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July 14, 2025

आपातकाल लोकतंत्र को नष्ट करने के लिए भूकंप जैसा था, सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका भी धूमिल हुई: उपराष्ट्रपति

Vice President Jagdip Dhankhar

-कहा, तत्कालीन प्रधानमंत्री ने व्यक्तिगत हितों को सर्वोपरि रखते हुए कैबिनेट को दरकिनार कर राष्ट्रव्यापी आपातकाल लागू किया और राष्ट्रपति ने संवैधानिक मर्यादाओं की उपेक्षा कर किये इस पर हस्ताक्षर (Emergency was like an earthquake that destroyed)

-नौ उच्च न्यायालयों के फैसलों को पलट दिया गया, आज का युवा उस अंधकारमय कालखंड से अनभिज्ञ नहीं रह सकता: उपराष्ट्रपति

-शैक्षणिक संस्थान विचार और नवाचार के स्वाभाविक, जैविक प्रयोगशाला हैं, विश्वविद्यालयों का दायित्व युवाओं को केवल शिक्षित करना नहीं, बल्कि उन्हें प्रेरित, प्रशिक्षित और उत्तरदायी नागरिक के रूप में तैयार करना भी है।

d78aa9031e8264f28da40ee9ac0064c2 232850035नवीन समाचार, नैनीताल, 25 जून 2025। देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि आज से पचास वर्ष पूर्व, इसी दिन लोकतंत्र को नष्ट कर देने वाला ‘आपातकाल’ थोप दिया गया था, जो लोकतंत्र को नष्ट करने के लिए भूकंप से कम नहीं था। उन्होंने इस कालखंड को भारतीय लोकतंत्र का सबसे अंधकारमय समय बताया। उन्होंने कहा कि उस समय की प्रधानमंत्री ने व्यक्तिगत हितों को सर्वोपरि रखते हुए कैबिनेट को दरकिनार कर राष्ट्रव्यापी आपातकाल की घोषणा करवाई, और राष्ट्रपति ने संवैधानिक मर्यादाओं की उपेक्षा कर इसपर हस्ताक्षर कर दिये।

9b3146dc87fe59e6a2d0ca6b3c096156 734963792उपराष्ट्रपति धनखड़ बुधवार को कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल के 50 वर्ष पूरे होने पर आयोजित स्वर्ण जयंती समारोह में विद्यार्थियों, प्राध्यापकों एवं अन्य गणमान्य लोगों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान लगभग 1.4 लाख लोगों को जेलों में डाल दिया गया था। उन्हें न्यायपालिका तक पहुंच भी नहीं मिली। तब मौलिक अधिकारों की रक्षा संभव नहीं थी। लेकिन इनमें से कुछ लोग बाद में इस देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बने।

aea831778c07227f2e7102cfcae0ae16 1929669347उस दौरान नौ उच्च न्यायालयों ने मौलिक अधिकारों की स्थिरता पर बल दिया, लेकिन दुर्भाग्यवश सर्वोच्च न्यायालय ने इन निर्णयों को पलट दिया और कहा कि कार्यपालिका के निर्णय न्यायिक समीक्षा से परे हैं। इससे लोकतंत्र को भारी आघात लगा। उन्होंने कहा कि ‘संविधान हत्या दिवस’ मनाने का उद्देश्य युवाओं को इस अंधकारमय इतिहास से अवगत कराना है ताकि वे इसे भूलें नहीं और इस तरह की घटना दोबारा न दोहराई जाए। उन्होंने न्यायमूर्ति एचआर खन्ना के साहसिक असहमति मत का उल्लेख करते हुए उन्हें लोकतंत्र का प्रहरी बताया।

इस अवसर पर उत्तराखंड के उच्च शिक्षा, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री डॉ. धन सिंह रावत, नैनीताल की विधायक नैनीताल सरिता आर्य, भीमताल के विधायक राम सिंह कैड़ा, पूर्व सांसद डॉ. महेंद्र पाल, कुमाऊँ मंडल के आयुक्त दीपक रावत, पुलिस महानिरीक्षक रिद्धिम अग्रवाल, जिलाधिकारी वंदना सिंह, कुमाऊँ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दीवान सिंह रावत, उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.ओपीएस नेगी, गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ.मनमोहन सिंह चौहान सहित अनेक गणमान्य जन उपस्थित रहे।

शिक्षा संस्थानों की भूमिका व नवाचार

नैनीताल। उपराष्ट्रपति ने कहा कि शैक्षणिक संस्थान केवल प्रमाणपत्र देने के केंद्र नहीं, बल्कि विचार और नवाचार के स्वाभाविक जैविक स्थल होते हैं। उन्होंने विद्यार्थियों को प्रेरित करते हुए कहा कि ये परिसर ही हैं जहाँ भविष्य की दिशा तय होती है। उन्होंने युवाओं से आग्रह किया कि वे न केवल अपने भविष्य का निर्माण करें बल्कि राष्ट्र निर्माण में भी भागीदार बनें। उन्होंने विद्यार्थियों को संदेश दिया-‘जस्ट डू इट-टू इट नाव’ यानी कार्य को अभी करो-तत्काल करो।

पूर्व छात्रों के योगदान की महत्ता बतायी

नैनीताल। श्री धनखड़ ने विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रों को संस्था की शक्ति बताते हुए कहा कि विकसित देशों में पूर्व छात्र संस्थान के आर्थिक और बौद्धिक विकास में मुख्य भूमिका निभाते हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि कुमाऊँ विश्वविद्यालय भी 50 वर्षों के अपने पूर्व छात्रों को संगठित कर एक स्थायी निधि बनाए जिससे आत्मनिर्भरता को बल मिल सके। उन्होंने कहा कि यदि 1,00,000 पूर्व छात्र ₹10,000 प्रति वर्ष योगदान दें, तो विश्वविद्यालय के पास ₹100 करोड़ रुपये की वार्षिक निधि तैयार हो सकती है।

राज्यपाल ने विश्वविद्यालय की उपलब्धियों की सराहना की

कार्यक्रम में उपस्थित राज्यपाल सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह ने विश्वविद्यालय की स्वर्ण जयंती पर कहा कि कुमाऊँ विश्वविद्यालय ने विगत 50 वर्षों में न केवल शैक्षणिक उपलब्धियाँ अर्जित की हैं, बल्कि समाज के अंतिम व्यक्ति तक ज्ञान का प्रकाश पहुँचाया है। उन्होंने कहा कि भारत के युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, रोजगारपरक प्रशिक्षण और सामाजिक चेतना के साथ जोड़कर ही देश का भविष्य सुरक्षित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों का दायित्व युवाओं को शिक्षित करने के साथ-साथ उन्हें उत्तरदायी नागरिक बनाना भी है।पौधरोपण और अतिथियों की उपस्थिति

समारोह से पूर्व उपराष्ट्रपति ने विश्वविद्यालय परिसर स्थित हरमिटेज भवन में ‘एक पेड़ माँ के नाम’ अभियान के अंतर्गत अपने पूज्य माता-पिता के नाम पर दो पौधों का पौधरोपण भी किया।

भाजपा नैनीताल ने लगायी आपातकाल की 50वीं बरसी पर चित्र प्रदर्शनी (Emergency was like an earthquake that destroyed)

नैनीताल। भारतीय जनता पार्टी के नैनीताल मंडल के द्वारा बुधवार को 25 जून के दिन 1975 में देश में थोपे गये आपातकाल की 50वीं बरसी पर “आपातकाल का काला दिवस” विषयक चित्र प्रदर्शनी का आयोजन मल्लीताल स्थित रिक्शा स्टैंड के प्रदर्शन स्थल पर किया गया। प्रदर्शनी का उद्घाटन विधायक सरिता आर्य ने किया। इस अवसर पर मंडल अध्यक्ष नितिन कार्की ने कहा कि आपातकाल स्वतंत्र भारत के लोकतंत्र का सबसे अंधकारमय अध्याय था।

चित्र प्रदर्शनी में आपातकाल के दौरान देश में लागू सेंसरशिप, राजनीतिक दमन, विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी, मौलिक अधिकारों के हनन तथा लोकतंत्र की आवाज को कुचलने के प्रयासों को ऐतिहासिक तथ्यों व चित्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम में सह संयोजक काजल आर्या, आशीष बजाज, रोहित और युवराज करायत ने विशेष भूमिका निभाई। कार्यक्रम का समापन देशभक्ति गीतों तथा लोकतंत्र की रक्षा में योगदान देने वाले सेनानियों को श्रद्धांजलि अर्पित कर किया गया।

इस अवसर पर दायित्वधारी शांति मेहरा, निखिल बिष्ट, मोहित साह, ज्योति ढोंढियाल, आशा आर्या, मयंक, मनोज पंत, भारत मेहरा, कमल जोशी, आनंद बिष्ट, नीतू जोशी, अरविंद पडियार, दयाकिशन पोखरिया, भगवत रावत, पूरन बिष्ट, गजाला कमाल, मनोज जगाती, राहुल नेगी, रोहित जोशी, युवराज करायत, प्रियांशु आर्या, अरुण कुमार, संतोष कुमार, शैलेंद्र बर्गली, आशु उपाध्याय, कलावती असवाल, कविता गंगोला, संतोष साह, कृष्ण कुमार शर्मा, धीरज गौरव पटवाल, मनीष भट्ट व अरुण बोरा सहित अनेक कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

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