आपका कोना : आज गांवों से पलायन की पीड़ा पर दिल्ली से अल्मोड़ा मूल के नवीन जोशी ‘नवल’ की अभिव्यक्ति
(‘नवीन समाचार’ में हम एक नया स्तंभ ‘आपका कोना’ शुरू कर रहे हैं। इस स्तंभ में हम ‘नवीन समाचार’ के पाठकों की कविताएं, लेख, विचार आदि प्रकाशित करेंगें। यदि आप भी ‘नवीन समाचार’ के माध्यम से अपने विचार, कविता-लेख आदि प्रकाशित कर हमारे अन्य पाठकों तक पहुंचना चाहते हैं तो हमें अपने विचार, कविता या लेख आदि हमें हमारे ईमेल पते saharanavinjoshi@gmail.com पर भेज सकते है। – नवीन समाचार)
अंक-2 : “मैं तेरा घर-आंगन”

बनकर मूक-तपस्वी रहता आस संजोये मन ही मन
सूना-सूना बाट जोहता वर्षों – “मैं तेरा घर-आंगन”
भरे नेत्रजल राह ताकता, दे प्रियवर अब मुझको तोषिक,
करले मुझको याद कभी तो, मैं तेरा तू मेरा पोषित।
कहाँ गया उल्लास मोद, कहाँ गयी वह अमित प्रीत है,
कहाँ गयीं होली-दीवाली, कहाँ गये वे नवल गीत हैं।
तीज-बसंत विविध अवसर पर, क्यों छोड़ा है मेरा दामन?
सूना-सूना बाट जोहता वर्षों – “मैं तेरा घर-आंगन” ।१।
कितने सावन, कितने फागुन, मैंने देख लिये भर लोचन,
विस्मित कातर भीत बना अब, जो आँगन था नंदन कानन ।
पर छोड़ी ना आस आज लौ, फिर बहुरेगा उपवन मेरा,
उल्लसित किलकित गुंजित होकर, सुरभित हो हर कोना मेरा ।
नव-बसंत, अगणित पतझड़ औ, झेली हैं ऋतुएँ मनभावन,
सूना-सूना बाट जोहता वर्षों – “मैं तेरा घर-आंगन” ।२।
किस सुख की चाहत में मुझको छोड़ा तूने आज बता दे,
क्या खोया-क्या पाया अब लौ, सारी गठरी आज दिखा दे ।
था वैभव गोदी में मेरी, कितना उसको और बढाया ?
संरक्षण की बात नहीं है, संवर्धन कितना कर पाया ?
किंचिद् उस निधि में से मेरी जीर्ण देह तो कर दे पावन,
सूना-सूना बाट जोहता वर्षों -“मैं तेरा घर-आंगन” ।३।
चिर प्रतिक्षित मैं उपेक्षित, जर्जर, दुर्बल, मौन, हताहत,
शिथिल ह्रदय मैं खड़ा आज ले, अपनों से मिलने की चाहत ।
कालकूट सी मेघ गर्जना, भरी दुपहरी, रात घनेरी,
पर विश्वास न छोड़ा अब तक, आयेगी फिर संतति मेरी।
पुन: खिलेंगे पुष्प गोद में, फिर आयेगा नूतन सावन,
सूना-सूना बाट जोहता वर्षों – “मैं तेरा घर-आंगन” ।४।
श्री जोशी का पत्र :
महोदय,
– नवीन जोशी “नवल”, ,मूलतः अल्मोड़ा से, वर्तमान में दिल्ली में निवासरत (10 फ़रवरी 2019)
अंक-1, दिल्ली बटी लोक कलाकार जगदीश तिवारी ज्यूकि द्वि कुमाउनी कविता
1- सड़का तू आई लकी आब आई

सड़का तू आई लकी आब आई
सड़का तू आई लकी आब आई
गौं-बाखई खाली हैगे,
चौथरमॅ बुकिल भौगाव जामिगे
पख दन्यारिम बाघ भै रौ
मलस्यारि बानर, तलस्यारी सूअरा बोई रौ
भितेर टुटि ग्वोठ ऐगो
ग्वठ बयै रै बिराई
सड़का तू आई लकी आब आई
सड़का तू आई लकी आब आई
32 झड़ियॉ कुठुम्ब ओ ईजा
राति शंखक टुटाट, दिन भरी चडमडाट
परबेर गोबिन्दुकरॉक बुड़बाड़ीलै
य तलि है न्है गयीं
हिन्दी में, जानि द्या मिहै कै गयी, हमर द्वार म्वार लै चहै दिये, ताई
सड़का तू आई लकी आब आई
सड़का तू आई लकी आब आई
खेती पाति बड-ख्वड़
तलि-तलि, मलि-मलि
सारी व्वड़ सारिय रै गो
गोरू बछा टान पन
टान टान रै गो
टपकनै टपकनै आखों मजा ऑस लै सुखि गो
बिजुली त छ, बडम, जगहै आब काकै बुलाई
आई लै म्यर नान-तिन एैल, आस सबुल लगै रै, मैल लै लगाई
सड़का तू आई लकी आब आई
सड़का तू आई लकी आब आई
2- नक झन माानिया ईजा, पहाडी छूं पहाड़ी बुलानू
नक झन माानिया ईजा, पहाडी छूं पहाड़ी बुलानू
आफूं कतुकै हिन्दी में बड़बड़ाट पाड़ो, अंग्रेजी में फड़फड़ाट पाड़ो
मिकैं नी लागनी सरम, किलैकि मैं इकैणी माननू आपण धरम करम
आपण भिड़ परि ल्यौण, म्यर उचेणी उचेणी बै खाई छीं
झाल परि हिसाव थ्वप, किलमौड़, काफों, ब्यर
राति पर पॉव पड़ि ताजि, ख्याणा, मिहौव म्यर पचकायी छीं
तुमलै खछा के,
अलघता-परघता नी टावो,
जे नी हल झनप्प हो, में त हर साल एक-द्वी बार, आपण पहाड़ जरूर जानू
नक झन माानिया ईजा, पहाडी छू पहाड़ी बुलानू
नक झन माानिया ईजा, पहाडी छू पहाड़ी बुलानू
ओ ईजा भटक चुड़काणी, गाजड़
गहतक बेडू, डुबुक, मनुवक स्वटमॅ घ्यों पचक
गुनीगुनी ताज्जी छॉ, झोई व छचियै गजैक,कैं
किलै भुलीगोछा,
वू मू-गढेरी साग, आहा पिगौं ककड़ रैत
आज लै पहाड़ जै बेर, पिसी लूणम नीमू राई बेर
पैलियैक जस, मैतै पचकानु
नक झन माानिया ईजा, पहाडी छू पहाड़ी बुलानू
नक झन माानिया ईजा, पहाडी छू पहाड़ी बुलानू
हमर गौं मथै द्यप्ता थान, ठुल बाज्यू रातियै नाई धोई बेर, दुर्गा पाठ, ज्ञान ध्यान
मन्दिरों में ह्यौनों दिनोंक सप्ताह, गमिछिकांे रामलीला
फुल देई फूल, दिवाई ऐपण, उतरैणी गूड़, नाख ठुकुम घ्यांे, कान जडों में जौ
तुमुकै लै याद हुनल,
मैं आजि लै पहाड़ जै बेर, दशहरा द्वार पत्र
आपण हाथोंल आपण द्वारों पै चिपकौनूं
नक झन माानिया ईजा, पहाडी छू पहाड़ी बुलानु
नक झन माानिया ईजा, पहाडी छू पहाड़ी बुलानु
-जगदीश तिवारी, लोक कलाकार, उत्तराखंड, वर्तमान में दिल्ली में निवासरत (9 फरवरी 2019)