April 19, 2024

मुख्यमंत्री ने किया प्रदेश के 26 वन गांवों को बिजली, पानी, सड़क के साथ ही ग्राम प्रधानों को मुहर भी देने का दावा

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-जिम कार्बेट पार्क में अब 50-50 महिला नेचर गाइड व जिप्सी चालकें भी होंगी
-10 हजार स्थानीय युवा कौशल विकास कर प्राप्त करेंगे स्वरोजगार

नवीन समाचार, रामनगर, 21 मार्च 2021। प्रदेश के मुख्यमंत्री तीरथसिंह रावत ने रविवार को विश्व वानिकी दिवस के अवसर पर नैनीताल जनपद के रामनगर में आयोजित कार्यक्रम में प्रतिभाग किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार राज्य में वन और जन की दूरी कम करने की पहल कर रही है। उन्होंने इस मौके पर प्रदेश के 26 वन ग्रामों को अन्य गांवों की भांति बिजली, पानी व सड़क जैसी सुविधाओं के साथ विकास की मुख्यधारा से जोड़ने आगे यहां ग्राम प्रधानों को राजस्व गांवों की तरह मुहर भी देने की बात कही। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि राज्य में वन संरक्षण एवं संवर्धन में राज्य की महिलाओं की सीधी भागीदारी सुनिश्चित करने तथा इसके फलस्वरूप स्वरोजगार की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए कौशल विकास के माध्यम से 10 हजार युवक-युवतियों को स्वरोजगार से जोड़ा जाएगा। उन्होंने कहा कि इस दिशा में कार्बेट टाइगर रिजर्व में राज्य सरकार द्वारा उत्कृष्ट पहल की जा रही है, जिसके अंतर्गत भारत में पहली बार किसी टाइगर रिजर्व में 50 महिलाएं नेचर गाइड के रूप में और 50 महिलाएं जिप्सी चालक के रूप में पर्यटकों को सफारी करवाएंगी। बताया कि कार्बेट टाइगर रिजर्व में अगले पर्यटन सत्र के लिए 50 अतिरिक्त जिप्सियों का पंजीकरण किया जाएगा, जिनमें महिला जिप्सी चालक का पंजीकरण किया जाएगा। इन महिलाओं को ‘वीर चंद्र सिंह गढ़वाली’ योजना के अंतर्गत जिप्सी क्रय करने के लिए आवश्यक वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाई जाएगी।
देखें मुख्यमंत्री का पूरा संबोधन :

https://twitter.com/TIRATHSRAWAT/status/1373512944353349634

इसके अलावा उन्होंने कार्बेट टाइगर रिजर्व के अंतर्गत आमडंडा में खनिज न्यास के 2 करोड एवं उत्तराखंड वन विकास निगम व कार्बेट फाउंडेशन के 1-1 करोड रुपयों से जिम कार्बेट एवं वन्य जीवों पर आधारित ‘लाइट एंड साउंड शो एवं एम्फीथिएटर की स्थापना करने, भरतरि, पंपापुरी, दुर्गापुरी और कौशल्यापुरी कॉलोनियों के विनियमितिकरण की प्रक्रिया शीघ्र प्रारंभ करने, कार्बेट नेशनल पार्क के डेला रेंज में निर्माणाधीन विश्व स्तरीय वाइल्ड लाइफ रेस्क्यू सेंटर को बाघों के दर्शन के लिए पर्यटकों के लिए खोलने, रामनगर के उत्तरी छोर में कोसी नदी की बाढ़ से सुरक्षा हेतु तटबंध का निर्माण करने, रामनगर में कुमाऊं और गढ़वाल से संचालित होने वाली बसों के लिए भी बस स्टेशन का निर्माण करने की बात भी कही।

कार्यक्रम में वनमंत्री डॉ. हरकसिंह रावत ने महिलाओं को नेचर गाइड बनाने का हिंदुस्तान में पहला प्रयोग करने को उल्लेखनीय बताया जिसके माध्यम से महिलाएं 25 हजार रुपए महीना कमा रही हैं। इस अवसर पर चंपावत के विधायक कैलाश चंद्र गहतौड़ी, रामनगर के विधायक दीवान सिंह बिष्ट, उत्तराखंड वन विकास निगम के अध्यक्ष सुरेश परिहार, डीएम डीएम धीराज गर्ब्याल, पीसीसीएफ राजीव भरतरी, विनोद सिंघल, जेएस सुहाग, कार्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक राहुल व उपनिदेशक कल्याणी, कुमाऊं कमिश्नर अरविंद सिंह ह्यांकी व आईजी अजय रौतेला तथा वन व अन्य विभागों के अनेक अधिकारी और ईडीसी व वन पंचायतों के प्रतिनिधि और गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।

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नवीन समाचार, रामनगर, 6 दिसंबर 2019। स्वीडन के राजा कार्ल 16 गुस्ताफ और रानी सिल्विया ने शुक्रवार को जिम कार्बेट पार्क में जंगल सफारी का आनंद लिया और पत्थरकुआं में वन गुज्जर बस्ती भी गये। उत्तराखंड के भ्रमण पर कल यहां पहुंचे स्वीडन के राजा और रानी ने जिम कार्बेट पार्क में वन्य जीव, जैव विविधता एवं प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लिया। शाही जोड़े ने अधिकारियों से वन्य जीवों तथा उनके रहनकृसहन के बारे में भी जानकारी ली। कॉर्बेट पार्क की दिलकश वादियों का नजारा देखते हुए स्वीडन के शाही दंपति ने वहां की नैसर्गिक सुन्दरता की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। उन्होंने झिरना जोन में स्वच्छन्द विचरण कर रहे वन्यजीवों को करीब से निहारा। सफारी के बाद उन्होंने पत्थरकुआं स्थित गुज्जर बस्ती में जाकर वनों में निवास कर रहे गुज्जरों के जीवन यापन के बारे में जानकारी ली। कालागढ़ में वन विश्रामगृह में राजा कार्ल गुस्ताव व रानी सिल्विया ने अहाते में खड़े बरगद के विशाल पेड़ के बारे में जानकारी चाही। जिसके बारे में कालागढ़ के उप प्रभागीय वनाधिकारी आरके तिवारी ने बताया कि यह वृक्ष भारत का एक पवित्र वृक्ष है। इसकी आयु लगभग 300 वर्ष तक होती है।

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नवीन समाचार, नैनीताल, 15 मार्च 2019। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने जिम कार्बेट पार्क के ढिकाला जोन में सैलानियों को घुमाने के लिए खरीदी जा रही विवादित सफारी वाहनों को खरीदने की प्रक्रिया पर रोक लगा दी है, साथ ही पार्क के निदेशक से भी मामले में जवाब दाखिल करने को कहा है।
मामले के अनुसार जिम कार्बेट पार्क के निदेशक ने नवंबर 2018 में चार कैंटर सफारी वाहन खरीदने के लिए निविदाएं आमंत्रित की थीं। 21 लोगों ने निविदाएं डालीं। इनमें से चार ही निविदा की शर्तें पूरी करते थे। याची अधिवक्ता दुश्यंत मैनाली का आरोप है कि इन चारों के साथ ही तीन अन्य लोगों से भी गाड़ियां दिखाने को कहा गया और बाद में विवाद हुआ तो निविदा प्रक्रिया ही निरस्त कर दी गयी। अब हाईकोर्ट ने भी निविदा प्रक्रिया पर रोक लगा दी है।

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नवीन समाचार, नैनीताल, 24 फरवरी 2019। हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं, ग्लेशियरों, बुग्यालों, नदियों, झीलों-तालों, सघन वनों एवं चरागाहों की अपार खूबसूरती व समृद्ध जैव विविधता युक्त उत्तराखंड राज्य में इको टूरिज्म यानी पारिस्थितिकीय पर्यटन, पर्यटन का नया बड़ा क्षेत्र बन कर उभरा है। इसकी पुष्टि इस तथ्य से होती है कि बीते वर्ष राज्य में इस क्षेत्र में पांच लाख सैलानी पहुंचे हैं। इस क्षेत्र में पर्यटन के उभरने में राज्य में बाघों के लिये मशहूर जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान और एशियाई हाथियों के आवास के रूप में प्रसिद्ध राजाजी राष्ट्रीय पार्क सहित राज्य के सभी संरक्षित वन क्षेत्रों में मौजूद अनूठी जैव विविधता की प्रमुख भूमिका है, और इस क्षेत्र में आगे भी अपार संभावनायें बताई जा रही हैं।
ताजा आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2017-18 में उत्तराखंड के संरक्षित क्षेत्रों में 15,984 विदेशियों सहित 5,12,949 पर्यटक आये। इसके अलावा भी आरक्षित वन क्षेत्रों में स्थित गंतव्यों में भी बडी संख्या में पर्यटक प्रकृति का आनंद लेने पहुंचे। इस तरह प्रदेश में इको-टूरिज्म गतिविधियों के माध्यम से पिछले साल कुल 17.38 करोड़ रूपये का राजस्व मिला जिसमें सरंक्षित क्षेत्रों में स्थित गंतव्यों से 12 करोड़ रूपये तथा शेष 5.38 करोड़ रूपये आरक्षित वन क्षेत्रों से प्राप्त हुए।

710 पक्षी प्रजातियों के साथ अनेक वन्य जीवों के होते हैं दर्शन
प्रदेश के वन क्षेत्रों में बाघ, एशियाई हाथी, तेंदुआ, कस्तूरी मृग, हिमालयी काला भालू, मोर, तीतल, गिद्ध और मोनाल की उपस्थिति के अलावा काफी संख्या में शीतकालीन प्रवासी पक्षी भी आते हैं जो इसे इको टूरिज्म का अच्छा गंतव्य बनाते हैं । भारत में पायी जाने वाली पक्षी प्रजातियों की आधे से अधिक यानी 710 प्रजातियां अकेले उत्तराखंड में ही दर्ज की गयी हैं और इसलिये प्रदेश को ‘पक्षियों का स्वर्ग’ भी कहा जाता है।

राज्य में पांच इको टूरिज्म सर्किट
राज्य में इको टूरिज्म को व्यवसाय के रूप में अपनाने के दृष्टिकोण से सरकार ने कंपनी एक्ट-2013 के तहत अलग से उत्तराखंड इको टूरिज्म डेवलपमेंट कारपोरेशन का गठन भी किया है। इस कारपोरेशन ने इको टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिये पांच इको टूरिज्म सर्किट विकसित किये हैं। इनमें से पहले सर्किट में देहरादून-ऋषिकेश, टिहरी गढ़वाल, धनोल्टी, रानीचौरी, टिहरी झील और काडाझाख तथा दूसरे सर्किट में हरिद्वार, कोटद्वार कण्वाश्रम, चिडियापुर, रसियाबाड, सेंधीखाल, स्नेह और कोल्हूचौड, तीसरे सर्किट में रामनगर, नैनीताल, देचौरी, रामनगर, तितालिखेत तथा कौसानी, चौथे सर्किट में चकराता, टौन्स, आसन बैराज, काणसर और जरमोला तथा पांचवे सर्किट में टनकपुर, चंपावत, चोरगलिया, देवीधूरा, पहाड़पानी तथा महेशखान को सम्मिलित किया गया है।

14 इको टूरिज्म गंतव्य भी
उत्तराखंड के वन क्षेत्रों में 14 इको टूरिज्म गंतव्य विकसित किये गये हैं जिनमें धनोल्टी इको पार्क, सिमतोला इको पार्क-अल्मोडा, कौडिया इको पार्क टिहरी, लच्छीवाला नेचर पार्क, नीर झरना ऋषिकेश, हिमालय बॉटनिकल गार्डन नैनीताल, संजय वन हल्द्वानी, चौरासी कुटिया राजाजी टाइगर रिजर्व, जीबी पंत हाई अल्टीटयूड जू नैनीताल, देहरादून जू हर्बल गार्डन, इको पार्क मुनस्यारी, कार्बेट म्यूजियम कालाढूंगी, कार्बेट फॉल कालाढुंगी रामनगर व बराती राव रामनगर शामिल हैं।

यह इको-टूरिज्म गतिविधियां भी मौजूद

उत्तराखंड में आने वाले पर्यटकों को इको-टूरिज्म गतिविधियों के तहत वन्यजीव सफारी, कैम्पिंग, बर्ड वाचिंग, ट्रेकिंग, एंगलिंग, नेचर वाक, बटरफ्लाइ वॉचिंग की सुविधाएं उपलब्ध हैं। इन गतिविधियों में पर्यटकों को होम-स्टे सुविधा उपलब्ध कराना, नेचर फेस्टिवल के आयोजन, बर्ड तथा नेचर गाइडों को प्रशिक्षण आदि के जरिये स्थानीय लोगों को शामिल किया गया है जिससे वे आय अर्जन भी कर पाते हैं।

यह भी पढ़ें : सीटीआर में हाईकोर्ट की सख्ती से पर्यटन कारोबार चौपट होने की कगार पर

नैनीताल, 15 नवंबर 2018। कार्बेट टाइगर रिजर्व (सीटीआर) में उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा वन विश्राम गृहों में रात्रि विश्राम पर रोक और उसके अंदर वाहनों के आवागमन पर नियंत्रण लगाने जैसे कई सख्त आदेशों से इस लोकप्रिय पर्यटन स्थल का कारोबार चौपट होने की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। इन स्थितियों की जानकारी प्राप्त कर चुके बहुत से पर्यटकों ने बुकिंग रद्द कर दी हैं, जिससे क्षेत्र में स्थित पर्यटन संस्थाओं-रिजॉर्ट्स आदि को तो काफी नुकसान हुआ ही है, सीटीआर में मौजूद सरकारी वन विश्राम गृहों का राजस्व भी जमीन पर आ गया है। साथ ही इन स्थितियों की जानकारी के अभाव में यहां भ्रमण करने पहुंच रहे सैलानी परेशान हो रहे हैं। वहीं स्थानीय लोगों का रोजगार भी बुरी तरह से प्रभावित हो गया है। इसके बाद स्थानीय लोग पर्यटन कारोबार में सैलानियों के साथ धोखाधड़ी बढ़ने की भी आशंका जता रहे हैं। उनका कहना है कि यदि आसानी से नियमों के अंतर्गत पार्क में जाने की अनुमति नहीं मिलेगी तो हो सकता है यही काम चोरी-छुपे हो, और ऐसे में वन्य जीवों के लिये खतरे उच्च न्यायालय की मंशा के विपरीत घटने के बजाय और बढ़ जाएं। उल्लेखनीय है कि उच्च न्यायालय की सख्ती से सरोवरनगरी नैनीताल का पर्यटन भी काफी प्रभावित हुआ है।

देश में बाघों के लिये मशहूर कार्बेट रिजर्व में देश के अलावा विदेशों से भी भारी संख्या में पर्यटक घूमने आते हैं। ढिकाला का उदाहरण देते हुए रिजर्व के निदेशक ने कहा कि ढिकाला जोन खुलने का समय आ गया है, लेकिन हमेशा इस वक्त होने वाला उत्साह इस बार गायब है। क्योंकि यहां वन विश्राम गृहों में कोई रात्रि विश्राम नहीं होगा और वन्य जीवों की सफारी के लिये जाने वाली जिप्सी की संख्या भी सीमित कर दी गयी है। इस आदेश के चलते भारी संख्या में बुकिंग रद्द होने और पर्यटकों के देश के अन्य बाघ अभयारण्य में जाने को वरीयता देने से कार्बेट में पर्यटन व्यवसाय से जुडे लोग भी काफी निराश हो गये हैं। सीटीआर के निदेशक राहुल ने बताया कि धारा, झिरना, ढेला, बिजरानी और ढिकाला सहित रिजर्व के विभिन्न भागों में स्थित वन विश्रााम गृहों में रात्रि विश्राम पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय द्वारा प्रतिबंध लगाने से बडी संख्या में बुकिंग रद्द हुई हैं जिससे रिजर्व के राजस्व को भारी हानि हुई है। वहीं क्षेत्र के एक नामी रिजॉर्ट के पर्यटन सलाहकार मनीष कुमार ने कहा है कि मौजूदा स्थितियों में पूरे जिम कॉर्बेट क्षेत्र का पर्यटन कारोबार चौपट होने की स्थिति उत्पन्न हो गयी है। अन्य पर्यटन कारोबारियों का भी मानना है कि रिजर्व में पर्यटन से संबंधित कारोबार में कम से कम 50-60 फीसदी तक की गिरावट आ गयी है।

उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड उच्च न्यायालय सीटीआर को लेकर खासा सक्रिय नजर आ रहा है। न्यायालय की खंडपीठ ने बीती 10 अगस्त को दिये अपने आदेश में कहा था, ‘हमारा विचार है कि वन्यजीवों को बचाने के लिये किसी भी पर्यटक को राष्ट्रीय पार्को, संरक्षित जंगलों और रिजर्व जंगलों में रात भर ठहरने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।’ इससे पहले उच्च न्यायालय की इसी पीठ ने अपने एक आदेश में रिजर्व के विभिन्न जोनों में एक दिन में प्रवेश करने वाले वाहनों की संख्या को 100 तक सीमित कर दिया था। साथ ही रिजॉर्टों में पाले गये हाथियों को भी जब्त करने के आदेश दिये थे। वहीं एक अन्य आदेश में यहां के 5 रिजॉर्ट मालिकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश भी दिये थे।

पूर्व समाचार : जिम कार्बेट पार्क के रिसॉर्ट मालिकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश

नैनीताल, 14 सितंबर 2018। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की खंडपीठ ने जिम कार्बेट पार्क में वन्य जीवों  की सुरक्षा के मामले में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए पांच अतिक्रमणकारी रिसॉर्ट मालिकों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिये हैं ।साथ ही डीएफओ रामनगर और डीएफओ अल्मोड़ा को एक महिने के भीतर इन पांचों रिसॉर्ट से सरकारी भूमि से अतिक्रमण को मुक्त कराने और रिसॉर्ट में जाने के लिये रामगंगा नदी में बनी सड़क को भी तुरंत सील करने के आदेश दिये हैं । इसके साथ ही कार्बेट पार्क में जिप्सियों की संख्या बढ़ाने को लेकर दायर प्रार्थना पत्र पर विचार करने से फिलहाल मना कर दिया है, और एनटीसीए की हाई पावर कमेटी को जांच कर बताने को कहा है कि कार्बेट पार्क में कितने वाहन जा सकते हैं। साथ ही वन संरक्षक को लम्बित वादों का निस्तारण आठ हफ्तों के भीतर करने को भी कहा है । उल्लेखनीय है कि वन्यजीव सुरक्षा व रिजार्ट मालिकों द्वारा किये गये अतिक्रमण के खिलाफ हाई कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई है। जिसमें कोर्ट ने पूर्व में भी 40 के करीब रिजोट्स द्वारा कब्जायी सरकारी, वन भूमि व नजूल भूमि से अतिक्रमण को हटाने के आदेश दिया है।

यह भी पढ़ें : जिम कार्बेट पार्क के झिरना, बिजरानी व दुर्गादेवी जोन में वाहन चलाने की मिली अनुपति

नैनीताल, 14 सितंबर 2018। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की खंडपीठ ने जिम कार्बेट पार्क के झिरना व बिजरानी जोन में प्रति दिन 32 प्राइवेट व व्यवसायिक वाहनों एवं दुर्गादेवी जोन में 15 जिप्सी चलाने की अनुमति दे दी है। साथ ही पार्क क्षेत्र में वाहनों के ध्वनि प्रदूषण से पार्क में जानवरों को होने वाली असुविधा को कम करने के लिए एनटीसीए से चार सप्ताह में इलेक्ट्रॉनिक वाहन चलाये जाने की संभावनाओं के बारे में पूछा है।

इधर शुक्रवार को खंडपीठ में सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से बताया गया कि पार्क में बाघों के संरक्षण के लिए ‘टाइगर प्रोटेक्टशन रिर्जव फोर्स’ का गठन कर उसका संचालन शुरू कर दिया गया है। सुनवाई के दौरान दो रिसोर्ट स्वामियों ने उनके कब्जे से छुड़ाए गए हाथियों को पुनः वापस करने का प्रार्थना पत्र देकर कहा कि जब हाथी उनके पास थे तब बीमार नही थे। किन्तु खंडपीठ ने पशु चिकित्सक की इस रिपोर्ट के आधार पर कि हाथी कब्जे से लिए जाने के दौरान से ही बीमार थे। दो हाथियों को टीबी की बिमारी थी, रिसोर्ट स्वामियों के प्रार्थना पत्रों को निरस्त कर दिया।

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Elephants by Balbeer Singh
जिम कॉर्बेट पार्क में हाथियों का झुण्ड

देश में राष्ट्रीय पशु-बाघों की ताजा गणना के अनुसार बाघों को बचाने के मामले में देश में नंबर-एक घोषित तथा भारत ही नहीं एशिया के पहले राष्ट्रीय पार्क-जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान और ब्याघ्र अभयारण्य को 1973 से देश का ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के तहत पहला राष्ट्रीय वन्य जीव अभयारण्य होने का गौरव भी प्राप्त है। उत्तराखंड राज्य की तलहटी में समुद्र सतह से 400 (रामनगर) से 1100 मीटर (कांडा) तक की ऊंचाई तक, पातली दून, कोसी व रामगंगा नदियों की घाटियों और राज्य के दोनों मंडलों कुमाऊं और गढ़वाल के नैनीताल व पौड़ी जिलों में 1288 वर्ग किमी क्षेत्र में फैले दुनिया के इस चर्चित राष्ट्रीय उद्यान में प्रकृति ने दिल खोल कर अपनी समृद्ध जैव विविधता का वैभव बिखेरा है। हरे-भरे वनों से आच्छादित पहाडियां, कल-कल बहते नदी नाले, चौकड़ी भरते हिरनों के झुंड, संगीत की तान छेडते पंछी, नदी तट पर किलोल भरते मगर, चिंघाड़ते हुए हाथियों के समूह और सबसे रोमांचक रॉयल बंगाल टाइगर की दहाड की गूंज जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व की सैर को अविस्मरणीय बना देते हैं।

पार्क के निर्माण का इतिहास

प्रकृति की अपार वन व जैव-सम्पदा को स्वयं में समेटे जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व की स्थापना आठ अगस्त 1936 में ‘हेली नेशनल पार्क’ के नाम से हुई थी। ब्रिटिश शासन से पूर्व यह क्षेत्र टिहरी गढ़वाल के शासकों की निजी सम्पत्ति हुआ करता था। बेहद दमनकारी गोरखा शासकों के कुमाऊं में आधिपत्य जमाने के दौर में गढ़वाल शासकों ने इसे गोरखाओं के कब्जे में जाने से बचाने के लिए वर्ष 1820 के आसपास राज्य के इस हिस्से को ब्रिटिश शासकों को सौंप दिया था। अंग्रेजों ने पहले रेलगाड़ियों की सीटों के लिए यहां खड़े टीक के पेड़ों को भारी मात्रा में दोहन किया। पहली बार वर्ष 1858 में बाद में कुमाऊं कमिश्नर रहे मेजर हैनरी रैमजे ने यहां के वनों को सुरक्षित रखने के लिये व्यवस्थित कदम उठाये। इसी क्रम में वर्ष 1861-62 में ढिकाला और ‘बोक्साड के चौडों’ (घास के मैदानों) में खेती, मवेशियों को चराने और लकडी कटान पर रोक लगा दी गई। वर्ष 1868 में इन वनों की देखभाल का जिम्मा वन विभाग को सौंपा गया और 1879 में वन विभाग ने इसे अपने अधिकार में लेकर संरक्षित क्षेत्र घोषित किया। वर्ष 1907 में सर माइकल कीन ने इन वनों को वन्य प्राणी अभयारण्य बनाने का प्रस्ताव रखा, किंतु सर जौन हिवेट ने इसे अस्वीकृत कर दिया। इसके पश्चात वर्ष 1934 में तत्कालीन संयुक्त प्रान्त के गवर्नर सर मैल्कम हेली ने इसे अभयारण्य बनाने की योजना बनाई और इसी दौरान लंदन में संपन्न संगोष्ठी में संयुक्त प्रान्त के पर्यवेक्षक स्टुवर्ड के प्रयासों से राष्ट्रीय उद्यान का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया। 1935 में सरकार ने वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम के तहत देशभर में राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों के नेटवर्क में वन्य जीवों के आवास का संरक्षण किया और इस तरह वर्ष 1936 में राष्ट्रीय पार्क की स्थापना हुई और इसे हेली नेशनल पार्क के नाम से जाना जाने लगा। स्वतंत्रता के बाद पहले इसका नाम ‘रामगंगा नेशनल पार्क’ और 1957 में इसे जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान में इसके सीमांकन और इसे स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले और क्षेत्रीय लोगों को आदमखोर बाघों को मारकर भयमुक्त करने वाले मशहूर अंग्रेज शिकारी व पर्यावरण प्रेमी जिम कार्बेट के निधन के पश्चात श्रद्धांजलि स्वरूप इस पार्क को ‘जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान’ नाम दे दिया गया। है। 1973 में देश में वैज्ञानिक, आर्थिक, सौन्दर्यपरक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिकीय मूल्यों की दृष्टि से वन्य जीवों की व्यवहारिक संख्या बनाए रखने तथा लोगों के लाभ, शिक्षा और मनोरंजन के लिए राष्ट्रीय विरासत के रूप में जैविक महत्व के ऐसे क्षेत्रों को सदैव के लिए सुरक्षित बनाए रखने के उद्देश्य से बाघ परियोजनाओं की शुरूआत के समय देश के 14 राज्यों में पहले 23 और बाद में दो और मिलाकर कुल 25 आरक्षित वन क्षेत्र-काजीरंगा, दुधवा, रणथंभौर, भरतपुर, सरिस्का, बांदीपुर, कान्हा, सुन्दरवन आदि अभयारण्यों की स्थापना की गई। 1993 में जिम कार्बेट पार्क को भी इस योजना के तहत शामिल किया गया।

पार्क का क्षेत्रफल

प्रारंभ में जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व 323.50 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ था। आगे वन्य जन्तुओं की आवश्यकताओं के मद्देनजर वर्ष 1916 में इसमें 197.07 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र और मिलाया गया। इस तरह इसका क्षेत्रफल बढकर 520.82 वर्ग किलोमीटर हो गया। पहली अप्रैल 1973 को ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ नामक महत्वाकांक्षी परियोजना का श्रीगणेश इसी पार्क से किया गया। फलस्वरूप 1991 में एक बार फिर इसके विस्तार करने की जरूरत पड़ी, और इसमें सोना नदी वन्य जन्तु विहार और कालागढ आरक्षित वन क्षेत्र को मिलाकर इसका क्षेत्रफल बढ़ाकर 1288 वर्ग किमी हो गया। इसके अंतर्गत 521 वर्ग किमी क्षेत्रफल में जिम कॉर्बेट व्याघ्र संरक्षित क्षेत्र भी आता है।

कब जायेंः

जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व की सैर के लिए 15 नवंबर से 15 जून के बीच का समय सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। नवम्बर से फरवरी के मध्य यहां तापमान 25 से 30 डिग्री, मार्च-अप्रैल में 35 से 40 तथा मई-जून में 44 डिग्री तक पहुंच जाता है।

कैसे जायेंः

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जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व देश के सभी प्रमुख शहरों से सडक व रेल मार्ग से जुडा हुआ है। दिल्ली से राष्ट्रीय राजमार्ग 24 से गाजियाबाद, हापुड होकर मुरादाबाद पहुंचने के बाद यहां से स्टेट हाइवे 41 को पकडकर काशीपुर, रामनगर होते हुए यहां पहुंच सकते हैं। लखनऊ से भी राष्ट्रीय राजमार्ग 24 से सीतापुर, शाहजहांपुर, बरेली होते हुए मुरादाबाद और वहां से उपरोक्त मार्ग से कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान पहुंचा जा सकता है। निकटतम रेलवे स्टेशन रामनगर व हल्द्वानी है जो दिल्ली, लखनऊ और मुरादाबाद से जुड़े हुए हैं। वायु मार्ग से यहां पहुंचने के लिये 115 किमी दूर पन्तनगर निकटतम हवाई अड्डा है। यह दिल्ली से 290 किमी, लखनऊ से 503 किमी व देहरादून से 203 किमी दूर है। रामनगर में पार्क प्रशसन का मुख्य कार्यालय है, जहां से परमिट लेकर छोटी गाड़ियों, टैक्सियों और बसों से पार्क के 12 किमी की दूरी पर स्थित पार्क के मुख्य गेट एवं 47 किमी दूर ढिकाला तक पहुंचा जा सकता है। उद्यान के अन्दर ही लकड़ी के मचान युक्त लॉज, कैंटीन व लाइब्रेरी भी उपलब्ध हैं। जहां बैठकर वन्य जीवों के दर्शन के साथ ही उनका अध्ययन भी किया जा सकता है।

कहां ठहरेंः

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लीला विलास रिजोर्ट ढिकुली रामनगर

जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व में पर्यटकों के आवास के लिये कुमाऊं मंडल विकास निगम के वन विश्राम गृह, ब्रिटिशकालीन वन विश्राम गृहों से लेकर आधुनिक पर्यटक आवास गृह और स्विस कॉटेज टैंट आदि की समुचित व्यवस्था है। सुविधाओं की दृष्टि से ढिकाला पर्यटकों के ठहरने की पसंदीदा स्थान है। इसके अतिरिक्त लोहा चौड़, गैरल, सर्पदुली, खिनानौली, कंडा, यमुनाग्वाड़, झिरना, बिजरानी, हल्दू पड़ाव, मुड़िया पानी और रघुवाढाव सहित 23 वन विश्राम भवन भी हैं, जिनके लिए ऑनलाइन माध्यम से अग्रिम आरक्षण की सुविधा भी उपलब्ध है। ढिकुली स्थित लीला विलास, व नमह और पाटकोट स्थित बाघ द रिजोर्ट जैसे रिजोर्ट में भी बेहतरीन सुविधा उपलब्ध है। कार्बेट टूरिज्म जैसी संस्थाओं से सफारी की सुविधा प्राप्त की जा सकती है।

क्या देखेंः

जंगली जीवः जिम कार्बेट पार्क का मुख्य आकर्षण यहां देश की सर्वाधिक संख्या में मिलने वाले राष्ट्रीय पशु बाघ-रॉयल बंगाल टाइगर हैं। साथ ही यहां रामगंगा के इर्द-गिर्ग फैले घास के पठारों से ‘चौडों’ यानी मैदानों और ‘मंझाड़े’ (जल के मध्य स्थित जंगल), में सैंकडों की तादाद में हिरनों खासकर स्पॉटेड डियर यानी चीतलों के झुंड सहजता से नजर आ जाते हैं। भारतीय हाथी, गुलदार, जंगली बिल्ली, फिशिंग कैट्स, हिमालयन कैट्स, हिमालयन काला भालू, सुअर, तेंदुवे, गुलदार, सियार, जंगली बोर, पैंगोलिन, भेड़िए, मार्टेंस, ढोल, सिवेट, नेवला, ऊदबिलाव, खरगोश, चीतल, सांभर, हिरन, लंगूर, नीलगाय, स्लोथ बीयर, सांभर, काकड़, चिंकारा, पाड़ा, होग हिरन, गुंटजाक (बार्किग डियर) सहित कई प्रकार के हिरण, तेंदुआ बिल्ली, जंगली बिल्ली, मछली मार बिल्ली, भालू, बंदर, जंगली, कुत्ते, गीदड़, पहाड़ी बकरे (घोड़ाल) तथा हजारों की संख्या में लंगूर और बंदरों के अलावा रामगंगा नदी के गहरे कुंडों में शर्मीले स्वभाव के घड़ियाल और तटों पर मगरमच्छ, ऊदबिलाव और कछुए सहित 50 से ज्यादा स्तनधारी पाए जाते हें। रामगंगा व उसकी सहायक नदियों में स्पोर्टिंग फिश कही जाने वाली महासीर, रोहू, ट्राउट, काली मच्छी, काला वासु और चिलवा प्रजाति की मछलियां तथा जंगल में किंग कोबरा, वाइपर, कोबरा, किंग कोबरा, करैत, रूसलस, नागर और विशालकाय अजगर जैसे 25 प्रजाति के सरीसृप व सर्प प्रजातियां भी उपस्थित हैं, जो बताती हैं कि यह क्षेत्र सरीसृपों और स्तनपायी जानवरों की जैव विविधता के दृष्टिकोण से कितना समृद्ध है।

पक्षीः जिम कार्बेट पार्क में बगुला, डार्टर, पनकौवा, टिटहरी, पैराडाइज फ्लाई कैचर, मुनिया, वीवर बर्ड्स, फिशिंग ईगल, सर्पेन्ट ईगल, जंगली मुर्गा, मैना, बुलबुल, कोयल, मोर, बार्बेट, किंगफिशर, बत्तख, गीज, सेंडपाइपर, नाइटजार, पेराकीट्स, उल्लू, कुक्कु, कठफोडवा, चील व सुरखाब सहित 585 रंग-बिरंगे पक्षियों की प्रजातियां पाई जाती हैं।

वनस्पतियांः जिम कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व तराई-भाबर के मैदानों से लेकर पहाड़ियों और नदियों के बीच बसा हुआ है। ऐसे में यहां निचले क्षेत्रों से लेकर ऊपरी हिस्से के पेड़ पौधों में विविधता पाई जाती है। यहां साल, शीशम, खैर, ढाक, सेमल, बेर, चिर, अनौरी, बकली, खैर, तेंदू और कचनार आदि वृक्षों की जैव विविधना से जंगल भरे पड़े हैं। पार्क के कुछ हिस्सों में बांस की विभिन्न किस्में देखी जा सकती हैं।

कैसे देखें :

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जिम कोर्बेट राष्ट्रीय अभयारण्य का भ्रमण जीपों के द्वारा भी किया जाता है, लेकिन उनके शोर से जानवरों को करीब देखना कठिन होता है, जबकि प्रशिक्षित हाथियों पर सवार होकर सफारी का आनंद लेते हुए जंगल की ऊंची-नीची पगडंडियों, घास की झाड़ियों तथा शाल के पेड़ों के बीच से होकर वन्य जीवों का दर्शन करने की सर्वाधिक संभावना रहती है।

जिम कार्बेट संग्रहालय और कार्बेट फॉल

corbett-fallरामनगर से हल्द्वानी जाने वाली सड़क पर कालाढूंगी के पास ‘छोटी हल्द्वानी’ नाम के स्थान पर एडवर्ड जिम कार्बेट का शीतकालीन प्रसास का घर अब उनकी स्मृतियों को संग्रहालय के रूप में संजो कर रखे हुए है। इस भवन के अहाते में जिम के प्रिय कुत्ते की भी कब्र है। इसमें जिम कार्बेट के चित्र, उनकी किताबें, उनके द्वारा मारे गए बाघों के साथ उनकी तस्वीरें, उस समय के हथियार, कई तरह की बन्दूकें और वन्य-जीवन से संबंधित कई प्रकार की पठनीय सामग्री भी उपलब्ध है। पास ही नयां गांव के करीब जंगह में एक खूबसूरत झरना भी दर्शनीय है, जिसे ‘कार्बेट फॉल’ का नाम दिया गया है। जिम कार्बेट पार्क के भीतर कंडी रोड के वन मार्ग से अथवा यूपी के अफजलगढ़ (बिजनौर) की ओर से मिट्टी से बने देश ही नहीं एशिया के अनूठे रामगंगा नदी पर बना कालागढ बांध भी देखा जा सकता है। गहन वन क्षेत्र होने की वजह से यहां कदम-कदम पर हिंसक वन्य जीवों के खतरे भी रहते हैं, इसलिए हर पल उनसे सतर्क और संयत रहने की सलाह दी जाती है। सुबह सवेरे की प्रभात बेला तथा सांझ ढलने का समय वन्य जीवों और पक्षियों को देखने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होता है।

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