विश्व व भारत में रेडियो-टेलीविज़न का इतिहास तथा कार्यप्रणाली
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल। जब से मानव पृथ्वी पर आया है, तभी से वह स्वयं को भावनात्मक रूप से अकेला महसूस करता रहा है। प्रारम्भ में वह संकेतों या ध्वनि के माध्यम से अपनी बात दूसरों तक पहुँचाता रहा, समय बीतते उसने भाषा की खोज की और आसानी से अपनी बात कहने लगा। जैसे-जैसे मानव का विकास होता गया उसने परिवार बसाया, समाज का अंग बना। फिर उसकी दुनिया और बड़ी होती चली गई, और उसे अपनी बात ज्यादा दूर तक पहुँचाने की जरूरत पड़ने लगी।
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मनुष्य में अपनी आवाज को दूर तक पहुँचाने की चाह न जाने कब से रही है, और न जाने कब से लोग, बच्चे माचिस की डिब्बियों से धागा बांधकर आवाज को अधिक दूर पहुँचाने के लिए वॉकी-टोकी बनाने जैसे प्रयोग करते रहे हैं, अलबत्ता करीब 1200 वर्ष पूर्व नौवीं शताब्दी में पेरू के चान-चान के खंडहरों से ऐसे ‘चामू डिवाइस’ कहे जा रहे प्रयोग (जिसे दुनिया का सबसे पुराने फोन की संज्ञा दी गयी है) मिले भी हैं। इसके आगे 1439 में खोजे जा चुके छापेखानों से प्रकाशित हो रहे समाचार पत्रों के लिए दूर के समाचार प्राप्त करने की समस्या को दूर करने के लिए वैज्ञानिक आज से करीब दो शताब्दी पूर्व यानी 19वीं शताब्दी से पूर्व ही विद्युत् की शक्ति से समाचारों-संदेशों को दूर भेजने के प्रयास करने लगे थे।
तारयुक्त संचार :
रेडियो के आविष्कार की कहानी मूलतः ‘टेलीग्राफ’ के आविष्कार से शुरू हुई थी। सर्वप्रथम 1753 में स्कॉटलैंड के वैज्ञानिक डा. माडीसन ने तार से एक से दूसरे स्थान पर खबरें भेजने के प्रयास शुरू किये, जबकि 1838 में ब्रिटिश वैज्ञानिक रोनाल्ड ने तार से ख़बरें भेजने को संभव कर दिखाया। अलबत्ता तार यन्त्र का आविष्कार अमेरिकी वैज्ञानिक सैमुअल एफबी मार्श ने 1844 में वाशिंगटन और वौल्टीमोर के बीच तार से ख़बरें भेजने का सार्वजनिक प्रदर्शन करते हुए किया।
बेतार संचार :
सर्वप्रथम 1893 में, निकोला टेस्ला ने पहले सार्वजनिक रेडियो संचार का प्रदर्शन किया। एक साल बाद ही भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बसु/बोस ने भारत में रेडियो संचार में सफलता प्राप्त कर ली थी। वे भारत के पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने एक अमरीकन पेटेंट प्राप्त किया। कहते हैं कि बसु/बोस ने बोस (BOSE) नाम की एक कम्पनी भी स्थापित की थी, जो वर्तमान में ऑडियो सिस्टम व स्पीकर्स आदि की एक नामी अमेरिकी कम्पनी है। उन्हें रेडियो विज्ञान का पिता माना जाता है। इन्होंने बेतार के संकेत भेजने में असाधारण प्रगति की और सबसे पहले रेडियो संदेशों को पकड़ने के लिए अर्धचालकों का प्रयोग करना शुरु किया। बोस ने कोलकाता में नवम्बर 1894 (या 1895) में एक सार्वजनिक प्रदर्शन के दौरान बोस ने एक मिलीमीटर रेंज की माइक्रोवेव तरंग का उपयोग काफी दूरी पर स्थित बारूद को प्रज्वलित करने और घंटी बजाने में किया। उन्होंने एक बंगाली निबंध, ‘अदृश्य आलोक’ में लिखा था, “अदृश्य प्रकाश आसानी से ईंट की दीवारों, भवनों आदि के भीतर से जा सकती है, इसलिए तार की बिना प्रकाश के माध्यम से संदेश संचारित हो सकता है।” लेकिन अपनी खोजों से व्यावसायिक लाभ उठाने की जगह उन्होंने इन्हें सार्वजनिक रूप से प्रकाशित कर दिया ताकि अन्य शोधकर्त्ता इन पर आगे काम कर सकें। आगे रूस में पोपोव ने भी ऐसा ही एक प्रयोग किया।
रेडियो:
रेडियो के औपचारिक इतिहास पर निगाह डालें तो 1896 में प्रसिद्ध वैज्ञानिक इलेक्ट्रिकल इंजिनियर गुगलियेल्मो मार्कोनी ने पहली बार संदेश को दूर तक पहुँचाने का प्रयास करते-करते शब्दों को ध्वनि कोड का रूप दिया, जिन्हें मोर्स कोड की संज्ञा दी गयी। इस कोड के जरिए संदेश कुछ ही देर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचने लगे। उन्होंने विद्युत चुंबकीय तरंगो द्वारा दो मील की दूरी तक एक सन्देश भेजने में सफलता प्राप्त की थी, लिहाजा रेडियो के विकास में उनका नाम शुरुवात में लिया जाता है। उन्हें 2 जून 1896 को उन्हें वायरलेस का पेटेंट मिला। बस यहीं से आधुनिक रेडियो का जन्म हुआ। आगे उन्ही की मारकोनी कम्पनी द्वारा 23 फरवरी 1920 को (कहीं 1919 भी अंकित) में इंग्लैण्ड के चेम्बर्सफोर्ड में विश्व का पहला रेडियो प्रसारण का ट्रांसमीटर भी स्थापित किया था।
इससे पूर्व एक से अधिक व्यक्तियों को एक साथ संदेश भेजने या ब्रॉडकास्टिंग की शुरुआत 24 दिसम्बर 1906 की शाम कनाडाई वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेसेंडेन ने की। उन्होंने अपना वॉयलिन बजाया जिसके संगीत को अटलांटिक महासागर में तैर रहे तमाम जहाजों के रेडियो ऑपरेटरों ने अपने रेडियो सेट पर सुना, वह दुनिया में रेडियो प्रसारण की शुरुआत थी।
इस दौरान प्रथम विश्व युद्ध की वजह से रेडियो स्टेशन पर प्रतिबन्ध भी लगते रहे। 1917 में प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत के बाद किसी भी गैर फौज़ी के लिये रेडियो का प्रयोग निषिद्ध कर दिया गया।
आगे ‘ली द फोरेस्ट’ और ‘चार्ल्स हेरॉल्ड’ आदि ने रेडियो प्रसारण के प्रयोग करने शुरु किए। तब तक रेडियो का प्रयोग सिर्फ नौसेना तक ही सीमित था। 1918 में ली द फोरेस्ट ने न्यू यॉर्क के हाईब्रिज इलाके में दुनिया का पहला रेडियो स्टेशन शुरु किया। पर कुछ दिनों बाद ही पुलिस को ख़बर लग गई और रेडियो स्टेशन बंद करा दिया गया। एक साल बाद ली द फोरेस्ट ने 1919 में सैन फ्रैंसिस्को में एक और रेडियो स्टेशन शुरु कर दिया।
नवंबर 1920 में नौसेना के रेडियो विभाग में काम कर चुके फ्रैंक कॉनार्ड को दुनिया में पहली बार क़ानूनी तौर पर रेडियो स्टेशन शुरु करने की अनुमति मिली।
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान रेडियो का वास्तविक विकास हुआ और 1920 में अमेरिका ने रेडियो पर संगीत कार्यक्रमों का मजा लेना शुरू कर दिया था। 1921 में यूरोप में रेडियो प्रसारण शुरू हो गया। कुछ ही सालों में देखते ही देखते दुनिया भर में सैकड़ों रेडियो स्टेशनों ने काम करना शुरु कर दिया। 1923 के मध्य तक अमेरिका में करीब 450 रेडियो स्टेशन स्थापित हो चुके थे।
रेडियो में विज्ञापन की शुरुआत 1923 में हुई। इसके बाद ब्रिटेन में बीबीसी और अमरीका में सीबीएस और एनबीसी जैसे सरकारी रेडियो स्टेशनों की शुरुआत हुई।
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भारत में रेडियो:
रेडियो को भारत आने में अधिक समय नहीं लगा। यहाँ रेडियो का प्रसारण पहली बार एक छोटे मारकोनी ट्रांसमीटर के जरिए नवम्बर 1923 में पहले कोलकाता में ‘बंगाल रेडियो क्लब’ को प्रसारण की अनुमति मिली। आगे जून 1924 में टाइम्स ऑफ़ इंडिया व डाक व तार विभाग के संयुक्त प्रयास से मुंबई के बोम्बे रेडियो क्लब द्वारा प्रसारण शुरू किया गया। आगे मद्रास प्रेसीडेन्सी रेडियो क्लब मई 1924 में प्रसारण का अधिकार पाने में सफल रहा, और 31 जुलाई 1924 को यह क्लब अपने सदस्यों के लिए हल्के-फुल्के मनोरंजक कार्यक्रम प्रस्तुत करने लगा।
इन सभी के पास मारकोनी कम्पनी के छोटे ट्रांसमीटर थे जो बहुत थोड़ी दूरी तक प्रसारण कर सकते थे। कालान्तर में 1 मार्च 1926 में एक एग्रीमेंट के तहत ‘इंडियन ब्रॉडकॉस्टिंग कंपनी’ को रेडियो स्टेशन शुरू करने अनुमति मिली। 31 मार्च 1926 को इंडियन ब्राडकांस्टिग कम्पनी पंजीकृत हुई। इस कम्पनी का पहला केन्द्र 23 जुलाई 1927 को बम्बई में अस्तित्व में आया। जब मुंबई में पहले रेडियो स्टेशन का तत्कालीन वाईसरॉय लार्ड इरविन ने उद्घाटन किया। इसके साथ ही भारत में रेडियो का विधिवत प्रसारण शुरू हुआ।
- इसी क्रम में 26 अगस्त, 1927 को कोलकाता स्टेशन की शुरुवात हुई तथा आगे कम्पनी ने देश के विभिन्न शहरों में अपने केन्द्र खोले।
- 1930 में इंडियन ब्रॉडकॉस्टिंग कंपनी दिवालिया हो गई, इस कारण सरकार ने इसे अपने नियंत्रण में ले लिया और ‘भारतीय प्रसारण सेवा’ (इन्डियन स्टेट ब्राडकास्टिंग सर्विस-ISBS) के नाम से उन्हें परिचालित करना आरंभ कर दिया। 5 मई 1932 को इसे सुचारू तरीके से चलाने के लिए ‘इन्डियन वायरलेस टेलीग्राफी एक्ट’ लागू किया।
- आगे आठ जून 1936 को इसका नाम बदलकर ‘ऑल इंडिया रेडियो’ (AIR) कर दिया गया। धीरे-धीरे करके भारत के प्रमुख शहरों में रेडियो केंद्र खोले गये। 1936 से ही देश में दैनिक समाचार बुलेटिनों का प्रसारण प्रारंभ हुआ।
- 1936 में दिल्ली, 1937 में पेशावर और लाहौर, 1938 में लखनऊ और मद्रास आदि नये केंद्र खोले गये। इस तरह रेडियो के केंद्रों को एक-एक कर बढ़ाया गया और साथ साथ कुछ और बदलाव होते रहे।
नेशनल कांग्रेस रेडियो :
- 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत होने पर देश में रेडियो के सारे लाइसेंस रद्द कर दिए गए और ट्रांसमीटरों को सरकार के पास जमा करने के आदेश दे दिए गए।
- कांग्रेस
के कुछ नेताओं के अनुरोध पर रेडियो इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त बॉम्बे टेक्निकल इंस्टीट्यूट बायकुला के प्रिंसिपल नरीमन प्रिंटर ने लाइसेंस रद्द होने की ख़बर सुनते ही उन्होंने अपने रेडियो ट्रांसमीटर को खोल दिया और उसके पुर्जे अलग-अलग जगह पर छुपा दिए। पहला ट्रांसमीटर 10 किलोवाट का था जिसे शीघ्र ही नरीमन प्रिंटर ने और सामान जोड़कर सौ किलोवाट का कर दिया। अंग्रेज़ पुलिस की नज़र से बचने के लिए ट्रांसमीटर को तीन महीने के भीतर ही सात अलग अलग स्थानों पर ले जाया गया। माइक जैसे कुछ सामान की कमी थी जो शिकागो रेडियो के मालिक नानक मोटवानी की दुकान से मिल गई और मुंबई के चौपाटी इलाक़े के सी व्यू बिल्डिंग से 27 अगस्त 1942 से उषा मेहता ने नरीमन प्रिंटर व अन्य लोगों ने ‘नेशनल कांग्रेस रेडियो’ का प्रसारण शुरु किया। इस रेडियो से अपने पहले प्रसारण में उद्घोषक उषा मेहता ने कहा, “41.78 मीटर पर एक अनजान जगह से यह नेशनल कांग्रेस रेडियो है।” (उल्लेखनीय है कि यह ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का दौर था। इस दौरान ही गांधी जी समेत तमाम नेता 9 अगस्त 1942 को गिरफ़्तार कर लिए गए थे और प्रेस पर पाबंदी लगा दी गई थी ।)
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- ‘नेशनल कांग्रेस रेडियो’ लगभग हर दिन अपनी जगह बदलता था, ताकि अंग्रेज अधिकारी उसे पकड़ न सकें। इस खुफिया रेडियो को डा. राममनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन सहित कई प्रमुख नेताओं ने सहयोग दिया। रेडियो पर महात्मा गांधी सहित देश के प्रमुख नेताओं के रिकार्ड किए गए संदेश बजाए जाते थे। इस गुप्त रेडियो से अल्मोड़ा की कुंती देवी के भी जुड़े होने की बात कही जाती है। एक जगह जिक्र आता है कि कुंती देवी ने गुप्त रेडियो पर आजादी का जयघोष किया था।
- इस रेडियो ने मेरठ में 300 सैनिकों के मारे जाने की ख़बर, कुछ महिलाओं के साथ अंग्रेज़ों के दुराचार जैसी ख़बरों का प्रसारण किया था जिसे समाचारपत्रों में सेंसर के कारण प्रकाशित नहीं किया गया था।
- तीन माह तक प्रसारण के बाद अंतत: अंग्रेज सरकार ने 12 नवम्बर 1942 को नरीमन प्रिंटर और उषा मेहता को गिरफ़्तार कर लिया और नेशनल कांग्रेस रेडियो की कहानी यहीं ख़त्म हो गई।
- इस दौरान ही नवंबर 1941 को सुभाष चंद्र बोस ने रेडियो जर्मनी से भारतवासियों के नाम संदेश देते हुए कहा था, “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा।”
- इसके बाद 1942 में “आज़ाद हिंद रेडियो” की स्थापना जर्मनी से हुई, जो आगे सिंगापुर और बाद में रंगून से भारतीयों के लिये समाचार प्रसारित करता रहा।
- 1946 में द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद AIR को सूचना व प्रसारण विभाग के अधीन कर दिया गया।
- 1947 में आजादी के समय भारत में कुल 6 रेडियो स्टेशन मुम्बई, कोलकाता, दिल्ली, चेन्नई, लखनऊ और चंडीगढ़ काम कर रहे थे।
- तीन अक्टूबर 1957 को विविध भारती का आगमन हुआ। वर्तमान में विविध भारती के 43 केन्द्र है।
- 1957 से ऑल इंडिया रेडियो को आकाशवाणी के नाम से भी पुकारा जाने लगा।
- आज रेडियो स्टेशन की संख्या 200 से अधिक हो गयी है। इस समय रेडियो की पहुंच 92 फीसदी भारतीय भू – भाग और 98 फीसदी भारतीय जनता तक है।
- 1959 में टेलीविजन के शुरुआत होने के पहले तक भारत में रेडियो ही सबसे अधिक पहुंच वाला सर्वसुलभ जनमाध्यम था।
- 1997 में आकाशवाणी को टेलीविज़न के साथ प्रसार भारती के अधीन कर दिया गया।
स्वतन्त्रता के पश्चात:
- स्वतन्त्रता के पश्चात से 16 नवम्बर 2006 तक रेडियो केवल सरकार के अधिकार में था।
- सरकारी संरक्षण में रेडियो का काफी प्रसार हुआ। 1947 में आकाशवाणी के पास छह रेडियो स्टेशन थे और उसकी पहुंच 11 प्रतिशत लोगों तक ही थी। आज आकाशवाणी के पास 420 रेडियो स्टेशन हैं और उसकी पहुंच 99.19 फ़ीसदी भारतीयों तक है।
- टेलीविज़न के आगमन के बाद शहरों में रेडियो के श्रोता कम होते गए, पर एफएम रेडियो के आगमन के बाद अब शहरों में भी रेडियो के श्रोता बढ़ने लगे हैं। पर गैरसरकारी रेडियो में अब भी समाचार या समसामयिक विषयों की चर्चा पर पाबंदी है।
- रेडियो का दुरुपयोग न हो इसलिए सरकार इसे चलाने की अनुमति आम जनता को नहीं देना चाहती थी। इस बीच आम जनता को रेडियो स्टेशन चलाने देने की अनुमति के लिए सरकार पर दबाव बढ़ता रहा है।
- 1977 में एफएम रेडियो का सर्वप्रथम प्रसारण मद्रास रेडियो से, और दूसरा महत्वपूर्ण प्रसारण 1992 में जालंधर रेडियो स्टेशन से हुआ। 1993 से निजी कम्पनियों को लीज पर ‘टाइम स्लॉट’ देने की शुरुवात हुई। 15 अगस्त 1993 में देश में मुम्बई से एफएम चैनल की शुरुवात हुई।
- 1995 में भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि रेडियो तरंगों पर सरकार का एकाधिकार नहीं है। वर्ष 2002 में एनडीए सरकार ने शिक्षण संस्थाओं को कैंपस रेडियो स्टेशन खोलने की अनुमति दी। 16 नवम्बर 2006 को यूपीए सरकार ने स्वयंसेवी संस्थाओं को रेडियो स्टेशन खोलने की इज़ाज़त दी है।
- इन रेडियो स्टेशनों में भी समाचार या समसामयिक विषयों की चर्चा पर पाबंदी है, पर इसे रेडियो जैसे जन माध्यम के लोकतंत्रीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम माना जा रहा है।
आकाशवाणी या ऑल इंडिया रेडियो :
आकाशवाणी या ऑल इंडिया रेडियो भारत की वर्तमान में 420 रेडियो स्टेशनों से युक्त एवं 92.00% क्षेत्रफल व 99.19% आबादी तक पहुँच रखने वाली 23 भाषाओं और 146 बोलियों में कार्यक्रम प्रसारित करने वाली समाचार सेवा है। इसकी शुरूआत 1920 के दशक में हुई। पहला कार्यक्रम 1923 में मुंबई के रेडियो क्लब द्वारा प्रसारित किया गया। इसके बाद 1927 में मुंबई और कोलकाता में निजी स्वामित्व वाले दो ट्रांसमीटरों से प्रसारण सेवा की स्थापना हुई। सन् 1930 में सरकार ने इन ट्रांसमीटरों को अपने नियंत्रण में ले लिया और भारतीय प्रसारण सेवा के नाम से उन्हें परिचालित करना आरंभ कर दिया। 1936 में इसका नाम बदलकर ऑल इंडिया रेडियो कर दिया और 1957 में आकाशवाणी के नाम से पुकारा जाने लगा।
स्वतंत्रता के समय भारत में 6 रेडियो स्टेशन और 18 ट्रांसमीटर थे, जिनसे 11% आबादी और देश का 2.5 % भाग आच्छादित होता था।
आकाशवाणी का महानिदेशालय प्रसार भारती के तहत प्रसार भारती अधिनियम, 1990 के नियमों से कार्य करता है। इसके कार्यपालक सदस्य निगम के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) के रूप में मंडल के नियंत्रण और पर्यवेक्षण हेतु कार्य करते हैं। सीईओ, सदस्य (वित्त) और सदस्य, (कार्मिक) प्रसार भारती मुख्यालय, द्वितीय तल, पीटीआई भवन, संसद मार्ग, नई दिल्ली-110001 से अपने कार्यों का निष्पादन करते हैं।
वित्त, प्रशासन और कार्मिकों से संबंधित सभी महत्वपूर्ण नीतिगत मामले सीईओ के पास भेजे जाते हैं और आवश्यकतानुसार सदस्य (वित्त) और सदस्य (कार्मिक) के माध्यम से मंडल को भेजे जाते हैं, ताकि सलाह, प्रस्तावों का कार्यान्वयन और उन पर निर्णय लिए जा सके। प्रसार भारती सचिवालय में कार्यरत विभिन्न विषयों के अधिकारी सीईओ, सदस्य (वित्त) और सदस्य (कार्मिक) को कार्रवाई, प्रचालन, योजना और नीति कार्यान्वयन के समेकन में सहायता देते हैं और साथ ही निगम के बजट, लेखा और सामान्य वित्तीय मामलों की देखभाल करते हैं। प्रसार भारती में मुख्य सतर्कता अधिकारी के नेतृत्व में मुख्यालय के एक एकीकृत सतर्कता व्यवस्था भी है।
आकाशवाणी के महानिदेशालय का नेतृत्व महानिदेशक करते हैं। वे सीईओ सदस्य (वित्त) और सदस्य (कार्मिक) के सहयोग से आकाशवाणी के दैनिक मामलों का निपटान करते हैं। आकाशवाणी में मोटे तौर पर पांच अलग अलग विंग हैं जो विशिष्ट गतिविधियों के लिए उत्तरदायी हैं जैसे कार्यक्रम, अभियांत्रिकी, प्रशासन, वित्त और समाचार।
समाचार सेवा प्रभाग 24 घण्टे कार्य करता है और यह स्वदेशी तथा बाह्य सेवाओं में 500 से अधिक समाचार बुलेटिन का प्रसारण करता है। ये बुलेटिन भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में होते हैं। इसका नेतृत्व महानिदेशक, समाचार सेवा करते हैं। यहां 44 क्षेत्रीय समाचार इकाइयां हैं।
समाचार सेवा प्रभाग के प्रसारणों को मोटे तौर पर समाचार बुलेटिन और ताजा मामलों के कार्यक्रमों में बांटा जा सकता है। इसमें नई दिल्ली स्थिति मुख्यालय से 52 घण्टों से अधिक की अवधि के लिए 82 भाषाओं/बोलियों (भारतीय और विदेशी) में 500 से अधिक समाचार बुलेटिन और देश भर में 44 क्षेत्रीय समाचार इकाइयों द्वारा प्रसारण किया जाता है। ये समाचार बुलेटिन प्राथमिक, एफएम और आकाशवाणी के डीटीएच चैनलों पर प्रसारित किए जाते हैं। इस समाचार प्रसारण में भारतीय संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल 22 आधिकारिक भाषाओं और 18 विदेशी भाषाओं के अलावा अन्य भाषाओं/बोलियों में किया जाने वाला प्रसारण शामिल है। घरेलू सेवा में दिल्ली से 89 समाचार बुलेटिन प्रसारित किए जाते हैं। ये समाचार बुलेटिन एफएम गोल्ड पर प्रत्येक घण्टे प्रसारित किए जाते हैं। क्षेत्रीय समाचार इकाइयों द्वारा प्राथमिक चैनल, एफएम और विदेशी सेवा पर प्रतिदिन 67 भाषाओं/बोलियों में 355 से अधिक समाचार बुलेटिन प्रसारित किए जाते हैं। एनएसडी और इसके आरएनयू द्वारा प्रसारण कुल 9 घण्टे की अवधि के लिए 26 भाषाओं (भारतीय और विदेशी) में 66 समाचार बुलेटिन एवं विदेशी सेवाओं का 13 मिनट का प्रसारण किया जाता है।
आकाशवाणी का विदेशी सेवा प्रभाग ‘वॉइस ऑफ द नेशन’ के रूप में भारत के विषय में दुनिया के लिए एक विश्वसनीय समाचार स्रोत है। दुनिया में भारत के बढ़ते महत्व को देखते हुए आने वाले समय में विदेशी प्रसारण के लिए इसकी एक महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। आकाशवाणी का विदेशी सेवा प्रभाग 16 विदेशी भाषाओं और 11 भारतीय भाषाओं में एक दिन में लगभग 100 से अधिक देशों में 72 घण्टे की अवधि का प्रसारण करता है।
आकाशवाणी विदेश सेवा प्रभाग का विश्व के विदेशी रेडियो नेटवर्क में ऊंचा स्थान है। यह 100 देशों के लिए 27 भाषाओं जिनमें 16 विदेशी तथा 11 भारतीय हैं, में रोजाना 70 घंटे 30 मिनट का प्रसारण करता है। आकाशावाणी अपने विदेशी प्रसारणों से विदेशी श्रोताओं को खुले समाज के रूप में भारत के विचारों और उपलब्धियों को उजागर कर भारत के संस्कार और भारतीय वस्तुओं से जोड़े रखता है।
विदेशी भाषाएं हैं: अरबी (3 घंटे 15 मिनट) बलूची (1 घंटा) बर्मी (1 घंटा मिनट) चीनी (1 घंटा 30 मिनट) दारी (i घंटा 45 मिनट) फ्रेंच (45 मिनट) इंडोशियन (1 घंटा) नेपाली (4 घंटे) फारसी (1 घंटा 45 मिनट) (पुश्तू (2 घंटे) रूसी (1 घंटा) सिंहला (2 घंटे 30 मिनट. स्वाहिली (1 घंटा) थाई (45 मिनट) तिब्बती (1 घंटे 15 मिनट) और अंग्रेजी (जीओएस) (8 घंटे 15 मिनट)
भारतीय भाषाएं हैं – हिन्दी (5 घंटे 15 मिनट), तमिल (5 घंटे 30 मिनट), तेलुगु (30 मिनट), बंगाली (6 घंटे 30 मिनट), गुजराती (30 मिनट), पंजाबी (2 घंटे), सिंधी (3 घंटे 36 मिनट), उर्दू (12 घंटे 15 मिनट), सरायकी (30 मिनट), मलयालम (1 घंटा), कन्नड़ (1 घंटा) यह प्रसारण मिश्रित भागीदारों के लिए किया जाता है और आम तौर पर इसमें समाचार बुलेटिन, कमेंटरी, ताजा मामले और भारतीय प्रेस की समीक्षा को शामिल किया जाता है। न्यूज़ रील पत्रिका कार्यक्रम के अलावा खेल और साहित्य पर कार्यक्रम, वार्ताएं और सामाजिक – आर्थिक, राजनैतिक, ऐतिहासिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक विषयों पर चर्चाएं, विकास संबंधी गतिविधियों पर कार्यक्रम, महत्वपूर्ण आयोजन और संस्थान, भारत के विविध क्षेत्रों से लोक और आधुनिक संगीत संपूर्ण कार्यक्रम प्रसारण का बड़ा हिस्सा बनाते हैं।
यहां 40 विविध भारतीय और वाणिज्यिक प्रसारण सेवा (सीबीएस) केन्द्रों के साथ 3 विशिष्ट वीबी केन्द्र हैं। सीबीएस से संबंधित कार्य दो विंग में किया जाता है अर्थात बिक्री और निर्माण। केन्द्रीय बिक्री इकाई के नाम से ज्ञात एक पृथक स्वतंत्र कार्यालय 15 मुख्य सीबीएस केन्द्रों के साथ प्रसारण समय के विपणन की देखभाल करता है। वाराणसी और कोच्चि में दो और विविध भारती केन्द्र हैं।
दिसम्बर, 2007 इस नेटवर्क में 231 स्टेशन और 373 ट्रांसमीटर हैं जो देश की 99.14% आबादी और 91.79% क्षेत्रफल तक पहुंचता है। जबकि अब श्रोता हिंदी और अंग्रेजी में अपने टेलीफोन पर आकाशवाणी की समाचार झलकें केवल एक विशिष्ट नंबर को डायल करके सुन सकते हैं, यह सेवा दुनिया के किसी भी भाग में और किसी भी समय उपलब्ध है। आकाशवाणी की ‘न्यूज ऑन फोन सर्विस’ वर्तमान में 14 स्थानों पर कार्यरत है, जो हैं दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, पटना, हैदराबाद, अहमदाबाद, जयपुर, बैंगलोर, तिरुवनंतपुरम, इम्फाल, लखनऊ, शिमला, गुवाहाटी और रायपुर। यह कोलकाता में भी कार्यान्वयन अधीन है।
आकाशवाणी में परामर्श और प्रसारण के क्षेत्र में संपूर्ण समाधान प्रदान करने के लिए इसकी एक वाणिज्यिक शाखा के रूप में ‘आकाशवाणी संसाधन’ को आरंभ किया गया। इसकी वर्तमान गतिविधियों में निम्नलिखित शामिल है।
आकाशवाणी इंदिरा गांधी मुक्त राष्ट्रीय विश्वविद्यालय को उनके 26 ज्ञान वाणी स्टेशनों के एफएम ट्रांसमीटरों हेतु देश के 40 स्थानों पर संपूर्ण समाधान प्रदान करता है।
गुलाम भारत के पहले गुप्त रेडियो स्टेशन के गुप्त दस्तावेज जारी, अल्मोड़ा की कुंती देवी ने इस पर किया था आज़ादी का जयघोष
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान क्रांतिकारियों ने 27 अगस्त से मुम्बई में भूमिगत रेडियो से खबरों का प्रसारण शुरू किया था, जिस से अंग्रेजों में खलबली मच गयी थी और खुफिया एजेंसी को इसका पता लगाने के लिए नाकों चने चबाने पड़े थे।
इस गुप्त रेडियो का इतिहास एक पुस्तक के रूप में सामने आया है. जिसमे 76 साल बाद गोपनीय दस्तावेजों के साथ इसकी पूरी रोमांचक गाथा लिखी गयी है। प्रकाशन विभाग द्वारा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सहयोग से प्रकाशित राष्ट्रीय कला केंद्र के अधिकारी गौतम चटर्जी द्वारा सम्पादित एवं राष्ट्रीय अभिलेखागार से प्राप्त दस्तावेजों पर आधारित पुस्तक ‘अनटोल्ड स्टोरीज आॅफ ब्राॅडकास्ट’ में इस गुप्त ‘कांग्रेस रेडियो’ से 71 दिन तक प्रसारित खबरों को पहली बार सार्वजानिक किया गया है। पुस्तक का लोकार्पण केन्द्रीय संस्कृति राज्य मंत्री डॉ महेश शर्मा एवं केंद्र के अध्यक्ष राम बहादुर राय ने किया।
पुस्तक के अनुसार यह आजाद रेडियो 27 अगस्त 1942 को 41.78 मीटर वेव लेंथ पर शुरू हुआ था और इसका नाम ‘कांग्रेस रेडियो’ था। इस रेडियो प्रख्यात समाजवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया के ही दिमाग की उपज थी। इस रेडियो की शुरुआत ‘हमारा हिंदुस्तान’ गीत से होती थी और अंत में ‘वन्दे मातरम्’ से इसका समापन होता था। यह रेडियो 71 दिनों तक अपना प्रसारण छह विभिन्न स्थानों से करता रहा ताकि पुलिस उसके ट्रांसमीटर को पकड़ न सके। मुम्बई के चौपाटी की सी व्यू इमारत से शुरू हुआ यह रेडियो बाद में रतन महल, अजित विला लक्ष्मी भवन पारेख वाड़ी तथा पैराडाइज बंगलो से संचालित होता रहा।
रेडियो को चलाने के काम में में सात लोगों की टीम थी जिनमें नाम विट्ठल दास माधवी खखर (20), उषा मेहता (22), विट्ठल भाई कांता भाई जावेरी (28) और चंद्रकांत बाबूभाई जावेरी थे। इसके अलावा उस जमाने के मशहूर शिकागो रेडियो के मुख्य अभियंता जगन्नाथ रघुनाथ ठाकुर इस रेडियो के निदेशक और वायरलेस विशेषज्ञ नानक धर चाँद मोटवानी और 40 वर्षीय नरीमन प्रिंटर थे जो पेशे से रेडियो इंजीनियर थे।
नेशनल कांग्रेस रेडियो के बारे में और कुछ बातें :
- 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध की शुरुआत होने पर देश में रेडियो के सारे लाइसेंस रद्द कर दिए गए और ट्रांसमीटरों को सरकार के पास जमा करने के आदेश दे दिए गए थे।
- इस पर कांग्रेस के कुछ नेताओं के अनुरोध पर रेडियो इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त बॉम्बे टेक्निकल इंस्टीट्यूट बायकुला के प्रिंसिपल नरीमन प्रिंटर ने लाइसेंस रद्द होने की ख़बर सुनते ही अपने रेडियो ट्रांसमीटर को खोल दिया और उसके पुर्जे अलग-अलग जगह पर छुपा दिए। पहला ट्रांसमीटर 10 किलोवाट का था जिसे शीघ्र ही नरीमन प्रिंटर ने और सामान जोड़कर सौ किलोवाट का कर दिया। अंग्रेज़ पुलिस की नज़र से बचने के लिए ट्रांसमीटर को तीन महीने के भीतर ही सात अलग अलग स्थानों पर ले जाया गया। माइक जैसे कुछ सामान की कमी थी जो शिकागो रेडियो के मालिक नानक मोटवानी की दुकान से मिल गई और मुंबई के चौपाटी इलाक़े के सी व्यू बिल्डिंग से 27 अगस्त 1942 से उषा मेहता ने नरीमन प्रिंटर व अन्य लोगों ने ‘नेशनल कांग्रेस रेडियो’ का प्रसारण शुरु किया। इस रेडियो से अपने पहले प्रसारण में उद्घोषक उषा मेहता ने कहा, “41.78 मीटर पर एक अनजान जगह से यह नेशनल कांग्रेस रेडियो है।” (उल्लेखनीय है कि यह ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का दौर था। इस दौरान ही गांधी जी समेत तमाम नेता 9 अगस्त 1942 को गिरफ़्तार कर लिए गए थे और प्रेस पर पाबंदी लगा दी गई थी ।)
- ‘नेशनल कांग्रेस रेडियो’ लगभग हर दिन अपनी जगह बदलता था, ताकि अंग्रेज अधिकारी उसे पकड़ न सकें। इस खुफिया रेडियो को डा. राममनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन सहित कई प्रमुख नेताओं ने सहयोग दिया। रेडियो पर महात्मा गांधी सहित देश के प्रमुख नेताओं के रिकार्ड किए गए संदेश बजाए जाते थे। इस गुप्त रेडियो से अल्मोड़ा की कुंती देवी के भी जुड़े होने की बात कही जाती है। एक जगह जिक्र आता है कि कुंती देवी ने इस गुप्त रेडियो पर आजादी का जयघोष किया था।
- इस रेडियो ने मेरठ में 300 सैनिकों के मारे जाने की ख़बर, कुछ महिलाओं के साथ अंग्रेज़ों के दुराचार जैसी ख़बरों का प्रसारण किया था जिसे समाचारपत्रों में सेंसर के कारण प्रकाशित नहीं किया गया था।
- तीन माह तक प्रसारण के बाद अंतत: अंग्रेज सरकार ने 12 नवम्बर 1942 को नरीमन प्रिंटर और उषा मेहता को गिरफ़्तार कर लिया और नेशनल कांग्रेस रेडियो की कहानी यहीं ख़त्म हो गई।
कुमाऊं मंडल का पहला एफएम रेडियो स्टेशन हल्द्वानी में होगा स्थापित
- 70 किमी के दायरे में 24 घंटे निरंतर सुने जा सकेंगे क्षेत्रीय भाषाओं के कार्यक्रम, 25 स्थानीय उद्घोषक भी रखे जायेंगे।
- सांसद कोश्यारी की पहल से मिली सफलता- कुमाऊं मंडल की व्यवसायिक गतिविधियों के साथ ही स्थानीय लोकसंस्कृति, लोक संगीत, लोकगीत के कलाकारों एवं कुमाऊनी भाषा को भी मिलेगा मंच।
- उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय हल्द्वानी का पहले से अपना कम्युनिटी एफएम रेडियो सिस्टम 91.2 पर, बागेश्वर में 2016 से चंडिका देवी में 5 किलोवाट क्षमता का और मुक्तेश्वर के पास कुमाऊँ वाणी कम्युनिटी रेडिओ भी संचालित है।
नैनीताल। हल्द्वानी महानगर में जल्द ही कुमाऊं मंडल के पहले एफएम एवं कुल मिलाकर अल्मोड़ा के बाद दूसरे रेडियो स्टेशन की स्थापना की जायेगी। डीएम दीपेन्द्र कुमार चौधरी ने बताया कि क्षेत्रीय सांसद एवं पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिह कोश्यारी के प्रयासो से हल्द्वानी में एफएम की स्थापना का रास्ता साफ हो गया है। इसकी स्थापना के लिए हल्द्वानी के तहसील परिसर में दूरदर्शन रिले टावर की 1560 वर्ग मीटर भूमि सूचना एवंप्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के दूरदर्शन एवं आकाशवाणी एकांश को स्थानान्तरित कर दी गई है। इस सन्दर्भ में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के कार्यक्रम अधिशासी मोहम्मद शकील ने उनसे वार्ता की तथा हल्द्वानी स्थित प्रस्तावित स्थल का निरीक्षण भी किया, और इसे उपयुक्त पाया। श्री चौधरी ने बताया कि इस केन्द्र से 70 किलोमीटर के दायरे मे कार्यक्रम प्रसारित होंगे। इस केंद्र द्वारा क्षेत्रीय भाषाओ मे कार्यक्रम तैयार किये जायेगे। यह केन्द्र 24 घन्टे निरन्तर कार्यक्रम एवं सूचनायें प्रसारित करेगा। इस केन्द्र पर कार्यक्रम प्रसारण के लिए 25 स्थानीय उद्घोषक भी रखे जायेगे। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस केन्द्र की स्थापना से कुमाऊं मंडल की व्यवसायिक गतिविधियों के साथ ही यहां की लोकसंस्कृति, लोक संगीत, लोकगीत के कलाकारों को भी मंच मिलेगा। साथ ही इस केन्द्र द्वारा कुमाऊनी भाषा के लोकगीतों की रिकार्डिग एवं प्रसारण का कार्य भी किया जायेगा। इस केंद्र द्वारा स्थानीय कलाकारो के साथ ही कवियों, लेखकों, साहित्यकारों को भी मंच मिलेगा वहीं जनपद के साथ ही पूरे कुमाऊं मंडल में संचालित विकास कार्यो की रिकार्डिग, वार्ताये एवं भेंट वार्ताये भी प्रसारित होगी तथा इस केन्द्र के अस्तित्व मे आ जाने से खेल गतिविधियो को भी बढावा मिलेगा। सूचना प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के प्रतिनिधि शकील अहमद ने बताया कि एफएम रेडियो केन्द्र के भवनों, स्टूडियो एवं प्रसारण कक्ष के निर्माण सम्बन्धी डीपीआर बनाकर जल्द ही सूचना प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार को साैंपी जायेगी। अभी तक जनपद नैनीताल के मैदानी क्षेत्र की गतिविधियो का प्रसारण आकाशवाणी रामपुर द्वारा तथा जनपद के पर्वतीय क्षेत्रो की गतिविधियो का प्रसारण आकाशवाणी अल्मोडा द्वारा किया जा रहा था। इस केंद्र के अस्तित्व मे आने पर यह केंद्र स्वतन्त्र रूप से अपने कार्यक्रमो का प्रोडेक्शन कर उनको प्रसारित करेगा। साथ ही केन्द्र से व्यवसायिक विज्ञापनो का प्रसारण भी किया जायेगा।
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रेडियो जनसंचार का एक श्रव्य माध्यम है, जिसमें नई तरह के उपकरणों व प्रणालियों का उपयोग होता है। रेडियो स्टेशन का मुख्य यंत्र ट्रांसमीटर कहलाता है, जिसके जरिए प्रस्तुतकर्ता की आवाज वायुमण्डल से होती हुई उपग्रह तक जाती है जो पुनः इसे वायु मण्डल में भेज देता है। सामान्यतः श्रोताओं के पास जो रेडियो-ट्रांजिस्टर होता है, उसे आम भाषा में रेडियो सेट कहा जाता है। वह वास्वत में एक रिसीवर है, जो ट्रांन्समीटर द्वारा भेजी गयी तरंगों को ग्रहण कर लेता है। प्रस्तुतकर्ता की आवाज इसी के माध्यम से श्रोताओं के कानों तक पहुँचती है।
तकनीकी कार्यप्रणाली: प्रत्येक रेडियो केन्द्र को एक आवृत्ति-फ्रीक्वेंसी दी जाती है, इसी आवृत्ति पर केन्द्र प्रसारण करता है। केन्द्र का ट्रांन्समीटर इसी फ्रीक्वेंसी के अनुसार कार्य करता है। केन्द्र के पास अपने स्टूडियो होते हैं, जिनमें कार्यक्रम तैयार एवं सम्पादित होते हैं। तथा प्रस्तुतकर्ता द्वारा प्रसारित किए जाते हैं। प्रस्तुतकर्ता अपने लिए निश्चित स्टूडियो से कार्यक्रम का प्रसारण करता है और श्रोताओं से सीधा वार्तालाप भी करता है। प्रस्तुतकर्ता के स्टूडियो में भिन्न प्रकार की मशीनें व कम्प्यूटर आदि यंत्र लगे होते हैं, जिनके माध्यम से वह प्रसारण की प्रक्रिया पूरी करता है। वह अपने सामने रखे माइक्रोफोन के माध्यम से श्रोताओं के सम्पर्क में होता है।
हमारी आवाज तकनीकी शब्दावली में आडियो आवृत्ति या ऑडियो फ्रीक्वेंसी कहलाती है। जो ध्वनि तरंगों के रूप में माइक्रोफोन तक 1160 किमी प्रति घंटा की गति से पहुँचती है। माइक्रोफोन इस ध्वनि को विद्युत तरंगों में परितर्तत कर देता है। भिन्न तकनीकी प्रक्रियाओं से गुजरती हुई ये विद्युत तरंगें ट्रांसमीटर तक पहुॅचती है जो इन्हें रेडियो तरंगों में बदल देता है। ट्रांसमीटर से ये तरंगें एन्टीना
तक पहुँचती हैं। एन्टीना द्वारा रेडियो तरंगें वायुमण्डल में सूर्य की किरणों की यानी 3 लाख किमी प्रति सेकेण्ड की गति से चलती हुई जाती है। सामान्यतया आदमी की आवाज वायुमण्डल में 1160 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार से चलती है। जब हम अपने ट्रांजिस्टर सेट की फ्रीक्वेंसी ट्यून करते है, तब वह रेडियो के ट्रांसमीटर से सम्बन्घ स्थापित कर लेता है। रेडियो तरंगें जब हमारे ट्रांजिस्टर सेट में आती हैं तब हमारा सेट उन्हें ध्वनि तरंगों में परिर्तत कर देता है। इस प्रकार प्रस्तुतकर्ता की आवाज हमारे कानों तक पहुँच जाती है। यह पूरी प्रक्रिया ही “रेडियो” कहलाती है।
रेडियो की भाषा:
रेडियो आम आदमी का संचार माध्यम है। समाज के सभी वर्ग किसी न किसी रूप में रेडियो से जुड़े है। एक छोटा बच्चा, उम्र के अंतिम पड़ाव पर पहुंचा एक वृद्ध, गॉव का एक अनपढ़ सीधा-साधा किसान, विश्वविद्यालय का बुद्धिजीवी प्राध्यापक, बोझा ढोने वाला एक मजदूर या शहर का बड़ा व्यवसायी, स्त्री-पुरूष, युवा, बच्चे, वृद्ध सभी रेडियो के बहुत करीब है। दूर-दराज के ऐसे गॉव और कस्बे जहाँ समाचार पत्र भी समय पर नहीं पहुंच पाते, रेडियो सबसे पहले वहां खबरें पहुंचा देता है। समुद्र की लहरों के बीच मछली पकड़ता मछुआरा हो या पहाड़ के जंगल में घास काटती घसियारी, रेडियो सबके करीब है।
इतना विस्तृत दायरा अपनाने के बाद प्रश्न यह उठता है कि रेडियो की भाषा क्या होनी चाहिए? वास्तव में रेडियो की भाषा उसके आम श्रोता की भाषा होती है। रेडियो वह भाषा बोलता है, जिसे उसके श्रोता आसानी से समझ और महसूस कर सकते हैं। यह भाषा सहज, स्पष्ट, हल्की, लचीली और प्रत्येक वर्ग की समझ में आने वाली होनी चाहिए। रेडियो की भाषा का क्षेत्र भी बहुत विशाल है, भिन्न कार्यक्रमों ले साथ यह बदलती जाती है। बच्चों के कार्यक्रम में यह बाल सुलभ हो जाती है तो ग्रामीण अंचलों के कार्यक्रमों में यह गॉव की बोली बन जाती है। बुद्धिजीवी वर्ग के लिए यह साहित्यिक श्रृंगारिक और उच्च स्तर का रूप धारण कर लेती है।
निष्कर्ष यह है कि रेडियो समाज के सभी वर्गो को साथ में लेकर चलता है। अतः उसकी भाषा बहुत सीधी, सरल तथा आम आदमी की भाषा होनी चाहिए। उसमें ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं होना चाहिए जो दृश्य या मुद्रित माध्यमों के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।
रेडियो प्रस्तुतिकरण:
दुनिया में जितने भी चमत्कार हुए हैं, उनमें सृष्टि सबसे बड़ा चमत्कार है। मनुष्य को बोलने की कला आती है, यही कला रेडियो प्रसारण की आत्मा है। रेडियो ध्वनि का प्रसारण करता है। इसमें शब्दों व ध्वनि के जरिये चित्र भी बनाये जाते हैं। किसी व्यक्ति के बोलने की कला उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व को प्रदर्शित करती है। अतः रेडियो के माध्यम से कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति की आवाज जितनी आकर्षक होगी, कार्यक्रम उतना ही प्रभावशाली होगा। एक अच्छे प्रस्तुतकर्ता में निम्न आवश्यक गुण होने चाहिए –
1. आवाज की पिच: पिच गले से निकलने वाली आडियो-आवृत्ति का तकनीकी नाम है। (जैसे- पतली आवाज, मोटी आवाज, भारी आवाज आदि)। पुरूषों में पिच की सीमा 80 आवृत्तिसे 150 आवृत्ति प्रति सेकण्ड होती है जबकि महिलाओं में यही सीमा 180 से 280 आवृत्ति प्रति सेकण्ड तक होती है। प्रत्येक व्यक्ति की आवाज की पिच अलग-अलग होती है। अच्छे प्रस्तुतकर्ता को अपनी वास्तविक पिच का ही प्रयोग करना चाहिए, दूसरों की नकल करने से अपनी स्वाभाविक आवाज में कमी आ जाती है।
2. आवाज का आयतन या वॉल्यूम: रेडियो प्रसारण में काम आने वाले माइक्रोफोन श्वांस लेने की प्रक्रिया को भी ग्रहण कर लेते है। अतः प्रस्तुतकर्ता को आवश्यकतानुसार धीमे या उच्च स्वर में बोलना चाहिए। बहुत धीमे या बहुत ऊँचा बोलने से आवाज या तो बहुत कम सुनाई देती है या फट जाती है।
3. बोलने की गति: भावावेश में व्यक्ति कभी-कभी बहुत जल्दी-जल्दी और कभी बहुत धीरे-धीरे बोलता है। हमारे कान की सुनने की क्षमता 140 से 180 शब्द प्रति मिनट होती है। माइक्रोफोन पर प्रति मिनट हमें कितने शब्द बोलने चाहिए इसका ज्ञान होना प्रस्तुतकर्ता के लिए अति आवश्यक है। यदि वह 180 शब्द प्रति मिनट में अधिक गति से बोलता है तो सुनने वाले की समझ में कुछ भी नही आयेगा। इसी प्रकार 120 शब्द प्रति मिनट से कम बोलने पर भी श्रोता असहज महसूस कर सकता है।
4. आकर्षक आवाज: आकर्षक आवाज का होना रेडियो प्रस्तुतकर्ता के लिए सबसे जरूरी गुण है। प्रस्तुतकर्ता की आकर्षक और प्रभावशाली आवाज कार्यक्रम में चार चाँद लगा देती है। बहुत से रेडियो प्रस्तोताओं को श्रेाता उनकी आवाज के लिए ही याद करते हैं।
5. भाषा पर पूर्ण अधिकार: प्रस्तुतकर्ता का अपनी भाषा और बोली पर पूर्ण अधिकार होना चाहिए। उसका उच्चारण भाषा की मानक दृष्टि के अनुरूप होना चाहिए। दोषपूर्ण उच्चारण प्रस्तुति के स्तर को गिरा देता है।
रेडियो लेखन:
रेडियो ध्वनि का माध्यम है। रेडियो सुनते समय श्रोता न तो चित्र देखता है, न ही शब्द पढ़ सकता है। इसलिए रेडियो से प्रसारित होने वाले कार्यक्रम को लिखने से पहले लेखक को ध्वनि की प्राकृतिक विशेषताओं के बारे में समझ लेना चाहिए। ध्वनि तरंगे मस्तिष्क में एक चित्र प्रस्तुत करती है, इसलिए रेडियो लेखन में शब्दों का चयन बहुत सोच समझ कर किया जाना चाहिए। रेडियो आलेख लिखने से पहले कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। जैसे-
1. रेडियो एक मास मीडिया है: रेडियो का संदेश असंख्य लोगों तक तथा लम्बी दूरी तक एक साथ पहुँचता है। अमीर, गरीब, अनपढ़, बुद्धिजीवी, बच्चों, युवा और वृद्ध, ग्रामीण व शहरी सभी वर्ग के श्रोता रेडियो से जुड़े होते हैं।
2. रेडियो शब्द-ध्वनि पैदा करता है: रेडियो भावनात्मक प्रसारण का माध्यम है।जब शब्द श्रोता के कानों में पड़ते है, वे मस्तिष्क में जाकर एक चित्र बनाते हैं। जब शब्दों के साथ उचित ध्वनि का प्रयोग होता है तब घटना का वास्तविक पहलू श्रोताओं की आँखों के सामने घूमने लगता है।
3. रेडियो से प्रसारित शब्द केवल एक ही बार सुने जाते हैंः जब तक किसी कार्यक्रम का पुनः प्रसारण नहीं होता तब तक श्रोता रेडियो से प्रसारित शब्दों को केवल एक ही बार सुन पाता है। इसलिए लेखन इस तरह का होना चाहिए कि श्रोता संदेश केवल सुने ही नहीं वरन उसे समझ भी लें। अति महत्वपूर्ण बात को एक से अधिक बार अलग-अलग रूप में लिखा जाना चाहिए।
4. रेडियो द्वारा प्रसारित संदेश खो जाते हैं: यदि लेखन और प्रस्तुति प्रसारण के स्तर की नहीं है तो ऐसे कार्यक्रम श्रोताओं की समझ से परे हो जाते हैं। टेलीविजन में चित्रों के जरिए दर्शक घटना को समझ सकता है किन्तु रेडियो में जब तक सुनकर श्रोता समझ नहीं पाता संदेश अधूरा रहता है।
5. रेडियो की एक पहचान है: रेडियों हमें हँसाता है, रूलाता है, भावनात्मक आवेश को उत्साहित करता है। मस्तिष्क में उभरते चित्र हमें सक्रिय होने पर मजबूर करते हैं। अतः रेडियो लेखन आम आदमी से जुड़ा होना चाहिए ताकि वह स्वयं को रेडियो प्रसारण का हिस्सा समझ सकें। अच्छा आलेख किसी भी माध्यम के लिए सशक्त भूमिका अदा करता है।
रेडियो का लेख तैयार करते समय हमें इस बात का विशेष ध्यान रखना होता है कि हम कानों के लिए लिख रहे हैं। रेडियो आलेख एक सजीव दृश्य चित्र प्रस्तुत करता है, जिसे आधार मानकर निर्माता कार्यक्रम तैयार करता है। रेडियों आलेख तैयार करते समय कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं का ध्यान में रखना जरूरी है। जो निम्नवत् हैं –
- भाषा और शब्दों का चयन उन श्रोताओं को ध्यान में रखकर करना चाहिए जिनके लिए हमें आलेख तैयार करना है।
- वाक्य छोटे और आसानी से समझ में आने वाले होने चाहिए।
- शब्दों का चयन क्षेत्र की संस्कृति को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
- लेखन इस प्रकार का हो ताकि उसे पढ़ते समय लयबद्ध किया जा सके।
- भाषा में आधुनिक प्रचलित शब्दों का प्रयोग बहुतायत से होना चाहिए।
- विषय-वस्तु के महत्वपूर्ण बिन्दुओं को पहले ही क्रमबद्ध कर लेना चाहिए, ताकि आलेख में पुनरावृत्ति से बचा जा सके।
- लिखते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि श्रोता पर उसका क्या प्रभाव होगा?
- लिखे हुये को बोलकर भी देखा जाना चाहिए ताकि यह समझा जा सके कि उसका प्रसारण होते समय उसका कैसा प्रभाव होगा।
- एक लेख में बहुत अधिक विचारों को समायोजित नहीं किया जाना चाहिए।
- आम आदमी की भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए।
- उपरोक्त, निम्नलिखित, पहले कहा गया आदि शब्द, वाक्यों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
रेडियो के कार्यक्रम:
रेडियो के अनेक उपयोग हैं। यह मनोरंजन का एक अच्छा साधन है। गीत-संगीत की प्रस्तुति भी इसके जरिए खूब होती रही है। फिल्मी गीतों को घर-घर तक और आम आदमी की जुबान तक पहुंचाने में रेडियो की अहम भूमिका रही है। लेकिन रेडियो की एक जनसंचार के साधन के तौर पर और एक सूचना के प्रसारण के माध्यम के तौर पर भी महत्वपूर्ण भूमिका है।
रेडियो श्रेाताओं के साथ बात करता है, यह उनके मन में गाता है। रेडियो की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह श्रोताओं की भाषा में बात करता है, उन्हीं की भाषा में सूचनाएं भेजता है, उन्हें शिक्षित करता है और उनका मनोरंजन करता है। यह श्रोताओं को कानों के माध्यम से वास्तविक दृश्य दिखाता है, जो मस्तिष्क में अमिट छाप छोड़ते है। मानव समाज की आवश्यकता, उत्सुकता एवं उसकी भावना को ध्यान में रखते हुए मानव को मानवता से जोड़ता है।
मुख्य उद्देश्य:
रेडियो एक उद्देश्यपरक संचार माध्यम है। मुख्य रूप से रेडियो कार्यक्रमों के तीन प्रमुख उद्देश्य माने जाते हैं। ये उद्देश्य हैं सूचना, शिक्षा और मनोरंजन।
इन्हीं तीन प्रमुख उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए रेडियो के भिन्न भिन्न कार्यक्रम तैयार किए जाते हैं।
ऽ सूचना: जीवन में घटित होने वाली ऐसी घटनाएं जो हमारी दिनचर्या से, हमारे भविष्य से जुड़ी होती हैं सूचना के अन्तर्गत आती हैं। सूचना भी अनेक प्रकार की होती हैं। यथा:-
(क) उद्घोषणा: कुछ सूचनाएं उद्घोषणा के द्वारा श्रोताओं तक पहुँचाई जाती है। जैसे मौसम सम्बन्धी जानकारी, बाजार मूल्य, आपातकालीन सूचनाएँ, रेल सम्बन्धी जानकारियाँ, विशेष उत्सव व मेले सम्बन्धी सूचनाएँ आदि।
(ख) संदेश: राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या अन्य उच्च अधिकारियों द्वारा समय-समय पर राष्ट्र की जनता के नाम सम्बोधन किया जाता है। स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रीय उत्सवों पर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्र को सम्बोधित किया जाता है। ऐसी सूचनाएं संदेश कहलाती हैं।
(ग) समाचार: विश्व, राष्ट्र, प्रदेश और आस-पड़ोस में होने वाली त्वरित घटनाएं भी रेडियो समाचारों के माध्यम से जनता तक सीधी पहुँचाई जाती हैं।
(घ) रेडियो रिपोर्ट: किसी विशेष समारोह या घटना के मुख्य अंश तैयार कर उसकी संक्षिप्त रिपोर्ट बनाई जाती है। इस रिपोर्ट की समारोह स्थल पर जाकर रिकार्डिंग की जाती हैं तथा इसे वावय ध्वन्यांकन की संज्ञा दी जाती है जिसे समारोह सम्पन्न होने के उपरान्त प्रसारित किया जाता है।
(ड.) आंखों देखी: किसी घटना विशेष की सूचना जो अतिशीघ्र प्रसारित की जाती है। जैसे किसी बड़ी दुर्घटना का होना या प्राकृतिक आपदा आदि के बारे में रिपोर्टर द्वारा स्वयं देखा हुआ संक्षिप्त विवरण। इस तरह की सूचनाएं रेडियो की लोकप्रियता को बढ़ाती हैं।
(च) समीक्षा: किसी घटना या कार्यवाही का संक्षिप्त ब्यौरा जैसे संसद या विधानसभा में हुई कार्यवाही की समीक्षा।
(छ) आँखों देखा हाल: यह एक लोकप्रिय सूचना की विधा है। विशेषकर खेल के मैदान से आँखों देखा हाल, किसी समारोह का आँखों देखा हाल आदि-आदि।
(ज) यात्रा वृतान्त: व्यक्तिगत तौर पर यात्रा का विवरण।
(झ) पत्रोत्तर, फोन-इन कार्यक्रम: इसमें श्रोता सीधे अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है जिसका उत्तर प्रतिनिधि द्वारा संतुष्टि प्रदान करते हुए दिया जाता है।
(ट) जिंगल: संगीत के साथ छोटे-छोटे वाक्य जो श्रोताओं को बाजार में आए सामान या उत्पाद के बारे में बताते है। इसी तरीके से क्रम में सरकार द्वारा भिन्न योजनाओं को भी श्रोताओं तक पहुँचाया जाता है।
शिक्षा: आधुनिक युग में यह अति आवश्यक हो गया है कि मनुष्य को अपने चारों ओर होने वाली घटनाओं में दुष्परिणामों के बारें में जागरूक किया जाए। पर्यावरण सम्बन्धी जागरूकता, स्वच्छता, सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक, स्वास्थ्य सम्बन्धी जागरूकता आदि-आदि ऐसी चीजें हैं जिनके बारे में रेडियो के माध्यम से समाज को शिक्षित किया जा सकता है। रेडियो इस प्रकार की शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके लिए वार्ता, भेट वार्ता, परिसंवाद और परिचर्चा आदि के जरिए श्रोताओं को जागरूक किया जाता है।
मनोरंजन: रेडियो वास्तव में ध्वनि का प्रसारण माध्यम है संगीत रेडियो की मुख्य प्रसारण वस्तु है। श्रोताओं की भावनाओं को आधार मान कर रेडियो से संगीत का प्रसारण किया जाता है।
संगीत: संगीत रेडियो द्वारा मनोरंजन का मुख्य श्रोत है। रेडियो से प्रसारित होने वाले संगीत को निम्नलिखित भागों में बॉटा जा सकता है।
1. शास्त्रीय संगीत: गायन व वादन
2. सुगम संगीत: भक्ति संगीत, गीत और गजल
3. लोक संगीत
4. जन जातीय संगीत
5. फिल्म संगीत
नाटक: रेडियो द्वारा होने वाले मनोरंजन का दूसरा साधन नाटक है। जो बहुत लोकप्रिय है। नाटक मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्धक भी होते हैं।
कहानी: कहानी रेडियो द्वारा साहित्यक कहानियों के साथ-साथ फिल्मों की कहानियां भी प्रसारित होती हैं। कहानी वास्तव में वार्ता की ही विधा है जो जानकारी और ज्ञान के साथ मनोरंजन का भी साधन है।
मुख्य विधाएं:
रेडियों से प्रसारित कार्यक्रम कई प्रकार के होते हैं। रेडियो के लिए श्रेष्ठ कार्यक्रमों की रचना करने के लिए निम्नलिखित तथ्य ध्यान में रखने आवश्यक हैं –
1. रेडियो मीडिया को जनहित के कार्यक्रमों, जनहितकारी नीतियों और जनोपयोगी कार्यक्रमों की अधिकाधिक कवरेज करनी चाहिए। विकास सम्बन्धी सूचनाओं के प्रचार प्रसार और तथ्यों सहित कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। जैसे- कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, विज्ञान एवं टैक्नोलॉजी आदि।
2. रेडियो के लिए युवा वर्ग से संबंधित कार्यक्रम तैयार करने चाहिए, जिनमें भिन्न क्षेत्रों में पैदा हो रहे रोजगार के अवसरों संबंधी सूचनाएं, शिक्षा और तकनीकी शिक्षा आदि की सूचनाएं शामिल हों।
3. कार्यक्रमों में अशिक्षित ग्रामीण जनता, अल्पसंख्यक समुदाय, महिलाओं और बच्चों सहित समाज के अन्य असुरक्षित और कमजोर वर्गो को उत्साहित करने वाले कारण उठाने चाहिए।
4. समाज के अक्षम लोगों जैसे नेत्रहीन, बधिर, मूक और अन्य विकलांग व्यक्तियों एंवं संस्थाओं द्वारा समाज के इस वर्ग की सेवा में किए जा रहे प्रयासों को प्रोत्साहित करने के प्रयत्न करने चाहिए। कुष्ठ रोग जैसी बीमारियों और उनके प्रतिरिोध को दूर किए जाने वाले अच्छे कार्यो को प्रचारित करने के प्रयास करने चाहिए।
5. असमानता और शोषण जैसी सामाजिक बुराईयों को दूर करने वाले उपयुक्त कार्यक्रम तैयार करने चाहिए। मुद्दों को भी रेडियो कार्यक्रमों का हिस्सा बनाया जाना चाहिए।
6. शुरू-शुरू में रेडियो सिर्फ मनोरंजन का माध्यम था। अतः गाना-बजाना ही इसका एकमात्र उद्देश्य था। धीरे-धीरे जब रेडियो ने अपने स्वरूप को बदला तो इसके कार्यक्रमों में निखार आने लगा। भारत में आकाशवाणी के रूप में रेडियो ने अपने कार्यक्रमों के लिए नए उद्देश्य तय किये। जब रेडियो कार्यक्रमों के लिए त्रिकोणात्मक ध्येय तय किया गया तो ज्ञान-विज्ञान के कार्यक्रम शुरू हुए इसी के बाद वार्ताओं, रूपकों, साक्षात्कारों तथा शब्दों की दूसरी विधाओं में कार्यक्रमों की आवश्यकता हुई। त्रिकोणात्मक ध्येय का दूसरा ध्येय था सूचनाएं प्रसारित करना। फलस्वरूप समाचारों का प्रसारण सुनिश्चित किया गया। तीसरा ध्येय मनोरंजन था। मनोरंजन के लिए गीत संगीत, नाटक के साथ-साथ झलकियों की प्रस्तुति सुनिश्चित की गयी।
रेडियो में प्रचलित विधाएं न केवल निश्चित हैं वरन् उनका एक विशेष महत्व भी है। वार्ता, भेटवार्ता, रूपक, दस्तावेजी रूपक, संगीत रूपक, ओपेरा, परिचर्चा, नाटक, संवाद आदि सभी विधाएं रेडियों की देन है। यद्यपि बाद में इन विधाओं को प्रिंट मीडिया और टेलीविजन ने भी अंगीकार कर लिया। लेकिन इन विधाओं को आधारभूत चेतना रेडियो ने ही दी है और रेडियो के माध्यम से ही ये पल्लवित हुई है।
वार्ता: वार्ता रेडियो की अति चर्चित और महत्वपूर्ण विधा है। किसी विषय विशेष पर लिखी जाने वाली जो सूचनात्मक और ज्ञानवर्धक रचना सीधी, सहज और स्पष्टभाषी हो वह वार्ता कहलाती हैं आजकल श्रोताओं को त्वरित ज्ञान की आवश्यकता रहती है। समय का अभाव रहता है। इसलिए वार्ता की समयावधि 6 मिनट से 9 मिनट के बीच ही रखी जाती है। वार्ता बिना किसी भूमिका के सीधे अपने विषय को लेकर चलती है। समय सीमित होने के कारण भूमिका को छोड़ दिया जाता है। विषय
को उचित ढंग से रूपायित कर निष्कर्ष तक पहुॅचा दिया जाता है। निष्कर्ष के बाद कोई उपदेशात्मक शब्द नही होते। विषय के अनुसार वार्ता को भिन्न भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है, जैसे –
1. सूचनात्मक वार्ता: विज्ञान, इतिहास, अर्थशास्त्र, खेल, ज्योतिषशास्त्र, खगोलशास्त्र आदि विषय इस प्रकार की वार्ताओं के विषय हो सकते हैं।
2. ज्ञानात्मक वार्ता: जब अनुभवी वैज्ञानिक, इतिहासकार, खगोलशास्त्री, अर्थशास्त्री आदि विवेचना प्रस्तुत करते हैं तब निश्चय ही वह मात्र सूचनाओं का संग्रह नही होता अपितु ये वार्ताएं श्रोताओं की तर्कशक्ति, सोच और विश्लेषण को भी प्रभावित करती हैं। ऐसी वार्ताओं को ज्ञानात्मक वार्ता कहा जाता है।
3. साहित्यिक वार्ता: जब किसी साहित्यिक विषय को अपनी विशेष शैली में वार्ताकार अपनी बात कहता है तो वह साहित्यिक वार्ता कहलाती है। इस वार्ता में साहित्यिक भाषा तथा सटीक शब्दों का चयन अनिवार्य शर्त है। इनकी भाषा सारगर्भित, सहज तथा सुगम होनी चाहिए।
4. व्यंग्यात्मक वार्ता: रेडियो की आचार संहिता के अनुसार किसी व्यक्ति, संगठन, समुदाय, धर्म या जाति पर सीधे प्रहार नहीं किया जा सकता। किन्तु परोक्ष में बिना नाम लिए व्यंग्यात्मक भाषा का इस्तेमाल किया जा सकता हैं। इसमें अक्सर सामाजिक वर्जनाओं, राजनैतिक फूहड़पन तथा पाखंड का पर्दाफाश करने के लिए कटाक्ष से भरे वाक्यों, व्यग्यों तथा मुहावरों आदि का भरपूर इस्तेमाल किया जाता है।
भेंटवार्ता: वार्ता के बाद रेडियो की दूसरी सबसे चर्चित विधा है भेंटवार्ता। किसी के साथ भेंटकर उससे की जाने वाली वार्ता को भेंटवार्ता कहते हैं। भेंटवार्ता दो व्यक्तियों का वार्तालाप होती है। एक व्यक्ति किसी विशेष क्षेत्र में अनुभवी विशेषज्ञ होता है और दूसरा व्यक्ति विशेषज्ञ से ज्ञान हासिल कर श्रोताओं तक पहुँचाता है। भेंट्रवार्ता के अनेक स्वरूप होते है, जैसे –
1. विषय विशेष पर: जब किसी विषय विशेष पर जानकारी हेतु किसी विशेषज्ञ जैसे-वैज्ञानिक, खगोलशास्त्री, साहित्यकार, खेल विशेषज्ञ, खेती किसानी का जानकार, डाक्टर आदि लोगों से बातचीत की जाती है। वार्ता में भेंट करने वाले व्यक्ति को भी विषय विशेष की जानकारी होनी चाहिए और उसे श्रोताओं की आवश्यकता को ध्यान में रखकर विशेषज्ञ से जानकारी हासिल करनी चाहिए।
चूंकि भेटकर्ता श्रोताओं का प्रतिनिधि होता है। अतः श्रोताओं के मन में उठने वाले प्रश्नों के बारे में उसे जानकारी होनी चाहिए ताकि वह श्रोताओं की मनःस्थिति को ध्यान में रखकर कम से कम समय में अधिक जानकारी प्राप्त कर सके।
2. व्यक्ति विशेष पर: जब किसी व्यक्ति को उसकी उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया गया हो, पुरस्कृत किया गया हो अथवा उसने किसी विशेष कार्य को पूर्ण किया हो। ऐसे विशेष व्यक्ति के जीवन के बारे में रेडियो के लिए भेंटवार्ता की जाती है, जिसका उद्देश्य प्रेरणादायक होता है। उच्च स्तर के खिलाड़ी, वैज्ञानिक, साहित्यकार, समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री या पद्मश्री, पदमभूषण आदि उपाधियों से अलंकृत आदि व्यक्तियों से इस तरह की भेंटवार्ता की जाती है।
3. स्थिति विशेष पर: अचानक आयी प्राकृतिक आपदा, सड़क, दुर्घटना भीषण अग्निकाण्ड महामारी आदि स्थितियों में इनका कारण, निदान और प्रशासनिक व्यवस्था, सावधानियों आदि के बारे में जानकारी पाने के लिए इस तरह की भेंटवार्ता की जाती हैं।
भेंटवार्ता के लिए वार्ताकार को कुछ तैयारियां करनी चाहिए ताकि भेंटवार्ता अच्छी बन सके।
परिसंवाद: जब एक ही विषय पर अलग-अलग प्रतिभागी अपनी राय रखें तो निश्चय ही बातचीत बहुआयामी हो जाती है। ऐसी बातचीत को परिसंवाद कहा जाता है। इसमें तीन या तीन से अधिक प्रतिभागी भाग लेते हैं। अक्सर किसी ज्वलंत समस्या, घटना या स्थिति आदि पर परिसंवाद रखे जाते हैं। इसमें राष्ट्रीय मुद्दों पर भी चर्चा होती है। उदाहरण स्वरूप भारत-पाक सम्बन्ध, परमाणु संधि, राष्ट्रपति विदेश यात्रा आदि। जिन विषयों पर जनता जानना चाहती है उनके ऐसी स्थिति में विशेषज्ञों को बुलाकर चर्चा कराई जाती है। ऐसी चर्चाओं में अक्सर विदेश नीति के जानकार, विशेषज्ञ, प्रोफेसर, रिटायर्ड राजनयिक, पत्रकारिता के अग्रणी सलाहकार, अन्वेषक आदि लोग प्रतिभागी हो सकते हैं।
परिसंवाद में राज्य स्तर पर चर्चित मुद्दों पर बात की जा सकती है। आतंकवाद, चुनाव प्रक्रिया, भ्रस्टाचार आदि विषय लिए जा सकते है। स्थानीय स्तर पर प्रोफेशनल टैक्स, वैट, भ्रूणहत्या, बढ़ते जुर्म आदि परिसंवाद के विषय हो सकते हैं।
परिसंवाद में विषय एक ही रहता है। सभी प्रतिभागी उस पर अपनी राय रखते हैं। संचालक उसको आगे बढ़ाता रहता है। परिसंवाद में रेडियो की आचार संहिता का भी पालन किया जाता है। संचालन को इसका ध्यान रखना पड़ता है। परिसंवाद में संचालक को रेडियो कार्य प्रणाली का जानकार होना चाहिए।
परिचर्चा: परिचर्चा में भी अनेक प्रतिभागियों में संवाद की ही स्थिति होती है परन्तु इसमें विषय विशेषज्ञों के बीच वाद-विवाद होता है, वहस होती है। प्रतिभागी अक्सर दो हिस्सों में बंट जाते है, पक्ष और विपक्ष। इसमें अक्सर चार प्रतिभागी और एक संचालक होता है। संचालक को विषय का जानकार होना चाहिए क्योंकि इस कार्यक्रम में तर्क और वितर्क के चलते बहस की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
परिचर्या की योजना बनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि प्रतिभागी अपने कार्यक्षेत्र में प्रवीण हों और अपनी बात कहने में सक्षम हों, अपना पक्ष सटीक तर्क के साथ रख सकें अन्यथा बहस एकांगी हो जाती है। परिचर्चा सुचारू रूप से चले और श्रोता ठीक प्रकार से सुन सकें और आवाज से प्रतिभागी को पहचान सकें, इसके लिए जरूरी हो जाता है कि प्रतिभागियों की आवाज आपस में मिलती न हों। बहस को शालीनता से आगे बढ़ाने के लिए जरूरी है कि पक्ष-प्रतिपक्ष के प्रतिभागी एक दूसरे को भी धैर्य से सुनें, बीच में ही एक दूसरे की बातों को न काटें, अन्यथा श्रोताओं को कुछ भी समझ में नहीं आयेगा।
परिचर्चा का विषय अक्सर विवादास्पद इसलिए होता है ताकि पक्ष अथवा विपक्ष में खुलकर बातचीत की जा सके और श्रोता दोनों स्थितियों को समझ सके। इसलिए परिचर्चा में संचालक की भूमिका बहुत अहम होती है, जो प्रतिभागियों को विषय वस्तु में बांध कर रखता है। परिचर्चा के लिए प्रतिभागियों का चयन निष्पक्ष होना चाहिए अन्यथा परिचर्चा के सफल होने में संदेह हो जाता है और कार्यक्रम अपने उद्देश्य से भटक जाता है।
परिसंवाद या परिचर्चा का संचालन करना भी एक कला है। संचालक तो रेडियो की आचार संहिता से पूर्ण रूप से परिचित होता है, किन्तु जिन प्रतिभागियों को आमंत्रित किया जाता है जरूरी नहीं कि उन्हें रेडियो के कायदे-कानून का पता हो। अतः संचालक को निम्नलिखित कुछ मुख्य बातों का ध्यान रखना चाहिए।
1. प्रतिभागियों को आमंत्रित करने से पहले उनके विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए।
2. रेडियो केन्द्र पर प्रतिभागी को अजनबीपन का एहसास न हो, इसके लिए परिचर्चा शुरू होने से पहले संचालक को सभी प्रतिभागियों के साथ अनौपचारिक बातचीत करनी चाहिए।
3. सभी प्रतिभागियों का एक-दूसरे से धिपूर्वक परिचय करा देना चाहिए।
4. चर्चा के विषय के बारे में प्रतिभागियों के साथ मिलकर कार्यक्रम प्रारम्भ होने से पूर्व बातचीत कर लेनी चाहिए।
5. प्रतिभागियों को रेडियो की आचार संहिता से अवगत करा देना चाहिए।
6. परिचर्चा आरम्भ होने के उपरान्त यदि कोई प्रतिभागी दायरे के बाहर आता है तो संचालक का कर्त्तव्य है कि वह चतुराई से दूसरे प्रतिभागी को बोलने का अवसर प्रदान करे।
7. संचालक को कम से कम बोलना चाहिए क्योंकि श्रोता प्रतिभागी की राय जानना चाहते हैं।
8. चर्चा समाप्त होने पर संचालक को सभी प्रतिभागियों का आभार प्रकट करना चाहिए।
डाक्यूमैंटरी: रेडियो की विधाओं में डाक्यूमैटरी रूपक अथवा फीचर बहुचर्चित और महत्वपूर्ण विधा है जो वार्ता, भेटवार्ता, संवाद आदि के मिले-जुले माध्यम से ज्ञान और सूचनाएं श्रोताओं तक सीधे पहुँचाती है। कभी-कभी श्रोताओं की समझ में नहीं आती वही जानकारियाँ सूचनाएं, ज्ञान दस्तावेजों, नाटकीय स्थितियों और संगीत आदि के माध्यम से हल्के-फुल्के लेकिन प्रभावशाली ढंग से बात को प्रस्तुत किया जाता है। वस्तुतः रूपक या डाक्यूमैंटरी रेडियो की एक सशक्त विधा है जिसके लेखन से लेकर प्रस्तुति तक अनेक सोपान होते हैं। प्रथम काम रूपक का आलेख तैयार करना है। जिसमें वातावरण पैदा किया जाता है ताकि श्रोता का मन उसमें रच-बस कर तादात्म्य बैठाने लगे। उदाहरण के तौर पर एक प्राचीन किले की दास्तां कहते आलेख में पाषाण प्राचीरों से टकरा कर गूंज पैदा करने की क्षमता होनी चाहिए। ऐसा वातावरण पैदा करने के लिए गीत संगीत और ध्वनियों का सहारा लेना पड़ता है जो श्रोताओं के मानस पटल पर अंकित हो कर अपना प्रभाव कायम करती हैं।
दूसरे चरण में रूपक के ध्येय को विकसित किया जाता है। रूपक के सूचनात्मक अथवा ज्ञानवर्धक होने पर सूचनाओं के ताने-बाने बुने जाते हैं ज्ञान के स्त्रोत को तलाशा जाता है। इसमें दस्तावेजों को उकेरा जाता है। दस्तावेज जरूरी नहीं कि लिखित तौर पर पाण्डुलिपियाँ हों, पत्थर पर उकेरी गयी सूचनाएं, ऑखों देखी घटना, रिकार्डिंग किए अथवा चित्रों के रूप में पाये जाने वाले दस्तावेजों को भी इस्तेमाल किया जा सकता है। सूचनाओं को ग्रहण करने का कोई भी स्त्रोत हो सकता है पर यह निश्चय कर लेना चाहिए कि सूचनाएं प्रमाणिक हैं और उन्हें प्रसारित किया जा सकता है।
वस्तुतः रूपक के लेखक को एक अनुसंधानकर्ता की तरह कार्य करना होता है। इतिहास के पन्नों को खगालना पड़ता है। घटना के समीप जाकर एक सजीव खाका तैयार करना होता है और अपनी कल्पना शक्ति से यथार्थ के रंग भरने होते हैं। जिन घटनाओं को इतिहासकार अक्सर फिजूल समझ कर दरकिनार कर देते है, उन्हें बीनकर उनमें से मानवीय रिश्तों को तलाशना और अपनी शब्द शक्ति के माध्यम से अभिव्यक्त करना रचनाकार का सबसे महत्वपूर्ण कार्य होता है। कार्यक्रम को सजीवता प्रदान करने और आलेख को यथार्थ रूप देने में जहां स्थितियों, घटनाओं का महत्वपूर्ण स्थान होता है वहीं पर पात्रों के माध्यम से इस सजीवता को श्रोताओं तक पहुॅचाया जाता है। पटकथा के अनुरूप सम्वाद रचे जाते हैं। अक्सर रूपकों या दस्तावेजी रूपकों में वाचक का रोल ज्यादा होता है। वाचन के अन्तर को दर्शाने के लिए अक्सर दो वाचक होते है। स्त्री पुरूष द्विभाषी वाचक फीचर को आगे बढ़ाने में मददगार हाते हैं।
रेडियो समाचार:
हमारे चारों तरफ होने वाली घटनाओं का हमारे जीवन पर सीधा प्रभाव पड़ता है। ये घटनाएं जहाँ विश्व या किसी राष्ट्रं की उन्नति और अवनति पर प्रभाव डालती हैं वहीं हमारे जीवन की दिनचर्या और उसके भविष्य पर भी असरकारक होती है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति का यह अधिकार है कि उसे अपने आस-पास घट रही सभी घटनाओं की जानकारी हो। रेडियो इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय प्राकृतिक आपदा, कानून व्यवस्था, सरकार द्वारा समय-समय पर जारी की जाने वाली घोषणाओं व योजनाओं आदि सभी की जानकारी रेडियो समाचार के माध्यम से जन-जन तक पहुँचती है। दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में जहाँ टेलीविजन की सुविधा नहीं है, जहाँ तक समाचार पत्र भी नहीं पहुँच पाते हैं, वहां भी रेडियो समाचार पहुंचा देता है।
देश-विदेश की खबरें जन-जन तक पहुंचाने के लिए रेडियो का एक व्यापक तंत्र होता है। रेडियो अपने प्रतिनिधि के रूप में प्रत्येक राष्ट्रं, शहर और क्षेत्र में अपने रिपोर्टर नियुक्त करता है। जो अपनी एकत्रित खबरें उस क्षेत्र या राज्य में नियुक्त संवाददाता तक पहुँचाते हैं। सवांददाता भिन्न रिपोर्टरों द्वारा प्राप्त समाचारों को क्षेत्रीय समाचार केन्द्र पर पहुँचा देते हैं। क्षेत्रीय समाचार कक्ष इन खबरों को संपादित करता है और प्रसारित करता है। जो समाचार राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित होने लायक होता है उस खबर को राष्ट्रीय समाचार कक्ष में भेज दिया जाता है।
रिपोर्टरों द्वारा एकत्र खबरें समाचार कक्ष को भेजी जाती हैं। समाचार कक्ष में उपस्थित समाचार संग्रहक विश्व के भिन्न कोनों से आयी खबरों का संग्रह करता है। भिन्न भाषाओं में प्राप्त ये खबरें अनुवादकों के पास भेज दी जाती है जो वांछित भाषा में उनका अनुवाद करते हैं और सब एडिटर को दे देता है। क्योंकि समाचारों को प्रसारित करने की समयाध बहुत कम होती है। अतः मुख्य-मुख्य खबरों को सब एडीटर द्वारा छाँट्रलिया जाता है। इस प्रक्रिया को एडिटिंग कहते है। सब एडिटर इन समाचारों को एडिटर के पास भेज देता है, जो रेडियो की आचार संहिता के अनुसार उसमें एडिटिंग करता है और न्यूज डाइरेक्टर की अनुमति प्राप्त करता है। तत्पश्चात् प्रसारण के लिए इन सामचारों को प्रसारण कक्ष में भेज दिया जाता है। जहाँ समाचार वाचक इन समाचारों को पड़ता है। समाचार पढ़ना एक कला है। रेडियो में समाचार एक ही बार पढ़ा जाता है, और श्रोता उसे सुनकर घटना का चित्र अपने मस्तिष्क में बनाता है। एक सफल समाचार वाचक में निम्न गुण होने चाहिए –
1. वह शब्दों की ग्राह्य ध्वनि पैदा करता हो।
2. उसे अपनी भाषा पर उसे पूर्ण अधिकार हो। उसमे शब्दों की ध्वनि,
भाषा के मानक के अनुसार हो।
3. समाचार पढ़ते समय वाचक को स्वयं पर पूर्ण विश्वास हों।
4. प्रत्येक शब्द की पूर्ण ध्वनि पैदा की जाए। विराम, अर्द्ध विराम आदि का सही प्रयेाग हो।
5. उसके द्वारा समाचार पढ़ते समय घटना के अनुरूप भाव ध्वनि में झलकते
हों। मसलन दुखद घटना का समाचार शोक भाव प्रकट्रकरता हो। खुशी का समाचार उल्लास का भाव प्रकट करे।
6. समाचार पढ़ने की गति 150 से 180 शब्द प्रति मिनट्रके बीच होनी चाहिए ताकि आम श्रोता समाचार आसानी से समझ सकें।
7. घटना का मुख्य प्रभाव रखने वाले शब्दो पर आवश्यकतानुसार जोर दिया जाना चाहिए।
समाचार सम्पादन: समाचारों को बिना किसी सजावट्रबिना भेदभाव, तथ्यों सहित तैयार किया जाता है। समाचारों के मूल्यांकन के मुख्य सिद्धांत इस प्रकार हैं –
1. प्रत्येक समाचार का निर्णय सख्ती से समाचार के मूल्य के आधार पर किया जाता है।
2. समाचार के तत्व एकदम सही हों।
3. समाचार, वस्तुपरक, तथ्यात्मक और विश्लेषणात्मक हों परन्तु सनसनीखेज नहीं होने चाहिए।
4. डर तथा आतंक फैलाने वाली समाचार रिपोर्टिग की धियों से बचा जाता है।
5. ऐसे राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय आदर्श प्रस्तुत किए जाते हैं जिनकी देश को जरूरत होती है।
6. समाचार सम्पादन करते समय क्षेत्रीय अखण्डता, राष्ट्रीय अखण्डता, धर्म निरपेक्षता, जनता की शालीनता के आदर्शो, जनता में शांति बनाए रखने के तरीको और संसद, विधायिका, न्यायपालिका की गरिमा और प्रतिष्ठा का पूरा ध्यान रखा जाता है।
7. भिन्न क्षेत्रों में राष्ट्रीय उपलब्धियों पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
8. व्यक्तिगत या अपमानजनक समाचारों से बचा जाता है।
9. लिंग व अपराध सम्बन्धी समाचारों से बचा जाता है, यदि वह व्यापक जनता के हित में न हों।
10. समाचार सम्पादन करते समय राजनैतिक विवादों से बचने के लिए शिष्टाचारहीन या भेदभावपूर्ण विवरण की संतुलित कवरेज का पूरा ध्यान रखा जाता है।
11. धर्म, राष्ट्र या सरकार के सम्मान को सुनिश्चित किया जाता है।
12. ऐसे समाचारों से बचा जाता है जो विद्रोह को बढ़ावा देने वाले हों।
13. जुआ, शराब या इस प्रकार की सूचना संबंधी घटनाओं के समाचारों से बचा जाता है जो श्रोताओं को इन कुरीतियों की ओर प्रेरित करने वाले हों।
14. समाचारों में किसी व्यक्ति, संस्था या व्यापारी के हित के लिए या व्यापार के प्रचार, उसको आगे बढ़ाने या उसे प्रचार देने के लिए उनके नाम का उल्लेख नही होना चाहिए। यदि उस समाचार में उनके नाम का संदर्भ अनिवार्य न हो।
अतिआवश्यक समाचार (Breaking News): राष्ट्र की एकता अखण्डता को खतरा, दुश्मन राष्ट्र का हमला, किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति का दुर्घटनाग्रस्त हो जाना, ऐसी दुर्घटना जहाँ जान-माल की भारी क्षति हुई हो या कोई बड़ी प्राकृतिक आपदा आदि के समाचार की जानकारी तुरन्त देश की जनता तक पहुॅचनी चाहिए। इसलिए सम्पादित समाचारों के प्रसारण को बीच में रोककर एक वाक्य या बहुत ही संक्षेप में इन घटनाओं का समाचार प्रसारित किया जाता है। इसे अति आवश्यक समाचार या ब्रेकिंग न्यूज कहा जाता हैं।
ध्वनि प्रेषण (Sound Dispatch): समाचार प्रसारण के समय देश-विदेश की घटनाओं को सूचना के रूप में पढ़ा जाता है। श्रोता के मन में एक विचार पैदा होता है कि समाचार वाचक जो कुछ बोल रहा है इसमें सत्यता कितनी है। अपने कार्यक्रम की सत्यता को साबित करने के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि जिस क्षेत्र विशेष के लिए या घटना विशेष के लिए जानकारी दी जा रही है, उस स्थान विशेष पर उपस्थित सवांददाता की आवाज समाचार के साथ प्रसारित की जाए। उदाहरण के तौर पर जम्मू-कश्मीर की किसी घटना का समाचार पढ़ते समय समाचार वाचक जब समाचार के बीच में श्रीनगर संवाददाता से बात कर उसी की आवाज में खबर का कोई विवरण प्रस्तुत करवा देता है तो यह प्रमाणित हो जाता है, कि जो समाचार श्रीनगर से संकलित किया गया वह सत्य है। समाचार की रिपोर्टिग करते समय संवाददाता की आवाज को सम्पादित कर लिया जाता है।
घटना स्थल से प्राप्त आवाज जिसे सत्यता के दृष्टिकोण से प्रसारित किया जाए, ध्वनि प्रेषण या Sound Dispatch की प्रक्रिया कहलाती है। यह शब्द ध्वनि या घटना के समय हुई किसी भी प्रकार की सजीव ध्वनि हो सकती है। मुख्यतयाः संवाददाता की आवाज के साथ घटना स्थल की अन्य हल्की ध्वनियां प्रसारित कर दी जाती हैं, ताकि श्रोता को घटनास्थल पर होने का आभास हो।
रेडियो रिपोर्ट: राष्ट्रीय, अर्न्तराष्ट्रीय, राज्य तथा क्षेत्रीय स्तर पर आये दिन समारोहों का आयोजन होता रहता है। जैसे – खेल समारोह, भिन्न राष्ट्राध्यक्षों के कार्यक्रम करना, बड़े सांस्कृतिक आयोजन धार्मिक स्थलों पर समारोह आदि। रेडियो मीडिया इन समारोहों को जनता तक पहुँचाने का कार्य करता है। कभी आँखों देखा हाल सुना कर और कभी उस समारोह के थोड़े समय में प्रसारित किया जाता है, तब उसके सम्पादित मुख्य अंश ले लिए जाते है। हॉ इस समारोह के स्थल पर जाकर सजीव रिकार्डिंग के बाद मुख्य अंशों को लेकर उन्हें सम्पादित करके कैप्सूल बना कर प्रसारित कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया को रेडियो रिर्पोटिग कहते हैं। इसकी विशेषता यही है कि स्थल ध्वन्यांकन पर आधारित सारी गतिधियाँ इस कार्यक्रम में समाहित होती हैं। स्टूडियों के बाहर किसी समारोह या विशेष व्यक्तियों से बातचीत करना या आम लोगों के विचार रिकार्ड करना ये सब गतिधियॉ ध्वन्यांकन प्रक्रिया का हिस्सा है। इसे ओ.बी.रिकार्डिग के नाम से भी जाना जाता है।
साउंड बाइट (Sound Byte): रिपोर्टिग के समय, जिस समारोह या उत्सव का आयोजन हो रहा होता है, रिपोर्टर उस स्थान पर जाकर रिकार्डिग करता है। समारोह में होने वाली बातचीत उसमें होने वाली अन्य गतिधियाँ यथा-सांस्कृतिक कार्यक्रम, संगीत वादन, नृत्य आदि की ध्वनि रिकार्ड कर ली जाती है। रिपोर्ट तैयार करते समय मुख्य मुख्य बिन्दुओं की रिकार्डिग के छोटे-छोटे अंश ले लिए जाते है। ध्वनि के ये छोटे अंश समारोह विशेष की झलकियाँ प्रस्तुत करते हैं और उसके बारे में जानकारी प्रदान करते हैं, ध्वनि के इन छोटे अंशों को साउड बाइट की संज्ञा दी जाती है। रूपक या नाटक का निर्माता भी ध्वनि के माध्यम से अपने कार्यक्रम में सजीवता लाता है। इस प्रकार प्रयोग में लाए गये भिन्न प्रकार की ध्वनियों के छोटे-छोटे अंश भी साउंड बाइट ही कहलाते हैं। जैसे- चिड़ियों का चहकना, झरने की आवाज, घुघरू की छम-छम, घाटी में गूँजती हवा आदि की ध्वनि।
एफएम रेडियो:
रेडियों तकनीक का जैसे-जैसे विकास होता गया वह आम आदमी तक सहजता से पहुॅचता गया। धीरे-धीरे छोटे-छोटे शहरों तक रेडियो केन्द्र खुलने लगे। सरकार द्वारा खोले गये बड़े केन्द्र ए.एम. (Amplitude Modulation) रेडियो हैं। ये एम्प्लीट्यूड मोड्यूलेशन के सिद्धांत पर कार्य करते हैं। इनके लिए अधिक स्थान व श्रम शक्ति की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन अब तकनीक के चमत्कार ने छोटे-छोटे रेडियो स्टेशन खोलना आसान कर दिया है। एफएम रेडियो भी ऐसा ही एक चमत्कार है। एफएम यानी फ्रीक्वैंसी मौड्यूलेशन तकनीक के रेडियो प्रसारण सीमित क्षेत्र में सुने जाते हैं। 50 हजार से 5-10 लाख तक आवादी के लिए होने वाले एफएम प्रसारण इन दिनों बेहद लोक प्रिय होने लगा है।
एफ एम की विशेषता यह है कि इसमें खर्च बहुत कम आता है। श्रम शक्ति की कम आवश्यकता होती है। एक कमरे में रेडियो केन्द्र खोला जा सकता है। हालांकि इसकी तरंगे बहुत दूर तक नहीं जाती और इनकी क्षमता 50 से 80 किमी के बाद क्षीण हो जाती है। किन्तु जहाँ तक भी पहुँचती है, एक जैसी सुनाई देती हैं। हालांकि इसमें एक बड़ी कमी यह है कि एफएम तरंगे सीधी चलती हैं। यदि इनके सामने ऊँची पहाड़ी जैसा कोई व्यवधान आ जाए तो उससे टकरा कर ये क्षीण हो जाती हैं और इनकी पहुँच कम होती जाती है। एफ एम प्रसारण 88 से 108 मेगाहर्ट्ज़ पर प्रसारण के अधिकार निजी क्षेत्र को भी सौंपे जाने से एफ एम प्रसारणों में क्रांतिकारी बदलाव आ गया। आज देश के अनेक महानगरों में एक से अधिक एफ एम चैनल प्रसारित हो रहे हैं। इन चैनलों का प्रसारण महानगरों में कारों से घर से दफ्तर जाने वाले लोगों के बीच भी बहुत लोकप्रिय है। ऐसे लोग सफर में बीच के समय एफ एम रेडियो के जरिए संगीत का भी आनन्द लेते हैं। विज्ञापनों के जरिए नए-नए उत्पादों की जानकारी भी प्राप्त करते हैं और बीच बीच में जरूरी खबरें भी उन्हें मिलते रहती हैं। चूंकि निजी एफएम रेडियो आकाशवाणी की तरह बहुत औपचारिक नहीं हैं इसलिए ये कार्यक्रमों के बीच बीच में चुटकले, फिल्मी बातें और जरूरी सूचनाएं भी देते रहते हैं। मसलन शहर में कहां ट्रैफिक जाम है। कहां से आवागमन प्रतिबंधित है आदि -आदि सूचनाएं भी एफएम रेडियो के जरिए श्रोताओं को मिल जाती हैं। शहर में चल रही किसी प्रदर्शनी, किसी समारोह या किसी सेल आदि के बारे में भी इसके जरिए सूचनाएं मिल जाती हैं। इसी तरह कार्यक्रमों के बीच-बीच में खेलों का स्कोर आदि भी एफएम रेडियो से पता चल जाता है।
एफएम रेडियो और कामर्शियल सेवा: एफ.एम.रेडियो की तरंगे जहाँ तक पहुँचती है, उनमें एक जैसी धारिता बनी रहती है। उसका प्रसारण स्तर एक सा रहता है। इस विशेषता को ध्यान में रखते हुए एफएम रेडियो व्यावसायीकरण का माध्यम भी बन गया है। इन पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों से विज्ञापन भी बटोरे जाते हैं।
एफएम रेडियो का प्रस्तुतकर्ता पुराने नियमों को हल्का करके चलता है। उसके हाव-भाव समयानुसार उसकी आवाज में झलकते हैं, यदि कहा जाए कि एफएम प्रसारण आधुनिकता का लिबास ओढ़े हुए है तो गलत न होगा। इसीलिए इस तरह के प्रसारण युवा पीढ़ी को बहुत जल्दी आकर्षित करते हैं। एफएम रेडियो एक प्रकार से स्थानीय या लोकल रेडियो का रूप है। शहर में होने वाली घटनाएं, मौसम की जानकारी, टैंफिक से सम्बन्धित खबरें, शहर में होने वाले उत्सव, समारोह, रेल टिकट्रआरक्षण जैसी सभी जानकारियां इसमें होती हैं। इस प्रकार का प्रचार-प्रसार आम आदमी को एफएम से बांधता है। एफएम रेडियो का मुख्य कार्य वाणिज्य से जुड़ा है। अतः विज्ञापन की ओर इसका रूझान अधिक है। क्योंकि निजी चैनल मालिक का असल उद्देश्य इन चैनलों के संचालन के जरिए पैसा कमाना होता है। अतः इसके कार्यक्रमों और प्रस्तुति में व्यावसायिक अंदाज साफ झलकता है फिर भी यह बात सच है कि एफएम रेडियो ने रेडियो को नया जीवन दिया है और यह नए जमाने का एक वेहद लोकप्रिय माध्यम बन गया है।
रेडियो पेजिंग: एफएम प्रसारण तकनीक में एक सुविधा यह है कि इसके लिए रखे गये फ्रीक्वैन्सी बैंड मे कुछ खाली जगह बचती है, जहाँ अतिरिक्त सिग्नल के माध्यम से सूचनाएं एकत्रित की जा सकती हैं। ये सूचनाएं एकलुोन प्रक्रिया की तरह प्रयोग की जा सकती है। इस तरह रेडियो पेजिंग सेवा चेतनशील सिंग्नल प्रसारित करती है और अपरिहार्य संदेशों की वाहक है। वर्तमान में अनेक डीटीएच प्रसारण भी एफएम सेवाओं का प्रसारण करने लगे हैं। इससे एफएम का दायरा शहरी सीमा से बाहर भी बढ़ने लगा है। यह बात एफएम के लिए बहुत शुभ संकेत है क्योंकि इनके जरिए एफएम प्रसारण ग्रामीण क्षेत्रों तक भी पहुंच सकेगा।
हालांकि देश में एफएम रेडियो की शुरूआत 1977 में ही हो गयी थी और जुलाई 1977 में मद्रास (वर्तमान चैन्नई) में एफएम ट्रांसमीटर ने प्रसार शुरू कर दिया था और जल्द ही दिल्ली, कलकत्ता, मुम्बई में भी एफएम प्रसारण शुरू हो गया था लेकन यह तब अधिक लोकप्रिय नहीं हो सके। सातवीं पंचवर्षीय योजना में एफ एम रेडियो ट्रांसमीटरों की स्थापना पर खूब जोर दिया गया। इसके दो कारण थे एक तो एफ एम ट्रांसमीटरों की अत्यधिक संख्या के कारण उसमें विस्तार की सम्भावनाएं कम थी दूसरे एफ एम ट्रांसमीटर की स्थापना और रखरखाव बेहद महंगा था। एफ एम प्रसारणों पर मौसम की खराबी का प्रतिकूल असर पड़ता था। ध्वनि का स्तर भी एफ एम से कई गुना श्रेष्ठ था। फिर भी सरकारी क्षेत्र में रहने तक पर्याप्त विस्तार विस्तार के बावजूद एफ एम की लोकप्रियता में कोई बड़ा अन्तर नहीं आया। यह अन्तर तो एफ एम रेडियो को निजी क्षेत्र के लिए खोलने के बाद नजर आने लगा हांलाकि देश का पहला निजी एफ एम स्टेशन रेडियो सिटी के नाम से बंगलौर में 2001 में शुरू हो गया था मगर इसे व्यापक विस्तार 2006 के बाद सरकारी नीतियों में परिवर्तन के बाद मिला। आज निजी क्षेत्र के कार्यक्रमों के कारण ही एफ एम प्रसारण रेडियो का सबसे अधिक लोकप्रिय हिस्सा बन गया है।
टेलीविज़न का इतिहास :
आज हमारी जिंदगी का अभिन्न हिस्सा-टेलीविजन ग्रीक प्रीफिक्स ‘टेले’ और लैटिन वर्ड ‘विजिओ’ से मिल कर बना है। टेलीविजन के आविष्कार श्रेय जॉन लोगी बेयर्ड को दिया जाता है, जिन्होंने 1925 में लंदन में अपनी खोज का प्रदर्शन किया था। जॉन लोगी बेयर्ड बचपन के दिनों में बीमार रहा करते थे, इसलिए स्कूल नहीं जा पाते थे। 13 अगस्त 1888 को स्कॉटलैंड में पैदा हुए बेयर्ड के मन में बचपन से ही काल्पनिक टेलीफोन ऐसे घर कर बैठा था कि 12 वर्ष की उम्र में यानी वर्ष 1900 में उन्होंने खुद ही अपना टेलीफोन बना लिया। साथ ही बेयर्ड यह भी सोचा करते थे कि एक दिन ऐसा भी आएगा, जब लोग हवा के माध्यम से तस्वीरें भेज सकेंगे। बेयर्ड ने वर्ष 1924 में बक्से, बिस्कुट के टिन, सिलाई की सूई, कार्ड और बिजली के पंखे से मोटर का इस्तेमाल कर पहला टेलीविजन बनाया था।
इसके बाद दुनिया के पहले वर्किग टेलीविजन का निर्माण 1927 में फिलो फार्न्सवर्थ ने किया था, जिसे 1 सितंबर 1928 को प्रेस के सामने पेश किया गया। आगे बेयर्ड ने ही कलर टेलीविजन का आविष्कार 1928 में किया था, जिसकी पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग 1940 में हुई थी, और इसे लोगों ने 60 के दशक में अपनाना शुरू कर दिया था।
हालांकि टेलीविज़न को बनाने पर कार्य 1830 से शुरू हो गया था, जब ग्राहम बेल और थॉमस एडिसन ने आवाज और फोटो को ट्रांसफर करके दिखाया था। इसके बाद पॉल निप्को रोटेटिंग डिस्क से मैकेनिकल स्कैनर बनाने वाले पहले व्यक्ति थे। जिससे मैकेनिकल टीवी का आविष्कार संभव हो पाया।
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- शुरुआती दौर में टेलीविजन के आविष्कार में पोल निप्कोओ, बोरिस रोसिंग, व्लादिमीर ज्वोर्किन, जॉन लोगी बेयर्ड, फिलो फर्नसवॉर्थ, चार्ल्स फ्रांसिस जेनकिंस और विलियम बेल आदि की भी प्रमुख भूमिका रही।
- वर्ष 1831 में जोसेफ हेनरी और माइकल फैराडे ने इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र में विद्युत की खोज की। इसके अलावा 1897 में मारकोनी ने वायरलेस के बाद टेलीग्राफ का भी सफल आविष्कार किया, जिसकी मदद से किसी भी तरह की छवियों और ध्वनियों को बिना तार के एक से दूसरे स्थान पर भेजा जा सकता था।
फोटोग्राफी : इस बीच 1839 में कैमरे से स्थिर फोटो खींचने का भी आविष्कार हो गया। फ्रांसीसी वैज्ञानिक लुईस जेकस तथा मेंडे डाग्युरे ने इसी वर्ष फोटो तत्व को खोजने का दावा किया था। इसी वर्ष फ्रांसीसी वैज्ञानिक आर्गो द्वारा 9 जनवरी 1839 को फ्रेंच अकादमी ऑफ साइंस के लिए तैयार की गयी “डाग्युरे टाइप प्रोसेस” रिपोर्ट को फ्रांस सरकार ने खरीदकर उसे आम लोगों के लिए 19 अगस्त 1939 को फ्री घोषित किया, और इस आविष्कार को ‘विश्व को मुफ्त’ मुहैया कराते हुए इसका पेटेंट खरीदा था। यही कारण है कि 19 अगस्त को विश्व फोटोग्राफी दिवस मनाया जाता है। हालांकि इससे पूर्व 1826 में नाइसफोर ने हेलियोग्राफी के तौर पर पहले ज्ञात स्थायी इमेज को कैद किया था, और ब्रिटिश वैज्ञानिक विलियम हेनरी फॉक्सटेल बोट ने नेगेटिव-पॉजीटिव प्रोसेस ढूँढ लिया था। 1834 में टेल बॉट ने लाइट सेंसेटिव पेपर का आविष्कार किया जिससे खींचे चित्र को स्थायी रूप में रखने की सुविधा प्राप्त हुई। 1839 में ही वैज्ञानिक सर जॉन एफ डब्ल्यू हश्रेल ने पहली बार ‘फोटोग्राफी’ शब्द का इस्तेमाल किया था।
फोटोग्राफी पर विस्तार से यहाँ पढ़ें @ फोटोग्राफी की पूरी कहानी
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- आगे जर्मन तकनीशियन और आविष्कारक पॉल निप्कोओ वर्ष 1884 में पहली बार 18 हॉरिजेंटल लाइनों से स्थिर चित्रों को अन्यत्र भेजने में कामयाब रहे। इसके बाद उनके द्वारा बनाई गई ‘इलेक्ट्रिक टेलीस्कोप’ जल्दी ही भविष्य के कई मैकेनिकल टेलीविजन डिजाइन के आधार बनी।
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- वर्ष 1900 में पेरिस में हुए ‘वर्ल्ड फेयर’ के पहले ‘इंटरनेशनल कांग्रेस ऑफ इलेक्ट्रिसिटी’ में रूस के वैज्ञानिक कॉन्सटेंटिन पर्सकेई ने पहली बार ‘टेलीविजन’ शब्द का इस्तेमाल किया।
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- आगे 1924-26 में स्कॉटलैंड के इंजीनियर चार्ल्स फ्रांसिस जेनकिंस और जॉन लोगी बेयर्ड ‘इमेज ट्रांसमिटेड मैथड’ यानी चित्रों को यांत्रिक और इलेक्ट्रिकल दोनों रूपों में प्रदर्शित करने में सफल रहे थे।
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- पहली बार 1927 में फिलो फार्न्सवर्थ ने अपने इलेक्ट्रॉनिक टेलीविजन सिस्टम का पेटेंट करवाया था।
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- अमेरिका में टीवी का लाइसेंस पहली बार 1928 में चार्ल्स फ्रांसिस जेनकिंस को दिया गया। चार्ल्स ने मोशन पिक्चर प्रोजेक्टर और टेलीविजन पर काफी काम किया। 1928 में उन्होंने जेनकिंस टेलीविजन कॉरपोरेशन खोला, जहां से यूएस में W3XK नाम से पहला टेलीविजन ब्रॉडकास्ट 2 जुलाई 1928 को ऑन एयर किया गया था। यानी पहले अमेरिकी टेलीविजन स्टेशन ने वर्ष 1928 में काम शुरू किया था। चार्ल्स ने पहला कॉमर्शियल टेलीविजन कार्यक्रम भी वर्ष 1930 में प्रसारित किया था। बीबीसी का प्रसारण भी 1930 में शुरू हुआ था।
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- पहला टीवी सैटेलाइट ‘टेलस्टार’ एटीएेंडटी द्वारा 1962 में लॉन्च किया गया।
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- वर्ष 1969 में 600 मिलियन लोगों ने चंद्रमा पर पहले मानव लैंडिंग का लाइव प्रसारण देखा।
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- सोनी कंपनी ने पहली बार 1967 में होम वीडियो सिस्टम पेश किया।
- 1981 में पहली बार जापानी टीवी कंपनी एनएचके ने एचडी (हाई डेफिनिशन) टेलीविजन (1125 लाइन ऑफ हॉरिजेंटल रिजॉल्यूशन) पेश किया।
रिमोट से टीवी :टेलीविजन के रिमोट कंट्रोल का आविष्कार यूजीन पोली ने किया था। यूजीन पोली का जन्म 1915 में शिकागो में हुआ था। वे जेनिथ इलेक्ट्रॉनिक में काम करते थे। वर्ष 1955 में उन्होंने फ्लैश मैटिक का आविष्कार किया था।
दूरदर्शन का इतिहास :
भारत में सर्वप्रथम टेलीविजन प्रसारण की शुरुआत 15 सितम्बर, 1959 को प्रयोगात्मक आधार पर आधे घण्टे के लिए शैक्षिक और विकास कार्यक्रमों के रूप में दिल्ली में दूरदर्शन केन्द्र की स्थापना के साथ हुआ। उस समय दूरदर्शन का प्रसारण सप्ताह में सिर्फ तीन दिन आधा-आधा घंटे होता था। तब इसको ‘टेलीविजन इंडिया’ नाम दिया गया था। शुरुआती दिनों में दूरदर्शन यानी टीवी दिल्ली और आसपास के कुछ क्षेत्रों में ही देखा जाता था। पूरे दिल्ली में 18 टेलीविजन सेट और एक बड़ा ट्रांसमीटर ही था। तब दिल्ली में लोग इसको कुतुहल और आश्चर्य के साथ देखते थे। इसके बाद दूरदर्शन ने धीरे धीरे अपने पैर पसारे और दिल्ली (1965), मुम्बई (1972), अमृतसर (1972) कोलकाता (1975), चेन्नई (1975) में इसके प्रसारण की शुरुआत हुई। 1975 तक भारत के केवल सात शहरों में ही टेलीविजन की सेवा शुरू हो पाई थी। 1975 में ही इसका हिन्दी नामकरण ‘दूरदर्शन’ नाम से किया गया। दूरदर्शन नाम इतना लोकप्रिय हुआ कि टीवी का हिंदी पर्याय बन गया। आगे दूरदर्शन को देश भर के शहरों में पहुँचाने की शुरुआत 80 के दशक में हुई और इसकी वजह 1982 में दिल्ली में आयोजित किए जाने वाले एशियाई खेल थे। भारत में कलर टीवी और राष्ट्रीय प्रसारण की शुरुआत 1982 में हुई। एशियाई खेलों के दिल्ली में होने का एक लाभ यह संभव हुआ।
फिर दूरदर्शन पर शुरु हुआ पारिवारिक कार्यक्रम हम लोग जिसने लोकप्रियता के तमाम रेकॉर्ड तोड़ दिए। 1984 में देश के गाँव-गाँव में दूरदर्शन पहुँचाने के लिए देश में लगभग हर दिन एक ट्रांसमीटर लगाया गया। इसके बाद आया भारत और पाकिस्तान के विभाजन की कहानी पर बना बुनियाद जिसने विभाजन की त्रासदी को उस दौर की पीढ़ी से परिचित कराया। इस धारावाहिक के सभी किरदार आलोक नाथ (मास्टर जी), अनीता कंवर (लाजो जी), विनोद नागपाल, दिव्या सेठ घर घर में लोकप्रिय हो चुके थे। फिर तो एक के बाद एक बेहतरीन और शानदार धारवाहिकों ने दूरदर्शन को घर घर में पहचान दे दी। दूरदर्शन पर 1980 के दशक में प्रसारित होने वाले मालगुडी डेज़, ये जो है जिन्दगी, रजनी, ही मैन, वाहः जनाब, तमस, बुधवार और शुक्रवार को 8 बजे दिखाया जाने वाला फिल्मी गानों पर आधारित चित्रहार, भारत एक खोज, व्योमकेश बक्शी, विक्रम बेताल, टर्निंग प्वाइंट, अलिफ लैला, शाहरुख़ खान का फौजी, रामायण, महाभारत, देख भाई देख ने देश भर में अपना एक खास दर्शक वर्ग ही नहीं तैयार कर लिया था बल्कि गैर हिन्दी भाषी राज्यों में भी इन धारवाहिकों को ज़बर्दस्त लोकप्रियता मिली।
रामायण और महाभारत जैसे धार्मिक धारावाहिकों ने तो सफलता के तमाम कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए थे, 1986 में शुरु हुए रामायण और इसके बाद शुरु हुए महाभारत के प्रसारण के दौरान रविवार को सुबह देश भर की सड़कों पर कर्फ्यू जैसा सन्नाटा पसर जाता था और लोग अपने महत्वपूर्ण कार्यक्रमों से लेकर अपनी यात्रा तक इस समय पर नहीं करते थे। रामायण की लोकप्रियता का आलम तो ये था कि लोग अपने घरों को साफ-सुथरा करके अगरबत्ती और दीपक जलाकर रामायण का इंतजार करते थे और एपिसोड के खत्म होने पर बकायदा प्रसाद बाँटी जाती थी।
वर्तमान में दूरदर्शन की पहुँच 86% लोगों तक है जो इसके माध्यम से अपना मनोरंजन करते हैं।
दूरदर्शन की यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ाव :
- (9 अगस्त 1984) दिल्ली , मुम्बई (1 मई 1985), चेन्नई (19 नवम्बर 1987), कोलकात्ता (1 जुलाई 1988)
- 26 जनवरी 1993: मेट्रो चैनल शुरू करने के लिए एक दूसरे चैनल की नेटवर्किंग
- 14 मार्च 1995: अंतर्राष्ट्रीय चैनल डीडी इंडिया की शुरूआत
- 23 नवम्बर 1997 : प्रसार भारती का गठन (भारतीय प्रसारण निगम)
- 18 मार्च 1999: खेल चैनल डीडी स्पोर्ट्स की शुरूआत
- 26 जनवरी 2002: संवर्धन/सांस्कृतिक चैनल की शुरूआत
- 3 नवम्बर 2002 : 24 घण्टे के समाचार चैनल डीडी न्यूज की शुरूआत
- 16 दिसम्बर 2004 : निशुल्क डीटीएच सेवा डीडी डाइरेक्ट की शुरूआत
भारत में टेलीविजन पर हिंदी समाचार चैनलों की विकास यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ाव :
- 15 सितम्बर, 1959 को भारत में सर्वप्रथम प्रयोगात्मक आधार पर आधे घण्टे के टेलीविजन प्रसारण की शुरुआत दूरदर्शन के दिल्ली केंद्र से।
- 1965 में 15 अगस्त को पहले बुलेटिन का प्रसारण हुआ।
- 1982 में देश में एशियाई खेलों के आयोजन के समय रंगीन टीवी प्रसारण और दूरदर्शन के ‘राष्ट्रीय प्रसारण’ की शुरुवात हुई।
- 1984 में दूरदर्शन के दूसरे चैनल डीडी-मेट्रो की शुरुवात हुई।
- 1988 में देश के पहले निजी मीडिया हाउस एनडीटीवी (New Delhi Television Limited) की स्थापना, नवंबर 1988 से डॉ. प्रणय रॉय की अगुवाई में ‘The World This Week’ (विश्वभारत) न्यूज़ मैगजीन दूरदर्शन पर शुरू।
- 1 अक्टूबर 1992 को सुभाष चंद्रा ने स्टार ग्रुप के साथ भारत का पहला हिन्दी केबल चैनल ज़ी टीवी स्थापित और 2 अक्टूबर 1992 से शुरू किया।
- 1992 से ही रजत शर्मा ने ज़ी टीवी से (अब इंडिया टीवी के) चर्चित टॉक शो ‘आपकी अदालत’ की शुरुआत की।
- मार्च 1995 में स्टार ग्रुप को एक अमेरिकी कंपनी द्वारा खरीद लिये जाने पर सुभाष चंद्रा ने इंग्लैंड और 15 जुलाई 1998 में अमेरिका से ज़ी टीवी स्थापित किया।
- ज़ी टीवी का समाचार चैनल ज़ी न्यूज 1995 में स्थापित हुआ।
- 1995 में रजत शर्मा ने भारत के पहले निजी चैनल पर पहली बार न्यूज़ बुलेटिन शुरु करके एक तरह से इतिहास रच दिया।
- 1995 से दूरदर्शन के मेट्रो चैनल पर टीवी टुडे का ‘आज तक’ कार्यक्रम प्रसारित होना शुरू हुआ।
- फ़रवरी 1998 में स्टार ग्रुप ने डॉ. प्रणय रॉय से हाथ मिलकर उन्हें कंटेंट उपलब्ध करना शुरू किया। इस तरह 18 फरवरी 1998 में ‘स्टार न्यूज़’ की शुरुवात हुयी, जो शुरुवात में हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओ में समाचार दिखाता था।
- 1998 में इंडिया टीवी की स्वतंत्र न्यूज सर्विस के रूप में शुरुवात हुई ।
- 1998 में पहले स्टार ग्रुप और फिर ज़ीटीवी ने पूरी तरह 24 घंटे के समाचार चैनल लेकर अपनी पारियां शुरु कीं
- 2000 में सहारा टीवी की शुरुआत।
- 31 दिसंबर 2000 को 24 घंटे के समाचार चैनल के रूप में वजूद में आया ‘आज तक’।
- 2002 -2003 में सहारा टीवी का समाचार के लिए अलग चैनल ‘सहारा समय’ नाम से शुरू।
- फ़रवरी 2003 में स्टार ने एनडीटीवी से हाथ खींचकर अपने बलबूते समाचार चैनल उतारा और एनडीटीवी ने भी हिंदी और अंग्रेजी में 2 समाचार चैनल उतारे।
- 3 नंवबर 2003 को मेट्रो चैनल के प्लेटफॉर्म पर ही 24 घंटे के समाचार चैनल ‘डीडी न्यूज’ की शुरूआत की गई।
- 20 मई 2004 को इंडिया टीवी चैनल की शुरुवात।
- अप्रैल 2005 में मौजूदा न्यूज़ 18 इंडिया चैनल की चैनल 7 के नाम से शुरुआत।
- 2005 में लांच किया गया आज तक का ‘तेज़’ चैनल।
- 15 अगस्त 2006 से चैनल-7 का नाम ‘आईबीएन-7’।
- 1 जून 2012 से स्टार न्यूज़ चैनल-एबीपी न्यूज़ के रूप में काम करने लगा।
- 16 मार्च 2018 से ईटीवी का नाम न्यूज़ 18 हो गया।
भारत में टेलीविजन पर हिंदी समाचारों की शुरुआत और इसका विकास पत्रकारिता के स्वरूप में बदलाव का गवाह रहे हैं। देश में टेलीविजन की शुरुआत सूचना और शिक्षा के माध्यम के तौर पर शुरु हुई थी और 50 साल बीत जाने पर न सिर्फ अब ये संगीत के साथ समाचार देने वाला मनोरंजन युक्त समाचारों (इन्फोटेंमेन्ट) का न केवल बड़ा माध्यम, बल्कि बड़ा कारोबार भी बन चुका है। खासकर समाचार चैनलों के विस्तार और इसमें निजी क्षेत्र के आने के बाद प्रतियोगिता और प्रतिद्वंद्विता बढ़ी है जिसकी वजह से समाचार प्रसारण के तौर-तरीके काफी बदले हैं जिसके अच्छे और बुरे दोनों ही पहलू हैं। लोकतंत्र के चौथे खंबे के रूप में मीडिया को स्थापित करने में टीवी के समाचार चैनलों की अहम भूमिका साबित हुई है क्योंकि खबरें दिखाते हुए ये जनता की आवाज भी बन चुके हैं। कुछ चैनलों पर निहित स्वार्थ के लिए कवरेज या पक्षपातपूर्ण कवरेज के भी आरोप लगते हैं, लेकिन अब चैनलों की इतनी बाढ़ आ चुकी है कि दर्शकों के सामने खबरें देखने और खबरों का हर पक्ष जानने के लिए चैनल बदलकर देखने का विकल्प भी मौजूद है।
हालांकि ज़ीटीवी पर समाचारों की शुरुआत पहले हो चुकी थी, लेकिन पूरी तरह 24 घंटे के समाचार चैनल लेकर पहले स्टार ग्रुप और फिर ज़ीटीवी ने 1998 में अपनी पारियां शुरु कीं। स्टार ग्रुप 1991 से केबल नेटवर्क का काम कर रहा था (जीटीवी का सीटी केबल था)। 1998 में स्टार चैनल ने भारत के मशहूर टीवी प्रस्तोता डॉ. प्रणय रॉय से हाथ मिलाया और उनकी कंपनी एनडीटीवी स्टार के न्यूज़ चैनल के लिए कंटेंट मुहैया कराने लगी। फरवरी 1998 से शुरु हुआ स्टार-एनडीटीवी का सिलसिला 2003 तक चला जब स्टार अपने बलबूते भारत में समाचार चैनल लेकर आया और एनडीटीवी ने भी हिंदी और अंग्रेजी में 2 समाचार चैनल उतार दिए।
इससे पहले ये बता देना जरूरी होगा कि एनडीटीवी के कंटेंट पर आधारित स्टार के न्यूज़ चैनल और ज़ीटीवी के समाचार चैनलों पर शुरुआती दौर में अंग्रेजी का प्रभुत्व था और अंग्रेजी के ज्यादा बुलेटिन प्रसारित होते थे। इन दोनों चैनलों के कंटेंट भले ही देश में तैयार होते थे, लेकिन इनका प्रसारण विदेशों से यानी हांगकांग और सिंगापुर से होता था क्योंकि भारत से अपलिंकिंग की अनुमति इन्हें नहीं थी। ज़ीटीवी में समूची पूंजी भारतीय होने की वजह से उसे पहले देसी धरती से अपलिंकिंग की अनुमति मिल गई थी, किन्तु स्टार ग्रुप को विदेशी समूह होने के चलते अपलिंकिंग की अनुमति मिलने में और देर लगी। लेकिन बाद में हिंदी के बुलेटिनों की संख्या बढ़ी और तकरीबन आधे घंटे अंग्रेजी और आधे घंटे हिंदी के बुलेटिन्स का फ़ॉर्मेट दोनों चैनलों में चलने लगा। ज़ी के हिंदी बुलेटिन में अंग्रेजी-मिश्रित हिंदी यानी ‘हिंग्लिश’ का ज्यादा इस्तेमाल था, तो स्टार-एनडीटीवी के बुलेटिन की उर्दू-मिश्रित भाषा उसकी खासियत थी।
डीडी न्यूज :
बहरहाल, बात समाचार चैनलों की विकास यात्रा पर शुरु हुई थी, तो ये देखना होगा कि देश में टेलीविजन की शुरुआत सरकारी हाथों से दूरदर्शन के जरिए हुई और 1965 में 15 अगस्त को पहले बुलेटिन का प्रसारण हुआ। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के अध्येता डॉ. देवव्रत सिंह इसे भारतीय पत्रकारिता का ‘प्रयोगवादी दौर’ मानते हैं क्योंकि उस दौर में संसाधन बेहद सीमित, या यूं कहें कि नहीं के बराबर थे। दूरदर्शन को खबरों के लिए आकाशवाणी के संसाधनों पर निर्भर रहना पड़ता था। लेकिन प्रयोग के इस दौर से समाचार प्रसारण के फलक का विस्तार हुआ। 1982 में देश में एशियाई खेलों के आयोजन के समय रंगीन टीवी प्रसारण और दूरदर्शन के ‘राष्ट्रीय प्रसारण’ की तथा आगे 1984 में दूरदर्शन के दूसरे चैनल डीडी-मेट्रो की शुरुवात हुई, 1995 में एशिया, यूरोप व अफ्रीका के 50 देशों तक पहुँच वाले दूरदर्शन का अंतर्राष्ट्रीय चैनल-दूरदर्शन इंडिया शुरू हुआ।
दूरदर्शन के समाचारों में इतनी सादगी होती थी कि आप 1 घंटे तक समाचार देखकर भी बोर नही होते थे और उससमय आपको अधिक विज्ञापन भी नही झेलने पड़ते थे। शुरुवात में दूरदर्शन पर पूरे दिन समाचार आते रहते थे, लेकिन बाद में धारावाहिको के प्रचलन के बाद शाम को 7 बजे से 8 बजे के प्राइम टाइम पर दिन भर के समाचार दिखाए जाते थे। इन एक घंटे के समाचार में आधे घंटे अंग्रेजी में और आधे घंटे हिंदी में समाचार आते थे। इसके बाद 90 के दशक में दूरदर्शन पर समाचार आधे घंटे के कर दिए गये जिसमे 15 मिनट हिंदी और 15 मिनट अंग्रेजी में समाचार आते थे।
देश में निजी समाचार चैनलों की दुनिया का विस्तार 2002 के बाद से बड़ी तेज़ी से हुआ। दूरदर्शन के डीडी-मेट्रो चैनल से 2000 में ‘आज तक’ कार्यक्रम की विदाई के बाद दूरदर्शन को भी एक 24 घंटे के समाचार चैनल की जरूरत महसूस हुई। इस पर दूरदर्शन पर बढ़ते धारावाहिकों के चलते 3 नंवबर 2003 को मेट्रो चैनल के प्लेटफॉर्म पर ही 24 घंटे के समाचार चैनल डीडी न्यूज की शुरूआत की गई, जिसकी कमान सरकारी लोगों के हाथ में होने के अलावा ‘आज तक’ से अपनी पहचान बनानेवाले प्रमुख टीवी पत्रकार दीपक चौरसिया को भी सौंपी गई थी। हालांकि बाद में वो इस चैनल से अलग हो गए, लेकिन डीडी न्यूज़ अपनी खास पहचान बनाने में जरूर कामयाब हुआ है। 2013 में इसे नई ब्रैंडिंग और लोगो के साथ पेश किया गया है और BBC के पूर्व भारत संपादक संजीव श्रीवास्तव की अगुवाई में चलनेवाले इसके प्राइम टाइम शो न्यूज़ नाइट ने तो टीआरपी की होड़ में भी अहम उपलब्धि हासिल करके चैनल को टीआरपी चार्ट में ऐतिहासिक स्तर तक पहुंचा दिया। डीडी न्यूज चैनल भारत की लगभग 50 प्रतिशत जनता तक पहुचता है क्योंकि दूरदर्शन के सभी चैनल Free-to-Air है। भारत में जिन लोगो के पास सेट टॉप बॉक्स या केबल की सुविधा नही है, उनके लिए डीडी न्यूज ही समाचारों का एकमात्र माध्यम है। डीडी न्यूज पर ना केवल हिंदी बल्कि अंगरेजी, उर्दू और संस्कृत भाषा में भी समाचार आते है। 2015 में डीडी न्यूज की मोबाइल ऐप्प भी शुरू की गयी।
दूरदर्शन के करीब 33 साल के एकछत्र राज के बाद यानी 1998 तक भारत में टीवी पत्रकारिता के एक नए युग की शुरुआत हुई, जब निजी चैनलों के खिलाड़ी इस क्षेत्र में पूरी तरह से उतरे।
जैन टीवी :
भले कम लोग ही परिचित हों, पर जैन टीवी को भारत का पहला 24 घंटे चलने वाला राष्ट्रीय समाचार और समसामयिक मुद्दों को प्रसारित करने वाला चैनल होने का गौरव प्राप्त है। इस ग्रुप का 1984 में स्थापित स्टूडियो- जैन स्टूडियो लिमिटेड-JSL देश का पहला निजी टेलीविज़न स्टूडियो था, और यह डा. प्रणॉय रॉय, सिद्दार्थ बासु, राघव बहल व नलिनी सिंह जैसे देश के प्रारंभिक टीवी प्रस्तोताओं के लिए लांच पैड साबित हुआ।
एनडीटीवी :
1988 में स्थापित एनडीटीवी (New Delhi Television Limited) एक तरह से देश का सबसे पुराना मीडिया हाउस है। दूरदर्शन के लिए नवंबर 1988 से डॉ. प्रणय रॉय की अगुवाई में ‘The World This Week’ न्यूज़ मैगजीन की प्रस्तुति और कंटेंट तैयार करने के बाद इस मीडिया हाउस ने स्टार ग्रुप के साथ हाथ मिलाया और करीब 9-10 साल उन्हें 24 घंटे के चैनल के लिए कंटेंट उपलब्ध कराते रहे। 2003 में स्टार ग्रुप का साथ छूटने के बाद एनडीटीवी ने सफलतापूर्वक 2 चैनल लांच कर दिए। हिंदी चैनल के लांच के लिए ‘आज तक’ के ही मशहूर चेहरे दिबांग को अपने साथ जोड़ा। ‘खबर वही सो सच दिखाए’ की टैगलाइन के साथ शुरु हुए हिंदी चैनल ‘एनडीटीवी इंडिया’ ने खबरों के प्रसारण के मामले में तो अलग संपादकीय लाइन की वजह से अपनी खास पहचान बनाए रखी, लेकिन टीआरपी की होड़ में ये चैनल पीछे ही रहा। दिबांग के आक्रामक तेवर पर कई बार डॉ. प्रणय रॉय की संपादकीय नीतियां भारी पड़ती दिखीं जिसकी वजह से खबर देखने वालों के लिए तो ‘एनडीटीवी इंडिया’ पसंदीदा चैनल बना रहा, लेकिन मिक्स-मसाला के तौर पर खबरें परोसे जाने में फिसड्डी ही साबित हुआ। और अंग्रेजी में NDTV 24×7 को भी दर्शक सटीक खबरों के लिए पसंद करते है। 2012-13 में इसके 25 साल पूरे हो चुके हैं। आजकल (2013) अनिंद्यो चक्रवर्ती इसके हिंदी चैनल ‘एनडीटीवी इंडिया’ के प्रमुख हैं, जबकि सुनील सैनी, मनोरंजन भारती, रवीश कुमार, मनीष कुमार, अभिषेक शर्मा, निधि कुलपति इसके जानेमाने संपादकीय चेहरे और प्रस्तोता हैं। मशहूर टीवी प्रस्तोता विनोद दुआ भी एनडीटीवी इंडिया पर खास करंट अफेयर्स कार्यक्रम पेश करते हैं।
जी न्यूज :
‘भारत के मीडिया मुग़ल’ कहे जाने वाले सुभाष चंद्रा ने पहले 1 अक्टूबर 1992 में मुंबई से स्टार टीवी के साथ मिलकर एक हिन्दी चैनल के रूप में ज़ी टीवी की शुरुआत की थी। लेकिन स्टार टीवी को एक अमेरिकी कंपनी ने खरीद लिया तो यह पूरी तरह से समाप्त हो गया। उसके बाद ज़ी ने अपना चैनल मार्च 1995 में इंग्लैंड और 15 जुलाई 1998 में अमेरिका में स्थापित किया। यह पहला भारतीय चैनल था जो यूरोप में भी दिखाया गया। इसके कुछ कार्यक्रम और विज्ञापन अमेरिका में अँग्रेजी में दिखाये जाते हैं। इसका एचडी संस्करण पहले भारत में दिखाया गया। 5 सितम्बर 2012 को अमेरिका में डिश नेटवर्क के द्वारा इसका एचडी संस्करण दिखाया गया था।
ज़ी टीवी का समाचार चैनल ज़ी न्यूज 1995 में स्थापित हुआ। प्रारम्भ में इसमें अधिकतर प्रोग्राम अंग्रेज़ी भाषा में प्रसारित होते थे। 2003 में ज़ी न्यूज पूर्णतः हिन्दी समाचार चैनल में परिवर्तित हो गया।
अपनी खास पहचान बनाने वाले ज़ी न्यूज़ को दिल्ली, उत्तर-पश्चिम भारत और गुजरात में अपने बड़े दर्शक वर्ग का हमेशा फायदा मिलता रहा। ज़ी न्यूज़ चैनल को स्थापित करने वालों में शैलेष, आलोक वर्मा, उमेश उपाध्याय, रजत शर्मा से लेकर शाजी ज़मां, संजय पुगलिया, विनोद कापड़ी, विष्णु शंकर, सतीश के सिंह, अलका सक्सेना से लेकर सुधीर चौधरी तक अनेक जाने-माने टीवी पत्रकार संपादक बने और चैनल को बड़े मुकाम तक पहुंचाने की कोशिश करते रहे। लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद ये चैनल टीआरपी की होड़ में चौथे नंबर से ऊपर नहीं चढ़ सका, एक-दो मौके अपवाद हो सकते हैं।
जी न्यूज ने अपनी बढ़ती लोकप्रियता के चलते Zee Business, Zee Punjab Haryana Himachal, Zee Sangam, Zee Madhya Pradesh-Chhattisgarh और Zee Rajasthan News जैसे प्रादेशिक न्यूज चैनल भी शुरू किये, वर्तमान में इसका क्षेत्रीय चैनल ‘इंडिया 24X7’ नाम से भी चल रहा है।
स्टार-एबीपी न्यूज़ :
पूर्व में केबल के कारोबार में रहे आस्ट्रेलियाई मीडिया मुग़ल रुपर्ट मर्डोक के द्वारा एनडीटीवी के साथ कॉन्ट्रैक्ट करते हुए स्टार न्यूज़ की शुरुवात 18 फरवरी 1998 को की गयी थी, जो शुरुवात में हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओ में समाचार दिखाता था। लेकिन 2003 में एनडीटीवी के साथ कॉन्ट्रैक्ट समाप्त होने के बाद स्टार ग्रुप ने मुंबई से बेहद तड़क-भड़क के साथ ‘आपको रखे आगे’ की टैगलाइन के साथ अपना अलग से पूर्णतया हिंदी समाचार चैनल लांच किया। तब इसकी सीईओ रवीना राज कोहली और संपादक संजय पुगलिया थे, जो पहले ‘आज तक’ के भी जाने-माने एंकर रह चुके थे और इसके बाद ज़ी न्यूज़ को भी ‘आज तक’ के लांच होने के बाद झटकों से उबारने में काफी कामयाब रहे थे।
स्टार ग्रुप ने एनडीटीवी से अलग होकर अपना चैनल लांच करने की तैयारियां 2002 में ही शुरु कर दी थीं। पूरी तरह विदेशी पूंजी वाले स्टार न्यूज़ ने टीवी समाचार के कारोबार को नया कलेवर देने की कोशिश शुरु की, लेकिन उसकी कोशिशों को तब ग्रहण लगने लगा, जब देश में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में शत-प्रतिशत विदेशी पूंजी का कड़ा विरोध शुरु हो गया। चूंकि प्रिंट मीडिया में सिर्फ 26 फीसदी विदेशी पूंजी लगाने की ही अनुमति थी, लिहाजा केंद्र सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर भी यही पाबंदी लगानी पड़ी। इसके बाद सितंबर 2003 में स्टार न्यूज़ को चालू रखने के लिए नए सिरे से MCCS नाम की कंपनी बनाई गई और 74 फीसदी हिस्सेदारी के लिए कोलकाता के आनंद बाजार पत्रिका समूह को कंपनी से जोड़ा गया। मार्च 2004 से स्टार न्यूज़ स्टार ग्रुप और ABP ग्रुप की हिस्सेदारी में आधिकारिक रूप से शुरु हुआ। स्टार और आनंद बाजार पत्रिका समूह यानी ABP का साथ करीब 8 साल चला और 16 अप्रैल 2012 से ABP ने स्टार से 8 साल का नाता तोडकर एक स्वतंत्र न्यूज़ चैनल ABP न्यूज़ में बदल दिया। इसके बाद 1 जून 2012 से ये चैनल एबीपी न्यूज़ के रूप में काम करने लगा। MCCS के तहत बांग्ला और मराठी के भी दो चैनल और एक बांग्ला एंटरटेनमेंट चैनल ABP Ananda , ABP Majha ,ABP Sanjha लांच किये गए, जो अब स्टार की जगह एबीपी की ब्रांडिंग से जाने जाते हैं।
आज तक :
भारत में समाचार के कारोबार में तेजी 2000 में आई, जब इंडिया टुडे ग्रुप के टीवी सेक्शन टीवी टुडे का चैनल ‘आज तक’ दिल्ली से लांच किया गया। इससे पहले दूरदर्शन के मेट्रो चैनल पर 1995 से प्रसारित होने वाला टीवी टुडे का ‘आज तक’ कार्यक्रम दर्शकों में अपनी खास पहचान बना चुका था, जिसका चैनल को जबर्दस्त फायदा मिला और 24 घंटे के समाचार के बाजार में ‘आज तक’ को अपना पांव जमाते देर नहीं लगी। समाचार चैनल के रूप में ये 31 दिसंबर 2000 को वजूद में आया और छ: महीनों के अंदर ही हिंदी में चौबीस घण्टे प्रसारित होने वाला देश के पहले के साथ ही देश का नंबर वन समाचार चैनल भी बन गया। इसे 1 साल के भीतर ही इंडिया टेलीविजन अकादमी द्वारा आज तक को बेस्ट न्यूज़ चैनल का ख़िताब मिला। इसके साथ ही यह चैनल शुरुवात में ही देश के 50 लाख घरों तक पहुच गया,और आज भारत की 3 करोड़ से भी जनता के घरों में इसकी पहुँच है।
चैनल के रूप में लांच होने के बाद ‘आज तक’ ने सबसे पहले 2001 के गुजरात भूकंप की जबर्दस्त कवरेज की। इसके बाद तो एक से बढ़कर एक मामलों की कवरेज और प्रसारण इसके नाम हो गए। शुरुआत में चैनल के रूप में लांच होने पर ‘आज तक’ का संपादकीय नेतृत्व उदय शंकर के हाथों में था, लेकिन ‘आज तक’ की खास पहचान बनाने वालों में पत्रकार कमर वहीद नकवी प्रमुख थे, जिन्होंने पर्दे के पीछे रहते हुए शो को बखूबी अंजाम तक पहुंचाया। हालांकि वो शुरुआत में चैनल का हिस्सा नहीं रहे, लेकिन 2003 में जब उदय शंकर स्टार न्यूज़ की टीम में शामिल हो गए तो ‘आज तक’ को चलाने के लिए फिर नकवी को बुलाया गया। नकवी ने ‘आज तक’ में 2012 तक लंबी पारी खेली। यहां बता दें कि ‘आज तक’ जब डीडी मेट्रो चैनल का कार्यक्रम था, तो दिल्ली के कनॉट प्लेस में उसका दफ्तर हुआ करता था। चैनल की लांचिंग दिल्ली के झंडेवालान एक्सटेंशन में स्थिति वीडियोकॉन टॉवर से हुई और 2012 के सितंबर में ये चैनल नोएडा की फिल्म सिटी में अपने नए दफ्तर इंडिया टुडे मीडिया प्लेक्स में आ गया। चैनल के नोएडा आने से पहले नकवी इससे विदा हो चुके थे और कमान सुप्रिय प्रसाद ने संभाली जो टीवी टुडे ग्रुप के सबसे अनुभवी लोगों में से हैं। ‘आज तक’ के 12 साल के सफर के दौरान टीवी टुडे ने 3 और समाचार चैनल लांच किए। एक चैनल अंग्रेजी समाचारों का है- हेडलाइंस टुडे । हिंदी में एक और चैनल 2005 में लांच किया गया-तेज़ जिसका मकसद था फटाफट अंदाज में खबरों को पेश करना। इसके अलावा 2008 में दिल्ली-एनसीआर की खबरों के लिए ‘दिल्ली आज तक’ को लांच किया गया। इस तरह अब टीवी टुडे के 4 चैनल एक साथ चल रहे हैं। आज देश की 50 प्रतिशत से भी ज्यादा जनता आज तक न्यूज चैनल को देखती है। अब यह चैनल भारत में Free-to-Air भी है लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर यह पैसे लेता है। आज तक ने लगातार 16 सालो तक Indian Television Academy Award से Best News Channel का अवार्ड मिला है।
‘आजतक’ के आने से सबसे बड़ा झटका ज़ीटीवी के न्यूज़ चैनल ‘ज़ी न्यूज़’ और ‘स्टार-एनडीटीवी’ के चैनल को लगा और इसी के साथ नए-नए प्राइवेट समाचार चैनलों की शुरुआत का रास्ता भी प्रशस्त हो गया।
‘आज तक’ और स्टार न्यूज़ ( अब ABP न्यूज़) में शुरुआती समानता ये थी कि तमाम ऐसे कर्मचारी उसमें काम कर रहे थे, जो ‘आज तक’ में भी काम कर चुके थे। साथ ही ज़ी न्यूज़ के भी चुने हुए धुरंधर संजय पुगलिया की टीम में शामिल होकर स्टार न्यूज़ के सदस्य बने। चूंकि स्टार की प्रतिद्वंद्विता मुख्य रूप से ‘आज तक’ से थी, लिहाजा चैनल के लिए कर्मचारियों की टीम बनाते हुए इस बात का खास ख्याल रखा गया कि जो लोग ‘आज तक’ की खबरिया मानसिकता से वाकिफ हों, वही उसकी काट हो सकते हैं। स्टार न्यूज़ को चलाने के लिए MCCS नाम की कंपनी बनने के बाद संपादकीय परिवर्तन भी हुए और संजय पुगलिया की जगह उदय शंकर ने ले ली, जो तब तक ‘आज तक’ के न्यूज़ डायरेक्टर हुआ करते थे। स्टार न्यूज़ में आने के बाद उदय शंकर ने भी नई ऊंचाइयां छुईं। रूपर्ट मर्डोक परिवार ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और शायद पहली बार एक भारतीय पत्रकार को विदेशी मीडिय़ा समूह के टॉप मैनेजमेंट में शामिल होने का गौरव हासिल हुआ। 2007 में उदय शंकर स्टार इंडिया के हेड बना दिए गए। उदय शंकर के बाद से शाजी ज़मां ने स्टार न्यूज़ (अब एबीपी न्यूज़) की कमान संभाली। स्टार न्यूज़ ने लांचिंग के बाद मुंबई में हुई भीषण बारिश के दौरान जोरदार कवरेज की और ‘आज तक’ समेत तमाम चैनलों को पीछे छोड़ दिया।
इंडिया टीवी :
इंडिया टीवी चैनल की शुरुवात 20 मई 2004 को प्रोडक्शन हाउस ‘इंडिपेंडेंट न्यूज़ सर्विसेज़ प्राइवेट लिमिटेड’ के द्वारा रजत शर्मा और उनकी पत्नी रितु धवन ने ‘आपकी आवाज’ की टैगलाइन के साथ की थी। इस चैनल ने स्वतंत्र न्यूज सर्विस के रूप में 1998 में ही शुरुवात कर दी थी, जिसे बाद में इंडिया टीवी नाम दिया गया। उल्लेखनीय है कि 1992 से ही रजत शर्मा ज़ी टीवी से अपने खास टॉक शो ‘आपकी अदालत’ के साथ जुड़े और ज़ी के डायरेक्टर भी रहे। ज़ी से अलग होने के बाद एनडीटीवी के साथ चल रहे स्टार न्यूज़ में भी ‘जनता की अदालत’ शो जारी रखा। 1997 में रजत शर्मा ने पत्नी ऋतु शर्मा के साथ ‘इंडिपेंडेंट न्यूज़ सर्विस’ की स्थापना की, जो इंडिया टीवी की पितृ कंपनी है। शर्मा चूंकि ‘आप की अदालत’ से काफी लोकप्रिय हो चुके थे जिसके कारण इस चैनल की पहुच भी काफी घरों तक पहुची।
इंडिया टीवी चैनल ने शुरुआत में तो बॉलीवुड के कास्टिंग काउच और नेताओं के सेक्स स्कैंडल दिखाकर लोकप्रियता बटोरने की कोशिश की, लेकिन लंबे समय तक खबरिया हथकंडों में कामयाबी नहीं मिली, और ना ही रजत शर्मा को अपने चेहरे की ब्रांडिंग का कोई फायदा मिला तो उन्होंने आखिरकार खांटी खबरिया संपादक औऱ ज़ी न्यूज़ में अपने सहयोगी रहे विनोद कापड़ी को अपने साथ जोड़ा। विनोद कापड़ी की अगुवाई में इंडिया टीवी ने कम वक्त में ही बुलंदियां हासिल कर ली और लगातार वो टीआरपी के चार्ट में पहले से तीसरे नंबर तक अपनी जगह बनाने में कामयाब रहा। इंडिया टीवी का न्यूज़ स्टूडियो एशिया का सबसे बड़ा स्टूडियो है जो दिल्ली के नॉएडा में स्थित है। इंडिया टीवी वर्तमान में 800 करोड़ का न्यूज चैनल है।
सहारा समय :
सहारा समय भी हिंदी का 24×7 चलने वाला है जिसकी शुरुवात सहारा इंडिया परिवार ने की थी। ये भी भारत के टॉप 10 न्यूज चैनलों में से एक गिना जाता है। वित्तीय और मीडिया सहित कई और क्षेत्रों में हाथ आजमाने वाली कंपनी सहारा इंडिया ने भी सन 2000 में इलेक्ट्रानिक मीडिया में कदम रखा और सन 2000 में सहारा टीवी लेकर आए, जिस पर शुरुआत में समाचार भी चलते थे और एंटरटेनमेंट प्रोग्राम भी। मशहूर पत्रकार विनोद दुआ इस चैनल पर रोजाना अपना समाचार आधारित कार्यक्रम ‘प्रतिदिन’ और शनिवार को अपना साप्ताहिक समाचार आधारित कार्यक्रम ‘परख’ लेकर आते थे। सहारा ग्रुप ने 2002 -2003 में समाचार के लिए ‘सहारा समय’ नाम से अलग से चैनल लांच कर दिया और मनोरंजन चैनल को भी अलग कर दिय़ा गया। 2004 में मनोरंजन चैनल को सहारा वन नाम दे दिया गया और फिल्मों के लिए भी 2 और चैनल लांच कर दिए गए। सहारा इंडिय़ा के समाचार चैनल सहारा समय के साथ-साथ कई और क्षेत्रीय चैनल भी लांच किए गए, जो मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़, यूपी-उत्तराखंड, बिहार-झारखंड, राजस्थान, दिल्ली-एनसीआर, मुंबई वगैरह की खबरें दिखाते हैं। सहारा के समाचार चैनलों की कमान बदलती रही है। शुरुआती दौर में ‘राष्ट्रीय सहारा’ अखबार से जुड़े विभांशु दिव्याल और फिर प्रभात डबराल ने काफी समय तक इसका संचालन किय़ा। इसके बाद अरुप घोष-शीरीन की जोड़ी इसे चलाती रही। ‘आज तक’ के जाने माने चेहरे पुण्य प्रसून वाजपेयी को भी इसकी कमान दी गई जिन्होंने इसका नाम सिर्फ ‘समय’ कर दिया। इसके बाद स्टार न्यूज़ से जुड़े रहे उपेंद्र राय को भी इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई। संपादक आते-जाते रहे लेकिन ये चैनल काफी विश्वसनीयता के साथ आगे बढ़ता जा रहा है।
चैनल-7/आईबीएन-7 / न्यूज़-18 इंडिया:
निजी समाचार चैनलों की देश में शुरुआत हुई, तो अखबार निकालने वाले समूहों ने भी इसमें हाथ आजमाना शुरु किया। टाइम्स ग्रुप ने अंग्रेजी में समाचार चैनल लांच किया, तो दैनिक जागरण के प्रकाशन समूह ने भी हिंदी चैनल लाने की योजना बनाई और अप्रैल 2005 में चैनल 7 के नाम से चैनल लांच भी कर दिया। लेकिन जागरण ग्रुप इस चैनल को लंबे समय तक चलाने में नाकाम रहा और आखिरकार 15 अगस्त 2006 को इस चैनल की बड़ी हिस्सेदारी नेटवर्क 18 और राजदीप सरदेसाई के नेतृत्व वाले Global Broadcast News Ltd. (GBN) ग्रुप ने खरीद ली। इसके बाद IBN18 Broadcast Limited कम्पनी के तहत चैनल का नाम ‘आईबीएन-7’ (IBN – Indian Broadcast Network) ) हो गया और अब इस चैनल की टैगलाइन है- ‘खबर हर कीमत पर’। इस तरह ये चैनल बिजनेस चैनल और अंग्रेजी समाचार चैनल चलानेवाले TV 18-नेटवर्क 18 ग्रुप में हिंदी समाचार चैनल के रूप में शामिल हो गया। शुरुआत में इस चैनल की कमान जाने माने एंकर अरूप घोष के हाथों में थी, इसके बाद अजीत साही और फिर ‘आज तक’ से आए आशुतोष ने मैनेजिंग एडिटर के रूप में इसका संचालन संभाला। संजीव पालीवाल इसके प्रमुख कार्यकारी संपादक हैं। हार्डकोर खबरों और उनके विश्लेषण पर केंद्रित रहना इस चैनल की खासियत है। चर्चित पत्रकारों राजदीप सरदेसाई, आशुतोष (जिन्होंने बाद में आप पार्टी ज्वाइन कर ली), संदीप चौधरी की अगुवाई में ये चैनल सार्थक खबरिया पत्रकारिता की राह में आगे बढ़ा। 2014 में इस चैनल ने अपना स्लोगन बदलकर ‘हौसला है ‘ रख दिया। 2015 में IBN-7 भारत के टॉप-3 हिंदी न्यूज़ चैनल में से एक गिना जाने लगा। इधर 1 जनवरी 2017 से इसका नाम ‘न्यूज़ 18 इंडिया’ के रूप में परिवर्तित हो गया है।
न्यूज़ 24 :
मशहूर पत्रकार अनुराधा प्रसाद और पत्रकार से राजनेता बने राजीव शुक्ल की ओर से 1993 से चलाए जा रहे प्रॉडक्शन हाउस BAG फिल्म्स भी 2007 में ‘न्यूज़ 24’ समाचार चैनल ‘हर खबर पर नज़र’ टैगलाइन के साथ खबरों के बाजार में उतरा। अपनी प्रस्तुति की वजह से लांच होने के चार साल के अंदर ये चैनल टीआरपी की होड़ में कई चैनलों को पीछे छोड़ चुका है। इसका संपादकीय नेतृत्व अजीत अंजुम के हाथों में है। न्यूज़ 24 भी एक free-to-air चैनल है। इस चैनल को अजित अंजुम, अनुराधा मिश्रा और अनुराधा प्रसाद चलाते है।
इंडिया न्यूज़ :
समाचार चैनलों में सियासी हस्तियों की दिलचस्पी जगजाहिर है। 11 फरवरी 2008 को दिल्ली के ITV यानी Indian company Information TV (ITV) Media Group मीडिय़ा ग्रुप ने ‘देश की धड़कन’ की टैग लाइन से ‘इंडिया न्यूज़’ लांच किया जिसके कर्ता धर्ता कार्तिकेय शर्मा हरियाणा के कांग्रेस नेता विनोद शर्मा के बेटे हैं। विनोद शर्मा के दूसरे बेटे मनु शर्मा दिल्ली के जेसिका लाल हत्याकांड में सज़ायाफ्ता हैं। इस चैनल से 2013 में मशहूर पत्रकार दीपक चौरसिया भी जुड़ चुके हैं और चैनल को नई पहचान देने में जुटे हैं। इस चैनल का स्लोगन ‘देश की धडकन’ है। इस चैनल से जुड़े कई क्षेत्रीय चैनल भी हैं- इंडिया न्यूज़ हरियाणा, इंडिया न्यूज़ मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़, इंडिया न्यूज़ बिहार। साथ ही इस चैनल ने अंग्रेजी चैनल न्य़ूज़ एक्स को भी खरीद लिया है। इस तरह ये एक बड़े मीडिया ग्रुप के रूप में उभर रहा है।
राज्यसभा टीवी :
समाचारों का प्रसारण राज्यसभा टीवी पर भी होता है, जिसे 2011 में लांच किया गया, हालांकि इसकी कोई कारोबारी मानसिकता नहीं है और खबरों के चयन का तरीका आम चैनलों से अलग है। लेकिन कम वक्त में ही ये चैनल करंट अफेयर्स चैनलों में अपनी खास पहचान बनाने में सफल हुआ है। चैनल की कमान गुरदीप सिंह सप्पल और राजेश बादल के हाथों में है।
न्यूज़ नेशन :
राष्ट्रीय समाचार चैनलों में नवीनतम नाम ‘न्यूज़ नेशन’ का है, जिसे 2013 में ही लांच किया गया है। चैनल की अगुवाई वरिष्ठ पत्रकार शैलेष कर रहे हैं, जो ज़ी न्यूज़, आज तक जैसे चैनलों में लंबी पारी खेल चुके हैं। साथ ही आज तक और स्टार न्यूज़ के नामी एंकर अजय कुमार भी इससे जुड़े हुए हैं। इसके संपादकीय विभाग में वरिष्ठ पत्रकार सर्वेश तिवारी भी हैं। रोजगार पर खतरे के संकट से गुजर रहे टीवी में काम करनेवाले तमाम युवाओं के लिए य़े चैनल आशा की किरण बन कर लांच हुआ। चैनल से काफी उम्मीदें हैं बशर्ते ये सुचारू रूप से चलता रहे।
अन्य चैनल : लाइव इंडिया, जनमत आदि
एक और समाचार चैनल जो टीआरपी चार्ट में अपनी जगह के उतार-चढ़ाव को लेकर चर्चा में रहा- वो है – ‘लाइव इंडिया’। पहले पहल श्री अधिकारी ब्रदर्स ने 2005 के आसपास ‘जनमत’ नाम से इस चैनल को लांच किया था। इसके बाद इसकी हिस्सेदारी बिल्डर कंपनी HDIL को बिक गई और तब इसका नामकरण ‘लाइव इंडिया’ हुआ। एक स्टिंग ऑपरेशन को लेकर हुए विवाद को लेकर 2007 में इस पर पाबंदी भी लगी। इसके बाद इस चैनल ने नए सिरे से अपनी पहचान बनानी शुरु की, लेकिन अंदरूनी खस्ताहाली ने इसे एक बार फिर बिकने को मजबूर कर दिया। अब इसके मालिकान पुणे के कारोबारी हैं। शुरुआत में इस चैनल के साथ हरीश गुप्ता, उमेश उपाध्याय जैसे पत्रकार जुड़े थे, बाद में सुधीर चौधरी इसके संपादक बने और फिर सतीश के सिंह को इसकी कमान मिली।
स्थानीय चैनल- ई टीवी, टोटल टीवी, साधना न्यूज़, टोटल टीवी व साधना न्यूज़ :
देश में समाचार चैनलों की होड़ में क्षेत्रीय चैनल भी काफी तेजी से शामिल हुए। इसकी शुरुआत सबसे पहले हैदराबाद के इनाडु ग्रुप ने की, जिसके नेटवर्क में पहले दक्षिण भारतीय भाषाओं के और फिर ओडिशा, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश/उत्तराखंड, बिहार/झारखंड, मध्य प्रदेश/ छत्तीसगढ़ और राजस्थान के लिए भी अलग-अलग चैनल आ गए जिन पर समाचारों के अलावा मनोरंजन और करंट अफेयर्स के कार्यक्रम भी प्रसारित होते हैं। इनाडु ग्रुप के मालिक रामोजी राव की अगुवाई में शुरु हुआ यह नेटवर्क अब टीवी 18 ग्रुप का हिस्सा बन चुका है और 16 मार्च 2018 से ईटीवी का नाम न्यूज़ 18 हो गया है, और ईटीवी की तरह ही इसके उत्तराखंड-उत्तर प्रदेश चैनल भी चल रहा है।
दिल्ली-एनसीआर की खबरों पर केंद्रित चैनलों में ‘टोटल टीवी’ का भी नाम आता है, जो 2005 में लांच हुआ। टोटल टीवी यूं तो पहला ऐसा सैटेलाइट चैनल है जो किसी शहर पर केंद्रित हो, हालांकि अभी तक ये अपनी बड़ी पहचान बनाने में विफल रहा है।
क्षेत्रीय समाचार चैनलों में साधना न्यूज़ भी है जिसका मध्य प्रदेशत्तीसगढ़ चैनल सबसे ज्यादा चर्चा में है। पहले एनके सिंह, फिर एसएन विनोद और अब अंशुमान त्रिपाठी इसकी कमान संभाल रहे हैं।
बंद हो चुके समाचार चैनल-वॉयस ऑफ इंडिया,एस-1, पी 7 व महुआ न्यूज़ :
देश में समाचार प्रसारण को कारोबार बनाने के लालच ने कुछ ऐसे संगठनों और लोगों को भी समाचार चैनल लांच करने का मौका दे दिया, जिन्होंने बड़ी संख्या में लोगों के रोजगार के साथ खिलवाड़ किया। ऐसा ही एक चैनल था ‘वॉयस ऑफ इंडिया’ जो ब़ड़े ताम-झाम से 2007-2008 के दौरान लांच हुआ था, लेकिन चल नहीं सका और इसमें काम शुरु करनेवाले काफी लोग महीनों बेकार रहने को मजबूर हो गए। इसी तरह एस-1 टेलीविजन के नाम से Senior Media Limited नाम के संगठन ने अगस्त 2005 में नोएडा से चैनल लांच किया था और विस्तार के बड़े-बड़े दावे किए गए थे, जो टांय-टांय फिस्स साबित हुए और कर्मचारियों को दिक्कतें झेलनी पड़ी। ये ऐसे संगठन थे, जिनका समाचार से या मीडिया से कोई खास लेना-देना नहीं था और किराने के कारोबार की तरह जल्दी-जल्दी मुनाफा हासिल करना चाहते थे। समाचार चैनलों में एक नया नाम ‘पी 7’ न्यूज़ का भी जुड़ा। ‘सच जरूरी है’ की टैगलाइन से 24 घंटे के इस चैनल को Pearls Broadcasting Corporation Limited की ओर से नवंबर 2008 में ‘पी 7’ न्यूज़ नोएडा से लांच किया गया। टीआरपी चार्ट में तो ये चैनल करीब चार साल चलने के बाद अपनी कंपनी की बुरी आर्थिक स्थिति की वजह से 2015 में बंद हो गया। इससे पूर्व 2013 में तो इस ग्रुप की ओर से 2 और चैनल – एक दिल्ली-एनसीआर के लिए और एक मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ के लिए – लांच कर दिए गए।
ऐसा ही हाल फिल्मों की दुनिया से जुड़े एक बड़े ग्रुप का भी हुआ। ग्रुप ने भोजपुरी दर्शकों पर केंद्रित चैनल शुरु किए जिनमें एंटरटेनमेंट आधारित महुआ टीवी तो बखूबी चल रहा है, लेकिन इसका समाचार चैनल- महुआ न्यूज़ चाहे जिस वजह से हो, नहीं चल सका। ऐसे कई चैनलों के आगाज और अंत ने समाचार के कारोबार में कूदने वालों को बड़ा सबक दिया है, साथ ही टीवी समाचार चैनलों की तड़क-भड़क के वशीभूत होकर उनमें काम करने की इच्छा रखनेवालों को भी पेशे को अपनाने के बारे में सोचने का मौका दिया है।
टेलीविज़न पत्रकारिता :
आधुनिक समाज के निर्माण में संचार की अहम भूमिका है। सूचनाओं के आदान प्रदान की प्रवृत्ति के साथ साथ इसका दायरा बढना भी विकास के आधारभूत तत्वों में से एक है। सामान्य तौर पर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति का सूचना साझा करना भी संचार है किंतु जब यही प्रवृत्ति एक व्यापक जनसमुदाय और विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र तक विस्तार पाती है इस जनसंचार कहा जाता है। संचार के विभिन्न साधनों का विकास मानव सभ्यता के विकास के समानांतर चलता रहा है । यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यह दोनों बातें एक दूसरे की समानार्थी ही हैं। संचार के अभाव में सभ्यता के वर्तमान विकसित स्वरूप की कल्पना नहीं की जा सकती थी। सूचना के महत्व से मनुष्य समाज भली भांति परिचित है, और इन सूचनाओं का संप्रेषण ही उसे निरंतर नए विचार की ओर अग्रसर करता है। हम यह कह सकते हैं कि आधुनिक सभ्यता में सूचना से अधिक शक्तिशाली कोई परमाणु हथियार भी नहीं हो सकता। पुरानी व्यवस्थाओं को बदलने से लेकर नए नए वैज्ञानिक आविष्कारों तक सभी प्रकार के परिवर्तनों में सूचनाओं के आदान प्रदान का अहम स्थान है। सूचनाओं के आदान प्रदान की इसी प्रक्रिया को संचार कहा गया है। अनेक माध्यमों से जब सूचनाओं के संचार का क्षेत्र व्यापक हो जाता है तो इसे जनसंचार कहा जाता है। जनसंचार के इस व्यापक उद्देश्य को प्राप्त करने में इलैक्ट्रॉनिक माध्यमों का बड़ा योगदान है।
उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में जब तकनीक का विकास हुआ, नए नए आविष्कार हुए तो संचार ने भी नए आयामों की तरफ कदम बढाए। अब तक गांव या कबीले तक सीमित संचार व्यापक क्षेत्र और व्यापक जनसमुदाय तक विस्तार पा गया। छापेखाने के आविष्कार से शुरु हुई संचार क्रांति फोटोग्राफी,टेलीग्राफी,रेडियो और टेलीविज़न के आविष्कारों से समृद्ध होते हुए इंटरनेट तक पहुंच गई है। इंटरनेट से पहले रेडियो और टेलीविज़न ने ही वास्तविक संचार क्रांति को जन्म दिया। अनेक प्रकार की आधुनिक प्रसारण तकनीकों के आविष्कार के कारण रेडियो और टेलीविजन ने सारी दुनिया को एक इकाई के रूप में तब्दील कर दिया। सूचनाओं और विचारों का आदान प्रदान सबसे सशक्त रूप में द्रुत गति से संभव हुआ। रेडियो ने जहां आवाज़ के माध्यम से सूचनाओं को पंख लगाए वहीं टेलीविजन ने इस संचार को दृश्यात्मकता से जोड़कर आंखें प्रदान की।
समाचार , विचार, शिक्षा और मनोरंजन संचार के क्षेत्र में टेलीविज़न ने अभूतपूर्व कार्य किया है। दरअसल टेलीविजन ने समाचारों में दृश्यों के माध्यम से विश्वसनीयता को सुनिश्चित किया। कहा जाता है कि आंखों से देखी गई घटनाओं या वस्तुओं पर विश्वास करना चाहिए। टेलीविजन ने घटनाओं का विवरण प्रस्तुत करते हुए इसी कहावत जैसा विश्वास दर्शकों के मन में पैदा किया कि दिखाई दे रहा है, इसलिए टेलीविज़न पर दिया गया विवरण या जानकारी सत्य है। टेलीविज़न ने मुद्रित माध्यम की साक्षर होने की शर्त को भी अनावश्यक प्रमाणित कर दिया। टेलीविज़न ने मनोरंजन के क्षेत्र में जबरदस्त क्रांति की और लगभग एक समय दुनियाभर में सिनेमा उद्योग को कड़ी चुनौती पेश की। आज भी यदि भारतीय संदर्भ में भी देखा जाए तो सिनेमा उद्योग भी अपनी फिल्मों के प्रमोशन से लेकर रिएलिटी शोज़ तक टेलीविज़न की तरफ दौड़ता हुआ नजर आता है।
समाचार माध्यम के रूप में दुनियाभर में टेलीविज़न ने अपनी उपयोगिता सिद्ध की है। विशेष तौर पर प्रकृतिक आपदाओं, युद्धकाल और मानवाधिकारों के क्षेत्र में टेलीविजन समाचारों ने एक सक्षम परिवर्तनकारी शक्ति के रूप में कार्य किया है। वियतनाम और खाड़ी युद्धों के समाचार कवरेज के दौरान दिखाए गए दृश्यों का दुनिया में युद्ध विरोधी माहौल बनाने में खासा योगदान रहा। भारत में टेलीविज़न फत्रकारिता का इतिहास बहुत पुराना नहीं है। हालांकि भारत में टेलीविज़न प्रसारण 1959 में शुरु हुआ किंतु इसका विकास काफी धीमी गति से हुआ। सरकारी सहायता से चलने वाले दूरदर्शन का ही लगभग तीन दशक तक एकाधिकार रहा। बीसवीं सदी के आखिरी दशक में केबल टीवी के विस्तार और प्राइवेट चैनलों के आने से वास्तव में इसका मौजूदा विकसित रूप में आना संभव हो पाया। देश में प्राइवेट चैनलों पर समाचार की शुरुआत और फिर चौबीस घंटे के समाचार चैनलों की शुरुआत को अभी (2015) करीब दो दशक ही हुए हैं। अत: भारतीय संदर्भों में टेलीविज़न पत्रकारिता की चर्चा करते समय इस बात को ध्यान में रखना बेहद आवश्यक है कि इसकी यात्रा करीब बीस साल की ही है।
टेलीविज़न पत्रकारिता का अध्ययन करने के लिए सबसे पहले एक समाचार चैनल की कार्यप्रणाली को समझना आवश्यक है। हमारे देश में टेलीविजन समाचार चैनलों का इतिहास बहुत पुराना नहीं है किंतु फिर कम समय में चैनलों ने एक कारगर कार्यप्रणाली विकसित की है। एक समाचार चैनल के विभिन्न विभागों को निम्न प्रकार से बांटा जा सकता है –
(1) संपादकीय विभाग, (2) तकनीकी विभाग, (3) विपणन विभाग, (4) वितरण विभाग, (4) मानव संसाधन एवं प्रशासन,
16 मार्च 2018 से ईटीवी का नाम न्यूज़ 18 हो गया।
टेलीविजन पत्रकारिता के अध्ययन में मुख्य रूप से एक समाचार चैनल के संपादकीय विभाग की जानकारी आवश्यक होगी, किंतु शेष विभागों के बारे में भी जानकारी होना जरूरी है। संपादकीय विभाग के बारे में विस्तार से बात करने से पहले हम इन तीनों विभागों के बारे में सामान्य जानकारी साझा करेंगे।
तकनीकी विभाग – टेलीविज़न चैनल में समाचारों के लिए दृश्य सामग्री जुटाने के कार्य से लेकर इसके प्रसारण तक के कार्य में तमाम तरह के तकनीकी कार्य तथा इस प्रक्रिया में उपयोग किए जाने वाले उपकरणों की देखभाल का कार्य यह विभाग करता है। इसमें कैमरा, वीडियो एडिटिंग, ग्राफिक्स, पीसीआर , एमसीआर , स्टूडियो ऑपरेशन्स , सरवर रूम , ओबी वैन जैसे अंग प्रमुख हैं । इस विभाग से संपादकीय विभाग का सीधा संबंध होता है। यहां तक कि कैमरा, वीडियो एडिटिंग, ग्रफिक्स और पीसीआर जैसे विभागों को तो अर्धसंपादकीय, अर्धतकनीकी विभाग माना जाता है। उम्मीद की जाती है कि इन विभागों में करने वाले लोगों को संपादकीय और पत्रकारीय समझ होनी चाहिए।
विपणन विभाग – इस विभाग के अन्तर्गत चैनल के लिए विज्ञापन जुटाने का कार्य होता है। इसका संपादकीय विभाग से सीधा सीधा कोई संबंध नहीं होता है। चैनल में चलने वाले विज्ञापनों की दरें, समय और अवधि तय करने के अतिरिक्त इस विभाग का संपादकीय सामग्री के चयन के मामले में कोई दखल नहीं होता।
वितरण विभाग – किसी टेलीविज़न चैनल का यह महत्वपूर्ण विभाग होता है। टीवी चैनल को अधिकांश दर्शकों के घरों में दिखाने का दायित्व इस विभाग का होता है। इस विभाग के लोग केबल नेटवर्क और विभिन्न डीटीएच नेटवर्क के माध्यम से टीवी चैनल के प्रदर्शन को सुनिश्चित करते हैं।
मानव संसाधन एवं प्रशासन – मानव संसाधन विभाग चैनल में सभी विभागों में काम करने वाले लोगों की नियुक्तियों, इन्क्रीमेंट्स, छुट्टियों तथा निष्कासन आदि कार्य करता है। इसके अतिरिक्त कर्मचारियों के साथ संवा