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December 6, 2024

जानें स्त्री व पुरुषों के शरीर के दाएं और बाएं अंगों के बारे में बेहद रोचक जानकारी, जिससे बेहतर कर सकते हैं अपना जीवन…

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No photo description available.नवीन समाचार, नैनीताल, 23 अप्रैल 2023। (very interesting facts about the right and left parts of the body of men and women) अक्सर हम सुनते हैं कि कोई कार्य दांये हाथ से और कोई कार्य बांये हाथ से किए जाने चाहिए। अक्सर सुनाई देता है दायां हाथ सही है और बायां हाथ गलत है। खासकर पूजा एवं धार्मिक कामकाज में दांये-बांये का बहुत ध्यान रखा जाता है। पत्नी को पुरुष का बांया अंग कहा जाता है। धार्मिक कामकाज में पत्नी अपने पति के बांयी ओर बैठती है। महिलाओं व पुरुषों में दांये व बांये अंगों को लेकर कई बातें कही जाती हैं। महिलाओं के बांये व पुरुषों के दांये अंग शुभ होने की बात कही जाती है। आज इसी विषय पर हम ज्योतिर्विद पंडित दयानंद शास्त्री से प्राप्त जानकारी प्रस्तुत करने जा रहे हैं। यह भी पढ़ें : धनी बनना चाहते हैं तो जानें बाबा नीब करौरी द्वारा बताए धनी बनने के तीन उपाय

पंडित शास्त्री के अनुसार मनुष्य का दायां हाथ या दाए अंग सूर्य केंद्र से, यानी भीतर के पुरुष से जुड़ा हुआ और बांया हाथ या बाए अंग चंद्र केंद्र से और भीतर की स्त्री से जुड़ा हुआ होता है। इसलिए पुरुषों के लिए उनकी मूल प्रकृति के दांये अंग और स्त्रियों के लिए बांये अंग शुभ माने जाते हैं। पुरुष दांये और स्त्रियां बांये हाथ में कलावा बांधती हैं। पुरुषों के दांये और स्त्रियों के बांये अंग फड़कने शुभ माने जाते हैं। इसके उलट पुरुषों के बांये और स्त्रियों के दांये अंग फड़कने अशुभ माने जाते हैं। इसका कारण उनकी मूल प्रकृति से जुड़ा होता है। यह भी पढ़ें : अपने नाम में मामूली सा बदलाव करके लाएं अपने भाग्य में चमत्कारिक बदलाव…

हमारा बायां नासापुट चंद्र केंद्र से जुड़ा हुआ है। और दायां नासापुट सूर्यकेंद्र से जुड़ा हुआ होता है। इसे बहुत आसानी से आजमा कर भी देख सकते हैं। जब कभी बहुत गर्मी लगे तो अपना दायां नासापुट बंद कर लें और बाएं से श्वास लें तो दस मिनट के भीतर ही अनजानी शीतलता महसूस होती है। या आप ठंड से कांप रहे हों और बहुत सर्दी लग रही है, तो अपना बायां नासापुट बंद कर लें, और दाएं से श्वास लें। दस मिनट के भीतर पसीना आने लगेगा। यह भी पढ़ें : नाम के पहले अक्षर से जानें किसी भी व्यक्ति के बारे में सब कुछ

ऐसा इसलिए कि हमारा पूरा शरीर दो भागों में विभक्त है। हमारा मस्तिष्क भी दो मस्तिष्कों में विभाजित है। हमारे पास एक नहीं बल्कि दो मस्तिष्क हैं। या कहें कि मस्तिष्क के दो गोलार्ध हैं। बायीं ओर का मस्तिष्क सूर्य मस्तिष्क है, और दायीं ओर का मस्तिष्क चंद्र मस्तिष्क है। दायीं ओर का मस्तिष्क शरीर के बाएं हिस्से से जुड़ा हुआ और बांयी ओर का मस्तिष्क दांयी ओर से जुड़ा हुआ होता है। इस तरह बांया हाथ दायीं ओर के मस्तिष्क से जुड़ा हुआ होता है, और दायां हाथ बायीं ओर के मस्तिष्क से जुड़ा हुआ है। यानी एक-दूसरे से उलटे जुडे हुए होते हैं। यह भी पढ़ें : जानिए अपनी हस्तरेखाओं से अपने जीवन के राज और अपने भविष्य की संभावनाएं…

इसी दाई प्रकृति के कारण पुरुष की कामवासना सूर्यगत है, जबकि स्त्री की कामवासना बाई प्रकृति के कारण चंद्रगत है। यह भी कह सकते हैं कि स्त्रियां चंद्रमा से प्रभावित होती हैं और पुरुष सूर्य से। इसीलिए स्त्रियों के मासिक धर्म का चक्र 28 दिन के चंद्र मास की तरह 28 दिन में पूरा होता है। दूसरी ओर पुरुष सूर्य से प्रभावित होने के कारण खुली आंखों से प्रेम करना चाहता है। केवल इतना ही नहीं, बल्कि प्रकाश भी पूरा चाहता है। अगर किसी तरह की बाधा न हो, तो पुरुष दिन में प्रेम करना पसंद करता है। और उन्होंने पश्चिमी देशों में ऐसा करना शुरू भी कर दिया है। क्योंकि वहां दिन में प्रेम करने की बाधाएं और समस्याएं पूर्व की तरह नहीं हैं। वहां लोग रात्रि की अपेक्षा सुबह प्रेम अधिक करते हैं। लेकिन स्त्री अंधेरे में प्रेम करना पसंद करती है। जहां थोड़ी सी भी रोशनी न हो और अंधेरे में भी वे अपनी आंखें बंद कर लेती हैं। यह भी पढ़ें : जानें गैर सामाजिक (अवैध) प्रेम या शारीरिक सम्बन्ध से जुड़े ग्रह योग और कारणों को…

जबकि पुरुष सूर्योन्मुखी होता है, उसे प्रकाश अच्छा लगता है। आंखें सूर्य का हिस्सा हैं, इसीलिए आंखें देखने में सक्षम होती हैं। आंखों का तालमेल सूर्य की ऊर्जा के साथ रहता है। तो पुरुष आंखों से, दृष्टि से अधिक जुड़ा हुआ है। इसीलिए पुरुष को देखना अच्छा लगता है और स्त्री को प्रदर्शन करना यानी देखने की जगह दिखाना अच्छा लगता है। पुरुषों को यह समझ में नहीं आता है कि आखिर स्त्रियां स्वयं को इतना क्यों सजाती-संवारती हैं ? लेकिन इसका कारण उनकी चंद्र प्रकृति से होना है। यह भी पढ़ें : अपने नाम में ऐसे मामूली सा बदलाव कर लाएं अपने भाग्य में चमत्कारिक बदलाव…

इसीलिए स्त्रियों में प्रदर्शन की प्रवृत्ति होती है, और वे चाहती हैं कोई उन्हें देखे। और यह एकदम ठीक भी है, क्योंकि इसी तरह से पुरुष और स्त्रियों के साथ जीवन, प्रकृति और दुनिया चलती है। पुरुष देखना चाहता है, स्त्री दिखाना चाहती है। इस तरह एक समाज का निर्माण होता है। प्रकृति में हर चीज एक दूसरे के अनुरूप होती है, उनमें आपस में सिन्क्रानिसिटी, यानी लयबद्धता होती है। यह भी पढ़ें : नैनीताल के हरदा बाबा-अमेरिका के बाबा हरिदास

पत्नी वामांगी क्यों कहलाती है? (Why wife called ‘Vamangi’?)

शास्त्रों में पत्नी को वामंगी कहा गया है, जिसका अर्थ होता है बाएं अंग का अधिकारी। इसलिए पुरुष के शरीर का बायां हिस्सा स्त्री का माना जाता है। इसका कारण यह है कि भगवान शिव के बाएं अंग से स्त्री की उत्पत्ति हुई है जिसका प्रतीक है शिव का अर्धनारीश्वर शरीर। यही कारण है कि हस्तरेखा विज्ञान की कुछ पुस्तकों में पुरुष के दाएं हाथ से पुरुष की और बाएं हाथ से स्त्री की स्थिति देखने की बात कही गयी है। यह भी पढ़ें : सच्चा न्याय दिलाने वाली माता कोटगाड़ी: जहां कालिया नाग को भी मिला था अभयदान

शास्त्रों में कहा गया है कि स्त्री पुरुष की वामांगी होती है इसलिए सोते समय और सभा में, सिंदूरदान, द्विरागमन, आशीर्वाद ग्रहण करते समय और भोजन के समय स्त्री पति के बायीं ओर रहना चाहिए। इससे शुभ फल की प्राप्ति होती। लेकिन वामांगी होने के बावजूद भी कुछ कामों में स्त्री को दायीं ओर रहने के बात शास्त्र कहता है। शास्त्रों में बताया गया है कि कन्यादान, विवाह, यज्ञकर्म, जातकर्म, नामकरण और अन्न प्राशन के समय पत्नी को पति के दायीं ओर बैठना चाहिए। यह भी पढ़ें : भद्रकालीः जहां वैष्णो देवी की तरह त्रि-पिंडी स्वरूप में साथ विराजती हैं माता सरस्वती, लक्ष्मी और महाकाली 

पत्नी के पति के दाएं या बाएं बैठने संबंधी इस मान्यता के पीछे तर्क यह है कि जो कर्म संसारिक होते हैं उसमें पत्नी पति के बायीं ओर बैठती है। क्योंकि यह कर्म स्त्री प्रधान कर्म माने जाते हैं। जबकि यज्ञ, कन्यादान, विवाह यह सभी काम पारलौकिक माने जाते हैं और इन्हें पुरुष प्रधान माना गया है। इसलिए इन कर्मों में पत्नी के दायीं ओर बैठने के नियम हैं। यह भी पढ़ें : प्रसिद्ध वैष्णो देवी शक्तिपीठ सदृश रामायण-महाभारतकालीन द्रोणगिरि वैष्णवी शक्तिपीठ दूनागिरि

(डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य नवीन समाचार पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

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