राजुला-मालूशाही, उत्तराखंड की एक अप्रतिम त्याग, समर्पण और विश्वास से भरी प्रेम लोक-गाथा

डॉ. नवीन जोशी, नैनीताल (Rajula-Malushahi-a Love Folk Tale of Uttarakhand)। देश-दुनिया में लैला-मजनू, हीर-रांझा, सोनी-महिवाल व रोमियो-जूलियट आदि कई प्रेम कहानियां प्रचलित हैं, वहीं उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में भी एक ऐसी ही एक लोकगाथा-प्रेम कहानी ‘राजुला-मालूशाही’ सदियों से प्रचलित हैं, जिसमें एक प्रेम कहानी के साथ ही तत्कालीन देश-काल-परिस्थितियों को बताने वाले कथ्य तथा धार्मिक-सांस्कृतियों व ज्ञान परंपरा के भी दर्शन होते हैं।
बताया जाता है कि राजुला-मालूशाही का एक मूल भी बताया जाने वाला वर्जन जर्मनी के संग्रहालय में संग्रहीत है जिसे जर्मनी के मानव विज्ञानी कॉनरेड माइजनर ने वर्ष 1965 में भारत सरकार और जर्मन एकेडमिक एक्सचेंज सर्विस के तहत शोध करते हुए उत्तराखंड के प्रसिद्ध ‘बेड़ू पाको बारों मासा’ गीत के गीतकार-संगीतकार व रंगकर्मी मोहन उप्रेती व संगीतकार ब्रजेंद्र लाल साह कौसानी के पास रहने वाले लोक गायक गोपी दास से 2200 से अधिक लाइनों में रिकॉर्ड करवाया था और 1985 में ‘मालूशाही एंड राजुला-ए बलार्ड फ्रॉम कुमाऊं’ नाम की अंग्रेजी-हिंदी व कुमाउनी भाषा युक्त पुस्तक भी प्रकाशित करवाई थी।
प्रेम कहानी 14वीं-15वीं शताब्दी की (Rajula-Malushahi-a Love Folk Tale of Uttarakhand, Love Story)
यह प्रेम कहानी 14वीं-15वीं शताब्दी की यानी आज से लगभग 600 वर्ष पुरानी बतायी जाती है। कहानी के अनुसार उन दिनों कुमाऊँ के पहले राजवंश कत्यूरों की राजधानी बैराठ, यानी वर्तमान चौखुटिया में हुआ करती थी। उस समय बैराठ में राजा दुलाशाह का शासन था। वे निःसंतान थे। संतान प्राप्ति के लिए वे कई जगह मन्नतें मांगने जाया करते थे।
एक रात रानी के सपने में भगवान बागनाथ स्वरूप महादेव शिव आते हैं, जो उनसे कहते हैं कि उनके भाग्य में संतान सुख है। सपने में भगवान के दर्शन पाकर रानी के मन में आस जागती है और वह बागनाथ जी के दर्शन के लिए राजा के साथ बागेश्वर के लिए निकल पड़ती है। इसी उम्मीद के साथ वे एक बार बागेश्वर के बागनाथ मंदिर पहुंचे।
(इस प्रेम कहानी के कुछ संस्करणों में बागेश्वर की जगह हरिद्वार के मायापुरी स्थित गंगाघाट आने का जिक्र भी किया जाता है, जो हूण देश और बैराठ के बीच स्थित न होने के कारण अधिक सटीक नहीं लगता, अलबत्ता कुछ लोग सुनपति शौका का जालंधर देश का भी बताते हैं, जबकि शौका उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में धारचूला-मुन्स्यारी क्षेत्र में रहने वाले भोटिया समुदाय के लोगों को कहा जाता है।)
यहाँ उनकी मुलाकात भोट के व्यापारी दंपत्ति सुनपत शौका और उनकी पत्नी गांगुली से हुई। वे भी संतान की मनोकामना से यहाँ आये थे। दोनों ने एक दूसरे से वादा किया कि यदि उनकी संतानें लड़का-लड़की हुईं तो उनका आपस में विवाह कर देंगे। इस तरह नियति ने इस प्रेम कहानी की सबसे पहली नींव रखी।
बागनाथ की कृपा से बैराठ के राजा दुलाशाह को पुत्र प्राप्ति हुई जिसका नाम मालूशाह रखा गया जो मालूशाही के नाम से विख्यात हुआ। लेकिन पुत्र के जन्म के बाद ही राजा दुलाशाह को ज्योतिषी ने बताया कि ‘राजा! तेरा पुत्र बहुरंगी है, लेकिन इसकी अल्प मृत्यु का योग है। इसका निवारण जन्म के पांचवे दिन इसका ब्याह किसी नौरंगी कन्या से करने पर ही होगा।’
इस पर राजा ने राजपुरोहित को शौका देश रवाना कर दिया गया, कि वह राजुला से ब्याह करने की बात तय कर आये। राजपुरोहित के प्रस्ताव से सुनपति शौका सहमत हो गये और तत्काल नवजात पुत्री राजुला का प्रतीकात्मक विवाह मालूशाही से कर दिया गया।
इसके कुछ समय बाद ही राजा दुलाशाह की मृत्यु हो गई। दरबारियों ने इस अवसर का फायदा उठाकर दुष्प्रचार शुरू कर दिया कि जिस बालिका से मंगनी के बाद ससुर की मौत हो गई उसके राज्य में पाँव रखते ही अनर्थ हो जायेगा। इसलिये बड़े होने पर मालूशाही को यह बात न बताई जाए। राज्य में सभी लोग और रानी भी इस बात को मान जाते हैं और फैसला लेते हैं कि मालूशाही को राजुला के बारे में कभी नहीं बताया जाएगा।
समय बीता और इधर बैराठ में मालू जवानी की ओर बढ़ने लगा तो उधर भोट में रूपवती राजुला का सौन्दर्य चर्चित होने लगा। राजुला के युवा होने पर सुनपति शौका यह सोचकर व्यथित हुए कि मैंने राजा दुलाशाह को इसे बैराठ में ब्याहने का वचन दिया है, लेकिन वहां से कोई कुशल-खबर नहीं है।
इसी बीच एक दिन राजुला ने अपनी मां से सहज सवाल किया कि-
“मां दिशाओं में कौन दिशा प्यारी?
पेड़ों में कौन पेड़ बड़ा, गंगाओं में कौन गंगा?
देवों में कौन देव?
राजाओं का कौन राजा और देशों में कौन देश?”
उसकी मां ने बताया-
“दिशाओं में प्यारी पूर्व दिशा, जो पृथ्वी को प्रकाशित करती है।
पेड़ों में पीपल सबसे बड़ा, उसमें देवता वास करते हैं।
गंगाओं में सबसे बड़ी भागीरथी है, जो सबके पाप धोती है।
देवताओं में सबसे बड़े देव महादेव, जो आशुतोष हैं।
राजाओं में राजा है राजा रंगीला मालूशाही और देशों में देश है रंगीला बैराठ”
मालूशाही और बैराठ का नाम सुनकर राजुला के मन में मानो बिजली सी कौंध गई। उसे ऐसा एहसास हुआ मानो बैराठ और मालूशाही से उसका कोई जन्मों का रिश्ता है। उसने तुरंत अपनी मां से कहा कि ‘मां! मेरा ब्याह रंगीले बैराठ में ही करना।’
एक बार हूण देश का राजा विक्खी पाल (कुछ लोकगाथाओं में विक्खी पाल को विक्खी पाल भी कहा गया है) सुनपति शौका के घर आया और राजुला के रूप-सौंदर्य पर मोहित हो गया और उसने राजुला से विवाह की इच्छा प्रकट की। उसने सुनपति को धमकी दी कि अगर राजुला का विवाह उससे नहीं किया वह उसके देश को तहस-नहस कर देगा।
इन्हीं दिनों एक रात मालूशाही ने सपने में राजुला को देखा और उसके रूप पर मोहित हो गया। सपने में ही उसने राजुला को ब्याह कर ले जाने का वचन भी दिया। ठीक यही सपना राजुला ने भी उसी रात देखा। एक ओर बागनाथ के सामने दिया गया वचन और दूसरी ओर हूण राजा विक्खीपाल की धमकी। इन जटिल हालातों में राजुला ने खुद बैराठ जाने का निश्चय किया। उसने अपनी मां से बैराठ का रास्ता जानना चाहा। लेकिन मां ने उससे कहा कि बेटी तुझे तो हूण देश जाना है, बैराठ के रास्ते से तुझे क्या मतलब। क्योंकि शौकों के हूण यानी भूटान देश से रोटी-बेटी के रिश्ते होते थे।
माँ की बात सुनकर राजुला और परेशान हो जाती है, लेकिन राजुला को अपने सपने और अहसास पर यकीन था। वह जानती थी कि उसका और मालूशाह का जरूर कोई रिश्ता है। बस इसी अहसास के साथ राजुला एक रात में चुपचाप मन में प्रेम का विश्वास लिए पहाड़ों को लांघकर मुनस्यारी होते हुए एक हीरे की अंगूठी लेकर बैराठ की ओर चल पड़ती है। रास्ते में वह बागेश्वर पहुंची तो वहां से उसे एक कफू पक्षी रास्ता दिखाते हुए बैराठ ले आया।
इसी बीच मालूशाही ने भी शौका देश जाकर राजुला को ब्याह कर लाने की बात माँ के सामने रखी। राजुला का नाम सुनकर रानी स्तब्ध रह गई। रानी माँ ने उसे मना किया तो उसने भोजन त्यागकर रानियों से भी बातचीत बंद कर दी। मां सोच में पड़ गई कि जिस नाम को उन्होंने इतने सालों तक मालूशाही से छिपा कर रखा, आखिर मालूशाही के सामने वह नाम आया कैसे ? और सिर्फ नाम नहीं, बल्कि बात शादी की दीवानगी तक पहुंच गई है। डर और घबराहट रानी को घेर लेती है।
इसी दौरान राजुला भी मालूशाही के राज्य में पहुंच जाती है। रानी को जैसे ही राजुला के आने की खबर लगती है, उसे राजुला से मंगनी होने पर पति को खोने की कहानी याद आती है और वह किसी अन्य अनिष्ट की आशंका से वह और भी घबरा जाती है, और वैद्य को आदेश देती है कि वह मालूशाही को कोई जड़ी-बूटी देकर सुला दे।
वैद्य ऐसा ही करते हैं और मालूशाही को बारह वर्षों तक सुलाने वाली निद्रा जड़ी सुंघा देते हैं, इससे मालूशाही लंबी नींद में चला जाता है। इतने में राजुला, मालूशाही के पास पहुंच जाती है, लेकिन मालूशाही गहरी नींद में था। उसने मालूशाही को जगाने का अथक प्रयास किया। लेकिन वह जड़ी के वशीभूत सोता रहा। निराश होकर राजुला ने उसे अपनी हीरे की अंगूठी पहना दी और एक पत्र उसके सिरहाने रखकर रोते-रोते अपने देश लौट गई।
जड़ी का प्रभाव समाप्त होते ही मालूशाही की निद्रा खुल गयी। होश में आने पर मालू ने अपने हाथ में राजुला की पहनाई अंगूठी देखी और वह पत्र भी पढ़ा जिसमें लिखा था कि ‘हे मालू मैं तो तेरे पास आई थी, लेकिन तू तो निद्रा के वश में था, अगर तूने अपनी मां का दूध पिया है तो मुझे लेने हूण देश आना, क्योंकि मेरे पिता अब मुझे किसी और के संग ब्याह रहे हैं।’
यह पढ़कर राजा मालूशाही टूट जाता है। राजुला के विवाह की खबर भी उसे व्यथित कर देती है। उसे विश्वास नहीं होता कि उसकी अपनी माँ ने उसके साथ ऐसा किया। उसका मन उचट जाता है। लेकिन वह जानता था कि यह समय विलाप का नहीं बल्कि राजुला को हूण देश से वापस लाने का है। वह यह भी जानता था कि हूण देश के लोग तंत्र-विद्या के महारथी हैं, इसलिये उनसे मुकाबला करना आसान न होगा। इस कारण मालूशाही गुरु गोरखनाथ के पास गया और उनसे हाथ जोड़ कर विनती की कि राजुला से मिलवाने में वह उसकी मदद करें।
लेकिन गुरु गोरखनाथ भाँप चुके थे कि यह काम इतना आसान नहीं है, इसलिए उन्होंने मालूशाही से वापस जाकर राजपाठ संभालने और रानियों के साथ रहने को कहा। लेकिन मालूशाही कहां मानने वाला था। वह प्रेम में था। वह प्रेम जो उसके जीवन का लक्ष्य बन गया था। वह राजुला का दुःख भी समझ रहा था और उसे इस तरह अकेले कैसे छोड़ सकता था।
गुरु गोरखनाथ से कोई उत्तर नहीं मिला तो मालू ने अपना मुकुट और कपड़े नदी में बहा दिये और धूनी की राख शरीर पर मलकर एक सफेद धोती पहनी और गुरु के सामने गया। उसने कहा कि हे गुरु गोरखनाथ ! मुझे राजुला चाहिये, आप बताओ वह कैसे मिलेगी नहीं तो में यहीं पर जहर खाकर अपनी जान दे दूंगा। इससे द्रवित होकर गोरखनाथ ने आँखें खोलीं और फिर मालू को समझाया मालूशाही हम एक डोली सजायेंगे और उसमें एक रूपवती कन्या को बिठाकर उसका नाम राजुला रखेंगे। लेकिन मालू नहीं माना।
उसने कहा कि यह तो आप कर दोगे लेकिन मेरी राजुला जैसा रूप-सौन्दर्य कहाँ से लायेंगे। इसके बाद गुरु जी ने उसे दीक्षा देकर बोक्साड़ी विद्या सिखाई। उन्होंने उसे तंत्र-मंत्र भी दिये ताकि हूण और शौका देश का विष उस पर असर न कर सके।
मालू के कान छेदे गये और सिर मुंडाया गया। गुरु ने आदेश दिया कि जा मालू पहले अपनी मां से भिक्षा लेकर आ और महल में भिक्षा का खाना भी खाकर आ। यहाँ से मालू ने महल पहुंचकर भिक्षा और खाना मांगा। रानी ने उसे देखकर कहा कि हे जोगी! तू तो मेरा मालू जैसा दिखता है? मालू ने कहा कि मैं तेरा मालू नहीं एक जोगी हूं, मुझे भोजन करा।
रानी ने उसे भोजन परोसा। मालू ने इस भोजन के पांच ग्रास बनाये। पहला ग्रास गाय के नाम रखा, दूसरा बिल्ली को दिया, तीसरा अग्नि के नाम छोड़ा, चौथा ग्रास कुत्ते को डाल दिया और पांचवां खुद खाने लगा। यह देखकर रानी धर्मा समझ गई कि साधू के वेश में मेरा पुत्र मालू ही है, क्योंकि वह भी पंचग्रासी था।
रानी ने मालू से कहा कि बेटा तू राज पाट छोड़कर जोगी क्यों बन गया? मालू ने कहा बेसब्र न बन माँ, मैं जल्दी ही राजुला को लेकर वापस लौटूंगा। में अपनी राजुला को लाने हूणियों के देश जा रहा हूँ। रानी धर्मा के बहुत समझाने पर भी मालू नहीं माना। यह देखकर रानी ने उसके साथ अपने कुछ कत्यूरी सैनिक भी भेज दिये।
मालूशाही शरीर पर धूनी की राख मल कर जोगी के वेश में हूण देश पहुंचा। (कुछ लोक गाथाओं में मालूशाही के तोते के वेश में राजुला के पास हूण देश आने की बात भी कही जाती है) उस देश में जहर बुझे पानी के कुंड थे। जहरीला पानी मालू और उसके सभी सैनिक पीकर बेहोश हो गये। इसी बीच विष की अधिष्ठात्री विषला ने मालू को देखा तो उसे उस पर दया आ गई। उसने मालू के शरीर से विष निकाल दिया। मालू राजुला के महल पहुंचा तो वहां बड़ी चहल-पहल देखी। क्योंकि इसी दौरान विक्खी पाल राजुला को ब्याहकर यहां लाया था।
इसी बीच मालू ने अलख लगाईं ‘दे माई भिक्षा!’ तो गहनों से लदी राजुला सोने के थाल में भिक्षा लेकर आई और बोली ‘ले जोगी भिक्षा’। जोगी उसे एकटक देखता रह गया और अपने सपनों की राजकुमारी राजुला को देख कर उस पर मोहित हो गया। जोगी रूपी मालू ने कहा ‘अरे रानी तू तो बड़ी भाग्यशाली है, यहां कहां से आ गई ?’ राजुला ने जोगी को हाथ दिखाकर पूछा ‘बता मेरी हाथ की रेखायें क्या कहती हैं,’
तो जोगी ने कहा कि ‘मैं बिना नाम-गोत्र के हाथ नहीं देखता’ तो राजुला ने बताया कि ‘मैं सुनपति शौका की लड़की राजुला हूं। मेरा भाग्य कैसा है’, तो जोगी ने प्यार से उसका हाथ अपने हाथ में लिया और कहा ‘तेरा भाग कैसा फूटा, तेरे भाग में तो रंगीले बैराठ का मालूशाही था’।
यह सुनकर राजुला ने रोते हुये कहा कि ‘हे जोगी, मेरे मां-बाप ने तो मुझे विक्खी पाल से ब्याह कर गोठ की बकरी की तरह हूण देश भेज दिया’। इसके बाद मालूशाही ने अपना जोगी का चोला हटाकर कहा ‘मैंने तेरे लिये ही जोगी का वेश धारण किया है, मैं तुझे यहां से छुड़ा कर ले जाऊंगा।’
राजुला-मालूशाही, दोनों ने एक दूसरे को पहचान लिया। उनके लिए वह पल मानो रुक सा गया था। राजुला का यकीन नहीं हो रहा था कि उसके सामने उसका मालूशाही खड़ा है। दरअसल, राजुला का विश्वास कहीं न कहीं डगमगा गया था। उसे लगने लगा था कि उसका प्यार छलावा था। लेकिन मालूशाही को ऐसे सामने देखकर उसका मन दृढ़ हो गया। वह समझ गई कि उसका प्यार सच्चा था और अब उन्हें साथ होने से कोई नहीं रोक सकता।
इसके बाद राजुला ने विक्खी पाल को बुलाकर बताया कि ये जोगी बड़ा गुणवान और सौ विद्याओं का ज्ञाता है, यह हमारे बहुत काम का हो सकता है। विक्खीपाल मान तो जाता है मगर जोगी के मुख पर राजा सा प्रताप देखकर आशंकित भी हो जाता है। वह मालू को अपने महल में रख तो लेता है मगर हरदम उसकी जासूसी करवाता है। यहाँ राजुला के चोरी-छिपे जोगी से मिलने की भनक भी विक्खी पाल को लग जाती है। (Rajula-Malushahi-a Love Folk Tale of Uttarakhand, Kumaon, Love Story, Folk Tale, Lok Gatha)
आखिर मालूशाही के चेहरे और हाव-भाव से उसके बैराठ का राजा मालूशाही होने का संदेह हो गया और अंदेशा होने पर वह मालूशाही और उसके साथियों को मार देने की योजना बनाने लगा। विक्खी पाल ने महल में हलवा-पूरी व खीर बनवाई और उसमें जहर मिला दिया। मालू को खाने पर बुलाकर उसे जहर बुझी खीर खाने को दे दी गयी। खीर खाते ही मालू मर गया, यह देखकर राजुला भी बेहोश हो गई। उसी रात मालू की मां को मालू ने सपने में आकर बताया कि मैं हूण देश में मर गया हूं।
इस पर मालू की रानी माँ ने मालू के मामा मृत्यु सिंह, जो कि गढ़वाल की किसी गढ़ी के राजा थे, को सिदुवा-विदुवा रमौल और बाबा गोरखनाथ के साथ हूण देश भेजा, ताकि मालू को वापस लाया जा सके। मालू के मामा मृत्यु सिंह सिदुवा-विदुवा रमौल के साथ हूण देश पहुंचे। वहां पहुंचकर उन्होंने बोक्साड़ी विद्या के प्रयोग से मालू को पुनर्जीवित किया। इसके बाद मालू ने महल में जाकर राजुला को भी जगा दिया। (Rajula-Malushahi-a Love Folk Tale of Uttarakhand, Kumaon, Love Story, Folk Tale, Lok Gatha)
इसके बाद इनके कत्यूरी सैनिकों ने हूण सैनिकों के साथ-साथ राजा विक्खीपाल को भी मार गिराया। इसके बाद मालू ने विजय संदेश बैराठ भिजवाया कि नगर को राजुला रानी के स्वागत के लिए सजाया जाये। मालूशाही बैराठ पहुंचा जहां पर उसने धूमधाम के साथ राजुला से शादी रचाई। शादी के बाद राजुला ने कहा कि ‘मैंने पहले ही कहा था कि मैं नौरंगी हूं और जो दस रंग का होगा उसी से में शादी करुंगी। मालू तुम मेरे जन्म-जन्म के साथी हो।’
दोनों हंसी-खुशी साथ रहकर प्रजा की सेवा करने लगे। और इस तरह तमाम उतार-चढ़ावों, प्रेम के लिये जान भी दे देने जैसे बड़े समर्पण व हिम्मत को प्रदर्शित करती हुई उत्तराखंड की यह प्रेम कहानी त्याग, बलिदान और कुछ कर गुजरने की हिम्मत दिखाती हुई समाप्त हो जाती है। (Rajula-Malushahi-a Love Folk Tale of Uttarakhand, Kumaon, Love Story, Folk Tale, Lok Gatha)
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