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July 11, 2025

वर्ष 2019 के नैनीताल के बहुचर्चित फर्जी सीबीआई अधिकारी मामले में न्यायालय का बड़ा फैसला

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(Courts Decision on Ankita Bhandari Murder Case) (Order For Huge Compensation to Deceaseds Family)(Hearing in Ankita Bhandari Murder Case Complete)

छह वर्षों बाद पूर्व पुलिस कर्मी को मिला न्याय, बहुचर्चित सीबीआई अधिकारी प्रकरण में न्यायालय ने किया दोषमुक्त (Big Dicision of Court in Fake CBI Officer Case)
नवीन समाचार, नैनीताल, 30 जून 2025। उत्तराखंड के नैनीताल जनपद की न्यायिक मजिस्ट्रेट-सिविल न्यायाधीश (कनिष्ठ प्रभाग) तनुजा कश्यप की अदालत ने चर्चित फर्जी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो अधिकारी प्रकरण में एक पूर्व पुलिस कर्मी को समस्त आरोपों से दोषमुक्त करार दिया है। यह फैसला लगभग छह वर्षों की लंबी न्यायिक प्रक्रिया, बहस, साक्ष्यों के विश्लेषण एवं गवाहों के परीक्षण के बाद आया है।

(Big Dicision of Court in Fake CBI Officer Case (Woman Burnt Husband-Bail Cancelled-Sent to Jail) (HighCourt Did not Grant Bail to Rana for Bribery) (Illicit Relations-Husband-Father-in-law Murdered) (Relief to Son of Accused of Raping Minor by HC) (Accused of 12-year Girl Rape Usman Ali Bail Plea) (Son of Rape Accused did not get Relief by Court) (BJP Leader Mukesh Bora ke viruddh NBW jaariप्राप्त जानकारी के अनुसार मामला 26 जुलाई 2019 का है, जब मल्लीताल कोतवाली पुलिस ने पूर्व में मल्लीताल कोतवाली में कार्यरत रहे व तत्पश्चात सेवानिवृत्त हुए चार्टन लॉज, पॉपुलर कंपाउंड, मल्लीताल निवासी मोहम्मद आसिफ पुत्र मोहम्मद यामीन को साहपुर डसर, थाना असमोली, जनपद संभल, उत्तर प्रदेश निवासी उसैद पासा के साथ हिरासत में लेकर न्यायालय में प्रस्तुत किया था। आरोप लगाया था उसैद पासा व मोहम्मद आसिफ ने स्वयं को सीबीआई में महानिरीक्षक रैंक का अधिकारी बताया था।


फर्जी दस्तावेज़ों व वॉकी-टॉकी के संबंध में पुलिस के दावे असत्य साबित हुए

प्रकरण में मल्लीताल कोतवाली पुलिस ने 23 अक्टूबर 2019 को आरोप पत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया। इसके उपरांत 2 नवम्बर 2022 को आरोप गठित किये गये। हद यह भी हुई कि 5 वर्षों तक एक वयस्क के रूप में मामला चलने के बाद 23 जनवरी 2024 को सह आरोपित उसैद पासा को नाबालिग घोषित कर उसकी पत्रावली किशोर न्याय बोर्ड को भेजी गई।

मोहम्मद आसिफ ने न्यायालय में स्पष्ट किया कि उनका उसैद पासा से कोई संबंध नहीं है, उन्हें बिना कोई पूछताछ किए कोतवाली लेजाकर सीधे अभियोग दर्ज कर झूठे आरोप में फंसाया गया। उन्होंने कभी कोई कूटरचित दस्तावेज़ तैयार नहीं किया, न ही कोई लैपटॉप या आपत्तिजनक सामग्री उनके पास से प्राप्त हुई। उलटे पुलिस ने जो वॉकी-टॉकी जब्त दिखाया, वह वास्तव में उसैद पासा से बरामद हुआ था। यहां तक कि मामले के वादी यानी शिकायतकर्ता-उप निरीक्षक दीपक बिष्ट ने भी न्यायालय में स्वीकार किया कि उन्होंने मो.आसिफ से कोई पूछताछ नहीं की थी।

प्रकरण में अभियोजन पक्ष न तो किसी फर्जी दस्तावेज को प्रमाणित कर सका और न ही आसिफ की संलिप्तता का कोई ठोस साक्ष्य प्रस्तुत कर सका। इन तथ्यों के आधार पर न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता की धारा 467, 468 एवं 120बी के अंतर्गत मोहम्मद आसिफ को दोषमुक्त घोषित कर दिया।


छह वर्षों की पीड़ा के बाद भी नहीं चाहते प्रतिशोध (Big Dicision of Court in Fake CBI Officer Case)

निर्दोष साबित होने के बाद मोहम्मद आसिफ ने कहा कि वह भले ही झूठे अभियोग में छह वर्षों तक मानसिक और सामाजिक पीड़ा झेल चुके हों, लेकिन फिर भी वह उन पुलिस कर्मियों के विरुद्ध कोई प्रतिक्रियात्मक कार्रवाई नहीं करना चाहते, जिन्होंने उन्हें झूठे मामले में फंसाया। उनका मानना है कि जैसे उनके परिवार ने वर्षों तक मानसिक संताप झेला, वैसे वे किसी और को पीड़ा में नहीं डालना चाहते।

इस निर्णय से यह संदेश भी गया है कि न्याय व्यवस्था में देर हो सकती है, परंतु न्याय से वंचित नहीं किया जाता। बचाव पक्ष की ओर से अधिवक्ता आरएस बोरा ने पैरवी की। 

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