हल्द्वानी के रामलीला मैदान से पटाखों का बाजार और आबादी क्षेत्र से पटाखों के गोदाम हटाने के आदेश
नवीन समाचार, नैनीताल, 20 अक्तूबर 2022। उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने दीपावली के अवसर पर हल्द्वानी के रामलीला मैदान में पटाखा बाजार लगाए जाने पर रोक लगा दी है। गुरुवार को याचिका पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने यह भी निर्देश दिए हैं कि शहर के आबादी क्षेत्र में स्थित पटाखों के 11 गोदामों को भी विस्थापित किया जाए। ‘नवीन समाचार’ के माध्यम से दीपावली पर अपने प्रियजनों को शुभकामना संदेश दें मात्र 500 रुपए में… संपर्क करें 8077566792, 9412037779 पर, अपना संदेश भेजें saharanavinjoshi@gmail.com पर… यह भी पढ़ें : नवविवाहिता बहु से 65 वर्षीय ससुर ने किया दुष्कर्म….
उल्लेखनीय है कि हल्द्वानी निवासी ललित मोहन सिंह नेगी ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि हल्द्वानी के रामलीला मैदान में पिछले वर्षों की भांति इस वर्ष भी दीपावली के दौरान पटाखों की दुकानें लगाने के लिए सिटी मजिस्ट्रेट द्वारा 18 अक्टूबर को अधिसूचना भी जारी कर दी गई है, इस आदेश पर रोक लगाई जाए। यह क्षेत्र आबादी वाला क्षेत्र है। यहां पटाखों की दुकान लगाने के कारण कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है इसलिए इन दुकानों को यहां से कहीं बाहर लगवाया जाए। यह भी पढ़ें : बड़ा शातिर निकला छोटा खान, 5 साल से शादी का झांसा देकर शारीरिक संबंध एक से बनाए, शादी दूसरी से कर ली….
याचिका में यह भी कहा गया था कि शहर में पटाखों के 11 गोदाम आबादी क्षेत्र में स्थित हैं, उन्हें भी हटवाया जाए। इस संबंध में अग्निशमन विभाग के पास भी कई शिकायतें दर्ज हुई थीं परंतु आज तक इस पर रोक नहीं लगाई गई। याचिका पर मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए सिटी मजिस्ट्रेट को निर्देश दिए हैं कि पटाखों की दुकानों व गोदामो को आबादी क्षेत्र से बाहर लगवाएं। (डॉ.नवीन जोशी) आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
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डिग्री कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसर के 455 पदों के लिए जारी किया था विज्ञापन
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 2 अगस्त 2022। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने राज्य लोक सेवा आयोग की ओर से दिसंबर 2021 में डिग्री कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसर के 455 पदों के लिए जारी विज्ञापन को दिव्यांग जन अधिकार नियम 2017 के खिलाफ मानते हुए रद्द कर दिया है। साथ ही आयोग को नए सिरे से विज्ञप्ति जारी करने के निर्देश दिए हैं।
मामले के अनुसार दिव्यांग मनीष चौहान, रितेश व अन्य ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर उत्तराखंड लोक सेवा आयोग के 4 दिसंबर 2021 को विज्ञप्ति को चुनौती देते हुए कहा था कि आयोग की ओर से राज्य के डिग्री कॉलेजों में असिस्टेंट प्रोफेसर के 455 रिक्त पदों के लिए जारी विज्ञप्ति में दिव्यांगजनों को मिलने वाले क्षैतिज आरक्षण को इस तरह से निर्धारित किया है कि उनके लिए सीट आरक्षित नहीं रह पाई है।
जो कि दिव्यांग जन अधिकार नियम 2017 के नियम 11(4) और सुप्रीम कोर्ट की ओर से इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार में दिए गए निर्णयों के खिलाफ है। मामले की गम्भीरता को देखते हुए खंडपीठ ने उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की ओर से जारी विज्ञप्ति को रद्द करते हुए नए सिरे से विज्ञप्ति जारी करने के निर्देश दिए हैं। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : उत्तराखंड हाईकोर्ट ने प्रदेश सांसदों व विधायकों के खिलाफ दर्ज एवं विचाराधीन मुकदमों की रिपोर्ट तलब की
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 17 फरवरी 2022। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा व न्यायमूर्ति एनएस धानिक की खंडपीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के क्रम में राज्य सरकार को प्रदेश के सांसदों व विधायकों के खिलाफ दर्ज एवं विचाराधीन आपराधिक मुकदमों की आगामी 3 मार्च तक जानकारी तलब की है।
उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय ने अगस्त 2021 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मुजफ्फरनगर दंगे की आरोपी साध्वी प्राची, मेरठ के सरधना के विधायक संगीत सोम व विधायक सुरेश राणा के खिलाफ दर्ज मुकदमों को भारतीय दंड संहिता की की धारा 321 का गलत उपयोग कर सांसदों व विधायकों के मुकदमे वापस लेने को गंभीरता से लेते हुए कहा था कि राज्य सरकारें बिना उच्च न्यायालय की अनुमति के इन मामलों को वापस नहीं ले सकती हैं। लिहाजा, सभी राज्यों के उच्च न्यायालय अपने यहां सांसदों व विधायकों के खिलाफ विचाराधीन मुकदमा को विशेष न्यायालय गठित कर शीघ्र निस्तारण करवाएं।
इसी आधार पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने प्रदेश के सांसदों व विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मुकदमों की त्वरित सुनवाई को लेकर स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई की। मामले में प्रदेश के गृह, विधि एवं न्याय, वित्त तथा महिला एवं बाल कल्याण विभागों के सचिवों एवं डीजीपी को पक्षकार बनाया गया है। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : वन रावतों के टीकाकरण पर याचिकाकर्ता से प्रति शपथ पत्र पेश करने को कहा
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 13 जुलाई 2021। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने वन रावतों को कोरोना के टीके नहीं लगाए जाने से संबंधित पत्र का स्वतः संज्ञान लेते हुए याचिकाकर्ता से दो सप्ताह में प्रति शपथपत्र पेश करने को कहा है। इस मामले में सरकार की ओर से न्यायालय में कहा गया कि 90 फीसद वन रावतों को टीके लग चुके हैं।
उल्लेखनीय है कि अधिवक्ता डीके जोशी ने एक समाचार पत्र में प्रकाशित खबर के बारे में मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखा था। जिसमें कहा था कि आर्थिक, सामाजिक, शिक्षा के क्षेत्र से बहुत पिछड़े और स्मार्ट फोन न होने के कारण कोविन एप पर रजिस्ट्रेशन और स्लॉट बुक करने में असमर्थ आदिवासी वन रावतों को अब तक कोरोना के टीके नहीं लगे है। सरकार ने उन्हें टीके लगाने के लिए कोई पहल अभी तक नहीं की है। इस मामले में पिछली सुनवाई के दौरान पीठ ने स्वास्थ्य सचिव से जवाब पेश करने के साथ ही उनकी संख्या के बारे में जानकारी मांगी थी। मंगलवार को स्वास्थ्य सचिव की ओर से न्यायालय में शपथपत्र पेश कर कहा गया है कि प्रदेश में वन रावतों की संख्या लगभग एक हजार है। इनमें से 90 फीसद लोगों को टीके लग चुके है। करीब सौ लोग अभी उच्च हिमालय की ओर चले गए हैं। अक्टूबर तक जब ये नीचे आ जाएंगे तो, उनको भी टीके लगा दिए जाएंगे। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : हरिद्वार कुंभ के कोविड जांच फर्जीवाड़े में मैक्स प्रबंधन की गिरफ्तारी पर लगाई रोक, जानें किस आधार पर ?
-25 जून को जांच अधिकारी के समक्ष पेश होने का दिया निर्देश
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 23 जून 2021। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनएस धानिक की एकलपीठ ने हरिद्वार महाकुंभ के दौरान कोविड जांच में फर्जीवाड़ा किए जाने के मामले में हरिद्वार के मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा मैक्स हॉस्पिटल खिलाफ दर्ज किए गए मुकदमे के मामले में मैक्स कॉरपोरेट सर्विसेज की याचिका पर सुनवाई करते हुए आरोपितों की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। इस मामले में न्यायालय ने अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के आलोक में याचिकाकर्ता को मनमानी गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान किया। अलबत्ता याचिकाकर्ता को जांच प्रक्रिया में सहयोग करने और 25 जून को जांच अधिकारी के समक्ष पेश होने का भी निर्देश दिया है। इसके साथ पीठ ने याचिका का अंतिम रूप से निस्तारण कर दिया गया है।
उल्लेचानीय है कि याचिकाकर्ता मैक्स की पार्टनर मल्लिका पंत द्वारा दायर याचिका में प्राथमिकी निरस्त करने व गिरफ्तारी पर रोक लगाने की प्रार्थना करते हुए कहा गया है कि वह जांच में सहयोग को पूरी तरह तैयार हैं और 25 जून को जांच अधिकारी के समक्ष पेश होंगे। याचिकाकर्ता के अनुसार उनको अब तक सेक्शन 41 का नोटिस नहीं मिला है, जो सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार सात साल से कम की सजा वाले अपराध में दिया जाना जरूरी है। इस पर न्यायालय ने अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के आलोक में याचिकाकर्ता को मनमानी गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान किया। न्यायालय ने याचिकाकर्ता को जांच में शामिल होने और 25 जून को जांच अधिकारी के समक्ष पेश होने का भी निर्देश दिया है। न्यायालय ने जांच अधिकारी को धारा 41 सीआरपीसी के तहत प्रदान की गई प्रक्रिया का पालन करने का निर्देश भी दिया है। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : बहुचर्चित अनुपमा गुलाटी हत्याकांड : प्रेम विवाह के बाद पत्नी के 72 टुकड़े करने वाले को स्वास्थ्य कारणों से चाहिए जमानत, कोर्ट ने नहीं दी फौरी राहत
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 22 जून 2021। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने प्रेम विवाह के बावजूद पत्नी की हत्या कर शव के 72 टुकड़े करने के बहुचर्चित अनुपमा गुलाटी हत्याकांड के मामले में दोषी पाए जा चुके उसके पति राजेश गुलाटी के इलाज हेतु दायर किए गए अंतरिम जमानत प्रार्थना पत्र पर राहत नहीं दी है। अलबत्ता मामले कीे सुनवाई करते हुए सरकार से दस दिन के भीतर आपत्ति पेश करने को कहा है। साथ ही मामले की अगली सुनवाई के लिए सात जुलाई की तिथि नियत कर दी है।
मंगलवार को आरोपित की जमानत अर्जी पर सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष के अधिवक्ता ने कहा कि पेशे से एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर राजेश गुलाटी ने 17 अक्टूबर 2010 को अपनी पत्नी अनुपमा गुलाटी की निर्मम तरीके से हत्या कर दी। साथ ही अपराध को छिपाने के मकसद से उसने शव के 72 टुकड़े कर डीप फ्रिज में डाल दिये थे। जबकि अनुपमा के साथ 1999 में उसने प्रेम विवाह किया था। 12 दिसम्बर 2010 को अनुपमा का भाई दिल्ली से देहरादून आया तो हत्या का खुलासा हुआ। देहरादून कोर्ट ने इस घटना को जघन्य अपराध की श्रेणी में मानते हुए राजेश गुलाटी को पहली सितम्बर 2017 को आजीवन कारावास एवं 15 लाख रुपए के अर्थदंड की सजा सुनाई थी। राजेश गुलाटी ने निचली अदालत के इस आदेश को वर्ष 2017 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। मंगलवार को उसकी तरफ से इलाज हेतु अंतरिम जमानत प्रार्थनापत्र पेश किया गया। फिलहाल हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली है। कोर्ट ने अंतरिम जमानत पर सरकार को आपत्ति दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : कुंभ मेले के कोविड जांच घोटाले में आरोपित फर्मों की ओर से हाईकोर्ट में याचिका दायर
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 21 जून 2021। हरिद्वार कुम्भ के दौरान कोविड जांच में एक लाख लोगों की फर्जी कोविड जांच रिपोर्ट तैयार कर धोखाधड़ी करने के आरोपी डॉ. लालचंदानी लैब दिल्ली ने उनके विरुद्ध दर्ज प्राथमिकी को निरस्त करने और अपनी गिरफ्तारी पर रोक लगाने हेतु हाईकोर्ट में सोमवार को याचिका दायर की है। याचिका में लैब की ओर से कहा गया है कि उनको कुम्भ मेंले में जांच करने हेतु मैक्स कॉरपोरेट द्वारा कार्य दिया गया था जिसे उनके द्वारा सही तरीके से किया गया और उसका सारा रिकार्ड उनके पास मौजूद है। उनकी लैब आईसीएमआर द्वारा मान्यता प्राप्त है। मामले में सुनवाई होनी शेष है।
उल्लेखनीय है कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी, हरिद्वार ने पुलिस में मुकदमा दर्ज करते हुए आरोप लगाया है कि कुम्भ मेले के दौरान इस लैब के द्वारा लाभ प्राप्त करने हेतु फर्जी तरीके से टेस्ट किये गए। मामले के अनुसार 17 जून 2021 को एक व्यक्ति द्वारा सीएमओ हरिद्वार को एक पत्र भेजकर शिकायत की गयी कि कुम्भ मेले में टेस्ट कराने वाली लैबों के द्वारा उनकी आईडी व फोन नम्बर का उपयोग किया है। जबकि उनके द्वारा कभी रैपिड एंटीजन टेस्ट हेतु सैम्पल दिया ही नही गया था। इस प्रकरण में रैपिड एंटीजन टेस्ट सैम्पल कलेक्शन सेंटर का नाम मैक्स कारपोरेट सर्विस कुम्भ मेला अंकित किया गया था। इस मामले की शिकायत चीफ ऑपरेशन ऑफिसर उत्तराखंड स्टेट कंट्रोल रूम कोविड 19 से की तो उन्होंने उन्हें जाँच आंख्या उपलब्ध कराई। इस पर जिला अधिकारी हरिद्वार द्वारा 16 जून 2021 को कराई गई प्रारम्भिक जाँच में यह तथ्य सामने आया कि 13 अप्रैल 2021 से 16 मई 2021 कुम्भ मेले में इस लैबों के द्वारा 104796 सैम्पल लिए जाने हेतु एंट्री कराई गई और 95102 सैंपल पोर्टल में अपलोड कर दिए गए। शिकायत कर्ता का यह भी कहना है कि इन फर्मो द्वारा खुद को लाभ पहुंचाने के लिए गलत तरीके से एक लाख लोगों की फर्जी रिपोर्ट तैयार की गई। उदाहरण के तौर पर हरिद्वार के नेपाली फार्म में 3825 व्यक्तियों का सैम्पल फोन नम्बर 7747028144 से दर्ज किया गया। इस शिकायत को आधार मानकर सीएमओ हरिद्वार ने नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट 2005 की धारा 53 और आईपीसी की धारा 120बी, 188, 269, 270, 420, 468 और 471 में 17 जून 2021 को मैक्स कॉरपोरेट सर्विस नालवा लेबोरेट्रीज और डॉक्टर लाल चंदानी के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया। जिसके खिलाफ मैक्स व डॉक्टर लाल चंदानी ने हाई कोर्ट में अपनी याचिकाएं दायर की है, जिसमे अब सुनवाई होनी बाकी है। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
यह भी पढ़ें : राज्य में कोरोना रोगियों के लिए प्लाज्मा बैंक बनाने पर सरकार से जवाब तलब
नवीन समाचार, नैनीताल, 13 मई 2021। कोरोना मरीजों को प्लाज्मा के लिए सबसे बड़ी परेशानियां उठानी पड़ रही है। अब उत्तराखंड उच्च न्यायालय में प्लाज्मा बैंक बनाने को लेकर जनहित याचिका दाखिल की गई है। न्यायालय ने मामले में सुनवाई करते हुए सरकार की एक सप्ताह में प्लाज्मा बैंक पर जवाब दाखिल करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 20 मई को होगी।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में हल्द्वानी निवासी दीपक बल्यूटिया की जनहित याचिका पर सुनवाई की, जिसमें अलग-अलग स्थानों पर 4 से 6 प्लाज्मा बैंक बनाने की मांग की गई है। याचिका में हल्द्वानी में एमबीपीजी कालेज के अलावा अन्य सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में टीकाकरण करने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि सरकार आईटीबीपी, एसएसबी, सीआरपीएफ समेत अन्य पैरा मिलिट्री के पैरामेडिकल स्टाफ की मदद ले। याचिका में आईसीयू बैड, ऑक्सीजन बैड, आईसीयू बढ़ाने की मांग की गई है।
यह भी पढ़ें : 30 वर्षों से अवैध रूप से चल रही राइस मिल के कागजात हाईकोर्ट ने किये तलब
नवीन समाचार, नैनीताल, 10 मार्च 2021। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की सुनवाई मुख्य न्यायधीश आरएस चौहान एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने बुधवार को रुद्रपुर के दानपुर गांव में 30 वर्षों से अवैध रूप से चल रही मैसर्स बंसल राइस मिल के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। इसमें न्यायालय ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को अवैध रूप से चल रही चीनी मिल के कागजात तलब करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही न्यायालय ने पूछा है कि अगर मिल आज तक अवैध रूप से चल रही थी तो उसे कैसे चलने दिया गया? तीन सप्ताह में इसका जवाब पेश करें।
मामले के अनुसार रुद्रपुर जिले में स्थित दानपुर के ग्रामीणों ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। इसमें कहा है कि दानपुर में हाईवे के पास करीब 30 वर्षों से अवैध रूप से मैसर्स बंसल राइस मिल संचालित की जा रही है। मिल स्वामी की ओर से न तो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनुमित ली गई और न ही मिल के पास संचालन का कोई लाइसेंस है। याचिकाकर्ता का कहना है कि पूर्व में इसकी शिकायत जिलाधिकारी कार्यालय में की जा चुकी है। इस क्रम में कुछ समय मिल को बंद कर दिया गया, लेकिन कुछ समय बाद राज्य प्रदूषण बोर्ड द्वारा दुबारा राइस मिल चालू करने की अनुमति दे दी गई। ग्रामीणों का कहना है कि मिल से फैलने वाले प्रदूषण से ग्रामीणों को जो नुकसान पहुंचा है, उसके एवज में ग्रामीणों को मुआवजा दिया जाए। मिल को किसी दूसरी जगह स्थानांतरित किया जाए अथवा बंद किया जाए। बुधवार को हुई सुनवाई में उच्च न्यायालय ने इस संबंध में पीसीबी से जवाब मांगा है।
यह भी पढ़ें : हाईकोर्ट ने हल्दूचौड़ में स्टोन स्क्रीनिंग प्लांट की अनुमति एवं पीसीबी के अनापत्ति पत्र किए रद्द
नवीन समाचार, नैनीताल, 02 दिसम्बर 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने हल्दूचौड़ के जयराम गांव में स्टोन स्क्रीनिंग प्लांट के लिए नियमों को शिथिल कर दी गई अनुमति एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा इस क्रेशर के लिए जारी किए गए समस्त अनापत्ति पत्रों को रद्द कर दिया है
बुधवार को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवि कुमार मलिमठ व न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी की खंडपीठ में क्षेत्रवासी केवलानंद दुम्का की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में कहा गया है कि गांव में आबादी के बीच मानकों को दरकिनार कर स्क्रीनिंग प्लांट की अनुमति दी गई है। इससे बड़ी आबादी के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। खंडपीठ ने मामले को सुनने के बाद स्टोन क्रेशर के लिए दी गई अनुमति को रद्द कर दिया। साथ ही 10 अगस्त के बाद इस क्रेशर को लेकर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा दिए गए समस्त अनापत्ति प्रमाण पत्रों को भी निरस्त कर दिया। उल्लेखनीय है कि इससे पहले न्यायालय इस मामले में रोक लगाई थी।
यह भी पढ़ें : मुनि चिदानंद पर बड़े जुर्माने की तैयारी ? हाईकोर्ट ने सरकार से अवैध कब्जे की 35 बीघा भूमि का बाजार मूल्य से किराया पूछा
-याची ने लगाया अवैध निर्माण तोड़ने के 54 लाख के ठेके में से तोड़ने वाले ठेकेदार को मात्र 10 लाख व शेष चिदानंद मुनि को ही देने का आरोप
नवीन समाचार, नैनीताल, 27 नवम्बर 2020। उत्तराखंड हाईकोर्ट की कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश रवि कुमार मलिमथ व न्यायमुर्ति रविंद्र मैठाणी की खंडपीठ ने मुनि चिदानंद के मामले में राज्य सरकार से 4 दिसंबर तक शपथ पत्र पेश करने को कहा है। शपथ पत्र में यह बताने को कहा है कि वर्ष 2000 से 2020 तक जिस भूमि पर चिदानंद द्वारा अवैध कब्जा किया हुआ है उसका बाजार मूल्य से कितना किराया होगा।
इधर आज याची ने न्यायालय को बताया कि चिदानंद ने इस भूमि पर वर्ष 2000 से कब्जा किया हुआ है। लिहाजा उनसे इस भूमि का बाजार मूल्य के हिसाब से किराया वसूला जाये। याची की ओर से कोर्ट के संज्ञान में यह तथ्य भी लाया गया कि जिस कम्पनी को सरकार ने अवैध निर्माण तोड़ने के लिए 54 लाख का ठेका दिया है उस कम्पनी को सरकार मात्र 10 लाख रुपया दे रही है, और शेष धनराशि मुनि चिदानंद को वापस कर रही है। इससे स्पष्ट हो रहा है कि राज्य सरकार चिदानंद को लाभ देने के पक्ष में है। उल्लेखनीय है कि यह याचिका हरिद्वार निवासी अर्चना शुक्ला द्वारा मुनि चिदानंद के खिलाफ ऋषिकेश के निकट वीरपुर खुर्द वीरभद्र में 35 बीघा जमीन में रिजर्व फारेस्ट की भूमि पर अतिक्रमण करने व उस पर 52 कमरों के एक विशाल भवन और गौशाला का निर्माण किये जाने को लेकर दायर की गई है। याचिका में यह भी कहा गया है कि चिदानंद के रसूखदारों से संबंध होने के कारण वन व राजस्व विभाग द्वारा इसकी अनदेखी की जा रही हैं। कई बार प्रशाशन व वन विभाग को अवगत कराया गया फिर भी किसी के द्वारा गतिविधियों पर रोक नही लगाई गई, जिसके कारण उन्हें जनहित याचिका दायर करनी पड़ी। चाची ने इस भूमि से अतिक्रमण हटाकर यह भूमि सरकार को सौंपी जाने की मांग की है।
यह भी पढ़ें : चिदानंद मुनि से सम्बंधित मामले में वन भूमि से अवैध कब्जाधारियों को हटाने के आदेश
नवीन समाचार, नैनीताल, 19 जून 2020। उत्तरखंड हाइकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने हरिद्वार से 14 किलोमीटर आगे राजाजी नेशनल पार्क के भीतर कुनाउ गाव में वन भूमि में हो रहे भारी निर्माण कार्य के सम्बन्ध में दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से वहाँ रह रहे अवैध कब्जाधारियों को हटाकर एक जुलाई तक रिपोर्ट न्यायालय में पेश करने के आदेश दिये हैं। पीठ ने कहा कि वन भूमि में किसी भी तरह का कब्जा नहीं किया जा सकता है। आज सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने कहा कि मुनि चिदानंद के नाम पर वहां की कोई भी भूमि रिकॉर्ड में नहीं है, तथा वहां रहने वाले 36 परिवारों की लीज भी पहले ही समाप्त हो चुकी
मामले के अनुसार हरिद्वार निवासी अधिवक्ता विवेक शुक्ला ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि हरिद्वार से 14 किलोमीटर आगे राजाजी नेशनल पार्क के कुनाउ गाव में वन भूमि पर चिदानंद मुनि द्वारा वन चौकी के आंखों के सामने 2006 से भारी निर्माण कार्य किया जा रहा है। इसके बावजूद वन विभाग कोई कार्यवाही नही कर रहा है। याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि इस निर्माण कार्य पर रोक लगाई जाये और दोषी लोगों के खिलाफ कार्यवाही की जाये।
यह भी पढ़ें : चिदानंद मुनि से सम्बंधित मामले में 24 घंटे में रिपोर्ट हाईकोर्ट में तलब
नवीन समाचार, नैनीताल, 18 जून 2020। उत्तरखंड हाइकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने हरिद्वार से 14 किलोमीटर आगे राजाजी नेशनल पार्क के भीतर वन भूमि में हो रहे भारी निर्माण कार्य के सम्बन्ध में दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से वहाँ रह रहे समस्त लोगो की जानकारी 19 जून शुक्रवार को कोर्ट में पेश करने के आदेश दिये हैं। बृहस्पतिवार को सुनवाई पर राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय को बताया कि वहाँ पर 36 परिवार लीज समाप्त होने के बाद भी रह रहे हैं।
मामले के अनुसार हरिद्वार निवासी अधिवक्ता विवेक शुक्ला ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि हरिद्वार से 14 किलोमीटर आगे राजाजी नेशनल पार्क के कुनाउ गाव में वन भूमि पर चिदानंद मुनि द्वारा वन चौकी के आंखों के सामने 2006 से भारी निर्माण कार्य किया जा रहा है। इसके बावजूद वन विभाग कोई कार्यवाही नही कर रहा है। याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि इस निर्माण कार्य पर रोक लगाई जाये और दोषी लोगों के खिलाफ कार्यवाही की जाये।
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नवीन समाचार, नैनीताल, नैनीताल, 19 अक्टूबर 2020। यौन उत्पीड़न और दुष्कर्म मामले में फंसे उत्तराखंड के द्वाराहाट से भाजपा विधायक महेश नेगी को उच्च न्यायालय से बड़ी राहत बहुचर्चित भाजपा विधायक पर लटकी थी गिरफ्तारी की तलवार, हाईकोर्ट ने लगाई रोकमिली है। न्यायमूर्ति एनएस धानिक की एकलपीठ ने पीड़ित महिला को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है, और विधायक की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। कोर्ट अब सभी मामलों की सुनवाई एक साथ करेगा।
उल्लेखनीय है कि इसी साल अगस्त माह में एक महिला ने विधायक महेश नेगी पर दुष्कर्म का आरोप लगाकर प्रदेश की सियासत को गर्मा दिया था। महिला ने गत पांच सितंबर को देहरादून में नेहरू कॉलोनी पुलिस थाने में दी अपनी तहरीर में आरोप लगाया था कि वह अपनी मां की बीमारी के इलाज के सिलसिले में विधायक से मिली थी। आगे विधायक ने साल 2016 से उसके साथ नैनीताल, दिल्ली, मसूरी तथा देहरादून आदि अलग-अलग स्थानों पर कथित तौर पर दुष्कर्म किया। महिला ने दावा किया था कि विधायक से उसकी एक बच्ची भी है और उसका डीएनए टेस्ट कर सत्यता का पता लगाया जा सकता है। इस पर विधायक के खिलाफ नेहरू कॉलोनी थाने में दुष्कर्म और धमकी के मामले में 376 और 506 पर मुकदमा दर्ज किया था। इस मामले में गिरफ्तारी से बचने के लिए नेगी हाईकोर्ट पहुंचे थे। उधर पीड़िता ने भी हाईकोर्ट में अपने खिलाफ दर्ज मुकदमे के मामले में याचिका दायर की थी। जबकि विधायक की पत्नी रीता नेगी ने भी महिला पर अपने पति को ब्लैकमेल करने का आरोप लगाते हुए नेहरू कॉलोनी पुलिस थाने में एक मुकदमा दर्ज कराया था। रीता ने आरोप लगाया है कि महिला उनके पति को बदनाम कर रही है और पांच करोड़ रुपए मांग रही है।
यह भी पढ़ें : शौचालयों में लाखों का घोटाला, हाईकोर्ट ने की रिपोर्ट तलब
-केंद्र सरकार की योजनाओं में लाखों के घोटाले के आरोप में राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब
नवीन समाचार, नैनीताल, 24 सितंबर 2020। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सितारगंज में केंद्र सरकार के ‘स्वछ भारत अभियान’ और ‘स्वजल परियोजना’ का दुरुपयोग करने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से एक सप्ताह में शपथ पत्र के साथ रिपोर्ट पेश करने को कहा है। मामले की सुनवाई कार्यवाहक मुख्य मुख्य न्यायधीश रवि कुमार मलिमथ व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ में हुई।
मामले के अनुसार सितारगंज निवासी निखिलेश गिरामी ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि सितारगंज के ग्राम अरविंद नगर में 2014 से 2019 में सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचालय बनाने के लिए दी जाने वाली धनराशि सहित बोरिग करने की स्वीकृति दी थी। इस कार्य में ग्राम प्रधान और बीडीओ ने लाखों रुपए का घोटाला किया है। इस योजना में गरीब परिवारों के लिए 371 शौचालय व अन्य सुविधाएं स्वीकृत हुई थींे लेकिन दोनों की मिलीभगत से यह कार्य पूर्ण नही किया गया और अपने स्तर से कार्य पूर्ण होने का फर्जी सर्टिफिकेट दे दिया गया। याचिका में याचिकाकर्ता ने दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की मांग की है।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 24 सितंबर 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवि कुमार मलिमथ व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ उत्तराखंड हाई कोर्ट ने प्रदेश के बहुचर्चित छात्रवृत्ति घोटाले के मुख्य आरोपी गीता राम नौटियाल की बहाली करने के बाद फिर उस आदेश को वापस लिए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य सचिव को चार सप्ताह के भीतर जवाब पेश करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई के लिए चार सप्ताह बाद की तिथि नियत की गई है। मामले मंे बृहस्पतिवार को सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से कहा गया कि छात्रवृत्ति घोटाले में लिप्त अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्यवाही की जा रही है। इस पर पीठ ने पूरी जाँच रिपोर्ट के साथ जवाब पेश करने को कहा।
मामले के अनुसार गीताराम नौटियाल ने याचिका दायर कर कहा कि छात्रवृत्ति घोटाले में नाम आने के बाद विभाग ने उन्हें निलंबित कर दिया था और उच्च न्यायालय की ओर से 10 दिसंबर, 2019 को उन्हें जमानत मिल गई थी। इसके बाद उन्हें सेवा में बहाल कर दिया गया, लेकिन बहाली के कुछ दिन बाद सरकार की ओर से उन्हें फिर से निलंबित कर दिया गया। उनका कहना है कि बहाली के उपरांत बिना कारण बताये उनकी बहाली वापस ले ली गई, इस प्रकार उनके खिलाफ भेदभाव किया जा रहा है। उनका दावा है कि उच्च न्यायलय ने उन्हें दोष मुक्त किया है। इस आधार पर उनकी सेवा बहाली की जाये।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 23 सितंबर 2020। उत्तराखंड हाईकोर्ट की कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश रवि कुमार मलिमथ व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने निलंबित किये गए आईएफएस व चम्पावत के पूर्व डीएफओ अशोक कुमार गुप्ता का निलंबन आदेश निरस्त कर दिया है।
आईएफएस गुप्ता का 2017 में लेनदेन के मामले का ऑडियो वायरल हुआ था। गुप्ता के भ्रष्टाचार, वित्तीय, प्रसाशनिक व अनियमितता की वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी द्वारा जांच की गई तो आरोप सही पाए गए। इसी साल सात फरवरी को प्रमुख सचिव वन आनंद वर्धन द्वारा जांच रिपोर्ट के आधार पर गुप्ता को निलंबित कर दिया था। गुप्ता ने एक माह में आरोप पत्र नहीं मिला तो बहाली के लिए प्रत्यावेदन दिया और इसके बावजूद बहाल नहीं किये जाने पर गत अगस्त माह में हाईकोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा तो सरकार द्वारा बताया गया कि गुप्ता को अखिल भारतीय अनुशासन व अपील नियमावली 1969 के प्रावधान 3(3) के तहत निलंबित किया गया है। जबकि प्रमुख सचिव के आदेश में नियमावली के प्रावधान 3(1) के तहत कार्रवाई का उल्लेख था। इस आधार पर खंडपीठ ने मामले को सुनने के बाद निलंबन आदेश निरस्त कर दिया।
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-कोरोना को देखते हुए दिसंबर तक पिता के साथ रहेगा बच्चा
नवीन समाचार, नैनीताल, 31 अगस्त 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की विशेष खंडपीठ ने अलग रह रहे देहरादून निवासी पति एवं अमेरिकी मूल की पत्नी के बीच बेटे को साथ रखने के विवाद में कोविड-19 को देखते हुए दिसंबर तक बच्चा पिता के साथ ही रखने और सप्ताह में कम से कम दो बार या संभव होने पर रोज बच्चे की मां से बात कराने के अंतरिम आदेश जारी किए हें। मामले में अगली सुनवाई 18 दिसंबर को होगी। उल्लेखनीय है कि इस मामले में अमेरिकी महिला ने बेटे को अपने साथ अमेरिका ले जाने के लिए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है।
मामले के अनुसार देहरादून में अर्पण मणि ने वर्ष 2011 में अमेरिकी मूल की महिला जुलिया माई सालो से शादी की, और दोनों थाईलैंड में रहते थे। बाद में दोनों में विवाद होने पर पति अपने बेटे को लेकर देहरादून लौट आया। इस पर महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की और कोर्ट से मांग की उसको अपने बच्चे को अपने साथ अमेरिका ले जाने की अनुमति दी जाए। मामले में न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद दोनों पति-पत्नी अपने विवाद निपटाने की राह में भी आगे बढ़ते नजर आ रहे हैं।
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-हाईकोर्ट ने मामले में सरकार से दो दिन में जवाब तलब
नवीन समाचार, नैनीताल, 12 अगस्त 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश रवि कुमार मलिमथ व न्यायमुर्ति एनएस धनिक की खंडपीठ ने प्राइमरी व उच्च माध्यमिक विद्यालयों में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नियुक्ति पाए करीब साढ़े तीन हजार अध्यापकों के खिलाफ दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से दो दिन के भीतर जवाब पेश करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 14 अगस्त की तिथि नियत की है। उल्लेखनीय है कि न्यायालय ने पिछली तिथि को सरकार से पूछा था कि कितने अध्यापकों के खिलाफ कार्यवाही की गई और वे कौन से अधिकारी हैं जिन्होंने यह कृत्य किया है। उनके खिलाफ सरकार ने क्या कार्यवाही की है। इस पर दो सप्ताह में इसका जवाब देने को कहा था।
मामले के अनुसार स्टूडेंट वेलफेयर सोसायटी हल्द्वानी ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि राज्य के प्राइमरी व उच्च माध्यमिक विद्यालयों में करीब साढ़े तीन हजार अध्यापक जाली दस्तावेजों के आधार पर फर्जी तरीके से नियुक्त किये गए हैं। जिनमें से कुछ अध्यापकों की एसआईटी जांच की गई जिनमंे खचेड़ू सिंह, ऋषिपाल व जयपाल के नाम सामने आए, परंतु विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत के कारण इनको क्लीन चिट दी गयी और ये अभी भी कार्यरत हैं। संस्था ने इस प्रकरण की एसआईटी से जाँच करने को कहा है। पूर्व में राज्य सरकार ने अपने शपथपत्र पेश कर कहा था कि इस मामले की एसआईटी जांच चल रही है अभी तक 84 अध्यापक जाली दस्तावेजो के आधार पर फर्जी पाए गए हैं उन पर विभागीय कार्यवाही चल रही है।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 06 अगस्त 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रवि कुमार मलिमथ और न्यायमूर्ति एनएस धानिक की खंडपीठ ने एक जनहित याचिका को व्यक्तिगत हित के लिये दायर की गई मानते हुए याचिका कर्ता से पूछा है कि उनके इस कृत्य के लिए क्यों न उन पर एक लाख का जुर्माना लगाया जाए ? याचिकाकर्ता को इस सम्बन्ध में अगली सुनवाई की तिथि 19 अगस्त तक जबाव देने को कहा गया है। साथ ही कोर्ट ने कहा है कि जनहित याचिकाओं के दुरुपयोग को रोकने की जिम्मेदारी भी न्यायालय की है।
मामले के अनुसार देहरादून निवासी दलवीर सिंह ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा कि मसूरी के मेसोनिक लॉज, कैम्पटी फॉल रोड में कार पार्किंग का कार्य 2011 से अब तक पूरा नहीं हुआ है। लेकिन याचिका की सुनवाई के दौरान कोर्ट के संज्ञान में आया कि इस पार्किंग का कार्य आदेश 22 फरवरी 2020 को जारी हुआ है, और यह याचिका ठेकेदार को लाभ पहुंचाने के लिए दाखिल हुई है। लिहाजा इसमें कोई जनहित नहीं बल्कि याचिकाकर्ता का व्यक्तिगत हित है। इस पर खंडपीठ ने याचिका को व्यक्तिगत हित का मानते हुए याचिकाकर्ता से स्थिति स्पष्ट करने को कहा है।
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-औली में शीतकालीन खेलों के अलावा हर गतिविधि पर रोक लगाए सरकार: हाईकोर्ट
नवीन समाचार, नैनीताल, 27 जुलाई 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ती सुधांशू धूलिया व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने प्रदेश की सबसे बड़ी चर्चित शाही शादी के मामले में अहम फैसला सुनाते पर्यटन सचिव उत्तराखंड को एक कमेटी गठित कर पर्यावरण को हुए नुकसान को नियंत्रित करने के साथ औली में हो रही गतिविधियों पर नजर रखने के निर्देश दिये हैं। खंडपीठ ने यह भी साफ कहा है कि औली में सर्दियों में खेल गतिविधियों के अलावा किसी भी प्रकार की अन्य गतिविधियों पर सरकार रोक लगाए, ताकि पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे।
मामले के अनुसार काशीपुर निवासी अधिवक्ता रक्षित जोशी ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि उत्तराखंड के औली बुग्याल में 18 से 22 जून तक के बीच करीब 400 करोड़ रुपये से गुप्ता बंधुओं के बेटों की शादी का आयोजन हुआ, जिसमें मेहमानों को लाने ले जाने के लिए करीब 200 हेलीकॉप्टरों की व्यवस्था की गई और इन हेलीकॉप्टरों से पर्यावरण और बुग्यालों और क्षेत्र में रहने वाले जंगली जानवरों को भी खतरा होगा। याचिकाकर्ता का यह भी कहना था कि राज्य सरकार द्वारा नैनीताल हाईकोर्ट की एकल पीठ द्वारा दिए गए पूर्व के आदेश की अनदेखी की जा रही है, जिसमें उच्च न्यायालय ने पहाड़ी क्षेत्रों व बुग्यालों आदि में किसी भी प्रकार की गतिविधि में प्रतिबंध लगाया गया था।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 21 जुलाई 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने उत्तराखंड सरकार के देवस्थानम बोर्ड के खिलाफ भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी के द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए निस्तारित कर दिया हैं। उल्लेखनीय है कि इस याचिका को दायर करते हुए स्वामी ने बाकायदा मुख्यालय में पत्रकार वार्ता आयोजित कर अपनी पूर्व की ऐसी ही याचिकाओं पर न्यायालयों के आये आदेशों का हवाला देते हुए कहा था कि उच्च न्यायालय उत्तराखंड सरकार के इस अधिनियम को यूं ही खारिज कर देगा। लेकिन मामले में उल्टे स्वामी को उच्च न्यायालय से बड़ी मात और उत्तराखंड सरकार को बड़ी राहत मिली है। अलबत्ता तीर्थ पंडितों का रुख उच्च न्यायालय के इस फैसले पर क्या होगा, यह देखने वाली बात होगी।
इस मामले में रूलक संस्था के अधिवक्ता कार्तिकेय हरिगुप्ता ने बताया कि उच्च न्यायालय ने माना है कि राज्य सरकार के चार धाम प्रबंधन अधिनियम 2019 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 25, 26 व 31ए का उल्लंघन नहीं माना है। वहीं उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के अधिनियम में दो बदलाव करने को भी कहा है, जिसके अनुसार मंदिरों का स्वामित्व अधिनियम के तहत देवस्थानम बोर्ड में नहीं रहेगा, बल्कि चार धाम का होगा। बोर्ड मंदिरों का केवल प्रबंधन देखेगा। उन्होंने उच्च न्यायालय के इस फैसले को मील का पत्थर बताते हुए कहा कि पीठ ने यह भी कहा कि केरल सरकार एवं पद्मनाभ मंदिर के मामले से इस मामले में कोई समानता नहीं है।
मामले के अनुसार भाजपा के राज्य सभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि प्रदेश सरकार द्वारा चारधाम के मंदिरों के प्रबंधन को लेकर लाया गया देवस्थानम् बोर्ड अधिनियम असंवैधानिक है। देवस्थानम् बोर्ड के माध्यम से सरकार द्वारा चारधाम व 51 अन्य मंदिरों का प्रबंधन लेना संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 का उल्लंघन है। पूर्व में तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, केरल व महाराष्ट्र आदि राज्यों ने भी इस तरह के निर्णय लिए थे। जिन पर सर्वोच्च न्यायालय के कई निर्णय पहले से ही आ चुके हैं। उन्होंने अपनी जनहित याचिका में यह भी प्रार्थना की है कि जब तक इसमें कोर्ट से कोई निर्णय नही आ जाता सरकार कोई अग्रिम कार्यवाही न करे। उल्लेखनीय है कि सरकार ने इस जनहित याचिका के दायर होने के कुछ ही समय बाद सीईओ नियुक्त कर दिया था। इस तरह इस मामले में भाजपा सांसद व भाजपा सरकार के बीच टकराव भी साफ नजर आता रहा है। कोर्ट ने पिछले छह जुलाई को मामलों को सुनने के बाद निर्णय सुरक्षित रख लिया था।
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-देव स्थानम बोर्ड मामले में अगली सुनवाई सप्ताह भर बाद
नवीन समाचार, नैनीताल, 22 जून 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायधीश रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने भाजपा के राज्य सभा सांसद व सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता सुब्रहमण्यम स्वामी द्वारा चारधाम देवस्थानम बोर्ड के गठन के खिलाफ दायर जनहित याचिका में सुनवाई की, और अगली सुनवाई के लिए एक सप्ताह के बाद की तिथि नियत कर दी है। इसके बाद माना जा रहा है कि भाजपा सरकार और एक भाजपा सांसद के बीच टकराव के इस मामले में अगले सप्ताह कुछ खास हो सकता है।
कुंडा कांड को लेकर उच्च न्यायालय में दायर हुई याचिका, सीबीआई जांच की मांग…
एमकेपी में यूजीसी के 45 लाख रुपए के घोटाले की उच्च स्तरीय जांच के आदेश
नवीन समाचार, नैनीताल, 18 जून 2020। उत्तराखण्ड हाइकोर्ट की मुख्य न्यायधीश रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने महादेवी कन्या पाठशाला में यूजीसी के बजट के 45 लाख रुपये के गबन पर घोटाले की उच्च स्तरीय जांच करने हेतु राज्य सरकार को निर्देश देते हुए जनहित याचिका को निस्तारित कर दिया है।
मामले के अनुसार एमकेपी की पूर्व छात्रा सोनिया बेनीवाल के द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा 2012-2013 में हुए 45 लाख रुपए के गबन के मामले पर राज्य सरकार, यूजीसी और तत्कालीन सचिव जितेंद्र नेगी और प्राचार्य डॉ. किरन सूद को नोटिस जारी करते हुए तीन सप्ताह में अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिए थे। यूजीसी की यह 45 लाख रुपए की ग्रांट एमकेपी में छात्राओं की शिक्षा में सहूलियत के लिए जारी की गई थी। इसी ग्रांट से 2012-2013 के दौरान एप्पल के महंगे उपकरण खरीदने में दर्शाया गया परंतु ऐसे कई उपकरण 2019 तक के परीक्षण में पाए ही नहीं गए। इस तरह की कई अन्य अनियमितताएं भी प्रकाश में आईं।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 11 जून 2020। उत्तराखंड हाई कोर्ट की मुख्य न्यायधीश रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने प्रदेश के पर्वतीय व भाभर क्षेत्र-बाजपुर, कोटद्वार व विकास नगर में नदियों पर हो रहे जबरदस्त अवैध खनन तथा पर्यावरण मंत्रालय केंद्र सरकार की खनन नियंत्रण व खनन के इलेक्ट्रॉनिक सर्वेक्षण और मॉनिटरिंग गाइडलाइंस 2016 व 2020 का राज्य में अनुपालन न किए जाने और सरकार द्वारा मशीनों से खनन की अनुमति देने को लेकर गंभीरता से लिया है। प्रदेश के नदियों में मशीनों द्वारा किये जा रहे अनियंत्रित खनन के विरूद्ध दायर हल्द्वानी निवासी दिनेश चंदोला की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए आज सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने अपर मुख्य सचिव खनन, निदेशक खनिकर्म, प्रबंध निदेशक उत्तराखंड वन विकास निगम, आयुक्त कुमाऊँ, आयुक्त गढ़वाल, जिलाधिकारी पौड़ी, जिलाधिकारी देहरादून, जिलाधिकारी नैनीताल, जिलाधिकारी यूएस नगर को नोटिस जारी कर अवैध खनन पर तीन सप्ताह में विस्तृत शपथपत्र दायर करने के लिए कहा है। साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय, केंद्रीय उपमहानिदेशक वन देहरादून तथा उपनिदेशक भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण उत्तर क्षेत्र को भी नोटिस जारी किया है और पूछा है कि राज्य की नदियों में अनियंत्रित खनन से पर्यावरणीय प्रभाव के संदर्भ में क्या सर्वे अपेक्षित हैं।
इधर आज राज्य सरकार द्वारा कोर्ट को बताया गया कि वह नदी तल क्षेत्रों के खनन पट्टों में मशीनों द्वारा खनन की दी गयी अनुमति को 15 जून के बाद बिल्कुल आगे नहीं बढ़ाया जाएगा। याचिकाकर्ता का कहना है कि 13 मई 2020 को अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश द्वारा प्रदेश के नदियों में खनन हेतु मशीनों के प्रयोग हेतु अनुमति दी गयी है जो 2017 कि खनन नियमावली के विपरीत है। 2017 की नियमावली में कहा गया है कि नदियों में चुगान हेतु मशीनों के प्रयोग की अनुमति नही होगी परंतु सरकार ने इस नियमावली के विपरीत जाकर मशीनों के प्रयोग हेतु अनुमति दे दी जो नियमावली के विरुद्ध है। याचिकाकर्ता का कहना है कि मशीनों का प्रयोग करने से नदियों के प्रवाह को मोड़ दिया गया है जिससे आबादी वाले क्षेत्रों में वरसात में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो रही है। पानी का स्तर नीचे चला गया है और पर्यावरण को भी भारी नुकसान हो रहा है। लिहाजा मशीनों के प्रयोग पर रोक लगाई जाये।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 09 जून 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति सुधांशू धुलिया की एकलपीठ ने बागेश्वर की जिला पंचायत अध्यक्ष बसंती देव की याचिका को खारिज करते हुए सरकार को उनके खिलाफ नियमानुसार कार्यवाही की छूट दे दी है। एकलपीठ उनकी गलत याचिका के लिये जुर्माना भी लगा रही थी किंतु याचिकाकर्ता के अनुरोध पर जुर्माना नहीं लगाया गया ।
मामले के अनुसार लोनिवि के मुख्य अभियंता देहरादून ने 15 मई 2020 को बसंती देव का ए श्रेणी के सरकारी ठेकेदारी पंजीकरण उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम 2016 के अनुसार रद्द किया था। बसंती देव ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर उनके ठेकेदारी के पंजीकरण को लोनिवि द्वारा रद्द करने के आदेश को चुनौती दी थी। इस अधिनियम में जिला पंचायत अध्यक्ष को लोक सेवक की श्रेणी में माना है जो सरकारी ठेके नहीं ले सकता। सुनवाई में एकलपीठ ने माना कि याचिकाकर्ता को जिला पंचायत अध्यक्ष चुने जाने के तुरंत बाद सरकारी ठेकेदार का रजिस्ट्रेशन रद्द किये जाने हेतु विभाग में आवेदन देना चाहिये था। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज करते हुए कहा कि कोर्ट इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा और यदि जिला पंचायत अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने सरकारी कामों में ठेकेदारी जारी रखी है तो शासन उनके खिलाफ नियमानुसार कार्यवाही को स्वतंत्र है। कोर्ट ने उनकी याचिका जुर्माने के साथ खारिज की। लेकिन याचिकाकर्ता के अनुरोध पर कोर्ट ने जुर्माना नहीं लगाया।
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आज सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से याचिका को खारिज करने योग्य करार देते हुए कहा कि इस मामले में उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश में विधायक व उनके साथियों के खिलाफ मामला दर्ज हो चुका है और यह केस सीबीआई को सौंपे जाने योग्य नहीं है। विधायक व साथियों को चमोली जिले के कर्णप्रयाग से ही लौटा दिया गया था। उल्लेखनीय है कि विधायक अमनमणि व साथियों को दो से सात मई तक का पास जारी किया गया था और उनके पास बाकायदा उत्तराखंड के अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश और देहरादून के अपर जिलाधिकारी रामजी शरण के हस्ताक्षर से जारी अनुमति पत्र भी थे। उनके काफिले को चमोली जिले के कर्णप्रयाग में पुलिस ने रोका और कर्णप्रयाग के उप जिलाधिकारी ने नियम बताने की कोशिश की तो उनसे अभद्रता की गई। इस मामले में विपक्ष ने मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव और देहरादून के डीएम सहित कुछ और अफसरों पर अमनमणि त्रिपाठी को पास जारी करने को लेकर सवाल उठाते हुए उत्तराखंड सरकार की खूब घेराबंदी की। वहीं उत्तर प्रदेश में प्रवेश करते ही विधायक को साथियों समेत गिरफ्तार किया गया था।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 17 अप्रैल 2020। देशव्यापी लॉकडाउन के कारण अधिवक्ताओं को हुए आर्थिक नुकसान से राहत पैकेज देने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर हुई है।
देहरादून निवासी अधिवक्ता मनमोहन कंडवाल व अन्य ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि करीब एक माह से न्यायिक कार्य बंद होने से कई अधिवक्ताओं के सामने रोजी रोटी का संकट उत्पन्न हो गया है। इसलिये ऐसे अधिवक्ताओं को सरकार मार्च, अप्रैल व मई माह में दस हजार व पंजीकृत अधिवक्ता क्लर्कों को 5 हजार रुपए प्रति माह राहत राशि दी जाए। साथ ही याचिका में कहा गया है कि मकान मालिकों से किराया माफ कराया जाये और निजी स्कूलों से अधिवक्ताओं के बच्चों से तीन माह की फीस न लेने के आदेश दिए जाएं। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ताओं को कोर्ट आने जाने के लिए वाहन पास की सुविधा देने की भी अपील की गई है।
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न्यायमूर्ति सुधांशु धुलिया एवं न्यायमूर्ति रविंद्र मैठाणी की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। मामले के अनुसार ‘इन री इन द मैटर आफ वेलफियर आफ पुअर फारमर’ के नाम से दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता मुरली मनोहर श्रीवास्तव ने कहा है कि महामारी के दौरान किसानों की रबी की फसल पक चुकी है, लेकिन लॉकडाउन के कारण उनको इसकी कटाई व बेचने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। याचिका में कहा कि उनकी फसल बर्बाद हो रही है और उनको इस दौरान आर्थिक मंदी झेलनी पड़ रही है। याचिकाकर्ता की ओर से रबी की फसल के कटान व बेचने के लिए राज्य सरकार को उचित व्यवस्था करने हेतु निर्देशित किए जाने की मांग भी की गई है। दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने सरकार को 18 अप्रैल तक जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए।
नवीन समाचार, नैनीताल, 28 फरवरी 2020। उत्तराखंड हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन और न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने वीआईपी दौरे के दौरान पुलिस और प्रशासन की ओर से समय से काफी पूर्व यातायात व्यवस्था रोकने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए एसएसपी नैनीताल को व्यवस्थाएं व्यवस्थित करने व कम समय के लिए यातायात व्यवस्था को बाधित करने के निर्देश दिए हैं, और जनहित याचिका को निस्तारित कर दिया गया।
उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट के अधिवक्ता डॉ. चंद्रशेखर जोशी ने कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि वीआईपी दौरे के दौरान पुलिस तथा प्रशासन की ओर से यातायात व्यवस्था को कई घंटे बाधित किया जाता है। इसके चलते कई जरूरी कार्य प्रभावित होते हैं। घंटों यातायात रोके जाने पर लोगों के जरूरी कामकाज बाधित होते हैं। याचिकाकर्ता की ओर से अनुरोध किया गया है कि वीआईपी दौरे पर कम से कम समय के लिए यातायात व्यवस्था को बाधित किया जाए। वहीं सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से कोर्ट को अवगत कराया गया कि देश में वीआईपी सेवा प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, राज्यपाल तथा मुख्यमंत्री को दी जाती है। उनकी सुरक्षा को देखते हुए दौरे के दौरान कुछ समय के लिए यातायात व्यवस्था को बाधित किया जाता है। मामले को सुनने के बाद कोर्ट ने कम समय के लिए यातायात व्यवस्था को बाधित करने के निर्देश दिए।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 20 फरवरी 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन एवं न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ अल्मोड़ा के एडम्स गर्ल्स स्कूल के प्रधानाचार्य पद के लिए जारी विज्ञप्ति पर रोक लगाते हुए सरकार को तीन सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।
मामले के अनुसार अल्मोड़ा निवासी प्रीति लाल ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर विद्यालय प्रबंधन द्वारा प्रधानाचार्य पद के लिए जारी की गई विज्ञप्ति को चुनौती देते हुए कहा कि एडम्स गर्ल्स स्कूल प्रबंधन की ओर से प्रधानाचार्य पद के लिए 30 मार्च 2019 को विज्ञापन जारी किया था। इसमें प्रधानाचार्य पद के लिए उम्मीदवारी करने के लिए ईसाई महिला होने के साथ ही मेथोडिस्ट होने की अर्हता भी निर्धारित की गई थी। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता हरेंद्र बेलवाल ने कोर्ट को बताया कि इससे संबंधित नियमावली के अनुसार कहीं भी प्रधानाचार्य के लिए मेथोडिस्ट होने की अनिवार्यता नहीं है। इसलिए याचिकाकर्ता की ओर से जारी विज्ञप्ति को निरस्त करने की मांग की थी। दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने अल्मोड़ा के एडम्स गर्ल्स स्कूल के प्रधानाचार्य पद के लिए जारी विज्ञप्ति पर रोक लगाते हुए सरकार को तीन सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए।