हाईकोर्ट ने डकैती, हत्या और लाश को छिपाने के गंभीर मामले में फांसी की सजा को किया रद्द, साथ में निचली अदालतों को दिये नजीर जैसी बड़ी नसीहत
नवीन समाचार, नैनीताल, 8 अगस्त 2024 (Uttarakhand-High Court canceled Death Sentence)। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने डकैती, हत्या और लाश को छिपाने के गंभीर मामले में रुद्रप्रयाग के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा दो अभियुक्तों को दी गई फांसी की सजा को रद्द कर दिया है। इस मामले में उच्च न्यायालय ने निचली अदालतों को बड़ी एवं भविष्य के लिये नजीर देने वाली नसीहत देते हुए कहा है कि आपराधिक मुकदमों में संदेह को सबूत की जगह लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
घटना का विवरण
अभियुक्तों पर ग्राम लिस्वालता पट्टी कोट बंगर रुद्रप्रयाग निवासी महिला सरोजनी देवी के घर में डकैती करने, उनकी हत्या करने और लाश को छिपाने का आरोप था। इस घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं था, लेकिन लूटे गए कुछ जेवरात और रुपये आरोपितों के पास से मिले थे। मृतका के बेटे मुंबई में रहने वाले विजय रावत ने 6 अप्रैल 2017 को पट्टी पटवारी के समक्ष प्राथमिकी दर्ज कराई थी।
निचली अदालत में यह हुआ था
रुद्रप्रयाग के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने 2 दिसंबर और 4 दिसंबर 2018 को सत्येश कुमार उर्फ सोनू और मुकेश थपलियाल को लूट और हत्या के आरोप में फांसी की सजा सुनाई थी। यह मामला उच्च न्यायालय में सजा की पुष्टि के लिये भेजा गया था। उच्च न्यायालय ने 6 अगस्त को निर्णय देते हुए रिकॉर्ड पर मौजूद सभी मौखिक और साक्ष्यों की प्रकृति और गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 34, 392 और 201 के तहत अपीलकर्ताओं को मिली सजा को रद्द कर उन्हें तुरंत रिहा करने के आदेश दिए।
उच्च न्यायालय की टिप्पणी (Uttarakhand-High Court canceled Death Sentence)
मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए अपने निर्णय में कहा कि ‘हो सकता है’ और ‘होना चाहिए’ के बीच की मानसिक दूरी को समझना आवश्यक है। अदालत का कर्तव्य है कि वह ‘सुनिश्चित करे कि कोई अभियुक्त केवल अनुमान या संदेह के आधार पर दोषी न ठहराया जाए’। अभियोजन पक्ष को स्पष्ट और ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करना चाहिए जो संदेह को साक्ष्य में परिवर्तित कर सकें।
उच्च न्यायालय ने गवाहों के बयानों को गंभीर संदेह पैदा करने वाला बताया और कहा कि अभियुक्तों द्वारा ही महिला की हत्या की गई हो ऐसा विश्वास नहीं होता। न्यायालय ने कहा कि गंभीर संदेह कभी प्रमाण का स्थान नहीं ले सकता। यह मामला न्यायिक प्रक्रिया की उस महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है जो न्यायालयों को निष्पक्षता और निष्कपटता के साथ निभानी होती है। न्यायालय का यह निर्णय न्याय के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है और यह सुनिश्चित करता है कि केवल ठोस सबूतों के आधार पर ही किसी को दोषी ठहराया जा सकता है। (Uttarakhand-High Court canceled Death Sentence)
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