नैनीताल के ‘इनसाइक्लोपीडिया’ गंगा प्रसाद साह पंचतत्व में विलीन

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-85 वर्ष की उम्र में शनिवार सुबह तड़के ली थी आखिरी सांस
-नगर पालिका, डीएसए, श्रीराम सेवक सभा, हिल साइड सेफ्टी कमेटी, जिला महिला हॉकी संघ सहित अनेक संस्थाओं-संगठनों से रहा जुड़ाव
नैनीताल। सरोवरनगरी के कला, संस्कृति, खेल प्रेमी एवं जीवंत ‘इनसाइक्लोपीडिया’ कहे जाने वाले रंगकर्मी एवं राज्य आंदोलनकारी गंगा प्रसाद साह रविवार को पंचतत्व में विलीन हो गए। रविवार सुबह पाइंस स्थित श्मशान घाट में उनका अंतिम संस्कार कर दिया। उनके एकमात्र पुत्र अतुल साह व पौत्र शिवम साह ने उनकी चिता को मुखाग्नि दी। इस मौके पर एसडीएम अभिषेक रुहेला, पूर्व विधायक डा. नारायण सिंह जंतवाल, पूर्व पालिकाध्यक्ष संजय कुमार संजू व मुकेश जोशी, इतिहासकार डा. शेखर पाठक, भूगोलविद् डा. जीएल साह, कुमाऊं विवि के उपकुलसचिव बहादुर सिंह बिष्ट, पूर्व सभासद जगदीश बवाड़ी, आनंद बिष्ट व मनोज अधिकारी तथा तिब्बती शरणार्थी फाउंडेशन के अध्यक्ष पेमा गेकिल शिथर सहित तहसीलदार एवं नगर के विभिन्न संगठनों एवं संस्थाओं व विभागों से जुड़े लोग मौजूद रहे। इससे पूर्व उत्तराखंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बीके बिष्ट भी उनके घर पर अंतिम दर्शनों को पहुंचे।

उल्लेखनीय है कि स्वर्गीय साह ने शनिवार की सुबह तड़के साढ़े चार बजे के करीब उन्होंने अपने मल्लीताल बड़ा बाजार स्थित आवास पर अंतिम सांस ली। वह अपने पीछे एक पुत्र एवं चार पुत्रियों का भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं। स्वर्गीय साह का नगर पालिका, नैनीताल जिमखाना एवं जिला क्रीड़ा संघ यानी एनटीजी एंड डीएसए, श्रीराम सेवक सभा, हिल साइड सेफ्टी कमेटी, जिला महिला हॉकी संघ सहित अनेक संस्थाओं-संगठनों से जुड़ाव रहा है। वे चार कार्यकाल तक नैनीताल नगर पालिका के म्युनिसिपल कमिश्नर, सभासद, तीन-तीन वर्ष के दो कार्यकाल श्रीराम सेवक सभा के अध्यक्ष व तीन वर्ष के लिए संरक्षक, डीएसए के कई कार्यकालों में महासचिव, नैनीताल जिला महिला हॉकी एसोसिएशन के पिछले 29 वर्षों से वर्तमान तक लगातार संस्थापक महासचिव सहित अनेक पदों पर रहे। नगर की सुरक्षा व अन्य व्यवस्थाओं के लिए अंग्रेजी दौर में बनी हिल साइड सेफ्टी कमेटी को दशकों के बाद बीते वर्ष पुर्नजीवित करने में भी उनकी प्रमुख भूमिका रही।

 

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कला, संस्कृति व रंगकर्म के प्रेमी एवं कलाकार के रूप में उन्होंने बीबीसी द्वारा जिम कार्बेट पर बनाई गई फिल्म में भूमिका निभाई थी, साथ ही अंग्रेजी दौर से ही शरदोत्सव एवं रामलीला से भी उनका गहरा जुड़ाव रहा। कुमाऊं की परंपरागत लोक कला ऐपण के संरक्षण के लिए भी उन्होंने काफी कार्य किया, और डॉक्यूमेंट्री बनाई। उनके घर की बड़ी-बड़ी ऐपण कला से सजी दीवारें इसका प्रमाण हैं। नैनीताल नगर पालिका क्षेत्र के अनेक दुर्लभ दस्तावेज, 1823 के मानचित्र में नैनीताल नगर की उपस्थिति दर्शाने वाले मानचित्र, सूखाताल व नैनीताल झील के नक्शे, नैनीताल में 1883 से चल रही खेल गतिविधियों व नगर के इतिहास से संबंधित अनेकानेक दस्तावेज, पुस्तकें भी उनके पास संग्रहीत हैं। इसके साथ ही वे जीवन के आखिरी पलों तक बेहद जिंदादिल इंसान रहे। उनकी यह जिंदादिली बीते वर्षों में धर्मपत्नी के निधन, हृदय की बाइपास सर्जरी व ब्रेन स्ट्रोक आदि के झटकों के बावजूद भी नगर की परिचर्चाओं में शामिल होने और इधर बीते माह ही भारी अस्वस्थता के बावजूद अनूठी 29वीं अखिल भारतीय सेवन-ए-साईट महिला हॉकी प्रतियोगिता के आयोजन की व्यवस्थाएं संभालने तक सार्वजनिक रूप से बनी रहीं।

माता नंदा-सुनंदा की चांदी की मूर्तियां बनाने व नई पीढ़ी को मूर्ति निर्माण सिखाने के लिए रहेंगे याद

नैनीताल। स्वर्गीय साह को जितना शौक इतिहास और संस्कृति के संरक्षण और सीखने का था, उतना ही वे अपने ज्ञान को दूसरों को बांटने में भी विश्वास करते थे। नैनीताल नगर की नंदा देवी महोत्सव में बनने वाली सुन्दर नंदा-सुनंदा की मूर्तियों को बनाने में भी उनकी बड़ी भूमिका रही। वे गजब के प्रयोगधर्मी भी थे, तथा हमेशा लीक को छोड़कर अच्छे विचारों को स्वीकार कर समाहित करने वाले भी थे। उनके निकटस्थ रहे नगर पालिका के पूर्व सभासद जगदीश बवाड़ी ने बताया कि 1955-56 के आसपास उन्होंने नंदा-सुनंदा की मूर्तियों का चांदी से निर्माण कर दिया था। बाद में मूर्तियों के विसर्जन के दौरान चांदी की मूर्तियां होने की वजह से समस्या आई, इस पर उनका विरोध भी हुआ। इसके बाद उन्होंने वापस कपड़े पर ही मूर्तियां बनानी शुरू की।

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करीब एक दशक पूर्व मूर्तियों के निर्माण में थर्मोकोल का प्रयोग भी किया जाता है। तब इस संवाददाता के सुझाव पर उन्होंने मूर्तियों के निर्माण में थर्मोकोल का प्रयोग हटाकर मूर्तियों को पूरी तरह ‘ईको फ्रेंडली’ बना दिया था। वे हर वर्ष मूर्ति निर्माण को अधिक बेहतर व अधिक सुंदर बनाने के लिए हर वर्ष नयी प्रतिभाओं को यह कला सिखाने का भी प्रयास करते थे। इस वर्ष भी उन्होंने मूर्ति निर्माण की कार्यशाला आयोजित की थी।

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