बिना खर्च किये-किए गए नये प्रयोगों के लिए केंद्रीय मंत्री ने ठोंकी डा. सती की पीठ
नवीन समाचार, नैनीताल, 21 दिसम्बर 2020। केंद्रीय शिक्षा मंत्री डा. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने कुमाऊं मंडल के अपर शिक्षा निदेशक डा. मुकुल सती को पत्र लिखकर उनके द्वारा श्री अरविंद सोसायटी व एचडीएफसी बैंक के देशव्यापी कार्यक्रम ‘शिक्षा में शून्य निवेश नवाचार’ यानी बिना कोई धनराशि खर्च किये, किए गए नये प्रयोगों के लिए प्रशंसा की है। पत्र में डा. निशंक ने डा. सती को उनके द्वारा कोविद-19 महामारी के दौरान शिक्षा के निर्बाध प्रवाह के लिए शुरू किए गए अभियान के लिए भी सराहना की है। कहा है कि देश भर के शिक्षा अधिकारियों ने नई शिक्षा नीति के उदय में विशेष भूमिका निभाई है। इसी कड़ी में डा. सती ने अपने नेतृत्व और कर्म निष्ठा से शिक्षा में सकारात्मक परिवर्तन करने का आधार तैयार किया है। उनकी प्रतिबद्धता, समर्पण और समाधान उन्मुख दृष्टिकोण से नई सोच को बढ़ावा मिला है। अधिकारियों के ऐसे कर्तव्य पालन का प्रभाव सहकर्मियों के साथ ही शिक्षकों पर पड़ता है, और इसका लाभ विद्यार्थियों को मिलता है।
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-डा. सती के प्रयासों से कोरोना काल में शून्य खर्च से शिक्षकों द्वारा पाठ तैयार कर दूरदर्शन पर दिखाने के प्रयास को केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने माना सर्वश्रेष्ठ प्रयोग
नवीन समाचार, नैनीताल, 27 नवम्बर 2020। कोरोनाकाल में प्रतिकूल हालातों के बावजूद बिना कोई अतिरिक्त खर्च किए यानी शून्य खर्च पर प्रधानाचायों, शिक्षकों के माध्यम से छात्र-छात्राओं को आनलाईन पढाई से जोडने के लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने भारत सरकार नेे उत्तराखंड के शिक्षा विभाग की प्रशंसा की है, और इस तरह शून्य खर्च पर शिक्षा के क्षेत्र में नये प्रयोग करने के लिये कुमाऊं मंडल के अपर निदेशक माध्यमिक शिक्षा डा. मुकुल कुमार सती को उत्तराखंड राज्य के सर्वश्रेष्ठ शिक्षा अधिकारी पुरस्कार से नवाजा है। इस हेतु केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डा. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने डा. सती को आनलाइन कार्यक्रम के जरिये प्रमाण पत्र भेजा है। उल्लेखनीय है कि उत्तराखण्ड से डा. सती अकेले अधिकारी है जिन्हें यह पुरस्कार प्राप्त हुआ है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार अरविंदो सोसायटी ने कोरोना काल में शैक्षिक क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन करने वाले देश के 40 अधिकारियांे और 26 शिक्षकों का चयन कर केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय को सूची भेजी थी। कोराना काल में डा. सती की पहल पर उत्तराखंड में शिक्षकों ने प्रतिकूल हालातों में भी आनलाईन पाठों के एपीसोड तैयार किए थे, जिन्हें दूरदर्शन पर दिखाया गया। अरविंदो सोसायटी ने डा. सती के इसी प्रयोग को एक बेहतर मिसाल मानते हुए इस पुरस्कार के लिए चयनित किया है। डा. सती को राज्य का सर्वश्रेष्ठ अधिकारी नामित किये जाने पर शुक्रवार को मंडलीय कार्यालय में उनका सम्मान समारोह आयोजित किया गया। कार्यक्रम में विधि अधिकारी मदन मोहन मिश्रा, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी पूरन बिष्ट, जगमोहन रौतेला, संगीता, अनूप साह, ललित उपाध्याय, आलोक जोशी, ललित सती मनोज चौधरी, दिनेश साह, निर्मला मेहरा, भावना, हेमंत चंदोला, हरीश बिष्ट, मनोज कुमार, सुनील मिश्रा, दुर्गा सिंह, राजेंद्र सिंह, किशनानंद जोशी आदि कार्मिक शामिल हुए, जबकि मंडलीय अपर निदेशक प्रारम्भिक शिक्षा रघुनाथ लाल आर्य, मुख्य शिक्षा अधिकारी केके गुप्ता आदि ने भी डा. सती को इस उपलब्धि के लिए बधाई दी।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 02 अक्टूबर 2020। अल्मोड़ा पुलिस कोतवाली में एक बीएड छात्र के रूप में कुमाऊं मंडल के अपर-माध्यमिक शिक्षा डा. मुकुल सती से संबंधित वर्ष 1989-90 की उपस्थित पंजिका गायब होने पर अज्ञात के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 409 के तहत मुकदमा दर्ज हुआ है। इस मामले में डा. सती ने कहा कि शिकायतकर्ता भाष्कर बृजवासी बार-बार उनकी बीएड की डिग्री को लेकर लोकायुक्त से लेकर शासन व सूचना आयोग तक शिकायत करता रहा है और सभी स्तरों से उन्हें दोषमुक्त किया जा चुका है। अब वे इस मामले झूठी शिकायतकर्ता के खिलाफ मानहानि का वाद दायर करने जा रहे हैं।
उन्होंने बताया कि हल्द्वानी निवासी महिला गोविंदी देवी परिहार द्वारा भाष्कर बृजवासी के खिलाफ की गई ब्लैकमेलिंग संबंधी शिकायत पर पुलिस महानिदेशक उत्तराखंड-अपराध एवं कानून व्यवस्था अभिलाषा बिष्ट द्वारा 2 दिसंबर 2008 को मुख्यमंत्री के विशेष कार्याधिकारी को भेजे पत्र में कहा गया है कि आरोपित बृजवासी समय-समय पर झूठे व असत्य तथ्यों पर आधारित शिकायती प्रार्थना पत्र शासन तथा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, लोकायुक्त एवं उच्चाधिकारियों को प्रेषित करता रहता है। उनके असंख्य प्रार्थना पत्रों में लगाए गए आरोपों की पुष्टि नहीं हो पाई है। उन्हें थाना हल्द्वानी के द्वारा धारा 420, 346, 504, 506 व 384 के तहत 23 जुलाई 2008 को गिरफ्तार कर जेल भी भेजा गया था। उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि शिकायतकर्ता ने 1999-2000 में ‘द आर्टिकल’ नाम की पत्रिका में शिक्षा विभाग से विज्ञापन लिया था। यह पत्रिका तत्कालीन जिला सूचना अधिकारी हंसी बृजवासी की जांच में फर्जी पायी गयी थी। इसलिए उन्होंने इस पत्रिका के विज्ञापन का भुगतान रोक दिया था। इसलिये वह उनके पीछे पड़ा है।
इतनी जांचों में दोष रहित पाए गए डा. सती
नैनीताल। डा. सती ने बताया कि भाष्कर बृजवासी के द्वारा की गई शिकायतों पर वर्ष 2006 से यानी पिछले 14 वर्षों से लगातार कई बार उनके यानी डा. सती की डिग्री को लेकर शिकायतें की जा रही हैं। शिकायत के अनुसार डा. सती हल्द्वानी के एचएन इंटर कॉलेज में इंटर-विज्ञान वर्ग की मान्यता मिलने पर रसायन व जीव विज्ञान के प्रवक्ता के रूप में 19 जुलाई 1989 से 14 मई 1990 तक नियमित रूप से नौकरी कर अध्यापन कार्य कर रहे थे और नियमित तौर पर उपस्थित पंजिका में हस्ताक्षर भी कर रहे थे। ऐसे में वे इसी दौरान 100 किमी दूर कुमाऊं विवि के अल्मोड़ा परिसर से बीएड की कक्षा में 75 फीसद की उपस्थिति दर्ज करके कैसे बीएड की डिग्री भी हासिल कर सकते हैं, जबकि दोनों संस्थानों के खुलने व बंद होने का समय एक ही है।
इस मामले में उनके द्वारा की गई शिकायत पर सर्वप्रथम वर्ष 2006 में तत्कालीन लोक आयुक्त उत्तराखंड-न्यायमूर्ति एसएचए रजा ने जांच की और डा. सती को दोषमुक्त करार दिया, और वर्ष 2010 में मामले को ही समाप्त कर दिया था। लोकायुक्त के 21 नवंबर 2006 को जारी आदेश के अनुसार डा. मुकुल कुमार सती के अभिलेखों के अवलोकन में यह तथ्य प्रकाश में आया कि उनकी नियुक्ति 6 जुलाई 1990 को प्रवक्ता के पद पर की गई जबकि उन्होंने जून 1990 में बीएड की डिग्री प्राप्त की, और पीएचडी की डिग्री भी विभागीय अनुमति प्राप्त करने के पश्चात प्राप्त की। इस प्रकार आदेश में डा. सती की नियुक्ति को दोषरहित बताया गया। शिकायत में उन पर कुछ अन्य अनियमितताओं संबंधी आरोप भी लगाए गए थे। आदेश में कहा गया कि अन्य आरोपित मामलों में उचित कार्रवाई विभाग द्वारा की जा चुकी है, और सती संबंधित बिंदुओं में आरोपित नहीं हैं। लिहाजा यह प्रकरण समाप्त किया जाता है।
आगे उत्तराखंड शासन की ओर से वर्ष 2011 में की गई जांच के आधार पर 11 जुलाई 2011 को शिक्षा सचिव मनीषा पवार के हस्ताक्षरों से जारी कार्यालय ज्ञाप में भी तत्कालीन अपर जिला शिक्षा अधिकारी-बेसिक ऊधमसिंह नगर डा. सती द्वारा वेतन वितरण अधिनियम 1971 के अंतर्गत राजकोष से दिनांक 6 जुलाई 1990 से वेतन भुगतान प्राप्त करने और बीएड जून 1990 में तदर्थ नियुक्ति होने से पूर्व कर लेने की बात कही गई। लिहाजा उनकी बीएड की डिग्री की आड़ पर फर्जी नियुक्ति संबंधी शिकायत निराधार बताई गई। इसी तरह 6 अगस्त 2013 को तत्कालीन एसएसपी नैनीताल डा. सदानंद दाते ने डीआईजी कुमाऊं को भेजी अपनी आख्या में भी साफ किया कि डा. मुकुल सती की एचएन इंटर कॉलेज हल्द्वानी में नियुक्ति पांच जुलाई 1990 को की गई थी, जबकि उन्होंने जून 1990 में बीएड की डिग्री प्राप्त की थी। इस प्रकार उन पर लगाए गए आरोपों की पुष्टि नहीं हो पाई। आगे उत्तराखंड शासन के माध्यमिक शिक्षा अनुभाग-2 के एक मई 2019 को उप सचिव गिरधर सिंह भाकुनी द्वारा शिकायतकर्ता भाष्कर बृजवासी को जारी पत्र में लोकायुक्त के 2006 के आदेश का हवाला देते हुए कहा गया कि उनके द्वारा कोई नये तथ्य प्रस्तुत नहीं किये जाने के कारण मामले में कोई कार्रवाई किये जाने का कोई औचित्य नहीं है।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 24 जनवरी 2019। डायट भीमताल के प्राचार्य व कुमाऊं मंडल के पूर्व अपर शिक्षा निदेशक डा. मुकुल सती की कथित अवैध बीएड की डिग्री के मामले में शिकायतकर्ता बताये जा रहे कुमाऊं विवि के सीनेट सदस्य हुकुम सिंह कुंवर आरोपों से मुकर गये हैं। उनका कहना है कि वह शिकायतकर्ता नहीं हैं। उन्हें हल्द्वानी निवासी कुमाऊं विवि के स्नातक एवं अधिवक्ता भास्कर बृजवासी ने करीब छह माह पूर्व एक शिकायती पत्र दिया था। जिसमें कहा गया था कि डॉ. मुकुल सती ने 1989-90 में नौकरी के साथ कुमाऊं विवि के अल्मोड़ा परिसर से संस्थागत छात्र के रूप में बीएड किया। उन्होंने इस शिकायती पत्र को ऐसी अन्य शिकायतों की तरह ही कवरिंग लेटर संलग्न कर राज्यपाल के पास भेज दिया था। जिस पर राज्यपाल के स्तर से नैनीताल के एसएसपी एवं वहां से मल्लीताल कोतवाल को जांच के लिए कहा गया है।
बीएड की डिग्री लेने के बाद हुई नियुक्ति, फर्जी पत्रिका में विज्ञापन की वजह से पीछे पड़ा है शिकायतकर्ताः सती
नैनीताल। पूरे मामले में आरोपित डायट के प्राचार्य व कुमाऊं मंडल के पूर्व अपर शिक्षा निदेशक डा. मुकुल सती का कहना है कि उन्होंने 1989-90 के सत्र में अल्मोड़ा से बीएड की डिग्री ली है। सत्र जून तक चलता है, यानी जून 1990 तक चला। इसके बाद 5 जुलाई 1990 को उनकी नियुक्त के लिए शासन से अनुमोदन मिला है तथा 6 जुलाई 1990 से उन्होंने प्रबंधन के अंतर्गत नौकरी शुरू की है। वे बीएड की डिग्री करने के दौरान न सरकारी नौकरी में थे, और ना ही उन्होंने कोई सरकारी वेतन लिया है। पूर्व में हुई जांचों में आरोप गलत साबित हुए हैं। इससे पूर्व पढ़ाये जाने के शिकायतकर्ता के दावों पर उन्होंने कहा कि इस तिथि से पूर्व पद का अनुमोदन ही नहीं था, इसलिये वह नियुक्ति नहीं थी। बताया कि वह सरकारी नौकरी में 1999 में आये हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि शिकायतकर्ता ने 1999-2000 में ‘द आर्टिकल’ नाम की पत्रिका में विज्ञापन लिया था। इस पत्रिका के विज्ञापन का भुगतान उन्होंने रोक दिया था। इसलिये वह उनके पीछे पड़ा है। यह पत्रिका जिला सूचना अधिकारी की जांच में फर्जी पायी गयी थी।
शिकायत गलत है तो मेरे खिलाफ मुकदमा दर्ज करायें : बृजवासी
नैनीताल। इधर शिकायतकर्ता भास्कर बृजवासी का कहना है कि उन्होंने मुख्यमंत्री के सचिव, कुमाऊं आयुक्त एवं नैनीताल के डीएम को ज्ञापन देकर चुनौती देते हुए कहा है कि डा. मुकुल कुमार सती ने हल्द्वानी में नौकरी करते हुए 100 किमी दूर अल्मोड़ा से संस्थागत छात्र के रूप में बीएड की डिग्री हासिल नहीं की है, यानी उनकी शिकायत गलत है तो शिकायतकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाए। उन्होंने पुलिस को सभी दस्तावेज उपलब्ध कराने की बात करते हुए सवाल उठाया कि नैनीताल पुलिस क्यों मामले को दबा रही है। उनका दावा है कि उनके बीएड करने के दौरान ही 19 जुलाई 1989 से 14 मई 1990 तक प्रबंधकीय व्यवस्था के अंतर्गत 500 रुपये प्रति विषय के मानदेय पर नियमित रूप से नौकरी करने के उपस्थिति पंजिका में हस्ताक्षर जैसे प्रमाण उनके पास उपलब्ध हैं। उन्होंने डा. सती के विरुद्ध पूर्व में हुई जांच को भी नियमविरुद्ध करार देते हुए कहा कि जांच के दौरान शिकायतकर्ता को नहीं बुलाया गया, एवं उत्तराखंड शासन के नियमों के अनुसार शपथ पत्र पर शिकायत भी नहीं ली गयी।