April 24, 2024

हरीश रावत की रायता पार्टी स्थगित, पर लीजिए पहाड़ी ककड़ी के ‘अल्मोड़िया रायते’ के लिए ‘चंद बरदाई’ बने रावत के रायते व रायता फैलाने वालों पर एक बेहद रोचक लेख का स्वाद..

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नवीन समाचार, नैनीताल , 27 सितंबर 2.19। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपनी 28 सितंबर को प्रस्तावित व बहु प्रचारित ककड़ी-रायता पार्टी अगले वर्ष तक के लिए स्थगित कर दी है। अलबत्ता, एक लेख के जरिये उन्होंने रायते, रायता फैलाने वालों, रायते के शौकीनों आदि पर एक रोचक लेख लिखा है। हर श्री रावत के उस लेख को यथावत यहां प्रस्तुत कर रहे हैं।

….रायता….

हरीश रावत

रायता भारतीय व्यंजन श्रृंखला का समन्वयक है। मगर राजनीति में रायता, एक कुख्यात शब्द है। कई ऐतिहासिक नाम रायता फैलाने की कला में पारंगत रहे हैं। नारदमुनि जी से डॉ. सुब्रमन्यम स्वामी जी तक, कई नाम तो कालजई हैं। यहां मैं रायता फैलाने वालों के बजाय, रायते के स्वादों पर बात करना चाहता हॅू। यूं बूंदी का रायता, लौकी, खीरा, मूली, प्याज, ककड़ी कई नामदार उत्पादों का स्वाददार रायता भारतीय रसोई हो या रैस्ट्रा, भोजनालय हो या लोगों की खाने की टेबल, सबकी शोभा व स्वाद बढ़ाता है। हर रायते के अपने प्लस हैं, मगर छोटे-बड़े हर भोज में, रायते की हनक रहती ही है। मेरे लेख की विषय वस्तु पहाड़ी ककड़ी का रायता है। ककड़ी मुझे बचपन से उपकृत करती आ रही है। आज भी इस लेख को लिखने के लिये कलम उठने से पहले, मैंने एक हरी पतली पहाड़ी ककड़ी का पूर्ण स्वाद लिया है। हरी मिर्च के नमक के साथ ककड़ी का जायका, कुछ और ही हो जाता है। मैंने एक साथ अमरूद व मूली खाने सरीखा आनन्द उठाया है। धन्य हो ककड़ी, बचपन से आज तक मेरा व तुम्हारा गठबन्धन बना हुआ है। एक भारतीय दम्पति सरीखा है, हमारा रिश्ता। जितनी तेज मिर्च-नमक, उतना बड़ा चटखारा, आंसू भले ही आ जाय, ककड़ी से थोड़ी भी शिकायत नहीं। रायते के तो क्या कहने, मैं रायते की प्रशन्सा में चन्द बरदाई को भी पीछे छोड़ सकता हूॅ, रायता है ही अद्भुत।

चुनाव प्रचार के दौरान हरीश रावत बेतालघाट में, साथ में केवल सुरक्षा कर्मी, और कोई नहीं !

मेरा पहला साक्षात्कार ककड़ी से हुआ या रायते से, मैं नहीं जानता। मगर एक तथ्य जानता हूॅं, ककड़ी से गहरी दोस्ती है और रायते से पत्नी की तरह प्यार है। मैं अन्दाज से कह सकता हॅू, सर्वप्रथम मॉं ने मुझे अन्नप्राशन के वक्त रायता चखाया होगा और तब से एक आदर्श हिन्दू पति की तर्ज पर प्यार चला आ रहा है। समय के साथ गहरा होता जा रहा है। यूं खीरे का भी रायता बनता है, मगर पहाड़ी ककड़ी का रायता अद्भुत गुणी है। ककड़ी जितनी पुरानी होगी, रायता उतना ही गुणकारी होगा। सामान्यतः ककड़ी जुलाई, अगस्त से सितम्बर, अक्टूबर तक खूब मिलती है। कुछ उद्यमी लोग अप्रैल के महिने में भी ककड़ी बाजार में ले आते हैं। मुंह मांगे दाम मिल जाते हैं, रानीखेत के निकट गगास क्षेत्र के लोग अप्रैल के प्रारम्भ में ही ककड़ी, लौकी, तुरई आदि सब्जियां रानीखेत बाजार में ले आते हैं। सिलोर क्षेत्र के कुछ गॉव भी इस क्षेत्र में अच्छा कर रहे हैं। इस वर्ष मेरे गॉव के मार्केट भतरौजखान में अप्रैल-मई में पीली ककड़ियां आ गई थी। कुछ उद्यमी लोग पॉली हाऊस में ककड़ी पैदा करने लगे हैं। मगर ककड़ी का सामान्य समय जुलाई मध्य से दिवाली के वक्त तक है। अक्टूबर माह के बाद हरी ककड़ी नहीं मिलती है, हॉ पीली ककड़ी से बाजारों की दुकानें अटी पड़ी रहती हैं।

8 जुलाई को अपने हाथों से त्रिवेन्द्र रावत को आम खिलाते हरीश रावत.

वर्षों पहले गॉंवों में ककड़ी को सन की बनी रस्सियों के झावे में, मकान के बाहर छायादार जगह में टांग देते थे। कभी त्यौहार पर मेहमान के आने पर राजसी-भोज के तौर पर, ऐसी टंगी हुई ककड़ी का रायता बनाया जाता था। अब भी दूर-दराज के गॉंवों में यह परम्परा है। आपके घर में गाय-भैंस हों और ककड़ी हो, तो मेहमान कितने भी आ जाय, चिन्ता नहीं। गॉव-घर में अच्छी मेहमान नवाजी हो जाती है। कहीं-2 ककड़ी को कोर कर उसके रेसों को खूब सूखा कर गठरी में रख लेते हैं,समय आने पर रायता बनाकर स्वाद लेते हैं। कुछ लोग ककड़ी की बड़ियां बनाकर रख लेते हैं। बड़ी-भात का जायका कभी नहीं भूला जा सकता है। ककड़ी में 70 प्रतिशत हिस्सा पानी होता है, और 30 प्रतिशत हिस्सा फाईवर, बीज व छिल्का होता है। ककड़ी का पानी भी औषधीय रूप से गुणकारी है। पेट की व्याधि में ककड़ी के गूदे या पानी का बड़ा उपयोग है। इसके पानी से नियमित मुंह धोने से चेहरे की झुरियां हट जाती हैं। छिलके को पीसकर, उसका चेहरे पर लेपन उपयोगी होता है। ककड़ी के बीज में सहज पाच्य प्रोेटीन बड़ी मात्रा में होता है। ककड़ी माईक्रो मिनरल्स का भण्डार है। अब आप ही बताईये, ऐसी गुणकारी ककड़ी का रायता कितना लाभकारी नहीं होगा।
रायते का स्वाद बनाने की विधि पर निर्भर है। मैं व्यंजन विशेषज्ञ नहीं हॅूं, परन्तु अलग-2 लोगों के बनाये व अलग-2 स्थानों के रायते पर, मैं बहुत कुछ लिख सकता हॅू। मेरे नाना जी दो प्रकार का रायता बनाते थे, एक सामान्य रायता, जो उस दिन विशेष के खाने के लिये बनता था, ककड़ी कोर कर रेसों को सामान्य तौर पर निचोड़ देते थे, फिर दही, नमक, मिर्च, रांई, कभी-2 मूली के छोटे-2 टुकड़े मिलाकर परोस दिया जाता था। एक रायता विशेष बनता था। पहले दिन शाम को कपड़े की पोटली में दही रखकर, उसे टांग देते थे। रात भर दही का पानी टपक कर निकल जाता था। इस पानी का उपयोग झोली (एक प्रकार की कढ़ी) बनाने के लिये किया जाता था। नाना जी सुबह-2 दो-तीन पीली ककड़ियां काटकर उनको बारीक रेशों के रूप में कोरते थे, फिर सभी रेशों को जमकर निचोड़ा जाता था। नाना जी यह सुनिश्चित करते थे कि, रेशों में पानी न रह जाय। फिर धनिये या लहसन का नमक पीसकर डालते थे। एक अच्छी मात्रा रांई पीसकर डाली जाती थी, फिर अन्त में दही को जिसका पानी पूर्णतः निचुड़ चुका होता था, ककड़ी के रेशों में फैंटकर मिलाया जाता था। ककड़ी का इस प्रकार बना रायता दो-तीन दिन चलता था। घर के सब लोग कलेवे की रोटी में इसी रायते का उपयोग करते थे। बिना रोटी के खाने में रायता इतना तीखा होता था कि, आंखों में आंसू आ जाते थे। नाना जी के रायते में सब कुछ स्पेशल होता था। ऐसा ही रायता ‘कमल दा’ भी बनाते थे। कमल दा का नाम इतना फेमस था कि, उनके बच्चे भी उन्हें ‘कमल दा’ ही कहते थे। वैसे दुनियां उन्हें नेता जी कहती थी। डॉ. राममनोहर लोहिया हॉस्पिटल के नर्सिंग होम के किचन में काम करते थे। उनका काम स्वाद चखना व नर्सिंग होम में भर्ती नेताओं को गुड ह्यूमर में रखना होता था। नेताजी पूर्णतः खद्दर धारी थे, सफेद टोपी में नेताजी की दरम्यानी कद-कांठी, उन्हें एक दर्शनीय नेता बनाती थी। देश के सभी छोटे-बड़े नेता, उन्हें जानते थे। लगभग अनपढ़ थे, मगर दिल्ली में उत्तराखण्डियों के प्रत्येक समारोह की नेता जी शोभा होते थे। मानिला के रहने वाले नेता जी की ही प्रेरणा से हम, मानिला में डिग्री कॉलेज सहित कई संस्थायें खोल पाये। नेता जी इन्दिरा गॉधी जी के परम भक्त थे। इन्दिरा जी उन्हें, मानिला के नेताजी कहती थी। नेता जी दिवाली से पहले, टिफन के एक डिब्बे में इन्दिरा जी, एक डिब्बे में स्व. श्री के.सी. पन्त व मेरे लिये रायता भेजते थे। नेताजी के रायते को देखते हुये, मुझे बचपन में खाये नानाजी के रायते की याद आ जाती थी। मेरा छोटा बेटा दीपू (दिग्विजय रावत) अब तक नेता जी के रायते को याद करता है। नेताजी रांई व दही का ऐसा उपयोग करते थे कि, उनका रायता इन्दिरा जी के लिये स्पेशल हो जाता था।
अल्मोड़िया रायता, उत्तराखण्ड के व्यंजनों की एक सशक्त पहचान है। आज भी है। उत्तराखण्डी ककड़ी व ककड़ी का रायता, काफल व नींबू की सन्नी, वाह जो इन नाम से परिचित है, यदि मुंह में पानी न आये, तो उत्तराखण्डी नहीं है। ककड़ी व रायते में पेट का सम्पूर्ण इलाज है। कुलाईटीस से लेकर डाईबिटीज तक का ईलाज ककड़ी व काफल है। पीला पहाड़ी नीबूं,बिटामिन ‘बी’ व माईक्रो मिनरल्स का खजाना है। 6 माह सेवन करिये, फिर देखिये आप भी मेरी तरह, इनके गुणों के ढोलची बन जायेंगे। भगवत कृपा से ये सभी प्राकृतिक रूप से हमें उपहार में प्राप्त हैं। हम इन उपहारों से दूसरों को कैसे परिचित करवायें, यह बड़ा प्रश्न है। दो अनपढ़, मगर धूप में परखे इंसान हमें रास्ता दिखाते हैं। मेरे नाना स्व. नर सिंह जी व कमल दा हीत बिष्ट, दोनों ने अपने-2 तौर पर अपनी स्पेसियेलिटीज का प्रचार व प्रसार किया। मेेरे नाना जी के रायते पर सब रिश्तेदार टूट पड़ते थे, वे औरों को भी खिलाते थे। कमल दा ने इन्दिरा जी व के.सी. पन्त जी तक उत्तराखण्डी रायता पहुंचाया। गरमपानी में वर्षों पहले तक एक तिवारी जी यह बताते नहीं अघाते थे कि, एक बार अल्मोड़ा जेल में बन्दी पंडित जवाहर लाल नेहरू, जो जेल बन्दी के रूप में, भवाली सेनीटोरियम में भर्ती, अपनी पत्नी श्रीमती कमला नेहरू को देखने जाते वक्त गरमपानी में रूके थे और उन्होंने गरमपानी के पकोड़े व रायता खाया था। खैर नेहरू जी ने रायता खाया, यह तिवारी जी पकोड़े वालों का कथानक था। स्व. शीला दीक्षित जी ने तो स्वयं मुझसे एक से अधिक बार गरमपानी के आलू, रायता व खीम सिंह मोहन सिंह की बाल मिठाई व सिंगौड़ियों का जिक्र किया। कई पर्यटक जब मुझे यदा-कदा मिल जाते हैं, तो कोशी व टोटाम तथा भतरौजखान के रायते व आलू, पकोड़ियों का भी प्रशंसापूर्ण जिक्र करते हैं। कुछ लोग बिहारीगढ़ की पकोड़ियों का जिक्र करते हैं। हम अपनी विरासतपूर्ण पहचानों में आधुनिकता के हिसाब से कितना सुधार ला रहे हैं, हमें सोचना है।
प्रकृति बड़ी उदार है, सबको कुछ विशेष देती है। हमें तो उसने कई विशेष उपहार दिये हैं। हम अपने प्रकृतिजन्य उत्पादों के यथार्थ गुणों को लोगों के सम्मुख लाने में संकोच करते हैं। क्या हमारी ककड़ी को, खीरे से शर्माना चाहिये। हमारी ककड़ी सामान्य सलाद के खीरे से आगे खड़ी है। अपने समस्त औषधीय गुणों के साथ कल्याणकारी है। मगर हम भूल गये हैं, अपनी धरती की उत्पादित खाद्य पदार्थों को। काफल, हिसालूं व किल्मोड़ा, तीनों प्राकृतिक उत्पाद हैं। वृक्ष या झाड़ियों के रूप में एक मौसम विशेष में एक से डेढ़ माह के अन्तराल में उपलब्ध होते हैं, औषधीय गुणों से परिपूर्ण हैं। इस वर्ष मैंने देहरादून, हरिद्वार व हल्द्वानी में ठेली लगाकर काफल बिकते देखे। सड़कों के किनारे बच्चे भी स्ट्रोवेरी की तरह, काफल बेचते दिखे। लोग अब काफल के वृक्षों की रक्षा करने लगे हैं। अभी लोगों का ध्यान हिसालूं, किल्मोड़ा, पहाड़ी आड़ू, बेड़ू, तिमला व मेहलू की तरफ नहीं है। इन सब में गजब के औषधीय गुण हैं। तिमला में तो केंसर रोधक तत्व पाये जाते हैं। यही स्थिति पहाड़ी कद्दू व तुमड़े की है, ये सब मौसमी उत्पाद हैं। हम इनकी खपत बढ़ायेंगे तभी इनका उपयोग प्रचारित होगा। मेरे सामान्य प्रयास से प्रकृति मित्र काफल अब डेढ़ सौ रूपये किलो बिकने लगा है। उपरोक्त सभी उत्पाद हमें, सहज प्राप्य हैं। मैं कोई विशेषज्ञ नहीं हॅू। मैंने इनके उपयोग के साथ जो कुछ सुना, उसे मानस पटल में संकलन के आधार पर, आपके साथ शेयर कर रहा हॅूॅ। बड़ा पहाड़ी नीबू, पहाड़ी गॉवों के लिये गेम चेन्जर सिद्ध हो सकता है। मैंने नीबू के उपयोग को नीबू पार्टियों के माध्यम से प्रचारित किया, ऐसा नहीं है कि, इसका उपयोग नया है। वर्षों से हम इसका स्वाद ले रहे हैं, मगर घोषित रूप से नहीं ले रहे हैं।
यदि प्रत्येक प्रवासी परिवार साल में 20 नीबू, 10 कद्दू, 10 ककड़ी और 5 किलो काफल खरीदकर अपने पड़ोसियों के साथ इनके स्वाद का आनन्द लेना प्रारम्भ कर दे, तो ये प्रकृति जन्य उत्पाद हमारे पावों को हमारे गॉव में बांध देंगे। हिमालय के उत्पादों की औषधीयता स्वयं सिद्ध है। हमें सिर्फ इनका उपयोग लोगों को सिखाना व उन तक पहुंचाना है। मैंने तय किया है, मैं नीबू, काफल के साथ अब पहाड़ी ककड़ी, पहाड़ी आड़ू, पहाड़ी मूली व बेल पर पैदा होने वाली गेठी को भी कुछ समय व शक्ति समर्पित करूंगा। इस बार मैं पहाड़ी ककड़ी-रायता की पार्टी करना चाहता था। कुछ नई उलझनें आ पड़ी हैं। इस वर्ष न सही, अगले वर्ष आप रायता पार्टी में सादर आमंत्रित होंगे। कोशिश करूंगा, कुछ रायता फैलाने वाले दोस्तों को भी रायता पार्टी में आमंत्रित करूं, तांकि रायता फैलाने से कितना अधिक आनंद, रायता बनाने में है, इसे खाने में है, समझा जा सके। धन्य है, स्व. नर सिंह व स्व. कमल सिंह का रायता, धन्य हैं इन्दिरा गॉधी सरिखी पहाड़ी रायते की पारखी।

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