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July 11, 2025

बीमार बेटी को आठ किलोमीटर कंधे पर उठाकर लाया पिता, मुख्यमंत्री की घोषणा के चार वर्ष बाद भी नहीं बनी सड़क

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Problem Samasya Pareshani

नवीन समाचार, चंपावत, 6 जुलाई 2025 (Father carried his sick daughter on his shoulder)नेपाल सीमा से लगे उत्तराखंड के चंपावत जनपद के बाराकोट विकासखंड के सील गांव के 120 परिवार आज भी सड़क जैसी बुनियादी सुविधा से वंचित हैं। इसी गांव के निवासी सुरेश सिंह विष्ट ने गत दिवस अपने कंधों पर 13 वर्षीय बीमार बेटी निशा को आठ किलोमीटर पैदल पातल गांव तक पहुंचाया, जहां से वाहन के माध्यम से उसे 15 किलोमीटर दूर लोहाघाट स्थित उप जिला चिकित्सालय में भर्ती कराया गया। यानी गाँव से नजदीकी चिकित्सालय आज भी 23 किलोमीटर दूर है। 

लोहाघाट:बेटी की जान बचाने को बेटी को पीठ में रखकर 8 किलोमीटर पैदल चला मजबूर  पिता।चिकित्सालय में कार्यरत फिजिशियन डॉ. राकेश जोशी के अनुसार छात्रा को पीलिया हुआ था। यदि समय पर चिकित्सकीय सहायता न मिलती तो स्थिति गंभीर हो सकती थी। सड़क मार्ग के अभाव में ग्रामीणों को आज भी इसी प्रकार जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष करना पड़ रहा है।

सड़क न होने से परेशानी, इंटर कॉलेज भी 10 किमी पैदल दूर 

सील गांव में सड़क न होने से न केवल बीमारों को बल्कि विद्यार्थियों को भी बड़ी कठिनाई झेलनी पड़ती है। गांव में केवल प्राथमिक स्तर तक की शिक्षा उपलब्ध है। कक्षा पांच के बाद विद्यार्थियों को 10 किलोमीटर दूर स्थित जीआईसी चौमेल पैदल आना-जाना पड़ता है। ग्रामीणों सोनू बिष्ट, दीवान सिंह, लक्ष्मण सिंह, गुमान सिंह, उमेश सिंह, शंकर सिंह, दौलत सिंह व नाथ सिंह ने बताया कि वे लंबे समय से सड़क की मांग कर रहे हैं, लेकिन केवल आश्वासन ही मिलते हैं।

मुख्यमंत्री की घोषणा के 4 वर्ष बाद भी नहीं बन पाई सड़क (Father carried his sick daughter on his shoulder)

उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 17 अगस्त 2021 को सील गांव को सड़क से जोड़ने की घोषणा की थी। इसके बाद वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में ग्रामीणों ने सड़क निर्माण की मांग को लेकर बहिष्कार की चेतावनी दी थी। हालांकि तत्कालीन जिलाधिकारी नवनीत पांडेय के आश्वासन पर ग्रामीण मतदान के लिए राजी हुए, परंतु आज तक सड़क का निर्माण नहीं हो पाया है।

ऐसे में यह सवाल खड़ा होता है कि जब मुख्यमंत्री स्तर पर की गई घोषणा पर भी चार वर्ष बाद अमल नहीं हो सका तो आम जनता की अन्य बुनियादी मांगें कब पूरी होंगी। ग्रामीणों की यह पीड़ा एक बार फिर यह सोचने पर विवश करती है कि क्या वास्तव में विकास अंतिम व्यक्ति तक पहुंच पा रहा है?

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