खालिस्तानी आतंकवाद को लेकर फिर सक्रियता, जानें उत्तराखंड के संयुक्त नैनीताल जनपद के तराई क्षेत्रों में खालिस्तानी आतंकवाद की पूरी कहानी

डॉ. नवीन जोशी, नवीन समाचार, नैनीताल, 29 दिसंबर 2024 (Khalistani Terrorism in Nainital-US Nagars Tarai)। सोमवार 23 दिसम्बर की सुबह यूपी व पंजाब पुलिस ने सांझे तौर पर कार्रवाई करते हुए खालिस्तान से जुड़े तीन आतंकियों को ढेर कर दिया। पीलीभीत के पूरनपुर कोतवाली क्षेत्र में पंजाब और उत्तर प्रदेश पुलिस की संयुक्त टीम को यह सफलता मिली।
इन आतंकियों ने पंजाब के गुरदासपुर में पुलिस चौकी पर ग्रेनेड और बम से हमला किया था। इसके बाद तीनों पूरनपुर क्षेत्र में आकर छिप गए थे। इस घटना के बाद उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर जनपद में भी खालिस्तानी आतंकवाद के लिहाज से विशेष सक्रियता बरती जा रही है। इसका कारण समझने के लिये इसकी पृष्ठभूमि को समझना होगा।
दरअसल, अविभाजित उत्तर प्रदेश के दौर में तत्कालीन संयुक्त नैनीताल जनपद के वर्तमान ऊधमसिंह नगर के तराई के क्षेत्र में भी लगभग 12 वर्षों तक खालिस्तानी आतंकवाद का बड़ा प्रभाव था। बताया जाता है कि यहां वर्ष 1989 में खालिस्तानी आतंकियों की गतिविधियां शुरू हुई थी।
पंजाब से बड़ी संख्या में आतंकियों ने यहां के जंगलों में शरण ली थी और आतंक फैलाना शुरू किया था। सबसे बड़ी घटना 17 अक्तूबर 1991 को रुद्रपुर में घटी थी। यहां पर खालिस्तान नेशनल आर्मी ने दो जगहों पर बम विस्फोट किए थे। इनमें 41 लोगों की मौत हुई थी जबकि 140 लोग घायल हुए थे।
वास्तव में 1950 के दशक में पंजाब के कई बड़े किसानों ने उत्तर प्रदेश के पीलीभीत और आसपास के तराई में जंगल से सटे इलाकों में सस्ती जमीनें खरीद ली थीं और यहां बड़े-बड़े फार्म हाउस बना लिए थे। इन लोगों ने पहले तो खालिस्तानी आतंकवादियों को अपनी यहां की स्थानीय रंजिशों को निपटाने के लिये बुलाया था। अपने दुश्मनों के खिलाफ इनका इस्तेमाल करते थे।
इस तरह आतंकवादियों को यहां स्थानीय पंजाबी किसानों के फार्म हाउस सुरक्षित ठिकाना बन गये और वे खुद ही आतंक फैलाने लगे और और अपने लोगों को धमकी देकर और हत्याएं कर संगठन के लिए धन भी जुटाते थे। इस प्रकार खालिस्तानी आतंकवादी यहां पूरी तरह से तराई में हावी होते चले गये। वे हफ्ता वसूली करते थे। इनके कारण क्षेत्र में कॉन्ट्रैक्ट किलिंग के मामले चरम पर पहुंच गए थे।
बताया जाता है कि यहां बलराज सिंह नाम का आतंकवादी भी था, जिसने जनरल वैद्य की हत्या के सिलसिले में गिरफ्तार निर्मल सिंह और सुखदेव सिंह के साथ मिलकर 21 जुलाई को काशीपुर की स्टेट बैंक शाखा को लूटा था। इसके अलावा खुफिया रिकॉर्ड के अनुसार रामनगर, काशीपुर और बाजपुर में हथियारों के जखीरे की जब्ती की गयी, जिसे इसी खालिस्तानी आतंकवाद से जोड़ा जाता है।
गौरतलब है कि 1984 तक तो तराई का क्षेत्र पंजाब के आतंकवाद से अछूता रहा किन्तु 1984 में हुए ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार और उसके बाद देश भर में हुई आतंकवादी घटनाओं के बाद स्थिति में एकाएक परिवर्तन आया। पंजाब में सुरक्षा बलों के बढ़ते दबाव के कारण आतंकवादियों ने तराई क्षेत्र में आकर शरण लेना शुरू किया। शरण लेने के लिये तराई एक आदर्श क्षेत्र के रूप में उभरा क्योंकि यहाँ पर छिपने के लिये घने जंगल एवं साथ ही समृद्ध किसान भी थे, जिन्हें आतंकवादियों के द्वारा बहला-फुसला करए धर्म के नाम पर अथवा भय दिखाकर अपने साथ जोड़ना आसान था।
कुछ लोगों ने अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति हेतु व निजी रंजिशों का बदला लेने के लिये भी इन आतंकवादियों को पंजाब से तराई में बुलाया था। तराई का पहला बड़ा आतंकवादी बलविन्दर सिंह उर्फ बिन्दा अपने पड़ोसी जमींदार की ज्यादतियों से तंग आकर उससे बदला लेने हेतु पंजाब चला गया था और वहां से प्रशिक्षण व हथियार लेकर वापस लौटा और तराई में खालिस्तान कमांडो फोर्स का खूँखार आतंकवादी बन गया था।
वर्ष 1985 से ही तराई क्षेत्र में शरण लिये हुए इन आतंकवादियों ने छोटी-मोटी घटनाओं को अंजाम देना आरम्भ कर दिया था और अन्दर ही अन्दर अपने पैर पसारने शुरू कर दिये थे। परन्तु उत्तर प्रदेश सरकार कई वर्षों तक इस क्षेत्र में आतंकवाद की उपस्थिति को नकारती रही और इन घटनाओं को साधारण आपराधिक घटनाएं मानती रही।
चार-पाँच वर्षों के बाद जब उत्तर प्रदेश सरकार और उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा क्षेत्र में आतंकवादियों की उपस्थिति को स्वीकारा गया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अकेले नैनीताल की तराई में आतंकवाद के इतिहास में लगभग सौ घटनाएं घटी थीं। इन सभी घटनाओं में सबसे बड़ी घटना रुद्रपुर में अक्टूबर 1991 में रामलीला के दौरान हुई जो एक सोची-समझी और दहशत फैलाने के उद्देश्य से की गई बम विस्फोट की घटना थी।
इस घटना में आतंकवादियों द्वारा साइकिलों में आरडीएक्स को फिट करके साईकिलों को रिमोट कन्ट्रोल से ब्लास्ट किया गया था। रामलीला मैदान में विस्फोट के बाद जब लोग अस्पताल पहुँचे तो बीस मिनट बाद एक बड़ा ब्लास्ट अस्पताल में भी किया गया क्योंकि इस समय तक वहां भी बहुत भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी। विस्फोट की इस घटना में 70 से अधिक लोग मारे गये और 100 से अधिक लोग घायल हुए। इस घटना की जिम्मेदारी भिण्डरवाले सैफरन टाइगर्स ऑफ खालिस्तान द्वारा ली गई जिसकी तराई क्षेत्र की कमांड स्वर्ण सिंह जवन्दा के हाथों में थी।
इस घटना ने तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार को हिला कर रख दिया था। इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आतंकवादियों से निपटने के लिये भारी पुलिस बल तराई में तैनात किया गया तथा केन्द्र सरकार द्वारा भी केन्द्रीय अर्ध सैनिक बल की कई कम्पनियां तराई में भेजी गई।
किन्तु आतंकियों के पास पुलिस से बेहतर व तकनीकी दृष्टि से अत्यन्त विकसित अचूक निशाने वाली अत्याधुनिक एके-47 रायफलें, नाईट विजन डिवाइस, उच्च फ्रीक्वेन्सी के कॉर्डलैस फोन व अन्य आधुनिक इलैक्ट्रॉनिक उपकरण उपलब्ध थे। आतंकवादियों का भय तराई के लोगों के मन में समा चुका था और तो और पुलिस भी अन्दर ही अन्दर आतंकवादियों की तैयारियों के बारे में जानती थी और उनसे भयभीत थी।
आतंकवादियों ने धीरे-धीरे पुलिस को अपना निशाना बनाना प्रारम्भ कर दिया गया था। अतः सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस अधिकारियों ने गाड़ियों में नीली बत्ती और नेमप्लेट लगाना बन्द कर दिया था। पुलिस कर्मियों को भी ड्यूटी के अतिरिक्त वर्दी धारण न करने के निर्देश दिये गये थे।
दूर दराज की चौकियों को थाने से सम्बद्ध कर दिया गया था। अधिकारी एवं कर्मचारी गश्त आदि के दौरान अपना लोकेशन नहीं बताते थे, मार्गों को बदल-बदल कर क्षेत्र का भ्रमण किया जाता था। पुलिस कर्मियों के अन्दर इतना अधिक भय व्याप्त था कि वे खुद भी हमेशा आतंकवादी हमलों के डर से सुरक्षा के नित नये-नये तरीके खोजते थे।
इसी दौरान सितारगंज में शक्तिफार्म चौकी प्रभारी केजी शर्मा सहित छह, गदरपुर में एसओ जगमोहन उपाध्याय सहित पांच, रुद्रपुर में दो पुलिसकर्मियों के साथ ही कई जगहों पर स्थानीय लोगों की हत्याएं भी आतंकियों ने की थी। साथ ही वर्ष 1991 में श्रीपुर विचुआ गांव में पंजाब से फरार 50 लाख के आतंकी यादवेंद्र उर्फ याद मारा गया था। इसके अलावा एक अन्य आतंकवादी चलविंदर उर्फ बिंदा जसपुर में मारा गया था।
24 जून 1993 को बाजपुर के संतोषपुर गांव की घटना (Khalistani Terrorism in Nainital-US Nagars Tarai)
इस दौरान 24 जून 1993 को बाजपुर क्षेत्र में संतोषपुर गांव के पास गन्ने के खेत में डर का पर्याय बन चुके भिंडरवाले सैफरन टाइगर्स ऑफ खालिस्तान के एरिया कमांडर हीरा सिंह एवं उसके तीन अन्य साथियों के एक झाले में होने की सूचना प्राप्त हुई। पुलिस बल के झाले के पास पहुंचने का आभास होने पर आतंकवादियों ने पुलिस पार्टी पर अंधाधुंध फायरिंग की और वे फायरिंग करते हुए गन्ने के खेत में घुस गये।
इस दौरान दोनों तरफ से हुई गोलीबारी में एक आतंकवादी मारा गया। गन्ने के खेत को पुलिस, पीएसी एवं सीआरपीएफ ने घेर लिया। इस बीच जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, रुद्रपुर एवं हल्द्वानी से अपर पुलिस अधीक्षक एवं अन्य अधिकारीगण भी मौके पर पहुंँच गये और उन्होंने घेराबंदी मजबूत करके इन्तजार करने का निर्णय लिया। बीच-बीच में हल्की-फुल्की गोलीबारी दोनों तरफ से चलती रही। रात होने पर जब अँधेरा हो गया तो हीरा सिंह ने जान की बाजी लगाकर गोलीबारी के मध्य गन्ने के खेत से निकल भागने का फैसला किया।
अचानक तीनों आतंकवादी एक तरफ से एके-47 की गोलियाँ बरसाते हुए पुलिस कार्डन को तोड़ते हुए भाग निकले। आतंकवादियों ने अंधेरे का फायदा उठाया। पुलिस को इस बात का कतई अन्दाज नहीं था कि आतंकवादी इस प्रकार भाग सकते हैं। आतंकवादियों के इस कदम से सभी पुलिस अधिकारी एवं कर्मचारी स्तम्भित रह गये। उन्हें कुछ समझ नहीं आया कि वह क्या करें। जब तक उन्हें कुछ सूझता और वे कोई कदम उठाते, तब तक आतंकवादी भाग चुके थे।
आतंकवादियों द्वारा की गई फायरिंग में पीएसी एवं सीआरपीएफ का एक-एक जवान शहीद हो गया। इस घटना के कारण पुलिस का मनोबल बहुत गिरा हुआ था। आम आदमियों में आतंकियों का जबरदस्त भय व्याप्त था, सूर्य अस्त होने के बाद से ही फैक्ट्रियाँ बन्द हो जाती थीं और लोगों का आवागमन भी बन्द हो जाता था। सभी सड़कें वीरान हो जाती थी।
अब हीरा सिंह ही बीएसटीके का तराई का एरिया कमाण्डर था, उसका पूर्व कमाण्डर जवन्दा तराई छोड़कर पंजाब भाग गया था। हीरा सिंह व उसके साथियों को पकड़ना पुलिसबलों का मुख्य लक्ष्य था। उसके विरुद्ध टाडा यानी ‘टेरेरिस्ट एण्ड डिस्ट्रक्टिव एक्टीविटीज प्रीवेन्शन एक्ट’ के तहत पचास से भी अधिक मुकदमे दर्ज थे, जो 200 लोगों की हत्याओं के लिये जिम्मेदार था। इनमें पच्चीस तो पुलिस कर्मी ही थे।
बाजपुर में ही एक अन्य घटना-बारूदी सुरंग से जिप्सी उड़ाई, उसमें सवार पुलिस अधिकारियों व कर्मचारियों के शरीरों के टुकड़े सौ मीटर के दायरे में बिखरे
इस दौरान एक अन्य घटना भी हुई थी। बाजपुर क्षेत्र में एक सिख लड़के की मौत के लिये आतंकवादियों ने पुलिस को जिम्मेदार ठहराया था और सिख समुदाय को खुश करने के लिये पुलिस से उसका बदला लेने की ठानी थी। बदला लेने के क्रम में आतंकवादियों ने एक षड़यन्त्र रचा जिसमें उन्होंने बाजपुर क्षेत्र साइकिल से ड्यूटी के लिए थाने जा रहे एक होमगार्ड के पैर में गोली मार दी। यह होमगार्ड जैसे ही घटना की सूचना देने के लिये थाने के लिये निकला आतंकवादियों ने अपनी योजना के अनुसार घटनास्थल तक पहुँचने वाले दोनों मार्गों पर बारुदी सुरंग बिछा दी।
जब इस होमगार्ड ने थाने जाकर अपनी कहानी बतायी तो आतंकवादियों की क्षेत्र में उपस्थिति की सूचना पाकर उन्हें पकड़ने के उद्देश्य से पुलिस उपाधीक्षक व थानाध्यक्ष अपने साथ पाँच-छः आरक्षियों को लेकर अपनी जान की परवाह किये बिना आतंकवादियों से लोहा लेने के लिये तत्काल मौके के लिये दौड़ पड़े।
इन बहादुर पुलिस अधिकारियों को क्या पता था कि आतंकवादियों ने एक षड़यंत्र के तहत बारुदी सुरंग का जाल बिछाया हुआ है, जिसमें दूर बैठा आतंकवादी रिमोट कन्ट्रोल से सात लोगों की जिन्दगी के परखच्चे उड़ाने वाला है। इसके साथ ही आतंकवादी इन पुलिस कर्मियों से जुड़े परिवारों की जिन्दगी को भी बरबाद कर देंगे।
विस्फोट इतना अधिक शक्तिशाली था कि जिप्सी के परखच्चे उड़ गये और उसमें सवार पुलिस अधिकारियों व कर्मचारियों के शरीरों के टुकड़े सौ मीटर के दायरे में जगह-जगह व पेड़ों पर बिखरे पड़े थे, जिनकी पहचान तक कर पाना सम्भव नहीं था। मौके पर पहुंचे अधिकारी भी यह मंजर देखकर अन्दर तक दहल उठे थे।
इस घटना की प्रतिक्रियास्वरूप पुलिस ने बाजपुर क्षेत्र में 24 जून को घटित मुठभेड़ से भागे आतंकवादी हीरा सिंह व उसके साथियों की तलाश में पुलिस टीम के साथ घने जंगलों में 6 माह तक कॉम्बिंग की। लेकिन हर बार पुलिस आतंकवादियों के ठिकानों तक पहुंचने में एक या दो दिन पीछे रह जाती थी। जिस स्थान पर पुलिस पहुुँचती थी, हीरा सिंह व उसके साथी उस स्थान को एक या दो दिन पहले ही छोड़ चुके होते थे।
इससे स्पष्ट था कि आतंकवादियों का सूचना तंत्र पुलिस से ज्यादा बेहतर था। आतंकवादियों को शरण और खाना कई बार तो उनके प्रति मूक समर्थन में और अधिकांशतः बन्दूक की नोक पर दिया जाता था। पूर्व में ऐसे लोगों को आतंकवादियों को शरण देने की धाराओं में बन्द कर दिया गया था जिसके कारण पुलिस व जनता के बीच दूरी बन चुकी थी।
स्थानीय लोगों के सहयोग के बिना आतंक से तराई को छुटकारा दिला पाना बहुत मुश्किल था। स्थानीय लोग भी आंतकवादियों से छुटकारा चाहते थे और उनकी नाजायज माँगों से वे भी परेशान हो चुके थे। उनके रोजमर्रा के काम आतंकवाद के चलते बुरी तरह प्रभावित हो रहे थे।
ऐसे में पुलिस ने पूरे तराई क्षेत्र में आतंकवादियों के विरुद्ध जागरूकता लाने के लिये जगह-जगह पर गोष्ठियाँ करने की एक नई पहल की। प्रारम्भ में तो लोग आतंकवादियों के भय से इन गोष्ठियों में उपस्थित होना नहीं चाहते थे किन्तु धीरे-धीरे जब उनमें सुरक्षा की भावना उत्पन्न की गई एवं फर्जी कार्यवाही के भय से निजात दिलायी गई तो लोग गोष्ठियों में अपने विचार भी प्रकट करने लगे।
कुछ बहादुर लोगों के द्वारा आतंकवाद की भर्त्सना की जाने लगी और इस लड़ाई में पुलिस का सहयोग देने का भरोसा भी दिया जाने लगा। हम लोग छोटी-से-छोटी सूचना प्राप्त होने पर भी तत्काल आवश्यक कदम उठाते थे। पुलिस की इस प्रो’एक्टिव एप्रोच से लोगों के मन में हमारे प्रति विश्वास भी बढ़ा। गोष्ठियों में भी इस बात की पुष्टि हुई कि आम आदमी आतंकवादियों की कार्यवाही से त्रस्त हो चुके थे। सिख समुदाय आतंकवादी गतिविधियों से सबसे अधिक पीड़ित था, वह भी इनसे छुटकारा चाहता था।
यद्यपि वैचारिक स्तर पर हम लोग आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई जीतने लगे थे परन्तु हीरा सिंह और उसके साथी अभी भी पुलिस की पकड़ से बाहर थे। ऐसे में जब पुलिस हीरा सिंह को पकड़ने की सारी उम्मीदें छोड़ चुकी थी, तभी 22 जनवरी, 1994 की सुबह साढ़े आठ बजे अभिसूचना विभाग को हीरा सिंह के ही गिरोह के एक 18-19 वर्षीय बिट्टू नाम के युवक से हीरा सिंह की लोकेशन रुद्रपुर से 8 – 9 किलोमीटर दूर एक गन्ने के खेत में मिल गयी।
तब हीरा सिंह ने उसे व दूसरे एक साथी को रुद्रपुर या कहीं और से मोटर साइकिल चुरा कर या लूट कर लाने को भेजा था। (Khalistani Terrorism in Nainital-US Nagars Tarai, Khalistani Terrorism in Nainital, Atankwad, Terrorism, History of Khalistani Terrorism)
इस मोटर साइकिल से वे शहर के एक धनी चावल मिल मालिक के बेटे का अपहरण कर उससे पचास लाख रुपए की फिरौती वसूलने वाले थे क्योंकि छह माह से भागते-भागते उनके पास पैसों की कमी हो गई थी। साथ ही इन दोनों को हीरा सिंह ने यह भी निर्देश दिया था कि सुबह साढ़े नौ बजे तक उन्हें बताई हुई जगह पर हर हाल में पहुँचना है। यदि वे नियत समय तक नहीं पहुँचे तो हीरा सिंह अपनी जगह बदल देगा। (Khalistani Terrorism in Nainital-US Nagars Tarai, Khalistani Terrorism in Nainital, Atankwad, Terrorism, History of Khalistani Terrorism)
बिट्टू ने बताया कि रात में तीन बजे के करीब उसका अपने आतंकवादी साथी से अपनी बहन को लेकर झगड़ा हो गया था, जो इतना आगे बढ़ गया कि उसने चाकू से अपने साथी को मार डाला। बिट्टू ने जिस आतंकवादी को मारा था वह हीरा सिंह का पुराना साथी था, जब कि बिटटू हीरा सिंह के गैंग का नया-नया सदस्य था।
इसलिए उसे यह डर सता रहा था कि जब हीरा सिंह को इस बात का पता चलेगा कि बिट्टू ने उसके पुराने विश्वास पात्र साथी को मार दिया है तो हीरा सिंह उसे व उसके पूरे परिवार को खत्म कर देगा। उसे अपने बचने का जब कोई और रास्ता न सूझा तो उसने अभिसूचना विभाग के अधिकारी से सम्पर्क किया था।
इसके बाद हुई कार्रवाई में हजारों राउंड की गोलीबारी के बाद कुख्यात आतंकवादी बीएसटीके का एरिया कमाण्डर हीरा सिंह और उसका साथी निम्मा मारे गये। कहते हैं कि इस मुठभेड़ से तराई में आतंकवाद की खूनी कहानी खत्म हुई। इस मुठभेड़ की खबर दूर-दूर तक फैल गई थी रुद्रपुर से लेकर हल्द्वानी तक तथा रामपुर से लेकर मुरादाबाद व बरेली तक के लोग इन आतंकवादियों को देखने घटनास्थल पर पहुँचे और इन खूँखार आतंकवादियों के मारे जाने पर लोगों ने जश्न मनाया। (Khalistani Terrorism in Nainital-US Nagars Tarai, Khalistani Terrorism in Nainital, Atankwad, Terrorism, History of Khalistani Terrorism)
हालांकि इसके बाद भी उत्तराखंड में वर्ष 2018 से 2021 तक खटीमा, रुद्रपुर, दिनेशपुर, नानकमत्ता, काशीपुर में प्रतिबंधित खालिस्तानी संगठनों को लेकर पोस्ट करने के मामले सामने आए थे। इनमें गिरफ्तारियों के साथ ही चालानी व काउंसलिंग की कार्रवाई भी की गई थी। हालांकि वर्ष 2021 के बाद से यहां ऐसे कोई मामले नहीं हैं। (Khalistani Terrorism in Nainital-US Nagars Tarai, Khalistani Terrorism in Nainital, Atankwad, Terrorism, History of Khalistani Terrorism)
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