हिंदी पत्रकारिता दिवस : ‘‘खींचो न कमानों को न तलवार निकालो । जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो ।।’’

‘‘खींचो न कमानों को न तलवार निकालो ।
जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो ।।’’
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 30 मई 2024। अकबर इलाहाबादी का यह शेर पत्रकारिता की ताकत बताने के लिए काफी है। 30 मई 2024 को भारतीय हिन्दी पत्रकारिता 198 वर्षों की हो जाएगी। भारतीय पत्रकारिता के इतिहास में अपना अलग महत्व रखने वाला समाचार पत्र ‘‘उदन्त मार्तण्ड’’ हिन्दी का प्रथम समाचार पत्र, 30 मई 1826 (Hindi Patrakaarita Divas) को कलकत्ता से साप्ताहिक समाचार पत्र के रूप में प्रकाशित हुआ, इसका प्रकाशन जुगल किशोर शुक्ल ने किया। इस समाचार पत्र के अंक हिन्दी की खड़ी बोली और ब्रज भाषा के मिश्रण में प्रकाशित होते थे। इसके प्रथम अंक की 500 प्रतियां प्रकाशित की गईं, यह समाचार पत्र प्रत्येक मंगलवार को प्रकाशित होता था।
हालांकि 1819 में प्रकाशित बंगाली दर्पण के कुछ हिस्से हिन्दी में भी प्रकाशित हुआ करते थे, लेकिन हिन्दी के प्रथम समाचार पत्र होने का गौरव ‘‘उदन्त मार्तण्ड’’ को ही प्राप्त है। 30 मई 1826 को प्रकाशित यह समाचार पत्र 4 दिसंबर 1827 को बंद हो गया। इसके बंद होने में ब्रिटिश शासन का असहयोग मुख्य कारण था। (Hindi Patrakaarita Divas)
30 मई हिन्दी पत्रकारिता दिवस (Hindi Patrakaarita Divas)
हिन्दी पत्रकारिता दिवस (Hindi Patrakaarita Divas) प्रत्येक वर्ष ‘‘30 मई’’ को मनाया जाता है। प्रथम हिन्दी समाचार पत्र के प्रकाशक पं. जुगल किशोर मूलतः कानपुर के निवासी थे। वे सिविल एवं राजस्व उच्च न्यायालय कलकत्ता में पहले कार्यवाहक रीडर तथा बाद में वकील बन गए।
विश्व में पत्रकारिता का संक्षिप्त इतिहास
यों हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो में हुए उत्खनन से प्राप्त मृदभांडों के अनुसार भारत में 5000 वर्ष पूर्व यानी ईशा से 3000 वर्ष पूर्व लेखन का ज्ञान था, और भारत के चक्रवर्ती सम्राट अशोक (जन्म 304 ईशा पूर्व, शासन 272 ईशा पूर्व से 232 ईशा पूर्व में मृत्यु होने तक) के आज के बांग्लादेश, भारत, नेपाल, पाकिस्तान व अफगानिस्तान तक फैले राज्य में संस्कृत से मिलती-जुलती खरोष्ठी व ब्राह्मी लिपि तथा प्राचीन मगधी, यूनानी व अरामाई भाषाओं में लिखे 33 शिलालेख व अन्य अभिलेख प्राप्त होते हैं।
अलबत्ता, विश्व में पत्रकारिता का आरंभ ईशा से केवल दो से पांच शताब्दी पूर्व रोम से होना बताया जाता है। कहते हैं कि पांचवीं शताब्दी ईसवी पूर्व रोम में संवाद लेखक होते थे, जो हाथ से लिखकर खबरें पहुंचाते थे। आगे ईशा से 131-59 ईस्वी पूर्व रोम में ही सम्राट जूलियस सीजर को पहला दैनिक समाचार-पत्र निकालने का श्रेय दिया जाता है।
उनके पहले समाचार पत्र का नाम था-एक्टा डाइएर्ना-यानी दिन की घटनाएं। बताया जाता है कि यह वास्तव में पत्थर या धातु की पट्टी होता था, जिस पर समाचार अंकित होते थे। ये पट्टियां रोम के मुख्य स्थानों पर रखी जाती थीं, और इन में सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति, नागरिकों की सभाओं के निर्णयों और ग्लेडिएटरों की लड़ाइयों के परिणामों के बारे में सूचनाएं मिलती थीं।
भारत में पत्रकारिता का इतिहास
यों, हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो में हुए उत्खनन से प्राप्त मृदभांडों के अनुसार भारत में 5000 वर्ष पूर्व यानी ईशा से 3000 वर्ष पूर्व लेखन का ज्ञान था, लेकिन छपाई का काम लगभग पांचवी-छठी शताब्दी में चीन के साथ ही प्रारंभ होना बताया जाता है। इसी दौरान यहां कागज का निर्माण भी होने लगा था। 400 ईसवी सन् में भारत ने भी चीन के साथ कागज बनाना सीख लिया था, जबकि यूरोप में कागज की जगह जानवरों के चमड़े का इस्तेमाल होता था।
लेकिन भारत में समाचार पत्रों का इतिहास यूरोपीय लोगों के भारत में प्रवेश के साथ प्रारम्भ होता है। सर्वप्रथम भारत में प्रिंटिग प्रेस लाने का श्रेय पुर्तगालियों को दिया जाता है, उनकी कोशिश अपने धर्म के प्रचार की थी, इसलिए वह अपनी प्रेस का इस्तेमाल धार्मिक पुस्तकों के प्रकाशन के लिए ही अधिक करते थे। 1557 ईसवी में गोवा के कुछ पादरियों ने भारत की पहली पुस्तक छापी। (Hindi Patrakaarita Divas)
भारत में पहला अखबार स्थापित करने का प्रयास ईस्ट इंडिया कंपनी के भूतपूर्व अधिकारी विलियम बोल्ट्स ने किया। उन्होंने 1762 में कलकत्ता के कौंसिल हॉल व अन्य प्रमुख स्थानों पर एक नोटिस लगाया, जिसमें कहा गया था, “छापेखाने के अभाव में उन्हें लोगों को सूचित करने के लिए नोटिस का तरीका ठीक लगता है। व्यापार के लिए छापेखानों का अभाव खलता है। कोई व्यक्ति यदि छापेखाने का धंधा करना चाहते हैं तो बोल्ट उसका पूरा सहयोग करने को तैयार हैं। इस बीच वह इसी तरह सूचनाएं देते रहेंगे। जिज्ञासु व्यक्ति सुबह 10 से 12 बजे के बीच उनके घर पर आकर वहां से सूचना पत्रों की प्रतियां ले सकते हैं।” (Hindi Patrakaarita Divas)
लेकिन भारत में पत्रकारिता का विधिवत् प्रारम्भ जेम्स आगस्ट्स हिकी ने 29 जनवरी 1780 में कलकत्ता से ‘हिकी’ज बंगाल गजट’ के नाम से अखबार निकाल कर, पत्रकारिता की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल की। इसे ही देश का सबसे पहला समाचार पत्र कहा जाता है। ‘हिकी’ज बंगाल गजट’ ‘दि ऑरिजिनल कैलकटा जनरल एड्वरटाइजर’ भी कहलाता था। दो पृष्ठों के तीन कालम में दोनों ओर से छपने वाले इस अखबार के पृष्ठ 12 इंच लंबे और 8 इंच चौड़े थे। इसमें हिक्की का विशेष स्तंभ ‘ए पोयट्स’ कार्नर होता था। (Hindi Patrakaarita Divas)
‘हिकी’ज बंगाल गजट’ में ईस्ट इंडिया कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों के व्यक्तिगत जीवन पर लेख छपते थे। हिकी ने इसके एक अंक में गवर्नर की पत्नी पर आक्षेप किया तो उसे चार महीने के लिये जेल भेजा गया और 500 रुपये का जुर्माना लगा दिया गया। लेकिन हिकी ने शासकों की आलोचना करने से परहेज नहीं किया, और जब उस ने गवर्नर और सर्वोच्च न्यायाधीश की आलोचना की तो उस पर 5000 रुपये का जुर्माना लगाया गया, और एक साल के लिये जेल में डाला गया। इस तरह उस का अखबार बंद हो गया। (Hindi Patrakaarita Divas)
हिकी’ज बंगाल गजट के बारे में हिकी ने कहा था-“यह राजनीतिक और आर्थिक विषयों का साप्ताहिक है और इसका सम्बन्ध हर दल से है, मगर यह किसी दल के प्रभाव में नहीं आएगा।” स्वयं के बारे में हिक्की की धारणा थी-“मुझे अखबार छापने का विशेष चाव नहीं है, न मुझमें इसकी योग्यता है। कठिन परिश्रम करना मेरे स्वभाव में नहीं है, तब भी मुझे अपने शरीर को कष्ट देना स्वीकार है। ताकि मैं मन और आत्मा की स्वाधीनता प्राप्त कर सकूं।” (Hindi Patrakaarita Divas)
भारत में भारतीय भाषाई पत्रकारिता की शुरुआत सन 1810 में मौलवी इकराम अली के फारसी मिश्रित उर्दू में प्रकाशित ‘हिंदुस्तानी’ नामक पत्रिका से होने और साथ ही उर्दू-फारसी के कुछ और पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशित होने के प्रमाण भी उपलब्ध होते हैं। (Hindi Patrakaarita Divas)
लेकिन भारतीय भाषाई पत्रकारिता की असली कहानी राष्ट्रीय आंदोलन की कहानी के साथ शुरू होती है, क्योंकि उस दौर में भारतीय भाषाएँ, अंग्रेजी ही नहीं-अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने का प्रतीक और देश के जन-जन तक अपनी बात पहुंचाते हुए जनता को अंग्रेजों की कारगुजारियों से अवगत कराने का कारगर हथियार भी थीं। इसकी शुरुआत बंगाल से हुई। (Hindi Patrakaarita Divas)
इसका श्रेय ब्रह्म समाज के संस्थापक और सती प्रणाली जैसी सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले राजा राममोहन राय को दिया जाता है, जिन्हें भारतीय भाषायी प्रेस का प्रवर्तक भी कहा जाता है। उन्होंने सबसे पहले प्रेस को सामाजिक उद्देश्य से जोड़ते हुए भारतीयों के सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक हितों का समर्थन किया। समाज में व्याप्त अंधविश्वास और कुरीतियों पर प्रहार किये और अपने पत्रों के जरिए जनता में जागरूकता पैदा की। (Hindi Patrakaarita Divas)
राममोहन राय ने कई पत्र शुरू किये। जिसमें अहम हैं-वर्ष 1816 में संपादक गंगा किशोर (कहीं गंगाधर भी) भट्टाचार्य के सहयोग से प्रकाशित ‘बंगाल गजट’। बंगाल गजट भारतीय भाषा का पहला समाचार पत्र है। 10 मई 1829 को राजा राममोहन राय ने द्वारकानाथ टैगोर एवं प्रसन्न कुमार टैगोर के साथ साप्ताहिक समाचार पत्र ‘बंगदूत’ निकाला। बंगदूत एक अनोखा पत्र था, इसमें बांग्ला, हिन्दी और फारसी भाषा का प्रयोग एक साथ किया जाता था। ‘बंगदूत’ हर रविवार को निकलता था। इसका अंग्रेजी संस्करण ‘हिंदू हेराल्ड’ के नाम से प्रकाशित होता था। इसका हिंदी प्रखंड निकालना भी बड़ा कदम माना गया, इससे गैर हिंदी क्षेत्रों व संपादकों के लिए हिंदी में पत्र निकालने की परंपरा भी शुरू हुई। (Hindi Patrakaarita Divas)
‘बंगदूत’ के बंद होने के बाद 15 सालों तक हिंदी में कोई पत्र न निकला। इस बीच 1818 में श्रीरामपुर से बैपटिस्ट पादरी जोशुआ मार्शमैन के संपादन में ‘दिग्दर्शन’ नाम का पत्र निकाला जो अंग्रेजी व बंगला मिश्रित पत्र था, और भारतीय भाषा में पहला मासिक समाचार-पत्र भी था। मूलतः स्कूली पाठ्यक्रम के लिए निकले इस अनियमित पत्र के 16 अंक अंग्रेजी व बंगला में तथा तीन अंक हिंदी में निकले। इसे हिंदी का पहला समाचार पत्र साबित करने की कोशिशें भी हुईं, लेकिन इस मान्यता को स्वीकार्यता नहीं मिली। यदि ऐसा होता तो हिंदी समाचार पत्रों का इतिहास कुछ और पीछे चला जाता। (Hindi Patrakaarita Divas)
1822 में गुजराती भाषा का साप्ताहिक बंबई में देशी प्रेस के प्रणेता फरदून जी मर्जबान ने 1822 में ‘बांबे समाचार’ (मुंबईना समाचार) शुरु किया जो दस वर्ष बाद दैनिक हो गया। भारतीय भाषा का यह सब से पुराना और आज भी छप रहा गुजराती के प्रमुख दैनिक के रूप में आज तक विद्यमान है। (Hindi Patrakaarita Divas)
बहरहाल, 1846 में कलकत्ता से प्रकाशित इंडियन सन पांच भाषाओं हिंदी, फारसी, बंगला,अंग्रेजी व उर्दूं में छपना प्रारंभ हुआ था, और इसके हिंदी खंड का नाम मार्तंण्ड था। आगे कलकत्ता से ही बंगला पत्र ‘समाचार दर्पण’ के 21 जून 1834 के अंक से ‘प्रजामित्र’ नामक हिंदी पत्र के कलकत्ता से प्रकाशित होने की सूचना मिलती है। लेकिन अपने शोध ग्रंथ में डॉ. रामरतन भटनागर ने उसके प्रकाशन को संदिग्ध माना है। (Hindi Patrakaarita Divas)
उदंत मार्तण्ड: (Hindi Patrakaarita Divas)
हालांकि 1816 में राजा राममोहन राय के बंगाल गजट के साथ भारत में हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत हो गई थी, लेकिन हिंदी पत्रकारिता की तार्किक और वैज्ञानिक आधार पर शुरुआत 30 मई 1826 से कोलकाता से कानपुर निवासी पं. युगल किशोर शुक्ल द्वारा प्रकाशित हिन्दी के प्रथम साप्ताहिक पत्र ‘उदंत मार्तण्ड’ के साथ ही मानी जाती है। (Hindi Patrakaarita Divas)
श्री शुक्ल पहले सरकारी नौकरी में थे, लेकिन उन्होंने उसे छोड़कर समाचार पत्र का प्रकाशन करना उचित समझा। हालांकि हिन्दी में समाचार पत्र का प्रकाशन करना एक मुश्किल काम था, क्योंकि उस दौरान हिन्दी भाषा के लेखन में पारंगत लोग उन्हें नहीं मिल पा रहे थे। उन्होंने अपने प्रवेशांक में लिखा था ‘यह उदन्त मार्तण्ड’ हिन्दुस्तानियों के हित में पहले-पहल प्रकाशित है, जो आज तक किसी ने नहीं चलाया। अंग्रेजी, पारसी और बंगला में समाचार का कागज छपता है उसका सुख उन बोलियों को जानने वालों को ही होता है और सब लोग पराए सुख से सुखी होते हैं। इससे हिन्दुस्तानी लोग समाचार पढ़े और समझ लें, पराई अपेक्षा न करें और अपनी भाषा की उपज न छोड़ें।’
उदंत मार्तण्ड पत्र में ब्रज और खड़ी बोली दोनों के मिश्रित रूप का प्रयोग किया जाता था जिसे इस पत्र के संचालक ‘मध्यदेशीय भाषा’ कहते थे। उदंत मार्तण्ड 20 अंगुल लंबा व 15 अंगुल चौड़ा, 12 गुणा 8 इंच के आकार में यानी पुस्तकाकार में छपता था और हर मंगलवार को निकलता था। इसमें सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति, सरकारी विज्ञप्ति, जनता के विज्ञापन, पानी के जहाजों की समय सारणी, कलकत्ता के बाजार भाव, तथा देख-दुनिया की खबरें प्रमुखता से छपती थीं। इसका मूल्य प्रति अंक आठ आने और मासिक दो रुपये था। (Hindi Patrakaarita Divas)
क्योंकि इस अखबार को सरकार विज्ञापन देने में उपेक्षा पूर्ण रवैया अपनाती थी, इसे डाक सुविधा भी नहीं दी गई। यह आर्थिक संकट, सरकारी सहयोग के अभाव और बंगाल में हिन्दी के जानकारों और ग्राहकों की कमी, कम्पनी सरकार के प्रतिबन्धों से अधिक नहीं लड़ पाया। इसके कुल 79 अंक ही प्रकाशित हो पाए थे कि आर्थिक संकट और आखिरकार ठीक 18 महीने के पश्चात सन् 1827 में इसे बंद करना पड़ा। अलबत्ता, इस अखबार ने हिन्दी पत्रकारिता को एक नई दिशा देने का काम तो कर ही दिया। उन्होंने अपने अंतिम पृष्ठ में लिखा-
‘आज दिवस को उग चुक्यो मार्तण्ड उदन्त।अस्तांचल को जात है दिनकर अब दिन अंत।’ (Hindi Patrakaarita Divas)
आगे 1850 में पं. शुक्ल ने सामदण्ड मार्तण्ड या साम्यदंड मार्तण्ड नाम का एक अन्य पत्र भी प्रकाशित किया। (Hindi Patrakaarita Divas) आज के अन्य एवं अधिक पढ़े जा रहे ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। यहां क्लिक कर हमारे व्हाट्सएप चैनल से, फेसबुक ग्रुप से, गूगल न्यूज से, टेलीग्राम से, कू से, एक्स से, कुटुंब एप से और डेलीहंट से जुड़ें। अमेजॉन पर सर्वाधिक छूटों के साथ खरीददारी करने के लिए यहां क्लिक करें। यदि आपको लगता है कि ‘नवीन समाचार’ अच्छा कार्य कर रहा है तो हमें सहयोग करें..।
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