दीपक तले अंधेरा! नैनीताल से सटे गांवों में 4 किमी सड़क के लिए ग्रामीणों ने दि पंचायत चुनाव के बहिष्कार की चेतावनी, दिया ‘रोड नहीं तो वोट नहीं’ का नारा

नवीन समाचार, नैनीताल, 1 जुलाई 2025 (Darkness under Lamp-Boycott Panchayat Election)। नैनीताल जनपद की न्यायिक राजधानी, पर्यटन नगरी तथा मंडल व जिला मुख्यालय से चंद किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांवों की बदहाल ढांचागत स्थिति इस कहावत को चरितार्थ कर रही है कि “दीपक तले अंधेरा होता है”। यहां स्थित ग्राम सभा बेलुवाखान के तोक सौलिया व तल्ला कूंण के ग्रामीण आज भी एक अदद सड़क के लिए तरस रहे हैं। ग्रामीणों ने पंचायत चुनावों के बहिष्कार की घोषणा करते हुए दो टूक कहा है कि यदि सड़क नहीं बनी तो वे ‘रोड नहीं तो वोट नहीं’ के नारे के साथ चुनाव से दूरी बनाएंगे।
10 किलोमीटर दूर मुख्यालय, लेकिन विकास से कोसों दूर गांव
पुलिस व संबंधितों से प्राप्त जानकारी के अनुसार नैनीताल मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम सभा बेलुवाखान के उपगांव सौलिया और तल्ला कूंण के लोगों को आजादी के इतने वर्षों बाद भी मुख्य सड़क से जोड़ने वाली मात्र 4 किलोमीटर की सड़क तक मयस्सर नहीं हुई है। ग्रामीणों ने बताया कि वे वर्षों से इस सड़क की मांग कर रहे हैं और अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों से लगातार निवेदन करते रहे हैं, परंतु अब तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई।
रोजाना 4 किमी पथरीला रास्ता पैदल तय करने को मजबूर
स्थानीय लोगों का कहना है कि सड़क के अभाव में उन्हें रोजमर्रा की जरूरतों, राशन, बच्चों की पढ़ाई, बीमार व्यक्तियों को चिकित्सालय पहुंचाने सहित अन्य कार्यों के लिए 4 किलोमीटर लंबा पथरीला, उबड़-खाबड़ पहाड़ी रास्ता पैदल तय करना पड़ता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि जल्द ही सड़क नहीं बनी तो वे पंचायत चुनाव का बहिष्कार करेंगे।
आपदा राहत की अनदेखी से भी आक्रोशित हैं ग्रामीण
ग्रामीणों ने बताया कि वे केवल सड़क के नहीं, बल्कि आपदा राहत से भी उपेक्षित हैं। वर्ष 2021 की अतिवृष्टि के दौरान इस क्षेत्र की सिंचाई नहर बह गई थी और सौलिया गांव के छह मकानों को भारी नुकसान पहुंचा था। तीन परिवार अब भी प्रत्यक्ष आपदा जोखिम में रह रहे हैं। ग्रामीणों ने आपदा के बाद कई बार प्रशासन को ज्ञापन सौंपे, किंतु आज तक कोई समाधान नहीं हुआ।
जनप्रतिनिधियों पर उठाए सवाल (Darkness under Lamp-Boycott Panchayat Election)
ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि चुनावों के समय नेताओं द्वारा गांव की समस्याओं को प्रमुखता से उठाने के वादे किए जाते हैं, लेकिन जीतने के बाद कोई वापस झांकने तक नहीं आता। ऐसी स्थिति में ग्रामीणों का धैर्य टूट रहा है और वे अब जन चेतना के रूप में चुनाव बहिष्कार का सहारा लेने को मजबूर हैं।
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