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March 19, 2024

Kailash Mansarovar : बड़ा समाचार : पीएम मोदी उत्तराखंड के इस स्थान से एक साथ कर सकते हैं 2-2 कैलाश पर्वतों व ॐ पर्वत के दिव्य दर्शन

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Kailash Mansarovar Yatra

Kailash Mansarovar

-लिंपियाधूरा से एक साथ नजर आते हैं मुख्य कैलाश और छोटा कैलाश पर्वत
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 6 अक्टूबर 2023। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी 12 अक्टूबर को उत्तराखंड आ रहे हैं। इस दौरान पहली बार वह प्रदेश के कुमाऊं मंडल के चीन सीमा से लगे पिथौरागढ़ जनपद के जॉलिंगकांग के पास से उत्तराखंड से नजर आने वाली चीन में स्थित देवों के देव महादेव के घर कैलाश पर्वत (Kailash Mansarovar) की उत्तराखंड में मौजूद प्रतिकृति आदि कैलाश या छोटा कैलाश और इसकी पार्वती सरोवर में दिखने वाली दिव्य छाया के दर्शन कर सकते हैं। आइये जानते हैं उत्तराखंड के ऐसे स्थान के बारे में जहां से यह तीनों पवित्र स्थान एक साथ नजर आते हैं।

Adi kailash of India just like MOUNT KAILASH MANSAROVAR
आदि कैलाश की पार्वती सरोवर में दिखने वाली दिव्य छाया

उल्लेखनीय है कि गत दिवस उत्तराखंड के लिपुपास दर्रे के पास से चीन के तिब्बत में स्थित भगवान शिव के धाम कैलाश पर्वत (Kailash Mansarovar) के दर्शन हो सकने की खबरें मीडिया की सुर्खियों में रही थीं। इन्हीं खबरों की कड़ी में लोक निर्माण विभाग के प्रांतीय खंड में कार्यरत सहायक अभियंता जीएस जनौटी ने खुलासा किया है। 

उन्होंने बताया कि केवल लिपुपास पहाड़ी से ही नहीं, बल्कि इस क्षेत्र में कई स्थानों से पवित्र कैलाश पर्वत (Kailash Mansarovar) के दर्शन होते हैं। बल्कि ऐसे स्थान भी हैं जहां से एक साथ मुख्य कैलाश पर्वत (Kailash Mansarovar) और छोटा कैलाश पर्वत (Kailash Mansarovar) के भी एक साथ दिव्य दर्शन होते हैं। उत्तराखंड सरकार की इन्हीं में से किसी एक स्थान से प्रधानमंत्री मोदी को इन तीनों पवित्र स्थलों के दर्शन कराने की कोशिश चल रही है।

Kailash Mansarovar
लिंपियाधूरा से इस तरह होते हैं चीन में स्थित कैलाश पर्वत के दर्शन।

स्वयं वर्ष 2015 में इन स्थानों से कैलाश पर्वत (Kailash Mansarovar) के दर्शन कर चुके श्री जनौटी ने ‘नवीन समाचार’ को बताया कि इस संबंध में उन्होंने उच्चाधिकारियों एवं प्रदेश सरकार को इस बारे में जानकारी दी थी। अलबत्ता तत्कालीन सरकारों ने इसे अनसुना कर दिया। अब इस संबंध में राज्य सरकार की पहल से श्री जनौटी भी खुश हैं।

साहसिक पर्यटन व पर्वतारोहण के शौकीन रहे तथा सीमांत पिथौरागढ़ जनपद के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में सेवाएं दे चुके व थिनला पास को तीन बार पार कर चुके श्री जनौटी ने बताया कि लिपुपास पहाड़ी के साथ जोलिंगकांग से 25 किलोमीटर ऊपर लिंपियाधूरा से कैलाश पर्वत (Kailash Mansarovar) के साथ ही छोटा कैलाश पर्वत (Kailash Mansarovar) के भी दिव्य दर्शन होते हैं। उल्लेखनीय है कि छोटा कैलाश पर्वत कैलाश पर्वत की ही प्रतिकृति है और इसकी भी कैलाश पर्वत की तरह ही बड़ी धार्मिक मान्यता है।

श्री जनौटी ने बताया कि उन्हें कुटी गांव के एक ग्रामीण ने बताया था कि लिपुपास के बांयी ओर स्थित बांया पास के साथ ही लिंपियाधूरा से भी कैलाश पर्वत के दर्शन होते हैं। इसके बाद ही वह वहां गए। उन्होंने बांया पास के लिए पैदल रास्ता भी बनवाया। उन्होंने बताया कि लिंपियाधूरा से केवल 15-20 मीटर ऊपर चढ़ने पर एक मैदान सा स्थान आता है।

वहां से उत्तर दिशा की ओर देखने पर मुख्य कैलाश पर्वत (Kailash Mansarovar) और दक्षिण दिशा की ओर देखने पर छोटा कैलाश पर्वत (Kailash Mansarovar) के दिव्य दर्शन होते हैं। उन्होंने स्वयं दोनों कैलाश पर्वतों (Kailash Mansarovar) को एक साथ दर्शन किए हैं। उन्होंने बताया कि यहां से कैलाश पर्वत (Kailash Mansarovar) की एरियल दूरी करीब 50 किमी तक होती है और कैलाश पर्वत के नंगी आंखों से बिना किसी दूरदर्शी यंत्र के दर्शन होते हैं। आज के अन्य एवं अधिक पढ़े जा रहे ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करेंयदि आपको लगता है कि ‘नवीन समाचार’ अच्छा कार्य कर रहा है तो यहां क्लिक कर हमें सहयोग करें..यहां क्लिक कर हमें गूगल न्यूज पर फॉलो करें। यहां क्लिक कर हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से, यहां क्लिक कर हमारे टेलीग्राम पेज से और यहां क्लिक कर हमारे फेसबुक ग्रुप में जुड़ें। हमारे माध्यम से अमेजॉन पर सर्वाधिक छूटों के साथ खरीददारी करने के लिए यहां क्लिक करें।

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यह भी पढ़ें : चीन नहीं हटा रहा था रोक तो मोदी सरकार ने भोले बाबा के कैलाश दर्शन (Kailash Mansarovar) के लिए ढूँढ़ लिया दूसरा रास्ता, उत्तराखंड से ही हो जाएंगे दर्शन

डॉ.नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 29 जून 2023। वर्ष 2020 में कोविड महामारी फैलने के बाद से यानी पिछले तीन वर्षों से देवाधिदेव-महादेव भगवान शिव के कैलाश धाम (Kailash Mansarovar) के दर्शन न कर पा रहे शिवभक्तों व खासकर उत्तराखंड वासियों के लिए खुश करने वाली बड़ी खबर सामने आई है।

अब उन्हें पवित्र कैलाश पर्वत (Kailash Mansarovar) के दर्शन के लिए चीन जाने की जरुरत नहीं होगी। भक्त उत्तराखंड के लिपुलेख से कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) के दर्शन कर पाएंगे।Kailash Mansarovar

मात्र दो किलोमीटर की चढ़ाई से होते हैं भोलेनाथ के (Kailash Mansarovar) दर्शन

उल्लेखनीय है कि चीन ने भारत के शिव भक्तों के लिए कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) यात्रा को रोका हुआ है। इससे शिवभक्तों में निराशा है। लेकिन सावन मास शुरू होने से पहले ही एक ऐसी खबर आई है जो शिवभक्तों को बाबा की भक्ति में झूमने को मजबूर कर देने वाली है।

देश व उत्तराखंड के सीमांत पिथौरागढ़ जनपद में स्थित नाभीढ़ांग के ठीक ऊपर करीब 2 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित लिपुलेख चोटी से तिब्बत में मौजूद कैलाश पर्वत (Kailash Mansarovar) पर विराजमान भगवान शिव के आसानी से दर्शन होते हैं।

बिना पासपोर्ट व बीजा के, बिना चीन गए हो सकेंगे महादेव के धाम के दर्शन

बताया गया है कि पिछले कई सालों से स्थगित चल रही कैलाश-मानसरोवर (Kailash Mansarovar) यात्रा के दृष्टिगत उत्तराखंड पर्यटन विभाग के अधिकारी इस संबंध में वैकल्पिक तरीके खोज रहे थे। अब उन्हें इस संबंध में बड़ी सफलता हाथ लगी है।

अब भारतीय श्रद्धालुओं को भगवान शिव के निवास स्थान माने जाने वाले कैलाश पर्वत (Kailash Mansarovar) की झलक चीन या नेपाल से गुजरे बिना उत्तराखंड स्थित भारतीय भूभाग से ही मिल सकेगी। इससे अधिक संख्या में शिव भक्त बिना पासपोर्ट व वीजा के शिवधाम के दर्शन कर सकेंगे। इससे उत्तराखंड में धार्मिक पर्यटन को नए पंख लगने के साथ राज्य की आर्थिकी सुधारने के लिए भी एक नया आयाम मिल जाएगा।

पर्यटन, जिला प्रशासन व पर्यटन विशेषज्ञों की टीम ने तलाशा (Kailash Mansarovar) नया रास्ता

धारचूला के उपजिलाधिकारी देवेश शाशनी ने बताया कि हाल में राज्य के पर्यटन अधिकारियों, जिला प्रशासन के अधिकारियों, साहसिक पर्यटन विशेषज्ञों और सीमा सड़क संगठन के अधिकारियों ने पुरानी लिपुलेख चोटी का दौरा किया है।

वहां से कैलाश पर्वत (Kailash Mansarovar) के स्पष्ट और मनोहारी दर्शन होते हैं। शाशनी स्वयं इस दल के सदस्य थे। उन्होंने कहा कि टीम ने इस बात पर भी चर्चा की है कि कैसे पुरानी लिपुलेख चोटी को धार्मिक पर्यटन गंतव्य के रूप में विकसित किया जा सकता है।

दूसरी ओर, पिथौरागढ़ के जिला पर्यटन अधिकारी कीर्ति चंद्र आर्य ने बताया कि टीम को व्यास घाटी में धार्मिक पर्यटन की संभावनाओं पर रिपोर्ट सौंपने का कार्य दिया गया था। इसके लिए टीम ने 19,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित पुरानी लिपुलेख दर्रा चोटी, नाभीढ़ांग और आदि कैलाश क्षेत्र (Kailash Mansarovar) का दौरा किया।

लिपुलेख तक सड़क बनने से खुली राह

उन्होंने बताया कि बीआरओ यानी सीमा सड़क संगठन लिपुलेख चोटी के आधार शिविर तक सड़क का निर्माण कर चुका है। इसके बाद भारतीय भूभाग में स्थित पुरानी लिपुलेख चोटी से कैलाश पर्वत (Kailash Mansarovar) के दर्शन की संभावनाएं बहुत अधिक बढ़ गई हैं।

स्नो स्कूटर भी हो सकता है लिपुलेख चोटी पहुंचने का विकल्प

अधिकारियों का कहना है कि लिपुलेख दर्रे से केवल 1800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित लिपुलेख चोटी तक पहुंचने के लिए 2 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़नी पड़ती है, जो आसान तो नही है। क्योंकि यहां वर्ष भर बर्फ रहती है। लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए भी रास्ता बनाया जा सकता है।

श्रद्धालु स्नो स्कूटर के जरिए भी वहां पहुंच सकते हैं। साथ ही यात्री पैदल भी इस चोटी तक कठिन चढ़ाई चढ़ कर भी पहुंच सकते हैं और वहां से तिब्बत में स्थित कैलाश पर्वत (Kailash Mansarovar) के दर्शन कर सकते हैं।

अधिकारियों ने यह भी कहा कि लिपुलेख चोटी तक पहुंचने के लिए रास्ता बनाने के साथ ही पर्यटकों के लिए ठहरने व खाने-पीने आदि की अन्य जरूरी सुविधाएं भी जुटाई जानी आवश्यक हैं। जिसके बाद इस जगह से देशभर के श्रद्धालु पवित्र कैलाश (Kailash Mansarovar) के दर्शन कर सकेंगे।

इस विषय में अब टीम अपनी रिपोर्ट शासन को देगीे। जिसके बाद लिपुलेख से कैलाश पर्वत (Kailash Mansarovar) के दर्शनों को सुगम व सरल बनाने के लिए आगे की रणनीति बनाई जाएगी।

स्थानीय लोग पहले से करते रहे हैं लिपुलेख से कैलाश पर्वत (Kailash Mansarovar) के दर्शन

कैलाश दर्शन (Kailash Mansarovar) के इस नए मार्ग के बारे में व्यास घाटी के स्थानीय निवासियों का कहना है कि वह पहले से ही इस मार्ग का प्रयोग करते हैं। जो तीर्थयात्री वृद्धावस्था या स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण मानसरोवर नहीं जा पाते थे,

वह पुरानी लिपुलेख चोटी से पवित्र कैलाश पर्वत (Kailash Mansarovar) के दर्शन करते थे। चोटी का दौरा करने वाले व्यास घाटी के रोंगकोंग गांव के निवासी भूपाल सिंह रोंकली का कहना है कि चोटी से कैलाश पर्वत का एक सुंदर और रोमांचकारी दृश्य देखने को मिलता है।

चोटी तक पहुंचने के रास्ते में एकमात्र चुनौती तेज हवाएं और चार महत्वपूर्ण मोड़ हैं। उन्होंने कई बार वहां से कैलाश पर्वत का वीडियो भी शूट किया है। ऐसे में ओम पर्वत, आदि कैलाश और पार्वती सरोवर के करीब से कैलाश पर्वत (Kailash Mansarovar) के दर्शन होने से क्षेत्र में धार्मिक पर्यटन गतिविधियों में गति आ सकती है। साथ ही इससे स्थानीय लोगों के रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और इस क्षेत्र को देश और दुनिया में एक अलग पहचान मिलेगी।

नया राजमार्ग भी और सुगम बनाएगी महादेव के दर्शनों को

केंद्रीय परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) जाने के लिए अब भारतीय तीर्थ यात्रियों को चीन या नेपाल से होकर नहीं जाना होगा, क्योंकि उत्तराखंड से एक नया राजमार्ग जल्द ही शुरू होने वाला है। उन्होंने बताया कि दिसंबर 2023 तक भारतीय नागरिक चीन या नेपाल से गुजरे बिना कैलाश मानसरोवर की यात्रा कर सकेंगे।

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि 2024 के लोकसभा चुनाव तक इस राजमार्ग को पूरा कर लिया जाएगा। इससे कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) की यात्रा करने वालों का ना केवल समय बचेगा बल्कि यात्रियों को एक आसान रास्ता भी उपलब्ध होगा।

उल्लेखनीय है कि वर्तमान में विदेश मंत्रालय तीन अलग अलग राजमार्गों-लिपुलेख दर्रा (उत्तराखंड), नाथू ला दर्रा (सिक्किम) और काठमांडू के रास्ते कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) की यात्रा का आयोजन करता है। इन तीनों रूटों को काफी खतरनाक माना जाता है। तथा इसमें करीब 23 से 25 दिन का समय लगता है।

खासकर लिपुलेख के मार्ग की बात करें तो कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) पहुंचने में यात्रियों को बर्फीले मौसम का सामना करते हुए 19500 फीट तक की ऊंचाई पर लगभग 90 किलोमीटर की ट्रेकिंग करनी पड़ती है। अब यहां से बन रहा नया राजमार्ग तीर्थ यात्रियों को उनकी कठिन यात्रा से बचाएगा और तीन से चार हफ्तों के बजाए यात्री 1 हफ्ते में ही कैलाश मानसरोवर के दर्शन कर सकेंगे।

नये राजमार्ग के बारे में संपूर्ण जानकारी

पिथौरागढ़ से चीन चीमा तक जाने वाले नए राजमार्ग में तीन खंड शामिल हैं। पहला खंड पिथौरागढ़ से तवाघाट तक का 107.6 किलोमीटर है, दूसरा तवाघाट से घटियाबगढ़ तक का 19.5 किलोमीटर सिंगल लेन का है और तीसरा घटियाबगढ़ से लिपुलेख दर्रे यानी चीन सीमा तक करीब 80 किलोमीटर का है और इसे केवल पैदल तय किया जा सकता है।

सीमा सड़क संगठन यानी बीआरओ द्वारा तवाघाट से घटियाबागढ़ तक की सिंगल लेन सड़क को डबल लेन में परिवर्तित किया जा रहा है। वहीं सैन्य संगठन धारचूला से लिपुलेख यानी चीन सीमा तक कनेक्टिविटी पर काम कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि इस सड़क का उद्घाटन मई 2020 में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और तत्कालीन सेना प्रमुख सीडीएम स्वर्गीय विपिन रावत ने किया था।

वर्तमान में कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) की यात्रा करने के लिए सिक्किम या नेपाल के राजमार्ग से होते हुए करीब तीन सप्ताह का समय लगता है। यहां पहुंचने के लिए नागरिक मात्र 20 प्रतिशत भारतीय सड़कों की यात्रा करते हैं, जबकि 80 प्रतिशत चीन की भूमि से यात्रा करते हैं।

नया राजमार्ग बनने के बाद श्रद्धालु भारतीय सड़कों से 84 प्रतिशत यात्रा कर सकेंगे। उन्हें चीन पर मात्र 16 प्रतिशत यात्रा करनी होगी। (डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य एवं अधिक पढ़े जा रहे ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। यदि आपको लगता है कि ‘नवीन समाचार’ अच्छा कार्य कर रहा है तो हमें सहयोग करें..

नाथुला नहीं, कुमाऊं-उत्तराखंड से ही है कैलाश-मानसरोवर (Kailash Mansarovar) का पौराणिक व शास्त्र सम्मत मार्ग

केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग से वार्ता कर कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) के लिए सिक्किम के नाथुला दर्रे का रास्ता खुलवा दिया है, लेकिन सार्वभौमिक तथ्य है कि कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) का पौराणिक व शास्त्र सम्मत मार्ग कुमाऊं-उत्तराखंड के परंपरागत लिपुलेख दर्रे से ही है। कहते हैं कि स्वयं भगवान शिव भी माता पार्वती के साथ इसी मार्ग से कैलाश गए थे।

उत्तराखंड के प्राचीन ‘कत्यूरी राजाओं’ के समय में भी यही मार्ग कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) के तीर्थाटन के लिए प्रयोग किया जाता था। पांडवों ने भी इसी मार्ग से कैलाश (Kailash Mansarovar) की यात्रा की थी तथा महान घुमक्कड़ साहित्यकार व इतिहासकार राहुल सांकृत्यायन व सुप्रसिद्ध यात्री स्वामी प्रणवानंद भी इसी मार्ग से कैलाश गए थे।

कैलाश मानसरोवर के इस परंपरागत यात्रा मार्ग के साथ हिमालय की सांस्कृतिक अस्मिताओं और उससे जुड़ी हिन्दू जैन, बौद्ध तथा तिब्बती आदि विभिन्न धर्मों की गौरवशाली परंपराओं का इतिहास भी जुड़ा है।

ऋग्वैदिक आर्यों का मूल निवास स्थान उत्तराखंड हिमालय होने के कारण उनके कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) आवागमन का भी यही मार्ग था। जैन धर्म के आदि तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ‘कैलाश’ (Kailash Mansarovar) से ही मोक्ष सिधारे थे, तथा उनके पुत्र भरत कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) जाने के लिए ‘कुमाऊं’ के परंपरागत मार्ग को ही प्रयोग करते थे।

कहते हैं कि आर्यों ने लगभग आठ हजार वर्ष पूर्व कुमाऊं-उत्तराखंड के रास्ते हिमालय की अति दुर्गम पर्वत घाटियों का अन्वेषण करते हुए कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) तक यात्रा की थी, और विभिन्न नदियों के मूल स्रोतों की भी खोज की। इसी दौर में भगीरथ ने गंगा के उद्गम को ढूंढा। वशिष्ठ ने सरयू की और कौशिक ऋषि ने कोसी की खोज की।

वैदिक काल के चक्रवर्ती राजा मानधता ने यहां तप किया था। पांडवों के दिग्विजय प्रयाण के समय अर्जुन ने इस प्रदेश पर विजय प्राप्त की थी। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में इस प्रदेश के राजा ने उत्तम घोड़े, सोना, रत्न आदि उपहार भेंट किए थे।

आदि शंकराचार्य ने कैलाश पर्वत (Kailash Mansarovar) के समीप ही अपना शरीर त्याग किया था। कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) चार धर्मो-हिन्दू, बौद्ध, जैन और तिब्बत के स्थानीय बोनपा लोगों के लिए बेहद पवित्र स्थान है। कैलाश मानसरोवर की परंपरागत यात्रा उत्तराखंड के सीमावर्ती स्थान पिथौरागढ़ के धारचूला से शुरू होती है, और लिपुलेख दर्रे के जरिये 28 से 30 दिनों में चीन की सीमा में स्थित कैलाश मानसरोवर पहुंचती है।

हजारों वर्षो से यह परंपरागत मार्ग कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) यात्रा का शास्त्र सम्मत मार्ग भी माना जाता है। सदियों पुराने पुराणों में भी उत्तराखंड से होकर की जाने वाली कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) तीर्थयात्रा के इसी मार्ग को ही धार्मिक मान्यता दी गयी है। इसी मार्ग से भगवान शिव मां नंदा से मिलने आए थे तथा इस मार्ग से तीर्थ यात्रियों को छोटा कैलाश और ‘ऊं’ पर्वत आदि के दर्शन भी होते हैं।

महान इतिहासकार राहुल सांकृत्यायन ने भी काठमांडु की बजाय इसी मार्ग को मानसरोवर यात्रा के लिए चुना था। आज भी कैलाश और मानसरोवर (Kailash Mansarovar) यात्रा पर भारत से जाने के लिये अनेक रास्ते हैं परन्तु कैलाश मानसरोवर के सुप्रसिद्ध यात्री स्वामी प्रणवानंद इनमें से कुमाऊं में स्थित ‘‘लिपुलेख’ दर्रे को ही सबसे सुगम एवं सुरक्षित मार्ग मानते हैं। कूर्माचल पर्वत से शुरू पौराणिक ग्रथों में हिमालय यात्रा से जुड़े सभी तीर्थस्थान कैलाश मानसरोवर की परिक्रमा का हिस्सा माने गए हैं।

स्कन्दपुराण के अनुसार कुमाऊं को ‘मानसखंड’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह क्षेत्रा कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) की परिक्रमा के अन्तर्गत आता है। ‘मानसखंड’ में कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) को जाने और वापस आने दोनों यात्रा मागरे का जो भौगोलिक मानचित्र दिया गया है उसका शुभारम्भ उत्तराखंड में कुमाऊं स्थित कूर्मांचल पर्वत से ही होता है। धार्मिक दृष्टि से तीर्थस्थान की यात्रा वहीं से फलीभूत मानी जाती है जहां से उस यात्रा की सीमा शुरू होती है।

‘मानसखंड’ में कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) की यात्रा का शुभारम्भ बताते हुए महर्षि दत्तात्रेय कहते हैं- उत्तराखंड में पर्वतराज हिमालय के पादतल में स्थित ‘कूर्मांचल’ नाम की पर्वतश्रेणी वाले मार्ग से ही तीर्थयात्रियों को कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) की यात्रा शुरू करनी चाहिए- ‘गन्तव्यं तत्रा राजर्षे ! यत्र कूर्मांचलो गिरि:।’ उसके उपरान्त लोहाघाट स्थित कूर्मशिला का पूजन करके सरयू में स्नान करना चाहिए।

उसके आगे जागेश्वर, पाताल भुवनेश्वर, रामगंगा, सीरा की पट्ठी स्थित पावन पर्वत, कनाली छीना के पास पताका पर्वत, काली गौरी संगम (जौलजीवी) चतुर्दंष्ट्र (चौंदास), व्यासाश्रम (ब्यांस), काली नदी का मूल, ब्यांस-चौंदास के बीच पुलोमन पर्वत आदि तीर्थस्थानों के दर्शन करते हुए गौरी पर्वत से नीचे उतर कर मानसरोवर के पवित्र जल में स्नान करना चाहिए।

वापस लौटने के मार्ग को बताते हुए महर्षि दत्तात्रेय कहते हैं कि मानसरोवर की परिक्रमा करके रावणद (राक्षसताल) में स्नान करना चाहिए। तत्पश्चात् स्नेचरतीर्थ तथा ब्रताकपाल तीर्थ की पूजा-अर्चना करके निर्गमन करना चाहिए।

भारतीय परंपरा के अनुसार संसार में देवतात्मा हिमालय जैसा अन्य कोई पर्वत नहीं है क्योंकि यहां कैलाश पर्वत और मानसरोवर (Kailash Mansarovar) स्थित है। कैलाश पर्वत की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 20 हजार फीट है। कुल 48 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इसकी परिक्रमा कैलाश की सबसे निचली चोटी दारचेन से शुरू होती है और सबसे ऊंची चोटी डेशफू गोम्पा पर पूरी होती है।

यहां से कैलाश पर्वत (Kailash Mansarovar) के दर्शन ऐसे होते हैं, मानो भगवान शिव साक्षात् बर्फ से बने शिवलिंग के रूप में विराजमान हों। कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) को शिव-पार्वती का घर माना जाता है।

मानसरोवर संस्कृत के मानस (मस्तिष्क ) और सरोवर (झील) शब्द से बना है। मान्यता है कि ब्रह्मा ने अपने मन-मस्तिष्क से मानसरोवर बनाया है। पुराणों के अनुसार मानसरोवर झील की उत्पत्ति भगीरथ की तपस्या से भगवान शिव के प्रसन्न होने पर हुई थी। समुद्रतल से 17 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित 120 किलोमीटर की परिधि तथा 300 फुट गहरे मीठे पानी की ऐसी अद्भुत प्राकृतिक झील इतनी ऊंचाई पर विश्व में किसी भी देश में नहीं है।

शाक्त ग्रंथों के अनुसार, सती का हाथ इसी स्थान पर गिरा था, जिससे यह सरोवर बना। इसलिए 51 शक्तिपीठों में मानसरोवर की भी गणना की जाती है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति मानसरोवर की धरती का स्पर्श कर लेता है, वह ब्रह्मा के बनाये स्वर्ग में पहुंच जाता है और जो व्यक्ति सरोवर का जल पी लेता है, उसे भगवान शिव के बनाये स्वर्ग में जाने का अधिकार मिल जाता है।

कैलाश पर्वत (Kailash Mansarovar) की परिक्रमा के दौरान एक किलोमीटर परिधि वाले गौरीकुंड के भी दर्शन होते हैं। इस कुंड के पवित्र जल में स्नान करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहां अन्य प्रसिद्ध सरोवर राक्षस ताल है। राक्षसों के राजा रावण ने यहां पर शिव की आराधना की थी। इसलिए इसे रावणद भी कहते हैं।

शिव और शक्ति का धामकैलाश-मानसरोवर (Kailash Mansarovar) उतना ही प्राचीन है, जितनी प्राचीन हमारी सृष्टि है। इस अलौकिक जगह पर प्रकाश तरंगों और ध्वनि तरंगों का अद्भुत समागम होता है जिसके प्रभाव से मन और हृदय दोनों निर्मल हो जाते हैं। स्थान-स्थान पर नदी प्रपातों के दूधिया झरने, हरियाली के अद्भुत नजारे तथा नवी ढांग में पर्वत शिर पर हिम नदियों से बने पर्वत जैसे प्राकृतिक चमत्कारों ने इस पावन स्थल को शिव और शक्ति का रहस्यमय लीला धाम बना दिया है।

तीर्थयात्री जब पहली बार इन प्रकृति के अद्भुत दृश्यों का दर्शन करते हैं तो ऐसा लगता है कि वे प्रकृति और पुरुष के रूप में शिव और उनकी अर्धागिनी पार्वती के साक्षात् दर्शन कर रहे हों। तब सहज ही भारतीय दर्शन के ब्रता और माया से जुड़े उन गूढ आध्यात्मिक और दार्शनिक सत्यों का उद्घाटन भी इस अनुपम कैलाश-मानसरोवर (Kailash Mansarovar) की यात्रा के दौरान होने लगता है

जिसके अनुसार ‘ताश्वतरोपनिषद्’ में ‘माया’ को मूल प्रकृति और उसके अधिष्ठाता महेश्वर को ‘ब्रह्मा’ के रूप में निरूपित किया गया है ‘मायां तु प्रकृतिं विद्यान्मायिनं तु महेश्वरम्’।

भारतीय परंपरा में पैदल मार्ग से कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) की तीर्थयात्रा को पैदल करने का जो महात्म्य है वैसा महात्म्य वाहन से यात्रा करने का नहीं। धार्मिक दृष्टि से तीर्थयात्रा का प्रयोजन होता है अत्यन्त श्रद्धा भाव से प्रकृति परमेश्वरी की शरण में जाना। इसीलिए ये तीर्थस्थान सार्वजनिक स्थानों से दूर प्रदूषण फैलाने वाले मोटर वाहनों की पहुंच से बाहर ऊंचे पहाड़ों पर बने होते हैं

ताकि श्रद्धालु जन पैदल चल कर प्राकृतिक वृक्षों-वनस्पतियों का निरीक्षण करते हुए मार्ग में पड़ने वाले सांस्कृतिक अवशेषों ऋषि-मुनियों के आश्रमों तपोवनों आदि के दर्शन कर सकें और नदी-सरोवरों में स्नान करके अपने आराध्य देवी-देवताओं के चरणों में आस्था के पुष्प चढ़ा सकें।

शास्त्रों में कहा गया है कि जिनमें श्रद्धा नहीं है जो पाप कर्मो के लिए तीर्थसेवन करते हैं, जो नास्तिक हैं, जिनके मन में संदेह है, जो सैर-सपाटे और मौजमस्ती के लिए या किसी निहित स्वार्थ से तीर्थभ्रमण करते हैं- इन पांचों को तीर्थयात्रा का फल नहीं मिलता। सवारी तीर्थयात्रा का आधा फल हर लेती है। उसका आधा भाग छत्र और जूते इत्यादि धारण करने से समाप्त हो जाता है।

व्यापार से तीन-चौथाई भाग नष्ट हो जाता है तथा प्रतिग्रह तीर्थयात्रा के सारे पुण्य को क्षीण कर देता है। पर चिन्ता का विषय है कि वर्तमान समय में तीर्थयात्रा के मायने ही बदलते जा रहे हैं। अब धार्मिक पर्यटन का मतलब हो गया है सैर-सपाटा या पिकनिक मनाना। धर्म के नाम पर उपभोक्तावादी बाजारवाद धार्मिक आस्था पर हावी हो चुका है।

कहीं से भी आएं, आना पड़ता है उत्तराखंड के ही करीब

नैनीताल। केएमवीएन के मंडलीय प्रबंधक पर्यटन-डीके शर्मा कहते हैं कैलाश यात्रा के उत्तराखंड के अलावा अन्य भी कई मार्ग पहले से भी प्रचलित हैं। नेपाल के रास्ते भी वर्षों से बेहद आसान तरीके से महंगी लग्जरी-लैंड क्रूजर गाड़ियों और हवाई यात्रा के जरिए बेहद सुविधाजनक व आरामदेह तरीके से यात्रा होती है, लेकिन उत्तराखंड के रास्ते लिपुपास के मार्ग को ही पौराणिक मार्ग की मान्यता है।

कहते हैं इसी रास्ते स्वयं महादेव शिव भी देवी पार्वती के साथ कैलाश गए थे। इस मार्ग से ही पैदल ट्रेकिंग करते हुए धार्मिक यात्रा का पूरा आनंद व दिव्य अनुभव प्राप्त होते हैं, साथ आदि या छोटा कैलाश कहे जाने वाले हिंदू धर्म के सबसे बड़े धार्मिक प्रतीक ‘ॐ” की बर्फ के पहाड़ पर प्राकृतिक रूप से बनी आकृति युक्त ॐ पर्वत के दर्शन भी होते हैं।

श्री शर्मा इसके अलावा भी बताते हैं कि किसी भी अन्य मार्ग से यात्रा के आखिरी पड़ाव में उत्तराखंड के लिपुपास दर्रे के बेहद करीब चीन में पड़ने वाले तकलाकोट ही आना पड़ता है। नाथुला की यात्रा में भी यात्रियों को एक बार पूरा भारत देश हवाई मार्ग से पार कर पहले सुदूर अरुणांचल और वहां से कारों से पूरा नेपाल देश पार करते हुए तकलाकोट ही आना पड़ेगा, जो एक थकाने वाला अनुभव हो सकता है। इस लिहाज से भी उत्तराखंड के रास्ते होने वाली परंपरागत यात्रा को सर्वाधिक सरल माना जा रहा है।

चीन में भी बसता है एक भारत

-कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) यात्रा मार्ग में मिलते हैं कई हिंदू धार्मिक स्थल
जी हां, भारत के धुर विरोधी और बड़ा खतरा बताये जाने वाले देश में भी एक भारत बसता है। देवों के देव कहे जाने वाले महादेव शिव के धाम कैलाश और मानसरोवर (Kailash Mansarovar) यात्रा के दौरान चीन के क्षेत्र में ऐसे ही एक भारत के दर्शन श्रद्धालु तीर्थयात्रियों को अभिभूत कर देते हैं।

आज के एशिया महाद्वीप में जहां भारत एवं चीन आपस में प्रतिद्वंद्वी माने जाते हैं, लेकिन इससे इतर प्राचीन काल में दोनों के बीच काफी घनिष्ठ व प्रगाढ़ संबंध बताये जाते हैं। भारत के लुंबिनी (उप्र) में पैदा हुऐ गौतम बुद्ध द्वारा प्रतिपादित बौद्ध धर्म के श्रीलंका के साथ चीन में प्रसार इसका गवाह है। चीनी तीर्थयात्री फाह्यान ने भारत की सैर की।

(Kailash Mansarovar) लेकिन इससे भी इतर चीन में हिंदू धर्म के सबसे बड़े आस्था केंद्र कैलाश-मानसरोवर (Kailash Mansarovar) के साथ ही और भी कई केंद्र मौजूद हैं, जिन्हें दो देशों में संयुक्त रूप से होने वाली और विश्व की सबसे पुरानी यात्राओं में शुमार कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) यात्रा के दौरान देखा जा सकता है।

इस यात्रा की भारत में आयोजक संस्था कुमाऊं मंडल विकास निगम के मंडलीय प्रबंधक पर्यटन एवं आधा दर्जन बार इस यात्रा पर तैयारियों का जायजा लेने जा चुके डीके शर्मा चीन में इस अनूठे भारत को याद कर स्वयं को गौरवांवित महसूस करते हैं।

श्री शर्मा बताते हैं कि चीन में यात्रियों को करीब आठ दिन बिताने होते हैं। भारत के अंतिम यात्रा पड़ाव लिपुपास से करीब तीन किमी आगे लिमिकारा या पांच किमी दूर पाला से चीनी वाहन यात्रियों को आगे की यात्रा कराते हैं।

आगे पहला पड़ाव 14 किमी दूर तकलाकोट है, जहां चीन अब पॉली हाउस में भारतीय सब्जियां टमाटर, गोभी इत्यादि उगाता है। यह सब्जियां यात्रियों को घर जैसे भोजन का स्वाद तो दिलाती ही हैं, भारतीय सीमावर्ती क्षेत्रों में भी बहुतायत में पहुंचती और प्रयोग की जाती हैं। यहां चीन की नागरी टूरिस्ट कंपनी यात्रियों के आवास एवं भोजन का प्रबंध करती है। यात्रियों को भारतीय दाल, रोटी, सब्जी जैसे भोजन भी 80 के दशक से मिलने लगे हैं।

आगे 80 किमी दूर कैलाश पर्वत के यात्रा पथ में दारचेन में तथा कीहू में मानसरोवर यात्रा पथ का अगला रात्रि विश्राम पड़ाव होता है। दारचेन से 22 किमी की दूरी पर स्थित डेराफू नाम के स्थान से कैलाश पर्वत के अलौकिक दर्शन होते हैं।

खासकर चांदनी रात में श्वेत-धवल बर्फ से ढके विशाल कैलाश पर्वत का नजारा मनुष्य को किसी अन्य लोक जैसा पारलौकिक अनुभव कराता है। यहां से यात्री आठ-नौ किमी दूर 18,600 फीट की ऊंचाई पर स्थित डोल्मा पास, छह किमी दूर जुटुल पुक व 15 किमी चलकर कुल 48 किमी का कैलाश पर्वत का चक्कर लगाकर वापस दारचेन पहुंचते हैं।

डोल्मा पास में तारा देवी का पवित्र मंदिर है, जिसे नेपाल में उग्र तारा के रूप में पूजा जाता है, और उत्तराखंड में चंदवंशीय राजाओं की कुलदेवी नंदा देवी को कुछ मान्यताओं के अनुसार इस देवी से जोड़ा जाता है। डोल्मा पास में बौद्ध धर्मानुयायी तारा देवी के अनन्य भक्त हैं, वह बेहद ठंडे इस स्थान पर पैरों के बजाय लेट कर इस स्थान की यात्रा करते हैं। डोल्मा पास के पास ही गौरीकुंड तथा यमद्वार नाम के पवित्र धार्मिक स्थान भी हैं, जो हिंदूओं की धार्मिक आस्था के बड़े केंद्र हैं।

हां खुरजड़ या खोजड़नाथ नाम के स्थान पर भगवान राम, लक्ष्मण एवं सीता का मंदिर भी है, इसमें भी बौद्ध धर्म के लोग पूजा-अर्चना करते हैं। कैलाश पर्वत के आगे के हिस्से में अष्टपाद नाम का पर्वत भी है, कई तीर्थयात्री समय निकालकर यहां भी पहुंचते हैं। मानसरोवर से भी दिखाई देने वाले इस स्थान की भी बड़ी धार्मिक मान्यता बताई जाती है। यहां बौद्ध धर्म का मंदिर गोम्फा भी स्थित है।

उधर मानसरोवर के यात्रा पथ में कीहू से कूहू होते हुऐ मानसरोवर का चक्कर लगाते हुऐ 74 किमी चलना होता है। यहां सरोवर में राजहंस बतखें बेहद सुंदर लगती हैं। श्री शर्मा बताते हैं कि पूरा कैलाश-मानसरोवर (Kailash Mansarovar) यात्रा पथ अपने आप में अलौकिक है। यहां जगह-जगह पर तीर्थयात्रियों को अलौकिक एवं दिव्य अनुभूतियां होती हैं, और तीर्थयात्रियों का मन मानो पूरी तरह धुल जाता है।

‘हाई टेक’ होते जमाने में भी आस्था का कोई विकल्प नहीं

‘हाई टेक’ होते जमाने में भी आस्था का कोई विकल्प नहीं है। आज भी दुनिया में यह विश्वास कायम है कि ‘प्रभु’ के दर्शन करने हों तो कठिन परीक्षा देनी ही पड़ती है। ज्ञातव्य हो कि कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) यात्रा तीन देशों (भारत, नेपाल और चीन) के श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़ी विश्व की एकमात्र व अनूठी पैदल यात्रा है।

उत्तराखंड का मार्ग पौराणिक मार्ग है। कहते हैं इसी मार्ग से पांडव भी कैलाश गए थे। यात्रा मार्ग में पड़ने वाले पांडव व कुंती पर्वतों के साथ ही स्कंद पुराण के मानसखंड में इसकी पुष्टि होती है।

इस यात्रा के दौरान करीब 230 किमी की पैदल दूरी (भारतीय क्षेत्र में 60 एवं चीनी क्षेत्र में करीब 150 किमी) चलनी पड़ती है, जिसमें से चीनी क्षेत्र के अधिकांश मार्ग में वाहन सुविधा भी उपलब्ध है। भारतीय क्षेत्र में भी करीब आधे मार्ग में बीआरओ के द्वारा सड़क बन चुकी है। इस पौराणिक मार्ग से तीर्थ यात्रियों को प्राकृतिक रूप से ‘ॐ पर्वत’ के दर्शन भी होते हैं,

साथ ही हिमालय को करीब से निहारने यहां की जैव विविधता व सीमांत क्षेत्र के जनजीवन को जानने-समझने का मौका भी मिलता है। इस मार्ग को पास किया जाने वाला लिपुपास दर्रा भारत-चीन के बीच का सबसे आसान दर्रा भी माना जाता है।

2014 में सिक्किम के नाथुला दर्रे से नया मार्ग खुलने के बावजूद प्रकृति प्रेमी, पैदल ट्रेकिंग के इच्छुक युवा एवं धार्मिक, आध्यात्मिक भावना वाले यात्री अभी भी पौराणिक मार्ग से ही यात्रा करना पसंद करते हैं। इनकी वजह से भी मौजूदा पौराणिक मार्ग की यात्रा को कोई नकारात्मक प्रभाव देखने को नहीं मिला है।

कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) यात्रा ने छुवा रिकार्ड का नया ‘शिखर’

-1981 से शुरू हुई यात्रा में 2013 को छोड़कर लगातार बन रहे हैं रिकार्ड, 2010 में 754, 11 में 761, 12 में 774 और 2014 में गए 909 यात्री 
डॉ.नवीन जोशी, नैनीताल। ‘हाई टेक’ होते जमाने में भी आस्था का कोई विकल्प नहीं है। आज भी दुनिया में यह विश्वास कायम है कि ‘प्रभु’ के दर्शन करने हों तो कठिन परीक्षा देनी ही पड़ती है। शायद इसीलिए हिंदुओं के साथ ही

जैन, बौद्ध, सिक्ख और बोनपा धर्म के श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र, विश्व की सबसे कठिनतम और प्राचीनतम पैदल यात्राओं में शुमार 1,700 किमी लंबी कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) की यात्रा में हर वर्ष यात्रियों की संख्या के नऐ रिकार्ड बनते जा रहे हैं।

2017 की यात्रा में 18 दलों में 919 यात्री शामिल हुए, जबकि अब तक का रिकार्ड वर्ष 2014 में 909 यात्रियों का था। गौरतलब है कि इस वर्ष चार बैचों के यात्रा में शामिल होने से पूर्व यात्रा के मांगती व मालपा पड़ावों पर जबर्दस्त आपदा आ गयी थी,

जिसमें दर्जन भर लोगों की मृत्यु एवं इससे अधिक लोग अब भी गायब हैं। इस कारण आखिरी चार दलों में 60 यात्रियों की क्षमता के सापेक्ष केवल 37, 47, 40 व 34 यात्री ही शामिल हुए, अन्यथा रिकार्ड और अधिक यात्रियों का हो सकता था। 

तीन दलों से शुरू हुई थी यात्रा
यात्रा के इतिहास पर गौर करें तो कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) यात्रा वर्ष 1981 में तीन दलों में मात्र 59 यात्रियों के साथ लेकर शुरू की गई थी। 1992 तक अधिकतम सात दल ही यात्रा पर जा सकते थे। इसके बाद दलों की संख्या बढ़ी। 1999 में 15 दलों में 459 यात्री कैलास गये। उत्तराखंड राज्य बनने तक एक-दो मौकों को छोड़कर यात्रियों की संख्या 500 से नीचे रही।

राज्य बनने के वर्ष 2000 से यात्रियों की अधिकतम संख्या 16 तक बढ़ाई गयी। लेकिन हालिया वर्षों में लगातार यात्रा में आने वाले सैलानियों की संख्या बढ़ती जा रही है। वर्ष 2007 में तब तक के सर्वाधिक 674 यात्री शिव के धाम कैलाश गये थे।

किंतु वर्ष 2008 में चीन की दखलअंदाजी के कारण केवल 10 दलों में 401 यात्री ही यात्रा पूरी कर पाऐ थे। जबकि आगे 2010 में यह आंकड़ा 754 यात्रियों तक पहुंचा, और एक नया रिकार्ड बना। 2011 में पुनः यह रिकार्ड भी टूटा और 761 तीर्थ यात्री कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) की यात्रा पर पहुंचे। इधर 2012 से 18 दल भेजे जा रहे हैं, अलबत्ता 2013 में केवल एक दल के 51 यात्री ही यात्रा पूरी कर पाऐ।

जबकि वर्ष 2012 में 774 तीर्थ यात्रियों ने इस यात्रा पर जाकर रिकार्ड का नया शिखर छुआ था। 2013 में भीषण आपदा की वजह से केवल एक दल ही यात्रा पूरी कर पाया, इस कारण यात्रा कमोबेश पूरी तरह बाधित रही। 2014 में 909 यात्रियों का रिकार्ड बना। 2015 में नाथुला के रास्ते भी कैलास यात्रा का मार्ग खुल गया, जिससे यात्रियों की संख्या में कुछ कमी आई। 2015 में 783 और 2016 में 715 यात्री कैलास की यात्रा पर गये।

ज्ञातव्य हो कि कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) यात्रा तीन देशों (भारत, नेपाल और चीन) के श्रद्धालुओं की आस्था से जुड़ी विश्व की एकमात्र व अनूठी पैदल यात्रा है। पड़ोसी राष्ट्र चीन के रास्ते भारत व नेपाल से इस हेतु अलग अलग यात्राओं का संचालन होता है। नेपाल के रास्ते काफी आसान व लग्जरी क्रूज वाहनों से यात्रा होती है, जबकि भारत से होने वाली कठित यात्रा की जिम्मेदारी 1981 से कुमाऊं मंडल विकास निगम- केएमवीएम के पास है। 

केएमवीएन के आतिथ्य को जाता है श्रेय

Kailash Mansarovar Treak
Kailash Mansarovar Treak

नैनीताल। विश्व की कठिनतम कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) की पैदल यात्रा में लगातार सैलानियों की संख्या में वृद्धि का श्रेय पूरी तर कुमाऊं मंडल विकास निगम को जाता है। यात्रा में निगम ही यात्रियों को दिल्ली से लेकर चीन की सीमा तक ले जाता एवं उनके आवास व भोजन तथा सामान एवं यात्रियों को लाने-लेजाने के लिए पोनी-पोर्टर आदि की पूरी जिम्मेदारी निभाता है। निगम के एमडी दीपक रावत ने बताया कि कैलाश मानसोवर (Kailash Mansarovar) यात्रा देश के साथ ही निगम के लिये भी प्रतिष्ठा का प्रश्न होती है। इसका पूरा खयाल रखा जाता है। 

हर पैदल शिविर पर दोगुनी होंगी आवासीय सुविधा
नैनीताल। केएमवीएन के एमडी ने आने वाले वर्षों में यात्रियों की संख्या में दो गुनी तक बढ़ोत्तरी होने की संभावना जताई है। बताया कि कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarovar) यात्रा पथ के पैदल पड़ावों में सुविधाओं के विस्तार के लिए एडीबी सहायतित योजना से 26 करोड़ रुपए प्राप्त हुए हैं।

इससे सभी सिरखा, गाला, बुदी, गुंजी, कालापानी व नाभीढांग पैदल शिविरों में पांच से 10 तक नए हट्स बनने जा रहे हैं, इससे हर शिविर में आवासीय सुविधा अब तक की दोगुनी हो जाएगी। (डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य एवं अधिक पढ़े जा रहे ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। यदि आपको लगता है कि ‘नवीन समाचार’ अच्छा कार्य कर रहा है तो हमें सहयोग करें..

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