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November 13, 2025

उत्तराखंड उच्च न्यायालय की बड़ी टिप्पणी— अधिकारी खुद को न्यायाधीश न समझें

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उच्च शिक्षा विभाग की कार्रवाई पर न्यायालय की रोक, प्रो. रमेश सिंह व उनकी पत्नी के पिथौरागढ़ स्थानांतरण और जांच पर भी लगी रोक, उच्चाधिकारी ने आदेश न मानने पर की थी कार्रवाई, न्यायालय ने अनु सचिव व जांच अधिकारी की भूमिका पर की कठोर टिप्पणी, अगली सुनवाई 11 जून को

नवीन समाचार, नैनीताल, 23 मई 2025 (Officers Should not Consider Themselves Judge-HC)पिथौरागढ़ पीजी कॉलेज यानी राजकीय महाविद्यालय में जबरन संबद्ध किए गए उत्तरकाशी राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रमेश सिंह व उनकी पत्नी को उत्तराखंड उच्च न्यायालय से बड़ी राहत मिली है। न्यायालय ने न केवल स्थानांतरण आदेश पर रोक लगा दी है, बल्कि उनके विरुद्ध चल रही विभागीय जांच की कार्रवाई पर भी रोक लगा दी है। साथ ही, न्यायालय ने उच्च शिक्षा विभाग के अनु सचिव और जांच अधिकारी को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा है “अधिकारी स्वयं को न्यायाधीश न समझें।”

पृष्ठभूमि और विवाद का कारण

(Officers Should not Consider Themselves Judge-HC)इस मामले में याचिकाकर्ता डॉ. रमेश सिंह व उनकी पत्नी, दोनों उत्तरकाशी के रामचंद्र उनियाल राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं। उन्होंने न्यायालय में बताया कि उच्च शिक्षा विभाग ने डॉ. भीमराव अंबेडकर जयंती (14 अप्रैल) के दिन कॉलेजों को खोले रखने और कार्यक्रम आयोजित करने के निर्देश जारी किए थे। परंतु महाविद्यालय की प्रभारी प्रधानाचार्य मधु थपलियाल ने यह कार्यक्रम 12 अप्रैल को आयोजित करने का आदेश दिया, जिसका उन्होंने विरोध किया।

आरोप है कि इस विरोध के परिणामस्वरूप प्रभारी प्रधानाचार्य ने दो वर्ष पुराने एक झूठे यौन शोषण के प्रकरण का सहारा लेकर प्रो. रमेश सिंह को जबरन दीर्घकालिक अवकाश पर भेज दिया। जबकि इस मामले में न तो कोई शिकायत थीऔर न ही कोई प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

न्यायालय की पहली और दूसरी सुनवाई में हस्तक्षेप

प्रो. रमेश सिंह ने इस आदेश को नैनीताल उच्च न्यायालय में चुनौती दी, जिस पर पहले ही न्यायालय ने कॉलेज के आदेश पर रोक लगा दी थी। किंतु उसके बाद 16 अप्रैल को उच्च शिक्षा विभाग के अनु सचिव द्वारा एक नया आदेश जारी कर प्रो. रमेश सिंह और उनकी पत्नी को पिथौरागढ़ के लक्ष्मण सिंह महर राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में सम्बद्ध कर दिया।

इस आदेश को भी प्रो. सिंह ने पुनः न्यायालय में चुनौती दी। शुक्रवार, 23 मई को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने इस पर सुनवाई करते हुए सम्बद्धता आदेश व विभागीय जांच दोनों पर रोक लगा दी।

न्यायालय की सख्ती, अधिकारियों को चेतावनी (Officers Should not Consider Themselves Judge-HC)

सुनवाई के दौरान न्यायालय ने मौखिक टिप्पणी में स्पष्ट रूप से कहा कि “कोई अधिकारी स्वयं को न्यायाधीश समझने की भूल न करे।” न्यायालय ने जांच अधिकारी व अनु सचिव की भूमिका को अनुचित बताते हुए कठोर लहजा अपनाया।

अब इस मामले की अगली सुनवाई 11 जून 2025 को नियत की गई है। तब तक यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश न्यायालय द्वारा जारी किए गए हैं। (Officers Should not Consider Themselves Judge-HC)

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