March 28, 2024

किसानों के मुद्दे पर प्रदेश के मुख्य सचिव को हाईकोर्ट की फटकार..

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गणेश उपाध्याय

नवीन समाचार, नैनीताल, 30 अगस्त 2019। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने प्रदेश के किसानों की आत्महत्या व बदहाली के मामले की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रदेश के मुख्य सचिव फटकार लगाते हुए 4 सप्ताह के भीतर कारण बताने संबंधी शपथ पत्र पेश करने के आदेश दिये हैं। शुक्रवार को शांतिपुरी ऊधमसिंह नगर निवासी किसान नेता डा. गणेश उपाध्याय की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने उच्च न्यायालय की खंडपील द्वारा पूर्व में दिये गये आदेश का राज्य सरकार द्वारा पालन न करने पर सुनवाई की, जिसमें मुख्य सचिव से मुख्य रूप से राज्य में किसान आयोग का गठन करने, किसान ऐप बनाने और आत्महत्या करने वाले किसानों को मुआवजा देने पर 4 सप्ताह में शपथ पत्र दाखिल कर उस निर्णय की तिथि से अब तक किये गये कार्यों की रिपोर्ट पेश करने को कहा गया था।
उल्लेखनीय है कि गत 26 अप्रैल 2018 को वरिष्ठ न्यायमूर्ति राजीव शर्मा एवं न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की संयुक्त पीठ द्वारा प्रदेश में किसानों की आत्महत्या पर ऐतिहासिक निर्णय देते हुए 3 माह के भीतर किसान आयोग का गठन करने, सभी 124 फसलों का 3 गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने, आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवार को मुआवजा देने व किसान ऐप बनाने का महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था। जिसमें सरकार द्वारा 1 वर्ष बीत जाने के बाद भी कोई कार्यवाही नही होने पर याचिका कर्ता किसान नेता डा. गणेश उपाध्याय की ओर से दाखिल याचिका पर उच्च न्यायालय ने मुख्य सचिव एवं कृषि सचिव पर अवमानना का नोटिस जारी किया था।

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कम समर्थन मूल्य पर भी न्यायालय की शरण लेंगे उपाध्याय

इधर याची किसान नेता डा. उपाध्याय का कहना है कि किसानों को एक एकड़ भूमि पर धान उत्पादन करने पर करीब 2634 रुपए प्रति कुंतल का खर्च आता है। इसके उलट सरकार ने धान का प्रति कुंतल समर्थन मूल्य 1835 रुपए तय किया है। यानी किसानों को प्रति कुंतल करीब 800 रुपए का सीधा नुकसान हो रहा है। लगभग सवा वर्ष पूर्व उच्च न्यायालय किसान आयोग बनाने जैसे आदेशों पर राज्य सरकार कोई भी पहल करने से नाकाम रही है। अब वह जल्द ही कम समर्थन मूल्य पर भी न्यायालय जाकर सरकार को घेरने की तैयारी कर रहे हैं।

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नवीन समाचार, नैनीताल, 14 अगस्त 2019। उत्तराखंड में किसानों की आत्महत्या के मामले में दाखिल जनहित याचिका पर न्यायमूर्ति मनोज तिवारी की अदालत में सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने किसान आयोग का गठन करने तथा सभी निर्देशों का पालन करने के लिए 10 दिन का समय मांगा है। बुधवार को न्यायमूर्ति मनोज तिवारी की अदालत में सरकार ने उक्त सभी निर्देशों का पालन करने के लिए 10 दिन का अतिरिक्त समय मांगा है।

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नवीन समाचार, नैनीताल, 22 अप्रैल 2019। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने प्रदेश में किसानों की आत्म हत्या व सरकार द्वारा उनके फसलों का भुगतान समय पर नही करने के खिलाफ दायर अवमानना याचिका की सुनवाई करते हुए मुख्य सचिव द्वारा पेश किये गये शपथ पत्र में पर स्पष्टीकरण मांगा है। याचिकाकर्ता का कहना है कि उच्च न्यायालय में सरकार द्वारा किसानों के लिए किये गये कार्यों में अनेक गलत तथ्य प्रस्तुत कर झूठ बोला है। इसलिये कोर्ट सरकार के तथ्यों से संतुष्ट नहीं है। इसलिये स्पष्टीकरण मांगा गया है।
उल्लेखनीय है कि 26 अप्रैल 2018 को उच्च न्यायालय ने गणेश उपाध्याय की याचिका पर किसानों द्वारा की गयी आत्महत्या के मामलों को गंभीर मानते हुए मुख्य सचिव को तीन माह के भीतर किसान आयोग का गठन करने का ऐतिहासिक आदेश दिया था। लेकिन अब तक इस दिशा में कोई कार्य नहीं हुआ। इस मामले में अदालत ने मुख्य सचिव व कृषि सचिव को अवमानना नोटिस भी जारी हुआ था। इधर मुख्य सचिव द्वारा कहा गया है कि उन्होंने किसानो का 15 अप्रैल 2019 तक भुगतान कर दिया गया है। जिस पर याचिकर्ता के अधिवक्ता द्वारा कोर्ट को अवगत कराया गया कि सरकार ने किसानो का 2019 का सात सौ करोड़ व 2018 का दो सौ करोड़ का भुगतान नही किया है न ही सरकार ने अभी तक किसान आयोग का गठन किया है। सरकार की तरफ से कोर्ट को अवगत कराया गया कि किसान आयोग का गठन अभी लोक सभा के चुनाव चलने की वजह से नहीं हुआ है। चुनाव के बाद ही आयोग का गठन हो सकेगा।

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p style=”text-align: justify;”>नवीन समाचार, नैनीताल, 11 मार्च 2019। गत वर्ष 26 अप्रैल 2018 को उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने किच्छा ऊधमसिंह नगर जिले के निवासी कांग्रेस नेता गणेश उपाध्याय की याचिका पर किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्या के मामलों पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए मुख्य सचिव को तीन माह के भीतर किसान आयोग का गठन करने का ऐतिहासिक आदेश दिया था। लेकिन अब तक किसान आयोग का गठन नहीं हुआ है। इधर याची गणेश उपाध्याय ने बताया कि इस मामले में न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने मामले की सुनवाई करने के बाद मुख्य सचिव व कृषि सचिव को अवमानना का नोटिस जारी कर दिया है। दोनों को न्यायालय में व्यक्तिगत तौर पर पेश होना होगा।
बताया कि उच्च न्यायालय ने तीन माह में किसान आयोग का गठन करने, स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों को उत्तराखंड में लागू करने, तीन गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य देने, आत्महत्या करने वाले किसान परिवारों को मुआवजा देने की योजना बनाने, न्यूनतम प्रीमियम योजना बनाने को कहा था तथा फसल बीमा के कम कवरेज पर चिंता जताते हुए आरबीआई को राज्य सरकार, बैंक और अन्य संबंधित पक्षों की राय लेकर किसानों को कृषि कर्ज देने, कर्ज की रिकवरी और कर्जमाफी की योजना बनाने, खासकर सीमांत के किसानों को कम से कम 50 हजार रुपये तक कर्ज को माफ करने पर विचार करने को कहा था।

पूर्व समाचार : उत्तराखंड के मुख्य सचिव व कृषि सचिव से अवमानना याचिका पर जवाब तलब

नैनीताल, 29 अक्टूबर 2018 । उत्तराखंड उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति शरद शर्मा की खंडपीठ ने किसानों से संबंधित समस्याओं के समाधान को लेकर दिए गए फैसले का अनुपालन नहीं करने पर उत्तराखंड के मुख्य सचिव व कृषि सचिव से अवमानना याचिका पर 14 नवम्बर तक जवाब दाखिल करने को कहा है।

उल्लेखनीय है कि पूर्व में पीठ ने राज्य में किसान आयोग गठित करने, सभी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने का ऐतिहासिक निर्णय दिया था। किन्तु तीन माह होने के बाद भी सरकार द्वारा निर्णय का पालन न करने पर याचिकाकर्ता कांग्रेस नेता डॉ. गणेश उपाध्याय द्वारा अवमानना याचिका दायर की गई। इस पर कोर्ट ने मामले में सुनवाई करते हुए मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह, सचिव कृषि डी सेन्थिल पाण्डियन को 14 नवम्बर को जवाब दाखिल करने को कहा है। इस पर डॉ. उपाध्याय ने कहा कि हाई कोर्ट के आदेश के बाद उत्तराखण्ड सरकार द्वारा मानसून सत्र के दौरान विधानसभा में 20 दिन के भीतर किसानों को सभी फसलों के बकाया भुगतान की घोषणा की गयी थी, परन्तु आज तक उक्त घोषणा का सरकार द्वारा कोई संज्ञान नहीं लिया गया, साथ ही उच्च न्यायालय के निर्णय की भी अवमानना की गयी। अभी तक गन्ने का 3 अरब 66 करोड़ 26 लाख 19 हजार रू का बकाया भुगतान नही किया गया है। काशीपुर गन्ना फैक्ट्री का 25 करोड़ का 2007-08 व 2011-12 का भुगतान अभी तक नही किया गया है। उत्तराखण्ड में जिन किसानों ने आत्महत्या की थी उनके परिवारों के लिये सरकार को मुआवजे के लिये एक स्कीम बनाने का 3 माह का समय दिया गया था। किन्तु मुआवजा तो दूर की बात, सरकार ने इस हेतु अभी तक योजना भी नही बनायी, जबकि हाईकोर्ट के निर्णय के बाद 2 किसानों ने और आत्महत्या कर ली है। इसके लिये भी उत्तराखण्ड सरकार जिम्मेदार है।

यह भी पढ़ें : किसानों की आत्महत्या: स्वामीनाथन कमेटी के अनुरूप तीन गुना एमएसपी दे सरकार

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p style=”text-align: justify;”>p style=”text-align: justify;”>-साथ ही राज्य कृषक आयोग बनाने, आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवारों को पेंशन देने के लिए कोई योजना बनाने, 50 हजार तक के ऋण माफ करने, सस्ती मौसमी फसल बीमा व फसलों के खसरे युक्त मोबाइल बनाने के दिये निर्देश
नैनीताल। उत्तराखण्ड में कर्ज में डूबे किसानों की आत्महत्या व असामयिक मौत के मामले में नैनीताल उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति शरद शर्मा की खंडपीठ ने किसानों को एमए स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों के अनुरूप औसत फसल लागत का तीन गुना एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य देने, उत्तराखंड में राज्य कृषक आयोग की स्थापना करने, आत्महत्या करने वाले किसानों के परिवारों को पेंशन देने के लिए कोई योजना बनाने, इंश्योरेंस कंपनियों से बात करके मौसमी फसल बीमा की योजना लागू करवाने, छोटे किसानों को 50 हजार रुपए तक के ऋण माफ करने या आसान दरों पर ऋण उपलब्ध कराने एवं केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय को राज्य में सभी फसलों का खसरा व उनमें बोयी गयी फसलों के ब्यौरे दर्ज करने योग्य मोबाइल ऐप बनाने के निर्देश दिये हैं। इस मामले में ऊधमसिंह नगर जिले के शांतिपुरी निवासी कांग्रेसी किसान नेता गणेश उपाध्याय ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर केंद्र सरकार, राज्य सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक को पार्टी बनाते हुए राहत की मांग की गयी थी। याचिका में कहा गया था कि राज्य में किसानों की स्थिति ब्लू ह्वेल गेम से भी अधिक ज्यादा खतरनाक हो गयी है।

यह भी पढ़ें : “उत्तराखंड में पांच किसानों की मौत ब्लू ह्वेल गेम से भी अधिक खतरनाक”

नैनीताल। उत्तराखण्ड में कर्ज में डूबे किसानों की आत्महत्या व असामयिक मौत के कथित पांच मामले उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय की दहलीज पर पहुंच गये हैं। मामले में नैनीताल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश केएमजोसफ और न्यायमूर्ति आलोक सिंह की खंडपीठ ने केंद्र सरकार, राज्य सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक को नोटीस जारी करते हुए तीन सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा है । मामले में ऊधमसिंह नगर जिले के शांतिपुरी निवासी कांग्रेसी किसान नेता गणेश उपाध्याय की जनहित याचिका में केंद्र सरकार व अन्यों को पार्टी बनाते हुए राहत की मांग की गयी थी। याचिका पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने राज्य में किसानों की आत्महत्या के मामले को गंभीरता से लिया और आरबीआई, केंद्र सरकार व राज्य सरकार से 21 दिन के भीतर जवाब देने को कहा है। याचिका में कहा गया है कि उत्तराखंड में सरकारी कर्ज के बोझ से दबे किसान लगातार आत्महत्या कर रहे हैं। जून से अब तक पांच किसानों ने आत्महत्या की है।

किसानों की आत्महत्या ब्लू ह्वेल गेम से भी अधिक खतरनाक स्थिति

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नैनीताल। याचिका में कहा गया है कि राज्य में किसानों की स्थिति ब्लू ह्वेल गेम से भी अधिक ज्यादा खतरनाक हो गयी है। बैंको के कृषि ऋणों की ब्याज दरें इतनी अधिक है की किसान उसे चुकाने के लिए साहूकारों से अधिक दरों में रूपये ब्याज पर लेता है और सरकार उनकी फसलों को खरीदकर 10-10 महीनों तक उनका भुगतान नही करती है। याचिका के अनुसार हाल ही में ऊधमसिंह नगर जिले में सरकार ने 75 करोड़ रूपये का धान खरीदा जिसका भुगतान 10 महीने तक नही किया। दावा किया कि इसका बैंक ब्याज 5 करोड़ रुपया हो गया था। दूसरी ओर किसानों के द्वारा समय से भुगतान नही होंने के कारण बैंक उनको रिकवरी नोटिस दे रहे हैं, जिसके कारण वे आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं। याचिका के अनुसार 2007 तक पॉपुलर के सरकारी रेट 1050 रूपये कुंतल थे, वह अभी 350 रूपये हो गये हैं, जबकि बाजार दरें तीन गुना बढ़ गयी हैं। इसका लाभ किसान को न जाकर सीधे सरकार को मिल रहा है। प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना को अभी तक प्रदेश में लागू नही किया गया है, जिसके अंतर्गत खरीफ की फसल के लिये दो, रबी के लिये 1.5 फीसद व अन्य वाणिज्यिक फसलों के लिए पांच फीसद ब्याज दर पर ऋण दिया जाना चाहिए।

उत्तराखंड में इन पांच किसानों की हुई है आत्महत्या अथवा असामयिक मौत

नैनीताल। उत्तराखंड में जिन पांच किसानों द्वारा आत्महत्या किये जाने का दावा किया जा रहा है, उनमें राज्य का पहला मामला 16 जून 2017 को पिथौरागढ़ के तोक सरतोला ग्राम पुरानाथल निवासी 60 वर्षीय किसान सुरेंद्र सिंह कॉपरेटिव बैंक से ऋण संबंधी नोटिस आने के बाद एक किसान ने विषपान कर आत्महत्या करने का आया। बताया गया है कि सुरेंद्र ने करीब सवा लाख रुपए का ऋण लिया थ। वहीं इसके 10 दिन बाद ही 25 जून को खटीमा के हल्दी पछेड़ा कंचनपुरी गांव के 42 वर्षीय किसान राम अवतार ने जून माह में पेड़ पर फांसी लगाकर जान दे दी थी। तीसरे मामले में 30 जून को बाजपुर के बांसखेड़ी ग्राम निवासी 38 वर्षीय किसान बलविंदर सिंह द्वारा 12 जुलाई को अपनी जीवन लीला समाप्त करने की खबर आई थी। बलविंदर ने बैंक ऋण से ट्रेक्टर लिया था, जिस पर बैंक नेे ₹ 7,49,896 का नोटिस दिया था। वहीं चौथे मामले में ऊधमसिंह नगर के ही ग्राम बिरियाभूड़ निवासी बुजुर्ग किसान मस्या सिंह की कर्ज के नोटिस देख सदमे से मौत होने का दावा किया गया था। मस्या सिंह पर उत्तराखंड ग्रामीण बैंक का 2.25 लाख रुपए का कर्ज था। जबकि 7 सितंबर को 65 वर्षीय राधा किशन का हृदयगति रुकने से देहांत हो गया था। उन्होंने भी कृषि ऋण लिया था और देने में असफल हो रहे थे।

बड़ी खबरः उत्तराखंड में बेनाप भूमि पर काबिज 54 हजार किसानों को मिलेंगे भूमिधरी अधिकार

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p style=”text-align: justify;”>p style=”text-align: justify;”>-पीढ़ियों से बेनाप भूमि का एनडी तिवारी के मुख्यमंत्रित्व काल में जारी हुए गवर्नमेंट ग्रांट एक्ट-1895 के तहत 6 माह के भीतर विनियमितीकरण कब्जेदारों के नाम करने के निर्देश
-राज्य के मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव राजस्व तथा हर जिले के डीएम को अपने आदेश का अनुपालन करते हुए जिलास्तर पर कमेटी बना कर भूमिधरी अधिकार देने को कहा
नैनीताल। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने राज्य के पर्वतीय जिलों के हजारों काश्तकारों के पक्ष में अहम फैसला दिया है। पीठ ने एनडी तिवारी के मुख्यमंत्रित्व काल में जारी हुए गवर्नमेंट ग्रांट एक्ट-1895 के तहत पर्वतीय क्षेत्र की गैर जमींदारी वाली वर्ग-चार श्रेणी की पीढ़ियों से बेनाप भूमि (नॉन जेडए लैंड) का 6 माह के भीतर विनियमितीकरण कब्जेदारों के नाम करने के निर्देश दिए हैं। न्यायालय ने राज्य के मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव राजस्व तथा हर जिले के डीएम को अपने आदेश का अनुपालन करते हुए जिलास्तर पर कमेटी बना कर भूमिधरी अधिकार देने को कहा है। साथ ही पूछा है कि इस शासनादेश के अनुसार अब तक क्या कार्रवाई की गई है। इस शासनादेश से पहाड़ के करीब 54 हजार किसान लाभान्वित हो सकते हैं।
मामले के अनुसार नैनीताल जिले विकासखंड ओखलकांडा के ग्राम सुई निवासी किसान रघुवर दत्त ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि राज्य सरकार ने 3 अक्टूबर 2015 को शासनादेश जारी कर शक्तिफार्म में बंगाली विस्थापितों को मालिकाना हक दे दिया गया। इसके अलावा 31 मार्च 2015 को वर्ग चार की भूमि पर अवैध कब्जों को नियमित करने तथा 20 नवंबर 2016 को वर्ग चार की भूमि के पट्टेधारकों को मालिकाना हक प्रदान करने का शासनादेश जारी कर दिया गया। इससे पूर्व 30 मई 2012 को कृषि प्रयोजन के लिए दी गई भूमि पर भी मालिकाना हक दिया गया था। वहीं इसके उलट उत्तर प्रदेश जमींदारी अधिनियम-1956 से पहले 1872 से बेनाप भूमि पर काबिज पहाड़ के काश्तकारों को मालिकाना हक नहीं दिया गया, जबकि पहला हक उनका था। खंडपीठ ने मामले को सुनने के बाद सरकार को पहाड़ के किसानों को बेनाप भूमि पर भूमिधरी अधिकार प्रदान करने का आदेश पारित किये। साथ ही कहा कि आवेदन मिलने के छह माह के भीतर आवेदक को भूमिधरी का अधिकार प्रदान किया जाए। याची के अधिवक्ता सुरेश भट्ट का कहना है कि न्यायालय के इस फैसले से भूमिधरी अधिकार के लिए दशकों से संघर्षरत पर्वतीय किसानों को बड़ी राहत मिली है।

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