्य नीति से काम लेने का है।
‘नवीन समाचार’ से विशेष बातचीत में कारगिल युद्ध में प्रमुख भूमिका निभाने वाले उत्तराखंड गौरव सहित अनेक सम्मान प्राप्त लेफ्टिनेंट जनरल डा. भंडारी ने चीन को एक धूर्त देश बताने के साथ ही कहा कि भारत और चीन के संबंध हजारों वर्ष पुराने व ऐतिहासिक हैं। फिर भी धूर्त देश, दूसरे धूर्त देशों के ही करीब रहता है। जबकि भारत चीन का 100 अरब डॉलर से अधिक का व्यापार है, और भारत के पक्ष में व्यापार घाटा काफी अधिक है। डा. भंडारी ने 15-16 जून की घटना के बाद इधर सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वक्तव्य के बाद चीन के पूरी गलवान घाटी को अपना बताने पर टिप्पणी की कि इससे चीन के मंसूबे व अड़ियल रवैया साफ हो गये हैं। चीन मानने वाला नहीं है। उन्होंने कहा कि 16 जून के बाद चार दिन तक सरकारी तंत्र, मीडिया, विदेश व रक्षा मंत्रालय आदि द्वारा सही स्थिति बताने पर साधी गई चुप्पी पर सवाल उठाते हुए इसेे चीन की हिम्मत बढ़ाने वाला बताया। उन्होंने कहा कि 1962 के युद्ध के पश्चात भी और पहले भी गलवान घाटी कभी भी चीन के पास नहीं रही। हालांकि उन्होंने कहा कि दोनों देशों की सेनाओं के लद्दाख से लेकर अरुणांचल तक आमने-सामने आने के साथ सीमा पर तनावपूर्ण हालात महीनों तक भी चल सकता है। लेकिन यह भी सच्चाई है कि दोनों देश युद्ध नहीं चाहते।
उन्होंने कहा कि भारत व चीन की कई अपनी ताकतें और कमजोरियां हैं। चीन की संख्या भले संख्या में अधिक हो, लेकिन उसे वियतनाम के अलावा कहीं लड़ने का अनुभव नहीं है। भारत की सेना 12 से 18-19 हजार फिट की ऊंचाई तक लड़ने की क्षमता वाली विश्व की सर्वश्रेष्ठ व इकलौती सेना है। लेकिन भारत आयात अधिक करता है, निर्यात कम। इसकी भरपाई होनी भी आसान नहीं है। यानी चीनी सामान का बहिस्कार भी सोच समझकर ही किया जाना चाहिए। इस मसले को राजनीतिक, कूटनीतिक व आर्थिक तरीकों से हल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत को चीन के मुकाबले में अर्थशास्त्र, राजनीतिक व कूटनीतिक संबंधों की बात करने वाले चाणक्य की नीति का इस्तेमाल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अभी जो भी सीमा पर हुआ है, उसके पीछे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी व शी जिंगपिंग का पूरा हाथ है।

यह ऐतिहासिक तथ्य और भारतीय भूल हैं विवाद की जड़
उन्होंने कहा कि भारत और चीन के बीच संबंधों में भारत ने काफी गलतियां की हैं। 1950 में चाउ एन लाई ने वार्ता की बात कही थी, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उसे मुंह नहीं लगाया। तब चाओ ने खुद कहा था कि चीन अक्साई चिन का एक हिस्सा लेकर इसके बदले बाराहोती-चमोली व अरुणांचल का हिस्सा छोड़ देगा। तब भारत ने दूरदर्शिता से काम नहीं लिया था। इससे 1962 की लड़ाई भी टाली जा सकती थी। उन्होंने बताया कि चीन भारत का 38 हजार वर्ग किमी का भूभाग अक्साई चिन में, 453 वर्ग किमी बाराहोती में लेकर बैठा है और अरुणांचल में 90 हजार वर्ग किमी क्षेत्रफल पर अपना दावा बताता है। इसके अलावा 5000 वर्ग किमी हिस्सा 1963 में पाकिस्तान ने भारतीय हिस्सा भी चीन को दिया है। उन्होंने कहा कि भारत से दो वर्ष बाद 1949 में कम्यूनिस्ट देश के रूप में अस्तित्व में आये चीन की सोच भारत के बारे में अंग्रेजी उपनिवेश के रूप में है। इसलिए वह अंग्रेजों द्वारा बनाई गई भारत के साथ मैकमोहन लाइन, जॉनसन लाइन और अफगानिस्तान के साथ डूरंड लाइन आदि किसी भी सीमा को नहीं मानता। वह तिब्बत को अपनी हथेली तथा लद्दाख, नेपाल, सिक्किम, भूटान व अरुणांचल को अपनी पांच अंगुलियां मानता है और वह हथेली के अपने कब्जे में आने के बाद अंगुलियों को भी लेने की बात करता है।

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-विशेष पूजा अर्चना कर नगर पालिका अध्यक्ष व क्षेत्रीय सभासद को धर्मचक्र भेंट कर किया अभिनंदन

नव वर्ष लोसर के अवसर पर परंपरागत तरीके से देवताओं को सत्तू उड़ाकर चढ़ाते तिब्बती समुदाय के लोग।
नगर पालिका अध्यक्ष एवं सभासद का धर्मचक्र भेंट कर अभिनंदन करते तिब्बती शरणार्थी।

नवीन समाचार, नैनीताल, 6 फरवरी 2019। तिब्बती बौद्ध धर्म के लोगों को नया वर्ष लोसर बुधवार से शुरू हो गया है। इस अवसर पर मुख्यालय में रहने वाले तिब्बती शरणार्थी परिवारों ने नव वर्ष लोसर के अवसर पर सुख निवास स्थित बौद्ध मठ गोम्फा में विशेष पूजा अर्चना की। देवताओं को सत्तू एवं अन्य परंपरागत पकवानों का भोग चढ़ाया, पूर्वजों की स्मृति में हजारों दीपक जलाये एवं मंत्रोच्चारण के साथ परंपरागत तरीके से घंटियां बजायीं। साथ ही इस अवसर पर पहुंचे नगर पालिका अध्यक्ष सचिन नेगी एवं क्षेत्रीय सभासद सहित पालिका कर्मियों को धर्मचक्र एवं अंगवस्त्र भेंट कर उनका अभिनंदन भी किया, एवं नगर में रहने पर मिलने वाले सहयोग के लिए आभार भी व्यक्त किया। पालिकाध्यक्ष व सभासद सहित अन्य धर्म के अनेक लोगों ने भी तिब्बती शरणार्थियों को नव वर्ष की बधाइयां दीं।
सर्वधर्म की नगरी सरोवरनगरी में बुधवार सुबह सुख निवास स्थित गोम्फा मंे तिब्बती शरणार्थियों के धार्मिक आयोजन सुबह तड़के ही शुरू हो गये थे। प्राप्त जानकारी के अनुसार इस मौके पर मुख्य पुजारी लोपसंग व लोपसंग नीमा ने विशेष पूजा व धार्मिक अनुष्ठान कराये। इस दौरान देश-प्रदेश एवं विश्व शांति की कामना भी की गयी। गोम्फा परंपरागत व्यंजन नमकीन चाय व मीठा चावल आदि बनाये एवं प्रसाद स्वरूप वितरित किये गये। लोगों ने घरों में भी परंपरागत व्यंजन बनाये एवं एक-दूसरे को नव वर्ष की बधाइयां दीं। इस दौरान नगर के तिब्बती मार्केट व भोटिया माला बाजार बंद रहे। बताया गया कि तिब्बती कलेंडर के अनुसार 2146वां वर्ष प्रारंभ हो गया है। इस वर्ष का तत्व पृथ्वी एवं प्रतीक सुअर है। आयोजन में तिब्बती शरणार्थी संगठन के अध्यक्ष पीजी शिथर, तिब्बती स्वतंत्रता आंदोलन के अध्यक्ष थुन्डुप शिरिंग, सचिव सिरिंग तोपगिल, कोषाध्यक्ष येथी थुप्तेन, महिला संगठन की अध्यक्ष ल्हाकी वांग्मो, तेजिंग ल्हाडेन, युवा संगठन के तेंजिंग जिंग्मे, तेंजिंग सिरिंग, तेंजिंग जिमग्ये सहित समुदाय के समस्त लोग मौजूद रहे।

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  • कहा-जल्द आजाद होगा तिब्बत, अगले दलाई लामा निर्वासित लोगों में से होंगे
  • तिब्बत को आजाद कराने के लिए बनायी पांच वर्ष की अल्पकालीन योजना
  • केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के अध्यक्ष ने तीसरे ‘कुमाऊं कला एवं साहित्य पर्व’ में तिब्बत, चीन व भारत के बारे में कहीं कई बड़ी बातें
तीसरे ‘कुमाऊं कला एवं साहित्य पर्व’ में बोलते केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के अध्यक्ष डा. लोब्सांग सांगे।

नैनीताल, 5 अक्टूबर 2018। केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के अध्यक्ष यानी तिब्बती निवासित सरकार के प्रधानमंत्री डा. लोब्सांग सांग्ये शुक्रवार को नैनीताल में थे। यहां तीसरे ‘कुमाऊं कला एवं साहित्य पर्व’ पर उन्होंने तिब्बत, चीन व भारत के बारे में कई बड़ी बातें कहीं। 1968 में दार्जिलिंग की एक शरणार्थी बस्ती में पैदा हुए और इधर मार्च 2018  में निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री चुने गए दिल्ली यूनिवर्सिटी और हार्वर्ड में पढ़े डा. सांग्ये ने कहा कि चीन के तत्कालीन सत्ता प्रमुख माओत्से तुंग द्वारा धर्म को जहर की संज्ञा दी गयी थी, बावजूद जिस तरह से बौद्ध धर्म का विस्तार हुआ है और स्वयं माओत्से का चीन आज दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध धर्मानुयायी राष्ट्र बन गया है, ऐसे में बौद्ध धर्म के मूल स्थान तिब्बत की स्वायत्तता अधिक दूर नहीं है। बताया कि इस हेतु पांच वर्ष की अल्पकालीन योजना बनायी गयी है। साथ ही एक और बड़ी भविष्यवाणी करते हुए कहा कि अगले दलाई लामा चीन से बाहर निर्वासित तिब्बतियों में से पैदा हुवे होंगे। टिप्पणी की कि चीन के मौजूदा राष्ट्रपति शी जिनपिंग माओत्से तुंग की राह पर चल रहे हैं।

तीसरे ‘कुमाऊं कला एवं साहित्य पर्व’ में आयोजकों को केंद्रीय तिब्बती प्रशासन का प्रतीक चिन्ह भेंट करते अध्यक्ष डा. लोब्सांग सांगे।

स्वयं को शिव की धरती ‘कैलाश मानसरोवर’ की धरती तिब्बत से बताते हुए भारत व तिब्बत के दीर्घकालीन संबंधों का जिक्र करते हुए डा. सांगे ने तिब्बत को सोना, तांबा सहित बहुमूल्य खनिजों, दुनिया के 40 फीसद ग्लेशियरों के साथ आर्कटिक व अंटार्कटिक के बाद तीसरा ध्रुव तथा दुनिया के 1.4 बिलियन लोगों को पानी उपलब्ध कराने वाली सिंधु व ब्रह्मपुत्र सहित दर्जन भर नदियों के उद्गम का श्रोत बताते हुए पानी और शुद्ध हवा का केंद्र बताते हुए इसके वैश्विक पर्यावरणीय महत्व को रेखांकित किया तथा कहा कि कि चीन ने इस क्षेत्र के लोगों से चांदी के सिक्के लेकर और उन्हें जेलों में ठूंसकर वहां अच्छी सड़कें विकास के लिये नहीं, वहां के बहुमूल्य खनिजों के दोहन के लिए बनायी हैं। कहा कि ग्लेशियरों के पिघलने और कार्बन डाई ऑक्साइड व मीथेन जैसी खतरनाक गैसों के उत्सर्जन से भी तिब्बत में पर्यावरणीय खतरा बढ़ता जा रहा है। ऐसे में पूरे विश्व के लिए तिब्बत को बचाया जाना और तिब्बत की स्वतंत्रता-स्वायत्तता जरूरी है। कहा कि तिब्बत की निर्वासित सरकार दुनिया में बर्लिन की दीवार गिरने, रूस के बिघटित होने, इंडोनेशिया में ताउम्र जेल में रखी गयी एक दुर्बल महिला आन सान सू की के सत्तानशी होने तथा महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग और नेल्सन मंडेला के उदाहरणों के साथ तिब्बत की आजादी के प्रति आश्वस्त है। इस हेतु 5 एवं 50 वर्ष की यानी अल्पकालीन व दीर्घकालीन योजनाएं बनायी गयी हैं। अल्पकालीन योजना के तहत तिब्बत को आजाद कराना है, और दीर्घकालीन योजना के तहत तिब्बती संस्कृति, भाषा आदि को बचाये रखना है। निर्वासित सरकार का दायित्व तिब्बत से बाहर पैदा हुई पीढ़ियों तक भी यह संदेश पहुंचाने का है। कहा कि अगले पंचेन लामा निर्वासित परिवारों में ही पैदा होंगे। कहा कि बौद्ध धर्म की उम्र 2600 वर्ष और चीन की सत्ता पर काबिज कम्यूनिज्म की उम्र महज 100 वर्ष है। जिस तरह तिब्बत के मूल बौद्ध धर्म का चीन सहित पूरी दुनिया में विस्तार हो रहा है, स्वयं चीन के लोग धर्मशाला आकर दलाई लामा से बौद्ध धर्म की शिक्षा ले रहे हैं। स्वयं चीन के लोग 20 वर्षों से चीन द्वारा गायब किये जाने के बावजूद तिब्बत के पंचेन लामा के पोस्टर लेते हैं और चीन द्वारा घोषित दलाई लामा को नहीं मानते, ऐसे में तिब्बत की आजादी तय है। बताया कि दलाई लामा के भारत आने के 60 साल पूरे हुए हैं। इस बर्ष ‘थैंक यू इंडिया’ कार्यक्रम चल रहा है। भारत के साथ ही विश्व समुदाय तिब्बती का आजादी का समर्थन कर रहा है। उन्होंने कहा कि अमेरिका व यूरोप के कई देश बकायदा इसके लिए एक्ट पारित कर चुके हैं। 

उल्लेखनीय है कि चीन सरकार निर्वासित नेता के साथ कोई बातचीत नहीं करने की बात कह चुकी है। सांग्ये ने बताया कि 2010 से चीन सरकार के साथ बात नहीं हो पायी है, लेकिन निर्वासित सरकार हमेशा बातचीत के प्रयास में रही है।  निर्वासन में लगभग एक लाख 40 हजार तिब्बती रहते हैं। इनमें से एक लाख भारत के विभिन्न हिस्सों में, जबकि 60 लाख तिब्बती तिब्बत में रहते हैं। गौरतलब है कि दलाई लामा राजनीतिक जिम्मेदारियों से अलग हो चुके हैं। सांग्ये को निर्वासित सरकार का मुखिया बनाने को तिब्बतियों के मसले को धार्मिक रुझान से हटा कर लोकतांत्रिक स्वरूप प्रदान करना बताया गया है। अभी तक दलाई लामा तिब्बतियों के लिए आध्यात्मिक और राजनीतिक दोनों मोर्चों पर नेतृत्व दे रहे थे। उल्लेखनीय है कि अपने शुरुआती दिनों में तिब्बत की आजादी के समर्थक रहे हैं। लेकिन वक्त के साथ वह चीनी शासन के तहत सार्थक स्वायत्तता की दलाई लामा की मांग के नजदीक आते गए हैं।

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-उपसा के तत्वावधान में यूजीसी एचआरडीसी में ‘ब्रिक्स’ एवं संयुक्त राष्ट्र के विशेष संदर्भ में एशियाइयों की शताब्दी’: एशियाई राष्ट्रों की भूमिका एवं प्रभाव विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी शुरू
नैनीताल। विशेषज्ञों ने अगली सदी को एशिया की सदी होने की संभावना जताई है, और इसके लिए भारत और चीन के बीच इंग्लेंड व फ्रांस जैसे मजबूत संबंधों की आवश्यकता जताई है, और इसके लिए दोनों देशों के बीच आर्थिक के बजाय सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत किये जाने को प्रमुख उपकरण बताया है। हालांकि इसमें बाधा दोनों देशों की विचारधाराओं का अलग-अलग होना है। 
बृहस्पतिवार को कुमाऊं विवि के हरमिटेज परिसर स्थित यूजीसी के एचआरडीसी यानी मानव संसाधन विकास केंद्र में उपसा यानी यूनाईटेड प्रोफेशनल्स एण्ड स्कॉलर्स फॉर एक्शन के तत्वावधान में ‘ब्रिक्स’ एवं संयुक्त राष्ट्र के विशेष संदर्भ में एशियाइयों की शताब्दी’ : एशियाई राष्ट्रों की भूमिका एवं प्रभाव विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में इस तरह के विचार उभर कर आये। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि आरएमएल अवध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मनोज दीक्षित ने कहा कि ब्रिक्स देशों में आपसी समन्वय स्थापित करने के लिए संस्कृतियों का परस्पर आदान-प्रदान करना आवश्यक है। इसके बिना हम एशियाई देशों का संगठित समूह नहीं बन सकते हैं। एशियाई समूह को अग्रसर करने के लिए केवल एक मापदंड पर निर्भर नहीं रहा जा सकता है। उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा इंडोनेशिया और भारत के आपसी सहयोग के लिए सांस्कृतिक पद्धति को प्राथमिकता दी, जैसे कि इंग्लैण्ड और फ्रांस में मजबूत सांस्कृतिक सम्बन्ध हैं वैसे चीन और भारत के बीच में भी होने चाहिए लेकिन चीन और भारत की विचारधारा अलग-अलग है। इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारम्भ राष्ट्रगान, राष्ट्रगीत एवं विश्वविद्यालय कुलगीत के गायन एवं द्वीप प्रज्वलन से प्रारम्भ हुआ। यूजीसी एचआरडीसी के निदेशक एवं उपसा के संयुक्त सचिव प्रो. बीएल साह ने अतिथियों का स्वागत किया। उपसा के अध्यक्ष डा. आरएस भाकुनी ने उपसा एवं संगोष्ठी के बारे में प्रतिभागियों को जानकारी दी। कार्यक्रम का संचालन डा. रीतेश साह ने किया। इस अवसर पर प्रो. राजवीर शर्मा, प्रो. प्रीता जोशी, प्रो. नीता बोरा शर्मा, डा. किरन बर्गली, डा. नीलू लोधियाल, डा. सुषमा टम्टा, हरदेश कुमार, पवन, बंटी, पूजा, नुशरत, शाइस्ता तथा ओरियंटेशन प्रोग्राम-39 के प्रतिभागी उपस्थित रहे। 
2 साल में महाशक्तिशाली देश बनेगा चीन: ले.जनरल रावत

नैनीताल। संगोष्ठी में भारत-चीन मामलों के सैन्य विशेषज्ञ लेफ्टिनेंट जनरल डा. एमसी भंडारी ने कहा कि चीन अगले 2 साल में महाशक्तिशाली देश बनेगा, और भारत भी शक्तिशाली देश बनने को उन्मुख होगा। कहा कि ब्रिक्स का भविष्य चीन के ऊपर निर्भर करता है। उन्होंने चीन और भारत के भू-राजनीतिक विषयों तथा दक्षिणी चीन सागर में चीन के बढ़ते प्रभाव एवं चीन की ‘वन बेल्ट-वन रोड’ परियोजना के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी, तथा भारत एवं चीन की सैन्य शक्ति एवं सुरक्षा के सम्बन्धों पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि 1990 के दशक में चीन में आधुनिकीकरण आया। बताया कि चीन और रूस दोनों ही कम्युनिस्ट विचारधारा का अनुसरण करते हैं।

एशियाई देशों की होगी 21वीं सदी: नौड़ियाल
नैनीताल। कुमाऊं विवि के कुलपति प्रो. डीके नौड़ियाल ने कहा कि 21वीं सदी एशियाई देशों की सदी है। 20वीं सदी के उत्तरार्ध में ही इसकी शुरूआत हो गई थी। उन्होंने कहा कि 1950 तक जापान उतना मजबूत नहीं था लेकिन 1960 के बाद उसने बहुत तेजी से विकास किया। वहां पर विकास इसलिए हुआ कि वहां अन्य देशों ने निवेश करना प्रारम्भ किया। समान नीति अपनाते हुए चीन ने भी 1980 के दशक में विदेशी निवेश के लिए अपने देश के द्वार खोल दिये। कहा कि चीन एक अवसरवादी देश है। चीन की तुलना में भारत विकास के मामले में मध्यम रहा है। बौद्धिक सम्पदा अधिकार में चीन के नाम सबसे ऊपर है जबकि अमेरिका का स्थान उसके बाद आता है और भारत इस मामले में बहुत पीछे है। ब्रिक्स में भी चीन का वर्चस्व सबसे अधिक है अतः भारत को प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में तेजी से विकास करने की आवश्यकता है।

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प्रो. एसडी मुनि

-दक्षिण एशियाई मामलों के विशेषज्ञ जवाहर लाल नेहरू विवि के प्रोफेसर एसडी मुनि ने कहा-अमेरिका व रूस की नजदीकी भारत के हित में
-चीन के बाबत कहा कि 15वीं-18वीं सदी तक भारत के बराबर व पीछे रहा चीन आगे निकलते ही संबंध खराब कर रहा
-पाकिस्तानी सेना तिजारत और सियासत से दूर हो तभी पाकिस्तान का और भारत से उसके संबंधों का हो सकता है भला
नवीन जोशी। नैनीताल। दक्षिण एशियाई मामलों के विशेषज्ञ एवं जवाहर लाल नेहरू विवि के प्रोफेसर एसडी मुनि ने कहा कि भारत काफी हद तक आर्थिक व सामरिक मोर्चों पर मजबूत हुआ है, बावजूद अभी देश ने वह स्तर नहीं छुवा है कि दुनिया के देश उसकी सुन पायें। इसी कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को अपने शपथ ग्रहण समारोह में बुलाने व स्वयं उनके पारिवारिक समारोह में पाकिस्तान जाने व चीन के राष्ट्रपति शी के साथ झूला झूलने जैसे डिप्लोमैटिक उपाय भी इन देशों के साथ बेहतर रिश्ते नहीं बना सके। उन्होंने अमेरिका व रूस के बीच राष्ट्रपति ट्रम्प के आने के बाद बढ़ रही नजदीकी को भारत के हक में बताया। कहा कि ऐसा होने से रूस की चीन पर निर्भरता घटेगी। साथ ही कहा कि ओबामा के दोस्ती के दौर के बावजूद अमेरिका कभी भारत के लिये रूस जितना विश्वस्त नहीं रहा। पाकिस्तान पर उन्होंने कहा, ‘जब तक पाकिस्तानी फौज तिजारत व सियासत से अलग नहीं होती, तब तक भारत-पाकिस्तान के संबंध नहीं सुधर सकते।’ भारत चीन संबंधों पर उन्होंने टिप्पणी की कि 15वीं शताब्दी तक चीन ‘सोने की चिड़िया’ और बुद्ध की धरती रहे भारत से आर्थिक, सामाजिक व सामरिक स्तर पर पीछे और 15वीं से 18वीं सदी तक बराबर रहा। तब भारत-चीन के बीच बेहतर संबंध रहे। किंतु इधर भारत से आगे निकल रहा चीन आंखें तरेर रहा है। कहा कि भारत की विदेश नीति तभी सफल हो सकती है, जबकि वह स्वयं को और अधिक मजबूत करे।
प्रो. मुनि ने कहा कि कहा कि भारत आज दुनिया का सबसे युवा, सशक्त, सबसे बड़े बाजार युक्त व विश्वस्त देश है। उसे अपनी इन ताकतों के साथ विश्व राजनीति में आगे बढ़ना होगा। कहा कि पाकिस्तान की समस्या का कोई इलाज संभव नहीं है। भारत और पाकिस्तान के बुरे संबंध पाकिस्तान की फौज की आंतरिक समस्या में निहित हैं। इसलिये इसका कोई निदान संभव नहीं है। सिवाय इसके कि भारत स्वयं अत्यधिक मजबूत होकर उसे विश्व बिरादरी से अलग-थलग कर दे। वहीं चीन से भारत के संबंध तभी मजबूत हो सकते हैं, जब भारत चीन से अधिक शक्तिशाली हो जाये, और दक्षिण एशिया के अपने पड़ोसी देशों को चीन के मदद के बहाने घुसने से दूर रख पाये, तथा चीन को दलाईलामा से बात करने को मजबूर कर सके। उसे अपनी ‘लुक ईस्ट पॉलिसी’ से हुई ‘एक्ट ईस्ट पॉलिसी’ पर कार्य करके दक्षिण पूर्व के मित्र देशों को भी अपने साथ एकजुट रखना और पड़ोसियों से संबंधों को और प्रगाढ़ करना होगा। अमेरिका व भारत के रिस्तों के बाबत उन्होंने कहा कि 1949 में नेहरू के पहले अमेरिकी दौरे से ही भारत अमेरिका से बेहतर संबंधों का पक्षधर रहा, और ये संबंध ओबामा-मोदी के साथ परवान चढ़े।

ओसामा के पतन के बाद भारत को चीन-पाक से खतरा बढ़ा : ले.ज. भंडारी

राज्य की सीमाओं पर सुरक्षा को लेकर संवेदनशील रहे सरकार
भारत को अमेरिका, चीन, पाक और रूस से जारी रखनी चाहिए वार्ता
नवीन जोशी, नैनीताल। परम विशिष्ट व अति विशिष्ट सेवा मेडल प्राप्त सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल डा. एमसी भंडारी ने आशंका जताई कि ओसामा की मौत के बाद भारत पर दोतरफा खतरा है। पाकिस्तान से आतंकियों की आमद के साथ चीन भी भारत की ओर बढ़ सकता है। डा. भंडारी ने कहा कि भारत पांच-छह वर्षो में दुनिया की आर्थिक सुपर पावर बन सकता है। इसलिए उसे इस अवधि में कूटनीति का परिचय देते हुए अमेरिका, चीन, पाकिस्तान व रूस सहित सभी देशों से बातचीत जारी रखनी चाहिए। 
कुमाऊं विवि के अकादमिक स्टाफ कालेज में कार्यक्रम में आए डा. भंडारी ने कहा कि ओसामा बिन लादेन के बाद पाक अधिकृत कश्मीर में चल रहे 32 शिविरों से प्रशिक्षित आतंकी दो-तीन माह में भारत की तरफ कूच कर सकते हैं। कश्मीर में शांति पाकिस्तान की ‘जेहाद फैक्टरी’ में बैठे लोगों को रास नहीं आएगी। ओसामा ने भी कश्मीर में जेहाद की इच्छा जताई थी। उधर चूंकि पाकिस्तान बिखर रहा है, इसलिए तालिबानी- पाकिस्तानी भी यहां घुसपैठ कर सकते हैं। पाक पहले ही गिलगिट व स्काई क्षेत्रों में अनधिकृत कब्जा कर चुका है, दूसरी ओर चीन के 10 से 15 हजार सैनिक ‘पीओके’ में पहुंच चुके हैं, पाकिस्तान ने उन्हें सियाचिन के ऊपर का करीब 5,180 वर्ग किमी भू भाग दे दिया है, ऐसे में चीन तिब्बत के बाद भारत के अक्साई चिन व नादर्न एरिया तक हड़पने का मंसूबा पाले हुए है। उन्होंने कहा कि चीन ने यहां उत्तराखंड के चमोली जिले के बाड़ाहोती में 543 वर्ग किमी व पिथौरागढ़ के कालापानी में 52 वर्ग किमी क्षेत्र को अपने नक्शे में दिखाना प्रारंभ कर दिया है। ऐसे में उत्तराखंड में अत्यधिक सतर्कता बरतने व सीमावर्ती क्षेत्रों से पलायन रोकने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में चीन के घुसने की संभावना वाले 11 दर्रे हैं, जिनके पास तक चीन पहुंच गया है, और भारतीय क्षेत्र जनसंख्या विहीन होते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि राज्य में सीमाओं की सुरक्षा मुख्यमंत्री देखें और वह सीधे प्रधानमंत्री से जुड़ें। साथ ही उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार के बावजूद 10 फीसद की विकास दर वाला भारत अगले पांच-छह वर्षो में सुपर पावर बन सकता है, इसलिए उसे इस अवधि में सभी देशों से कूटनीतिक मित्रता करनी चाहिए और अपने यहां सीमाओं की सुरक्षा दीवार मजबूत करनी चाहिए, ताकि बिखरते पाकिस्तान के बाद जब अमेरिका, चीन मजबूत होते भारत की ओर आंख उठाएं, वह मुंहतोड़ जवाब देने को तैयार हो जाए। उन्होंने भारत में सेना का बजट जीडीपी का 2.1 फीसद (64 हजार लाख रुपये) को बढ़ाने की जरूरत पर बल दिया।

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