March 29, 2024

पत्रकारिता : संकल्पना, प्रकृति और कार्यक्षेत्र, महिला पत्रकार, पत्रकारिता की उत्पत्ति का संक्षिप्त इतिहास, प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार, वृद्धि और विकास

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डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल। जब भी हम पत्रकारिता की बात करते हैं, तो बात करते ही सर्वप्रथम हमारे मुंह से पहला स्वर निकलता है-‘पत्र’। पत्र शब्द सामान्य तौर पर प्रिंट पत्रकारिता का आभास कराता है, किंतु इस शब्द में ही मूलतः ‘पत्रकार’ शब्द से व्युत्पन्न ‘कारिता’ प्रत्यय जोड़ने से जो ‘पत्रकारिता’ शब्द बनता है, वह प्रिंट पत्रकारिता, इलेक्ट्रानिक पत्रकारिता एवं वेब पत्रकारिता जैसे पत्रकारिता के अनेक अन्य नये-पुराने स्वरूपों को प्रकट करने के लिये भी प्रयोग किया जाता है। बावजूद पत्रकारिता शब्द का प्रयोग करते हुये सर्वप्रथम प्रिंट पत्रकारिता की ही छवि मन-मस्तिष्क में आती है। ऐसा शायद इसलिये कि पत्रकारिता की शुरुआत प्रिंट पत्रकारिता से ही हुई और आज अनेक नये सोपान चढ़ने के बाद भी सभी तरह की पत्रकारिता की आधार – प्रिंट पत्रकारिता अपनी पहचान और विश्वसनीयता को बनाये हुये हैं। ऐसे में प्रिंट पत्रकारिता, समाचार पत्र और पत्रकारिता शब्द एक-दूसरे से अलग नहीं वरन एक ही प्रतीत होते हैं, तथा बहुधा एक ही अर्थ में प्रयोग भी किये जाते हैं।

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‘पत्रकारिता’ हिंदी में ‘पत्र’ शब्द से बना हुआ शब्द है। इसी से एक अन्य शब्द बना-पत्रकार। तथा पत्रकार शब्द से ही शब्द बना है पत्रकारिता। शाब्दिक तौर पर पत्रकार व पत्रकारिता शब्दों को सरलतम तरीके से समझें तो कह सकते हैं कि जो लोग पत्रकारिता का कार्य करते हैं, वह पत्रकार हैं। और पत्रकार जो कार्य करते हैं वह पत्रकारिता है। चूंकि पत्रकारिता प्रिंट यानी लिखित माध्यम से ही शुरू हुई है, इसलिये प्रिंट मीडिया या पिं्रट पत्रकारिता शब्द के लिये केवल पत्रकारिता शब्द का प्रयोग भी प्रारंभ से किया जाता रहा है। यह भी कह सकते हैं कि पत्रकारिता शब्द का प्रयोग सामान्यतया परंपरागत तौर पर प्रिंट मीडिया या प्रिंट पत्रकारिता के लिये ही किया जाता है।
वहीं अंग्रेजी में पत्रकारिता ‘जर्नलिज्म’ शब्द का अनुवाद है। ‘जर्नलिज्म’ शब्द में फ्रेंच शब्द ‘जर्नी’ या ‘जर्नल’ शब्द समाहित है। जिसका तात्पर्य होता है, दैनिक या दिन-प्रतिदिन किए जाने वाले कार्य। पहले के समय में सरकारी कार्यों का दैनिक लेखा-जोखा, बैठकों की कार्यवाही और क्रियाकलापों को जर्नल में रखा जाता था, वहीं से पत्रकारिता यानी ‘जर्नलिज्म’ (Journalism) शब्द का उद्भव हुआ। 16वीं और 18वीं सदी में ‘पीरियोडिकल’ के स्थान पर ‘डियूरलन’ और ‘जर्नल’ शब्दों का प्रयोग हुआ, जिसका अर्थ ‘दैनिक’ होता है। बाद में इसे ‘जर्नलिज्म’ कहा जाने लगा। जबकि हिंदी में पत्रकारिता शब्द नया है, और इस शब्द का प्रयोग सूचनाओं, संदेशों व समाचारों को किसी माध्यम के जरिए अन्यत्र पहुंचाने के लिए कर दिया जाता है, तथा भारतीय मिथकों में सतयुग के देवर्षि नारद, त्रेतायुग के महाबली हनुमान व द्वापर युग में महाभारत के युद्ध का सजीव दृश्य प्रस्तुत करने वाले संजय आदि पात्रों को पत्रकारों का आदि रूप और उनके द्वारा किए जाने वाले कार्य को पत्रकारिता कह दिया जाता है।
एक अन्य परिभाषा के अनुसार प्रिंट पत्रकारिता का संबंध लिखे हुए शब्दों के जरिये संदेशों-सूचनाओं-समाचारों को अन्यत्र पहुंचाने और आधुनिक संदर्भों में मशीन से कागज पर छपने बाले अखबारों से है। इस प्रकार पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से जो समाचारों का आदान-प्रदान होता है, वह प्रिंट पत्रकारिता है।
पत्रकारिता का मूल कार्य सूचनाएं, समाचार (NEWS) उपलब्ध कराना है। जबकि अंग्रेजी शब्द (NEWS) के पूर्वज NEWIS, NEWYESNEWES शब्दों को बताया जाता है। NEWIS शब्द 1423 में, NEWYES शब्द 1485 में तथा NEWES शब्द 1523 व NEWS शब्द अन्ततः 1550 में समाचारों के लिए प्रयोग किया जाने लगा। NEWS शब्द के वर्णों- एन, ई, डब्लू व एस को सरलीकृत परिभाषा में नार्थ, ईस्ट, वेस्ट व साउथ से जोड़ा जाता है। जबकि अधिक गंभीरता से देखने पर NEWS शब्द N-Newsworthy यानी क्या तथ्य या सामग्री समाचार बनाने योग्य हैं, E-Emphasis यानी किन तथ्यों को (समाचार व इंट्रो में) महत्व देना है,W-Ws यानी समाचार में 5 W- Who, What, Why, When, Where यानी 5 ककारों का तत्व मौजूद होना चाहिए और S-Source यानी जिस स्रोत से समाचार सामग्री प्राप्त हुई है, उसका उल्लेख करना आदि गुणों को प्रकट करता है, और काफी हद तक समाचार को परिभाषित करता है। आज कल छठे W यानी What next की बात भी की जाती है। यानी समाचार भविष्य की दृष्टि भी देता है। इस प्रकार न्यूज या समाचार चारों दिशाओं की सूचनाओं को इंगित करता है। इस प्रकार पत्रकारिता भी वह है, जो हर दिशा की सूचनाएं उपलब्ध कराती है।
कार्यक्षेत्र: पत्रकारिता का कार्यक्षेत्र बेहद व्यापक है। 131 से 59 ईशा पूर्व रोम के सम्राट जूलियस सीजर के पहले धातु की पट्टी पर छपने वाले दैनिक समाचार पत्र-एक्टा डाइअर्ना के साथ शुरू हुई, 1439 में योहानेस गुटेनबर्ग की पहली छापने की मशीन और 1896 में मारकोनी द्वारा बेतार और 23 फरवरी 1920 को इंग्लेंड के चेम्सफोर्ड विश्व का पहला रेडियो ट्रांसमीटर स्थापित होने तथा 20वीं सदी के तीसरे दशक में आये टेलीविजन के साथ आगे बढ़ी करीब दो हजार वर्ष पुरानी पत्रकारिता कमोबेश समय से अधिक तेजी से हो रहे इस बदलाव के दौर से गुजर रही है। भारत में भी मीडिया का हर अंग, 200 साल से अधिक पुरानी प्रिंट पत्रकारिता, 100 साल प्रभावी रेडियो व 50 साल पुराने टीवी तकनीक का फायदा उठाकर आज न केवल बेहद उन्नत हुए हैं, बल्कि इन सबकी तकनीकें नये मीडिया में आकर मिल गयी हैं। यही नहीं बड़े संसाधनों के कारण करीब दो हजार वर्षों तक कुछ हाथों के एकाधिकार में सीमित रही पत्रकारिता को 20वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि, अब से ठीक 50 वर्ष पूर्व 29 अक्टूबर 1969 को अस्तित्व में आये इंटरनेट के ‘ई-सूचना हाईवे’ के माध्यम से जुड़े साइबर मीडिया, साइबर जर्नलिज्म, ऑनलाइन जर्नलिज्म, इंटरनेट जर्नलिज्म, कम्प्यूटराइज्ड जर्नलिज्म, वेबसाइट पत्रकारिता व वेब पत्रकारिता तथा और इसके प्रमुख घटक ‘सोशल मीडिया’ सहित कई समानार्थी नामों से पुकारे जाने वाले ‘कागज-कलम रहित’ कम्प्यूटर-मोबाइल की स्क्रीन पर नजर आने वाले ‘आभासी’ (Virtual) ‘न्यू या नये मीडिया’ ने पिछले करीब दो दशकों में ही बेहद कड़ी चुनौती दी है। मार्शल मैक्लुहान की प्रसिद्ध पुस्तक ‘मीडियम इज द मैसेज’ में वर्णित अवधारणा, जिसमें उन्होंने भाषा की जगह ‘इन्स्टेंट कम्युनिकेशन’ द्वारा लेने की ‘आधुनिक इलेक्ट्रानिक संस्कृति’ और ‘ग्लोबल विलेज’ यानी एक तरह से भारतीय मान्यता ‘वशुधैव कुटुम्बकम्’ यानी विश्वग्राम की पुर्नव्याख्या करते हुए भविष्यवाणी की थी, नये मीडिया के केवल 140 करेक्टरों के ट्विटर और ऐसे ही अन्यान्य सोशल मीडिया व मीडिया माध्यमों की प्रसिद्धि के साथ सही साबित होती नजर आ रही है। इंटरनेट के ‘पंख’ युक्त नये मीडिया ने ‘कंटेंट’ को असीमित आसमान उपलब्ध करा दिया है। अब समाचार प्राप्त करने के लिये समाचार पत्र-पत्रिकाओं के छपने का इंतजार करने और उन्हें स्टेंड से लाने की जरूरत नहीं हैं। बल्कि अब वे हर क्षण अपडेट होते हुए और कमोबेश हर हाथ में औसतन एक से अधिक आ गए आधुनिक मीडिया के माध्यम-स्मार्टफोनों पर समय की तेजी के साथ उपलब्ध हैं। इस तरह यह वास्तव में ‘मास मीडिया’ भी बन गया है।

एक पत्रकार की जिम्मेदारियां:

1. जिम्मेदार पत्रकारिता के लिए पत्रकार की जिम्मेदारी है कि वह रिपोर्ट को त्रुटिहीन, निष्पक्ष, भय या पक्षपात रहित- अनबायस्ड और उच्च मानकों का बनाएं। निष्पक्षता और पारदर्शिता पत्रकारिता के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। समाचार के हर पहलू के बारे में जानकारी दें। समाचार में सभी पक्षों के विचारों को शामिल करें और किसी विषय पर लिखते समय खुद कभी पार्टी बनने की कोशिश न करें। समाचार में अपने विचार न डाले। समाचार को जैसा का तैसा छापे। लेकिन शब्दों के चयन में सावधानी बरते। सही शब्दों का ही प्रयोग करे। कानूनी पक्षों की भी जानकारी रखे।
2. समाचार विश्वसनीय स्रोत से ही प्राप्त करे और उनकी प्रतिपुष्टि यानी वेरीफाई अन्य विश्वसनीय माध्यमों से भी करे। समाचार से संबंधित तथ्यों का हमेशा ध्यान रखें और अगर कभी किसी कारण से गलत हो जाएं तो समय-सीमा के अंदर तुरंत सुधारें। विशेषज्ञों की राय और कोट्स को जरूर शामिल करें। कोट्स हमेशा विषय केंद्रित होने चाहिए। जब कभी किसी कारण से उसे छोटा करने की जरूरत पड़े तो इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि अर्थ न बदले। नाम उम्र, स्थान, तारीख, ऐतिहासिक आंकड़ों, ज्योग्राफी, कंपनी का नाम आदि को लेकर कभी पूर्वानुमान न लगाएं। किसी कथन में ऐतिहासिक डाटा, वित्तीय आंकड़ा या कोई वैज्ञानिक जानकारी दी गई हो तो स्वतंत्र माध्यम से उसकी पुर्नपुष्टि करें।
3. अपनी जिम्मेदारी का हमेशा ध्यान रखें। अपनी आलोचनाओं को सहजता से लें। समाचार से किसी समाज के प्रति अपमान या बैर-भाव पैदा न हो या किसी को जानबूझकर हानि न पहुंचे। किसी के सम्मान को भी आंच न पहुंचे। कानूनी पक्षों का भी ध्यान रखें। एक-एक शब्द को नापतौल कर लिखें, ताकि जनता में गलत संदेश न जाए। हमेशा यह ध्यान में रखें कि जो आप लिख रहे हैं, उसे पूरी दुनिया पढ़ रही है। भविष्य में क्या होगा, इस पर तुक्केबाजी से बचें। ठोस साक्ष्यों, तथ्यों, अपने निष्पक्ष ज्ञान व अनुभव के आधार पर ही किसी घटना का विश्लेषण करें।
4. राजनीति समाचारों में किसी भी नेता का बयान सिर्फ संदर्भ में लिया जाए। हमेशा तटस्थ रहें। पॉलिटिकल खबरें करते समय सभी पक्षों को बिना किसी भेदभाव के उचित जगह देना चाहिए। चुनाव के दौरान आचार संहिता का पालन करते हुए समाचार लिखें। चुनावी सर्वेक्षणों या मतदान पूर्व सर्वेक्षणों के प्रकाशन में चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों का हमेशा पालन करें। घृणा और हिंसा फैलाने वाले बयानों को कभी भी कोट न करे।
5. किसी व्यक्ति विशेष की मृत्यु या अन्य दुर्घटनाओं में मृतकों की संख्या को हमें कई सूत्रों से कन्फर्म करना चाहिए। ऐसा न करने की स्थिति में कई बार भयंकर गलतियां हो जाती हैं। एक गलत खबर आपकी पूरी इमेज को खत्म करने के लिए काफी होता है।
6. समाचार प्राप्त करने के लिए कहीं अनाधिकार प्रवेश, छिपकर किसी की बातें सुनना, बिना इजाजत किसी की बातचीत रिकॉर्डिंग करना, कम्प्यूटर हैकिंग, घूसखोरी या डॉक्युमेंट्स की चोरी ये सभी कानून की नजर में अपराध की श्रेणी में आते हैं। दूसरे व्यक्ति के कार्य या सामग्री या उसके हिस्से का उपयोग करना या साहित्यिक चोरी कानून और नैतिकता दोनों ही दृष्टि से गलत है। दूसरे संस्थान को कोई भी ऐसी खबर न दें, जो आपके मूल संस्थान में पब्लिश न हुई हो।

कैरियर के रूप में पत्रकारिता:
पत्रकारिता एक प्रतिष्ठित व्यवसाय है। एक कैरियर के रूप में तीन ऐसे मुख्य क्षेत्र हैं जिनमें पत्रकारिता के इच्छुक व्यक्ति रोजगार ढूंढ़ सकते हैं:
-अनुसंधान एवं अध्यापन
-प्रिंट पत्रकारिता
-इलेक्ट्रॉनिक (श्रव्य-दृश्य) पत्रकारिता
अनुसंधान एवं अध्यापन: पत्रकारिता में कोई पाठ्यक्रम पूरा करने के बाद, कोई भी व्यक्ति किसी मीडिया अनुसंधान संस्थान या किसी सरकारी संगठन में एक अनुसंधान वैज्ञानिक बन सकता है। अनुसंधान कार्य के दौरान भी कोई व्यक्ति अन्य अनुदानों तथा सुविधाओं के अतिरिक्त, मासिक वृत्तिका प्राप्त कर सकता है। कोई भी व्यक्ति किसी समाचारपत्र में या इलेक्ट्रॉनिक चौनल में एक पत्रकार के रूप में कार्यग्रहण कर सकता है और अच्छा वेतन अर्जित कर सकता है। पत्रकारिता में पी.एच.डी. प्राप्त व्यक्ति कॉलेजों विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थाओं में रोजगार तलाशते हैं। कई अध्यापन पदों पर विशेष रूप से विश्वविद्यालयों और संस्थानों में अनुसंधान कार्यकलाप अपेक्षित होते हैं। पत्रकारिता में कला-स्नातक या मास्टर ऑफ आर्टस अथवा अनुसंधान (पीएच.डी.) डिग्रियों के लिए, गैर-लाभ भोगी क्षेत्र में, कोई विश्वविद्यालय, कोई संस्थान कोई व्यावसायिक या मीडिया फर्म रोजगार का क्षेत्र हो सकती है। इन क्षेत्रों में स्व-रोजगार की भी संभावना होती है।
प्रिंट पत्रकारिता: प्रिंट पत्रकारिता के अंगों-समाचार पत्रों पत्रिकाओं तथा दैनिक पत्रों के लिए समाचारों को एकत्र करने एवं उनके सम्पादन से संबद्ध हैं। समाचार पत्र एवं पत्रिकाएं, वे बड़ी हों या छोटी, हमेशा विश्वभर में समाचारों तथा सूचना का मुख्य स्रोत रही हैं और लाखों व्यक्ति उन्हें प्रतिदिन पढ़ते हैं। कई वर्षों से प्रिंट पत्रकारिता बडेऋ परिवर्तन की साक्षी रही है। समाचार-पत्र एवं पत्रिकाओं में विविध विशेषज्ञतापूर्ण वर्गों जैसे राजनीतिक घटनाओं व्यवसाय समाचारों, सिनेमा, खेल, स्वास्थ्य तथा कई अन्य विषयों पर समाचार प्रकाशित करते हैं, जिनके लिए व्यावसायिक रूप से योग्य पत्रकारों की मांग होती है। प्रिंट पत्रकारिता में कोई भी व्यक्ति सम्पादक, संवाददाता, रिपोर्टर, आदि के रूप में कार्य कर सकता है।
इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता: इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता के अंगों-दूरदर्शन, रेडियो, श्रव्य, दृश्य (ऑडियो, वीडियो) और वेब जैसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कोई भी व्यक्ति रिपोर्टर, लेखक, सम्पादक, अनुसंधानकर्ता, संवाददाता और एंकर बन सकता है। स्वतंत्र न्यूज पोर्टल में वेब पत्रकार बनकर आप करियर बना सकते हैं। खेल, साहित्य, कला जैसी साइटों पर करियर की उज्जवल संभावनाएं रहती हैं।

महिला पत्रकार: भूमिका और चुनौतियां:

पत्रकारिता के प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व वेब यानी सभी क्षेत्रों में हालांकि अन्य सभी क्षेत्रों की तरह महिलाओं के लिए हमेशा से काफी चुनौतियां रही हैं। पिछले कुछ समय में मीडिया में महिला पत्रकारों की संख्या में बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। फिर भी अब भी दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों के बाहर पत्रकारों की बिरादरी में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है। मीडिया ऐसा क्षेत्र है, जहां आपको वक्त-बेवक्त कभी भी, कहीं भी आने-जाने के लिए तैयार रहना होता है। बड़ी खबरें रात के 12 बजे आए या दो बजे, कवर करनी होती हैं। घर और परिवार की जिम्मेदारी संभालते हुए ऐसा कर पाना कई बार बहुत मुश्किल हो जाता है। पत्रकारिता के क्षेत्र में काम कर रही लड़कियों और महिलाओं की कुछ समस्यायें तो ऐसी होती हैं जो किसी भी दूसरे क्षेत्र में काम करते हुए उन्हें पेश नहीं आती हैं। लेकिन फिर भी मीडिया के क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों का वर्चस्व तोड़ रही हैं। खाना बनाना और बच्चों की देखभाल अभी भी महिलाओं का ही काम माना जाता है। यानी अब महिलाओं को दोहरी जिम्मेदारी निभानी पड़ रही है। घरेलू महिलाओं की तुलना में कामकाजी महिलाओं पर काम का बोझ ज्यादा है। इसलिए महिलाओं को अपने कार्यक्षेत्र और घर, दोनों को संभालने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। यह भी सच है कि जिस क्षेत्र में अधिक चुनौतियां होती हैं, वहीं आगे बढ़ने की अधिक संभावनाएं भी होती हैं। क्योंकि चुनौतियों को कम लोग पार कर पाते हैं, और जो पार कर पाते हैं वह काफी आगे निकल जाते हैं।
हालांकि अब नये मीडिया-सोशल मीडिया के आने के बाद महिलाओं सहित हर किसी के लिए मीडिया में कार्य करना काफी आसान भी हो गया है।
एसोचैम के सर्वे के अनुसार मां बनने के बाद 40 फीसदी महिलाओं को नौकरी छोड़ देनी पड़ती है। बहुत सी महिला पत्रकारों के बारे में भी ये बात सच साबित होती है। पिछले 25 सालों में महिला पत्रकारों की संख्या बढ़ी है, किंतु रिपोर्टिंग में अभी भी दो फीसदी महिला पत्रकार नहीं हैं। विभागों की प्रमुख भी महिला नहीं हैं। महिला और सौंदर्य-स्वास्थ्य पत्रिकाओं को छोड़ दे तो एक-दो समाचारपत्रों को छोड़कर महिलाएं संपादक नहीं हैं। फिर भी पत्रकारिता क क्षेत्र में भारतीय महिलाओं ने बीते कुछ दशकों में काफी प्रगति की है। महिला पत्रकारों ने दंगे, युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं को कवर किया है। वह कई न्यूज चैनलों का चेहरा बनी हैं और उन्होंने क्रिकेट जैसे खेल की रिपोर्टिंग भी की है जो कि लंबे समय तक पुरुषों के वर्चस्व वाला क्षेत्र रहा है। महिलाएं न्यूज कवरेज को नया दृष्टिकोण प्रदान कर सकती हैं।
महिला पत्रकार अपनी क्षमताओं को समझते हुए कई मामलों में पुरुष पत्रकारों से बेहतर कार्य कर सकती हैं। मसलन, मुस्लिम देशों में महिला पत्रकार महिलाओं का इंटरव्यू कर सकती हैं, लेकिन पुरुष नहीं। जेम्स स्टीफेन के अनुसार औरतें मर्दों से अधिक बुद्धिमती होती हैं, क्योंकि वे जानती कम, समझती अधिक हैं। देश की आधी आबादी आज भी महिलाएं हैं। महिला पत्रकार महिलाओं से संबंधित पत्र-पत्रिकाओं एवं अन्य माध्यमों पर महिलाओं के उपयोगी सामग्री उपलब्ध कराने, बेहतर कार्य कर रही महिलाओं के कार्यों को समाज के समक्ष लाने, साज-श्रृंगार, फैशन, रूप-रंग को कैसे निखारें ? घर को कैसे सजाएं ? कैसे परिवार के साथ ही कॅरियर में भी आगे बढ़ें जैसे विषयों पर पत्रकारिता कर सकती हैं। इन प्रश्नों के अतिरिक्त विज्ञान, खेल, राजनीति, साहित्य विषयों में भी महिलाओं की भागीदारी होती है जिसके संदर्भ में पत्र-पत्रिकाओं को प्रकाश डालना चाहिए। कुछ पत्रिकाएं नारियों की अपरिष्कृत और सतही रुचियों को बढ़ावा देती हैं। बाल-विवाह, पर्दा-प्रथा, दहेज-प्रथा एवं अनेक सामाजिक कुरीतियों के उन्मूलन में एवं ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को कुटीर उद्योग एवं हस्तकला से कैसे संबद्ध किया जाय, इन विषयों पर भी महिला पत्रकारों की बड़ी भूमिका हो सकती है।
इसके अलावा पत्रकारिता के लिए जिस विशिष्ट किस्म की संवेदनशीलता और समानांतर रूप से कुशलतापूर्वक अभिव्यक्त करने की आवश्यकता होती है। वह महिलाओं में नैसर्गिक रूप से पाई जाती है। पत्रकारिता में एक संवाद और संवेदना के सुनियोजित सम्मिश्रण का नाम ही सुन्दर पत्रकारिता है। महिलाओं में संवाद के स्तर पर स्वयं को अभिव्यक्त करने का गुण भी पुरुषों की तुलना में अधिक बेहतर होता है। यही वजह रही है कि मीडिया में महिलाओं का गरिमामयी वर्चस्व बढ़ा है।
संवेदना के स्तर पर जब तक वंचितों की आह, पुकार और जरुरत एक पत्रकार को विचलित नहीं करती उसकी लेखनी में गहनता नहीं आ सकती। लेकिन महज संवेदनशील होकर पत्रकारिता नहीं की जा सकती क्योंकि इससे भी अधिक अहम है उस आह या पुकार को दृढ़तापूर्वक एक मंच प्रदान करना। यहां जिस सुयोग्य संतुलन की दरकार है वह भी निरूसंदेह महिलाओं में निहित है। अपवाद संभव है, लेकिन मोटे तौर पर यह एक सच है जिसे वैज्ञानिक भी प्रमाणित कर चुके हैं।
पत्रकार की तीसरी महत्वपूर्ण योग्यता गहन अवलोकन क्षमता और पैनी दृष्टि कही जाती है। यहां भी महिलाओं का पलड़ा भारी है। जिस बारीकी से वह सकारात्मक तौर पर बाल की खाल निकाल सकती है वह सिर्फ उन्हीं के बस की बात है। पिछले कुछ सालों में मीडिया में महिलाओं ने एक और भ्रम को सिरे से खारिज किया है। या कहें कि लगभग चटका दिया है, वह यह कि पत्रकार होने के लिए यह कतई जरूरी नहीं कि लड़कों की तरह कपड़े पहने जाएं। या बस रूखी-सूखी लड़कियां ही पत्रकार हो सकती है। अपने नारीत्व का सम्मान करते हुए और शालीनता कायम रखते हुए भी सशक्त पत्रकारिता की जा सकती है। यह सच भी इसी दौर की पत्रकारिता में दिखाई दिया है।
सार ये है कि अगर भारत में महिला पत्रकार अपने पेशे को लेकर ईमानदार और समर्पित रह कर कार्य कर सकती हैं, और उनका फोकस लक्ष्य पर रहता है तो उन्हें ऊंचाइयों पर पहुंचने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। वे अपने पुरुष सहकर्मियों से आगे भी निकल सकती हैं। शायद पुरुष पत्रकारों को ऐसा लगता है कि वे पहले ही सबकुछ हासिल कर चुके हैं, उनके लिए पत्रकारिता अब जज्बा नहीं, शायद एक अन्य पेशे की तरह है। कोई ऐसी समस्या नहीं होती, जिसका समाधान न हो। मीडिया में आपसे पहले आपकी प्रतिभा और दक्षता खुद बोलती है। यहां छल, छद्म, झूठ और मक्कारी आपको ले डूबते हैं। मीडिया महिलाओं के लिए सुरक्षित क्षेत्र है। बस इसे सम्मानजनक भी बना रहने दें। यह मीडिया की ही जिम्मेदारी है। मीडिया में इस ओर रास्ता खुद लड़किया बना रही हैं। हिंदी पत्रकारिता का स्वर्ण युग आना बाकी है। लेकिन यकीन मानिए, बिना बेटियों के ये असंभव होगा।

कुछ प्रमुख महिला पत्रकारः मृणाल पांडे, बरखा दत्त, तवलीन सिंह, श्वेता सिंह, पूर्णिमा मिश्रा, मीमांसा मल्लिक, अंजना ओम कश्यप, विमला पाटील, सीमा मुस्तफा, मीनल बहोल, सत्या शरण, दीना वकील, सुनीता ऐरन, कुमुद संघवी चावरे व पूर्णिमा मिश्रा आदि।

पत्रकारिता की उत्पत्ति का संक्षिप्त इतिहास (प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार, वृद्धि और विकास )

भारत में हालांकि मीडिया यानी पत्रकारिता के संदर्भ मिथकों के अनुसार सतयुग में ‘आदि पत्रकार’ कहे जाने वाले नारद, द्वापर युग में संदेशवाहक हनुमान और त्रेता युग में महाभारत के युद्ध का सजीव वृतांत प्रस्तुत करने वाले संजय के रूप में मिलते हैं। वहीं प्राप्त अभिलेखों के अनुसार भी करीब पांच हजार वर्ष पूर्व के हड़प्पा व मोहनजोदड़ो के उत्खनन से प्राप्त मृदभांडों एवं करीब इसी कालखंड के उत्तराखंड के लखु उडियार सहित अनेक स्थानों पर पाये जाने वाले आदि मानवों के प्राकृतिक शैलाश्रयों में उकेरी गयी आकृतियों के रूप में भी पत्रकारिता के मूल में अवस्थित मानव की लेखन व चित्रण कला दिखाई देती हैं। वहीं विश्व में संदेशों-सूचनाओं-समाचारों को अन्यत्र पहुंचाने के लिए संदेशवाहकों, हरकारों-Relay Runners के साथ ही कबूतरों व बाज जैसे पक्षियों का प्रयोग किया जाता रहा है, किंतु यहां हम तकनीक आधारित पत्रकारिता की बात ही पत्रकारिता का अध्ययन करते हुए करते हैं। फिर भी…..
पत्रकारिता का उद्भव और विकास:
मानव सभ्यता करीब 150-200 करोड़ वर्ष पुरानी मानी जाती है। उत्तराखंड के कालागढ़ के निकट मिले करीब 150 करोड़ वर्ष पुराने ‘रामा पिथेकस काल’ (Ramapithecus age) के माने जाने वाले एक मानव जीवाश्म से भी इसकी पुष्टि होती है। कहते हैं कि तब मानव पशुओं से भी कम विकसित केवल हाड़-मांश का ढांचा भर था। उसमें दूसरों से बात-चीत करने तो दूर, स्वयं से साक्षात्कार करने की क्षमता भी नहीं थी।
मानव में संचार के लिए जरूरी मूलभूत ज्ञानेंद्रियों का विकास ईसा से करीब तीन लाख वर्ष पूर्व होने की बात कही जाती है। इस दौर में गुफाओं में रहने वाले हमारे प्राग ऐतिहासिक कालीन पूर्वजों में मस्तिष्क एवं केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous System) धीरे-धीरे विकसित होना प्रारंभ हुआ, और इसी के साथ उनकी बाद की पीढ़ियों में संचार के मूलभूत तत्व के रूप में देखने, सुनने, छूने, सूंघने एवं चखने की क्षमता युक्त ज्ञानेन्द्रियों का विकास हुआ, जिससे वे अपने खतरे में अथवा सुरक्षित होने, किसी से प्रेम अथवा घृणा करने तथा किन्ही स्थितियों के अनूकूल अथवा प्रतिकूल होने का पता लगाने की ‘संचार की प्राथमिक व मूलभूत आवश्यकताओं’ की पूर्ति कर पाये थे। इसके बाद ही मानव का स्वयं से संचार प्रारंभ हुआ था। इन इंद्रियों के विकसित होने के बाद ही मानव में कुछ समझ विकसित हुई और उसने स्वयं के लिये सुरक्षित ठिकानों-गुफाओं का सहारा लिया होगा। इस तरह से उस दौर के मानव को ‘स्वयं से साक्षात्कार के लिये’ पहला मीडिया यानी माध्यम मिला था। जो एक तरह से उस दौर के लिहाज से मानव को संचार के लिये प्राप्त हुआ एक ‘नया मीडिया’ ही था।
आगे करीब 50 हजार वर्ष पूर्व न्यमोनिक चरण (Mnemonic Stage) में वे लोग बुद्धिमान कहे जाते थे, जो कुछ याद कर पाते थे। यह मनुष्य में याददास्त की क्षमता के जुड़ने का समय था। उस दौर में सामाजिक संचार प्रारंभ हो गया था लेकिन भाषाओं का जन्म नहीं हुआ था। आगे ईशा से करीब सात हजार वर्ष पूर्व मानव संचार के एक नये-चित्र बनाने के माध्यम (Pictographics) की योग्यता जुड़ी, जिसके साथ उसमें रचनात्मकता व कल्पनाशीलता का विकास भी हुआ। इसके बाद मानव गुफाओं में चित्र बनाकर अपनी भावनायें प्रदर्शित करने लगे। इस दौर में मनुष्य में धार्मिक भावनाओं का उद्भव भी हुआ। इस दौर के बनाये गुफा-शैलचित्र आज भी उत्तराखंड के अल्मोड़ा जनपद में पिथौरागढ़ मार्ग पर पेटशाल नाम के गांव के पास सुयाल नदी के किनारे स्थित लखुडियार कहे जाने वाले स्थान सहित अनेक स्थानों पर मिलते हैं, जिन्हें करीब पांच हजार वर्ष पुराना आंका गया है। इसी दौर के करीब 5000 वर्ष पूर्व की हड़प्पा व मोहनजोदड़ो सभ्यता के दौर में भी मानव में लेखन कला के सबसे पुराने सबूत मिलते हैं, इस प्रकार लेखन कला को ईशा से तीन हजार वर्ष पूर्व होना माना जा सकता है।
आगे ईशा से तीन हजार से दो हजार वर्ष पूर्व के आइडियोग्राफिक काल (Ideographic Stage)में सर्वप्रथम भावनाओं के लिये ‘प्रतीकों’ का उद्भव हुआ, और शैलचित्र बनाने की मानव की विधा बेहतर हुयी। इस काल में चित्र प्रतीकों के रूप में छोटे हो गये थे। जैसे मनुष्य के लिय ‘λ’, घर के लिये ‘9’, बैल के लिये ‘∀’, दरवाजों के लिये ‘Δ’, ऊंट के लिये ‘7’ आदि चिन्हों का प्रयोग किया जाता था। आगे फोनेटिक काल में ‘क’ के लिये ‘४’, ‘न’ के लिये ‘⊥’ आदि चिन्हों का प्रयोग किया जाने लगा। इस दौर में मानव ने सामाजिक समूहों में घर बनाकर रहना प्रारंभ कर दिया था। साथ ही उसमें सामाजिक कार्यक्रमों और नैतिक मूल्यों आदि का भी विकास हो चुका था।
आगे मानव सभ्यता के विकास के साथ अंतरवैयक्तिक संचार बढ़ने लगा। अब लोग एक-दूसरे से आमने-सामने ही बात करते थे। धीरे-धीरे वे दूर तक अपनी बात पहुंचाने के उपाय भी ढूंढने लगे और दूर संदेश भेजने के लिए ऐसे लोगों (Relay Runners) का प्रयोग किया जाने लगा जो बीते दौर के डाक विभाग के हरकारों की तरह एक से दूसरे स्थान पर संदेशों को ले जाते थे। इस तरीके से भी कई बार संदेश पहुंचाने में दिनों-महीनों का समय लग जाता था।
यों हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो में हुए उत्खनन से प्राप्त मृदभांडों के अनुसार भारत में 5000 वर्ष पूर्व यानी ईशा से 3000 वर्ष पूर्व लेखन का ज्ञान था, और भारत के मौर्यवंशी चक्रवर्ती सम्राट अशोक (जन्म 304 ईसा पूर्व, शासन 272 ईसा पूर्व से 232 ईशा पूर्व में मृत्यु होने तक) के आज के बांग्लादेश, भारत, नेपाल, पाकिस्तान व अफगानिस्तान तक फैले राज्य में संस्कृत से मिलती-जुलती खरोष्ठी व ब्राह्मी लिपि तथा प्राचीन मगधी, यूनानी व अरामाई भाषाओं में स्तंभों, चट्टानों व गुफाओं की दीवारों पर लिखे 33 शिलालेख व अन्य अभिलेख प्राप्त होते हैं। मौर्यवंशीयों के ही समकालीन कुणिंद राजवंश के दौर के ढले हुए करीब ढाई हजार वर्ष पुराने सिक्के और अभिलेख उत्तराखंड में भी मिलते हैं। लेकिन विश्व में औपचारिक तौर पर पत्रकारिता का आरंभ रोम से होना बताया जाता है।
कहते हैं कि पांचवीं शताब्दी ईसवी पूर्व रोम में संवाद लेखक होते थे, जो हाथ से लिखकर खबरें पहुंचाते थे। आगे ईशा से 131-59 ईस्वी पूर्व रोम में ही सम्राट जूलियस सीजर को पहला दैनिक समाचार-पत्र निकालने का श्रेय दिया जाता है। उनके पहले समाचार पत्र का नाम था ‘Acta Diurna’ (एक्टा डाइएर्ना-यानी दिन की घटनाएं)। बताया जाता है कि यह वास्तव में पत्थर या धातु की पट्टी होता था, जिस पर समाचार अंकित होते थे। ये पट्टियां रोम के मुख्य स्थानों पर रखी जाती थीं, और इन में सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति, नागरिकों की सभाओं के निर्णयों और ग्लेडिएटरों की लड़ाइयों के परिणामों के बारे में सूचनाएं मिलती थीं।
आगे ईसा के बाद दूसरी शताब्दी में मुद्रण तकनीक के आविष्कार को लेकर कुछ प्रमाण बताए जाते हैं। इस दौर में यूरोप के व्यापारिक केंद्रों में हाथ से ही लिखे हुए ‘सूचना-पत्र’ निकलने लगे। उन में कारोबार, क्रय-विक्रय और मुद्रा के मूल्य में उतार-चढ़ाव के समाचार लिखे जाते थे।
इसी दौरान कागज के निर्माण की कोशिशें भी चल रही थीं। चीन में सर्वप्रथम 100 वर्ष ईशा पूर्व कागज का निर्माण हुआ। यह बहुत बड़ी खोज मानी गयी। इसलिए चीन ने सातवीं शताब्दी तक कागज के निर्माण की प्रक्रिया को गुप्त रखा। कहते हैं कि 751 ईसवी में चीनियों और अरबियों के बीच इसी कारण युद्ध भी हुआ, जिसमें कागज बनाना जानने वाले कुछ लोग बंदी बना लिए गए, और उन्हें कागज बनाने की विधि बताने के बाद ही छोड़ा गया। इस बीच 400 ईसवी सन में भारत ने भी औपचारिक तौर पर कागज बनाना सीख लिया था, जबकि तब तक यूरोप में कागज की जगह जानवरों के चमड़े का इस्तेमाल होता था। यानी एशिया में सबसे पहले कागज का इस्तेमाल हुआ। आगे 1200 ईसवी में इसाइयों ने, और 1250 में स्पेन, 1338 में फ्रांस, 1411 में जर्मनी के लोगों ने कागज बनाना सीखा। स्याही का निर्माण भी सर्वप्रथम चीनियों ने ही किया।
कागज व स्याही का निर्माण होने के बाद एक साथ एक जैसे अभिलेख अधिक बार छापे जाने के प्रयास शुरू हुए। इस दिशा में लकड़ी के ठप्पों से छपाई का काम भी सबसे पहले पांचवी-छठी शताब्दी में चीन में ही शुरू हुआ। इन ठप्पों का प्रयोग कपड़ो की रंगाई में होता था। इसके बाद अधिक प्रतियां छापने के लिए बदले जाने योग्य टाइप (Movable Type) बनाने के प्रयास शुरू हुए। 11वीं सदी में चीन में पत्थर के टाइप बनाए गए। 13वी-14वीं सदी में चीन ने अलग-अलग संकेत चिन्ह भी बनाए। इसके बाद धातु के टाइप बनाने की कोशिश हुई। धातु के टाइपों से पहली पुस्तक 1409 ईसवी में कोरिया में छापे जाने के प्रमाण मिलते हैं। बाद में कोरिया से चीन होकर धातु के टाइप यूरोप पहुंचे। जर्मनी के योहानेस गुटेनबर्ग को सबसे पहले मूवेबल टाइप के विकास का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने 1439 में जर्मनी के ने धातु के ठप्पों से अक्षरों को छापने की मशीन का आविष्कार किया। उनके द्वारा 14 अगस्त 1456 को इस मूवेेबल टाइपों युक्त मशीन से पहली बार ‘गुटेनबर्ग बाइबल’ का प्रकाशन किया, जो बाइबल पर आधारित थी। इसके बाद ही किताबों और अखबारों का प्रकाशन संभव हो गया। अलबत्ता, यह मशीन सर्वसुलभ नहीं थी।
प्रिंटिंग प्रेस के आविष्कार के बाद काफी समय तक उनमें धार्मिक किताब और सरकारी दस्तावेज ही मुद्रित हुआ करते थे। 1500 ईसवी तक पूरे यूरोप में सैकड़ों छापेखाने खुल गए थे। नीदरलैंड से 1526 में ‘न्यू जाइटुंग’ का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। तब इसे ‘न्यूज बुक’ या ‘समाचार पुस्तिका’ कहा जाता था। इसके बाद लगभग एक शताब्दी तक कोई दूसरी कोई समाचार पत्रिका प्रकाशित नहीं हुई।
सोलहवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में अने युद्ध झेल रहे यूरोप में लेखक अपने समकालीन लोगों में ग्रंथकार, घटना लेखक, सार लेखक, समाचार लेखक, समाचार प्रसारक, रोजनामचा नवीस, गजेटियर के नाम से जाने जाते थे। इस दौरान ‘आक्सफोर्ड गजट’ और फिर ‘लंदन गजट’ निकले जिनके बारे में लिखा गया है, ‘बहुत सुंदर समाचारों से भरपूर और कोई टिप्पणी नहीं।’ यानी समाचारों का टिप्पणी युक्त न होना (No Views-Only News) यानी समाचार ‘जैसा का तैसा छापना’ माना जाता था।
16वीं शताब्दी के अंत तक यूरोप के शहर स्त्रास्बुर्ग में योहन कारोलूस नाम का कारोबारी धनवान ग्राहकों के लिये हाथ से सूचना-पत्र लिखवा कर प्रकाशित करता था। लेकिन हाथ से बहुत सी प्रतियों की नकल करने का काम महंगा होने के साथ धीमा भी था। इसलिए 1605 में उसने छापे की मशीन खरीद कर ‘रिलेशन’ नाम का समाचार-पत्र छापना प्रारंभ किया, जिसे विश्व का प्रथम मुद्रित समाचार पत्र माना जाता है। अलबत्ता, उस दौर में ‘न्यूज बुक या ‘समाचार पुस्तिका’ शब्द को प्रयोग होता था। लेकिन ‘न्यूज पेपर’ या ‘समाचार पत्र’ शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख वर्ष 1670 में मिलता है।
वहीं दैनिक पत्रों की बात करें तो पहला अंग्रेजी दैनिक 11 मार्च 1709 को ‘डेली करंट’ प्रकाशित हुआ। लेकिन तब तक भी कागज आज की तरह का न था। कागज का आधुनिक रूप फ्रांस के निकोलस लुईस राबर्ट ने 1778 ई में बनाया।

भारत में पत्रकारिता की उत्पत्ति और विकास:

भारत में आधुनिक दौर की उपकरण आधारित प्रिंट पत्रकारिता की बात करें तो बताया जाता है कि यहां भी पत्रकारिता की मूलभूत आवश्यकता, कागज का निर्माण और छपाई का काम लगभग पांचवी-छठी शताब्दी में चीन के साथ ही प्रारंभ हुआ। लेकिन कागज पर मुद्रित पुस्तकों व समाचार पत्रों का इतिहास यूरोपीय लोगों के भारत में प्रवेश के साथ प्रारम्भ होता है। प्रिंटिंग प्रेस को 1439 में जर्मनी में आविष्कार के बाद भारत आने में करीब एक शताब्दी से अधिक का समय लगा। भारत में सर्वप्रथम प्रिंटिग प्रेस लाने का श्रेय पुर्तगालियों को दिया जाता है। उनकी कोशिश अपने धर्म के प्रचार की थी, इसलिए वह अपनी प्रेस का इस्तेमाल धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन के लिए ही अधिक करते थे। 1557 ईसवी में गोवा के कुछ पादरियों ने देश की पहली प्रेस की स्थापना कर भारत की पहली पुस्तक छापी। 1558 में तमिलनाडु में और 1602 में मालाबार के तिनेवली में प्रेसों की स्थापना हुई जिनमें तमिल-पुर्तगाली भाषाओं का शब्दकोष छापा गया। इसी दौरान 1562 में मुम्बई तथा 1679 में बिचुर में और प्रेसों की स्थापना हुई। वहीं अंग्रेजों ने भारत में छापे की पहली मशीन 1674 में बम्बई में स्थापित की, और 1684 ईसवी में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने भारत में प्रथम प्रिंटिग प्रेस (मुद्रणालय) की स्थापना की, और देश की पहली पुस्तक की छपाई की थी।
लेकिन इसके बाद भी करीब एक शताब्दी तक भारत में पत्रकारिता के प्रमाण नहीं मिलते हैं। भारत में पहला अखबार स्थापित करने का प्रयास प्लासी के युद्ध के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के भूतपूर्व अधिकारी विलियम बोल्ट ने किया। उन्होंने 1762 में कलकत्ता के कौंसिल हॉल व अन्य प्रमुख स्थानों पर एक नोटिस लगाया, जिसमें कहा गया था, ‘छापेखाने के अभाव में उन्हें लोगों को सूचित करने के लिए नोटिस का तरीका ठीक लगता है। व्यापार के लिए छापेखानों का अभाव खलता है। कोई व्यक्ति यदि छापेखाने का धंधा करना चाहते हैं तो बोल्ट उसका पूरा सहयोग करने को तैयार हैं। इस बीच वह इसी तरह सूचनाएं देते रहेंगे। जिज्ञासु व्यक्ति सुबह 10 से 12 बजे के बीच उनके घर पर आकर वहां से सूचना पत्रों की प्रतियां ले सकते हैं।’ इसलिए बोल्ट को ही भारतीय पत्रकारिता का जनक और उसके पत्र को आधुनिक भारतीय पत्रों का ‘आदि पुरुष’ कहा जाता है। बोल्ट अंग्रेजी भाषा में कंपनी व सरकार के समाचार फैलाते थे। इसलिए अंग्रेज सरकार को उनसे खतरा महसूस हुआ, लिहाजा उन्हें जबर्दस्ती जहाज पर लादकर यूरोप भेज दिया गया। इस के बाद ही 1772 में मद्रास और 1779 में कोलकता में सरकारी छापेखानों की स्थापना हुई। किंतु इसके बाद भी 18 वर्षों तक समाचार पत्र छापने के और कोई प्रयास नहीं हो पाए। जबकि अठारहवीं सदी के अंत तक भारत के लगभग ज्यादातर नगरों में प्रेस स्थापित हो गए थे। इसके साथ ही भारतीय भाषाओं के टाइप तैयार होने लगे।
हिकी’ज बंगाल गजट, भारत का पहला समाचार पत्र: भारत में पत्रकारिता का विधिवत् शुभारम्भ जेम्स आगस्ट्स हिकी ने 29 जनवरी 1780 में कलकत्ता से ‘दि ऑरिजिनल कैलकटा जनरल एड्वरटाइजर’ के नाम से अखबार निकाल कर किया, जोे पत्रकारिता की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल रही। उनके पत्र को ही देश का सबसे पहला समाचार पत्र और ‘हिकी’ज बंगाल गजट’ भी कहा जाता है। दो पृष्ठों के तीन कालम में दोनों ओर से छपने वाले इस अखबार के पृष्ठ 12 इंच लंबे और 8 इंच चौड़े थे। इसमें हिकी का विशेष स्तंभ ‘ए पोयट्स’ कार्नर भी होता था। अखबार में ईस्ट इंडिया कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों के व्यक्तिगत जीवन पर भी लेख छपते थे। हिकी ने इसके एक अंक में गवर्नर की पत्नी पर आक्षेप किया तो उसे चार महीने के लिये जेल भेजा गया और 500 रुपये का जुर्माना लगा दिया गया। लेकिन हिकी इस पर भी नहीं रुके, और जब उन्होंने गवर्नर और सर्वोच्च न्यायाधीश की आलोचना की तो उस पर 5000 रुपये का जुर्माना लगाया गया, और एक साल के लिये जेल में डाला गया। इस तरह उस का अखबार बंद हो गया।
अपने समाचार पत्र के बारे में हिकी ने कहा था-‘यह राजनीतिक और आर्थिक विषयों का साप्ताहिक पत्र है और इसका सम्बन्ध हर दल से है, मगर यह किसी दल के प्रभाव में नहीं आएगा।’ वहीं स्वयं के बारे में उन्होंने कहा था-‘मुझे अखबार छापने का विशेष चाव नहीं है, न मुझमें इसकी योग्यता है। कठिन परिश्रम करना मेरे स्वभाव में नहीं है, तब भी मुझे अपने शरीर को कष्ट देना स्वीकार है। ताकि मैं मन और आत्मा की स्वाधीनता प्राप्त कर सकूं।‘

पत्रकारिता की आवाज दबाने की पहली कोशिश-इंडिया गजट: ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों को सरकार की नीतियों व शीर्ष अधिकारियों पर आक्षेप करनेवाला हिकी’ज बंगाल गजट पसंद न था। सो, एक तरह से कंपनी ने इसके खिलाफ नवंबर 1780 में ही परोक्ष तौर पर पीटर रीड व मेलिन के माध्यम से ‘इंडिया गजट’ का प्रकाशन शुरू किया। इस पत्र में अक्सर हिकी‘ज गजट से लगाए जाने वाले आक्षेपों के जवाब दिए जाते थे। इस प्रकार सरकार की ओर से पत्रकारिता की आवाज को दबाने की नींव भी साथ-साथ पड़ गई। करीब 50 वर्षों तक प्रकाशित हुए इस परोक्ष सरकारी अखबार में ईस्ट इंडिया कंपनी की व्यावसायिक गतिविधियों के समाचार दिए जाते थे। इसी कारण यह अखबार इतनी लंबी अवधि तक भी चला।
इस बीच मई 1799 में सर वेलेजली ने सबसे पहले प्रेस एक्ट बनाया जो कि भारतीय पत्रकारिता जगत का पहला कानून था। इस कानून में नियमों का उल्लंघन करने पर देश से निष्कासित करने का प्राविधान जोड़ दिया गया था। इससे अखबारों को शुरू करने में काफी कठिनाइयां आने लगीं। समाचार पत्र का आर्थिक पक्ष तो कमजोर था ही, अंग्रेज सरकार भी अखबारों के बहुत खिलाफ थी। ऐसे में ‘बंगाल जर्नल’ के 1791 में संपादक रहे बिलियम डुएन व ‘इंडिया हेराल्ड’ के संपादक हंफ्रेश सहित अनेकों संपादकों को इस कानून के तहत भारत से निर्वासित कर जबरन जलपोत में बैठाकर इंग्लेंड भेज दिया गया।

भारतीय भाषा प्रेस का जन्म और विकास, राजा राम मोहन रॉय:
भारत में भारतीय भाषाई पत्रकारिता की कहानी राष्ट्रीय आंदोलन की कहानी भी है, क्योंकि उस दौर में भारतीय भाषाएँ, अंग्रेजी ही नहीं-अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने का प्रतीक और देश के जन-जन तक अपनी बात पहुंचाते हुए जनता को अंग्रेजों की कारगुजारियों से अवगत कराने का कारगर हथियार भी थी। इसकी शुरुआत बंगाल से हुई, और इसका श्रेय ब्रह्म समाज के संस्थापक और सती प्रणाली जैसी सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले राजा राममोहन राय को दिया जाता है, और उन्हें भारतीय भाषायी प्रेस का प्रवर्तक भी कहा जाता है। जिन्होंने सबसे पहले प्रेस को सामाजिक उद्देश्य से जोड़ते हुए भारतीयों के सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक हितों का समर्थन किया। समाज में व्याप्त अंधविश्वास और कुरीतियों पर प्रहार किये और अपने पत्रों के जरिए जनता में जागरूकता पैदा की। राममोहन राय ने कई पत्र शुरू किये। जिनमें प्रमुख है-वर्ष 1816 में संपादक गंगाधर भट्टाचार्य के सहयोग से प्रकाशित भारतीय भाषा का पहला समाचार पत्र ‘बंगाल गजट’। इसके अलावा राजा राममोहन राय ने एक अन्य भारतीय भाषा बंगाली के पहले साप्ताहिक समाचार-पत्र ‘संवाद कौमुदी’ (बुद्धि का चांद) का 1819 में, फारसी भाषा के अखबार ‘मिरातुल’ अखबार’का 1821 में और ‘समाचार चंद्रिका’ का मार्च 1822 में प्रकाशन किया। संवाद कौमुदी और मिरात उल अखबार भारत में स्पष्ट प्रगतिशील राष्ट्रीय और जनतांत्रिक प्रवृति के सबसे पहले प्रकाशन थे। ये समाज सुधार के प्रचार और धार्मिक-दार्शनिक समस्याओं पर आलोचनात्मक वाद-विवाद के मुख्य पत्र थे। राजा राम मोहन राय ने अंग्रेजी भाषा में ‘ब्राह्मनिकल मैगजीन’ व‘ बंगला हेराल्ड’ का प्रकाशन भी किया।
इस बीच 1818 में ही श्रीरामपुर से बैपटिस्ट पादरी जोशुआ मार्शमैन के संपादन में ‘दिग्दर्शन’ नाम का पत्र निकला जो अंग्रेजी व बंगला मिश्रित पत्र था, और भारतीय भाषा में पहला मासिक समाचार-पत्र भी था। मार्शमैन ने 23 मई 1818 से ‘समाचार दर्पण’ नाम से बंगला में एक अन्य पत्र भी निकाला। इसी तरह 1822 में बंबई में देशी प्रेस के प्रणेता फरदून जी मर्जबान ने गुजराती भाषा का पहला अखबार ‘बांबे समाचार’ (मुंबईना समाचार) शुरु किया जो शुरू में साप्ताहिक था, और दस वर्ष बाद दैनिक हो गया। भारतीय भाषा का यह सब से पुराने और आज भी छप रहे गुजराती के प्रमुख दैनिक के रूप में आज तक विद्यमान है। उल्लेखनीय है कि गुजराती भाषा के टाइप 1796 में तैयार हुए, और 1802 में मराठी भाषा में छपाई आरंभ हो पाई। अलबत्ता, मराठी भाषा की प्रेस की स्थापना 1812 में हुई, जिसके बाद ही मुंबईना समाचार के नाम से पहला गुजराती पत्र छपा। इस दौरान समाचार पत्र कई भाषाओं में भी छपते थे। 1822 में ही सदासुख के संपादकत्व में ‘जाने जहांनुमा’ नाम का फारसी पत्र प्रारंभ हुआ। इस पत्र की भाषा उर्दू मानी जाती है, और इसे उर्दू का पहला पत्र भी कहा जाता है।
1823 में जॉन एडम द्वारा लाये गए प्रथम प्रेस अधिनियम के बाद ‘मिरातुल अखबार’ को इसी वर्ष बंद होना पड़ा। हालांकि इसी वर्ष लॉर्ड विलियम बेंटिक के आने पर प्रेस कानून में कुछ लचीलापन आया। बेंटिक ने कहा कि वे समाचार पत्रों को मित्र और सुशासन में सहायक मानते हैं।
आगे 10 मई 1829 को राजा राममोहन राय ने द्वारकानाथ टैगोर एवं प्रसन्न कुमार टैगोर के साथ नीलरतन हालदार के संपादकत्व में बंगला, फारसी, हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं में ‘बंगदूत’ का प्रकाशन कर अन्य भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता के उत्थान में भी सहयोग दिया। ‘बंगदूत’ हर रविवार को निकलता था। इसके बंद होने के बाद 15 सालों तक हिंदी में कोई पत्र न निकला। इसका अंग्रेजी संस्करण ‘हिंदू हेराल्ड’ के नाम से प्रकाशित होता था, जो कि हिंदी पत्रकारिता के लिए राह तैयार करने के रूप में बड़ा कदम माना जाता है। इससे गैर हिंदी क्षेत्रों व संपादकों के लिए हिंदी में पत्र निकालने की परंपरा शुरू हुई। अलबत्ता, इसके बंद होने के बाद भी 15 सालों तक हिंदी में कोई पत्र न निकल सका।
आगे 1818 में ब्रिटिश व्यापारी ‘जेम्स सिल्क बकिंघम’ ने ‘कलकत्ता जनरल’ का सम्पादन किया। बकिंघम ही वह पहला प्रकाशक था, जिसने प्रेस को जनता के प्रतिबिम्ब के स्वरूप में प्रस्तुत किया। प्रेस का आधुनिक रूप जेम्स सिल्क बकिंघम का ही दिया हुआ है। इसने अपने संपादकीय में लिखा था, ‘संपादक के कार्य सरकार को उसकी भूलें बताकर कर्तव्य की ओर प्रेरित करना है, और इस आशय से कुछ अरुचिकर सत्य कहना अनिवार्य है।’ इस पत्र ने अपने पाठकों को ‘संपादक के नाम पत्र’ के अंतर्गत उनके विचार छापने के लिए भेजने को भी कहा था, तथा दो वर्ष में इस एक रुपए मूल्य के पत्र ने एक हजार से अधिक की प्रसार संख्या के साथ उस समय के सभी एंग्लोइंडियन पत्रों को पर गिरफ्तार कर भारत से निर्वासित कर इंग्लेंड वापस भेज दिया गया, किंतु इंग्लेंड जाकर भी उसने ‘ओरिएंटल हेराल्ड’ निकालकर भारतीय समस्याओं और कंपनी के हाथों में भारत का शासन बनाए रखने के विरुद्ध लगातार अभियान चलाए रखा। इस प्रकार हिकी तथा बकिंघम का पत्रकारिता के इतिहास में महत्पूर्ण स्थान है। कलकत्ता जनरल के दूसरे संपादक सैंडी आरनॉट को भी बाद में इसी तरह निर्वासित कर वापस इंग्लेंड भेजा गया।

हिंदी पत्रकारिता: 1818 में श्रीरामपुर से बैपटिस्ट पादरी जोशुआ मार्शमैन के संपादन में ‘दिग्दर्शन’ नाम के अंग्रेजी व बंगला मिश्रित पत्र, जिसे भारतीय भाषा में पहला मासिक समाचार-पत्र भी कहा जाता है, बताया जाता है कि इसके एक अंक की भाषा भी हिंदी थी। लेकिन इस विचार को सर्व मान्यता प्राप्त नहीं है। इसके साथ ही कर्नल जेम्स टाड के ‘एनल्स एंड एंटीक्वीटीज ऑफ राजस्थान’ भाग-2 में 1818 से 1820 के बीच एक दरबार रोजनामचा (कोर्ट जर्नल) निकलने की बात भी कही जाती है। हालांकि टाड ने इस पत्र की भाषा की चर्चा नहीं की है, किंतु पृष्ठ 101 पर लिखा है-‘‘अखबार’-बूंदी (राजस्थान), दिनांक 18 अक्टूबर 1820 का सारांश’’।
अलबत्ता, हिंदी पत्रकारिता की तार्किक और वैज्ञानिक आधार पर शुरुआत 30 मई 1826 से कोलकाता से कानपुर निवासी पं. युगल किशोर शुक्ल द्वारा प्रकाशित हिन्दी के प्रथम साप्ताहिक पत्र ‘उदंत मार्तण्ड’ के साथ ही मानी जाती है। श्री शुक्ल पहले सरकारी नौकरी में थे, लेकिन उन्होंने उसे छोड़कर समाचार पत्र का प्रकाशन करना उचित समझा। हालांकि हिन्दी में समाचार पत्र का प्रकाशन करना एक मुश्किल काम था, क्योंकि उस दौरान इस भाषा के लेखन में पारंगत लोग उन्हें नहीं मिल पा रहे थे। उन्होंने अपने प्रवेशांक में लिखा था कि ‘यह उदन्त मार्तण्ड’ हिन्दुस्तानियों के हित में पहले-पहल प्रकाशित है, जो आज तक किसी ने नहीं चलाया। अंग्रेजी, पारसी और बंगला में समाचार का कागज छपता है उसका सुख उन बोलियों को जानने वालों को ही होता है और सब लोग पराए सुख से सुखी होते हैं। इससे हिन्दुस्तानी लोग समाचार पढ़े और समझ लें, पराई अपेक्षा न करें और अपनी भाषा की उपज न छोड़ें।’
उदंत मार्तण्ड पत्र में ब्रज और खड़ी बोली दोनों के मिश्रित रूप का प्रयोग किया जाता था जिसे इस पत्र के संचालक ‘मध्यदेशीय भाषा’ कहते थे। इसे ‘पछांही हिंदी’ भी कहा गया है। यह पत्र हिकी‘ज बंगाल गजट की भांति ही पुस्तकाकार (20 अंगुल लंबा व 15 अंगुल चौड़ा, 12 गुणा 8 इंच के आकार) में हर मंगलवार को निकलता था। इसमें सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति, सरकारी विज्ञप्ति, जनता के विज्ञापन, पानी के जहाजों की समय सारणी, कलकत्ता के बाजार भाव, तथा देख-दुनिया की खबरें प्रमुखता से छपती थीं। इसका मूल्य प्रति अंक आठ आने और मासिक दो रुपये था। क्योंकि इस अखबार को सरकार विज्ञापन देने में उपेक्षा पूर्ण रवैया अपनाती थी, इसे डाक सुविधा भी नहीं दी गई। सो यह आर्थिक संकट, सरकारी सहयोग के अभाव और बंगाल में हिन्दी के जानकारों और ग्राहकों की कमी, कम्पनी सरकार के प्रतिबन्धों से अधिक नहीं लड़ पाया। इसके कुल 79 अंक ही प्रकाशित हो पाए थे कि आर्थिक संकट और आखिरकार ठीक 18 महीने के पश्चात 11 दिसंबर 1827 में इसे बंद करना पड़ा। अलबत्ता, इस अखबार ने हिन्दी पत्रकारिता को एक नई दिशा देने का काम तो कर ही दिया। उन्होंने अपने अंतिम पृष्ठ में लिखा-
‘आज दिवस को उग चुक्यो मार्तण्ड उदन्त।
अस्तांचल को जात है दिनकर अब दिन अंत।’
आगे 1850 में पं. शुक्ल ने सामदण्ड मार्तण्ड या साम्यदंड मार्तण्ड नाम का एक अन्य पत्र भी प्रकाशित किया।
कलकत्ता में हिंदी का श्रीगणेश करने वाले विद्वानों में गिल क्राइस्ट नाम के अंग्रेज की भी गिनती की जाती हैं। इस दौरान बंगला पत्र ‘समाचार दर्पण’ के 21 जून 1834 के अंक से ‘प्रजामित्र’ नामक हिंदी पत्र के कलकत्ता से प्रकाशित होने की सूचना भी मिलती है। लेकिन अपने शोध ग्रंथ में डॉ. रामरतन भटनागर ने उसके प्रकाशन को संदिग्ध माना है।
हिंदी पत्रकारिता को हिंदी पट्टी में आने में उद्दंत मार्तंड के बंद होने के बाद भी करीब 17 वर्ष लग गए। जनवरी 1845 में राजा शिव प्रसाद ‘सितारे हिंद’ ने पंडित गोविंद रघुनाथ धत्ते के संपादकत्व में हिंदी पत्र ‘बनारस अखबार’ का प्रकाशन शुरू किया, जो हिंदी प्रदेश का पहला हिंदी समाचार पत्र था। शिव प्रसाद शुद्ध हिंदी का प्रचार करते थे। बनारस अखबार देवनागरी लिपि में छपता था, उन्होंने अपने पत्र में उन लोगों की कड़ी आलोचना की जो बोल-चाल की हिंदुस्तानी के पक्ष में थे। बावजूद इस पत्र में उर्दू भाषा का अधिक प्रयोग होता था।
एक खास बात यह भी है कि 1921 तक बनारस अखबार को ही हिंदी का पहला समाचार पत्र माना जाता था। मॉडर्न रिव्यू और प्रवासी पत्रों के उप संपादक ब्रजेंद्र नाथ बंद्योपाध्याय को बंगला समाचार पत्रों को खोजते हुए राधाकांत देव पुस्तकालय में उद्दंत मार्तण्ड की प्रतियां मिलीं, तब जाकर हिंदी समाचार पत्रों का इतिहास 1845 से खिसककर 1826 तक पहुंचा।
इसी समय के हिंदी लेखक और राजा के शिष्य भारतेंदु हरिश्चंद्र ने ऐसी रचनाएं रचीं जिन की भाषा समृद्ध भी थी और सरल भी। इस तरह उन्होंने आधुनिक हिंदी की नींव रखी है और हिंदी के भविष्य के बारे में हो रहे विवाद को समाप्त कर दिया।
1846 में कलकत्ता से प्रकाशित इंडियन सन पांच भाषाओं हिंदी, फारसी, बंगला,अंग्रेजी व उर्दूं में छपना प्रारंभ हुआ था। इसके हिंदी खंड का नाम ‘मार्तण्ड’ था।

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