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May 17, 2025

संविधान की पांचवी अनुसूचि में शामिल होने और राज्यवासियों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने से बदल सकती है उत्तराखंड की तस्वीर…

Uttarakhand ka Mool Mudda Mool Niwas Chakbandi Palayan Bhoo Kanoon

 नवीन समाचार, नैनीताल, 27 अप्रैल 2025 (Uttarakhand needs Fifth Schedule and ST Status)। राज्य की सांस्कृतिक पहचान बनाये रखते हुए समग्र विकास के लिये उत्तराखंड को संविधान की पांचवी अनुसूचि में शामिल करने और इसके लिये राज्य के मूल निवासी कुमाउनी व गढ़वाली लोगों को अनुसचित जाति का दर्जा दिये जाने की आवश्यकता है। यह बात रविवार को नैनीताल समाचार में आयोजित कार्यक्रम में उत्तराखंड एकता मंच के सदस्यों ने कही और कार्यक्रम में उपस्थित लोगों ने इसका समर्थन किया।

dc91436756e32b573c0b7e9b526a3035 455867623उत्तराखंड को संविधान की पांचवी अनुसूचि में शामिल किये जाने की राज्य की जनता को आवश्यकता समझाये जाने के लिये उत्तराखंड एकता मंच की 138वीं बैठक नगर में आयोजित की गयी। बैठक में नगर के गणमान्यजनों को संबोधित करते हुए मंच के संजय राठौर, महेंद्र रावत, अनूप बिष्ट व श्याम सिंह रावत ने कहा कि देश के 11 पर्वतीय राज्यों में केवल उत्तराखंड ही संविधान की पांचवी या छठी अनुसूचि में शामिल नहीं है। इसके कारण ही राज्य में 1972 से लागू वन पंचायत अधिनियम के कारण राज्य वासी वनों से संबंधित अपने मूल अधिकारों से विहीन हुए हैं।

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उत्तराखंड के मूल निवासी सामान्य वर्ग के लोगों को कभी भी 1950 के गजट नोटिफिकेशन के उल्लेख के साथ मूल निवास प्रमाण पत्र नहीं दिया जाता, कोई भी बाहरी व्यक्ति राज्य में केवल 15 वर्ष रहकर ले सकता है राज्य के मूल निवासियों जितने लाभ 

साथ ही राज्य के अनुसूचित जातियों के अतिरिक्त सामान्य वर्ग के लोगों को मूल निवास संबंधी 1950 के गजट नोटिफिकेशन के उल्लेख के बिना पूर्व में मूल निवास और वर्तमान में निवासी, स्थायी निवासी आदि प्रमाण पत्र दिये जाते हैं। कहा कि उत्तराखंड के मूल निवासी गैर अनुसूचित जाति-जनजाति के लोगों को कभी भी 1950 के गजट नोटिफिकेशन के उल्लेख के साथ मूल निवास प्रमाण पत्र नहीं दिया जाता था, लेकिन इसलिये इस प्राविधान को हटाये जाने के दावों का कोई अर्थ नहीं है। साथ ही कोई भी बाहरी व्यक्ति राज्य में केवल 15 वर्ष रहकर राज्य के मूल निवासियों की तरह स्थायी निवास प्रमाण पत्र प्राप्त कर लेता है।

अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाना जरूरी-पूरे करते हैं मानक 

राज्य के मूल निवासियों को अतिरिक्त लाभ मिलें और इस सीमावर्ती राज्य की अलग संस्कृति व देश की सुरक्षा बनी रहे, इसके लिये सबसे पहले राज्य के मूल कुमाउनी व गढ़वाली लोगों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाना जरूरी है। इसके लिये वे अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान, भाषा, खान-पान, त्योहार, परंपराएं, वनों पर निर्भरता, शक व विक्रम संवत से अलग चैत्र 1 गते से शुरू होने वाला अलग पंचांग अनुसूचित जाति का दर्जा प्राप्त करने की पूर्ण योग्यता भी रखते हैं।

बताया कि उत्तराखंड के फूलदेई, हरेला, हलिया दशहरा, रम्माण, हिलजात्रा व खतड़ुवा जैसे त्योहार, पांडव व छोलिया नृत्य कोई समस्या होने पर देवी-देवताओं के साथ अपने इष्ट देवताओं के जागर लगाना व अपने पूर्वजों की पूजा करने जैसी विशिष्ट प्रथाएं भी उत्तराखंड वासियों के जनजाति होने के सबूत हैं। केवल इसके लिये पहल करने की आवश्यकता है और इस हेतु प्रयास भी तेजी से चल रहे हैं। इसके बाद राज्य को संविधान की पांचवी अनुसूचि में शामिल किये जाने की भी पूरी संभावना हो जाएगी।

पांचवी अनुसूचि में शामिल होते ही स्वतः मिल जाएंगे यह लाभ 

बताया कि संविधान की पांचवी अनुसूचि में शामिल होते ही राज्य में स्वतः ही मूल निवास 1950 का कानून लागू हो जाएगा, राज्य में सशक्त भूकानून लागू हो जाएगा और राज्य के मूल निवासी अन्य अनुसूचित जनजातियों की तरह यूसीसी यानी समान नागरिक संहिता के प्राविधानों से बाहर आ जाएंगे। राज्य वासियों को केंद्रीय एवं राज्य सेवाओं में अतिरिक्त आरक्षण, राज्य की ग्राम पंचायतों को लाइसेंस व ठेके देने का अधिकार मिल जाएगा।

राज्य में पर्यावरण प्रदूषण, प्राकृतिक संसाधनों के दुरुप्रयोग, विस्थापन व पलायन की समस्या दूर होगी और राज्य की अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों की तरह सामान्य वर्ग के लोगों के लिये भी आईएएस-पीसीएस अधिकारी सरकारी नौकरी के अवसर बढ़ेंगे। साथ ही इसका कोई नकारात्मक प्रभाव वर्तमान आरक्षित वर्ग के लोगों पर नहीं पड़ेगा, बल्कि ऐसा न होने पर आने वाले वर्षों में उन्हें इसके नकारात्मक परिणाम झेलने पड़ेंगे।

बैठक में राजीव लोचन साह, डॉ. नवीन जोशी, बसंत पांडे, दिनेश उपाध्याय, त्रिभुवन फर्त्याल, चंपा उपाध्याय, माया चिलवाल, लीला बोरा, महेंद्र रावत, तरुण जोशी, बिशन सिंह मेहता, प्रयाग जीना, भगवंत राणा, गौरव गोस्वामी, गोपाल बिष्ट, कुबेर मनराल सहित बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहे।

उत्तराखंड को संविधान की पांचवी अनुसूचि में शामिल करने की आवश्यकता और इससे मिलने वाले संभावित लाभ

✍ डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 27 अप्रैल 2025। उत्तराखंड जैसे सीमांत व सांस्कृतिक दृष्टि से विशिष्ट राज्य के समग्र, न्यायसंगत और टिकाऊ विकास हेतु संविधान की पांचवी अनुसूचि (Schedule V) में इसकी सम्मिलिति की मांग पिछले कुछ वर्षों से जोर पकड़ रही है। देश के अन्य पर्वतीय व जनजातीय राज्यों की तुलना में उत्तराखंड अभी तक इस अनुसूचि में सम्मिलित नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप राज्य के मूल निवासियों को न तो उनके पारंपरिक अधिकारों की सुरक्षा मिली है, और न ही वे सामाजिक-आर्थिक विकास की केंद्रित योजनाओं का अपेक्षित लाभ प्राप्त कर सके हैं।


क्या है संविधान की पांचवी अनुसूचि?

भारतीय संविधान की पांचवी अनुसूचि विशेष रूप से अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribes) और उनके प्रशासनिक अधिकारों से संबंधित है। इसका उद्देश्य अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों में पारंपरिक संस्कृति, भू-स्वामित्व, सामाजिक संरचना और स्थानीय प्रशासन को संरक्षण देना है।

इस अनुसूचि में सम्मिलित क्षेत्र के लिए निम्न व्यवस्थाएं होती हैं:

  • जनजातीय सलाहकार परिषद (Tribal Advisory Council) की स्थापना

  • राज्यपाल को विशेष अधिकार, जो जनजातीय क्षेत्रों के लिए विशेष नियम लागू कर सकते हैं

  • केंद्रीय योजनाओं में विशेष प्राथमिकता

  • अन्य राज्यों से बाहरी व्यक्तियों द्वारा भूमि खरीद व हस्तांतरण पर प्रतिबंध

  • जनजातीय संस्कृति, परंपराएं, भाषा व वनाधिकारों का संरक्षण


उत्तराखंड को पांचवी अनुसूचि में सम्मिलित करने की आवश्यकता क्यों?

  1. सांस्कृतिक विशिष्टता और पहचान:
    उत्तराखंड के कुमाउनी और गढ़वाली समाज की भाषा, परंपराएं, खान-पान, त्योहार जैसे हरेला, फूलदेई, खतड़ुवा, रम्माण, जागर, छोलिया आदि देश के किसी भी अन्य हिस्से से भिन्न हैं। यह संस्कृति जनजातीय जीवनशैली के सभी लक्षणों को समेटे हुए है।

  2. वनाधिकारों से वंचना:
    वर्ष 1972 में लागू वन पंचायत अधिनियम और बाद में लागू विभिन्न वन कानूनों के चलते राज्यवासी अपने ही पारंपरिक वनों और संसाधनों के उपयोग से वंचित हुए हैं। पांचवी अनुसूचि लागू होने से उन्हें इन संसाधनों पर परंपरागत अधिकार फिर से मिल सकेंगे।

  3. भूमि कानूनों की रक्षा:
    अनुसूचि में सम्मिलित होने से भू-स्वामित्व कानून सशक्त होंगे और बाहरी लोगों द्वारा राज्य की भूमि की खरीद-बिक्री पर प्रभावी नियंत्रण संभव होगा।

  4. रोजगार और शिक्षा में विशेष अवसर:
    अनुसूचित जनजातियों की तरह उत्तराखंड के मूल निवासी भी केंद्रीय एवं राज्य सेवाओं, शैक्षिक संस्थानों में आरक्षण व विशेष योजनाओं के पात्र बन सकते हैं। इससे युवाओं को IAS-PCS सहित उच्च सेवाओं में अवसर मिलेंगे।

  5. स्थायी निवास और मूल निवासी प्रमाणपत्र की स्पष्टता:
    वर्तमान में केवल 15 वर्ष राज्य में निवास करने के आधार पर कोई भी बाहरी व्यक्ति स्थायी निवास प्रमाणपत्र ले सकता है। पांचवी अनुसूचि लागू होने पर 1950 की गजट अधिसूचना के आधार पर ही मूल निवास तय होगा।

  6. यूसीसी (समान नागरिक संहिता) से अपवाद:
    अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों की तरह उत्तराखंड को भी समान नागरिक संहिता (UCC) के प्राविधानों से अपवाद मिल सकता है, जिससे पारंपरिक रीति-रिवाजों को संरक्षित किया जा सकेगा।


संभावित लाभों की संक्षिप्त सूची

  • वन अधिकारों की बहाली

  • मूल निवासी पहचान की रक्षा

  • स्थायी निवास प्रमाणपत्रों की स्पष्ट परिभाषा

  • विशेष शैक्षिक व रोजगार आरक्षण

  • भूमि हस्तांतरण पर नियंत्रण

  • ग्राम पंचायतों को विशेष अधिकार

  • पलायन और विस्थापन की समस्या में कमी

  • सांस्कृतिक पहचान का संवैधानिक संरक्षण

  • प्राकृतिक संसाधनों का स्थानीय हित में उपयोग

  • राज्य की सुरक्षा के दृष्टिकोण से सामरिक मजबूती

उत्तराखंड को संविधान की पांचवी अनुसूचि में सम्मिलित करना न केवल राज्य के मूल निवासियों के अधिकारों की पुनर्स्थापना की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा, बल्कि यह राज्य के सतत विकास, सांस्कृतिक संरक्षण, पर्यावरणीय संतुलन और पलायन जैसी ज्वलंत समस्याओं का समाधान भी प्रस्तुत कर सकता है। आवश्यकता है केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति, जन-जागरूकता और संवैधानिक प्रक्रिया को गति देने की। (Uttarakhand needs Fifth Schedule and ST Status, Nainital News, Uttarakhand News, Uttarakhand ke Mool Mudde, 5th Schedule)

पाँचवी अनुसूची में शामिल होने और राज्य के सभी मूल निवासियों को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा प्राप्त करने के लिए उत्तराखंड को इन मानकों को पूरा करना होगा (Uttarakhand needs Fifth Schedule and ST Status):

पाँचवी अनुसूची में शामिल होने और राज्य के सभी मूल निवासियों को अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा प्राप्त करने के लिए उत्तराखंड को कुछ विशेष मानकों को पूरा करना होगा। राज्य में अनुसूचित जनजातियों का दर्जा देने के लिए केंद्र सरकार की ओर से निर्धारित कुछ बुनियादी शर्तों और मानकों का पालन करना आवश्यक है। (Uttarakhand needs Fifth Schedule and ST Status, Nainital News, Uttarakhand News, Uttarakhand ke Mool Mudde, 5th Schedule)

ये मानक हैं, जिनका पालन राज्य को करना होगा:

  1. जनसांख्यिकीय स्थिति: राज्य के मूल निवासियों की जनसंख्या की संरचना को ध्यान में रखते हुए यह सुनिश्चित करना कि राज्य में अनुसूचित जनजातियों का प्रतिशत पर्याप्त हो। इसके तहत जनजातियों की जनसंख्या का एक निश्चित प्रतिशत राज्य की कुल जनसंख्या से कम से कम होना चाहिए।

  2. सांस्कृतिक और ऐतिहासिक मान्यता: राज्य के जिन समुदायों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की उम्मीद है, उन्हें अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक, पारंपरिक और सामाजिक पहचान साबित करनी होगी। यह प्रमाणित करना होगा कि वे अन्य समुदायों से विशिष्ट हैं और उनके पास पारंपरिक रूप से कोई विशेष जीवन शैली, रीति-रिवाज, या परंपराएँ हैं।

  3. भौगोलिक और सामाजिक स्थिति: अनुसूचित जनजाति के दर्जे की मांग करने वाले समुदायों का राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में बसे होने के साथ-साथ उनके सामाजिक और आर्थिक स्तर को भी देखा जाएगा। इन समुदायों को सामान्य रूप से पिछड़े हुए क्षेत्रों में स्थित होना चाहिए और उनकी जीवन शैली को आधुनिकता से अलग पहचान होनी चाहिए।

  4. आर्थिक स्थिति: इन समुदायों को यह साबित करना होगा कि वे मुख्यधारा के विकास से वंचित हैं और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुधारने की आवश्यकता है। इसमें उनका शिक्षा स्तर, स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच, और रोजगार के अवसरों का अभाव प्रमुख कारक होंगे।

  5. अनुसूचित जनजाति आयोग की सिफारिश: एक महत्वपूर्ण शर्त यह होगी कि राज्य में अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने के लिए राज्य सरकार को अनुसूचित जनजाति आयोग से सिफारिश प्राप्त करनी होगी। आयोग की सिफारिश के बाद ही केंद्र सरकार इस प्रक्रिया पर आगे बढ़ सकती है।

उत्तराखंड में यह प्रक्रिया सरकार द्वारा उठाए गए कदमों और समुदायों की भागीदारी के आधार पर ही सफल हो सकती है। कई समुदायों ने पहले ही अनुसूचित जनजाति का दर्जा प्राप्त करने के लिए संघर्ष किया है और राज्य सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से ले रही है। (Uttarakhand needs Fifth Schedule and ST Status, Nainital News, Uttarakhand News, Uttarakhand ke Mool Mudde, 5th Schedule)

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