पंचायत चुनाव बना पुश्तैनी गांव से अंतिम जुड़ाव, जमरानी परियोजना से विस्थापन के कगार पर हैं 213 परिवार

नवीन समाचार, नैनीताल, 3 जुलाई 2025 (Last Panchayat election for Jamrani Dam Villages)। उत्तराखंड के नैनीताल जनपद अंतर्गत जमरानी क्षेत्र के 213 परिवारों के लिए इस बार का त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव केवल जनप्रतिनिधि चुनने तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके पुश्तैनी गांव में मतदान करने का आखिरी अवसर भी बन गया है। गौला नदी पर प्रस्तावित जमरानी बहुउद्देशीय परियोजना के कारण ये परिवार शीघ्र ही अपने पुश्तैनी गांवों से विस्थापित कर दिये जायेंगे। ऐसे में इस बार का पंचायत चुनाव इनके लिए केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि अपने अतीत, गांव की स्मृतियों व सामाजिक पहचान से अंतिम जुड़ाव और अपने पुश्तैनी गाँव में आखिरी चुनाव बन गया है।
गांवों में जलमग्न हो जाएंगे खेत और मकान, विस्थापन की प्रक्रिया शुरू
पुलिस व संबंधितों से प्राप्त जानकारी के अनुसार जमरानी बांध परियोजना के तहत गौला नदी की धारा को मोड़कर जल संग्रहण के लिए दो सुरंगें बनाई जा रही हैं। बांध निर्माण कार्य प्रगति पर है। इसके पूर्ण होते ही पनियाबोर, पस्तोला, उड़वा और हैड़ाखान ग्राम पंचायतों के अंतर्गत आने वाले छह राजस्व गांव जलाशय क्षेत्र में आ जाएंगे। इस कारण इन गांवों के खेत, मकान, धार्मिक स्थल और संस्कृतियों सहित समूचा जीवन जलमग्न हो जाएगा।
विस्थापन के तहत इन 213 परिवारों को उधमसिंहनगर जनपद के किच्छा क्षेत्र अंतर्गत प्राग फार्म में पुनर्वासित किया जाना है। इसके लिए भूमि आवंटन की प्रक्रिया प्रारंभ हो चुकी है और अनेक परिवारों को स्थान आवंटित भी किया जा चुका है। पुनर्वास के साथ ही गांवों की पहचान, सामाजिक ताना-बाना और स्थानीय परंपराएं इतिहास बन जाएंगी।
बुजुर्गों को अपने गांव से अंतिम मतदान, युवाओं के मन में मिश्रित भावनाएं
मरकुडिया गांव के बुजुर्ग दीवान सिंह संभल और केसरी देवी ने बताया कि उन्होंने जीवन भर अपने गांव के मतदान केंद्र पर जाकर ही अपने मताधिकार का प्रयोग किया। अब जब गांव विस्थापन की ओर अग्रसर है, तो यह अंतिम बार अपने गांव की पंचायत के लिए मत डालने का अवसर है।
वहीं पहली बार मतदान करने जा रहे युवा पंकज ने बताया कि वह अपने अधिकार के प्रति जागरूक तो हैं, परंतु अपने खेत, बचपन की स्मृतियों और गांव की गलियों को छोड़ने का गहरा दुःख भी मन में है।
विकास से विरोध नहीं, लेकिन जड़ों से बिछड़ने की टीस भी गहरी
ग्रामीणों का कहना है कि वे विकास का विरोध नहीं करते। जल विद्युत उत्पादन, पेयजल व सिंचाई के उद्देश्य से प्रस्तावित इस परियोजना से राज्य को लाभ अवश्य होगा, लेकिन पुश्तैनी भूमि और विरासत से जबरन उखड़ने का भावनात्मक आघात कम नहीं है।
गांव के अनेक लोग जहां नई जगह बसने को लेकर सशंकित हैं, वहीं कुछ लोगों को चिंता है कि पुनर्वास स्थल पर सामाजिक संरचना, रोजगार व शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं समय पर उपलब्ध नहीं हो पाईं तो उनकी पीढ़ियों को संघर्ष का सामना करना पड़ेगा।
पुनर्वास के बीच चुनाव ने फिर जगाई लोकतंत्र की भावना (Last Panchayat election for Jamrani Dam Villages)
इन परिस्थितियों में पंचायत चुनाव ने विस्थापित होने जा रहे लोगों में एक बार फिर लोकतंत्र के प्रति आस्था, सहभागिता और अपनी धरती से जुड़ाव का भाव जाग्रत किया है। यह चुनाव केवल प्रतिनिधियों को चुनने का नहीं, बल्कि अपनी भूमि, पहचान और संस्कारों को अलविदा कहने से पूर्व का एक भावुक अवसर बन गया है।
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