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March 26, 2025

क्यों आते हैं भूकंप ? कैसे मापे जाते हैं और कितना संवेदनशील है उत्तराखंड ? जोखिम एवं बचाव के उपाय

Bhookamp

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार,  नैनीताल, 7  जनवरी 2025 (Earthquake-Vulnerability-Risk-Prevention Measure)। भूकंप एक प्राकृतिक घटना है जो बिना किसी पूर्व चेतावनी के घटित होती है। इसमें भूमि के हिलने और इसके साथ-साथ इसके ऊपर स्थित संरचनाओं के कांपने की प्रक्रिया शामिल होती है। भूकंप मुख्य रूप से गतिशील स्थलमंडलीय (लिथोस्फेरिक) प्लेटों के दबाव के अचानक मुक्त होने के कारण होता है। पृथ्वी की परत 7 बड़ी प्लेटों में विभाजित है, जो लगभग 50 मील मोटी होती हैं। ये प्लेटें पृथ्वी के आंतरिक भाग पर धीमी गति से गतिशील रहती हैं। भूकंप मूलतः विवर्तनिक (टेक्टोनिक) होते हैं, जो इन प्लेटों की गति के कारण उत्पन्न होते हैं।

उत्तराखंड में भूकंप की संवेदनशीलता

नेपाल और उत्तराखंड दोनों उस यूरेशियन-इंडियन प्लेट की सर्वाधिक भूगर्भीय हलचल वाली एमसीटी यानी मेन सेंट्रल थ्रस्ट पर स्थित हैं, जो बुधवार को नेपाल में आये भूकंप और पूरी हिमालय क्षेत्र में भूकंपों और भूगर्भीय हलचलों का सबसे बड़ा कारण है। और यही कारण है, जिसके चलते उत्तराखंड और नेपाल का बड़ा क्षेत्र भूकंपों के दृष्टिकोण से सर्वाधिक खतरनाक जोन-पांच में आता है। इसके अलावा भी उत्तराखंड में पिछले 200 वर्षों में बड़े भूकंप न आने के कारण बड़ा साइस्मिक गैप उत्पन्न हो गया है, और इसलिए यहां बड़े भूकंपों की संभावना लगातार बढ़ती जा रही है।

चिंता के बढ़ने का कारण इसलिये भी अधिक है कि उत्तराखंड में पिछले 200 वर्षों में इस श्रेणी के ‘ग्रेट अर्थक्वेक” नहीं आए हैं। इस क्षेत्र में सबसे बड़ा भूकंप 1905 में कांगड़ा (हिमांचल प्रदेश) में आया था। उत्तराखंड को इस लिहाज से ‘लॉक्ड सेगमेंट” भी कहा जाता है। भूवैज्ञानिक 1905 में कांगड़ा में आये भूकंप के बाद से उत्तराखंड में बड़ा भूकंप न आने के कारण यहां केंद्रीय कुमाऊं (अल्मोड़ा व बागेश्वर जनपद) एवं देहरादून में बड़े भूकंप आने की संभावना लगातार जताते रहे हैं।

इस भूकंप को जबकि 120 वर्षों से अधिक का समय हो चुका है, और औसतन 100 वर्ष में भूकंप आने की बात कही जाती है, इसलिये ऐसे भूकंप की आशंका वैज्ञानिकों द्वारा जताई जा रही है। गौरतलब है कि इस बीच 1991 में उत्तरकाशी व 1999 के चमोली में बड़े भूकंप आये थे, लेकिन उन्हें भी कम तीव्रता के भूकंपों की श्रेणी में ही गिना जाता है।

कुमाऊं विवि के भूविज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. चारु चंद्र पंत के अनुसार नेपाल और उत्तराखंड की भूगर्भीय परिस्थितियां, चट्टानें देशों की सीमाओं से इतर भूगर्भीय दृष्टिकोण से बिलकुल एक जैसी हैं। ऐसी स्थितियों का सामना घबराने के बजाय आवश्यक सुरक्षा प्रबंधों के जरिये करने की जरूरत है।

वहीं कुमाऊं विवि के भूविज्ञान विभाग के भूगर्भ वैज्ञानिक प्रो. राजीव उपाध्याय ने बताया कि बुधवार के बड़े भूकंप के बाद लगातार आ रहे भूकंप के झटकों से डरने की आवश्यकता नहीं है। बल्कि यह यह एक तरह से भूगर्भ में मौजूद ऊर्जा को अवमुक्त करने के लिहाज से लाभदायक ही हैं। उन्होंने बताया कि बड़े भूकंप के बाद कई बार कुछ दिनों तो कई बार कुछ माह तक भी छोटी तीव्रता के ‘आफ्टर शॉक्स’ कहे जाने वाले छोटे भूकंप आते रहते हैं।

नेपाल से कम खतरनाक नहीं उत्तराखंड…. जानें क्यों ?

नैनीताल। भारत देश में भूकंपों और भूगर्भीय हलचलों का मुख्य कारण भारतीय प्लेट के उत्तर दिशा की ओर बढ़ते हुए तिब्बती प्लेट में धंसते जाने के कारण है। बताया जाता है कि करीब दो करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय प्लेट उत्तरी पाकिस्तान के कोईस्तान से लेकर भारत के लद्दाख व दक्षिणी तिब्बत के पास सिंधु नदी से लगे ‘इंडस-सांग्पो सूचर’ क्षेत्र में तिब्बती प्लेट से टकराई थी, और इसी कारण उस दौर के टेथिस महासागर में इन दोनों प्लेटों की भीषण प्लेट से आज के हिमालय का जन्म हुआ था।

आज भी इन दोनों प्लेटों के बीच गतिशीलता बनी हुई है, और इसकी गति करीब 55 मिमी प्रति वर्ष है। इसके प्रभाव में ही गंगा-यमुना के मैदानों को शिवालिक पर्वत श्रृंखला से अलग करने वाले हिमालया फ्रंटल थ्रंस्ट, शिवालिक व लघु हिमालय को अलग करने वाले,  नैनीताल के बल्दियाखान-बजून के पास से गुजरने वाली मेन बाउंड्री थ्रस्ट (एमबीटी) मौजूद हैं। 

इसी तरह आगे रामगढ़ थ्रस्ट, साउथ अल्मोड़ा थ्रस्ट, नार्थ अल्मोड़ा थ्रस्ट, बेरीनाग थ्रस्ट व मध्य हिमालय से उच्च हिमालय को विभक्त करने वाले, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जनपद में धारचूला व मुन्स्यारी में बिर्थी फॉल से लेकर जोशीमठ के हेलंग व हिमांचल प्रदेश के कुल्लू-मनाली क्षेत्र से गुजरने वाली एमसीटी यानी मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) जैसे विभिन्न टैक्टोनिक सेगमेंट्स भी आपस में उत्तर दिशा की ओर खिसक रहे हैं।

इसके अलावा भू वैज्ञानिकों के अनुसार मध्य हिमालय में स्थित उत्तराखंड को अपेक्षाकृत युवा पहाड़ कहा जाता है। हिमालय में अधिकतम 3800 मिलियन वर्ष पुरानी चट्टानें पाई गई हैं। जबकि मध्य हिमालय का क्षेत्र 560 मिलियन वर्ष पुराना बताया जाता है। यहां यह भी एक अनोखी बात यहां दिखती है कि अपेक्षाकृत पुराना मध्य हिमालय अपने से नये केवल 15 मिलियन वर्ष पुराने शिवालिक पहाड़ों के ऊपर स्थित हैं। इस प्रकार यहां कठोर व कमजोर पहाड़ों की एक-दूसरे के अंदर समाने की सतत प्रक्रिया व टक्कर के कारण उत्पन्न तनाव से भूगर्भ में भारी मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न हो रही है।

गौरतलब है कि भूमि की परतों के एक-दूसरे में समाने की यह प्रक्रिया धरती के भीतर लीथोस्फेरिक व ऐस्थेनोस्फियर परतों के बीच होती है। इससे भूगर्भ में अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा एकत्र होती है, जो ज्वालामुखी तथा भूकंपों के रूप में बाहर निकलती है।

चूंकि भारतीय व तिब्बती प्लेटें उत्तराखंड के करीब से एक-दूसरे में समा रही हैं, इसलिये यहां भूकंपों का खतरा अधिक बढ़ जाता है। इधर यह खतरा इसलिये भी बढ़ता जा रहा है कि बीते 200 वर्षों में वर्ष 1905 के कांगड़ा व 1934 के ‘ग्रेट आसाम अर्थक्वेक” के बाद के 120 वर्षों में यहां आठ से अधिक तीव्रता के भूकंप नहीं आऐ हैं, लिहाजा धरती के भीतर बहुत बड़ी मात्रा में ऊर्जा बाहर निकलने को प्रयासरत है।

अपेक्षा से कहीं अधिक है भूगर्भ में ऊर्जा

भूवैज्ञानिकों के अनुसार अकेले एमसीटी ही अरुणांचल प्रदेश के नामचा बरुआ पर्वत से पाक अधिकृत कश्मीर के नंगा पर्वत तक करीब 2500 किमी लंबाई और करीब 60-65 किमी चौड़ाई में अनेकों दरारों के रूप में मौजूद है। इतने बड़े क्षेत्रफल के एक-दूसरे में धंसने-समाने के फलस्वरूप कितनी अधिक मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न होती होगी, इसका अंदाजा लगाना भी आसान नहीं है।

इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि रिक्टर स्केल पर एक और दो तीव्रता के भूकंपों के बीच 31.5 गुना अधिक भूगर्भीय ऊर्जा बाहर निकलती है, जबकि एक से तीन तीव्रता के भूकंपों के बीच ऊर्जा का अंतर 31.5 गुणा 31.5 गुना होता है। इसी प्रकार एक और आठ तीव्रता के भूकंप की ऊर्जा का अंतर ज्ञात करने के लिए 31.5 को आपस में आठ बार गुणा करना होगा।

यह हैं उत्तराखंड में भूगर्भीय संवेदनशीलता के कारण

नैनीताल। भारत देश में भूकंपों और भूगर्भीय हलचलों का मुख्य कारण भारतीय प्लेट के उत्तर दिशा की ओर बढ़ते हुए तिब्बती प्लेट में धंसते जाने के कारण है। बताया जाता है कि करीब दो करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय प्लेट तिब्बती प्लेट से टकराई थी, और इसी कारण उस दौर के टेथिस महासागर में इन दोनों प्लेटों की भीषण प्लेट से आज के हिमालय का जन्म हुआ था। आज भी दोनों प्लेटों के बीच यह गतिशीलता बनी हुई है, और इसकी गति करीब 55 मिमी प्रति वर्ष है।

इसके प्रभाव में ही गंगा-यमुना के मैदानों को शिवालिक पर्वत श्रृंखला से अलग करने वाले हिमालया फ्रंटल थ्रंस्ट, शिवालिक व लघु हिमालय को अलग करने वाले,  नैनीताल के बल्दियाखान-बजून के पास से गुजरने वाली मेन बाउंड्री थ्रस्ट (एमबीटी), इसी तरह आगे रामगढ़ थ्रस्ट, साउथ अल्मोड़ा थ्रस्ट, नार्थ अल्मोड़ा थ्रस्ट, बेरीनाग थ्रस्ट व मध्य हिमालय से उच्च हिमालय को विभक्त करने वाले मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी) जैसे विभिन्न टैक्टोनिक सेगमेंट्स भी आपस में उत्तर दिशा की ओर खिसक रहे हैं।

जोन चार और पांच में है अधिकतर क्षेत्र 

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के भूकंप विज्ञानियों की मानें तो उत्तराखंड भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील है। उत्तराखंड का ज्यादातर इलाका भूकंप के लिहाज से जोन चार और पांच में हैं। इसलिए बार-बार भूकंप की घटनाएं देखने को मिल रही हैं।

क्यों आता है भूकंप ?

वैज्ञानिक रूप से समझने के लिए हमें पृथ्वी की संरचना को समझना होगा। पृथ्वी टैक्टोनिक प्लेटों पर स्थित है। इसके नीचे तरल पदार्थ लावा है और इस पर टैक्टोनिक प्लेट्स तैरती रहती हैं। कई बार ये प्लेट्स आपस में टकरा जाती हैं। बार-बार टकराने से कई बार प्लेट्स के कोने मुड़ जाते हैं और ज्यादा दबाव पड़ने पर ये प्लेट्स टूटने लगती हैं। ऐसे में नीचे से निकली ऊर्जा बाहर की ओर निकलने का रास्ता खोजती है। जब इससे डिस्टर्बेंस बनता है तो इसके बाद भूकंप आता है।

कैसे मापी जाती है तीव्रता? 

भूकंप को रिक्टर स्केल पर मापा जाता है। रिक्टर स्केल भूकंप की तरंगों की तीव्रता मापने का एक गणितीय पैमाना होता है, इसे रिक्टर मैग्नीट्यूड टेस्ट स्केल कहा जाता है। रिक्टर स्केल पर भूकंप को इसके केंद्र यानी एपीसेंटर से 1 से 9 तक के आधार पर मापा जाता है। ये स्केल भूकंप के दौरान धरती के भीतर से निकली ऊर्जा के आधार पर तीव्रता को मापता है। (Earthquake-Vulnerability-Risk-Prevention Measure, Earthquake, Natural Disaster, Uttarakhand Earthquake, Tibet Earthquake)

जानें रिक्टर पैमाने पर भूकंप की तीव्रता के हिसाब से क्या हो सकता है असर:

  • 0 से 1.9 रिक्टर स्केल पर भूकंप आने पर सिर्फ सीज्मोग्राफ से ही पता चलता है।
  • 2 से 2.9 रिक्टर स्केल पर भूकंप आने पर हल्का कंपन होता है।
  • 3 से 3.9 रिक्टर स्केल पर भूकंप आने पर कोई ट्रक आपके नजदीक से गुजर जाए, ऐसा असर होता है।
  • 4 से 4.9 रिक्टर स्केल पर भूकंप आने पर खिड़कियां टूट सकती हैं। दीवारों पर टंगे फ्रेम गिर सकते हैं।
  • 5 से 5.9 रिक्टर स्केल पर भूकंप आने पर फर्नीचर हिल सकता है।
  • 6 से 6.9 रिक्टर स्केल पर भूकंप आने पर इमारतों की नींव दरक सकती है। ऊपरी मंजिलों को नुकसान हो सकता है।

भारत में भूकंप का जोखिम

Earthquake zone map (Earthquake-Vulnerability-Risk-Prevention Measure

भारत एक ऐसा देश है जहां भूकंप के कारण होने वाली जनहानि और संपत्ति नुकसान का खतरा अत्यधिक है। देश में बढ़ती जनसंख्या और अवैज्ञानिक निर्माण जैसे बहुमंजिला अपार्टमेंट, विशाल कारखाने, मॉल और अन्य संरचनाएं भूकंप के खतरे को और बढ़ा देती हैं।

पिछले भूकंपों का प्रभाव

पिछले 15 वर्षों में भारत ने 10 बड़े भूकंपों का सामना किया है, जिसमें 20,000 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। भारत के भूकंपीय क्षेत्र मानचित्र (आईएस 1893: 2002) के अनुसार, देश का लगभग 59% क्षेत्र सामान्य से गंभीर भूकंपीय खतरों की श्रेणी में आता है। हिमालय क्षेत्र को विशेष रूप से 8.0 या उससे अधिक तीव्रता के भूकंपों के प्रति प्रवृत्त माना जाता है। उदाहरण स्वरूप:

  • 1897: शिलांग (तीव्रता 8.7)

  • 1905: कांगड़ा (तीव्रता 8.0)

  • 1934: बिहार-नेपाल (तीव्रता 8.3)

  • 1950: असम-तिब्बत (तीव्रता 8.6)

अन्य प्रभावित क्षेत्र

हिमालय क्षेत्र के अलावा, अन्य क्षेत्रों में भी भूकंप का प्रभाव महसूस किया गया है।

  • 1967: कोयना भूकंप के बाद भूकंपीय क्षेत्र मानचित्र में संशोधन किया गया।

  • 1993: किल्लारी भूकंप के कारण कम जोखिम वाले क्षेत्रों को उच्च जोखिम क्षेत्र में शामिल किया गया।

पूर्वोत्तर भारत, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह जैसे क्षेत्र इंटर-प्लेट बाउंड्रीज पर स्थित होने के कारण बार-बार भूकंप का सामना करते हैं।

शहरीकरण और आर्थिक विकास का प्रभाव (Earthquake-Vulnerability-Risk-Prevention Measure)

तेजी से बढ़ते शहरीकरण और विकासात्मक गतिविधियों ने भूकंप के खतरे को बढ़ा दिया है। उच्च तकनीक वाले उपकरणों और औद्योगिक प्रतिष्ठानों के कारण हल्के झटकों से भी गंभीर नुकसान होने की संभावना रहती है। दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में भूकंप का असर राष्ट्रीय और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। (Earthquake-Vulnerability-Risk-Prevention Measure, Earthquake, Natural Disaster, Uttarakhand Earthquake, Tibet Earthquake)

भूकंप के बाद की सावधानियां

  1. शांत रहें और रेडियो/टीवी पर आने वाली जानकारी का पालन करें।

  2. समुद्र तट और नदियों के निचले किनारों से दूर रहें।

  3. पानी, गैस और बिजली के स्विच बंद कर दें।

  4. माचिस, सिगरेट लाइटर या अन्य ज्वलनशील उपकरणों का उपयोग न करें।

  5. आग बुझाने का प्रयास करें या फायर ब्रिगेड को बुलाएं।

  6. गंभीर रूप से घायल लोगों को बिना आवश्यकता हिलाएं नहीं।

  7. टूटे हुए बिजली के तारों और धातु के संपर्क से बचें।

  8. स्वच्छ पानी का उपयोग करें और खुला पानी पीने से बचें।

  9. क्षतिग्रस्त इमारतों के अंदर दोबारा न घुसें।

आपातकालीन किट में शामिल वस्तुएं

  • बैटरी चालित टॉर्च और अतिरिक्त बैटरियां।

  • बैटरी चालित रेडियो।

  • प्राथमिक चिकित्सा किट और मैनुअल।

  • आपातकालीन खाद्य सामग्री और सीलबंद पानी।

  • मोमबत्तियां और माचिस।

  • क्लोरीन की गोलियां और वाटर प्यूरिफायर।

  • अनिवार्य दवाइयां।

  • नकदी, आधार कार्ड और क्रेडिट कार्ड।

  • मजबूत जूते और रस्सियां।

निष्कर्ष

भूकंप की अनिश्चित प्रकृति इसे और अधिक खतरनाक बनाती है। सावधानी और आपातकालीन तैयारियां ही इसके प्रभाव को कम करने का सबसे प्रभावी उपाय हैं। शहरीकरण और वैज्ञानिक अनुसंधान के माध्यम से संरचनाओं को भूकंप-रोधी बनाना और नागरिकों को जागरूक करना, भूकंप से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए आवश्यक है। (Earthquake-Vulnerability-Risk-Prevention Measure, Earthquake, Natural Disaster, Uttarakhand Earthquake, Tibet Earthquake)

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