March 29, 2024

नैनी झील एवं नैनीताल नगर के बारे में नगरवासियों की संवेदनशीलता का परीक्षण करने के लिए किया गया एक लघु शोध

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यह नैनीताल पर एक लघु शोध प्रबंध है, इसे इस लिंक पर क्लिक कर फॉर्मेट में भी देखा-पढ़ा जा सकता है @ Research Analysis on Nainital
जल को हमेशा से जीवन कहा जाता है। जल देश-प्रदेश ही नहीं, वरन विश्व का सबसे बड़ा एवं सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्राकष्तिक संसाधन कहा जाता है। यद्यपि पृथ्वी  का दो तिहाई से भी अधिक 70 प्रतिशत हिस्सा जल से ही घिरा हुआ है। बावजूद पानी ही वह प्राकृतिक संसाधन है, जिसके बिना मनुष्य जीवित नहीं रह सकता। पानी या जल हमारे जीवन में कमोबेस उस हवा से भी अधिक महत्वपूर्ण है, जिसके बिना मानव व जीव-जंतुओं की सांसें कुछ ही पलों में उखड़ सकती हैं। क्योंकि वास्तव में हवा के बिना आज तक किसी का जीवन समाप्त हुआ हो, ऐसा वृतांत इतिहास में भी नहीं मिलता, लेकिन पानी के लिये संस्कृतियों का हमेसा से सृजन व विनाश होता आया है। सिंधु व नील नदी घाटियों की सभ्यताऐं ऐतिहासिक गवाह हैं कि पानी पृथ्वी पर जीवन के लिये किस तरह सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। शायद इसीलिये इस भविष्यवाणी पर किसी को शक नहीं कि ‘यदि दुनिया में कभी तीसरा विश्व युद्ध होगा तो वह पानी के लिये ही होगा।’
नदियों की तरह ही झरने, ताल, झील, सरोवर आदि हर तरह की जल राशियां भी आदि-अनादि काल से मानव ही नहीं पशु-पक्षियों तक को आश्रय देती रही हैं। हम अपने विषय पर भी केंद्रित हों तो इस बात पर किसी को लेस मात्र भी संशय नहीं होगा कि नैनी झील के कारण ही नैनीताल नगर एवं इसकी समस्त गतिविधियों का अस्तित्व है। इसीलिये नैनी झील को नैनीताल नगर का हृदय और जीवन रेखा (लाइफ लाइन) भी कहा जाता है।
नैनी झील उत्तराखंड प्रदेश ही नहीं देश की सर्वप्रमुख झील है। कश्मीर की डल झील के बाद यदि देश की किसी झील की सर्वाधिक चर्चा होती है तो वह नैनी झील ही है। इसी झील के कारण नैनीताल की ब्रिटिश काल से ही ‘छोटी बिलायत’ और अब सरोवरनगरी के रूप में वैश्विक पहचान है। और इसीलिये अंग्रेजी दौर से ही इस नगर की सुरक्षा के प्रति अनेकों कमेटियों व अन्य माध्यमों से चिंताऐं जताई जाती रही हैं और करोड़ों रुपये की योजनाऐं नगर के लिये चलती रही हैं। नगर ही नहीं देश-दुनिया में भी संभवतया किसी भी अन्य नगर से अधिक नैनीताल प्रेमियों की कमी नहीं है। लेकिन बदलते दौर में जो बात शहर के प्रेमियों को सर्वाधिक चिंतित करती है, वह यह कि नगर के प्रति चिंता तो बहुत होती है, पर लोगों के जब कुछ करने की बारी आती है तो लोग उस तरह सहयोग नहीं देते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि लोगों की नगर के प्रति जागरूकता, चिंता किस स्तर की है।

इस लघु शोध प्रबंध में वास्तविक तौर पर यह जानने की ही कोशिश की गई है कि नगर के खासकर जागरूक लोगों की नजर में नैनीताल और नैनी झील की वास्तविक समस्या क्या है, और उन समस्याओं का क्या समाधान मानते हैं। साथ ही नगर के जागरूक लोग इन समस्याओं के प्रति कितने जागरूक हैं, वह समस्याओं का क्या समाधान मानते हैं, तथा झील की समस्याओं के समाधान के लिये वह स्वयं कितना योगदान देते हैं।

स्पष्टीकरणः
‘जागरूक’ लोगों से तात्पर्य ऐसे लोगों से है जो नगर में किन्हीं सरकारी अथवा गैर सरकारी पदों पर हैं या रहे हैं। यह ऐसे लोग हैं, जो नगर की समस्याओं के बारे में अक्सर जनता के बीच रहते हैं और चिंतित नजर आते हैं। हालांकि यह नहीं कहा जा सकता है कि वह नगर व नैनी झील के प्रति किस स्तर तक चिंतित हैं। यह लोग नगर में किसी भी तरह की योजनाओं के प्रति जनता में अच्छी-बुरी छवि बनाने में भी बड़ी भूमिका निभाते हैं।

इस विषय पर शोध की आवश्यकताः
उपरोक्त आधार पर यह तो स्पष्ट ही है कि नैनीताल नगर एवं नैनी झील देश-दुनिया की जैव विविधता एवं पर्यटन के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है। इस लिहाज से अंग्रेजी दौर से ही इस नगर एवं नैनी झील पर अनेक शोध होते आये हैं। लेकिन ऐसा कम ही देखने में आया कि इस शहर एवं नैनी झील के प्रति यहां के रहने वाले और खासकर जागरूक लोगों के क्या विचार हैं, यह जानने की कोशिश की जाऐ। ऐसी कोशिश की भी गई तो वह महज किसी बिंदु विशेश पर थी, न कि समग्र रूप में। शोधकर्ता के मन-मस्तिष्क में यह विषय हमेशा से कौंधा करता था, इसलिये पत्रकारिता एवं जन संचार में लघु शोध करने का दायित्व मिला तो इस विषय को चुना गया। और चूंकि लघु शोध के लिये काफी कम समय उपलब्ध था, इसलिये तय किया गया कि नगर के बड़ी संख्या में लोगों के विचार लेना संभव नहीं है, इसलिये नगर के प्रति जनमत बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले नगर के जागरूक लोगों से उनके विचार ले लिये जाऐं, और इस तरह इस विषय पर इस लघु शोध को किये जाने की भूमिका बनी।

भविष्य के लिये उपयोगिताः
आगे इस लघु शोध से प्राप्त निश्कर्षों को नगर के बारे विस्तृत समाजशास्त्रीय अध्ययनों में भी प्रयोग किया जा सकता है, तथा इसी लघु शोध को आगे बढ़ाते हुऐ विस्तृत शोध भी किये जा सकते हैं। जिला प्रशासन या स्थानीय नगर पालिका व झील विकास प्राधिकरण भी चाहे तो इस लघु शोध के निश्कर्षों का उपयोग योजनाओं को तैयार करने व उनके क्रियान्वयन में कर सकते हैं।

पूर्व में हुऐ शोधः
इस विषय पर एक प्रमुख शोध ‘इंटीग्रेटेड मैनेजमेंट ऑफ वाटर रिसोर्सेज ऑफ लेक नैनीताल एंड इट्स वाटरशेडः एन इनवासयरमेंटल इकोनोमिक्स एप्रोच’ विषय पर कुमाऊं विश्वविद्यालय के डीएसबी परिसर में वनस्पति विज्ञान विभाग के तत्कालीन प्रोफेसर एवं पारिस्थितिकी विशेषज्ञ प्रो. एस.पी. सिंह एवं जवाहर लाल नेहरू विश्व विद्यालय नई दिल्ली के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इकोलॉजी के प्रो. बृज गोपाल द्वारा वर्ष 2001-02 में किया गया था। इस शोध में खासकर नैनी झील एवं इसके जलागम क्षेत्र के तकनीकी पक्षों का विस्तृत अध्ययन करते हुऐ ईईआरसी एवं इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट फॉर डेवलपमेंटल रिसर्च मुबई के तत्वावधान में ‘इंटीग्रेटेड मैनेजमेंट ऑफ वाटर रिसोर्सेज ऑफ लेक नैनीताल एंड इट्स इनवायरमेंटल इकोनोमिक्स एप्रोच’ तैयार की गई। लेकिन सामाजिक पहलुओं को कम ही छुवा गया। खासकर नगरवासियों से नैनी झील एवं नगर के संवेदनशील मुद्दों के बारे में उनके विचार नहीं लिये गये, इसलिये इस शोध के लिये जिन लोगों से भी शोधकर्ता मिला, लोगों ने इसे अच्छी पहल मानते हुऐ स्वागत किया। यह रिपोर्ट मूलतः तकीनीकी प्रयोगों पर आधरित रिपोर्ट थी, बहरहाल, इसमें नैनी झील के प्रति नाव, घोड़े, फड़वालों से नैनीताल का चित्र बनाने जैसे कुछ प्रयोग किये गये थे।

सीमाऐं
गौरतलब है कि यह लघु शोध प्रबंध पत्रकारिता एवं जन संचार में मास्टर्स पाठ्यक्रम के तहत किया गया। इस कारण इस लघु शोध को पूरा करने में समय, एवं संसाधनों की सीमाऐं रहीं। इस कारण नगर के जागरूक लोगों से ही इस विषय पर विचार लिये गये हैं। ताकि यह पता लगे कि वह जानते हैं, इससे नगर के आम कम जागरूक लोगों के विचारों के बारे में भी एक पूर्वानुमान लगाया जा सकेगा।

उद्देश्य
चूंकि किसी नगर या सभ्यता के महत्वपूर्ण अंग उस नगर के रहने वाले लोग या नगरवासी ही होते हैं, और उन लोगों की गतिविधियों पर ही काफी हद तक निर्भर करता है कि उस नगर का भविष्य कैसा और कितना सुरक्षित होगा। खासकर नैनीताल जैसे विश्व धरोहर माने जाने वाले शहर के लिये, जो कि भौगोलिक रूप में काफी कमजोर बुनियाद पर स्थित हैद्व और जिसकी प्राकष्तिक जल व थल (वन में वनस्पतियों) की पारिस्थितिकी के लिहाज से बड़ी उपयोगिता है।

पूर्वानुमान
इस लघु शोध को शुरू करने से पूर्व पूर्वानुमान व्यक्त किया गया था कि नगर वासी नगर के प्रति चिंतित तो दिखाई देते हैं, नगर और नैनी झील के बारे में खूब चर्चाऐं भी करते हैं, और कई लोग तो सुबह-शाम किसी देवी की भांति नैनी झील को नमन भी करते हैं, लेकिन जब नगर की साफ-सफाई व सुरक्षा की बात आती है, तो लोगों की भूमिका केवल हाथ बांधकर सुझाव देने भर की होती है। लोग स्वयं कुछ नहीं करते हैं।

शोध प्रविधि (Research Methodology)
इस लघु शोध प्रबंध में विषय अध्ययन प्रविधि का प्रयोग किया गया। इस प्रविधि के तहत नगर के जागरूक माने जाने वाले लोगों, जिनमें संबंधित जिम्मेदार विभागों के अधिकारियों, डीएम-कमिश्नर आदि से लेकर नगर पालिका अध्यक्ष व सभासदों, राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों, प्रकष्ति एवं पर्यावरणविद्ों, नगर की नैनी झील से जुड़े उद्यमों-नाव, फड़ आदि के छोटे कारोबारियों व विषय विशेषज्ञों से प्रष्नोत्तरी के जरिये खुद उनसे सामने पूछकरएवं उन्हें प्रष्नोत्तरी देकर भरवाई जाएंगी।

शोध का प्रकारः
नैनीताल एवं नैनी झील के प्रति किया जा रहा यह लघु शोध एक तरह से म्उचपतपबंस यानी अनुभवजन्य या प्रयोगसि, प्रकार का है। इस लघु शोध में नैनीताल और नैनी झील की समस्या सामने है, और इस समस्या के विभिन्न पहलुओं की जांच करने के लिये यह लघु शोध किया जा रहा है।

शोध डिजाइनः
प्रस्तुत लघु शोध में प्राथमिक एवं द्वितियक दोनों प्रकार के डाटा का प्रयोग किया जाऐगा। प्राथमिक डाटा निम्न प्रविधियों से प्राप्त किये जाऐंगे।
1. प्रश्नोत्तरीः प्रश्नोत्तरी में 25 प्रश्न क्लोज इंडेड यानी हां, नहीं जैसे उत्तरों वाले प्रयोग किये जाऐंगे।
2. 12 प्रश्न सेमी क्लोज इंडेड होंगे, जिनमें कई विकल्प दिये जाऐंगे, साथ ही उत्तरदाता को इन प्रश्नों के एक से अधिक उत्तर सही लगने पर अपनी प्राथमिकता देने की भी छूट होगी।
3. इसके अलावा 13 प्रश्न ओपन इंडेड होंगे, इनके उत्तरों में उत्तरदाता अपनी राय दे सकेंगे।

प्रश्नोत्तरी को साक्षात्कार के रूप में भी कई जगह प्रयोग किया सकता है।
पूर्व से उपलब्ध आंकड़ों-डाटा का प्रयोग भी द्वितियक डाटा के रूप में किया जाऐगा।

प्रश्नोत्तरी का प्रारूप

1. नैनी झील कितनी महत्वपूर्ण झील हैः
अ. बहुत ब. थोड़ी स. पता नहीं
2. क्या नैनी झील की स्थिति में हालिया वर्षों में बदलाव आये हैं: हां / नहीं
3. बदलाव सकारात्मक हैं या नकारात्मक: सकारात्मक / नकारात्मक
4. क्या आप नैनी झील के प्रति चिंतित हैं: हां / नहीं
5. नैनी झील की सेहत को कौन से कारण अधिक प्रभावित करते हैं ?
अ. प्राकृतिक ब. मानवीय हस्तक्षेप स. दोनों
6. क्या मौसम नैनी झील की सेहत को प्रभावित करता है: हां / नहीं
7. क्या आप नैनी झील की सफाई से संतुष्ट हैंः हां / नहीं
8. क्या आप नैनी झील में चल रही झील संरक्षण परियोजना के कार्यों से संतुष्ट हैं ?
अ. हां ब. नहीं स. आंशिक
9. क्या शहर में होने वाले निर्माण नैनी झील की सेहत को प्रभावित करते हैं: हां / नहीं
10. क्या नैनी झील में मलवा आना रुका है: हां / नहीं
11. क्या घरों के किचन व बरसाती नालियों का पानी सीवर लाइन में जाने से रोककर सीवर लाइनों को उफनने व झील को प्रदूषित होने से रोका जा सकता है: हां / नहीं
12. क्या पानी का उपयोग कम करके झील को बचाने में योगदान दिया जा सकता है: हां / नहीं
13. क्या आपको लगता है अनियंत्रित विकास व निर्माण कार्य झील की सेहत बिगाड़ने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं: हां / नहीं
14. क्या झील के सूखाताल जैसे जलागम क्षेत्रों को वहां हुऐ अतिक्रमण ढहाकर झील को पुनर्जीवित किया जाना चाहिऐ: हां / नहीं
15. नैनीताल में चल रही ‘मिशन बटरफ्लाई’ योजना से आप संतुष्ट हैं: हां / नहीं
16. क्या नैनीताल नगर में पर्यटन अनियंत्रित हो गया है: हां / नहीं
17. क्या ‘लेक ब्रिज चुंगी’ अपने उद्देश्य के अनुरूप नैनीताल में वाहनों का प्रवेश रोक रही है: हां / नहीं
18. क्या फ्लैट मैदान में बहुमंजिला पार्किंग बना दी जानी चाहिऐ: हां / नहीं
19. क्या शहर के बाहर बल्दियाखान, कैलाखान, चारखेत में पार्किंग बनाने से पार्किंग समस्या का हल हो जाऐगा: हां / नहीं
20. नैनी झील में तैराकी होनी चाहिऐ: हां / नहीं
21. क्या नैनी झील का जल स्तर शून्य से नीचे (माइनस में) नापने की व्यवस्था भी होनी चाहिऐ: हां / नहीं
22. क्या नैनीताल में पेयजल की आपूर्ति के लिये डीजल-पेट्रोल चालित पंप लगने चाहिऐ: हां / नहीं
23. क्या नगर में भवनों की ऊंचाई 35 फिट तक बढ़ाई जानी चाहिये: हां / नहीं
24. क्या नगर में हरियाली/पेड़ कम हो रहे हैं: हां/नहीं
निम्न सवालों के जवाब में अपनी प्राथमिकता भी बताये-
25. नैनी झील की महत्ता किस स्तर तक है:
अ. नैनीताल शहर के लिये ब. उत्तराखंड प्रदेश के लिये स. देश के लिये द. विश्व भर के लिये
26. बीते कुछ वर्षों में कौन से मौसमी परिवर्तन है, जिस कारण नैनी झील की सेहत प्रभावित हुई है ?
क. गर्मी बढ़ना ख. गर्मी कम होना ग. सर्दी बढ़ना घ. सर्दी कम होना च. बरसात अधिक होना छ. बरसात कम होना ज. बर्फवारी कम होना
27. नैनी झील को संरक्षित करना किसकी जिम्मेदारी है ?
अ. प्रशासन की ब. जनता की स. एनजीओ की द. नगरपालिका
28. झील से मलवा किस विधि से निकाला जाऐ ?
अ. मजदूरों से ब. मशीनों से स. दोनों से द. झील में मलवा जाने से ही रोका जाऐ
29. झील की दुर्दशा के लिये आप किसे सर्वाधिक दोषी मानते हैं ?
अ. जिला प्रशासन ब. नगर पालिका स. झील विकास प्राधिकरण द. नगर की जनता
30. गर्मियों में झील का जल स्तर अत्यधिक गिरने का कारण क्या रहा ?
अ. लंबे समय बारिश न होना ब. झील से पानी का रिसाव स. पानी का सीजन में बड़ा उपभोग द. जल स्तर अधिक नहीं गिरा था, झील के किनारे मलवा भरने से उथले हो गये थे
31. नालों से झील में भारी मात्रा में मलवा पहुंचता है, इसे कैसे रोकें ?
अ. नालों में मलवा न डालकर ब. मलवा डालना रोका नहीं जा सकता, प्रशासन नालों से मलवा हटाये स. मलवा हटाने की अंग्रेजों के जमाने की कैच पिट व जाली व्यवस्था पुर्नजीवित हो द. मलवा हटाने की कोई आधुनिक व्यवस्था हो
32. क्या नैनीताल में निर्माण पूरी तरह प्रतिबंधित हो जाने चाहिएः
अ. हां बः नहीं स. व्यवसायिक निर्माण न हों दः व्यवसायिक की इजाजत भी न हो च. सरकार आम लोगों के लिये शहर के निकट आवासीय कालोनी बनाऐ
33. सीवर लाइनों के उफनने से झील प्रदूषित होती है, इसे कैसे रोकें ?
अ. सीवर लाइनों की क्षमता बढ़ाकर ब. घरों के किचन व बरसाती नालियों का पानी सीवर लाइन में जाने से रोककर स. सीवर लाइनों की नियमित सफाई कर द. नहीं रोक सकते
34. नैनीताल में कैसी सड़कें बनें: अ. बनें ही नहीं ब. डामर की स. सीमेंट-कंक्रीट की द. कच्ची ही रहें
35. नैनी झील को कौन सा खतरा सबसे बढ़ा है:
1. शहर में अनियंत्रित विकास 
2. मलवे का गलत निस्तारण 
3. झील के जलागम क्षेत्र (Catchment Area) में वृक्षों का पातन 
4. झील की तलहटी में स्थित प्राकृतिक जल श्रोतों का प्लास्टिक जैसी गंदगी के कारण बंद हो जाना 
5. झील के सूखाताल जैसे जलागम क्षेत्रों में प्राकृतिक जल श्रोतों का निर्माणों के कारण बंद हो जाना 
6. झील के पानी का आवश्यकता से अधिक दोहन 
7. झील से पानी का रिसाव 
8. बारिश के पानी का सीवर लाइनों के जरिये झील से बाहर चले जाना, क्योंकि छतों, नालियों, रसोई, बाथरूम का पानीभी सीवर लाइन में जोड़ दिया गया है। 
9. घरों-कार्यालयों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग का प्रबंध न होना 
10. शहर के अधिकांश संपर्क मार्गों का कंक्रीटीकरण हो जाना 
11. शहर में बर्फ पढ़ने में आई कमी जैसे प्राकृतिक कारण 
39. जब आपके आसपास सीवर बहकर झील में जाता है तब आप क्या करते हैं-
अ. मुंह फेर लेते हैं ब. शिकायत दर्ज कराते हैं स. हां तो किसे……………………………………………
36. नगर का आधार बलिया नाला की मजबूती के लिए क्या होः …………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………..
37. नगर के खतरनाक चिन्हित स्थानों में यदि आपको सस्ती भूमि मिले तो अपने लिए घर बनायेंगेः हां/नहीं
38. क्या झील की स्थिति, पारिस्थितिकी ;म्बव ैलेजमउद्ध में बीते पांच वर्षों में सुधार आये हैं, यदि हां तो क्या (कृपया विवरण दें) ……………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………
39. क्या झील की स्थिति, पारिस्थितिकी ;म्बव ैलेजमउद्ध में बीते पांच वर्षों में बदतर हुई है, यदि हां तो कैसे? (कृपया विवरण दें) ……………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………
40. झील संरक्षण परियोजना के तहत क्या सही हो रहा है ? ………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………..
41. झील संरक्षण परियोजना के तहत क्या सही नहीं हो रहा …………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………
42. झील संरक्षण परियोजना के तहत आपके अनुसार होना चाहिए? ………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………..
43. क्या आप नैनी झील व नगर को संरक्षित करने के लिये अपने पद या अपनी संस्था के तहत कुछ करते हैं? (कृपया कम से कम शब्दों में विवरण दें) ……………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………….
44. क्या आप व्यक्तिगत स्तर पर नगर के पर्यावरण संरक्षण के लिए कुछ करते हैं ? (कृपया कम से कम शब्दों में विवरण दें) ………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………….
45. लोगों को झील में मलवा डालने से कैसे रोका जाऐ ? (कम से कम शब्दों में तरीका सुझाऐं) ……………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………..
46. क्या आप पानी बचाने में अपनी ओर से कोई योगदान देते हैं ? हां, तो कैसे ……………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………..
47. निर्माण कार्यों में कैसे कमी आये, सुझाव दें ………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………….
48. क्या नैनी झील से पानी का रिसाव हो रहा है ? यदि हां, तो यह कैसे रुके ? (सुझाव दें) ……………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………..
49. क्या वाहनों का प्रवेश रुकना चाहिऐ ? हां तो कैसे ………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………..

अन्य कोई सुझाव: ……………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………

नामः ……………………………………………………………………उम्रः ……………………..

पद नामः ……………………………………………

पताः……………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………….

फोन नंबरः …………………………………………………………………………. दिनांकः ……………………………………..

हस्ताक्षर:

डाटा एनालिसिस की प्रविधिः
इस प्रकार प्राप्त डाटा का कंप्यूटर पर तैयार एक खास तौर पर तैयार किये गये सॉफ्टवेयर की मदद से एनालिसिस किया जाऐगा, ताकि लोगों के किसी भी प्रश्न पर दिये गये विचारों का विस्तष्त अध्ययन किया जा सके। इससे पूर्व सभी प्रश्नोत्तरियों का प्रश्नवार वर्गीकरण भी किया जाऐगा, ताकि डाटा का सही तरीके से अध्ययन किया जा सके।

शोध तकनीक एवं शोध का प्रकारः
इस लघु शोध में केस स्टडी तकनीक एवं इंपेरिकल यानी अनुभवजन्य तकनीक का प्रयोग भी किया जाऐगा, क्योंकि जिस विषय पर यह शोध होना है, वह लोगों के अनुभवों पर आधारित है। इस विषय में लोगों पर किसी तरह के आर्थिक जैसे आंकिक प्रभाव का अध्ययन नहीं होना है।

शोध का क्षेत्रः
इस अध्ययन में फील्ड या क्षेत्र नैनीताल नगर होगा, क्योंकि यह अध्ययन विशुद्ध तौर पर नैनीताल नगर एवं यहां मौजूद नैनी झील पर होना है। बहरहाल, कुछ ऐसे लोगों से भी बात की जा सकती है, जो इस स्थान में तो वर्तमान में नहीं रहते हैं, पर इस स्थान से संबंध के साथ ही गहरा जुड़ाव भी रखते हैं।

सैंपलिंगः
इस लघु शोध को पूरा करने के लिये चूंकि समय सहित हर तरह की सीमाऐं हैं, और यह पत्रकारिता एवं जन संचार के मास्टर्स पाठ्यक्रम का हिस्सा मात्र है, इसलिये सैंपल का आकार अधिकतम् 40-50 लोगों तक ही सीमित हो सकता है। इतनी कम संख्या के सेंपल सही निश्कर्ष व परिणाम दे सकें, इस हेतु ऐसे लोगों के ही सेंपल चुने जा सकते हैं जो नगर में प्रभावोत्पादक हों। यानी उनका समाज में अपना प्रभाव हो, अथवा वह स्वयं व्यक्तिगत या संस्थगत तौर पर कोई योगदान दे सकने में समर्थ हों। समय की बाध्यता के कारण ऐसे लोगों को ही सैंपल के रूप में चुनने की बाध्यता भी हो सकती है, जो विषय के जानकार हों, और साथ ही आसानी से उपलब्ध भी हों।

सैंपल में शमिल लोगों का वर्गीकरण :
1. नाव चालक
2. नगर पालिका के वर्तमान सभासद
3. नगर पालिका के पूर्व सभासद
4. व्यापार मंडल अध्यक्ष
5. बैंक कर्मी
6. छायाकार
7. प्रोफेसर
8. कालेज के निदेशक
9. स्कूल प्रबंधक
10. स्कूल प्रधानाचार्य
11. कालेज के शोध छात्र
12. फार्मेसी अधिकारी
13. चिकित्सा अधिकारी
14. पुलिस अधिकारी
15. अभियंता
16. जल संस्थान के अधिकारी
17. पर्यावरणविद्
18. इतिहासकार
19. चिकित्सक
20. फड़ व्यवसायी
21. नाव चालक
22. झील विशेषज्ञ
23. भूगोल विद्
24. भूगर्भ वेत्ता
25. वनस्पति शास्त्री
26. पूर्व कुलपति
27. ट्रेवल एजेंट
28. टैक्सी ड्राइवर
29. समाज सेवी, सामाजिक कार्यकर्ता
30. सत्तारूढ़ राजनीतिक दल के प्रतिनिधि
31. विपक्षी राजनीतिक दल के प्रतिनिधि
32. पत्रकार
33. होटल स्वामी
34. पर्यटन विशेषज्ञ
35. बुजुर्ग नागरिक
36. युवा
37. महिलाऐं
38. वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी
39. झील विकास प्राधिकरण के उच्चाधिकारी
40. झील विकास प्राधिकरण के अभियंता
41. नगर पालिका के अधिकारी
42. लेखक, साहित्यकार
43. वन कर्मी, अधिकारी
44. सूखाताल, शेर का डांडा, नैना, आल्मा, सात नंबर, कृष्णापुर, लोवर डांडा, अपर डांडा, मल्लीताल बाजार, तल्लीताल बाजार आदि अनेक नगर क्षेत्रों के निवासी।
45. नगर के प्रवासी।

डाटाः
इस लघु शोध में दोनों तरह के डाटा लिये जाऐंगे।
1. प्राथमिक डाटाः इसके अंतर्गत प्रश्नोत्तरी, साक्षात्कार एवं फील्ड नोट आदि डाटा एकत्र करने के प्रमुख आधार होंगे। प्रश्नोत्तरी लोगों को ई-मेल के जरिये भी भेजी जा सकती हैं,
2. द्वितियक डाटाः इसके अंतर्गत पूर्व में झील विकास प्राधिकरण व लोक निर्माण विभाग के झील नियंत्रण कक्ष में उपलब्ध बारिश व झील के जल स्तर संबंधी आंकड़े व इंटरनेट पर नगर के बारे में उपलब्ध जानकारी आदि को लिया जाऐगा।

डाटा एकत्र करने के उपकरणः
इस लघु शोध प्रबंध के लिये खासकर प्राथमिक डाटा एकत्र करने के लिये प्रश्नोत्तरी एवं साक्षात्कार तकनीक का प्रयोग किया जाऐगा। इस दौरान एकत्र फील्ड नोट, प्द कमचजी पदजमतअपमू व स्थितियों का बारीकी से अध्ययन भी डाटा एकत्रीकरण में बड़ी मदद कर सकते हैं।
वहीं द्वितियक डाटा संबंधित विभागों से तथा इंटरनेट पर नेट सर्फिंग के जरिये एकत्र किये जाऐंगे।

शोध एनालिसिस

1. हमारा पहला प्रश्न था: नैनी झील कितनी महत्वपूर्ण झील है ? इसके तीन विकल्प थे
1. बहुत 2. थोड़ी 3. पता नहीं
इस प्रश्न के उत्तर में 98 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने नैनी झील को बहुत महत्वपूर्ण बताया, जबकि केवल दो प्रतिशत ने इस बारे में जानकारी से इंकार किया। लेकिन किसी ने भी नहीं कहा कि दूसरा विकल्प नहीं दिया। इस प्रकार कह सकते हैं कि निर्विवाद तौर पर नैनी झील बेहद महत्वपूर्ण है।

2. दूसरे प्रश्न ‘क्या नैनी झील की स्थिति में हालिया वर्षों में बदलाव आये हैं ?’ के जवाब में दो विकल्प हां और नहीं दिये गये थे। इस प्रश्न के जवाब में 93 फीसद लोगों ने बदलाव आने की बात कही। केवल सात प्रतिशत लोगों का मानना था कि बदलाव नहीं आये हैं।

3. तीसरे प्रश्न का जवाब कमोबेश उन लोगों के लिये था जो नैनी झील में बदलाव आने की बात मानते थे, लेकिन सभी लोगों ने इस प्रश्न का जवाब दिया। इनमें से 56 फीसद लोगों ने जवाब दिया कि नैनी झील में सकारात्मक बदलाव आये हैं, जबकि शेष 44 फीसद के जवाब नकारात्मक थे। यह पहला सवाल था, जिसमें लोगों की राय करीब-करीब बराबर बंटी हुई थी।

4. अगला सवाल लोगों में नैनी झील के प्रति चिंता के बाबत पूछा गया। इस प्रश्न के जवाब में 98 फीसद लोगों ने स्वयं को नैनी झील के प्रति चिंतित दिखाया। यह आंकड़ा उत्तरदाताओं द्वारा स्वयं को नैनी झील के प्रति चिंतित दिखाने का कुछ हद तक झूठा प्रयास हो, इससे पूरी तरह इंकार नहीं किया जा सकता। बहरहाल, दो फीसद लोग कह पाये कि वह नैनी झील के प्रति चिंतित नहीं हैं।
इनमें एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल के जिला अध्यक्ष का जवाब उल्लेखनीय है। जिन्होंने जवाब दिया कि वह नैनी झील के प्रति चिंतित नहीं हैं। उनका कहना था कि वह आश्वस्त हैं कि झील को कुछ नहीं होगा।

5. पांचवे प्रश्न में लोगों के नैनी झील के प्रति चिंता के स्तर को जानने के लिये प्रश्न पूछा गया था कि नैनी झील की सेहत को कौन से कारण अधिक प्रभावित करते हैं ? इस प्रश्न के जवाब में 1. प्राकृतिक 2. मानवीय हस्तक्षेप व 3. दोनों के विकल्प दिये गये थे। इस प्रश्न के जवाब में केवल 10 फीसद लोगों ने प्राकृतिक कारण का विकल्प दिया। लेकिन 43 फीसद लोगों ने मानवीय हस्तक्षेप को कारण बताया, जबकि सर्वाधिक 47 फीसद लोगों ने दोनों का विकल्प दिया।
यहां उल्लेखनीय है कि अनेक विशेषज्ञों का मत इसके उलट था कि नैनी झील की सेहत को प्राकष्तिक कारण अधिक प्रभावित करते हेैं, क्योंकि यह झील बारिश जैसे पूरी तरह प्राकष्तिक कारणों पर निर्भर है। मानवीय हस्तक्षेप के बिना भी झील में झील को प्रदूषित करने वाले फास्फोरस, नाइट्रोजन व मीथेन जैसे तत्व ;छनजतपमदजेद्ध इसके जलागम क्षेत्र से पहुंचते ही रहेंगे।
6. पांचवे प्रश्न में बदलाव के कारकों को अधिक साफ करने के लिये छठे प्रश्न के रूप में पूछा गया था कि ‘क्या मौसम नैनी झील की सेहत को प्रभावित करता है ?’ इस प्रश्न के जवाब में 80 फीसद लोगों का जवाब हां में और शेष 20 फीसद लोगों का नहीं में था।
यह पांचवे प्रश्न के उत्तर के सापेक्ष कमोबेश विपरीत जवाब था। यह साफ तौर पर तो नहंी कहा जा सकता, पर अब 80 फीसद लोगों ने परोक्ष तौर पर नैनी झील की सेहत में प्राकृतिक कारण के प्रभाव को स्वीकार किया।

7. सातवें प्रश्न में लोगों से पूछा गया था कि क्या उत्तरदाता नैनी झील की सफाई से संतुष्ट हैं ? इस प्रश्न का उत्तर महज 15 फीसदी लोगों ने हां मेंदिया, जबकि शेष 85 फीसद लोगों ने कहा, वह नैनी झील की सफाई के कार्यों से संतुष्ट नहीं हैं।
उल्लेखनीय है कि कुमाऊं आयुक्त एवं झील विकास प्राधिकरण की अध्यक्ष डा.हेमलता ढोंडियाल एवं नगर पालिका अध्यक्ष मुकेश जोशी ने भी कहा कि वह झील की सफाई के कार्यों से संतुष्ट नहीं हैं। आयुक्त ने कहा कि इस हेतु प्रयास अपेक्षित हैं।
8. अगला प्रश्न झील संरक्षण परियोजना के बाबत था कि क्या उत्तरदाता नैनी झील में चल रहे झील संरक्षण परियोजना के कार्यों से संतुष्ट हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में तीन विकल्प दिये गये थे, हां, नहीं और आंशिक। इस प्रश्न के उत्तर में केवल 19 फीसद लोगों ने कहा कि वह संतुष्ट हैं। 26 फीसद ने कहा कि संतुष्ट नहीं हैं। जबकि सर्वाधिक 55 फीसदी लोगों ने आंशिक तौर पर संतुष्ट होने की बात कही।
कुमाऊं आयुक्त एवं झील संरक्षण परियोजना को लागू करने वाले झील विकास प्राधिकरण की अध्यक्ष डा.हेमलता ढोंडियाल ने भी स्वयं को आंशिक संतुष्ट ही बताया।
9. आगे पूछा गया कि क्या शहर में होने वाले निर्माण नैनी झील की सेहत को प्रभावित करते हैं ? इस प्रश्न के जवाब में 90 प्रतिशत लोग एकमत दिखे कि निर्माण कार्य नैनी झील की सेहत को प्रभावित करते हैं। केवल 10 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने ही नहीं में जवाब दिया।

10. दसवां प्रश्न नौवे प्रश्न का ही पूरक प्रश्न था। इस प्रश्न में पूछा गया था कि क्या नैनी झील में मलवा आना रुका है ? इस प्रश्न के उत्तर में नौवें प्रश्न के उत्तर ही कमोबेश दोहराये गये। सात प्रतिशत लोगों ने कहा कि मलवे के झील में आने में
रोक लगी है, जबकि शेष 93 प्रतिशत लोगों ने कहा, नैनी झील में मलवा आना रुका नहीं है।

11. ग्यारहवें प्रश्न में उत्तरदाताओं से कमोबेस एक असामान्य प्रश्न पूछा गया कि क्या घरों के किचन व बरसाती नालियों का पानी सीवर लाइन में जाने से रोककर सीवर लाइनों को उफनने व झील को प्रदूशित होने से रोका जा सकता है ? इस प्रश्न को कई उत्तरदाता ठीक से समझ नहीं पाये। उन्हें समझाना पड़ा कि नगर में सोक-पिट जैसी व्यवस्था के लिये स्थान उपलब्ध न होने के कारण घरों के किचन तथा घरों के आसपास की बरसाती नालियों को सीवर लाइन में जोड़ दिया गया है। इस कारण अधिक बरसात होने पर माल रोड पर ग्रांड होटल के पास सर्वाधिक तथा अनेक अन्य स्थानों पर सीवर लाइनें फव्वारे की तरह उफन पड़ती हैं, जिसके परिणामस्वरूप सीवर लाइन का पानी व गंदगी नैनी झील में समा जाती है। जबकि वर्ष 2005 में ही माल रोड पर नई सीवर लाइन डाली गई थी। इस बाबत हालांकि जल निगम के अधीक्षण अभियंता का तर्क है कि सीवर की गंदगी भारी बरसात आते ही पहली खेप में शहर से बाहर चली जाती है। बाद में सीवर लाइन के उफनने से बहुत हल्की विरल गंदगी ही बाहर निकलती है।
बहरहाल, इस प्रश्न के जवाब में 78 प्रतिशत लोगों का जवाब हां में और 22 प्रतिशत लोगों का जवाब नां में था।
12. बारहवां प्रश्न उत्तदाताओं में जल संरक्षण की भावना जानने के लिये पूछा गया। प्रश्न था कि क्या पानी का उपयोग कम करके झील को बचाने में योगदान दिया जा सकता है ? इस प्रश्न का उत्तर 66 प्रतिशत लोगों ने हां में दिया, जबकि 34 प्रतिशत लोगों ने उत्तर दिया कि पानी का उपयोग कम करने से झील को बचाने में कोई योगदान नहीं दिया जा सकता। इस प्रश्न के उत्तर में हेमवती नंदन बहुगुणा केंद्रीय विश्व विद्यालय श्रीनगर गढ़वाल के पूर्व कुलपति एवं कुमाऊं विश्व विद्यालय में वनस्पति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष रहे तथा नैनी झील पर कई महत्वपूर्ण शोध कर चुके प्रो.एसपी सिंह ने कहा कि नैनीताल वासी राष्ट्रीय औसत से कम ही पानी खर्च करते हैं। पानी बचाना अच्छी आदत है, पर नगर में पानी बचाकर झील को बचाने में कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। इस प्रश्न के उत्तर में कई लोगों ने यह भी कहा कि नगर में रेन वाटर हार्वेस्टिंग यानी वर्षा जल संग्रहण के लिये स्थान की उपलब्धता न होने के कारण ऐसा करना संभव नहीं है।

13. उत्तरदाताओं से पूछी गई प्रश्नोत्तरी में 13वां प्रश्न था कि ‘क्या अनियंत्रित विकास व निर्माण कार्य झील की सेहत बिगाड़ने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं ?’ यह प्रश्न नौवें व 10वें प्रश्न का ही पूरक प्रश्न था। इस प्रश्न में भी उत्तरदाताओं की राय कमोबेस एकतरफा ही देखने को मिली। 95 प्रतिशत लोगों ने हांतथा केवल पांच प्रतिशत लोगों ने ही नां में जवाब दिया।

14. 14वां प्रश्न कुछ हद तक कठोर प्रश्न कहा जा सकता है। इस प्रश्न के तहत पूछा गया कि ‘क्या नैनी झील के सूखाताल जैसे जलागम क्षेत्रों को वहां हुऐ अतिक्रमण ढहाकर झील को पुनर्जीवित किया जाना चाहिऐ’ इस प्रश्न का खासकर ‘ढहाकर’ शब्द चुभने वाला था, लेकिन अपेक्षा के विपरीत लोगों ने इस पर कोई कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। प्रश्न के उत्तर में केवल 20 प्रतिशत लोगों ने हां तथा शेष 80 प्रतिशत लोगों ने नां में प्रतिक्रिया दी। अलबत्ता, कुछ लोगों ने जरूर कहा कि सूखाताल झील को पुर्नजीर्वित किया जाना चाहिये, लेकिन ढहाने जैसे सवाल पर वह सीधे तौर पर कोई प्रतिक्रिया नहीं करना चाहते। अनेक लोगों ने कहा कि सूखा ताल झील के बचे हिस्से को ही पुर्नजीवित किया जाना चाहिये।

15. अगले यानी 15वें प्रश्न में पूछा गया कि क्या ‘नैनीताल में चल रही ‘मिशन बटरफ्लाई’ योजना से लोग संतुष्ट हैं ?’ इस प्रश्न के जवाब में लोगों की राय बंटी हुई दिखाई थी। 37 प्रतिशत लोगों ने स्वयं को संतुष्ट और 63 प्रतिशत ने स्वयं को असंतुष्ट बताया। अलबत्ता मिशन बटरफ्लाई के नाम पर कई लोग भ्रमित भी नजर आये।

16. आगे उत्तरदाताओं से पूछा गया कि ‘क्या नैनीताल नगर में पर्यटन अनियंत्रित हो गया है ?’ इस प्रश्न के उत्तर में 85 फीसद उत्तरदाताओं ने हां में जबकि 15 फीसद उत्तरदाताओं ने नां में जवाब दिया।

17. 17वें प्रश्न में लोगों की लेक ब्रिज चुंगी के बारे में राय मांगी गई। गौरतलब है कि लेक ब्रिज चुंगी माल रोड पर प्रवेश करने वाले वाहनों से ली जाती है। इसका मूल प्रयोजन शुल्क लगाकर माल रोड पर वाहनों के प्रवेश में रोक लगाना था। लेकिन वर्तमान में यह नैनीताल नगर पालिका की आय का बड़ा श्रोत साबित हो रही है। इससे प्रति वर्ष पालिका को पौने दो करोड़ रुपये तक की आय प्राप्त होती है।
बहरहाल, इस प्रश्न के जवाब में केवल 29 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने माना कि लेक ब्रिज चुंगी अपने उद्देश्य के अनुरूप वाहनों का प्रवेश रोकने में सफल हो रही है। जबकि 71 फीसद लोगों ने इसे अपने उद्देश्य में असफल बताया।

18. 18वां प्रश्न भी यातायात व्यवस्था से ही संबंधित था। इस प्रश्न में यातायात के एक महत्वपूर्ण घटक पार्किंग के बाबत यह राय लेने की कोशिष की गई कि क्या फ्लैट मैदान में बहुमंजिला पार्किंग बना दी जानी चाहिऐ। गौरतलब है कि नगर में वाहनों की अधिक भीड़भाड़ के दिनों में फ्लैट मैदान का पार्किंग के बाहर खेल वाला हिस्सा भी वाहनों से पाट दिया जाता है। इससे मैदान में खेल गतिविधियां तो प्रभावित होती ही हैं, वाहन पार्किंग से प्राप्त होने वाली आय का लाभ भी नगर पालिका या डीएसए से नगर को प्राप्त नहीं होता, पार्किंग ठेकेदार ही करीब पूरी धनराशि का हड़प जाया करते हैं। लिहाजा इस समस्या के निदान के लिये कई बार फ्लैट मैदान में पार्किंग की मांग उठती रहती हैं। बहरहाल, इस प्रश्न के जवाब में केवल 19 प्रतिशत लोगों ने ही फ्लैट मैदान में बहुमंजिला पार्किंग बनाये जाने की राय व्यक्त की, जबकि अन्य 81 प्रतिशत ने इसके विरुद्ध राय जताई।

19. यह प्रश्न पिछले प्रश्न का ही पूरक प्रश्न था। इस प्रश्न में पार्किंग समस्या के समाधान के लिये शहर से बाहर हनुमानगढ़ी, कैलाखान व चारखेत आदि स्थानों पर पार्किंग स्थल बनाये जाने के बारे में विचार लिये गये। इस प्रश्न के जवाब में 18वें प्रश्न के करीब-करीब उलट 76 प्रतिशत लोगों ने कहा कि हां, शहर के बाहर पार्किंग स्थल बनाये जाने से पार्किंग समस्या का हल हो सकता है, जबकि अन्य केवल 14 प्रतिशत लोगों ने इस विचार से नाइत्तफाकी जताई।
गौरतलब है कि हां, में जवाब देने वालों में से कुछ लोगों ने इस प्रश्न के जवाब में कुछ हद तक जैसी टिप्पणी भी की।

20. अगले प्रश्न की उत्पत्ति हालिया दिनों में नगर में हुऐ एक विवाद के फलस्वरूप हुई थी। नगर के फांसी गधेरा शिरे पर बच्चों को नासा संस्था के माध्यम से झील में तैरना सिखाया जाता है। बताया गया है कि संस्था को झील में बच्चों को खास तरह की नौकाओं पर कयाकिंग व कैनोइंग जैसे नौकायन के खेल सिखाने की अनुमति है। इन खेलों के खिलाड़ियों को तैराकी में भी कुशल होना चाहिऐ, इसलिये उन्हें तैरना भी सिखाया जाता है, जबकि हाईकोर्ट के आदेशों में नैनी झील में तैरना प्रतिबंधित है। विगत दिनों तल्लीताल थाना पुलिस ने झील में तैरने वाले कुछ युवकों का चालान भी कर दिया था, जिसके खिलाफ संस्था के लोगों ने आंदोलन की धमकी दी थी। बहरहाल, इस प्रश्न के उत्तर में उत्तरदाताओं की राय करीब-करीब बराबर बंटी हुई दिखाई दी। 52 प्रतिशत लोगों ने कहा, झील में तैराकी होनी चाहिऐ, जबकि 48 प्रतिशत ने झील में तैराकी के खिलाफ अपनी राय प्रकट की।

21. 21वें प्रश्न में उत्तरदाताओं का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराने की कोशिष की गई कि नगर में नैनी झील का जल स्तर कमोबेश हर वर्ष गर्मियों के दिनों में काफी घट जाता है। लेकिन झील में अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही व्यवस्था के तहत एक निश्चित स्तर पर जल स्तर को शून्य मान लिया जाता है, और इससे नीचे जल स्तर चाहे जितना नीचे माइनस में चला जाऐ, उसे नापने की व्यवस्था न होने के कारण जल स्तर को शून्य ही बताया जाता है। इस प्रकार किसी वर्ष झीज का जल स्तर कितना न्यूनतम गया, यह जानने की कोई व्यवस्था नहीं है। इस वर्ष 2012 में पहली बार राष्ट्रीय सहारा समाचार पत्र के प्रतिनिधि द्वारा कुमाऊं आयुक्त डा. हेमलता ढोंडियाल के संज्ञान में यह समस्या लाये जाने के बाद मैन्युअल तरीके से माइनस में जल स्तर मापने की शुरुआत हुई। जबकि ठंडी सड़क की ओर पाषाण देवी मंदिर के पास की खड़ी चट्टान पर बहुत आसानी से स्केल बनाकर जल स्तर को माइनस या प्लस दोनों स्तरों पर अधिकतम् मापने का विकल्प भी सुझाया गया।
बहरहाल, इस प्रश्न के उत्तर में 86 फीसद लोगों ने माइनस में जल स्तर मापे जाने की व्यवस्था किये जाने की आवश्यकता जताई और 14 फीसद ने इससे नाइत्तफाकी जताई।

22. 22वें प्रश्न में नगर के एक और विवादित विषय पर नगर वासियों की राय जानने का प्रयास किया गया। यह विषय था कि क्या नगर में पेयजल आपूर्ति के लिये डीजल या पेट्रोल चालित पंप लगने चाहिऐ ? गौरतलब है कि नगर में पेयजल की आपूर्ति पूरी तरह विद्युत आपूर्ति पर ही निर्भर है। सीजन, भारी बरसात व बर्फवारी के साथ ही विद्युत कटौती की परिस्थितियों में भी जल संस्थान बिजली की आपूर्ति पर निर्भर रहता है। जल संस्थान द्वारा डीजल या पेट्रोल चालित पंप न लगाने के पीछे नगर के पर्यावरणविद्ों के विरोध का हवाला दे दिया जाता है।
बहरहाल, इस प्रश्न के जवाब में भी नगर वासियों की राय करीब-करीब बराबर-बराबर बंटी हुई प्रदर्शित हुई। 48 प्रतिशत लोगों ने कहा, डीजल या पेट्रोल चालित पंप लगने चाहिऐ। जबकि केवल चार फीसद अधिक यानी 52 फीसद लोगों ने इसके विरुद्ध राय व्यक्त की।

23. 23वां प्रश्न कमोबेश नगर से संबंधित सबसे विवादित प्रश्न था। नगर में भवनों की ऊंचाई को करीब 35 फीट तक बढ़ाये जाने की अनुमति लिये जाने को पिछली राज्य सरकार के मुख्यमंत्री ले.जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी ने घोषड़ा ही कर डाली थी। लेकिन बाद में कई लोगों की नगर से राजधानी देहरादून तक की गई गोलबंदी के बावजूद इस बाबत शासनादेश जारी नहीं हुआ। कहते हैं कि इसके पीछे नगर के पर्यावरण के प्रति चिंतित लोगों का विरोध रहा।
बहरहाल, इस प्रश्न के उत्तर में केवल 35 प्रतिशत लोगों ने भवनों की ऊंचाई बढ़ाऐ जाने जबकि 65 प्रतिशत ने न बढ़ाने के पक्ष में अपनी राय जाहिर की। मंडल आयुक्त सहित कई लोगों ने हां में राय देने के साथ ही ‘सशर्त’ की शर्त जोड़े जाने की बात भी कही।

24. इस कड़ी में आखिरी प्रश्न नगर में हरियाली के कम होने या न होने के बाबत था। इस प्रश्न के उत्तर में संभवतया अधिकांश लोगों ने भावनात्मक होकर जवाब दिया। 74 प्रतिशत लोगों ने कहा कि हां, नगर में हरियाली और पेड़ कम हो रहे हैं, जबकि केवल 22 प्रतिषत ने इसके उलट जवाब दिया।
जबकि इस बाबत वनस्पति शास्त्री प्रो.एसपी सिंह सहित अन्य विशेषज्ञों की राय इससे उलट थी। उनका कहना था कि नगर में पेड़ कम नहीं हुऐ हैं। अंग्रेजी दौर की नगर की खासकर नैना पीक पहाड़ी की वर्तमान तस्वीरों से तुलना कर हरीतिमा के कम होने के बजाय बढ़ने की राय साफ तौर पर बनती है।

25. 25वां प्रश्न एक बहुविकल्पीय प्रश्न था, साथ ही इस तथा आगे के प्रश्नों में प्राथमिकता भी पूछी गई थी। प्रश्न था, नैनी झील की महत्ता किस स्तर की है ? इस प्रश्न के जवाब में चार विकल्प 1. नैनीताल शहर के लिये 2. उत्तराखंड प्रदेश के लिये 3. देश के लिये व 4. विश्व भर के लिये दिये गये थे। इस प्रश्न के उत्तर में सर्वाधिक 29 प्रतिशत प्राथमिकता अंक विश्व भर के विकल्प को मिले। नैनीताल शहर के लिये को 27 प्रतिशत, उत्तराखंड प्रदेश के लिये को 23 एवं देश के लिये को 21 प्रतिशत प्राथमिकता अंक मिले।

26. 26वां प्रश्न भी बहुविकल्पीय एवं उत्तरों के लिहाज से प्राथमिकता भी बताने वाला था। इस प्रश्न में पूछा गया था कि बीते कुछ वर्षों में कौन से मौसमी परिवर्तन है, जिस कारण नैनी झील की सेहत प्रभावित हुई है ? इसके उत्तरों हेतु विकल्प थेः 1. गर्मी बढ़ना 2. गर्मी कम होना 3. सर्दी बढ़ना 4. सर्दी कम होना 5. बरसात अधिक होना 6. बरसात कम होना व 7. बर्फवारी कम होना। इस प्रश्न के उत्तर में सर्वाधिक 39 प्राथमिकता अंक मिले गर्मी बढ़ना कारण को, जिससे लगता है कि ‘ग्लोबलवार्मिंग’ शब्द उत्तरदाताओं के जेहन में सर्वाधिक रहा। दूसरे स्ािान पर 28 प्रतिशत अंकों के साथ बारिश कम होना एवं तीसरे स्ािान पर 26 फीसद अंकों के बर्फवारी कम होना कारण रहा। जबकि गर्मी कम होना विकल्प को शून्य अंक मिले। सर्दी बढ़ना व सर्दी कम होना कारणों को बराबर 3-3 प्रतिशत अंक मिले, जबकि बरसात अधिक होना कारण भी एक प्रतिशत उत्तरदाताओं के द्वारा बताया गया।

27. 27वें प्रश्न में पूछा गया था, ‘नैनी झील को संरक्षित करना किसकी जिम्मेदारी है ?’ विकल्प थेः 1. प्रशासन की 2. जनता की 3. एनजीओ की व 4. नगरपालिका। इस प्रश्न के उत्तर में सर्वाधिक 35 फीसद प्राथमिकता अंक जनता को मिले। यानी सर्वाधिक लोगों ने माना कि झील को संरक्षित करना नगर की जनता की जिम्मेदारी है। दूसरे स्थान पर प्रशासन 32 फीसद अंकों के साथ रहा। वहीं 21 फीसद अंक नगर पालिका तथा सबसे कम 12 फीसद अंक एनजीओ को मिले।

28. 28वें अंक में पूछा गया ‘झील से मलवा किस विधि से निकाला जाऐ ? इस प्रश्न के उत्तर में विकल्प थे 1. मजदूरों से 2. मशीनों से 3. दोनों से व 4. झील में मलवा जाने से ही रोका जाऐ। इस प्रश्न को पूछे जाने का प्रयोजन यह था कि इस वर्ष गर्मियों में झील में बड़े डेल्टा उभर आने के दौरान प्रशासन ने झील से मलवा निकालने के लिये डोजर मशीनें झील में उतारीं, लेकिन स्थानीय लोगों के विरोध के कारण मशीनों को बिना कार्य निपटाये ही वापस लाना पड़ा। लोगों ने आशंका जताई कि मशीनों से झील के प्राकृतिक जल श्रोत प्रभावित हो सकते हैं।
बहरहाल, इस प्रश्न के जवाब में सर्वाधिक 36 प्रतिशत प्राथमिकता मत झील में मलवा डाले जाने से ही रोका जाये विकल्प को मिले। दूसरे स्थान पर 27 प्रतिशत अंकों के साथ मजदूरों व मशीनों से मलवा निकाले जाने का विकल्प सुझाया गया। जबकि 21 प्रतिशत लोगों का मानना है कि मजदूरों से ही मलवा निकलवाया जाऐ, और केवल 16 प्रतिशत लोग मशीनों से मलवा निकाले जाने के पक्ष में दिखे।

29. 29वें प्रश्न में उत्तरदाताओं से पूछा गया था कि वह ‘झील की दुर्दशा के लिये किसे सर्वाधिक दोषी मानते हैं ?’ इस प्रश्न के उत्तर में चार विकल्प थेः 1. जिला प्रशासन 2. नगर पालिका 3. झील विकास प्राधिकरण व 4. नगर की जनता। इस प्रश्न के उत्तर में सर्वाधिक 32 फीसद लोगों ने झील विकास प्राधिकरण को दोषी बताया। 26 फीसद का मानना था कि नगर की जनता दोषी है, वहंी 22 फीसद लोगों ने नगर पालिका को एवं 20 फीसद लोगों ने जिला प्रशासन को झील की दुर्दशा के लिये जिम्मेदार माना

30. 30 वें प्रश्न में उत्तरदाताओं से पूछा गया कि ‘गर्मियों में झील का जल स्तर अत्यधिक गिरने का कारण क्या रहा ?’ इस प्रश्न के उत्तर में विकल्प दिये गये थे: 1. लंबे समय बारिश न होना, 2. झील से पानी का रिसाव, 3. पानी का सीजन में बड़ा उपभोग व 4. जल स्तर अधिक नहीं गिरा था, झील के किनारे मलवा भरने से उथले हो गये थे। इस प्रश्न के उत्तर में सर्वाधिक 35 प्रतिशत लोगों का जवाब मिला, पानी का सीजन में बड़ा उपयोग गर्मियों में झील का जल स्तर गिरने का कारण रहा था। जबकि दूसरे स्थान पर 29 प्रतिशत लोगों ने कहा कि जल स्तर लंबे समय से बारिश न होने के कारण गिरा, जबकि 18 प्रतिशत लोगों ने माना कि झील से पानी का रिसाव होने के कारण जल स्तर अधिक गिरा। वहीं 18 प्रतिशत लोगों ने ही माना कि वास्तव में झील का जल स्तर इतना नहीं गिरा था, वरन झील के किनारे मलवा भरने के कारण उथले हो गये थे।
गौरतलब है कि वर्ष 2011 में नैनीताल में उपलब्ध आंकड़ों के हिसाब से सर्वाधिक 4,183 मिमी बारिश हुई थी। वहीं झील का जल स्तर अधिकतम शून्य से माइनस दो फीट 6 इंच ही नीचे गिरा था, जबकि पूर्व में झील के पानी से दुर्गापुर में विद्युत उत्पादन किये जाने के दौर मेंजल स्तर के इस वर्ष से भी कहीं अधिक गिरने के किस्से आम हैं। झील में भुट्टों की दुकानें लगने के किस्से भी आम हैं।

31. 31 वें प्रश्न में उत्तरदाताओं से पूछा गया कि ‘नालों से झील में भारी मात्रा में मलवा पहुंचता है, इसे कैसे रोकें ?’ इस प्रश्न के उत्तर में विकल्प दिये गये थे: 1. नालों में मलवा न डालकर, 2. मलवा डालना रोका नहीं जा सकता, प्रशासन नालों से मलवा हटाये, 3. मलवा हटाने की अंग्रेजों के जमाने की कैच पिट व जाली व्यवस्था पुर्नजीवित हो तथा 4. मलवा हटाने की कोई आधुनिक व्यवस्था हो। इस प्रश्न के उत्तर में सर्वाधिक 39 प्रतिशत उत्तर मलवा डालने की अंग्रेजों के जमाने की कैच पिट व जाली व्यवस्था पुर्नजीवित किये जाने के पक्ष में आये। वहीं 29 प्रतिशत लोगों ने नालों में मलवा न डाले जाने की आवश्यकता जताई। 19 प्रतिशत लोगों ने कहा-मलवा हटाने की कोई आधुनिक व्यवस्था हो, वहीं 13 फीसद लोग ऐसे भी थे जिनका कहना था कि मलवा डालना रोका नहीं जा सकता। प्रशासन नालों से मलवा हटाये। ऐसे उत्तर आने का एक कारण कुमाऊं मंडल के एक उच्चाधिकारी सहित कुछ उत्तरदाताओं की प्रवृत्ति रही, जिन्होंने कमोबेश सभी प्रश्नों को शायद बिना पढ़े ही विकल्प भरने व विकल्पों को प्राथमिकता देने की जगह ‘समस्त’ लिखकर प्रश्नोत्तरी भरने की औपचारिकता निभा दी।

32. 32वें प्रश्न में उत्तरदाताओं से पूछा गया कि ‘क्या नैनीताल में निर्माण पूरी तरह प्रतिबंधित हो जाने चाहिए ?’ इस प्रश्न के उत्तर में विकल्प दिये गये थे: 1. हां 2. नहीं 3. व्यवसायिक निर्माण न हों 4. गैर व्यवसायिक की इजाजत भी न हो व 5. सरकार आम लोगों के लिये शहर के निकट आवासीय कालोनी बनाऐ। इस प्रश्न के उत्तर में सर्वाधिक 28 प्रतिशत प्राथमिकता अंक व्यवसायिक निर्माण की इजाजत न हो विकल्प को मिले। वहीं 26 प्रतिशत लोगों ने नगर में निर्माण पूरी तरह प्रतिबंधित किये जाने का ही विकल्प दिया। 19 प्रतिशत लोगों का मानना था कि सरकार को आम लोगों के लिये शहर के निकट आवासीय कालोनी बनानी चाहिऐ। वहीं 14 प्रतिशत लोग ही ऐसे थे जिन्होंने निर्माण कार्य प्रतिबंधित नहीं किये जाने के बारे में खुलकर राय दी, जबकि सबसे कम 13 प्रतिशत लोग ऐसे भी थे जिन्होंने नगर में गैर व्यवसायिक निर्माणों को भी इजाजत न दिये जाने का विकल्प दिया।

33. 33वें प्रश्न में पूछा गया कि ‘सीवर लाइनों के उफनने से झील प्रदूषित होती है, तो इसे कैसे रोकें ?’ इस प्रश्न के उत्तर में विकल्प दिये गये थे: 1. सीवर लाइनों की क्षमता बढ़ाकर, 2. घरों के किचन व बरसाती नालियों का पानी सीवर लाइन में जाने से रोककर, 3. सीवर लाइनों की नियमित सफाई कर व 4. नहीं रोक सकते। इस प्रश्न के उत्तर में सर्वाधिक 36 फीसदी उत्तरदाताओं ने सीवर लाइनों की नियमित सफाई करने का विकल्प सुझाया। 33 फीसदी ने कहा कि घरों के किचन व बरसाती नालियों का पानी सीवर लाइनों में जाने से रोककर भी इस समस्या का निदान किया जा सकता है। 29 फीसदी ने सीवर लाइनों की क्षमता बढ़ाये जाने की आवश्यकता जताई, जबकि दो फीसदी जवाब नकारात्मक भी थे। यानी इनका मानना था कि सीवर को झील में जाने से नहीं रोक सकते।

34. 34वें प्रश्न में उत्तरदाताओं से पूछा गया कि ‘नैनीताल में कैसी सड़कें बननी चाहिऐ?’ इस प्रश्न के उत्तर में विकल्प दिये गये थेः 1. बनें ही नहीं, 2. डामर की 3. सीमेंट-कंक्रीट की व 4. कच्ची ही रहें। इस प्रश्न की आवश्यकता खासकर नगर में हालिया वर्षों में सीमेंट-कंक्रीट यानी सीसी की सड़कों के बनने के कारण महसूस की गई, जिनकी अक्सर आलोचना की जाती है कि सीसी सड़कें बारिश के दौरान नहरों मंे तब्दील हो जाती हैं। यह बारिश के पानी को जमीन में रिसने नहीं देती हैं।
बहरहाल, इस प्रश्न के उत्तर में सर्वाधिक 31 प्रतिशत जवाब डामर की सड़कें बनाये जाने के पक्षधर दिखे। 30 फीसदी लोगों ने सीमेंट-कंक्रीट की सड़कों को भी उपयुक्त बताया। 22 फीसदी लोगों का मानना था कि नगर में जितनी सड़कें हैं, पर्याप्त हैं, लिहाजा नई सड़कें बनें ही नहीं। वहीं 17 फीसदी लोग ऐसे भी थे, जिन्होंने कहा कि सड़कें कच्ची ही रहें तो बेहतर रहेगा। वहीं गढ़वाल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो.एसपी सिंह ने इससे अलग सड़कों के किनारे रेलिंग डालकर पैदल यात्रियों के घूमने के लिये पाथ-वे बनाये जाने की आवश्यकता जताई।

35. 35वें प्रश्न में उत्तरदाताओं से नैनी झील पर खतरों के बाबत एक बहुविकल्पीय प्रश्न पूछा गया कि ‘नैनी झील को कौन सा खतरा सबसे बढ़ा है’ इस प्रश्न के उत्तर में सर्वाधिक 11 विकल्प दिये गये थे। 1. शहर में अनियंत्रित विकास, 2. मलवे का गलत निस्तारण, 3. झील के जलागम क्षेत्र (ब्ंजबीउमदज ।तमं) में वृक्षों का पातन, 4. झील की तलहटी में स्थित प्राकृतिक जल श्रोतों का प्लास्टिक जैसी गंदगी के कारण बंद हो जाना, 5. झील के सूखाताल जैसे जलागम क्षेत्रों में प्राकृतिक जल श्रोतों का निर्माणों के कारण बंद हो जाना, 6. झील के पानी का आवश्यकता से अधिक दोहन, 7. झील से पानी का रिसाव, 8. बारिश के पानी का सीवर लाइनों के जरिये झील से बाहर चले जाना, क्योंकि छतों, नालियों, रसोई, बाथरूम का पानी भी सीवर लाइन में जोड़ दिया गया है। 9. घरों-कार्यालयों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग का प्रबंध न होना, 10. शहर के अधिकांश संपर्क मार्गों का कंक्रीटीकरण हो जाना एवं 11. शहर में बर्फ पढ़ने में आई कमी जैसे प्राकृतिक कारण।
इस प्रश्न के उत्तर में सर्वाधिक 19 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने शहर में अनिंयंत्रित विकास को नैनी झील के लिये सबसे बड़ा खतरा बताया। 14 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने इस कारण से ही संबंधित मलवे के गलत निस्तारण को गलत कारण बताया, जिसके कारण मलवा झील में चला जाता है। 13 प्रतिशत उत्तरों में ने झील के सूखाताल जैसे जजलागम क्षेत्रों में प्राकृतिक जल श्रोतों का निर्माणों के कारण बंद हो जाने को सबसे बड़ा कारण बताया गया। 12 प्रतिशत उत्तरों में झील की तलहटी में स्थित प्राकृतिक जल श्रोतों के प्लास्टिक जैसी गंदगी के कारण बंद हो जाने को बड़ा कारण बताया, जबकि झील पर शोधरत कुमाऊं विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान के प्रोफेसर पीके गुप्ता ने कहा कि ऐसा होना संभव नहीं है। जल श्रोतों को ढकने में समर्थ इतनी बड़ी प्लास्टिक हो नहीं सकती, और छोटी प्लास्टिकें जुड़कर भी बड़े जल श्रोतों को नहीं ढक सकतीं। आगे नौ प्रतिशत उत्तरदाताओं ने झील के आवश्यकता से अधिक दोहन को झील के लिये सबसे बड़ा खतरा बताया। आठ प्रतिशत उत्तरदाताओं ने बारिश के पानी का सीवर लाइनों के जरिये झील से बाहर चले जाने को बड़ा कारण बताया, क्योंकि नगर में छतों, नालियों, रसोई, बाथरूम का पानी भी सीवर लाइन में जोड़ दिया गया है। छह-छह प्रतिशत लोगों ने झील के जलागम क्षेत्र (ब्ंजबीउमदज ।तमं) में वृक्षों का पातन व घरों-कार्यालयों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग का प्रबंध न होने को सबसे बड़ा कारण बताया। जबकि अनेक लोगों ने कहा कि नगर में रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिये घरों के पास स्थान ही उपलब्ध नहीं है, झील के जलागम क्षेत्र का सीवर लाइनों के अलावा शेष संपूर्ण पानी झील में स्वतः ही आ जाता है। वहीं पांच प्रतिशत उत्तरदाताओं ने झील से पानी का रिसाव को बड़ा कारण बताया, जबकि मात्र चार-चार प्रतिशत उत्तर शहर के अधिकांश संपर्क मार्गों का कंक्रीटीकरण हो जाने एवं शहर में बर्फ पढ़ने में आई कमी जैसे प्राकृतिक कारण के पक्ष में आये। गौरतलब है कि पूर्व में प्रश्न संख्या 26 में 26 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने बर्फवारी कम होने को नैनी झील की सेहत को प्रभावित करने वाला कारण बताया था।

36. 36वें प्रश्न में लोगों की जागरूकता के साथ ही उनकी समस्याओं के प्रति जवाबदेही का स्तर यानी रिस्पांस लेबल जानने के लिये प्रश्न पूछा गया कि जब वह अपने आसपास कहीं सीवर लाइन को ओवरफ्लो होकर झील में जाते हैं तो क्या करते हैं, इस प्रश्न के जवाब में 19 प्रतिशत लोगों ने यह कहने की हिम्मत दिखाई कि वह मुंह फेर लेते हैं। इतने ही प्रतिशत लोगों ने कहा कि वह शिकायत दर्ज कराते हैं।
इसी प्रश्न के जवाब को और अधिक स्पष्ट करने के लिये पूछा गया था कि यदि वह शिकायत दर्ज कराते हैं तो किसे, इस के जवाब को दो भागों में बांटा गया। जिन्होंने सही उत्तर जल संस्थान का विकल्प चुना, जबकि दूसरे विकल्प में अन्य विभागों का नाम लेकर गलत जवाब देने वालों को रखा गया। अच्छी बात रही कि 52 प्रतिशत लोगों में जागरूकता का अच्छा स्तर देखने को मिला। उन्होंने जल संस्थान को शिकायत दर्ज कराने की बात कही। जबकि केवल 10 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने अन्य के विकल्प दिये, जो कि सही नहीं थे। कई लोगों ने संबंधित विभाग को जैसे अस्पष्ट उत्तर दिये। उनके विकल्पों को भी अन्य की श्रेणी में डाला गया। नगर पालिका के अधिकारी को नहीं पता था कि शिकायत कहां दर्ज की जानी चाहिऐ। वन विभाग के एक कर्मचारी ने मुंह फेर लेने का विकल्प भरते हुऐ टिप्पणी लिखी-क्योंकि शिकायत दर्ज कराने पर भी कोई कार्रवाई नहीं होती है। एक प्ले-वे स्कूल की प्रधानाचार्या और एक होटल मालिक ने भी बेझिझक मुंह फेर लेने का विकल्प दिया। जल संस्थान के अधिशाशी अभियंता ने भी विभाग का नाम लिये बिना कहा कि संबंधित विभाग को सूचित करते हैं।

आगे उत्तरदाताओं से दीर्घ उत्तरीय प्रश्न पूछे गये। इन प्रश्नों के निम्नवत् उत्तर मिले।

37वां प्रश्न था: नगर का आधार बलिया नाला की मजबूती के लिए क्या हो ?
इस प्रष्न के उत्तर में निम्न उत्तर उल्लेखनीय रहेः
1. विशेषज्ञों की राय, उच्च स्तरीय इंजीनियरिंग व सही नियोजन से गुणवत्ता युक्त कार्य हों।
2. दीवारें व लोहे के गार्डर लगाकर नाले को मजबूत किया जाये। दीवारें पानी की निकासी के लिये छेद युक्त हों।
3. बलियानाले में मोटे पाइप या टनल के जरिये पानी की निकासी करानी चाहिऐ।
4. लोनिवि, सिंचाई, वन आदि विभाग समेकित प्रयास करें।
5. बलिया नाले के ऊपर निर्माण कार्य पूरी तरह रुकें, व यहां रह रहे लोगों को यहां से विस्थापित कर अन्यत्र बसाया जाऐ, ताकि जमीन में जल का क्षरण रुके।
6. बलिया नाले के 32 या 42 फाल्स हैं, उन्हें अंग्रेजों ने मजबूत किया था। इन्हें वापस उसी स्थिति में लाया जाये।
7. नाले की तलहटी या आधार को एक तय ऊंचाई तक सीमेंट-कंक्रीट से मजबूत कर पानी को चैनलाइज किया जाये, ताकि तलहटी के पानी का अपरदन रुके।
8. ऊपरी क्षेत्रों के पानी का ठीक से निस्तारण हो।
9. जहां भी टूट-फूट हो उसकी लगातार मरम्मत हो।
10. आलूखेत व दूसरी ओर से बलिया नाले में आने वाले समस्त नालों का आधार मजबूत किया जाये। चेकडैम बनें।
11. पूरे बलियानाले में वैज्ञानिक तरीके से नागफनी जैसे पौधों का रोपण किये जाने पर जोर देना चाहिये।
12. एक प्रोेफेसर ने कहा, यह प्राकृतिक विपदा है, इसे रोका नहीं जा सकता है।

38. 38वें प्रश्न में उत्तरदाताओं की नगर के प्रति चिंता के स्तर को जानने के लिये सीधे उनसे जोड़कर प्रश्न पूछा गया कि यदि उन्हें नगर के कमजोर स्थानों पर सस्ती भूमि मिल जाऐ, तो क्या वह वहां अपने लिये घर बनायेंगे। इस प्रश्न के उत्तर के भी अच्छे परिणाम देखने को मिले। केवल 18 फीसद लोगों ने हां में उत्तर दिया, जबकि 72 फीसद ने नां में जवाब दिया। नां में जवाब देने वालों में गरीब नाव और फड़ वाले भी शामिल थे। जबकि एक भाजपा व एक अन्य पार्टी नेता सहित एक सुप्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय छायाकार हां में जवाब देने वालों में शामिल रहे।

39वां प्रश्न था: क्या झील की स्थिति, पारिस्थितिकी ;म्बव ैलेजमउद्ध में बीते पांच वर्षों में सुधार आये हैं, यदि हां तो क्या? इस प्रष्न के उत्तर में निम्न उत्तर उल्लेखनीय रहेः
1. एरियेशन के कार्य की कमोबेश सभी उत्तरदाताओं ने प्रशंशा की। कहा कि इससे झील का पानी अधिक पारदर्शी हो गया है। मछलियों के सर्दियों में मरनेकी घटनाऐं रुक गई हैं। झील में महाशीर मछलियां तेजी से बढ़ने लगी हैं।
2. बायोमैन्युपुलेशन से झील के लिये अनुपयोगी गंबूशिया, पुंटियस व बिग हेड प्रजाति की मछलियों को बाहर निकाला गया है, व उपयोगी जलीय जीवों का विकास किया गया है।
3. झील में रंग बदलने वाली काई का उगना कम हुआ है। पानी से आने वाली बदबू में कमी आई है।
4. प्लास्टिक के प्रयोग में कुछ कमी आई है।
5. झील की दीवारों की मरम्मत हुई है। चारों ओर लाइटिंग हुई है।
6. कई लोगों ने कोई सुधार न आने की बात भी कही।
7. लोगों में जागरूकता बढ़ी है। खुले में शौच करने की प्रवृत्ति पर कुछ हद तक कमी आई है।

40वां प्रश्न था: क्या झील की स्थिति, पारिस्थितिकी ;म्बव ैलेजमउद्ध में बीते पांच वर्षों में बदतर हुई है, यदि हां तो कैसे? इस प्रष्न के उत्तर में निम्न उत्तर उल्लेखनीय रहेः
1. झील में सीवर, प्लास्टिक, थर्मोकोल व मलवे की गंदगी आनी रुकी नहीं है।
2. नालों से आ रही घुलनशील व अघुलनशील गंदगी से झील को आंतरिक और बाह्य दोनों स्तरों पर नुकसान पहुंच रहा है।
3. सीजन में झील के पानी का घटना नहीं रुक पा रहा है।
4. अनियंत्रित निर्माण जारी हैं।
5. नाले बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गये हैं, उनकी मरम्मत नहीं हुई है।
6. मलवा, गंदगी बढ़ने से झील का ईको सिस्टम प्रभावित हुआ है।

41वां प्रश्न था: झील संरक्षण परियोजना के तहत क्या सही हो रहा है ? इस प्रश्न के उत्तर में निम्न उत्तर उल्लेखनीय रहेः
1. एरियेशन व बायो मैन्युपुलेशन से नैनी झील को नया जीवन मिला है।
2. जिला प्रशासन द्वारा मलवा डालने पर रोक लगाने के प्रयास किये गये हैं।
3. सीवर ट्रीटमेंट प्लांट बना है।
4. लोगों में जागरूकता आई है।
5. भवन निर्माणों में थोड़ा अंकुश लगा है।

42वां प्रश्न था: झील संरक्षण परियोजना के तहत क्या सही नहीं हो रहा है ? इस प्रश्न के उत्तर में निम्न उत्तर उल्लेखनीय रहेः
1. भवनों के नक्शे पास करने में पारदर्शिता नहीं है। प्रभावशाली लोगों को संवेदनशील क्षेत्रों में भी निर्माण की अनुमति मिल जाती है। निम्न वर्गीय लोग चोरी-छुपे निर्माण कर लेते हैं। केवल मध्यमवर्गीय लोग निर्माण नहीं कर पाते हैं।
2. नियमानुसार अनुमति लेकर घरों की मरम्मत करना भी मुश्किल हो गया है।
3. एरियेशन होना ठीक है, पर यह समस्या का समाधान नहीं केवल एक विकल्प है। इसे अनवरत जारी रखने की मजबूरी है।
4. नालों में मलवा जाना नहीं रोका जा सका है, और झील से मलवा हटाया नहीं जा सका है।
5. नालों की समुचित सफाई नहीं हो रही। नालों से गंदगी, मलवा व मल आना रुका नहीं है।
6. मिशन बटर फ्लाई मिशन के कर्मी कूड़ा नहीं उठाते हैं, ऐसे में इस मिशन की आवश्यकता ही नहीं है।
7. लोगों को यह नहीं समझाया जा रहा है कि नाले झील में पानी लाने के लिये हैं, न कि मलवा डालने के लिये।
8. तय कार्य समय पर पूरे नहीं हो रहे हैं। पैंसे की बरबादी हो रही है। लगातार कार्य नहीं होता है।
9. सत्तारूढ़ दल के एक नेता ने ही कहा, भारी लूट मची है। बंदरबांट हो रही है।
10. कई ने कहा, एरियेशन व बायोमैन्युपुलेशन के अतिरिक्त कुछ भी ठीक नहीं हो रहा है।
11. सुरक्षित व असुरक्षित क्षेत्रों का मनमाना चिन्हांकन हुआ है।
12. कुछ ने प्राधिकरण से जुड़े लोगों पर आरोप लगाये कि पहले अवैध निर्माणों को पैंसे लेकर संरक्षण देते हैं, और कार्रवाई होती है तो मुंह फेर लेते हैं।
13. परियोजना में किसी स्तर पर भी ईमानदारी नहीं दिखती, फलस्वरूप नगर में हालात दिन प्रति दिन बदतर होते जा रहे हैं। विभागीय कार्यों में निम्न स्तर की निर्माण सामग्री का उपयोग हो रहा है।
14. झील की तलहटी से कीचड़, गाद नहीं हटाई गई।
15. झील के प्रदूषण की अधूरी रोकथाम और भवन निर्माण।

43वां प्रश्न था: झील संरक्षण परियोजना के तहत आपके अनुसार क्या होना चाहिऐ, जो नहीं हो रहा है ? इस प्रश्न के उत्तर में निम्न उत्तर उल्लेखनीय रहेः
1. झील के बाबत लंबे समय से विस्तृत शोध नहीं हुऐ। झील की गहराई ठीक से पता नहीं है। रिसाव के श्रोत पता नहीं हैं। झील के न्यूनतम जल स्तर को मापने की व्यवस्था और आंकड़े ही उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे प्रबंध होने चाहिऐ।
2. नगर के तापमान मापने की कोई विश्वसनीय व्यवस्था नहीं है। कहीं तापमान को सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित करने की व्यवस्था नहीं है। ऐसे प्रबंध होने चाहिऐ।
3. नैनी झील के समस्त क्रियाकलापों के लिये किसी एक विभाग को स्पष्ट जिम्मेदारी दी जानी चाहिये।
4. नक्शे यदि सही हैं तो उन्हंे तुरंत निस्तारित किया जाना चाहिऐ, साथ ही यदि निर्माण नियमविरुद्ध हो रहे हैं तो उन्हें बनने से पूर्व ही रोका जाये या बनने ही न दिया जाऐ।
5. झील के जलागम क्षेत्र में कूड़ा व मलवा डालने पर सजा का प्राविधान हो।
6. झील के जलागम क्षेत्र में निर्माण पूरी तरह प्रतिबंधित हो।
7. मिशन बटरफ्लाई हर परिवार के लिये आवश्यक किया जाये।
8. नालों की दैनिक आधार पर लगातार सफाई हो।
9. नालों की सफाई का कार्य व जिम्मेदारी नगर पालिका या लोनिवि किसी एक विभाग को दिया जाना चाहिऐ।
10. नालों की मरम्मत हो, नालों में जालियां लगंे, ताकि उनमें गंदगी न फेंकी जा सके।
11. साइफनिंग से झील की तलहटी से कीचड़ निकाला जाये।
12. परियोजना के कार्यों में पारदर्शिता और जिम्मेदारी निर्धारण हो।
13. नालों से हटाया गया कूड़ा तुरंत बाहर फेंका जाये, वरना यह वापस झील में चला जाता है। कूड़े का बेहतर प्रबंधन हो।
14. अधिकाधिक शौचालय बनें। गरीबों, वाहन चालकों, नेपाली व बिहारी मजदूरों को निःशुल्क शौच की सुविधा मिले।
15. झील के पानी की नियमित मॉनीटरिंग किया जाऐ।
16. पूरी निष्ठा, ईमानदारी एवं सुव्यवस्थित प्लान से कार्य किये जाऐं।
17. सूखाताल झील को पुर्नजीवित किया जाना चाहिऐ।
18. कार्य समयबद्ध व गुणवत्तापरक होने चाहिये।

44वां प्रश्न था: क्या आप नैनी झील व नगर को संरक्षित करने के लिये अपने पद या अपनी संस्था के तहत कुछ करते हैं? इस प्रश्न के उत्तर में निम्न उत्तर उल्लेखनीय रहेः
1. अधिकारी संबंधित विभागों को समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता बरतने को कहते हैं।
2. डीएसए सहित अनेक संस्थाओं ने कहा, उन्होंने नैनी झील में सफाई की वर्षों पूर्व शुरुआत की थी।
3. कुमाऊं विश्व विद्यालय के यूजीसी अकादमिक स्टाफ कालेज के सहायक निदेशक डा. रीतेश साह ने बताया, कालेज परिसर को ‘नो प्लास्टिक जोन’ बनाया गया है। वहां प्रतिभागियों को पर्यावरण संरक्षण, पौधारोपण, कूड़ेदानों के प्रयोग आदि के लिये प्रेरित किया जाता है।
4. भूवैज्ञानिक प्रो.सीसी पंत बिना शुल्क लिये जिला प्रशासन को प्रशासन को मांगे जाने पर सहायता देते हैं।
5. गढ़वाल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति व वनस्पति शास्त्री प्रो.एसपी सिंह ने कहा, उन्होंने ही 1975 में सर्वप्रथम झीलों के मामले को उठाकर भारत सरकार का ध्यान आकृष्ट किया। इसके बाद ही इस ओर शासन-प्रशासन का ध्यान गया। शोधों के माध्यम से लोगों को जागरूक किया।
6. झील विकास प्राधिकरण के एक अभियंता ने कहा, करना तो चाहते हैं पर जनता ही नहीं करने देती।

45वां प्रश्न था: क्या आप व्यक्तिगत स्तर पर नगर के पर्यावरण संरक्षण के लिए कुछ करते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में निम्न उत्तर उल्लेखनीय रहेः
1. अधिकांश लोगों ने कहा वह लंबे समय से लोगों को नगर के पर्यावरण के प्रति जागरूक करते रहते हैं। नगर के पर्यावरण हेतु समर्पित हैं।
2. पौधारोपण कार्यक्रमों में सहभागिता निभाते हैं।
3. झील के जलागम क्षेत्र में घोड़ों के चलने सहित जो भी गलत देखते हैं, प्रशासन से शिकायत करते हैं या सूचना देते हैं।
4. कई लोगों ने बताया कि वह वर्षों से झील की सफाई व अन्य कार्यों में योगदान दे रहे हैं।
5. अनेक लोगों ने अन्य को प्रेरित किये जाने व सलाह दिये जाने की बात कही।
6. नगर के लिये अहितकारी योजनाओं का विरोध करते हैं। डा. अजय रावत ने हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर करने की बात कही।
7. गंदगी खुद भी नहीं फैलाते हैं, और दूसरों को भी रोकते हैं। अपना परिवेश साफ रखने की कोशिश करते हैं।
8. कुछ लोगों ने कहा कि पौधारोपण, नैनी झील की सफाई जैसे कार्यों में सहयोग देते हैं।
9. पॉलीथीन का प्रयोग नहीं करते हैं।
10. जल संरक्षण व जल प्रदूषण रोकने को कार्य करते हैं।
11. संबंधित लोगों से विचारों का आदान-प्रदान करते हैं।
12. कुछ ने कहा कि कुछ नहीं करते हैं, पर करना चाहते हैं। कोशिश करते हैं। नैतिक सहयोग देते हैं।

46वां प्रश्न था: लोगों को झील में मलवा डालने से कैसे रोका जाऐ ? इस प्रश्न के उत्तर में निम्न उत्तर उल्लेखनीय रहेः
1. मलवा डालने वालों को तुरंत रोका जाये। प्रशासन सख्ती दिखाऐ।
2. मलवा डालने पर कड़ी सजा, 25 हजार रुपये तक के दंड का प्राविधान हो।
3. भवन निर्माण कर्ताओं से पहले ही दो लाख रुपये तक की धरोहर राशि जमा कर ली जाये। मलवा फेंकने पर उसे जब्त कर लिया जाये।
4. मलवे से झील को पहुंचने वाले नुकसान के प्रति लोगों और खासकर बच्चों को जागरूक किया जाये। समझाया जाये कि नैनी झील कितनी अधिक महत्वपूर्ण है। इसके बिना शहर का अस्तित्व ही नहीं है।
5. मलवा डालने के लिये आसान स्थान उपलब्ध कराया जाये।
6. निर्माण करने वालों से आवश्यक तौर पर मलवा हटाने का टैक्स लिया जाये।
7. जो मलवा डालते हैं, दंड देकर उन्हीं से नालों की सफाई करवाई जाये।
8. झील में मलवा डालने वालों, अवैध निर्माणकर्ताओं व अतिक्रमणकारियों के नाम सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शित किये जाऐं।
9. सोशियल ऑडिट की व्यवस्था हो। जनता खुद देखे कि कौन मलवा डाल रहा है और उसे रोकने में सहयोग दे।
10. शहर के विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय प्रतिष्ठित लोगों को जिम्मेदारी दी जा सकती है।

47वां प्रश्न था: क्या आप पानी बचाने में अपनी ओर से कोई योगदान देते हैं ? हां, तो कैसे ? इस प्रष्न के उत्तर में निम्न उत्तर उल्लेखनीय रहेः
1. पानी का कम से कम उपयोग व पूरा सदुपयोग करते हैं।
2. घर व सार्वजनिक नलों की खुली व टपकने वाली टोंटियों को बंद करते हैं, व विभाग को सूचित करते हैं।
3. लोगों को पानी बचाने के लिये प्रेरित करते हैं।
4. बरसात के पानी का घरेलू कार्यों में और घर के प्रयोग किये पानी का दुबारा फूलों की क्यारियों में सदुपयोग करते हैं।

48वां प्रश्न था: नगर में निर्माण कार्यों में कैसे कमी आये ? इस प्रश्न के उत्तर में निम्न उत्तर उल्लेखनीय रहेः
1. संवेदनशील क्षेत्रों, ग्रीन बेल्ट क्षेत्र में जमीन की बिक्री पर ही रोक लगे। रजिस्ट्री ही ना की जा सके।
2. अवैध निर्माण शुरू होते ही तोड़ दिये जाऐं।
3. ग्रीन बेल्ट व सूखाताल में निर्माण कदापि नहीं होने चाहिऐ।
4. सूखाताल झील के डूब क्षेत्र में जो भवन बने है, उन्हें हटाने की मुहिम छेड़ी जानी चाहिए।
5. निर्माणों की अनुमति का अधिकार तत्काल झील विकास प्राधिकरण से वापस लेकर नगर पालिका को दे देना चाहिऐ।
6. शहर के नजदीक बाहरी क्षेत्रों में ‘सेटेलाइट टाउन’ विकसित कर वहां नागरिकों को सुव्यवस्थित तरीके से बसाया जाये। गरीबों के लिये सरकार घर बनाकर दे।
7. अवैध निर्माणों की कंपाउंडिंग न हो।
8. कई ने व्यवायिक और कई ने हर तरह के निर्माण पूरी तरह प्रतिबंधित किये जाने की आवश्यकता जताई।
9. प्रशासन नियमों, कानूनी प्राविधानों का सख्ती से पालन कराये।
10. झील विकास प्राधिकरण के एक अभियंता ने कहा, लोगों में जागृति व स्वार्थ न त्यागे जाने तक निर्माण रुकना संभव नहीं है।
11. झील विकास प्राधिकरण के अतिरिक्त एक ऐसे सेल का गठन किया जाये जो नगर में होने वाले वैधानिक व अवैधानिक निर्माणों पर गोपनीय तौर पर नजर रखे, और प्रशासन को गोपनीय तरीके से अपनी रिपोर्ट दे।
12. जो भवन हैं, उन्हें ही पुर्ननिर्माण या सुधार की अनुमति मिले। नई जमीन पर कोई नया निर्माण न होने दिया जाये।

49वां प्रश्न था: क्या नैनी झील से पानी का रिसाव हो रहा है ? यदि हां, तो यह कैसे रुके ? इस प्रश्न के उत्तर में निम्न उत्तर उल्लेखनीय रहेः
1. अनेक उत्तरदाताओं ने झील से रिसाव नहीं होने की बात कही।
2. कुछ ने कहा झील से हमेशा से प्राकृतिक रिसाव हो रहा है। यह सामान्य बात है। इसे रोका नहीं जा सकता।
3. जीआईएस व मैरीन इंजीनियरिंग सहित अन्य वैज्ञानिक तरीकों के प्रयोग से रिसाव रोका जाये।

50वां प्रश्न था: क्या वाहनों का प्रवेश रुकना चाहिऐ ? हां तो कैसे ? इस प्रश्न के उत्तर में निम्न उत्तर उल्लेखनीय रहेः
1. नगर के बाहर बल्दियाखान, हनुमानगढ़ी, कैलाखान व चारखेत आदि नगर के प्रवेश द्वारों पर बड़ी मल्टी स्टोरी पार्किंग बनाई जानी चाहिये।
2. यहां से शहर व खास तौर पर माल रोड में पर्यावरण मित्र कैब, छोटी गाड़ियां चलाई जाऐं।
3. माल रोड पर खासकर बड़े वाहनों का प्रवेश पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिऐ।
4. नगर में पर्यटक वाहनों का प्रयोग प्रतिबंधित हो। इसके लिये शहर के प्रवेश द्वारों से शहर को शटल टैक्सियां चलाई जाऐं।
5. तल्ली ताल से मल्लीताल के बीच ट्राम जैसे आधुनिक सार्वजनिक यातायात के साधन उपलब्ध कराये जाऐं।
6. शहर की वाहन धारण क्षमता का आंकलन कर उसी अनुरूप वाहनों को प्रवेश दिया जाये व शेष को रोक दिया जाये।
7. नगर के उन्हीं लोगों के वाहनों का पंजीकरण हो, जिनके पास पार्किंग की सुविधा, गैराज हो।
8. बाईपास का निर्माण जल्द हो। फिर माल रोड की ओर के क्षेत्रवासियों को ही माल रोड पर वाहन चलाने की इजाजत हो।
9. ऐसी योजना बने जिससे लोगों के आवश्यक कार्य प्रभावित न हों, पर्यटन पर भी दुष्प्रभाव न पड़े, साथ ही वाहनों का बोझ एवं यातायात अव्यवस्था भी न होने पाये।
10. कुछ लोगों ने वाहनों का प्रवेश रोके जाने पर भी आपत्ति जताई। कहा, वाहन नहीं रोके जाने चाहिऐ।

इसके अलावा भी लोगों से अन्य सुझाव मांगे गये थे। लोगों ने निम्न उल्लेखनीय सुझाव दियेः
1. नैनीताल नगर व झील को मां नयना देवी का पवित्र धाम मानते हुऐ व इसकी विश्व प्रसिद्ध छवि को आगे बढ़ाने के लिये साफ-सफाई का खास खयाल रखें। क्योंकि इसी पर नगर का प्रमुख पर्यटन उद्योग निर्भर है।
2. झील विकास प्राधिकरण बिना वन विभाग की अनापत्ति के नक्शे पास ना करे। ऐसे में लोग पेड़ों को पहले सुखा और बाद में चोरी-छुपे काट डालते हैं।
3. पर्यटकों के साथ हर तरह की लूट बंद होनी चाहिऐ। होटलों की दरें कम व तय होनी चाहिये।
4. नगर में पॉलीथीन का प्रयोग पूर्णतया प्रतिबंधित हो।
5. नगर वासियों, होटल वालों व कर्मचारियों से ‘लेक फंड’ के रूप में टैक्स की छूट युक्त डोनेशन लिये जाने की व्यवस्था हो, जिसका उपयोग डीएम के नियंत्रण में झील केे लिये हो।
6. झील के अध्ययन के लिये हर विधा के विशेषज्ञ वैज्ञानिकों के दल का गठन हो।
7. बरिश के पानी के लिये अलग से सीवर जैसी लाइन बने और इसके पानी को झील में डालने का प्रबंध किया जाये।
8. लोगों में ऐसी सोच विकसित की जाये कि नैनी झील को बचाना, स्वयं को बचाना है। यह हमारे अस्तित्व का सवाल है।
9. एक उत्तरदाता ने प्रश्नोत्तरी पर ही प्रश्न उठाया कि इसमें सब कुछ तो ठीक है पर नगर में निर्माणों को पूर्णतः प्रतिबंधित किये जाने पर जोर नहीं दिया गया है।
10. लोगों को जागरूक करने के लिये पोस्टर, ब्रोशर आदि बनें। समय-समय पर कार्यशालाऐं आयोजित की जाऐं।
11. खुले में शौच को पूरी तरह रोका जाये।
12. पैदल चलने वालों के लिये पाथ-वे बनें। नैनीताल घूमने के लिये हैरिटेज साइट घोषित हो। विरासत पथ चिन्हित हों।
13. सार्वजनिक यातायात को शटल सेवा चलें। स्थानीय लोगों को भी इनके प्रयोग के लिये प्रेरित किया जाये।
14. पेयजल की डिस्ट्रिब्यूसन लाइनों का पुनरुद्धार हो। पतली लाइनों के जाल की जगह मोटी लाइनें लगें।
15. अंडरग्राउंड विद्युत केबलिंग हो। पानी की आपूर्ति केवल बिजली पर निर्भर न रहे। बड़े जेनरेटर लगें।
16. नागरिक अपनी जिम्मेदारी समझें। नगर पालिका व झील विकास प्राधिकरण मिलकर प्रतिबद्धता के साथ कार्य करें।
17. मलवा रोकने को नालों में जालियां लगें।
18. केवल एक एजेंसी नैनी झील की देखभाल करे।

डाटा एनालिसिस के निष्कर्ष

इस प्रकार डाटा एनालिसिस से कुछ बातें स्पष्ट होती हैं कि नैनीताल नगर वासी नगर के प्रति काफी चिंतित रहते हैं। उनमें नगर के प्रति गजब की संवेदनशीलता दिखती है। अधिकांश प्रश्नों के उत्तर में उनकी यह संवेदनशीलता साफ नजर आती है। लेकिन जब नगर के प्रति स्वयं कुछ करने का समय आता है, तब शायद वह चाहकर भी कोई व्यक्तिगत योगदान नहीं दे पाते हैं। कई कहते हैं, वह शहर के लिये करना चाहते हैं, पर शायद किन्ही कारणों से चाहकर भी नहीं कर पाते हैं। शायद इसीलिये अनेक प्रश्नों पर नगरवासी यह स्वीकार करते हुऐ मिलते हैं कि विभिन्न समस्याओं के लिये नगर वासी ही सर्वाधिक जिम्मेदार हैं।

यह लघु शोध प्रबंध नगर से संबंधित अनेक संवेदनशील विषयों पर नगर वासियों की राय जानने में भी सफल रहा है। संभव है कि जनता के विभिन्न विषयों पर सुझावों व राय का नगर की भावी योजनाओं को बनाने में मददगार साबित होवें।

अन्यथा, इस लघु शोध प्रबंध को आगे बढ़ाकर भविष्य में और अधिक विस्तृत शोध किये जा सकते हैं, और बेहतर परिणाम हासिल किये जा सकते हैं।

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