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बड़ा राजनीतिक विश्लेषण: कर्नाटक विधान सभा चुनाव परिणाम का सबसे बड़ा संदेश, गांधी परिवार के लिए बजी खतरे की ‘जोर की घंटी’

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डॉ. नवीन जोशी, नवीन समाचार, नैनीताल, 12 मई 2023। कर्नाटक के विधान सभा चुनाव के कांग्रेस के लिए अप्रत्याशित तौर पर आए ‘क्लीन स्वीप’ चुनाव परिणाम के हर ओर अलग-अलग निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। लेकिन हम यहां इस चुनाव परिणाम का सबसे बड़ा संदेश बताने जा रहे हैं, जो गांधी परिवार के लिए खतरे की बड़ी घंटी हो सकता है। यह भी पढ़ें : तिहरे हत्याकांड में एक और शव मिला, चौथा शव भी महिला का, अनाथ हो गए हत्यारोपित के डेढ़ व तीन वर्षीय बच्चे

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कर्नाटक के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 136, भाजपा को मात्र 65, जनता-दल सेक्युलर को 19 व अन्य को 4 सीटें मिली हैं। कहा जा रहा है कि इस चुनाव में भाजपा अपना साम्प्रदायिक एजेंडा नहीं चला पाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा के केंद्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा तथा यूपी के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी, आसाम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्वशर्मा जैसे बड़े व करिश्माई बताए जाने वाले नेताओं के पूरा जोर लगाने के बावजूद भाजपा अपना दक्षिण का एकमात्र किला बचा नहीं पाए और कांग्रेस ने बड़ी जीत दर्ज की। यह भी पढ़ें : बाबा नीब करौरी के कैंची धाम में चेकिंग के दौरान तमंचे के साथ पकड़ा गया स्कूटी सवार

यह अलग बात है कि पिछली बार के मुकाबले 8 लाख अधिक वोट लाने के बावजूद भाजपा बुरी तरह से हार गई है, और पिछली बार जेडीएस को समर्थन देकर उनका मुख्यमंत्री बनाने वाली कांग्रेस इस बार जेडीएस के वोटों में आई 5 प्रतिशत गिरावट को अपने पक्ष में करके 136 सीटों की बड़ी लैंडस्लाइड विक्ट्री प्राप्त कर पाई है। गौरतलब है कि पिछली बार भाजपा को एक करोड़ 32 लाख और इस बार एक करोड़ 40 लाख वोट मिले हैं, जबकि जेडीएस को पिछली बार 67 लाख 26 हजार व इस बार 52 लाख यानी 15 लाख कम वोट मिले। यह भी पढ़ें : भाजपा के लिए जरूरी थी कर्नाटक की हार

भाजपा के लिए जरूरी थी कर्नाटक की हार

यह वोट कांग्रेस को चले गए। कांग्रेस को पिछली बाद एक करोड़ 39 लाख व इस बार एक करोड़ 68 लाख यानी 29 लाख अधिक वोट मिले हैं।  एक तथ्य यह भी है कि कर्नाटक में 130 सीटों पर जीत का अंतर 20 हजार से कम वोटों का रहा और इन कम अंतर वाली 130 सीटों में से 73 सीटों पर कांग्रेस, 40 पर भाजपा और 14 पर जेडीएस जीती। यानी हार का यह अंतर थोड़ा भी इधर-उधर होता तो चुनाव का नतीजा कुछ और होता। यह भी पढ़ें : नैनीताल: दुर्घटना में 18 वर्षीय युवक के सीने के आर-पार हुआ 5 सूत का सरिया

इस चुनाव ने यह संदेश भी दिया है कि राज्य की राजनीति स्थानीय मुद्दों पर आधारित होती है और वहां स्थानीय नेताओं की भूमिका ही केंद्रीय नेताओं से बड़ी भूमिका निभाती है। इस चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस को आगे राजस्थान व मध्य प्रदेश में होने वाले विधान सभा चुनाव तथा इसके बाद होने वाले लोक सभा चुनाव से पहले बड़ी ताकत न केवल राजनीतिक तौर पर मिलगी, बल्कि काफी धनी राज्य माने जाने वाले कर्नाटक को जीतने से उसे बड़ी आर्थिक मजबूती भी मिलेगी। यह भी है कि कांग्रेस ने यहां जेडीएस यानी जनता दल सेक्युलर के रूप में तीसरे या क्षेत्रीय दल के कमजोर पड़ने पर भाजपा से आमने-सामने की लड़ाई में जीत दर्ज करने का रास्ता भी खोज लिया है। इससे विपक्षी दलों में प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई वाली भाजपा को हरा सकने का विश्वास भी जगा है। यह भी पढ़ें : युवकों एवं पुलिस कर्मी के बीच मारपीट, अवैध वसूली के आरोप भी, एसपी ने सोंपी जांच…

लेकिन इस चुनाव में इससे बड़ा एक संदेश यह है कि जहां इससे पहले भाजपा के केंद्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा जहां अपना गृह राज्य हिमांचल प्रदेश नहीं बचा पाए, वहीं कांग्रेस के केंद्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे अपने गृह राज्य में पार्टी को जिता ले गए। यही नहीं, इस चुनाव में इससे भी बड़ा एक संदेश हिमांचल प्रदेश के चुनाव परिणाम से जोड़ते हुए छिपा हुआ है। यह भी पढ़ें : चार बच्चों के पिता-व्यवसायी ने शादी-बच्चों की बात छुपाकर युवती से 4 वर्ष तक किया दुष्कर्म

उल्लेखनीय है कि मल्लिकार्जुन खड़गे 26 अक्टूबर 2022 को 24 वर्ष बाद कांग्रेस पार्टी के गैर कांग्रेसी केंद्रीय अध्यक्ष बने थे। इससे पहले सितंबर 1996 से 14 मार्च 1998 तक सीताराम केसरी कांग्रेस पार्टी के गैर कांग्रेसी केंद्रीय अध्यक्ष रहे थे। इसे संयोग भी मान लें तो खड़गे के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने उनके अध्यक्ष बनने के बाद हुए हिमांचल प्रदेश के बाद कर्नाटक के विधान सभा चुनाव भी जीत लिए हैं, जबकि इससे सोनिया गांधी व राहुंल गांधी की अध्यक्षता के दौर में कांग्रेस 30 से अधिक चुनाव हारती जा रही थी। यह भी पढ़ें : नैनीताल: ढाबे की आढ़ में शराब पिलाने वाला गिरफ्तार, खुले में पीने वाले 6 शराबियों पर भी कार्रवाई

खड़गे ने हिमांचल प्रदेश में हार के इस सिलसिले पर ब्रेक लगाए। वह भी तब, जब हिमांचल भाजपा के केंद्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का गृह प्रदेश था और इससे कुछ ही समय पहले, इससे लगे और समान परिस्थितियों उत्तराखंड में भाजपा ने हर चुनाव में सत्ता बदलने का ‘रिवाज’ बदलकर अपना ‘राज’ कायम रखा था। यानी सीधे-सीधे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के जबड़े से जीत छीन ली, और अब कर्नाटक में भी अपनी जीत का सिलसिला जारी रखा है। यह भी पढ़ें : ऐसी घृणित घटना न सुनी होगी, युवक ने गौशाला में घुसकर कुछ ऐसा कर दिया…

उल्लेखनीय है कि 80 वर्षीय खड़गे ‘सोलीलादा सरदारा’ के नाम से मशहूर हैं यानी अजेय योद्धा माने जाते हैं। कर्नाटक की जीत के साथ खड़गे ने अपनी छवि भी मजबूत कर ली है। गौरतलब है कि जब से खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष बने हैं तब से भारतीय जनता पार्टी उन पर गांधी परिवार के वर्चस्व का आरोप लगाती रही है। उन पर आरोप लगाया जाता रहा है कि खड़गे कांग्रेस के केवल रबर स्टांप हैं। पार्टी तो वास्तव में गांधी परिवार के इशारों पर ही चलती है। यह भी पढ़ें : बाबा नीब करौरी के कैंची धाम में चेकिंग के दौरान तमंचे के साथ पकड़ा गया स्कूटी सवार

लेकिन याद रखना होगा कि हिमांचल और कर्नाटक के चुनाव में प्रियंका गांधी को छोड़कर गांधी परिवार की भूमिका बेहद सीमित रही है। हिमांचल के चुनाव तो राहुल गांधी कमोबेश पूरी तरह से ‘दूर रखे’ गए और कर्नाटक के चुनाव में भी उनकी भूमिका बेहद सीमित रही है। दोनों चुनावों से सोनिया गांधी भी दूर रही हैं। वहीं राहुल गांधी की लोक सदस्यता जाने के बाद हुए पहले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बड़ी जीत मिली है। यह भी पढ़ें : नैनीताल : 200 मीटर गहरी खाई में गिरी कार, दंपति गंभीर रूप से घायल..

यानी केंद्रीय अध्यक्ष होने के नाते भी और अपना गृह राज्य होने के नाते भी खड़गे कर्नाटक के चुनाव में मुख्य नेतृत्वकर्ता के रूप में थे। लिहाजा हिमांचल के बाद कर्नाटक में भी मिली कांग्रेस की जीत से गांधी परिवार के लिए खतरे की घंटी जोर से बजती नजर आ रही है कि कांग्रेस पार्टी के गांधी परिवार से बाहर आने के बाद ‘अच्छे दिन’ लौटने लगे हैं और कांग्रेस पार्टी गांधी परिवार के बिना भी ‘फुल टाइम पॉलिटिक्स’ करने वाले खड़गे जैसे मजबूत हाथों में आगे बढ़ सकती है। (डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। 

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार
‘नवीन समाचार’ विश्व प्रसिद्ध पर्यटन नगरी नैनीताल से ‘मन कही’ के रूप में जनवरी 2010 से इंटरननेट-वेब मीडिया पर सक्रिय, उत्तराखंड का सबसे पुराना ऑनलाइन पत्रकारिता में सक्रिय समूह है। यह उत्तराखंड शासन से मान्यता प्राप्त, अलेक्सा रैंकिंग के अनुसार उत्तराखंड के समाचार पोर्टलों में अग्रणी, गूगल सर्च पर उत्तराखंड के सर्वश्रेष्ठ, भरोसेमंद समाचार पोर्टल के रूप में अग्रणी, समाचारों को नवीन दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने वाला ऑनलाइन समाचार पोर्टल भी है।
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