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May 17, 2025

सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय के निर्णय को पलटते हुए कहा-लिव-इन में रहते हुए बने शारीरिक संबंध सहमति के, शादी के झांसे से बने नहीं माने जा सकते…

Supreme Court Navin Samachar

लिव-इन संबंध में शादी के झूठे वादे पर दर्ज अभियोग अस्वीकार्य: सर्वोच्च न्यायालय

नवीन समाचार, नई दिल्ली, 8 मई 2025 (Supreme Court Decision-Live-In Physical Relation)सर्वोच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने लिव-इन संबंधों में रह रहे जोड़ों से संबंधित एक मामले में उत्तराखंड उच्च न्यायालय के एक निर्णय को पलटते हुए महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। कहा है कि जब दो वयस्क व्यक्ति वर्षों तक एक-दूसरे के साथ सहमति से लिव-इन संबंध में रहते-सहवास करते हैं, और तो यह आरोप कि संबंध शादी के झूठे वादे पर आधारित थे, स्वीकार नहीं किया जा सकता।

सहमति से बना संबंध बताया

(Supreme Court Decision-Live-In Physical Relation)सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति संजय करोल और मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि जब कोई प्रेमी युगल लंबे समय तक लिव-इन संबंध में रहता है, तो यह अनुमान लगाया जाता है कि वे विवाह करने की इच्छा नहीं रखते, और उनके बीच संबंध वैध सहमति पर आधारित होते हैं। 

समझौता करने के बाद दर्ज किया अभियोग

प्राप्त जानकारी के अनुसार, सुने गए मामले में युवक और युवती दो वर्ष से अधिक समय तक एक किराये के आवास में साथ रहे। इस दौरान 19 नवंबर 2023 को दोनों ने एक समझौता-पत्र तैयार कर अपने प्रेम को पुष्ट किया और विवाह करने की इच्छा जताई। इसके मात्र चार दिन बाद, 23 नवंबर को युवती ने युवक के विरुद्ध जबरन शारीरिक संबंध बनाने का आरोप लगाते हुए अभियोग दर्ज कराया।

पीठ ने कहा कि प्राथमिकी में कहीं भी यह उल्लेख नहीं है कि शारीरिक संबंध केवल इस कारण बनाए गये क्योंकि युवक ने विवाह का वादा किया था। अतः यह मामला बलपूर्वक या धोखे से बनाए गये संबंध की श्रेणी में नहीं आता है। पीठ ने टिप्पणी की कि मौजूदा मामला इसी प्रकार की स्थिति को स्पष्ट करता है, जिससे यह सिद्ध होता है कि दोनों के बीच सहमति से संबंध बने।

स्वयं निर्णय लेने में सक्षम थे दोनों

सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि दो वयस्क वर्षों तक लिव-इन में रहकर सहवास करते हैं, तो यह अनुमानित है कि उन्होंने यह निर्णय स्वयं लिया और इसके परिणामों को भलीभांति समझा। ऐसी स्थिति में विवाह के झूठे वादे पर दर्ज अभियोग स्वीकार नहीं किये जा सकते।

उत्तराखंड उच्च न्यायालय का निर्णय रद्द

सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय के उस आदेश को भी निरस्त कर दिया जिसमें आरोपित युवक की याचिका खारिज करते हुए अभियोग को यथावत रखा गया था। उल्लेखनीय है कि युवती की जबरन शारीरिक संबंध बनाने का आरोप लगाने की शिकायत पर दर्ज अभियोग को युवक ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने युवक पर युवती द्वारा लगाए गए आरोप को संज्ञेय अपराध मानते हुए युवक की अपील अस्वीकार कर दी थी। लेकिन शीर्ष अदालत ने कहा कि मामले की परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए यह आदेश न्यायसंगत नहीं है।

महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता से बढ़े लिव-इन संबंध (Supreme Court Decision-Live-In Physical Relation)

पीठ ने यह भी कहा कि एक या दो दशक पूर्व लिव-इन संबंध समाज में स्वीकृत नहीं थे, लेकिन आज महिलाओं की आर्थिक आत्मनिर्भरता ने उन्हें अपने जीवन के निर्णय स्वयं लेने की क्षमता प्रदान की है। इसी कारणवश लिव-इन संबंधों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। अदालतों को ऐसे मामलों में अत्यधिक परंपरागत दृष्टिकोण नहीं अपनाना चाहिए, बल्कि परिस्थिति अनुसार विवेकपूर्ण निर्णय देना चाहिए। (Supreme Court Decision-Live-In Physical Relation)

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