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March 26, 2025

जब बिना विवाह किए खुलेआम साथ रह रहे तो पंजीकरण से निजता का हनन कैसे ? उत्तराखंड हाई कोर्ट का UCC में निजता के विरोध पर कड़ा रुख…

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नवीन समाचार, नैनीताल, 18 फरवरी 2025 (HighCourt Tough against Privacy Provision in UCC)। उत्तराखंड में 27 जनवरी को लागू समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के कई प्रावधानों पर बहस तेज हो गई है। विशेष रूप से लिव-इन संबंधों के अनिवार्य पंजीकरण को लेकर मतभेद उभर रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है। इसी को लेकर उत्तराखंड उच्च न्यायालय में इस प्रावधान को चुनौती दी गई है। एक 23 वर्षीय युवक द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार लिव-इन संबंधों पर प्रतिबंध नहीं लगा रही, बल्कि केवल उनके पंजीकरण का प्रावधान कर रही है।

उच्च न्यायालय की टिप्पणी

(HighCourt Tough against Privacy Provision in UCC)उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जी. नरेन्द्र ने सुनवाई के दौरान कहा, ‘राज्य ने यह नहीं कहा कि लोग साथ नहीं रह सकते। जब बिना विवाह किए खुलेआम साथ रहने की अनुमति है, तो फिर पंजीकरण से किस प्रकार निजता का हनन हो रहा है?’

गोसिप को बढ़ावा देने का आरोप

याचिकाकर्ता जय त्रिपाठी के अधिवक्ता अभिजय नेगी ने तर्क दिया कि यूसीसी में ऐसे संबंधों के पंजीकरण को अनिवार्य बनाकर राज्य अनावश्यक चर्चाओं (गोसिप) को बढ़ावा दे रहा है। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के 2017 के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकारों में शामिल है और इस प्रावधान से याचिकाकर्ता की निजता का उल्लंघन हो रहा है। उन्होंने कहा कि उनका मुवक्किल अपने लिव-इन संबंध को सार्वजनिक रूप से घोषित नहीं करना चाहता और राज्य सरकार उसे ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकती।

न्यायालय की स्पष्टता

उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि यूसीसी के अंतर्गत कहीं भी लिव-इन संबंधों के सार्वजनिक ऐलान का प्रावधान नहीं किया गया है, बल्कि केवल पंजीकरण की बात कही गई है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘जब दो व्यक्ति बिना विवाह किए एक साथ रह रहे हैं, तो यह समाज, परिवार और पड़ोसियों को पहले से ही ज्ञात होता है। ऐसे में पंजीकरण से कौन-सा गोपनीयता भंग हो रही है? उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा ‘यदि कोई किसी एकांत गुफा में जाकर रह रहा हो, तब तो गोपनीयता की बात समझी जा सकती है, लेकिन समाज के बीच रहकर इसे गोपनीय नहीं कहा जा सकता।’

अंतरधार्मिक लिव-इन संबंधों पर भी चर्चा

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने अल्मोड़ा जिले में हुई एक घटना का उल्लेख किया, जिसमें एक युवक को अंतरधार्मिक लिव-इन संबंध में रहने के कारण मार दिया गया था। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि समाज को जागरूक करने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यदि इस प्रावधान का दुरुपयोग कर किसी व्यक्ति के विरुद्ध जबरन कार्रवाई की जाती है, तो वह न्यायालय की शरण में आ सकता है।

यूसीसी को लेकर अन्य लंबित याचिकाएं

उत्तराखंड उच्च न्यायालय में यूसीसी के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाली दो अन्य याचिकाएं भी लंबित हैं। एक जनहित याचिका में यूसीसी के लिव-इन संबंधों से संबंधित प्रावधानों को असंवैधानिक बताते हुए चुनौती दी गई है। वहीं, आरुषि गुप्ता द्वारा दायर एक अन्य याचिका में विवाह, तलाक और लिव-इन संबंधों से जुड़े नियमों को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए निरस्त करने की मांग की गई है।

क्या कहता है यूसीसी? (High Court Tough against Privacy Provision in UCC)

उत्तराखंड सरकार द्वारा लागू समान नागरिक संहिता के तहत लिव-इन संबंधों के लिए अनिवार्य पंजीकरण का प्रावधान किया गया है। इसके अनुसार, यदि कोई जोड़ा लिव-इन संबंध में रहता है, तो उन्हें सरकारी अभिलेखों में अपने संबंध को पंजीकृत कराना होगा। इस नियम का उद्देश्य पारिवारिक विवादों, संपत्ति विवादों और महिला अधिकारों की रक्षा करना बताया जा रहा है। हालांकि, कुछ संगठनों और नागरिकों का मानना है कि यह प्रावधान लोगों की निजी स्वतंत्रता में अनावश्यक हस्तक्षेप कर सकता है।

यूसीसी को लेकर उत्तराखंड में विभिन्न पक्षों से मिली-जुली प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। उच्च न्यायालय ने इस मामले में स्पष्ट किया है कि लिव-इन संबंधों पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है, बल्कि केवल उन्हें कानूनी रूप से पंजीकृत करने का प्रावधान किया गया है। यह मामला अभी न्यायालय में विचाराधीन है और आने वाले दिनों में इस पर विस्तृत सुनवाई होगी। (HighCourt Tough against Privacy Provision in UCC)

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