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अंक-26 :
रंग-बिरंगे फूलों के वस्त्र पहने,
वृक्ष सारे बन गए हैं होल्यार।
धरा भी रंगों से पुत गई है
द्वार पर खड़ा होली का त्योहार।।
जो नर-नार जीवें खेलें फाग
बस बढ़े दिलों का प्यार दुलार।
आप सभी को तहे दिल से
मुबारक हो होली का त्योहार।।
-रतन सिंह किरमोलिया।
अंक-25 : क्या करें लॉक डाउन में उत्तराखंड लौटे प्रवासी
कोरोना वायरस यानी कोविड-19 की वजह से हमारे उत्तराखंडी सैकड़ों युवा एवं अन्य लोग अपने घरों को लौटे। इससे पुरा कहावत चरितार्थ हुई कि अंततः घर घर ही होता है। जहां जब चाहो जैसे चाहो आसरा जरूर मिलता है। गांवों में पुनः खूब हलचल शुरू हो गई। कुछ गांव तो एकदम वीरान हो चुके थे। कुछ घरों में सदा सदा के लिए ताले लटक गए थे। कुछ महीनों के लिए ही सही ताले खुले तो सही। गांव घरों में जैसे रौनक पुनः लौट आई। होते हवाते पांच छह महीने बीत गए। घर और बाहर से कमाई पूंजी समाप्त हो चुकी है । समस्याएं बढ़ने लगी। इसी बीच लॉकडाउन में कुछ ढील बरती गई। कुछ कंपनियां खुलने लगी। उन्होंने अपने कर्मचारियों को बुलाना शुरू कर दिया। कतिपय युवा चले भी गए। कुछ जाने की तैयारी में बैठे हैं। शेष युवाओं का मन भी विचलित है।
कोरोना वायरस की भयावहता को देख कर पारिवारिक जनों को थोड़ा सुकून तो मिला कि उनके आत्मीय जन सुरक्षित तो हैं घर मेंं। देखते देखते पांच-छह महीने बीत गए। धीरे धीरे लगने लगा जिंदगी पटरी पर आने लगी । एक मोटामोटी अनुमान के अनुसार करीब पंद्रह फीसद युवा लौट चुके हैं। शेष युवा फिलहाल घरों में ही हैं। ये लोग बड़ी असमंजस की स्थिति में हैं। इनमें कुछ लोग पहाड़ में रुकना तो चाहते हैं परंतु स्थाई रूप से रुकने के लिए स्थाई रोजगार तो चाहिए ही। ऐसा रोजगार जिससे परिवार का भरण पोषण तो हो ही, बच्चों को अच्छी शिक्षा भी दिलाई जा सके।
स्वास्थ्य, शिक्षा एवं पारिवारिक सुव्यवस्था के लिए अच्छा रोजगार तो चाहिए ही। यद्यपि यहां उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों से रोजगारसृजन की पर्याप्त संभावनाएं तो हैं परंतु तुरंत एक अच्छा आर्थिक आधार सुदृढ़ हो जाए। ऐसा अभी आशा करना बेमानी होगा । हां इस क्षेत्र में बड़े आर्थिक संसाधनों की दरकार होगी। इसके लिए बड़े पूंजीपतियों को आमंत्रित किए जाने की जरूरत है । यह काम सरकार कर सकती है।
यहां उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों से रोजगारसृजन
इकाइयों की स्थापना आर्थिक संसाधन विहीन हमारे युवाओं की सामर्थ्य की बात नहीं। बड़ी पूंजी के साथ विशेषज्ञता एवं अनुभव की जरूरत होगी। बैंकों से ऋण लेकर रोजगार करना अधिक भरोसेमंद नहीं।
यह सत्य है कि हमारे जितने भी लोग उत्तराखंड लौटे हैं। उनके पास न आर्थिक संसाधन हैं, न इस क्षेत्र में विशेषज्ञता और न अनुभव। ऐसी स्थिति में वे यहां रुकना भी चाहें तो कैसे संभव हो सकता है। सरकार से अपेक्षा करना बहुत अधिक भरोसेमंद नहीं है।
इन परिस्थितियों में हमारे इन युवाओं को आज नहीं तो कल बाहरी प्रदेशों का रुख करना ही पड़ेगा । जो लोग यहां कुछ कर पाने की स्थिति में हैं। वे अंगुलियों में गिने जा सकते हैं। इसलिए उत्तराखंड लौटे युवा फिलहाल किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति में हैं।
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● रतनसिंह किरमोलिया
● अणां-गरुड़( बागेश्वर)
अंक-24 : हिंदी दी-अंगरेजी बहन
अंक-23 : हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या पर एक रचना हिन्दी दिवस
अंक-22 : पहाड़ में काम करने को तो चाहिए ‘काठ’क खुट-लुव’क कपाव’
हमारे घर-गांवों में प्रदेश से लौटे प्रवासी भाईवृंद इस समय अपने पारिवारिक सदस्यों के साथ थोड़ी बहुत संजोई जमापूंजी करीब-करीब खर्च कर चुके हैं। ऐसे में अब मानसिक, शारीरिक, आर्थिक एवं पारिवारिक परिस्थितियां दिनों-दिन और गंभीर होती जा रही हैं।
सबसे बड़ी बात है कि अब ये लोग पहाड़ में रह कर हाड़-तोड़ मेहनत करने लायक भी नहीं रह गए हैं। इनकी यहां काम करने की आदत नही रह पाई है, क्योंकि मैदानों में काम करना और पहाड़ में काम करने में धरती आसमान का अंतर है। कहते हैं, पहाड़ में रह कर जीवनयापन करने वालों के लिए ‘काठ’क खुट-लुव’क कपाव’ चाहिए। यानी काठ के पांव और लोहे का कपाल जैसी मजबूती चाहिए।
वर्तमान परिस्थितियों से लगता है कि कोरोना काल की स्थिति जैसे ही पटरी पर आती हैं, इन लोगों को रोजगार के लिए पुनः उत्तराखंड से बाहर जाना ही जाना है। बल्कि कयेक बंधु तो चले भी गए हैं और यह क्रम धीरे-धीरे जारी है।
गाहे-बगाहे यहीं रह कर दर गुजर करने की बहुत बातें होती रही हैं। लेकिन सरकारी स्तर पर भी ऐसे कोई सकारात्मक प्रयास होते नजर नहीं आ रहे हैं। सारी बातें हवा-हवाई ही लग रही हैं।
यहां इस समय न खेती गुजर बसर लायक रह गई है, न पशुपालन और न बागवानी ही। वन्य जीवों द्वारा पहुंचाए जा रहे नुकसान को रोक पाना आसमान से तारे तोड़कर लाना जैसा हो गया है। स्व-रोजगार के लिए पर्याप्त आर्थिक संसाधन उपलब्ध नहीं हैं। सरकारी स्तर से भी कोई आशाजनक प्रयास नजर नहीं आ रहे हैं।
यहां स्थाई रूप से रह रहे एवं प्रवासी भाईवृंद जो यहां धरातल पर कुछ करना चाहते हैं। उन्हें अपनी कार्ययोजना तैयार करनी होगी। इसके लिए सरकार को आर्थिक संसाधन जुटाने में मदद करनी होगी। यद्यपि यहां संभावनाएं अनंत हैं। परंतु देश काल एवं परिस्थितियों को नजर में रखते हुए इन कार्ययोजनाओं को मूर्तरूप देना असंभव नहीं तो जटिल जरूर है।
■ रतनसिंह किरमोलिया,
अणां-गरुड़ बागेश्वर।
अंक-21 : हृदय में भक्ति उमड़ रही, मैय्या से मिलने को तड़प रही….
अंक-20 : मां नंदा-सुनंदा, क्या रूठ गई है तू हमसे….
माँ नंदा सुनंदा,
है भक्तों बिना अधूरी,
विश्वास के डोर से बँधी थी जो डोरी।
कण-कण में तू है बसी,
अपने आँचल की छाव् में ले लें हमें माँ,
क्या रूठ गई तू हमसे इतना,
थक गई होगी शायद तू भी माँ,
मनुष्य की झूठे मोह और दिखलावे के विश्वास से।
कुछ तो इशारा दो अपनी जगमगाते नैनों से,
हो गई जो भूल हमसे,
क्षमा कर हमें एक बार फिर,
अपने आँचल में समेट ले हमें।
माँ तू रूठी,
तो रह् जाएंगे सिर्फ राख के,
कैसे आएँगे फिर तेरे द्वार पे।
रो तो तू भी रही होगी,
है तेरा आँगन भी सूना,
कुछ तो अपने होने का एहसास करवाओ न माँ ।
आस्तिकता से नास्तिकता कहीं जाग ना जाए,
कहीं प्रेम-विश्वास की डोरी कमजोर हो दूरी बढ़ ना जाए,
चाहेंगे नहीं कभी तेरे आँचल से दूर होना,
एक बार आँचल में समेट ले न माँ।
मेरी इस व्यथा को दूर भगाकर,
एक बार अपने आँचल की छांव में ले ले न माँ।
-ज्योति।
अंक-19 : पिता दिवस के उपलक्ष्य में पापा के लिए कविता-पापा
पापा आप हो सबसे खास।
हमारी छोटी सी जिन्दगी की सबसे बड़ी आस।।
बचपन के वो दिन वो खिलौने याद आते हैं।
जो बिना कहे हमें सब कुछ दे जाते हैं।।
खामोश रहकर सबकुछ सहकर ख्वाईशें पूरी करते हो।
सबकी फिक्र इतनी कि अपनी इच्छाएं अधुरी रखते हो।।
पिता ही सपनों की उड़ान है।
पिता ही अपने बच्चों का प्यारा जहान है।।
पिता माँ का सुहाग है, पिता बच्चों के जीवन का अनुराग है।
पिता पर सब की जिम्मेदारी है, उन्हें बस परिवार की खुशियाँ प्यारी हैं।
हर कदम पर साथ देते वो, हमारे मुकाम तक पहुंचाते है हरपल।।
महसूस नही होने देते कोई भी कमी, ताकि मजबूत बने हमारा आने वाला कल।।
पापा है तो “हम हैं” “हमारे सपने हैं”।
-श्रीमती ममता तिवारी, जज फार्म हल्द्वानी।
अंक-18 : आओ करें योग रहें नीरोग
आओ करें योग रहें नीरोग
दुर्लभ जीवन का बड़ा संयोग
प्रभु प्रदत्त निधि काया की
भर दिये उसमें हमने रोग
शरीर समृद्धि भोग में नहीं
मूल मंत्र है उसका योग
आओ पहनें कवच योग का
शास्त्र सम्मत है यह नियोग
तन मन प्राणों की शुचिता से
नहीं रहेगा फिर कोई शोक।
-दामोदर, जोशी ‘देवांशु’, देवांशु कुंज, संपादक-कुमगढ़, पश्चिमी खेड़ा, गौलापार, हल्द्वानी।
अंक-17 : हिंदी पत्रकारिता दिवस पर आज हिंदी पत्रकारिता से बने प्रधानमंत्री पर कविता (30 मई 2020)
-सोनाली मिश्रा,
पीजी डिप्लोमा इन जर्नलिज्म एंड मास कम्यूनिकेशन, द्वितीय सेमेस्टर, अटल पत्रकारिता एवं जनसंचार केंद्र, डीएसबी परिसर नैनीताल।
अंक-16 : क्यों कोरोना जकड़ रहा है ?
अंक-15 : ओ देश के वीर जवानो…
-ममता तिवारी, जज फार्म हल्द्वानी।
अंक-14 : आज नर भयभीत है
अंक-13 : सुबह-ए-नैनीताल
सर्द हवाओं का तो कभी हल्की नमी का एहसास कराती हैं सुबह-ए-नैनीताल।
कभी ओंस की बूंदों से तो कभी पाले से ढकी सड़कें दिखाती है सुबह-ए-नैनीताल।
कभी हल्की सी बूंदा-बांदी तो कभी बारिश की फुहार से नहलाती है सुबह-ए-नैनीताल।
कभी गौरैया से तो कभी प्रवासी पक्षियों से भी मिलाती है सुबह-ए-नैनीताल।
कभी कुछ जाने तो कभी कुछ अनजाने चेहरों से भी बात कराती है सुबह-ए-नैनीताल।
कभी एक प्याली चाय से तो कभी जलेबियों के थाल से, ना जाने कितनी ही संस्कृतियों से मिलाती है सुबह-ए-नैनीताल।
यूं तो रूबरू हुआ हूं मैं और भी शहरों की सुबहों स,े पर उन सब से ज्यादा अपनेपन का एहसास दिलाती है सुबह-ए-नैनीताल।
-प्रमोद प्रसाद
अंक-12 : कोरोना के अष्टक दोहे
अंक-11 : शहीद के अंतिम शब्द
खुश रहना तुम मेरे यारो ।
खुश रहना तुम मेरे प्यारो।
मैंने तो जान लुटा ये दी।
वतन की शान बचा ये दी।
दर्द नहीं होता वो जब मेरा कत्लेआम करें।
सीना फट जाता है तब, जब देश को कोई बदनाम करें।
सरहद पर रह-रहकर मैं देश की जय जयकार करूं।
तू ही बता मेरे वतन मैं क्यों ना तुझसे प्यार करूं।
मैं रोता हूं जब सुनता हूं कि लोग आपस में लड़ते हैं।
अमन चैन के लिए ही तो हम सरहद पर यूं मरते हैं।
खुद ही खुद में तुम लोगो ना ऐसे वार करो।
मुझसे मत करना लेकिन वतन से तो तुम प्यार करो।
सरहद पर जब किसी ने बुरी नजर लगाई है।
मेरे वतन के वीरों से मुंह की ही तो खाई है।
अब छोड़ कर चलता हूं मेरी जां ने किया इशारा।
तुम भी खुश रहना यारो मेरा वतन ही मुझको प्यारा।
मेरा वतन ही मुझको प्यारा।
जय हिंद 🙏
-माही आर्या
राजकीय इंटर कालेज बबियाड़ धारी, नैनीताल।
अंक-10 : परिन्दे
टूटे हैं घरोंदे भी इन परिंदों के कुछ तो आशियाना बनाने में हमारे।
गुम हुई है चहचहाहट भी इन परिंदों की कुछ तो नवीनीकरण के शोर में हमारे।
रोकी है उड़ान भी इन परिंदों की कुछ तो सपने सजोने में हमारे।
हो चुका जो उसे अब ना दोहरायेंगे, टूटे हुए घरोंदों को फिर से बसायेंगे।
रूठे हैं जो परिन्दे उन्हें फिर से मनायेंगे, गुम हुई चहचहाहट को फिर से ढूंढ लायेंगे।
है वक्त आज फिर एक सपना सजोने का, खोये हुए परिंदों को फिर उनके घर लाने का।
– प्रमोद प्रसाद।
अंक 9 : आज हुआ धरती का श्रृंगार है… 
आज हुआ धरती का श्रृंगार है…
डाली डाली पत्ते पर नव यौवन का अभिसंचार है।
जल स्रोतो को मिली नई जान,
नदी-नालो में आयी नई बहार है।
आज हुआ धरती का श्रृंगार है।
पेड़ पौधों के अनेक रोगों का अंत होगा,
फल-फूलों में आयी नई उमंग है।
आज हुआ धरती का श्रृंगार है।
पर्यटन व्यवसाय को भी नई उम्मीद जग गयी है,
हर व्यवसायी पर खुशी की लहर दौड़ गयी है।
हाँ आज पृथ्वी ने किया श्रृंगार है,
हिम कणों ने सबको फूल बन कर किया श्रृंगार है….।
🌷🌷🌷🌷 – राजीव पांडे, भवाली।
अंक 8 : सबको मिलकर देना होगा पहाड़ के विकास में सहयोग
कल एक व्यक्ति से चर्चा हुई तो बहुत सारे विचार और कुछ प्रश्न मन में आये ,,हमार पहाड के लोग सब शहर की ओर आ रहे है, क्यों रोजगार की कमी, शिक्षा की कमी और स्वास्थ सेवा की कमी के कारण ? इन तीन मुद्दों पर हमेशा से चर्चा हुई है ,,,,पर समाधान नहीं हुआ ,,,, मुझे समझ ये नहीं आया कि सरकार की नीतियों में कमी है या हम में ,,, हमेशा से इन मुद्दों पर चर्चा होती आ रही है पता नहीं कब तक यह चर्चा चलेगी,,,,,,युवा साथियों को जब तक जोश होता है तब तक गुमराह किया जाता है , फिर हिम्मत हार जाने के बाद वही पुराना जीवन ,,,,,,चोट खाये हुए है हमारे युवा साथी ,,,,, क्या कोई रोजगार पहाडों में नहीं खोल सकती सरकारें, क्या पहाडों के हास्पिटलों की स्थिति नही सुधार सकती, क्या शिक्षा का स्तर नहीं बडा सकती,,,,, या फिर मुझे लगता है हम ही जागरुक नहीं है ,,,, कही ना कही मैं खुद अपने समाज की भी कमी समझता हूं ,,,, हर दिन पहाडों की मिट्टी ,रेता ,पानी ,पत्थर से बडे बडे कंकरीट के जंगल तैयार हो रहे है उन पहाडों के लिए क्यों नहीं सोचा जा रहा है ,,,, शहरों में रहकर पहाडों के विकास की बातें बहुत करते है लोग,, हमारे जन प्रतिनिधि ,,,,,, पहाड के लोगों को विकास का प्रलोभन देकर वोट बैंक पूरा कर लिया जाता है फिर दूरस्त क्षेत्रों की ओर झांककर भी नही देखते है ,,,, एक उम्मीद के साथ वोटर वोट देता है परन्तु फिर वही जो आज तक चलता आ रहा है ,, मुझे जन प्रतिनिधियों से आशा है कि आप राजनीति में सेवा भाव से कार्य करेंगे ,,,,, कहना तो बहुत कुछ है परन्तु समय आने पर ,,,,,,,बदलाव करना है तो युवा साथियों आप को आगे आना होगा ,,,,,हर क्षेत्र में,,,, जितने भी लोग अच्छे पद पर है पहाड के आप सब के छोटे से सहयोग प्रयास से पहाड बदल सकता है एक दूसरे की टांग खींचने से अच्छा है आप सब मिलकर पहाडों के लिए सोचिए ,,,,,,,,,,इस सत्यता पर सभी से निवेदन करता हूं विचार जरूर कीजिएगा,,,,,, रमेश चन्द्र टम्टा, सामाजिक कार्यकर्ता।
अंक 7 : नवरात्र पर पढ़ें महामाया श्री जगदम्बा माता की अनेक लीलाओं का वर्णन…

नवरात्र अर्थात अपने संकल्प श्रृष्टि में आने वाले अवरोधों(अन्धकार) को अपने तेजोमयी ज्योति के प्रकाश से प्रकाशित करना महामाया नौ रात्रियों के अन्धकार को अपने तेज से दूर करके जीवों की आत्मा को प्रकाशित कर उज्जवल बना देती है। जिसमें जीव परमार्थ (मोक्ष) की यात्रा कर सके। वे नौ अवरोध हैं। 1- अहंकार, 2- काम 3- क्रोध 4- लोभ 5- मोह 6- मात्र्सय 7- इष्र्या 8- मद 9- द्वेष ।

अंक 6 : प्रकृति भी कर रही नव वर्षाभिनंदन…
अंक 5 : उत्तरांचल में चैत्र माह में बहन-बेटियों से उनके ससुराल जाकर स्नेह-भेंट करने की विलक्षण प्राचीन परंपरा “भिटौली” पर…
अंक 5 : महामाया जगदम्बा की स्तुति ‘दुर्गा सप्तशती’ में जानें ‘कीलक स्तोत्र’ का महत्व

महामाया जगदम्बा की स्तुति के ‘दुर्गा सप्तशती पाठ मात्र से साधक के सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं। उसे दुर्लभ वस्तुओं की प्राप्ति हो जाती है तथा वह कल्याण का भागी होकर सिद्ध हो जाता है। उसको मंत्र व औषधि की भी आवश्यकता नहीं पड़ती। उसके समस्त उच्चाटन व अभिचारिक कर्म सिद्ध हो जाते हैं। अत: यह आवश्यक है कि महामाया के साधक को परम परमार्थिक होना चाहिए। जिससे वह ‘दुर्गा सप्तशती’ में, जो माता की अपार शक्ति भरी हुई है, के पाठ मात्र से ही समाज व दु:खी लोगों का भला कर सकें। परंतु कुछ साधक (मार्गभ्रष्ट होकर) धन के लोभवश तथा संसार की झूठी मान प्रतिष्ठा के फेरे में पड़कर ‘दुर्गा सप्तशती’ का दुरुपयोग अपनी साधना के द्वारा समाज के लोगों को अभिचारिक मत्रों द्वारा नुकसान पहुंचाने लगे। अतः श्री भगवान शंकर ने श्रीचंडिका के सप्तशती नामक स्तोत्र को कीलक (अर्थात गुप्त) कर दिया कि दुष्ट विचारधाराओं वाले सांसारिक लोगों को ‘दुर्गा सप्तशती’ की साधना में सफलता न प्राप्त हो सके जिससे वह समाज का अहित न कर सकें।
भगवान शिव ने निष्कीलन की विधि भी अपने सानी व आसक्तिहीन भक्तों को समझायी है कि नि:ष्काम भावना रखते हुए समग्र अर्पण (भेंट) महामाया कों कर दें। ध्यान देंवे हम भेंट वह कर सकते हैं जो हमारी स्वंय की वस्तु हो। परंतु यह शरीर व इंद्रिया पंचभूतों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश) से निर्मित हुआ है। यह शरीर भी महामाया ने हमे धरोहर के रुप में दिया है। इसमें हमारा स्वत: अधिकार नही है। हमारा अधिकार हमारी अपनी वस्तुओं केवल (मन) है। मन न तो पंचभूतों से निर्मित हुआ है न ही इसमें कोई चेतन शक्ति है। यह अंधकार के समान (अज्ञान) है। अंधकार को कोई अपना अस्तित्व नहीं होता। प्रकाश (ज्ञान) का न होना ही अंधकार है। अतः अपने अंदर के समस्त संकल्पों को (काम, क्रोध, मोह, मद, मात्सय, ईश्र्या, दोष) जो अज्ञान की उपस्थिति में ही हमारे (मन) द्वारा प्रकट हो जाता है। मन हमारे विपरित दिशा में गति करता है। अर्थात शुभ से अशुभ, देवता से शैतान, सुख से दु:ख, लाभ से हानि में स्थित कर देता है। हमेशा चलायमान रहता है। अत: अब गंभीर समस्या यह है कि मन को महामाया के चरणों में कैसे अर्पण करें। इसका उत्तर श्री महादेव शंकर ने बताया कि संसार व जीवन की प्रत्येक परिस्थिति में सर्वत्र एक महामाया को विराजमान अनुभव करें क्योंकि 84 लाख योनियों में इनकी चेतन शक्ति (ऊर्जा) एक ही है। और उनकी यह समष्टि प्रकृति (जो उनकी अपनी ही छाया-माया है) उन्ही की धरोहर समझकर उन्ही को अर्पण कर दें। तथा एकाग्र चित्त से प्रार्थना करें माता आज से यह न्याय द्वारा कमाया हुआ धन, सपंत्ति तथा अपने आप (अंहकार) को भी मैने आपकी सेवा में अर्पित कर दिया। अब इस पर मेरा कोई स्वत्व नही रहा। फिर अपने ह्दय गुहा में विराजमान भगवती चण्डिका का ध्यान करते हुए यह भावना करें मानो जगदम्बा कह रही हैं मेरे भक्त बेटा संसार यात्रा (पारवध के नाश होने तक) के निर्वाहार्थ तू मेरा यह प्रसाद रुपी धनग्रहण कर मैं तेरी व्यवस्था स्ंवय करुंगी (योग क्षेमं वहाम्यह्म) इस प्रकार देवी क आज्ञा शिरोधार्य कर उस धन को प्रसाद बुद्वि से ग्रहण करें। धर्म शास्त्रों में जो न्याय मार्ग बताए गए हैं। उस मार्ग से धन का सत्य, व्यवहार से व्यय करते हुए सदा देवी के अधीन होकर रहें। देवी की कृपा स्वयमेंव हो जाती है।
ध्यान देंवे संसार एक एश्वर्य, भोग, सुख व मान-प्रतिष्ठा प्राप्ति हेतु निष्कीलन कदापि नहीं हो सकता। श्रीमहामाया की इच्छा-लीला को सर्वोपरि मानते हुए समाज में दु:खी लोग के कष्ट निवारण हेतु नि:ष्काम भावना से अगर ‘दुर्गा सप्तशती’ का पाठ किया जाय तो श्रीघ्र शुभ फलों की प्राप्ति महामाया करवा देती हैं। मूल मंत्र हैं- ऊं ऐं ह्री क्लीं चाण्मुडाये विच्छै इसका अर्थ हे चित्तस्वरुपणी (आत्मरुपणी) महासरस्वती हे सदरुपणी (स्वंय अपने ही प्रकाश में प्रकाशित), महालक्ष्मी, हे आनंदरुपणी (अपने स्वरुप का ज्ञान द्वारा अनुभव करवाकर आनंद प्रसाद करने वाली) महाकाली जी ब्रह्म विद्या (ब्रहम ज्ञानी) ब्रह्म ज्ञान पाने के लिए हम सब समय तुम्हारा ध्यान करते हैं। हे महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती स्वरुपिणी चण्डिके तुम्हे नमस्कार है। मेरे अज्ञान रुपी रस्सी की दृढ़ गांठ को खोलकर मुझे जो मेरे द्वारा ही बांधे हुए आसक्तिरुपी सांसारिक भ्रम-माया के बंधन हैं उन्हे मुक्त करो।
संकलन- ‘दुर्गा सप्तशती’ के पाठ से- हेम चंद्र उपाध्याय, दुर्गा मंदिर(शास्त्री मंदिर) बाजपुर, ऊधमसिंहनगर मो. 9410465975
अंक 4 : जानें उत्तराखंड के कुलदेवता-गोलूदेवता (श्रीगोलज्यू) व राजा विक्रमादित्य के बारे में…
उत्तराखंड के कुलदेवता गोलू देवता(श्री गोलज्यूू) एवं उज्जैन नरेश राजा भृतृहरि के अनुज राजा विक्रमादित्य (जिनके नाम पर विक्रमी संवत चल रहा है) चेतन शक्तियां, अवतारी पुरुष हैं, ये सिद्ध महापुरुष हैं। चेतन शक्तियां उन्हें कहा जाता है जो एक ही एक काल में अनेक स्थानों पर आवाह्न किए जाने पर अवतरित हो सकते हैं। इस प्रकार सिद्ध पुरूष, अपनी इच्छानुसार शरीर धारण कर लेते हैं क्योकिं वे अमृततत्व को प्राप्त आत्मा है। अग्नि की तरह परमाणु-परमाणु में विराजमान हैं।
वैसे तो 84 लाख योनियों के जीव सब महामाया जगदम्बा की कृपा से उनकी चेतनशक्ति द्वारा ही उत्पन्न हुए हैं, परंतु अज्ञान भ्रम के कारण अपने स्वरुप (अमृततत्व) का बोध न होने से वे संसारी जीव कहलाते हैं।
श्री गोलज्यू एवं राजा विक्रमादित्य भगवान शिव के ग्यारह अवतार (रुद्र-भैरव) में आठवे भैरव के रुप में अवतरित हुए थे। ये दोनो देवता स्वरुप हैं। इन्होंने जीवन भर अन्याय, अधर्म, अराजकता के विरोध में संघर्ष किया और अभी भी सतत न्याय दिलवा रहे हैं। अज्ञान भ्रम का नाश कर रहे हैं। प्रत्येक मनुष्य को उनके स्वरुप (अमृततत्व) का निरंतर बोध प्रदान कर रहे हैं। श्री गोलज्यू का वंश कत्यूरी है। धूमाकोट मंडल (चंपावत) का शासन श्री गोलज्यू के न्यायानुकूल हाथों में था। इनकी वंशावली में राजा तलराई (परदादा), राजा हलराई (दादा जी) एवं राजा झालूराई (पिताश्री) थे। श्री गोलूदेवता आठवें भैरव के अंशावतार हैं।
श्री बृजेंद्र लाल साह जिनका निवास देवीभजन लाला बाजार अल्मोड़ा में हैं। उन्होंने अति सुंदर गोलू त्रिचालीसा की रचना की है। उसी में से उद्धृत श्री गोलू आरती मानव जीवन का कल्याण करने वाली है। प्रस्तुत है गोलू देवता आरती –
ऊं जयश्री गोलू देवा स्वामी जय गोलू देवा
शरणागत हम स्वामी स्वीकारो सेवा
वंश कत्यूरी तुम्हारो, धूमाकोट वासी, स्वामी धूमाकोट वासी
जय-जय हे करुणाकर, जय-जय सुखरासी
हलराई के पोते, पिता झालूराई
तपस्विनी कालिंका माता कहलाई
ऊं जय श्रीगोलू देवा
नाम अनेक तुम्हारे ग्वैल, गोलू, गोरिल स्वामी
गौर भैरव दुधाधारी बालगौरिया न्यायिल
परजा पालकरक्षक, तुम हो दु:ख हरता
पोषक दीन दयाला, तुम त्राता भरता
पंचदेव के भांजे, भैरव अवतारी
श्वेत अश्व आरु ढ़ी, जयति धनुरधारी
भेंट चढ़े ध्वज घंटी, मिष्ठान अरु मेवा
द्वारा खड़े हम तुम्हरे, स्वीकारो सेवा
शरणागत आरत की पीर हरो देवा
विनवे दास बृजेन्दर साह करे सेवा
संकलन- हेम चंद्र उपाध्याय दुर्गा मंदिर(शास्त्री मंदिर) बाजपुर , ऊधमसिंहनगर
अंक 3 : अल्मोड़ा (उत्तराखंड) की चेतन शक्तियां श्रीत्रिपुर सुंदरी, श्री बाला व भोलानाथ (शिव)

जगदंबा माता की दस महाशक्तियां (महाविद्या) हैं : 1. श्रीकाली 2. श्रीतारा 3. श्रीछिन्नमस्ता 4. श्रीषोडस्ती 5. श्रीभुवनेश्वरी 6. त्रिपुर भैरवी 7. श्रीघूमावती 8. श्रीबगुलामुखी 9. श्रीमातंगी माता 10. श्रीकमला माता

ये महाविद्यायें (महाशक्तियां) ब्रहमांड की दसों दिशाओं की रक्षा करती हैं। पंद्रहवी व सोलहवीं सताब्दी के मध्य अल्मोड़ा के राजाओं को अकाल व गोरखों के आक्रमण से त्रस्त होना पड़ा था। उस समय वर्मा राज्य (वर्तमान त्रिपुरा प्रदेश) से कुछ संतों की टोली कैलास मानसरोवर यात्रा के दौरान अल्मोड़ा के राजा के वहां आतिथ्य रुप में ठहरी थी। राजा ने उनसे अपना कष्ट निवेदन किया। संतो में एक सिद्ध संत भी थे वे त्रिपुर भैरवी के उपासक थे। वे गृहस्थ भी थे, उनकी पत्नी व पुत्र उनके साथ थे। पत्नी भी श्री त्रिपुर भैरवी भी परम उपासक थी। उन्होंने राजा के कष्ट निवारण हेतु माता त्रिपुर भैरवी का आवाह्न किया, तथा अल्मोड़ा में श्रीत्रिपुर सुंदरी माता का मंदिर निर्माण करवाया। माता की उपासना से कुछ काल के उपरांत राजा के राज्य का कष्ट निवारण हो गया। अत: राजा ने त्रिपुरा (वर्मा) के उन सिद्ध संत का राज्योचित सम्मान किया। इससे राजा के पुरोहित को ईष्या हुई। उसने षड़यंत्र रचकर उन संत की पुत्र व पत्नी समेत हत्या करवा दी। इस पर सिद्ध संतों की आत्माओं ने पूरे शहर में विपल्व मचा दिया। राजा ने प्रायश्चित किया। डोब गांव के एक सिद्ध ब्राहमण थे। उन्होंने राजा से अनुष्ठान करवाया। अपने मंत्र बलों से उन्हें शांत करवाया। उन्होंने उन सिद्ध महात्मा को श्री शिव भोलानाथ, उनकी पत्नी को बर्मी माता तथा उनके पुत्र को श्री बाला भगवान के रुप में स्थान प्रदान किया। आज भी अल्मोड़ा शहर की कन्या का विवाह होता है तो कन्या की रक्षा हेतु उनकी डोली के साथ ये देवता उसके ससुराल में अपनी पूजा व सम्मान हेतु स्थान पाते हैं। अत: ध्यान देवें ये देवता चेतन हैं। ये मृतक आत्मा (भूत देवता) नहीं हैं। हालाँकि अल्मोड़ा क्षेत्र की जनता के आराध्यदेव भोलानाथ को चंद राजवंश के राजकुमार के रूप में भी कथा क्षेत्र में कही जाती है। उल्लेखनीय है कि श्री त्रिपुर सुंदरी माता का मंदिर त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से 56 किमी दूर उदयपुर (मातावरी) स्थान में है। मुंडमाला, तंत्रोंत्र महाविद्यास्त्रोत्र में श्रीत्रिपुर सुंदरी की स्तुति है-
अंक-2 : गांवों से पलायन की पीड़ा पर दिल्ली से अल्मोड़ा मूल के नवीन जोशी ‘नवल’ की अभिव्यक्ति : “मैं तेरा घर-आंगन”

बनकर मूक-तपस्वी रहता आस संजोये मन ही मन
सूना-सूना बाट जोहता वर्षों – “मैं तेरा घर-आंगन”
भरे नेत्रजल राह ताकता, दे प्रियवर अब मुझको तोषिक,
करले मुझको याद कभी तो, मैं तेरा तू मेरा पोषित।
कहाँ गया उल्लास मोद, कहाँ गयी वह अमित प्रीत है,
कहाँ गयीं होली-दीवाली, कहाँ गये वे नवल गीत हैं।
तीज-बसंत विविध अवसर पर, क्यों छोड़ा है मेरा दामन?
सूना-सूना बाट जोहता वर्षों – “मैं तेरा घर-आंगन” ।१।
कितने सावन, कितने फागुन, मैंने देख लिये भर लोचन,
विस्मित कातर भीत बना अब, जो आँगन था नंदन कानन ।
पर छोड़ी ना आस आज लौ, फिर बहुरेगा उपवन मेरा,
उल्लसित किलकित गुंजित होकर, सुरभित हो हर कोना मेरा ।
नव-बसंत, अगणित पतझड़ औ, झेली हैं ऋतुएँ मनभावन,
सूना-सूना बाट जोहता वर्षों – “मैं तेरा घर-आंगन” ।२।
किस सुख की चाहत में मुझको छोड़ा तूने आज बता दे,
क्या खोया-क्या पाया अब लौ, सारी गठरी आज दिखा दे ।
था वैभव गोदी में मेरी, कितना उसको और बढाया ?
संरक्षण की बात नहीं है, संवर्धन कितना कर पाया ?
किंचिद् उस निधि में से मेरी जीर्ण देह तो कर दे पावन,
सूना-सूना बाट जोहता वर्षों -“मैं तेरा घर-आंगन” ।३।
चिर प्रतिक्षित मैं उपेक्षित, जर्जर, दुर्बल, मौन, हताहत,
शिथिल ह्रदय मैं खड़ा आज ले, अपनों से मिलने की चाहत ।
कालकूट सी मेघ गर्जना, भरी दुपहरी, रात घनेरी,
पर विश्वास न छोड़ा अब तक, आयेगी फिर संतति मेरी।
पुन: खिलेंगे पुष्प गोद में, फिर आयेगा नूतन सावन,
सूना-सूना बाट जोहता वर्षों – “मैं तेरा घर-आंगन” ।४।
श्री जोशी का पत्र :
महोदय,
– नवीन जोशी “नवल”, ,मूलतः अल्मोड़ा से, वर्तमान में दिल्ली में निवासरत (10 फ़रवरी 2019)
अंक-1, दिल्ली बटी लोक कलाकार जगदीश तिवारी ज्यूकि द्वि कुमाउनी कविता
1- सड़का तू आई लकी आब आई

सड़का तू आई लकी आब आई
सड़का तू आई लकी आब आई
गौं-बाखई खाली हैगे,
चौथरमॅ बुकिल भौगाव जामिगे
पख दन्यारिम बाघ भै रौ
मलस्यारि बानर, तलस्यारी सूअरा बोई रौ
भितेर टुटि ग्वोठ ऐगो
ग्वठ बयै रै बिराई
सड़का तू आई लकी आब आई
सड़का तू आई लकी आब आई
32 झड़ियॉ कुठुम्ब ओ ईजा
राति शंखक टुटाट, दिन भरी चडमडाट
परबेर गोबिन्दुकरॉक बुड़बाड़ीलै
य तलि है न्है गयीं
हिन्दी में, जानि द्या मिहै कै गयी, हमर द्वार म्वार लै चहै दिये, ताई
सड़का तू आई लकी आब आई
सड़का तू आई लकी आब आई
खेती पाति बड-ख्वड़
तलि-तलि, मलि-मलि
सारी व्वड़ सारिय रै गो
गोरू बछा टान पन
टान टान रै गो
टपकनै टपकनै आखों मजा ऑस लै सुखि गो
बिजुली त छ, बडम, जगहै आब काकै बुलाई
आई लै म्यर नान-तिन एैल, आस सबुल लगै रै, मैल लै लगाई
सड़का तू आई लकी आब आई
सड़का तू आई लकी आब आई
2- नक झन माानिया ईजा, पहाडी छूं पहाड़ी बुलानू
नक झन माानिया ईजा, पहाडी छूं पहाड़ी बुलानू
आफूं कतुकै हिन्दी में बड़बड़ाट पाड़ो, अंग्रेजी में फड़फड़ाट पाड़ो
मिकैं नी लागनी सरम, किलैकि मैं इकैणी माननू आपण धरम करम
आपण भिड़ परि ल्यौण, म्यर उचेणी उचेणी बै खाई छीं
झाल परि हिसाव थ्वप, किलमौड़, काफों, ब्यर
राति पर पॉव पड़ि ताजि, ख्याणा, मिहौव म्यर पचकायी छीं
तुमलै खछा के,
अलघता-परघता नी टावो,
जे नी हल झनप्प हो, में त हर साल एक-द्वी बार, आपण पहाड़ जरूर जानू
नक झन माानिया ईजा, पहाडी छू पहाड़ी बुलानू
नक झन माानिया ईजा, पहाडी छू पहाड़ी बुलानू
ओ ईजा भटक चुड़काणी, गाजड़
गहतक बेडू, डुबुक, मनुवक स्वटमॅ घ्यों पचक
गुनीगुनी ताज्जी छॉ, झोई व छचियै गजैक,कैं
किलै भुलीगोछा,
वू मू-गढेरी साग, आहा पिगौं ककड़ रैत
आज लै पहाड़ जै बेर, पिसी लूणम नीमू राई बेर
पैलियैक जस, मैतै पचकानु
नक झन माानिया ईजा, पहाडी छू पहाड़ी बुलानू
नक झन माानिया ईजा, पहाडी छू पहाड़ी बुलानू
हमर गौं मथै द्यप्ता थान, ठुल बाज्यू रातियै नाई धोई बेर, दुर्गा पाठ, ज्ञान ध्यान
मन्दिरों में ह्यौनों दिनोंक सप्ताह, गमिछिकांे रामलीला
फुल देई फूल, दिवाई ऐपण, उतरैणी गूड़, नाख ठुकुम घ्यांे, कान जडों में जौ
तुमुकै लै याद हुनल,
मैं आजि लै पहाड़ जै बेर, दशहरा द्वार पत्र
आपण हाथोंल आपण द्वारों पै चिपकौनूं
नक झन माानिया ईजा, पहाडी छू पहाड़ी बुलानु
नक झन माानिया ईजा, पहाडी छू पहाड़ी बुलानु
-जगदीश तिवारी, लोक कलाकार, उत्तराखंड, वर्तमान में दिल्ली में निवासरत (9 फरवरी 2019)