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July 11, 2025

‘विजिलेंस ट्रैप से पहले गोपनीय जांच जरूरी या नहीं?’ उच्च न्यायालय में रिश्वत प्रकरण में कोषाधिकारी की जमानत याचिका पर सुनवाई के साथ हो रही विधिक बहस

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(Vigilance Trap vs Pre-Investigation-HC Debates (800 Cr Scam-No Registration-No Trace-High Court (Land Scam in Haldwani-High Court Demands Answers (Nazul-railway-Forest department land being Sold) (Panchayat Polls Stayed-Next Hearing For June 25 (Ban on Three-Tier Panchayat Elections Continues) (High Court Stayed Ban on Kllegal mining in Kanda) (Divorced Woman Mother of Children-Love Married)

नवीन समाचार, नैनीताल, 7 जुलाई 2025 (Confidential Vigilance Investigation Necessary)।  उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने रिश्वत प्रकरण में गिरफ्तार नैनीताल कोषागार के मुख्य कोषाधिकारी दिनेश राणा और लेखाकार बसन्त जोशी की जमानत याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई की। न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की एकलपीठ में सुनवाई के बाद प्रकरण को 8 जुलाई यानी कल के लिए भी सूचीबद्ध किया गया है।

इस बड़े प्रश्न पर हो रही विधिक बहस

(Confidential Vigilance Investigation Necessaryसुनवाई के दौरान यह मामला केवल दो कार्मिकों की जमानत तक सीमित न रहकर एक महत्वपूर्ण विधिक प्रश्न को लेकर चर्चा का विषय बना हुआ है। न्यायालय में बहस का मुख्य बिंदु यह है कि किसी सरकारी सेवक को रिश्वत लेते समय पकड़ने के लिए विजिलेंस विभाग को पहले गोपनीय जांच करनी चाहिए या मात्र शिकायत के आधार पर ट्रैप किया जा सकता है। अब तक राज्य में यह प्रश्न विधिक स्तर पर विचारणीय नहीं बना था।

सरकारी पक्ष का तर्क  

सरकारी पक्ष की ओर से प्रस्तुत तर्क में बताया गया कि गिरफ्तार दोनों आरोपितों के विरुद्ध जब शिकायत प्राप्त हुई तो विजिलेंस ने कार्रवाई करते हुए उन्हें रंगे हाथ पकड़ा। आरोपितों के हाथों से गुलाबी रंग निकलने और जब्त किए गए नोटों पर उनकी उंगलियों के निशान पाए जाने की पुष्टि की गई है। इसके लिए सोडियम कार्बोनेट के घोल से वैज्ञानिक परीक्षण कराया गया, जिसमें नोटों के साथ ही कांच के गिलास में धोए गए हाथों का पानी भी गुलाबी हो गया।

याचिकाकर्ताओं का तर्क

दूसरी ओर याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी गई कि उन्हें झूठे आरोप में फंसाया गया है और उन्हें कानूनी प्रक्रिया के पालन के बिना गिरफ्तार किया गया। उनका कहना है कि उनके विरुद्ध पहले से कोई जांच नहीं हुई और सीधे ट्रैप कर गिरफ्तार कर लिया गया।

वर्तमान में न्यायालय इस विधिक प्रश्न पर भी विचार कर रहा है कि क्या विजिलेंस को ट्रैप करने से पहले आरोपित के विरुद्ध प्राथमिक जांच अनिवार्य होनी चाहिए, जैसी प्रक्रिया केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) में अपनाई जाती है।

प्रकरण हो सकता है न्यायिक दृष्टि से राज्य के भविष्य के विजिलेंस प्रकरणों के लिए दिशा-निर्धारक (Confidential Vigilance Investigation Necessary)

यह प्रकरण न्यायिक दृष्टि से राज्य के भविष्य के विजिलेंस प्रकरणों के लिए दिशा-निर्धारक हो सकता है, क्योंकि यदि ट्रैप से पहले गोपनीय जांच को आवश्यक ठहराया गया, तो राज्य की विजिलेंस प्रक्रिया में बड़ा बदलाव आ सकता है।

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