April 20, 2024

चिंताजनक: तेजी से बदल रही है उत्तराखंड की डेमोग्राफी

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नवीन समाचार, देहरादून, 1 मई 2023। उत्तराखंड में तेजी से मुस्लिमों की आबादी के बढ़ने के साथ राज्य की डेमोग्राफी यानी जनसांख्यिकीय बदलाव तेजी से हो रहा है। यहां तक कि एक आंकड़े के अनुसार असम के बाद उत्तराखंड में सबसे तेजी से मुस्लिम आबादी में वृद्धि हुई है। सबसे अधिक वृद्धि धर्मनगरी के नाम से प्रसिद्ध हरिद्वार जनपद में हुई है। एक अनुमान के अनुसार हरिद्वार जिले में मुस्लिमों की संख्या लगभग 20 लाख के करीब पहुंच गई है। बताया जा रहा है कि बीते 10 सालों में मुस्लिमों की संख्या 40 प्रतिशत बढ़ी है।
Demographic Change in Uttarakhandएक आंकड़े के अनुसार उत्तराखंड राज्य में कुल आबादी के हिसाब से अगर देखा जाए तो राज्य में मुस्लिमों की आबादी 13.9 प्रतिशत है। जबकि साल 2001 में यह आबादी कुल जनसंख्या के 11.9 प्रतिशत थी। जानकारों के अनुसार उत्तराखंड जब उत्तर प्रदेश से अलग हुआ था और साल 2012 में जब गणना हुई तो राज्य की जनसंख्या 1 करोड़ 2 लाख के करीब थी। लेकिन 2021 में अनुमानित राज्य की जनसंख्या 1 करोड़ 17 लाख के करीब पहुंच गई है।

राज्य की मूल अवधारणा से जुड़े लोग इस पर विचार कर रहे हैं कि देवभूमि उत्तराखंड में समुदाय विशेष की नियोजित बसावट को रोका जाना क्यों जरूरी है, इसके तीन ठोस आधार हैं। सबसे पहले देवभूमि के मूल स्वरूप को बचाना आवश्यक है। देवभूमि के मूल चरित्र के कारण जो कभी यहां आए भी नहीं, वे भी इस स्वरूप को संरक्षित रखना चाहते हैं। वहीं, जो भौतिकवादी सोच के लोग हैं, वे भी राज्य की आर्थिकी के लिए इस स्वरूप को कायम रखना चाहते हैं। क्योंकि सब जानते हैं कि उत्तराखंड के पर्यटन उद्योग की रीढ़ तीर्थाटन ही है।

हरिद्वार जिले में 37.39 प्रतिशत समुदाय विशेष की आबादी: धर्मनगरी हरिद्वार जिले में जनसांख्यिकीय संतुलन तेजी से बदल रहा है। हरिद्वार शहर विधानसभा क्षेत्र को छोड़कर बाकी सभी विधानसभा सीटों में समुदाय विशेष की आबादी की दर बढ़ रही है। जिले की कुल आबादी में करीब 37.39 प्रतिशत समुदाय विशेष की हो गई है। आबादी के साथ धार्मिक शिक्षा संस्थान और इबादत स्थल बनने से हिंदू संगठनों की ओर से अक्सर विवाद भी होता है।

पिथौरागढ़ के लोगों की भी बढ़ी चिंता: जनसांख्यिकीय बदलाव ने सीमांत जिला पिथौरागढ़ के वाशिंदों की चिंता बढ़ा दी है। देश के कई राज्यों के साथ ही नेपाल से आकर छोटा-बड़ा कारोबार शुरू कर रहे वर्ग विशेष के अपरिचित चेहरों के कारण चीन और नेपाल से लगे इस सीमांत जिले की संवेदनशीलता बढ़ गई है। इस डेमोग्राफिक चेंज से चिंतित सीमांत के लोगों ने नोटिफाइड एरिया फिर से जौलजीबी करने की मांग मुखर कर दी है।

असुविधाओं के पहाड़ से जिस तेजी से यहां के लोग शहरी क्षेत्रों के लिए पलायन कर रहे हैं, उसी अनुपात में बाहर के लोग सीमांत के हर कस्बे तक पहुंचने लगे हैं। इनमें मजदूर से लेकर व्यापारी तक शामिल हैं। खुफिया एजेंसियां भी मानती हैं कि पिछले कुछ सालों में कारीगर, नाई, सब्जी, फेरी व्यवसाय सहित अन्य छोटे-मोटे व्यापार में बाहर से आए लोगों की भीड़ बढ़ी है।

कबाड़ बीनने वालों की संख्या भी नगर और कस्बों में तेजी से बढ़ी है। बाहरी लोगों का पुलिस सत्यापन कर रही है। मकान मालिकों और व्यापारियों को भी नौकरों का सत्यापन करने के निर्देश दिए गए हैं। इसके बावजूद अधिकांश लोग बिना सत्यापन के घूमते नजर आते हैं। चीन और नेपाल सीमा से सटे धारचूला तहसील में वर्ष 1998 तक बाहरी लोगों के लिए प्रवेश आसान नहीं था। नोटिफाइड एरिया और इनर लाइन उस समय जौलजीबी में थी। ऐसे में यहां जाने के लिए पास जरूरी होता था।

अल्मोड़ा में बाहरी लोगों की संख्या में वृद्धि: पर्वतीय क्षेत्र में भी जनसांख्यिकी में धीरे-धीरे बदलाव होना शुरू हो गया है। अल्मोड़ा में बाहरी हिस्सों से लोग पहुंच रहे हैं। भवन और जमीन खरीदकर यहीं रहने लगे हैं। ऐसे लोगों पर खुफिया एजेंसियां भी नजर बनाए हुए हैं। अल्मोड़ा नगर क्षेत्र का ही उदाहरण लें तो पिछले पांच सालों में बाहर से आए लोगों की बसासत में करीब 20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। अल्मोड़ा नगर में पूर्व तक पालिका क्षेत्र में ऐसे लोगों की संख्या छह से सात हजार के करीब थी। एलआईयू से जुड़े अधिकारियों के अनुसार पिछले पांच सालों में विशेष वर्ग के लोगों की संख्या करीब एक हजार से डेढ़ हजार तक बढ़ी हैं। ये लोग यहां रोजगार की तलाश में आते हैं और कुछ समय बाद यहीं भूमि और मकान खरीदकर स्थायी रूप से बस रहे हैं।

नैनीताल में बढ़ी समुदाय विशेष की बस्तियां: नैनीताल में पहाड़ के अलावा मैदानी इलाकों में समुदाय विशेष के लोगों ने जमीनें खरीदी हैं। उत्तर प्रदेश के बरेली, रामपुर, पीलीभीत और मुरादाबाद के लोगों ने यहां आकर घर बना लिए हैं। हल्द्वानी के गौलापार, लामाचौड़, रामनगर और कालाढुंगी क्षेत्र में विशेष समुदाय ने जमीनें खरीदीं हैं। वन क्षेत्र बागजाला में पहले जहां दो मकान थे। अब बड़ी बस्ती विशेष समुदाय की स्थापित हो गई है। रहमपुर, बरेली, मुरादाबाद, पीलीभीत से विशेष समुदाय के लोग आकर किराए के कमरे में रह रहे हैं और वहीं कुछ लोगों ने अपने मकान बना लिये हैं।

लोगों की स्क्रीनिंग जरूरी: उत्तराखंड सरकार ने मैदानी व पहाड़ी जिलों में हो रहे जनसांख्यिकीय परिवर्तन को लेकर जिला प्रशासन को सतर्क रहने के निर्देश दिए हैं। जिला व पुलिस प्रशासन को जिला स्तरीय समितियों के गठन, अन्य राज्यों से आकर बसे व्यक्तियों के सत्यापन और धोखा देकर रह रहे विदेशियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं।

सरकार के इस कदम का एक और ठोस आधार देश की सीमाओं की सुरक्षा भी है। नेपाल एवं चीन की सीमा से लगने वाले इस राज्य की सीमाओं में मूल निवासियों के पलायन को रोकना जितना जरूरी है, उतना ही तर्कसंगत बाहर से आकर बसने वालों की स्क्रीनिंग करना भी है। इस राज्य के सीमांत जिलों के हर गांव-परिवार के स्वजन सीमाओं पर सैनिक के रूप में तैनात हैं। जो गांवों में हैं वे बिना वर्दी के समर्पित सैनिक हैं। इनकी भूमिका को सेना द्वारा सराहा जाता रहा है। इन क्षेत्रों में सुनियोजित बाहरी बसावट की ओर यूं ही आंख मूंद कर नहीं बैठा जा सकता है। 

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