बड़ा मामला, लोकसभा अध्यक्ष को नहीं मिला निर्धारित प्रोटोकॉल, डीएम ने भी नहीं उठाया फोन, केंद्र तक पहुंचा मामला

- लोकसभा अध्यक्ष को प्रोटोकॉल न मिलना गंभीर मामला, डीएम देहरादून से स्पष्टीकरण तलब
- उत्तराखंड शासन ने लोकसभा सचिवालय व केंद्र सरकार की शिकायत पर की कार्रवाई (Lok Sabha Speaker didnot get Prescribed Protocol)
नवीन समाचार, देहरादून, 1 जुलाई 2025। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में 12 जून को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के दौरे के दौरान निर्धारित प्रोटोकॉल न दिए जाने और संपर्क की तमाम कोशिशों के बावजूद जिलाधिकारी देहरादून सविन बंसल द्वारा उनके स्टाफ के फ़ोन न उठाने की बड़ी घटना सामने आई है। यह घटना अब राजनीतिक व प्रशासनिक विवाद का कारण बन गई है। मामला केवल राज्य स्तर पर ही नहीं, बल्कि लोकसभा सचिवालय और भारत सरकार के कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय तक पहुंच गया है, जिन्होंने उत्तराखंड शासन से औपचारिक शिकायत की है।
शासन ने डीएम से मांगा लिखित स्पष्टीकरण, केंद्रीय मंत्रालय ने जताई चिंता
प्राप्त जानकारी के अनुसार लोकसभा सचिवालय ने उत्तराखंड शासन के प्रोटोकॉल विभाग को सूचित किया कि अध्यक्ष ओम बिरला के देहरादून दौरे के दौरान उन्हें राज्य सरकार की ओर से अपेक्षित सम्मान व व्यवस्थाएं नहीं दी गईं। इस पर प्रोटोकॉल विभाग ने जिलाधिकारी देहरादून को पत्र जारी कर पूरे प्रकरण पर लिखित रूप से स्थिति स्पष्ट करने के निर्देश दिए हैं।
बताया गया कि लोकसभा अध्यक्ष के दौरे से पहले और दौरान उनके कार्यालय द्वारा जिलाधिकारी से संपर्क की कोशिश की गई, लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला। इस संबंध में भारत सरकार के कार्मिक मंत्रालय ने भी 19 जून को पत्र जारी करते हुए चिंता जताई और राज्य सरकार को तत्काल ध्यान देने को कहा। मंत्रालय का मानना है कि यह केवल प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि उच्च संवैधानिक पद पर आसीन लोकसभा अध्यक्ष की गरिमा का उल्लंघन है।
विधानसभा में भी उठ चुका है अधिकारियों के व्यवहार का मुद्दा (Lok Sabha Speaker didnot get Prescribed Protocol)
यह प्रकरण राज्य में अधिकारियों के जनप्रतिनिधियों के प्रति व्यवहार पर वर्षों से उठते रहे प्रश्नों की एक और कड़ी बन गया है। उत्तराखंड विधानसभा में पूर्व में भी अनेक विधायक यह मुद्दा उठा चुके हैं कि अधिकारी उनके फ़ोन नहीं उठाते, न ही अपेक्षित शिष्टाचार का पालन करते हैं। अब जब यह व्यवहार लोकसभा अध्यक्ष जैसे संवैधानिक पद तक पहुंच गया है, तब शासन ने भी स्पष्ट कर दिया है कि प्रोटोकॉल नियमों के उल्लंघन को हल्के में नहीं लिया जाएगा।
शासन स्तर पर संकेत मिले हैं कि यदि जिलाधिकारी का उत्तर संतोषजनक नहीं पाया गया, तो उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही भी की जा सकती है। यह मामला राज्य के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों के व्यवहार और उत्तरदायित्वबोध पर भी गहन मंथन की आवश्यकता दर्शाता है।
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