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नैनीताल,13 अप्रैल 2018। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने एनसीईआरटी की पुस्तकों को लेकर चले आ रहे विवाद में राज्य सरकार को फिलहाल बड़ी राहत दे दी है। न्यायालय ने सरकार के आईसीएसई से संबद्ध विद्यालयों को छोड़कर सभी विद्यालयों में एनसीईआरटी की पुस्तकें लागू करने के आदेश को सही माना है। इसके इतर न्यायालय ने इस मामले से जुड़े 15 फरवरी, 6 मार्च व 9 मार्च को जारी शासनादेशों पर रोक लगा कर पुस्तक प्रकाशकों को भी कुछ राहत दे दी है। जबकि निजी स्कूल संचालक एवं प्रकाशकों को अपनी पुस्तक लागू करने के लिए पुस्तकों की सूची, कीमत राज्य सरकार एवं एनसीईआरटी को भेजने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही मामले की सुनवाई की अगली तिथि तीन मई तय कर दी है।
शुक्रवार को संयुक्त विद्यालय प्रबंधन समिति यूएस नगर, निशा एजुकेशन, नॉलेज र्वल्ड/प्रिसीपल प्रोगेसिव स्कूल एसोसिएशन, ऊधमसिंह नगर एसोसिएशन आफ इंडिपेंडेंट स्कूल, जंसवत एजुकेशन ट्रस्ट, प्रा. स्कूल एसोसिएशन एवं चिल्ड्रन एसोसिएशन समेत सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद न्यायालय ने सरकार को फिलहाल राहत दे दी है। न्यायालय ने अंतिरम आदेश जारी कर सरकार के फैसले के कुछ बिंदुओं पर मुहर लगा दी है। न्यायालय ने साफ कर दिया है कि यदि कोई प्रकाशक या निजी स्कूल अपनी पुस्तकों को लागू करना चाहता है तो इनको सूची, कीमत की जानकारी राज्य सरकार एवं एनसीईआरटी को देगा।
पब्लिक स्कूलों की एनसीईआरटी की किताबों के खिलाफ याचिका निस्तारित, हड़ताल भी वापस
नैनीताल (4 अप्रैल 2018) उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति केएम जोसेफ व न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की खंडपीठ ने हल्द्वानी पब्लिक स्कूल एशोसिएशन की एनसीईआरटी की किताबों की अनिवार्यता के खिलाफ दायर याचिका को पब्लिक स्कूलों द्वारा प्रस्तावित 7 दिवसीय हड़ताल वापस लेने के शपथ पत्र देने के बाद निस्तारित कर दिया है।
इस प्रकार हल्द्वानी पब्लिक स्कूल एशोसिएशन की एनसीईआरटी की किताबों की अनिवार्यता के खिलाफ मामला समाप्त हो गया है।
अलबत्ता राज्य में एनसीईआरटी की किताबों के लागू रहने के बारे में एक अन्य मामला अब भी उच्च न्यायालय में लंबित है। इस मामले में अगली सुनवाई 11 अप्रैल को होनी है।
पूर्व समाचार : उच्च न्यायालय ने स्कूल एसोसिएशन से पूछा किसने दिया शिक्षा के मूल अधिकार को बाधित करने का अधिकार
नैनीताल (31 मार्च 2018) उत्तराखंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीके बिष्ट व न्यायमूर्ति आलोक सिंह की खंडपीठ ने हल्द्वानी पब्लिक स्कूल एशोसिएशन द्वारा एनसीईआरटी की किताबों की अनिवार्यता को लेकर की जा रही 7 दिवसीय हड़ताल के खिलाफ दायर जनहित याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है। मामले में स्कूल एशोसिएशन को दस्ती समन जारी कर पूछा है कि उन्हें शिक्षा के मूल अधिकार को बाधित करने का अधिकार किसने दिया है। साथ ही सरकार से भी 4 अप्रैल तक जवाब मांगते हुए इसी दिन सुनवाई की अगली तिथि घोषित कर दी है। मामले के अनुसार हल्द्वानी निवासी नवीन कपिल व दिनेश चंदोला ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि सरकार के सरकारी व अर्ध सरकारी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबों को अनिवार्य रूप से लागू करना का आदेश शिक्षा के व्यवसायीकरण को रोकने का एक सराहनीय कदम है। परंतु पब्लिक स्कूलों व पुस्तक विक्रेताओं के द्वारा अपने लाभ को लेकर इस आदेश का उल्लंघन किया जा रहा है। याचिका में पब्लिक स्कूलों व पुस्तक विक्रेताओं के खिलाफ एस्मा लगाने की मांग भी की गयी है।
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-शिक्षकों का है यह कहना, एनसीईआरटी की पुस्तकें सस्ती जरूर हैं, पर शिक्षकों व Hबच्चों को भी नहीं आ रही हैं पसंद, बताई जा रही बेहद कमतर
नवीन जोशी, नैनीताल, 20 मार्च 2018। राज्य सरकार द्वारा प्रदेश के उत्तराखंड बोर्ड व सीबीएसई बोर्ड के सभी विद्यालयों में एनसीईआरटी की पुस्तकें लागू करने का दबाव बनाया जा रहा है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि यह पुस्तकें न केवल स्कूल प्रबंधन को, वरन शिक्षकों व विद्यार्थियों को भी पसंद नहीं आ रही हैं। एक ओर सरकार को इस मामले में पुस्तकें न छप पाने पर बच्चों से बाजार से ही पुस्तकें खरीदने को कहना पड़ा है, वहीं दूसरी ओर बच्चे भी मान रहे हैं कि सस्ती होने के साथ ही इन पुस्तकों का स्तर बेहद कमतर है। वहीं शिक्षकों को समझ नहीं आ रहा है कि इन पुस्तकों को कैसे पढ़ाएं। ऐसे में शिक्षक अपने पढ़ाने के लिए एनसीईआरटी के ही पाठ्यक्रम की ‘हेल्प बुक्स’ को स्वयं के लिए खरीदकर ला रहे हैं, और उससे पढ़ा रहे हैं, अलबत्ता शासन-प्रशासन की कार्रवाई के भय से बच्चों को सरकार द्वारा कही जा रही पुस्तकें भी लाने को कहा जा रहा है। हमने एनसीईआरटी की पुस्तकों की हकीकत जानने का प्रयास किया। नगर के एक विद्यालय में बच्चों व शिक्षकों ने उदाहरण के लिए नौवीं कक्षा की एनसीईआरटी की भूगोल की पुस्तक व एनसीईआरटी की ही ‘हेल्प बुक’ दिखाई। हेल्प बुक जहां तीन-तीन पाठों के करीब 400-400 रुपए मूल्य की 300-300 पेजों के दो खंडों में यानी कुल मिलाकर 600 पेजों में 800 रुपए में भूगोल विषय की सामग्री उपलब्ध कराती है, वहीं सरकार द्वारा लागू की जा रही पुस्तक केवल 50 रुपए में उपलब्ध है, यानी 16 गुना सस्ती है। लेकिन यह भी सच्चाई है कि इस पुस्तक में केवल 66 पृष्ठ हैं। समझा जा सकता है कि 600 पेजों में आने वाली एक विषय की सामग्री 66 यानी करीब 10 फीसद पृष्ठों में कैसे आ सकती है। यानी पुस्तक में न पाठ्य सामग्री ही भरपूर है, और न अभ्यास प्रश्न ही। ऐसे में विद्यार्थी कैसे पूरे विषय को समग्रता से पढ़ पाएंगे समझना कठिन नहीं है। इसी तरह सभी पुस्तकें अधूरी-अधूरी सी लगती हैं। शिक्षकों का कहना है कि इन पुस्तकों में पढ़ाने को कुछ है ही नहीं। विद्यार्थी भी इनके स्तर को देखकर मजाक कर रहे हैं। उनका कहना है कि पहले ही कक्षा आठ तक अनुत्तीर्ण न करने व ग्रेडिंग प्रणाली जैसे प्रावधानों के बाद इन पुस्तकों से राज्य में शिक्षा का स्तर गर्त में जाने की संभावना है।
बहरहाल, इस पूरे मामले में स्कूलों, शिक्षकों व विद्यार्थियों का यह भी कहना है कि एनसीईआरटी की पुस्तकों को लागू करना अच्छा कदम है। यह पुस्तकें बेहद सस्ती भी हैं, किंतु इनमें विषय सामग्री की कमी भावी पीढ़ियों के भविष्य के लिए नुकसानदेह है। इसलिए विषय सामग्री को जोड़े जाने की जरूरत है।
आईसीएसई व आईएसई बोर्ड के स्कूलों ने नहीं लागू कीं एनसीईआरटी की पुस्तकें
नैनीताल। नैनीताल के आईसीएसई व आईएसई बोर्ड के स्कूलों नेएनसीईआरटी की पुस्तकें लागू नहीं की हैं। ये स्कूल स्वयं को अल्पसंख्यक क्रिस्चियन कम्युनिटी का बताते हैं, और उनका कहना है आरटीई यानी शिक्षा के अधिकार सहित इस तरह के सरकारी आदेश उन पर लागू नहीं होते हैं।
नवीन जोशी, नैनीताल, 2 जून 2010। देश में जहां कमोबेश `सर्वशिक्षा अभियान ´ की असफलता के बाद `शिक्षा का अधिकार´ का नया `शिगूफा´ लागू करने की सरकारी कवायद शुरू होने जा रही है, वहीं देश के सर्वाधिक शिक्षित राज्यों में शुमार उत्तराखण्ड के नौनिहालों ने सरकारी शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है। साफ बता दिया है कि शिक्षा का दोगलापन अमीरी व गरीबी की खाई की तरह चौड़ा होता जा रहा है। प्रदेश के कभी शिक्षा नगर माने जाने वाले नैनीताल व देहरादून नगरों का उत्तराखण्ड बोर्ड की हाईस्कूल व इंटरमीडिऐट की 25 रैंकिंग सूची से कोई नाम लेवा तक नहीं है। बल्कि यह समूचे जिले तक सूची में दिखाई नहीं दे रहे। वहीं कभी देश में बड़ा नाम माने जाने वाले जीआईसी अल्मोड़ा की नाक केवल एक बच्चे ने बचाई है। हां, आज भी अधिकांशत: बिजली बिना मिट्टी तेल की ढिबरियों व चीढ़ के छिलकों के सहारे बच्चों को पढ़ाने वाला प्रदेश का दूरस्थ सीमावर्ती बागेश्वर जिला हाईस्कूल व इंटरमीडिऐट दोनों में प्रदेश में सिरमौर रहा है।
पुराने शिक्षा `हब´ नैनीताल व देहरादून का सूपड़ा साफ
हाईस्कूल के 35 व इंटर की 68 की मेरिट सूची में से केवल 11-11 बच्चे ही सरकारी स्कूलों के
इनमें से भी केवल छह व तीन बच्चे ही शहरी सरकारी स्कूलों के
सर्वसुविधा संपन्न मैदानी जिलों व शहरों की अपेक्षा पर्वतीय और वहां भी ग्रामीण और अशासकीय विद्यालयों के रहे बेहतर परिणाम
प्रदेश के शिक्षा मंत्री का गृहजनपद हाईस्कूल में रहा फिसड्डी, जबकि हाईस्कूल-इंटर दोनों में सर्वाधिक पिछड़े जिलों में शुमार बागेश्वर बना शिरमौर
उत्तराखण्ड बोर्ड ने हाईस्कूल व इंटरमीडिऐट बोर्ड के परीक्षाफल में 25वीं रैंक तक की सूची जारी की है, जिसमें हाईस्कूल के 35 व इंटर के 68 बच्चे शामिल हैं। पहले बात इंटरमीडिऐट की, सूची में शामिल 35 मेधावी बच्चों में से केवल 11 ही राजकीय बालक अथवा बालिका इंटर कालेजों के विद्यार्थी रहे हैं, जबकि शेष अशासकीय विद्यालयों के हैं। इन 11 राजकीय स्कूलों के विद्यार्थियों में से भी केवल पांच राइंका श्रीनगर, गोपेश्वर, अल्मोड़ा, रुद्रप्रयाग, पटेलनगर देहरादून `नगरों´ के हैं, जहां पोस्टिंग पाने की शिक्षकों में होड़ मची रहती है, और यहां आवश्यकता से अधिक शिक्षक तैनात भी हैं। जबकि शेष आठ ग्रामीण क्षेत्रों के हैं, जहां स्कूलों में न तो शिक्षक हैं, और न ही आवश्यक सुविधाऐं ही। यानी बच्चों ने जो किया है, अपनी मेहनत से। शेष 57 मेधावी उन अशासकीय विद्यालयों के हैं, जिनके शिक्षकों को केवल वेतन और `वर्ग विशेष´ के छात्रों को छात्रवृत्तियां देकर सरकार अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान लेती है, और वह चॉक, डस्टर जैसे स्टेशनरी के जरूरी सामानों के लिऐ तक तरसते रहते हैं। सूची को अधिक गहनता से देखें तो इसमें देहरादून जिले का केवल एक, अल्मोड़ा जिले के दो और नैनीताल जिले के केवल चार बच्चे हैं। नैनीताल जिले के जो चार बच्चे हैं, वे सभी कुसुमखेड़ा हल्द्वानी के हरगोविन्द सुयाल सरस्वती विद्या मन्दिर इंका के हैं, जहां अभावग्रस्त शिक्षक एक वक्त खाकर भी ज्ञान के यज्ञ में अपनी आहुति दे रहे हैं। इन्हें यदि हटा लें तो मानना होगा कि जिले के एक भी विद्यालय के शिक्षक अपने वेतन-सुविधाओं को सर्वश्रेश्ठ बनाने के लिए कमोबेश हर महीने किऐ जाने वाले धरना-प्रदर्शनों, आन्दोलनों से बच्चों की पढ़ाई के लिए इतना समय नहीं निकाल पाऐ कि वह श्रेश्ठता सूची में आ सकें।
यही वरन इससे भी बुरा हाल हाईस्कूल के परिणामों में दिखता है जहां 25 रैंकिंग के 68 मेधावी बच्चों में से महज 11 बच्चे राजकीय स्कूलों से हैं, जिनमें से आठ ग्रामीण क्षेत्रों के जबकि महज तीन राइंका चौखुटिया, राजा आनन्द सिंह राइंका अल्मोड़ा नगरों के हैं। सूची में नैनीताल नगर तो छोड़िऐ समूचे जनपद का नाम लेवा तक नहीं है। देहरादून नगर का भी यही हाल है, हां विकासनगर, ऋषिकेश व डोईवाला के तीन स्कूलों के पांच बच्चों ने इज्जत रख दी है। अल्मोड़ा नगर के विवेकानन्द इंटर कालेज के नौ बच्चों के कमाल को थोड़ी देर के हटा दें तो यहां भी नगर के राजा आनन्द सिंह इंका की एक छात्रा दिव्या तिवारी ही मैरिट में स्थान बना पायी।
चलिऐ अब मैरिट की बात छोड़ केवल उत्तीर्ण हुऐ बच्चों की ही बात करते हैं। यहां भी परीक्षा परिणाम नयी कहानी बयां कर रहे हैं । नैनीताल, देहरादून, हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर जैसे सुविधासंपन्न एवं मैदानी नगरों पर पहाड़ के बागेश्वर, रुद्रप्रयाग, टिहरी व चंपावत जैसे जनपदों के विद्यार्थियों ने बेहतर परिणाम दिऐ हैं। हाईस्कूल में प्रदेश के शिक्षा राज्यमंत्री गोविन्द सिंह बिष्ट का गृहजनपद नैनीताल फिसड्डी रहा है। यहां के महज 55.71 फीसद विद्यार्थी ही उत्तीर्ण हुऐ। इस कड़ी हरिद्वार में 59.65, चंपावत में 62.67, चमोली में 62.79, देहरादून में 63.52, अल्मोड़ा में 64.4, उत्तरकाशी में 66.25, ऊधमसिंह नगर में 69.32, पिथौरागढ़ में 69.58, टिहरी में 71.2, रुद्रप्रयाग में 71.34 जबकि आज भी बिजली बिना ढिबरियों के सहारे बच्चों को पढ़ाने वाले बागेश्वर जनपद में सर्वाधिक 71.99 फीसद विद्यार्थी उत्तीर्ण हुऐ। इसी तरह इंटरमीडिऐट की बोर्ड परीक्षा में हरिद्वार 58 फीसद के साथ फिसड्डी तो बागेश्वर 84 फीसद के साथ सबसे आगे रहा है। वहीं देहरादून का परीक्षा परिणाम 65.13 फीसद, पिथौरागढ़ का 70.06 फीसद, ऊधमसिंह नगर का 71.23 फीसद, नैनीताल का 71.43, उत्तरकाशी को 72.62, अल्मोड़ा का 72.64, चमोली का 74.69, टिहरी का 76.78, पौड़ी का 77.19, चंपावत का 82.56 तथा रुद्रप्रयाग का 83.92 फीसद रहा है।
साफ है कि सुविधासंपन्न नगरों व विद्यालयों का परिणाम बदतर और सुविधाहीनों का बेहतर रहा है। माना जा सकता है कि जुगाड़ लगाकर सुविधा संपन्न नगरों में आने के बावजूद सर्वाधिक कुशल शिक्षक बच्चों पर अपेक्षित मेहनत नहीं कर रहे। दूसरे सरकारी स्कूलों से मोहभंग होते-होते यह नौबत आ पहुंची है कि सरकारी स्कूलों के शिक्षक भी अब अपने बच्चों को यहां पढ़ाना छोड़ उपलब्ध होने पर निजी स्कूलों में भेज रहे हैं। सरकारी स्कूलों में केवल बेहद निम्न आय वर्ग के बच्चे ही आ रहे हैं, जिनके घरों में पढ़ाई का माहौल ही नहीं है, जो स्कूल में आकर पढ़ते हैं, और वापस लौटकर माता-पिता के साथ जीविकोपार्जन के कार्यों में हाथ बंटाने जुट जाते हैं। उन्होंने इसके बावजूद यदि कमाल किया है तो इसमें उनकी मेहनत को पूरे अंक दिऐ जाने चाहिऐ। जरूरत है कि ऐसी विपरीत परिस्थितियों के बावजूद मैरिट सूची में आऐ नौनिहालों को सरकार आगे कोचिंग जैसी सुविधाऐं दे और उनकी ऊर्जा को देश के विकास में लगाने में योगदान दे।
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