नवीन समाचार, देहरादून, 7 अप्रैल 2023। (Uttarakhand : Conspiracy to convert the land of sights into a land of shrines!) देवभूमि उत्तराखंड की पहचान पर्यटन प्रदेश के रूप में इसके सुंदर नजारों के लिए है। लेकिन लगता है कि इस ‘नजारों के प्रदेश’ को शडयंत्र पूर्वक ‘मजारों का प्रदेश’ बनाने की मुहिम चल रही है। हल्द्वानी में गत दिवस एक अधिवक्ता द्वारा नजूल की भूमि पर अपने घर के भूतल में अनाधिकृत तौर पर मस्जिद बनाने व इस पर हिंदू संगठनों द्वारा वहां नमाज पढ़ा रहे इमाम को थप्पड़ मारने की घटना के बाद एक बार फिर यह मामला राष्ट्रीय मीडिया में छा गया है। ‘आज तक’ ने इस पर एक विशेष रिपोर्ट प्रसारित की है। यह भी पढ़ें : हल्द्वानी में हुए बवाल के मामले में नया मोड़, करीब 800 लोगों के विरुद्ध अभियोग दर्ज.
‘आज तक’ की इस ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदेश के प्राकृतिक सुंदरता के साथ ही वन्य जीवों की मौजूदगी वाले वन क्षेत्रों में अवैध अतिक्रमण करके तो यह मजारें शडयंत्रपूर्वक एक मुहिम के तहत बनाई ही जा रही हैं, मजारें बनाने के लिए राष्ट्रीय महत्व के वन्य जीव अभ्यारण्य, छावनी परिषद एवं पुल व बैराजों के आसपास के क्षेत्र को खास तौर पर निशाना बनाया जा रहा है। यह भी पढ़ें : एक ही रात में 26 अवैध मजार ध्वस्त, मजारों में नहीं मिला कोई मानव अवशेष…
बिन दफनाए बनाईं मज़ार
दिलचस्प बात यह भी है कि कई मजारों में किसी पीर-फकीर या आम व्यक्ति को भी नहीं दफनाया गया है, जबकि कई पीर-फकीरों के नाम पर एक से अधिक स्थानों पर मजारें बनाई गई हैं, जबकि एक व्यक्ति को एक ही जगह दफनाकर मजार बन सकती है। ऐसी सूचनाओं के बाद ही मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने आईएफएस के सम्मेलन में कहा था कि सख्ती से इन मजारों को तत्काल हटाने के निर्देश दिए थे, जिस पर छिटपुट कार्रवाई हो भी रही है। यह भी पढ़ें : हल्द्वानी में एक अवैध धार्मिक स्थल के विवाद के बाद धर्मगुरु को जड़ा गया थप्पड़, मध्य रात्रि के बाद तक चला हंगामा
उत्तराखंड में अब तक ऐसी एक हजार से ज्यादा मजारों को चिन्हित किया जा चुका है, जो वन विभाग या सरकार की दूसरी जमीनों पर अवैध कब्जा करके बनाई गई हैं। इधर उत्तराखंड सरकार ऐसी अवैध मजारों के शडयंत्र को ध्वस्त करने पर सक्रिय हुई है। अब तक 102 मजारों को सरकार द्वारा ध्वस्त किया भी जा चुका है। पिछले यानी मार्च माह में देहरादून जिले में देहरादून शहर से लगे वन क्षेत्र से 15, ऋषिकेश व कालसी वन प्रभाग की तिमली रेंज से एक-एक और चकराता क्षेत्र से 8 सहित कुल 26 अवैध रूप से बनी मजारों को एक ही रात में हटाया गया था। यह भी पढ़ें : हल्द्वानी में एक अवैध धार्मिक स्थल के विवाद के बाद धर्मगुरु को जड़ा गया थप्पड़, मध्य रात्रि के बाद तक चला हंगामा
इससे पहले दिसंबर माह में भी एक दर्जन अवैध मजारों को ध्वस्त किया गया। इसके बाद भी डाकपत्थर से कुल्हाल तक शक्तिनहर के किनारे करीब नौ सौ अवैध कब्जे हैं। दिलचस्प बात यह रही कि जब इन मजारों पर बुलडोजर चलाया गया और ध्वस्त की गई मजारों की जांच की गई तो मजारों में जो कब्र बनी हुई हैं, उनमें से कई में मृत व्यक्ति के अवशेष ही नहीं हैं। यह भी पढ़ें : नैनीताल: विद्यालय प्रबंधन के उत्पीड़न से कर्मचारी ने पिया सेनेटाइजर, विद्यालय कर्मचारी संघ ने दी आंदोलन की धमकी
इसका सीधा मतलब ये है कि, इन अवैध मजारों का निर्माण अपने मूल उद्देश्य के अनुसार किसी पीर-फकीर को दफनाने के लिए नहीं किया गया है। बल्कि इसका मकसद सरकारी जमीनों के साथ समाज के धार्मिक ढांचे पर भी अतिक्रमण करना और मजार की आड़ में अपने अन्य मंसूबों को पूरा करना है। यह भी पढ़ें : वाहन में मृत मिला दिल्ली निवासी चालक
कौन हैं अवैध मज़ार बनाने वाले
रिपोर्ट के अनुसार नैनीताल जनपद के विश्व प्रसिद्ध जिम कॉर्बेट पार्क में जहां आम लोगों के लिए अपनी जमीन पर भी निर्माण करने पर सख्ती है, दर्जनों की संख्या में अवैध रूप से मजारें बनाई गई हैं। रिपोर्ट में यह दावा भी किया गया है कि इसके पीछे पश्चिम यूपी से आए बरेलवी मुस्लिम शामिल हैं, जो वन विभाग की जमीनों पर मजारें बनाकर अपने कई तरह के हित साध रहे हैं। यह भी पढ़ें : उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने किया दर्जनों न्यायाधीशों के स्थानांतरण
रिपोर्ट के अनुसार इन मजारों के कर्ता-धर्ता नशेड़ी किस्म के लोग हैं, जो यहां स्मैक चरस का कारोबार करने वालों को संरक्षण देते हैं। ऐसा भी संभव है कि वह वन्य जीवों के शिकार व उनके अंगों की खरीद-फरोख्त में भी शामिल हों। इसके अलावा राज्य की ‘डेमोग्रैफी’ में बदलाव यानी अपनी आबादी बढ़ाना और भविष्य में कब्जा की गई जमीनों की खरीद-फरोख्त करना भी उनका मकसद हो सकता है। यह भी पढ़ें : पिछले कुछ घंटों में 2 बार डोली उत्तराखंड की धरती, आपने महसूस की ?
दिलचस्प बात यह भी है कि देवबंदी मुस्लिम पीर-बाबाओं की मजारों को नहीं मानते हैं। जबकि कई हिंदू एवं दूसरे गैर मुस्लिम लोगों को भी शडयंत्रकर्ताओं ने इन मजारों को आस्था का केंद्र बनाने के लिए अपने शडयंत्र में शामिल कर लिया है। यह भी पढ़ें : हनुमान जयंती पर हुआ भगवा ध्वज का आरोहण, चढ़ाया गया 51 किलो का लड्डू, जगह-जगह हुए अखंड रामायण, सुंदर कांड व हनुमान चालीसा के पाठ…
क्या होती हैं मस्जिद और मजार ?
मस्जिद का मतलब उस प्रार्थनास्थल से है, जहां मुसलमानों द्वारा इबादत की जाती है। जबकि मजार का संबंध उस स्थान से है, जहां किसी व्यक्ति की कब्र या समाधि होती है। मजार अरबी भाषा का एक शब्द है, जिसमें जा-र का मतलब होता है ‘किसी से मिलने के लिए जाना।’ आसान भाषा में समझा जाए तो मजार किसी सूफी संत या पीर बाबा की उस कब्र को कहते हैं, जहां लोग जियारत यानी उस जगह या समाधि के दर्शन करने करने के लिए आते हैं। यह भी पढ़ें : हल्द्वानी में एक अवैध धार्मिक स्थल के विवाद के बाद धर्मगुरु को जड़ा गया थप्पड़, मध्य रात्रि के बाद तक चला हंगामा
मजारों का ‘बिजनेस मॉडल’
इसके अलावा आजतक की टीम ने सबसे पहले नैनीताल जिले के रामनगर से अपनी जांच शुरू करने का दावा करते हुए बताया है कि यहां जिम कॉर्बेट पार्क के जंगलों की वन विभाग की जमीन पर कई मजारें बनी हुई हैं। इनमें से कुछ नईं तो कुछ 10 से 15 वर्षों में बनी हैं। ये मजारें देखने पर काफी विशाल भी नजर आती हैं। रिपोर्ट में मजारों के ‘बिजनेस मॉडल’ का जिक्र भी किया गया है। यह भी पढ़ें : दो पुलिस कर्मियों ने महिला से किया दुष्कर्म, इनमें से एक उम्रदराज और अब सेवानिवृत्त भी…
जिसके तहत सबसे पहले किसी सरकारी जमीन को चिन्हित करके वहां एक कब्र बना दी जाती है, और फिर उस नकली कब्र को मजार का रूप दे दिया जाता है और धीरे धीरे उसका इतना विस्तार कर दिया जाता है कि वो मजार किसी विशाल ढांचे में बदल जाती है। कुछ समय बाद यहां लोग आकर भी रहने लगते हैं। इनमें लगातार थोड़ा-थोड़ा कर निर्माण चलता रहता है। आगे जब किसी धार्मिक स्थल पर कार्रवाई की बात आती है तो नेता इस पर तुष्टिकरण की राजनीति शुरू कर देते हैं और लोगों से ये कहते हैं कि अगर उन्हें अपना धार्मिक स्थल बचाना है तो वो लोग उस नेता को वोट दें। यह भी पढ़ें : नैनीताल: माता-पिता घर में लड़ने में व्यस्त थे, तभी 10 साल का मासूम अकेले पहुंचा थाने, बोला-पुलिस अंकल…
एक पीर की 5-10 मजारें
‘आज तक’ ने अपनी ग्राउंड रिपोर्टिंग के आधार पर यह भी कहा है कि उत्तराखंड में एक-एक पीर बाबा की अलग-अलग जगहों पर 5 से 10 मजारें बनी हुई हैं। जैसे अल्मोड़ा में एक मुस्लिम पीर कालू सैयद बाबा की दरगाह या मजार है। लेकिन इन्हीं मुस्लिम पीर की मजारें नैनीताल, हल्द्वानी और रामनगर सहित कई दूसरे शहरों और जिलों में भी हैं। इस पर एक बड़ा सवाल उठाया गया है कि एक मुस्लिम पीर की कई जगहों पर कब्र या मजारें कैसे हो सकती है ? यह भी पढ़ें : नैनीताल: नगर में फिर चोरी…
पुलिस की खुफिया रिपोर्ट भी तैयार
इसी बात का जिक्र उत्तराखंड पुलिस की एक खुफिया जांच रिपोर्ट में किया गया है। इस रिपोर्ट में उन मजारों की जानकारी दी गई है, जिन्हें सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा करके बनाया गया। और इस रिपोर्ट के एक पन्ने पर इस अतिक्रमण की पूरी प्रक्रिया बताई गई है। इसके अलावा इसी रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि इन अवैध और नकली मजारों पर हर साल भीड़ जुटाई जाती है, ताकि प्रशासन इन अवैध मजारों के खिलाफ कोई कार्रवाई ना कर सके। देहरादून जिले में भी इस तरह की अवैध मजारें बनी हुई हैं, जिसकी एक सूची पुलिस ने तैयार की है। इन मजारों से उत्तराखंड के लोग अब इतना डर चुके हैं कि उन्होंने इस तरह से अपने इलाकों में तारें लगानी शुरू कर दी हैं, ताकि उनके क्षेत्र में भी कोई नई मजार ना बन जाए। यह भी पढ़ें : नैनीताल: विद्यालय प्रबंधन के उत्पीड़न से कर्मचारी ने पिया सेनेटाइजर, विद्यालय कर्मचारी संघ ने दी आंदोलन की धमकी
उत्तराखंड में सर्वाधिक तेजी से हुआ है ‘डेमोग्राफी’ में बदलाव
उल्लेखनीय है कि भारत के जिन दो राज्यों में मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ी है, उनमें असम के बाद उत्तराखंड दूसरे स्थान पर है। वर्ष 2001 से 2011 के बीच उत्तराखंड में मुसलमानों की आबादी में दो प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जबकि इसी समयावधि में हिन्दुओं की आबादी दो प्रतिशत कम हो गई है। पिछले एक दशक में भी डेमोग्राफी में यह बदीलाव निश्चित ही अधिक गति से हुआ है। यह भी पढ़ें : नैनीताल: माता-पिता घर में लड़ने में व्यस्त थे, तभी 10 साल का मासूम अकेले पहुंचा थाने, बोला-पुलिस अंकल….
रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2001 में उत्तराखंड की कुल आबादी 84 लाख थी। जिनमें 10 लाख मुसलमान थे। लेकिन आज उत्तराखंड की कुल आबादी 1 करोड़ 15 लाख है। जिनमें 16 लाख मुसलमान हैं। यहां गौर करने वाली बात ये है कि उत्तराखंड की आबादी में ये जो असंतुलन आया है, उसकी वजह से वहां अतिक्रमण बढ़ा है। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों हल्द्वानी में जब रेलवे अपनी जमीन से अवैध कब्जों को हटाना चाहता था। तो इस पर काफी राजनीति हुई थी और ये कहा गया था कि इस जमीन पर अतिक्रमण करने वाले ज्यादातर लोग एक विशेष समुदाय से हैं। इसीलिए यह कार्रवाई की जा रही है। इसी आधार पर यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी ले जाया गया था और सुुप्रीम कोर्ट ने भी हल्द्वानी में बुलडोजर चलाने पर रोक लगा दी थी। यह भी पढ़ें : नैनीताल: नगर में फिर चोरी…
सुप्रीम कोर्ट भी सख्त
सुप्रीम कोर्ट ने ही जुलाई 2021 में एक फैसला सुनाते हुए यह भी कहा था कि देश में वन विभाग की जमीन पर अवैध कब्जों को स्वीकार नहीं किया जा सकता और इन अवैध कब्जों को हटाने के लिए संबंधित विभाग और उस राज्य की सरकार को तुरंत और कठोर कार्रवाई करनी चाहिए। हालांकि इस कब्जे को लेकर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कहना है कि अवैध अतिक्रमण जहां भी होगा, उसे हम सख्ती से हटाएंगे। हमने सभी को कहा है कि ऐसी जगहों से खुद ही हटा लें, अन्यथा सरकार हटाएगी। यूनिफॉर्म सिविल कोड पर काफी काम हो गया है और हमारी कमेटी उस पर अंतिम मसौदे को तैयार करने के लिए आगे बढ़ रही है। इस पर कार्य अगले 2-3 महीनों में पूरा हो जाएगा। (डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य नवीन समाचार पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।