
स्वास्थ्य व काम का समाचार: ‘बिच्छू’ की हर्बल चाय पीजिए कोरोना को दूर भगाइये, चाहें तो हर माह एक लाख रुपए भी कमाइये….
नवीन समाचार, अल्मोड़ा, 01 दिसम्बर 2020। जी हां, अब तक झाड़ियों में उपेक्षित मानी जाने वाली व बहुधा दंड देने के लिए प्रयोग में लाए जाने के लिए अभिशप्त ‘बिच्छू’ घास (कंडाली) के बारे में सिद्ध हो गया है कि यह कोरोना भगाने में बेहद कारगर है। नवस्थापित सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा के जंतु विज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक एवं शोध प्रमुख डा. मुकेश सामन्त एवं शोधार्थी शोभा उप्रेती, सतीश पांडेय व ज्योति शंकर तथा राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान रायपुर के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के डा. अवनीश कुमार के संयुक्त शोध में बिच्छू घास में 23 ऐसे यौगिकों के खोज की गई है जो कोरोना विषाणु से लड़ने में काफी कारगर हैं। यह शोध स्विट्जरलैंड से प्रकाशित वैज्ञानिक शोध पत्रिका स्प्रिंगर नेचर के मॉलिक्यूलर डाइवर्सिटी में प्रकाशित भी हो गया है। वहीं यह चिंता भी नहीं कि बिच्छू घास से कोरोना को कैसे भगाया जाए। अल्मोड़ा जिले के ही एक युवा ने बिच्छू घास से हर्बल चाय तैयार कर ली है। यह हर्बल चाय कोरोना को भगाने के लिए बेहद कारगर साबित हो रही है। इसीलिए इसे है। जिसे अमेजॉन से भी ऑर्डर मिल रहे हैं।
डा.सामन्त ने बताया कि उन्होंने बिच्छू घास में पाए आने वाले 110 यौगिकों को मॉलिक्यूलर डॉकिंग विधि द्वारा स्क्रीनिंग की। जिसमें से 23 यौगिक ऐसे पाए गए जो मनुष्य के फेफड़ों में पाए जाने वाले एसीइ-2 रिसेप्टर से आबद्ध हो सकते हैं और कोरोना विषाणु के संक्रमण को रोक सकने में काफी कारगर सिद्ध हो सकते हैं। वर्तमान में इन यौगिकों को बिच्छू घास से निकालने का काम चल रहा है उसके बाद इन यौगिकों को लेकर क्लीनिकल ट्रायल भी किया जा सकता है।
बहुत फायदेमंद है बिच्छू घास
उल्लेखनीय है कि बिच्छू घास एक प्रकार का जंगली पौधा है, इसे छूने से करंट जैसा अनुभव होता है और शरीर में करीब 24 घंटों तक झनझनाहट होती है। यह पौधा उत्तराखंड के सभी पर्वतीय इलाकों में पाया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम Urtica dioica हैं। इस पौधे को कुमाऊ मंडल में सिसूंण व गढ़वाल मंडल में कंडाली के नाम से जाना जाता है इस पौधे से बिच्छू के डंक जैसा अनुभव होने के कारण ही इसे इसे बिच्छू घास के नाम से भी जाना जाता है! इस पौधे के पत्तांे एव तनांे पर सुई की तरह हल्के कांटे भी होते है। जहाँ लोग इस पौधे को छूने से डरते हैं, तो इसका प्रयोग दंड देने के लिए भी होता है, वहीं इस पौधे के कई मेडिसिनल फायदे भी है। पर्वतीय लोग परंपरागत तौर पर सर्दियों में इसकी गर्म तासीर को देखते हुए इसकी सब्जी खाते हैं। ‘मडुवे की रोटी के साथ सिसूंण का साग’ परंपरागत तौर पर पहाड़ वासियों का भोजन रहा है। पहाडों पर चढ़ते-उतरते अक्सर लग जाने वाली चोटों व मोच में भी बिच्छू घास छूने पर रामबांण की तरह असर करती है, और पुराने दर्दों को भी दूर कर देती है। बिच्छू घास में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए कई पोषक तत्व मौजूद हैं। इसका पर्वतीय लोगों को परंपरागत तौर पर पता है। बिच्छू घास में विटामिन ए और सी भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसलिए गाँव के बुजुर्ग सर्दी-खाँसी के साथ ही डायबिटीज, गठिया जैसे बीमारियों में भी में भी इसका इस्तेमाल करते हैं।
दान सिंह अमेजॉन पर बिच्छू घास की हर्बल चाय ‘माउंटेन टी’ बेचकर हर माह कमा रहे एक लाख रुपए
अल्मोड़ा जिले के नौबाड़ा गाँव के रहने वाले 30 वर्षीय दान सिंह रौतेला ने बिच्छू घास के जरिए पहाड़ के युवाओं के लिए स्वरोजगार की नई राह दिखाई है। पिछले छह वर्षों से दिल्ली मेट्रो के साथ ठेके पर काम कर रहे दान सिंह को देशव्यापी लॉकडाउन के कारण काम मिलना बंद हुआ तो वह गाँव लौट आए और यहां उन्हांेने बिच्छू घास से “माउंटेन टी” नाम से ‘हर्बल चाय’ तैयार कर अपने रोजगार का बड़ा जरिया बना लिया है। माउंटेन टी आज अमेजन पर 1000 रुपए प्रति किलोग्राम की भाव पर उपलब्ध है। दिल्ली, बिहार, राजस्थान, हिमाचल जैसे कई राज्यों से दान सिंह को इसके हर महीने 100 से अधिक ऑर्डर मिल रहे हैं और वह इससे हर महीने एक लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं।
दान सिंह बताते हैं, ‘गाँव के बुजुर्ग सर्दी-खाँसी में बिच्छू घास की चाय का प्रयोग करते थे। ऐसे में उन्होंने बिच्छू घास में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने की क्षमता को देखकर इससे हर्बल टी बनाने का कार्य शुरू किया। कोरोना विषाणु से बचने के लिए बाजार में इस तरह के औषधीय उत्पादों की माँग बढ़ती देखकर बिच्छु घास से हर्बल टी बनाने का विचार आया।’ इसके बाद, मई 2020 में उन्होंने इस दिशा में काम करना शुरू कर दिया। वे बताते हैं सर्दी-खाँसी, बुखार आदि में बिच्छू घास की हर्बल चाय का असर 1-2 घंटे में ही देखने को मिल जाता हैं
जिससे उन्हें लगभग एक लाख रुपए की कमाई होती है।
ऐसे बनाते हैं बिच्छू घास से हर्बल चाय
दान सिंह बिच्छू घास के डंडों को काटकर तीन दिनों तक धूप में सूखाने के बाद इसे हाथों से मसल देते हैं, ताकि तने से पत्तियां अलग हो जाए। बिच्छू घास से एक किलो हर्बल टी बनाने में 30-30 ग्राम लेमनग्रास, तुलसी, तेज पत्ता, अदरक आदि भी मिलाया जाता है, जिससे चाय का स्वाद बढ़ने के साथ ही इसमें पोषक तत्व भी बढ़ जाते हैं। इसमें किसी मशीन की आवश्यकता भी नहीं पड़ती। केवल पैकिंग के लिए एक सीलिंग मशीन की जरूरत पड़ती है।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 12 मार्च 2020। शहर में नशे का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है। अच्छे घरों के बच्चे भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। बृहस्पतिवार पूर्वाह्न 11 बजे के लगभग नगर के विमल कुँज से कालाढूंगी जाने वाले पैदल मार्ग पर कुछ छोट छोटे बच्चों के सिगरेट पीने की सूचना पर अयारपाटा वार्ड के सभासद मनोज साह जगाती ने छापा मारा। श्री जगाती ने बताया कि वहां 4 बच्चे सिगरेट में चरस भरते पाए गए। बच्चों की उम्र 14 से 17 थी। इन बच्चों को शरीर मे झनझनाहट पैदा करने वाली विच्छू घास लगाई गई, और आगे से नशा न करने की सलाह दी गई।उल्लेखनीय है कि सभासद जगाती काफी समय से हर तरह के नशे के खिलाफ अभियान चलाए हुए हैं
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-स्मैक के नशे, स्थानीय लोगों को उनका हक दिलाने के मुद्दे पर जुटे

नवीन समाचार, नैनीताल, 29 दिसंबर 2019। जिला व मंडल मुख्यालय में समय एक बार पुनः समय करवट लेता नजर आ रहा है। यहां स्थानीय लोग खुद को ‘हम पहाड़ी’ कहते हुए ‘मिशन पहाड़’ पर निकल पड़े हैं। इन लोगों में नगर के पत्रकार, चिकित्सक, सामाजिक कार्यकर्ता व विभिन्न राजनीतिक दलों से जुडे़ लोग अपने राजनीतिक, धार्मिक-जातीय-क्षेत्रीय विभेद त्यागकर जुटे हैं। उनका कहना है, वे स्मैक के नशे की विकराल हो चुकी सहित अन्य समस्याओं को लेकर पहाड़ के लोगों के हित के लिए एकजुट हुए हैं। पहले से लोगों को समझा कर सुधारेंगे, और जो नहीं सुधरे तो उसे बिच्छू घास लगाकर कड़ा दंड देने से भी नहीं हिचकेंगे।
नगर के पत्रकार कमल जगाती ने बताया कि उनके मन में काफी समय से स्मैक एवं स्थानीय लोगों के हितों पर हो रहे कुठाराघात को लेकर उद्वेग चल रहा था। उन्होंने सौरभ रावत नाम के युवक से यह बात साझा की तो वे भी उनके साथ अभियान में जुड़ गए। इसके बाद तो सभासद मनोज साह जगाती, चंदन जोशी, धीरज बिष्ट, कैलाश अधिकारी, डा. सरस्वती खेतवाल, डा. एमएस दुग्ताल, डा. केएस धामी, मनोचिकित्सक डा. पांडे सहित लोग अभियान से जुड़ते ही चले गए। विगत चार दिसंबर से शुरू हुए इस अभियान के ह्वाट्सएप ग्रुप में वर्तमान में 156 सक्रिय लोग जुड़ चुके हैं, जिनमें से 80 लोग हमेशा, किसी भी समय किसी भी समस्या के समाधान के लिए सक्रिय रहते हैं। संस्था में एक ऐसा युवक भी शामिल है, जो 4 वर्ष से स्मैक का आदी था, और अब संस्था की पहल पर स्मैक को छोड़कर स्वयं इसके खिलाफ अभियान से जुड़ गया है।
रविवार को मिशन पहाड़ से जुड़े लोगों-चिकित्सकों ने बीडी पांडे जिला चिकित्सालय में लोगों को स्मैक की विभीषिका के बारे में दावा किया कि शहर में 70 फीसद बच्चों स्मैक ने जकड़ लिया है। साथ ही कई बच्चे फेवीबांड जैसे एड्हीसिव्स का सूंघ कर नशा कर रहे हैं। शहर में कई ऐसे लोग भी हैं जो बच्चों को एड्हीविस सुंधा कर उनसे भीख मंगवाते हैं। ऐसे लोगों को संस्था के लोग बिच्छू लगा चुके हैं। इसके अलावा शहर में मनमानी कर रहे बाइक-टैक्सी चलाने वालों को भी समझाया है। जगाती ने कहा कि संस्था शहर में गलत तरीके से कार्य कर नगर के पर्यटन व्यवसाय को प्रदूषित कर रहे बाहरी लोगों को भी बाहर करने की पक्षधर है, ताकि शहर के मूल-ईमानदारी से काम करने वाले निवासी कार्य कर सकें और नगर की पर्यटन छवि भी बेहतर हो। उन्हें उनका हक वापस दिलाना भी संस्था का मकसद है। साथ ही संस्था का उद्देश्य संस्था के लोगों द्वारा आपस में छोटी-छोटी धनराशि मिलाकर पहाड़वासियों की छोटी-छोटी मदद करने का भी है। शीघ्र संस्था के लोगों की बैठक कर संस्था का ठीक से ढांचा एवं भविष्य की रूपरेखा बनायी जाएगी। उन्होंने कहा कि कई स्मैक के आदी युवा स्मैक छोड़ना चाहते हैं, परंतु स्मैक तस्कर उन पर दबाव बनाए हुए हैं। संस्था स्मैक तस्करों के दबाव के आगे ऐसे युवाओं के साथ हर तरह से खड़ी होगी।