March 29, 2024

अधिक मतदान-सत्ता विरोधी, तो कम मतदान ? क्या हैं कम मतदान के इशारे ?

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नवीन समाचार, नैनीताल, 11 अप्रैल 2019। किसी भी चुनाव में अधिक मतदान को सत्ता विरोधी लहर का असर माना जाता है, और इसके विपरीत कम मतदान को सत्तारू़ढ़ दल के पक्ष में माना जाता है। इस लोकसभा चुनाव में भी हुए कम मतदान को सत्तारूढ़ दल के पक्ष में माना जा रहा है। सत्तारूढ़ दल के कार्यकर्ता भी यह दावा कर रहे हैं।

किसके पक्ष में जायेगा पहली बार वोट देने वाले युवाओं का मतदान के प्रति उत्साह

नैनीताल। लोक सभा चुनाव में हालांकि मतदान का प्रतिशत इस बार कम रहा है। अधिकांश मतदान केंद्रों में लाइनें लगी हुई भी नहीं दिखीं। अलबत्ता पहली बार मतदान करने वाले युवाओं में मतदान के प्रति खासा जोश नजर आया। उल्लेखनीय है कि राजनीतिक दलों, खासकर सत्तारूढ़ दल ने युवा वर्ग को मतदान से जोड़ने में अधिक मेहनत की है। यह भी माना जाता है कि युवाओं में पहले चुनाव से जिस पार्टी को मतदान करने का बीजारोपण हो जाता है, वह भविष्य के चुनावों में भी उसकी पार्टी के प्रति गहरा जुड़ता चला जाता है। इस वर्ग में साफ तौर पर कांग्रेस पार्टी या एनएसयूआई से जुड़े युवाओं से इतर अन्य में देश व राष्ट्रवाद का असर दिखाई दे रहा है।

वीवीपैट से दिखा किसे पड़ा वोट, किसी और को वोट पड़ने की शिकायत नहीं

नैनीताल। लोकसभा चुनाव में प्रयुक्त वीवीपैट मशीनों से मतदाता काफी खुश दिखे। मतदाताओं ने कहा कि वे सुनिश्चित हुए कि उनका डाला हुआ वोट उनके पसंदीदा प्रत्याशी को ही मिला। वहीं वोट किसी और पड़ने की शिकायत नहीं आई। ऐसे में आगे पराजित होने वाले प्रत्याशियों को ईवीएम पर अंगुली उठाने का मौका आसानी से नहीं मिलेगा और वे आरोप लगाएं भी तो कोई उन पर विश्वास नहीं करेगा।

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-‘देश’ और ‘चेंज’ शब्द बने मतदाताओं का मन भांपने का प्रतिमान, भाजपा को कांटे के संघर्ष में हल्की बढ़त
नवीन समाचार, नैनीताल, 11 अप्रैल 2019। लोक सभा चुनाव में ‘देश’ और ‘चेंज या बदलाव’ शब्द मतदाताओं का मन भांपने का प्रतिमान बन गये। इसके अलावा मतदाता देश का प्रधानमंत्री चुनने के लिए वोट डाल रहे हैं, अथवा प्रत्याशी के नाम पर या स्थानीय समस्याओं पर, इन सवालों के जवाब से भी साफ पता चल रहा था कि वे किस पार्टी को वोट दे रहे हैं। देश और प्रधानमंत्री चुनने के लिए मतदान करने के साथ ही देश की सुरक्षा, राष्ट्रवाद, देश का मान बढ़ाने के लिए मतदान करने वाले मतदाताओं का इशारा सत्तारूढ़ भाजपा के पक्ष में वोट करने की ओर रहा, जबकि बदलाव एवं प्रत्याशी व स्थानीय मुद्दों पर बात करने वाले मतदाताओं का इशारा कांग्रेस पार्टी के पक्ष में वोट करने का नजर आया। मतदाता यह बात भी प्रमुखता से कहते सुने गये कि यह चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों का है। राज्य स्तर के मुद्दों के समाधान के लिए विधानसभा का चुनाव, जिला स्तर की ग्रामीण समस्याओं के लिए त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव एवं शहरों की समस्याओं के लिए नगर निकायों के चुनाव होते हैं। इस आधार पर नैनीताल नगर एवं पूरे विधानसभा क्षेत्र में देश व राष्ट्रवाद के स्वर अधिक सुनाई पड़े हैं, अलबत्ता ग्रामीण क्षेत्रों में कांग्रेस प्रत्याशी के पक्ष में क्षत्रिय मतदाता कुछ हद तक लामबंद हुआ है, वहीं अल्पसंख्यक मतदाता भी कांग्रेस को वोट करता नजर आ रहा है। भाजपा ने जरूर क्षत्रिय मतदाताओं को कांग्रेस से दूर करने के लिए अपने लोक सभा प्रभारी केदार जोशी सहित चुनाव प्रबंधन से जुड़े कई नेताओं को हटाकर क्षत्रिय वर्ग के प्रभारी नियुक्त करने जैसे और भी कई प्रयास किये हैं। ऐसे में फिलहाल नैनीताल विधानसभा में भाजपा को हल्की बढ़त नजर आ रही है।

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-विधायकों के विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा प्रत्याशियों के चुनाव परिणामों पर निर्भर करेगा विधायकों को आगे टिकट मिलने एवं मंत्रीपद मिलने का भविष्य
-पक्ष में परिणाम न आने पर मंत्री पद भी जा सकता है
नवीन समाचार, नैनीताल, 10 अप्रैल 2019। बृहस्पतिवार को होने जा रहे लोक सभा चुनाव के मतदान में खासकर भाजपा के चुनाव में भाजपा के विधायकों एवं मंत्रियों की प्रतिष्ठा उनके प्रत्याशियों से अधिक दांव पर होगी। ऐसा इसलिये कि भाजपा के राज्य की 70 विधानसभाओं में से 57 में विधायक हैं, एवं उन्हें भीमताल से एकमात्र निर्दलीय विधायक का भी समर्थन है। साथ में भाजपा के प्रत्याशियों के पक्ष में मोदी लहर भी बताई जा रही है। ऐसे में भाजपा सभी सीटों पर अपनी जीत सुनिश्चित मान रही है। बताया जा रहा है कि भाजपा ने अपने सभी मंत्रियों एवं विधायकों को भी साफ संदेश दे दिया है कि मंत्री-विधायकों के अपेक्षित मेहनत न करने और अभीष्ट परिणाम न आने पर मंत्रियों के मंत्री पद जा सकते हैं, वहीं आगामी विधानसभा चुनाव में मंत्रियों-विधायकों के टिकट भी इस चुनाव में प्रदर्शन ठीक न होने पर कट सकते हैं। ऐसे में बताया जा रहा है कि सभी विधायक व मंत्रियों ने इस चुनाव में अपनी ओर से पूरा प्रयास किया है, और चुनाव के दिन भी सभी अपनी ओर से पार्टी प्रत्याशी के पक्ष में मतदाताओं को बूथ तक लाने का पूरा प्रयास करेंगे। वहीं कांग्रेस पार्टी के लिए इस चुनाव में खोने के लिए कुछ भी नहीं हैं। वे जो भी प्राप्त करेंगे, वह उनकी जीत ही होगी। कांग्रेस को पिछले लोक सभा चुनाव में राज्य की पांच में से एक भी सीट नहीं मिली थी और विधान सभा में भी उनके केवल 11 विधायक ही हैं।

भाजपा को मोदी लहर तो कांग्रेस को मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण पर भरोसा

नैनीताल। लोक सभा चुनाव में भाजपा देश के साथ उत्तराखंड की नैनीताल सहित सभी सीटों पर मोदी लहर पर भरोसा कर रही है। पार्टी को लगता है कि 2014 के लोक सभा व 2017 की विधानसभा की तरह जनता भाजपा को पांच में से पांच लोक सभा सीटें जिताएगी। ऐसा तब संभव होगा जब भाजपा से दूरी रखने वाले मतदाता वर्ग भी जाति-धर्म के बंधन तोड़ पिछले दो चुनावों की तरह मोदी लहर पर वोट करेंगे। वहीं कांग्रेस खासकर मुस्लिम वर्ग के भरोसे पर है। खासकर नैनीताल सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी हरीश रावत को मुस्लिम वर्ग के वोटों पर इतना भरोसा दिखा है कि वे इस बार पिछले चुनावों से इतर मुस्लिम वर्ग में वोटों की अपील करने भी नहीं गये, और उन्होंने राहुल गांधी तरह ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ वाला चेहरा दिखाने की कोशिश की हैं। साथ ही जातिगत समीकरणों को साधने के लिए भी जनता में साफ संकेत नहीं दिये गये हैं। मोदी लहर को देखते हुए कांग्रेस ने सीधे मोदी पर हमला करने के बजाय चुनाव को स्थानीय स्तर पर व प्रत्याशियों पर केंद्रित करने की भी कोशिश की है।

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-कांग्रेसी उम्मीदवारों ने जब इसे परंपरागत सीट माना, तभी उन्हें पटखनी खाने को मिली है
-1977 में बीएलडी के बिल्कुल अनाम चेहरे भारतभूषण ने दी थी तीन बार के कांग्रेस सांसद केसी पंत को मात
-1989 में जनता दल के अनाम चेहरे डा. महेंद्र पाल ने कांग्रेस को लगातार चौथी जीत से रोकते हुए दर्ज की थी जीत
-1991 में भाजपा के एक अनाम चेहरे बलराज पासी ने कांग्रेसी दिग्गज एनडी तिवारी को चटाई धूल
-1998 के उपचुनाव में भाजपा से पहली बार चुनाव लड़ रही इला पंत ने तोड़ा एनडी तिवारी का प्रधानमंत्री बनने का सपना
-2014 के चुनाव में पहली बार यहां से लड़े भाजपा के भगत सिंह कोश्यारी ने रिकार्ड 2.85 लाख वोटो के अंतर से हैट-ट्रिक बनाने से रोककर खत्म किया केसी सिंह बाबा की सियासी सफर

नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 9 अप्रैल 2019। खबरदार ! नैनीताल सीट को कांग्रेस की परंपरागत सीट मानकर कोई किसी गलतफहमी में न रहे। इस सीट की यह खाशियत और इतिहास रहा है कि खासकर कांग्रेस के जिस भी बड़े नेता जब भी नैनीताल को अपनी परंपरागत सीट माना, उसे तभी यहां से पटखनी खाने को मिली है। जी हां नैनीताल लोकसभा सीट का ऐसा ही तथ्यात्मक इतिहास रहा है। केसी पंत से लेकर एनडी तिवारी और केसी बाबा तक, नैनीताल को अपनी जेब में मानने वाले कांग्रेसी नेता नैनीताल की जनता के कोप के भागी रहे हैं।
उत्तराखंड बनने के बाद बहेड़ी और 2009 के नये परिसीमन में रामनगर विधानसभा क्षेत्र को जुदा करने वाली नैनीताल सीट का राजनैतिक हलकों में हमेशा ही वीआईपी सीट का दर्जा रहा है। भारत रत्त पं. गोविंद बल्लभ पंत के पुत्र केसी पंत एवं नारायण दत्त तिवारी सरीखे नेताओं ने संसद पहुंचने एवं केंद्रीय मंत्री की सीढ़ी यहीं से चढ़ी थी। वर्ष 1971 तक के चुनाव में क्षेत्र के मतदाताओं ने तब के कांग्रेस के बड़े नेता, भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत के दामाद सीडी पांडे एवं उनके पुत्र केसी पंत को गले लगाया, किंतु इसके बाद नैनीताल ने अपना नेता चुनने का तरीका बदल लिया और किसी भी नेता को दुबारा संसद पहुंचने का मौका नहीं दिया। लेकिन यहां के मतदाताओं की मंशा को खासकर कोई कांग्रेसी नेता नहीं समझ पाया। यह जरूर है कि यह सीट कांग्रेस की परंपरागत मानी जाती है, लेकिन कांग्रेस के नेता हर चुनाव में यहां असमंजस के दौर से गुजरते रहे हैं, और जब भी उन्हें नैनीताल के अपनी पक्की सीट होने का गुमान हुआ, तभी उन्हें जोरदार पटखनी मिली है। देश की सत्ता संभाल चुकी भाजपा यहां से सिर्फ गिनी-चुनी बार ही बार जीत हासिल कर चुकी है, लेकिन हमेशा उसने बड़े मौकों पर बड़े कांग्रेसी दिग्गजो को हराकर सीट जीती है। वहीं भारतीय लोक दल व जनता दल के नेताओं के लिए भी यहां प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है।

केंद्र की राजनीति से हमेशा कदमताल करता रहा है नैनीताल

केन्द्र में हावी मुद्दों का असर नैनीताल सीट पर हमेशा पड़ता रहा है और नैनीताल हमेशा केंद्र के साथ कदमताल करता रहा है। चाहे वह आरक्षण मुद्दा हो अथवा अयोध्या कांड। लोकसभा क्षेत्र से 1951 व 1957 के चुनाव में कांग्रेस का कब्जा रहा। पार्टी के सीडी पांडे यहां से सांसद रहे। 1962 से 1971 तक के तीन चुनावों में जीती कांग्रेस ही, लेकिन सांसद केसी पंत रहे। आपातकाल के बाद के 1977 के चुनाव में कांग्रेस के बड़े चेहरे को भारतीय लोकदल के बिल्कुल अनाम व नये चेहरे भारतभूषण ने पराजित कर दिया। 1980 में नारायण दत्त तिवारी ने यही से जीतकर केंद्रीय राजनीति में प्रवेश किया और 1984 में उनके उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने पर कांग्रेस ने सत्येंद्र चंद्र गुड़िया को चुनावी समर में उतारा और वह विजयी रहे। और इस तरह कांग्रेस का फिर से यहां आधिपत्य स्थापित हो गया था, लेकिन 1989 के चुनाव में मंडल आयोग की हवा में जनता दल के अनाम चेहरे डा. महेंद्र पाल ने कांग्रेस से यह सीट छीन ली। आगे 1991 के चुनाव में अयोध्या कांड की हवा में देश में चल रही राम जन्म भूमि की हवा में यहां के मतदाता फिर बहे और भाजपा के फिर एक अनाम चेहरे बलराज पासी ने तब तक कांग्रेस के बड़े नेता हो चुके एनडी तिवारी को धूल चटा ली। आगे 1996 के चुनाव में कांग्रेस से खफा होकर कांग्रेस (तिवारी) बनाने के बाद नारायण दत्त तिवारी फिर यहां से विजयी हुए। लेकिन 1998 के उपचुनाव में भाजपा से पहली बार चुनाव लड़ रही इला पंत ने तब प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे और कांग्रेस में लौट चुके तिवारी को हराकर उनका सपना भी तोड़ दिया। अलबत्ता 1999 के चुनाव में फिर कांग्रेस के एनडी तिवारी विजयी हुए। 2002 में श्री तिवारी के उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनने पर हुए उपचुनाव में पूर्व जनता दल सांसद डा. महेंद्र पाल कांग्रेस के टिकट पर दूसरी बार जीते। 2004 व 2009 में कांग्रेस ने यह सीट केसी सिंह बाबा के रूप में अपने पास रखी, और एक बार फिर लगने लगा कि कांग्रेस फिर नैनीताल पर छा गयी है, किंतु 2014 के चुनाव में पहली बार बाहरी प्रत्याशी के रूप में नैनीताल से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़े भगत सिंह कोश्यारी ने बाबा की बादशाहत राज्य में सर्वाधिक, करीब 2.85 लाख वोटो के अंतर से हराकर हमेशा के लिए समाप्त कर दी। इस चुनाव के बाद बाबा ने 2019 के चुनाव में खड़ा होने से ही तौबा कर ली, और अपनी जगह डा. महेंद्र पाल का नाम आगे कर दिया था, किंतु आखिरी समय में अपने बड़े कद से दबाव बनाकर यहां आये पूर्व सीएम हरीश रावत के लिये नैनीताल फिर कुछ वैसी ही परिस्थितियां खड़ी करता नजर आ रहा है।

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नवीन समाचार, नैनीताल, 7 अप्रैल 2019। नैनीताल के विधायक संजीव आर्य ने रविवार को पार्टी के सांसद प्रत्याशी अजय भट्ट के चुनाव प्रचार की तल्लीताल में आयोजित सभा में कहा, अजय भट्ट पिछले विधानसभा चुनाव में ऐसे सेनापति साबित हुए जिन्होंने अपनी पार्टी को इतिहास रचते हुए न केवल 70 में से 57 सीटें दिलाईं, वरन सत्ता भी दिलाई। वहीं, दूसरी ओर ऐसे सेनापति हैं जो अपनी सेना को लेकर खुद भी दो सीटों से डूबे। उन्होंने कांग्रेस हरीश रावत पर राज्य का पलायन दूर करने की बात कहते स्वयं मैदानों की ओर पलायन करने का तंज भी कसा।

साथ ही केंद्र की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं राज्य सरकार की योजनाओं का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि पिछले 5 वर्षों में कितने लोगों को लाभ मिला है। दावा किया कि इस दौरान 15 करोड़ लोगों को शौचालय, 7 करोड़ लोगों को उज्जवला गैस कनेक्शन और 40 करोड़ लोगों को अटल आयुष्मान योजना के तहत 5 लाख रुपये तक निःशुल्क उपचार जैसी सुविधाओं का लाभ मिला है। उन्होंने एक वर्ष के भीतर नारायणनगर में पार्किंग बनाने तथा नगर की नैनी झील को बचाने के लिए कोसी नदी पर बांध बनाकर पेयजल व सिंचाई योजना बनाने की बात कही। वहीं अजय भट्ट ने विधायक संजीव आर्य की प्रशंशा करते हुए उन्हें हीरा और अपने पिता से अधिक विनम्र तथा जनता को उन्हें चुनने वाला ‘जौहरी’ बताया।

‘नवीन समाचार’ के प्रश्न पर भाजपा प्रत्याशी अजय भट्ट ने बतायीं अपनी प्राथमिकताएं

नैनीताल। नैनीताल-ऊधमसिंह नगर संसदीय सीट से भाजपा के प्रत्याशी अजय भट्ट ने रविवार को सरोवरनगरी नैनीताल में बताया कि वह संसद में क्या करेंगे। ‘नवीन समाचार’ द्वारा चुनाव जीतने पर उनकी प्राथमिकताएं पूछे जाने पर उन्होंने कहा, नैनी झील का संरक्षण बंद पड़े एचएमटी कारखाने का रिवाइवल, जमरानी बांध का निर्माण, पंचेश्वर बांध से गुरुत्व विधि से पानी पूरे तराई क्षेत्र को मिले-इसका प्रबंध करने, शहरों में लगने वाले जाम की समस्या को स्थानीय जनप्रतिनिधियों के माध्यम से दूर करना उनकी प्राथमिकता होगी। साथ ही उन्होंने कहा वे संसद में राष्ट्रवाद का झंडा पकड़ेंगे और अपने क्षेत्र की नाक कभी नीची नहीं होने देंगे।

पोछा लगाने वाली मां के बेटे ने पखारे बाल्मीकि समाज की माताओं के चरण, इसमें राजनीति कहां

रविवार को पहले नगर के तल्लीताल में बाल्मीकि समाज के बीच आयोजित सभा में भट्ट ने कहा, वे बाल्मीकि समाज के सरपंच भी रहे हैं। कहा भाजपा देश की आन, बान व शान तथा सुरक्षा के लिए देश की सेवा करना चाहती है। मुकाबला राष्ट्रवाद व आतंकवाद के बीच है। और यह ही भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र का मुख्य बिंदु होने वाला है। उन्होंने कहा, ‘एक पोछा लगाने वाली मां का बेटा (मोदी) दुनिया भर के सर्वेक्षणों में सबसे ईमानदार प्रधानमंत्री साबित हुए हैं। वहीं कांग्रेस को निशाने पर लेते हुए बोले ‘मोदी द्वारा बाल्मीकि बहनों के चरण धोने में भी कांग्रेस को राजनीति नजर आई।’ साथ ही जनता से आह्वान किया, राष्ट्र विरोधी तत्वों पर वोट की चोट करनी है।

पांच सभासदों व डीएसबी के पूर्व परिसर निदेशक सहित कई ने थामा भाजपा का दामन

रविवार को लोक सभा चुनाव के दौरान पहली बार जिला व मंडल मुख्यालय में भाजपा प्रत्याशी अजय भट्ट के आगमन पर चार सभासदों-सपना बिष्ट, मोहन नेगी, सागर आर्य व भगवत रावत के साथ ही छावनी परिषद की सभासद तुलसी बिष्ट ने भाजपा का दामन थाम लिया। इसके अलावा कूटा यानी कुमाऊं विवि शिक्षक संघ के पदाधिकारी एवं डीएसबी परिसर निदेशक प्रो. एसपीएस मेहता एवं डा. सुहेल जावेद, पूर्व में उक्रांद में रहे व्यापारी गिरीश कांडपाल, डीएसबी परिसर छात्र संघ की उपाध्यक्ष आकांक्षा तिवाड़ी, शोधार्थी सुनील, आशा पांडे सहित अनेक लोगों ने भी भाजपा का कमल के फूल युक्त पट्टा गले में डालकर पार्टी का दामन थाम लिया। वहीं हाल में हुए निकाय चुनाव में नगर पालिका अध्यक्ष पद के तीन गैर भाजपाई उम्मीदवार नीरज जोशी, खजान डंगवाल व डा. सरस्वती खेतवाल भी भाजपा के मंच पर नजर आये। इस मौके पर भाजपा प्रत्याशी अजय भट्ट ने प्रधानमंत्री मोदी को दुबारा प्रधानमंत्री बनाने के लिए खुद को वोट देने तथा राष्ट्रद्रोहियों पर वोट की चोट करने का आह्वान किया।

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नवीन समाचार, देहरादून, 5 अप्रैल 2019। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में शुक्रवार को इस चुनाव की संभवतया उत्तराखंड में इस चुनाव में अपनी आखिरी चुनावी रैली को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशद्रोह, भ्रष्टाचार, अगुस्टा वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर सौदे को लेकर कांग्रेस पार्टी पर जमकर हमला बोला। पीएम ने कहा, ‘कांग्रेस सरकार में करप्शन एक्सिलेटर पर रहता है और विकास वेंटिलेटर पर रहता है। जल, थल, नभ कहीं कोई ऐसा संसाधन नहीं है जो इनकी लूट से बच पाया हो।’ साथ ही उन्होंने अगस्ता वेस्टलेंड हेलीकॉप्टर मामले में मिशेल मामा व उसके खुलासों का जिक्र करते हुए ‘एपी’ यानी अहमद पटेल और ‘एफएएम’ यानी गांधी परिवार का जिक्र होने की बात भी कही।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा, ‘करप्शन और कांग्रेस का साथ अटूट है। ऐसी जुगलबंदी है जो अलग हो ही नहीं सकती। करप्शन को कांग्रेस चाहिए और कांग्रेस को करप्शन। कांग्रेस पार्टी में एक होड़ मची रहती है कि कौन ज्यादा बड़ा भ्रष्टाचार करे। 2जी, कॉमनवेल्थ, जल, थल, नभ कहीं कोई ऐसा संसाधन नहीं है, जो इनकी लूट से बच पाया हो।’ हेलिकॉप्टर घोटाले पर कांग्रेस पर निशाना साधते हुए पीएम मोदी ने कहा, ‘इन्होंने हमारे सैनिकों को भी नहीं छोड़ा। चाहे बोफोर्स तोप हो या फिर हेलिकॉप्टर, हथियार का ऐसा सौदा खोजना मुश्किल हो जाता है, जिसमें कांग्रेस द्वारा कमीशन की खबरें न आती हो। आपको याद होगा कि आपका ये चौकीदार हेलिकॉप्टर घोटाले के कुछ दलालों को दुबई से उठाकर ले आया था। इटली के मिशेल मामा और दूसरों दलालों से पूछताछ हुई है। इसके आधार पर दायर चार्जशीट के अनुसार हेलिकॉप्टर घोटालों के दलालों ने जिन्हें घूस दी है, उसमें एक शब्द एपी और दूसरा एफएएम है। इसी चार्जशीट में कहा गया है कि एपी मतलब अहमद पटेल और एफएएम का मतलब है फैमिली। अब आप मुझे बताइये कि अहमद पटेल किस फैमिली के निकट है।’
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘अगर आप कांग्रेस के ढकोसला पत्र को पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि कांग्रेस का हाथ किसके साथ है। कांग्रेस जम्मू और कश्मीर में आतंकियों, पत्थरबाजों, विभाजन करने वालों के खिलाफ जवानों को जो कानून मिला है, अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो वो सुरक्षा बलों को मिला ये सुरक्षा कवच हटा लेंगे। ये सभी कांग्रेस के गठबंधन के साथी है और इनके इन बयानों पर अगर कांग्रेस चुप है तो उसे भी इसकी सजा मिलनी चाहिए। मैं हैरान हूं कि अपने इन साथियों को बचाने के लिए ही कांग्रेस देशद्रोह के कानून को हटाना चाहती है क्या?’ कांग्रेस पार्टी के घोषणापत्र पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस पार्टी क्या कर रही है ? जान दांव पर लगाने वाले हमारे सैनिक झूठे मुकदमों में फंसे रहें, ये व्यवस्था करना चाहती है। उनका हौसला टूट जाये, ऐसा काम कर रही है। आप मुझे बताइये, क्या देशद्रोह का कानून हटना चाहिए ? देशद्रोहियों पर मुकदमें होने चाहिए या नहीं? देशद्रोहियों को सजा मिलनी चाहिए की नहीं, ये कांग्रेस पार्टी को हो क्या गया है? कांग्रेस के ढकोसलापत्र से टुकड़े-टुकड़े गैंग खुश है, पाकिस्तान में बैठे कुछ लोग भी खुश हैं। वहीं जम्मू-कश्मीर में इनके साथी, हर रोज कश्मीर को अलग करने की धमकी दे रहे हैं की वो कश्मीर का अलग प्रधानमंत्री चाहते हैं। क्या इस देश में दो प्रधानमंत्री होंगे क्या? जब तक देश का बच्चा-बच्चा चौकीदार बना रहेगा, तब तक भारत की एक इंच जमीन पर भी आंच नहीं आएगी।
उत्तराखंड पहुंचे पीएम ने जनता का अभिवादन करते हुए कहा, ‘आपकी शक्ति और सामर्थ्य से हमारी सरकार अग्रिम मोर्चों पर बेटियों की तैनाती का बड़ा फैसला ले पाई। मेरे साथ आप हमेशा चट्टान की तरह खड़े थे, इसलिए 40 वर्षों से लटका वन रैंक वन पेंशन का फैसला लागू कर पाए। बाबा केदार के आशीर्वाद से और आपकी सहभागिता से बीते पांच वर्ष में देश को विकास के पथ पर आगे बढ़ाने में आपका ये प्रधान सेवक सफल हो पाया। बड़े-बड़े लक्ष्य प्राप्त करने के पीछे, आपकी आकांक्षाएं ही मेरी प्रेरणा हैं।’
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मंत्री यशपाल ने ग्रामीणों को चुनाव बहिष्कार न करने को मनाया, नैनीताल में 7 को बड़ा धमाका करने की कोशिश में भाजपा

बृहस्पतिवार को खुर्पाताल में जनसभा को संबोधित करते काबीना मंत्री यशपाल आर्य।

नवीन समाचार, नैनीताल, 4 अप्रैल 2019। जिला-मंडल मुख्यालय के निकट गहलना-सिल्मोड़ियां गांवों के निवासी ‘रोड नहीं तो वोट नहीं’ के नारे पर आगे बढ़ रहे थे। इधर बृहस्पतिवार को खुर्पाताल में आयोजित काबीना मंत्री यशपाल आर्य की जनसभा में भी क्षेत्रीय लोग पहुंचे और मंत्री को ज्ञापन सोंपकर सड़क निर्माण की मांग रखी। इस पर यशपाल ने उन्हें चुनाव बहिस्कार न करने के लिए मना लिया। इस मौके पर अपने संबोधन में यशपाल ने क्षेत्रीय जनता से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ ही स्थानीय विधायक-उनके पुत्र संजीव आर्य के कार्यों के लिए भी वोट मांगे, साथ ही क्षेत्र में रुके कार्यों को चुनाव बाद जारी रखने की बात भी कही। इस दौरान क्षेत्र पंचायत सदस्य सोनी गोस्वामी व उनके पति हरीश गोस्वामी के साथ ही उनके 10 अन्य समर्थकों ने भी भाजपा का दामन थामा। इस मौके पर विधायक संजीव आर्य, भाजपा नगर अध्यक्ष मनोज जोशी, विवेक साह, आनंद बिष्ट, भानु पंत, शांति मेहरा व बिमला अधिकारी सहित स्थानीय जनता का विशाल जन समुदाय मौजूद रहा।

नैनीताल में भी भाजपा शनिवार को धमाके की तैयारी में

नैनीताल। जिला व मंडल मुख्यालय में इस चुनाव में भाजपा की पहली व आखिरी चुनावी जनसभा आगामी 7 अप्रैल को मल्लीताल रामलीला मैदान में होने जा रही है। पहले इसे 6 अप्रैल को होना था, किंतु इसी दिन हिंदू नव वर्ष चैत्र प्रतिपदा एवं आरएसएस का पथ संचलन होने के कारण इसे एक दिन आगे कर दिया गया है। इस दौरान भाजपा प्रत्याशी अजय सभा की उपस्थिति में बड़ा शक्ति प्रदर्शन करने एवं इस दौरान नगर के कुछ व्यापारी नेताओं एवं कुछ नगर पालिका सभासदों को पार्टी से जोड़कर प्रभाव छोड़ने की कोशिश में बताई जा रही है।

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नवीन समाचार, पिथौरागढ़, 1 अप्रैल 2019। देश के गृहमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के स्‍टार प्रचारक राजनाथ सिंह ने सोमवार को उत्‍तराखंड के पिथौरागढ़ में कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा। एयर स्‍ट्राइक की ओर इशारा करते हुए राजनाथ ने कहा, ‘बहादुर कभी लाशें नहीं गिना करते, लाशें गिद्ध गिनते हैं।’
पिथौरागढ़ के देव सिंह मैदान में अजय टम्टा के समर्थन में आयोजित चुनावी सभा में राजनाथ सिंह ने कहा, ‘एयर स्‍ट्राइक को लेकर कांग्रेस के लोगों को आपत्ति है। वे कह रहे हैं कि बताइए कितने लोगों को मारा। 1971 में श्रीमती इंदिरा गांधी ने पाकिस्‍तान को धूल चटाई थी तो उस समय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने संसद में खड़े होकर उनकी प्रशंसा की थी। यदि पाक को धूल चटाने के लिए इंदिरा जी का जयकारा हो सकता है तो पाक को सबक सिखाने के लिए मोदी जी का जयकारा क्‍यों नहीं हो सकता है ?’ 

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नवीन समाचार, रुद्रपुर, 28 मार्च 2019। उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव को धार देने के मद्देनजर भाजपा ने स्टार प्रचारकों के कार्यक्रमों को अंतिम रूप दे दिया है। इसकी शुरुआत सोमवार को केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के दौरे से होगी, जो चार जगह पार्टी प्रत्याशियों के समर्थन में सभाओं को संबोधित करेंगे। इसके बाद पांच अप्रैल तक अलग-अलग तिथियों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन के कार्यक्रम भी निर्धारित कर दिए गए हैं। जारी सूची के अनुुुसार सितारे चुनाव में भी पहाड़ पर कम, मैदान में ही अधिक उतरेंगे।

प्रदेश की पांचों लोकसभा सीटों को जीतने के लिए बीजेपी के यह राष्ट्रीय स्टार प्रचारक उतर सकते हैं मैदान में :

1 अप्रैल को राजनाथ सिंह की जनसभा पिथौरागढ़, गोपेश्वर, कोटद्वार व झबरेड़ा मे होगी
3 अप्रैल को अमित शाह की रैली उत्तरकाशी, श्रीनगर, अल्मोड़ा और हल्द्वानी मे होगी
5 अप्रैल को देहरादून के परेड ग्राउंड में होगी मोदी की जनसभा
5 अप्रैल को होगी उमा भारती की जनसभा
6 अप्रैल को मुख्तार अब्बास नकवी की जनसभा नैनीताल, सितारगंज, किच्छा, गदरपुर, और हल्द्वानी मे होगी
7-8 अप्रैल को शाहनवाज हुसैन की सहसपुर, धर्मपुर, और डोईवाला मे प्रस्तावित है जनसभा
8 अप्रैल को स्मृति ईरानी की जनसभा रामनगर, अल्मोड़ा, बागेश्वर, टिहरी, ऋषिकेश मे होगी

 प्रदेश भाजपा कार्यालय में पत्रकारों से बातचीत में पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष ज्योति प्रसाद गैरोला ने स्टार प्रचारकों के कार्यक्रम जारी किए। गैरोला के अनुसार एक अप्रैल को केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह पिथौरागढ़, गोपेश्वर, कोटद्वार व झबरेड़ा में जनसभाओं को संबोधित करेंगे। तीन अप्रैल को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का उत्तरकाशी में जनसभा को संबोधित करने का कार्यक्रम है। तीन अप्रैल को ही भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन सहसपुर, भगवानपुर व धर्मपुर में आयोजित सभाओं में भाग लेंगे।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यक्रमों की राज्य की पांचों लोकसभा सीटों से आ रही डिमांड के मद्देनजर पार्टी उनका चार अप्रैल का कार्यक्रम लेने में सफल हुई है। योगी आदित्यनाथ इस दिन काशीपुर और रुड़की में जनसभाओं को संबोधित करेंगे। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पांच अप्रैल को देहरादून के परेड ग्राउंड में जनसभा को संबोधित करेंगे। 

70 विस क्षेत्रों में 210 सभाएं

प्रदेश उपाध्यक्ष गैरोला ने बताया कि राज्य की सभी 70 विधानसभा क्षेत्रों में 210 जनसभाएं आयोजित की जाएंगी। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत अब तक 32 स्थानों पर चुनावी सभाओं को संबोधित कर चुके हैं।

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कहा-बेरोजगारी की बात करने वाले तब एक परिवार के बेरोजगार का रोजगार पक्का करने के मिशन में ही जुटे थे
*‘मिनी इंडिया’ में आ कर देवभूमि में बताया पांचवा ‘सैनिक धाम’, सिखों एवं सैनिकों को खास तौर पर किया संबोधित
नवीन जोशी @ नवीन समाचार, रुद्रपुर, 28 मार्च 2019। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बृहस्पतिवार को अपने 2019 के चुनावी अभियान की दूसरी जनसभा मेरठ के बाद रुद्रपुर में की। इस दौरान उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और नैनीताल-ऊधमसिंह नगर से कांग्रेस प्रत्याशी हरीश रावत पर नाम लिये बिना जमकर तीर चलाये। उन्होंने कहा, उनके कार्यकाल के पहले तीन वर्ष राज्य में कांग्रेसी मानसिकता ने उन्हें कार्य नहीं करने दिया। यहां जो तब मुख्यमंत्री थे, और अब प्रत्याशी भी हैं, उन्हें दिल्ली दरबार में हाजरी लगाने से फुरसत ही नहीं थी, और वे सिर्फ एक परिवार के बेरोजगार का रोजगार पक्का करने के मिशन में ही जुटे थे। उनको उत्तराखंड के हजारों बेरोजगारों से कोई सरोकार नहीं था। वहीं भाजपा प्रत्याशी अजय भट्ट का नाम लेकर मोदी ने उन्हें जिताने की अपील करते हुए कहा कि उन्हें मिलने वाला हर वोट सीधे मोदी को जायेगा।
वहीं अपने संबोधन की शुरुआत कुमाउनी-गढ़वाली में ‘उत्तराखंड के सबै भै बैणिन कें मेरू नमस्कार, देवभूमि के करोड़ो लोगों का आशीर्वाद मेरे साथ छ। मैं जब लै उत्तराखंड औनूं, मकैं भौत भल लागूं। मैं उत्तराखंडी जनता का आभार व्यक्त करनूं’। कहा वे ‘मिनी इंडिया’ में आये हैं, यह वीरों-बलिदानियों की भूमि में आये हैं। पीएम मोदी ने कहा, ‘उत्तराखंड भारत की सुंदर परिभाषा जैसा है। यहां गंगा है, यमुना है। भागीरथी से संगम को आतुर अलकनंदा है। पंचकेदार है और बद्री-केदार मिलाएं तो चार धाम बनते हैं। मैं इनमें पांचवां धाम जोड़ता हूं-‘सैनिक धाम’। यहां हर दूसरा घर एक सैनिक का है। सैनिकों की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
पीएम मोदी ने कहा, ‘मैं याद दिलाना चाहता हूं कि हमारे देश के वीर सैनिक को अपमानित किया जा रहा है। उन्हें नीचा दिखाने का प्रयास हो रहा है। देश के सेनानायक को अपशब्द कहे जा रहे हैं लेकिन इससे आपका यह चौकीदार डरने वाला नहीं है। मोदी ने कहा, आतंक के खिलाफ लड़ाई और देश की सुरक्षा पर मोदी चुप बैठने वाला नहीं है। डरने वाले संस्कार चौकीदार में नहीं हैं। हमारे विरोधी और देश के दुश्मन कान खोलकर सुन लें, हम डरने वालों में नहीं, डटने वालों में हैं। जब सैनिक का शीश काटकर दुश्मन ले गया तो इन लोगों का (कांग्रेस का) खून तक नहीं खौला। पीएम मोदी ने कहा कि भाजपा की राष्ट्रवाद के मुद्दे की मुहिम को जारी रखते हुए पीएम ने उत्तराखंड स्थित सैन्य संस्थानों और सेना मुख्यालयों को मां भारती की रक्षक भुजा बताया। लोगों से पूछा कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद वायु सेना अध्यक्ष को झूठा कहना, सेनानायक के लिए अपशब्द बोलना, आतंकियों को घर में घुसकर मारने पर सवाल उठाना, पाकिस्तान का हीरो बनने के चक्कर में देश को गाली देना क्या सही था? ये उत्तराखंड वीरों की भूमि है। इस भूमि पर देश के चौकीदार को आशीर्वाद देने के लिए इतने सारे चौकीदार एक साथ निकल पड़े हैं।’ इस दौरान उन्होंने उपस्थित विशाल जन समुदाय से चार बार ‘मैं भी चौकीदार’ के नारे भी लगवाये।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी उनसे सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के सबूत मांग रही है। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘कांग्रेस के शासनकाल में सेना हथियार, गोला-बारूद मांगती थी और जवानों की शहादत का बदला लेने के लिए अनुमति मांगती थी, वन रैंक वन पेंशन मांगती थी, पर मिलता कुछ नहीं था। उल्टा वे लोग सेनाध्यक्ष पर ही मुकदमा करना चाहते थे। अफवाह फैला दी कि सेना से तख्तापलट की तैयारी हो रही है। कांग्रेस सरकार ने सेना प्रमुख पर ही मुकदमा कर दिया।’ प्रधानमंत्री ने सिख मतदाताओं को अपने पाले में लाने के लिए करतारपुर कॉरिडोर का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस चाहती तो करतारपुर स्थित गुरुद्वारा भारत में होता। मोदी ने कहा कि, ऊधमसिंह नगर आया तो ऊधमसिंह को नमन करता हूं। गुरु नानकजी के पग यहां पड़े ऐसी मिट्टी को प्रणाम।
उन्होंने कहा कि घोटालों के कांग्रेस के कल्चर ने उत्तराखंड तबाह कर दिया। कांग्रेस ने यहां नौजवानों को पलायन के लिए मजबूर किया। झूठे और वादाखिलाफी करने वालों को उसे सजा मिलनी ही चाहिए। शुरू के तीन सालों के कार्यकाल में कांग्रेसी मानसिकता ने अड़ंगे डालने काम किया। पीएम मोदी ने कहा, ‘अटल जी की सरकार ने राफेल विमान खरीदने की शुरुआत की थी लेकिन कांग्रेस 10 सालों तक इसे रोके रही, क्योंकि मलाई नहीं मिल रही थी। हमारी सरकार ने वायुसेना की जरूरत को देखते हुए इस काम को आगे बढ़ाया। अगले कुछ दिनों में राफेल वायुसेना का हिस्सा होगा। बोफोर्स के साथ क्या हुआ था, यह आप सब जानते हैं। लेकिन आज दशकों बाद सेना को देश में ही बनी अत्याधुनिक तोपें मिल रही हैं और बुलेट प्रूफ जैकेटें मिल रही हैं जो सेना ने कांग्रेस सरकार के समय मांगी थी, लेकिन उसे नहीं मिली।’
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘चार पीढ़ी पहले गरीबी हटाने का जो वादा कांग्रेस ने किया था, वही आज भी दोहरा रहे हैं। ये कांग्रेस के झूठ का, सोच का और उसकी असफलता का सबसे बड़ा सबूत है। 70 साल तक गरीबों से गद्दारी करने वाली कांग्रेस कभी गरीबों के बारे में नहीं सोच सकती। इसलिए आज देश का गरीब भी कह रहा है कि गरीबी हटाने के लिए कांग्रेस को हटाना जरूरी है। कांग्रेस ही गरीबी का कारण है।’
वाजपेयीजी ने जो सपना देखा था, वो साकार होता दिख रहा है। इस क्षेत्र के विकास के लिए अलग-अलग प्रांत के लोगों ने जो सहयोग किया है, वो भारत के लिए गर्व की बात है। हम विकास को नई ऊंचाई पर ले जा सकते हैं।
पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि, पुराने साथियों ने उत्तराखंड के हर उतार चढ़ाव देखे। हर सरकार के कामकाज देखे। 2014 से पहले केंद्र सरकार 2017 से पहले उत्तराखंड की सरकार के कामकाज भी देखे। इससे आप भी भलिभांति परिचित हैं। सड़कों के अभाव में बागवानी और खेती दयनीय थी। इसी कारण उत्तराखंड की कड़वी सच्चाई पलायन को कोई नकार नहीं सकता। याद करिए उत्तराखंड की पहचान घोटालों से क्या हो गई थी। कभी राहत, आबकारी, खनन घोटाला। कांग्रेस के कल्चर ने उत्तराखंड को तबाह कर दिया था। पीएम ने कहा कि एक माह पहले आना था। वे नहीं आ पाए लेकिन उन्होंने पहले वादा किया था कि वे रुद्रपुर आएंगे। मोदी जुबान का पक्का है।

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चुनाव प्रचार के दौरान हरीश रावत बेतालघाट में

-कांग्रेस के चुनाव अभियान में 40 स्टार प्रचारक आएंगे
-सोनिया, राहुल, प्रियंका, अम्बिका व गुलाम नबी सहित स्थानीय नेताओं को भी मिली स्टार प्रचारकों में जगह
नवीन समाचार, देहरादून, 25 मार्च, 2019। प्रदेश कांग्रेस की ओर से मुख्य निर्वाचन अधिकारी के माध्यम से चुनाव आयोग को प्रदेश के लिए 40 स्टार प्रचारकों की सूची सौंप दी है। प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह द्वारा भेजी गई सूची में सोनिया, राहुल और प्रियंका सहित कई केंद्रीय और प्रदेश के नेताओं के नाम शामिल हैं। खास बात यह भी है कि गत दिवस भाजपा ने भी उत्तराखंड में 40 स्टार प्रचारकों की सूची ही चुनाव आयोग को सौंपी थी।
प्रदेश उपाध्यक्ष सूर्यकान्त धस्माना ने बताया कि कांग्रेस के स्टार प्रचारकों में पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी, राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव प्रियंका गांधी शामिल हैं। इसके अलावा अम्बिका सोनी, गुलाम नबी आजाद, नवजोत सिंह सिद्धू, अहमद पटेल, आनन्द शर्मा, अशोक गहलोत, कैप्टन अमरिन्दर सिंह, वीरभद्र सिंह, सुशील कुमार शिंदे, कमल नाथ, कुमारी शैलजा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, भंवर जितेन्द्र सिंह, सचिन पायलट, राज बब्बर, रणजीत सिंह सुरजेवाला, अनुग्रह नारायण सिंह, राजेश धर्माणी, मनीष तिवारी व सलमान खुर्शीद भी सूची में हैं। इसके अलावा प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह, पूर्व सीएम हरीश रावत, इन्दिरा हृदयेश, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय, करण महरा, गोविन्द सिंह कुंजवाल व काजी निजामुद्दीन को भी स्टार प्रचारकों में जगह दी गयी है। कांग्रेस की ओर से प्रकाश जोशी, केसी सिंह बाबा, दिनेश अग्रवाल, हीरा सिंह बिष्ट, तिलक राज बेहड़, नवप्रभात, ले. जन. (रि.) टीपीएस रावत, रणजीत रावत, सुरेन्द्र सिंह नेगी एवं शूरवीर सिंह सजवाण जैसे नेताओं को भी स्टार प्रचारकों में शामिल किया गया है। उन्होंने बताया कि शीघ्र ही राष्ट्रीय नेताओं के चुनावी कार्यक्रम उत्तराखंड की पांचों लोकसभा सीटों के लिए निर्धारित किए जाएंगे।

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नवीन समाचार नैनीताल 23 मार्च, 2019। आखिर शनिवार की देर शाम कांग्रेस पार्टी ने उत्तराखंड के पांचों लोकसभा सीटों के लिए अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। पार्टी महासचिव मुकुल वासनिक द्वारा की गई घोषणा के अनुसार सर्वाधिक उत्सुकता का केंद्र रही नैनीताल सीट से पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत टिकट प्राप्त करने में सफल रहे हैं, वहीं हरिद्वार से अंबरीश कुमार को टिकट दिया गया है। वहीं पौड़ी से पूर्व मुख्यमंत्री है भुवन चंद्र खंडूड़ी के पुत्र मनीष खंडूरी अल्मोड़ा से राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा एवं टिहरी से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह को टिकट दिया गया है।

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ड़ा सवाल : भाजपा प्रत्याशी अजय भट्ट को रानीखेत से हारा बताकर कमजोर आंक रही कांग्रेस मुख्यमंत्री रहते दो सीटों से हारे हरीश रावत के चुनाव मैदान में उतरने पर कैसे करेगी मुकाबला
नवीन समाचार, नैनीताल, 23 मार्च 2019। पहले कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने को लेकर हरीश रावत ने जो किया, वह ही वे अब नैनीताल सीट से टिकट हासिल करने के लिए करते नजर आ रहे हैं। यानी ‘दबाव की रणनीति’। विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार राज्य में कांग्रेस के 11 में से आठ विधायक-टिकट न मिलने पर विधायकी से इस्तीफा देने की घोषणा कर चुके हरीश धामी, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल, रावत के साले करन माहरा के साथ ही हरिद्वार जिले से आने वाले तीन विधायक ममता राकेश, काजी निजामुद्दीन व फुरकान अहमद व ऊधमसिंह नगर के जसपुर से विधायक आदेश चौहान सहित एक अन्य विधायक ने दिल्ली में डेरा डाल दिया है। खास बात यह भी है कि हरिद्वार जिले के कम से कम तीन कांग्रेस विधायक भी शामिल हैं जो हरीश रावत को अपने क्षेत्र की लोक सभा सीट से जिताने के बजाय नैनीताल से लड़ने के लिए दबाव बनाने में शामिल हैं।
उल्लेखनीय है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को प्रदेश की 70 सीटों में से जो केवल 11 सीटें मिली हैं उनमें से सर्वाधिक तीन सीटें हरिद्वार जिले से मिली हैं, जबकि नैनीताल जिले से एकमात्र हल्द्वानी की सीट डा. इंदिरा हृदयेश के पक्ष में, देहरादून की एकमात्र चकराता की सीट प्रीतम सिंह के रूप में मिली हैं। इनमें से पहले टिहरी सीट से स्वयं लड़ने के बजाय अपने पुत्र अभिषेक सिंह के लिये इच्छुक बताये जा रहे प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह को कांग्रेस हाईकमान ने स्वयं लड़ने के लिए मना लिया है, जबकि नेता प्रतिपक्ष डा. इंदिरा हृदयेश ने हरीश रावत को नैनीताल से न लड़ाने के लिए मोर्चा लिया हुआ है। यहां तक कि शनिवार को उन्होंने अपना और दो बार के सांसद डा. महेंद्र पाल सहित कुल चार लोगों के लिए नामांकन पत्र भी लिवा लिया है और वे डा. पाल को टिकट दिलाने पर अड़ी हुई हैं। प्रीतम के साथ ही पार्टी के प्रदेश प्रभारी अनुग्रह नारायण सिंह भी डा. पाल के पक्ष में बताये जा रहे हैं। ऐसे में रावत का हरिद्वार में पार्टी की मजबूती के बजाय नैनीताल आना और कुछ नहीं केवल पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के भीम सेना नेता चंद्रशेखर उर्फ रावण से मिलने के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती के उग्र तेवरों और हरिद्वार में बसपा का मजबूत होने के कारण हो रहा है। वह भी तब, जबकि उनके नैनीताल आने पर उनकी पार्टी को हरिद्वार के लिए प्रत्याशी ढूंढने पर भी नहीं मिल रहा है, और भाजपा प्रत्याशी डा. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की जीत लड़ने से पहले ही सुनिश्चित लग रही है। यह भी तथ्य है कि हरीश रावत मुख्यमंत्री रहते हुए 2017 के विस चुनावों में ऊधमसिंह नगर की किच्छा सीट से हारे हुए हैं। आगे देखने वाली बात होगी कि भाजपा प्रत्याशी अजय भट्ट को रानीखेत से हारा बताते हुए कमजोर आंक रहे कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहते दोनों सीटों से हारे हुए हरीश रावत के नैनीताल से चुनाव मैदान में आने पर रावत के पक्ष में क्या बोलने की स्थिति में रहते हैं।

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-राज्य बनने के बाद से लगातार जिम्मेदारियों पर रहे एवं लक्ष्यों को पूरा करते रहे हैं भट्ट
-सत्ता व संगठन में समन्वय बनाना व सबको साथ लेकर चलना भी सबसे बड़ी खूबी

28 जून को अजय भट्ट के हाथ थामे डा. इंदिरा हृदयेश.

नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल। तमाम कयासों के विपरीत भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट को सत्तारूढ़ भाजपा के द्वारा प्रदेश की सबसे प्रतिष्ठित व आजादी के बाद से ही वीवीआईपी सीट के रूप में गिनी जाने वाली नैनीताल संसदीय सीट से टिकट मिल गया है। उन्हें टिकट मिलने व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की नैनीताल सीट के लिए पहली पसंद बनने के पीछे उनकी कर्तव्यपरायणता एवं लक्ष्यों को प्राप्त कर लेने की उनकी जिजीविषा बताई जा रही है, जिसके दम पर ही वे उत्तराखंड बनने के बाद से भाजपा के ऐसे इकलौते युवा नेता के तौर पर गिने जाते हैं जो अन्य वरिष्ठ नेताओं के बीच भी लगातार किसी न किसी बड़ी जिम्मेदारी के पद पर रहे हैं।
उत्तराखंड राज्य बनने से पूर्व ही 1996 से रानीखेत से भाजपा विधायक रहे अजय भट्ट राज्य बनने के बाद प्रदेश की पहली अंतरिम सरकार में स्वास्थ्य मंत्री के पद पर रहे। तब कहा जाता है कि मसूरी के सरकारी अस्पताल में गद्दों व लिहाफों को गंदा देखकर उन्होंने अपने सामने जलवा दिया था। राज्य बनने के बाद 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता गंवानी पड़ी लेकिन भट्ट रानीखेत से दूसरी बार जीते और इस दौरान मंत्री विधानमंडल दल के पद पर रहे। 2012 के विधानसभा चुनाव में भी वह अपनी पार्टी की हार के बावजूद रानीखेत से तीसरी बार जीते और नेता प्रतिपक्ष रहे। इस बीच ही 31 दिसंबर 2015 को उन्हें भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया तो 2017 के चुनावों में उनके नेतृत्व में भाजपा ने अभूतपूर्व तरीके से रिकार्ड 57 सीटें जीतकर इतिहास ही रच दिया। इस चुनाव में भट्ट स्वयं अपनी परंपरागत रानीखेत सीट से मामूली अंतर से चुनाव हार भी गये, लेकिन 57 सीटों की ऐतिहासिक जीत के साथ यह सकारात्मक संदेश भी गया कि उन्होंने अपनी सीट की परवाह किये बिना अपनी टीम का नेतृत्व करते हुए जीत दिलाई। इसका ही परिणाम था कि उन्हें पार्टी अध्यक्ष के पद पर भी इनाम स्वरूप बरकरार रखा गया और अब लोक सभा चुनाव के टिकट का दूसरा इनाम भी मिला है। सत्ता व संगठन दोनों में समन्वय बनाना और सबको साथ लेकर लक्ष्यो की प्राप्ति के लिए चलना भट्ट की खूबी बताई जाती है। साथ ही विपक्षी कांग्रेस सहित सभी दलों में उनके प्रशंषकों की कमी नहीं है।

अजय भट्ट की प्रोफाइल:

जन्म तिथि: एक मई 1961,
माता-पिता: स्वर्गीय तुलसी देवी एवं स्वर्गीय कमलापति भट्ट
जन्म स्थान: ग्राम धनखल, द्वाराहाट, तहसील रानीखेत, जिला अल्मोड़ा।
शिक्षा: एलएलबी, अधिवक्ता के रूप में भी कार्यरत रहे। उत्तराखंड राज्य आंदोलन एवं राम मंदिर आंदोलन के दौरान 18 अक्तूबर 1990 व 26 अक्तूबर 1990 को एवं 8 दिसंबर 1990 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के रानीखेत आगमन पर विरोध में गिरफ्तार हुए।
पत्नी: अजय भट्ट की पत्नी पुष्पा भट्ट, उत्तराखंड उच्च न्यायालय में डिप्टी एडवोकेट जनरल के पद पर कार्यरत
पुत्रियां: मेघा भट्ट व स्नेहा भट्ट, दोनों बीटेक एवं एमबीए, पुत्र दिग्विजय एलएलबी में अध्ययनरत। एक पुत्री सुनीति भी।

कुमाऊं की दोनों सीटों पर भाजपा से अजय

नैनीताल। यह इत्तफाक ही है कि सत्तारूढ़ भाजपा ने प्रदेश के कुमाऊं मंडल की दोनों सीटों से ‘अजय’ नाम के प्रत्याशियों को टिकट दिया है। नैनीताल-ऊधमसिंह नगर सीट से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट एवं अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ सुरक्षित सीट से केंद्रीय कपड़ा राज्य मंत्री अजय टम्टा को टिकट दिया गया है। आगे देखने वाली बात होगी कि दोनों अजय अपने नाम के अनुरूप इस चुनाव में ‘जय’ यानी जीत प्राप्त करके ‘अजेय’ रहते हैं या नहीं।

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वीन समाचार, नैनीताल, 21 मार्च 2019। आखिर भाजपा ने की पांचों सहित देश के 184 प्रत्याशियों की सूची बृहस्पतिवार शाम घोषित कर दी है। सूची के अनुसार उत्तराखंड में अल्मोड़ा से अजय टम्टा, नैनीताल-ऊधम सिंह नगर सीट से अजय भट्ट, हरिद्वार सीट से डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, पौड़ी-गढ़वाल से तीरथ सिंह रावत व टिहरी से माला राज्य लक्ष्मी शाह प्रत्याशी होगे।

बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के लिए 184 उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी है। बीजेपी की केंद्रीय चुनाव समिति के सचिव जगत प्रकाश नड्डा ने इसका ऐलान किया। पीएम मोदी, राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी अपनी पिछली सीटों से ही लड़ेंगे। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह गांधीनगर से चुनाव लड़ेंगे, जहां से अभी लाल कृष्ण आडवाणी सांसद हैं। नड्डा ने बताया कि बिहार से बीजेपी के सभी 17 उम्मीदवारों के नाम तय हो चुके हैं, लेकिन उनका ऐलान नहीं किया।
केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी अमेठी से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को चुनौती देंगी। वह पिछली बार भी यहां से लड़ी थीं, लेकिन हार गई थीं। गाजियाबाद और नोएडा से मौजूदा सांसद क्रमश: जनरल वीके सिंह और डॉक्टर महेश शर्मा चुनाव लड़ेंगे। अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री रही हेमा मालिनी इस बार भी मथुरा से चुनाव लड़ेंगी। मुजफ्फरनगर से संजीव बाल्यान बीजेपी उम्मीदवार होंगे, जिनके सामने महागठबंधन से आरएलडी चीफ अजीत सिंह मैदान में हैं।

इस बार चुनाव 11 अप्रैल से 19 मई के बीच सात चरणों में होंगे और वोटों की गिनती 23 मई को होगी। उत्तर प्रदेश, बंगाल और बिहार में सभी सात चरणों में वोटिंग होगी। पहले चरण में 11 अप्रैल को यूपी समेत 20 राज्यों की 91 सीटों पर वोटिंग होंगी, जिसके लिए नामांकन की आखिरी तारीख 25 मार्च है। 18 अप्रैल को दूसरे, 23 अप्रैल को तीसरे, 29 अप्रैल को चौथे, 6 मई को पांचवें, 12 मई को छठे और 19 मई को 7वें यानी आखिरी चरण के लिए वोटिंग होनी है।

यूपी में इन सीटों के उम्मीदवार घोषित
सहारनपुर- राघव लखनपाल
मुजफ्फरनगर- संजीव बाल्यान
बिजनौर- कंवर भारतेंदु सिंह
मुरादाबाद- कंवर सर्वेश कुमार
संभल- परमेश्वर लाल सैनी
अमरोहा- कंवर सिंह तंवर
मेरठ- राजेंद्र अग्रवाल
बागपत- सत्यपाल सिंह
गाजियाबाद- वीके सिंह
गौतमबुद्धनगर- डॉक्टर महेश शर्माॉ
अलीगढ़- सतीश गौतम
मथुरा- हेमा मालिनी
आगरा- एसपी सिंह बघेल
फतेहपुर सिकरी- राजकुमार चहर
एटा- राजवीर सिंह
बदायूं- संघमित्रा मौर्य
अनुला- धर्मेंद्र कुमार
बरेली- संतोष गंगवार
शाहजहांपुर- अरुण सागर
खीरी- अजय कुमार मिश्र
सीतापुर- राजेश वर्मा
हरदोई- जय प्रकाश रावत
मिसरिख- अशोक रावत
उन्नाव- साक्षी महाराज
मोहनलाल गंज- कौशल किशोर
लखनऊ- राजनाथ सिंह
अमेठी- स्मृति इरानी

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 नवीन समाचार, नैनीताल, 20 मार्च 2019। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने पार्टी प्रत्याशियों के नामों की घोषणा अभी नहीं की है, लेकिन नामांकन पत्र दाखिल करने की तिथियां तय कर दी हैं। उत्तराखंड की टिहरी और पौड़ी गढ़वाल लोकसभा सीटों पर 22 मार्च को जबकि हरिद्वार, नैनीताल और अल्मोड़ा सीट पर नामांकन 25 को होगा। नामांकन के दौरान जनसभाएं भी होंगी।

माना जा रहा है कि पार्टी ने आंतरिक तौर पर तय प्रत्याशियों को नामांकन भरने की तैयारी को कह दिया है। चर्चा है कि गढ़वाल लोकसभा सीट से भाजपा के राष्ट्रीय सचिव तीरथ सिंह रावत को उम्मीदवार बनाया है। तीरथ ने सोमवार को नामांकन पत्र प्राप्त लिया था। टिहरी सीट से पार्टी टिकट पर सांसद माला राज्य लक्ष्मी के चुनाव लड़ने की संभावनाएं हैं। उन्होंने भी नामांकनपत्र प्राप्त कर लिया है। पार्टी के प्रमुख मीडिया प्रभारी डॉ. भसीन के मुताबिक, 25 मार्च को हरिद्वार, नैनीताल, अल्मोड़ा सीट पर पार्टी की ओर से नामांकन दाखिल होंगे। हरिद्वार सीट पर सांसद डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक और अल्मोड़ा सीट पर सांसद अजय टम्टा को दोबारा प्रत्याशी बनाया जा सकता है। डॉ. निशंक भी नामांकन पत्र प्राप्त कर चुके हैं। नैनीताल सीट से प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अजय भट्ट के चुनाव लड़ने की संभावनाएं हैं। सूत्रों के मुताबिक, केंद्रीय नेतृत्व ने भट्ट को इस संबंध में संदेश दे दिया है। भट्ट ने भी इस सीट पर नामांकन पत्र ले लिया है। भाजपा प्रत्याशियों के नामांकन के दौरान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अजय भट्ट मौजूद रहेंगे। उनके अलावा राष्ट्रीय सह महामंत्री संगठन शिव प्रकाश, प्रदेश चुनाव प्रभारी थावर चंद गहलोत, प्रदेश प्रभारी श्याम जाजू समेत कई वरिष्ठ नेता भी उपस्थित रहेंगे। नामांकन के बाद प्रत्याशियों के समर्थन में जनसभाएं भी होंगी।

यह होगा इस बार उत्तराखंड सहित देश में भाजपा की जीत का प्रमुख आधार, दूसरों से ‘20 कदम आगे’ होगी भाजपा

नवीन समाचार, नैनीताल। भाजपा हमेशा रणनीति के स्तर पर विरोधियों से कहीं आगे चलती है। वह संगठन की मजबूती में विश्वास रखते हुए केवल नाम के संगठन की जगह संगठन के सदस्यों को केवल चुनाव के दौरान ही नहीं वरन पूरे पांच वर्ष सक्रिय रखती है। इसके अलावा उसकी मजबूती बूथ स्तर पर भी रहती है। भाजपा ने ही सबसे पहले ‘एक बूथ-पांच यूथ’ और फिर ‘एक बूथ-दस यूथ’ जैसे नारे दिये और इधर स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ‘मेरा बूथ-सबसे मजबूत’ का आह्वान कर चुके हैं। उनकी देखा-देखी कांग्रेस भी बूथ को मजबूत करने की राह पर बढ़ी है। लेकिन इससे भी आगे भाजपा गुजरात के पिछले विधानसभा चुनाव से भी पहले बूथ से 20 कदम आगे चलकर ‘पन्ना प्रमुख’ नियुक्त करने का दांव चल चुकी है और पन्ना प्रमुखों ने भाजपा की जीत में बड़ी भूमिका निभाई है। अब भाजपा गुजरात के इस फॉर्मूले को उत्तराखंड सहित देश के अन्य राज्यों में भी आजमाने जा रही है।
यहां हम बूथ और पन्ना प्रमुखों को तथ्यात्मक तरीके से समझाने की कोशिश करेंगे। मानिये कि एक क्षेत्र में 100 बूथ हैं। इन 100 बूथों में अब तक भाजपा ने अपने 10-10 यूथ यानी कुल 1000 युवा खड़े किये हैं। ये युवा पार्टी को अब तक एक वोट न मिलने वाले बूथों पर भी कम से कम अपने व अपने परिवार के वोट तो जरूर दिलाएंगे जबकि कई प्रत्याशियों को इनमें से कुछ बूथों पर एक भी वोट नहीं मिलेगा। इस प्रकार भाजपा को जो अतिरिक्त वोट मिलेंगे वह उसकी जीत में बड़ी भूमिका निभाएंगे। लेकिन अब भाजपा पन्ना प्रमुखों के भरोसे चुनाव जीतने की रणनीति पर चल पड़ी है। इस रणनीति के तहत हर बूथ के औसतन करीब 20 पन्नों के लिए अलग-अलग प्रमुखों को जिम्मेदारी दी गयी है। साथ ही पार्टी के जितने भी कार्यकर्ता हैं, उन्हें अपना बूथ मजबूत बनाने की जिम्मेदारी दी गयी है। इस प्रकार पार्टी के जिस बूथ पर अब तक एक भी समर्थक न होने की स्थिति में कम से कम 20 लोग होंगे। उन्हें खुद के साथ ही उस पन्ने में शामिल लोगों के संपर्क में रहने व चुनाव के दिन उनका बूथ तक आना सुनिश्चित करने के साथ ही भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में वोट करने के लिए प्रेरित करने की जिम्मेदारी मिली है। इस तरह भाजपा दूसरे दलों से 20 कदम आगे होगी।
वहीं इन बातों को उत्तराखंड व मोटे तौर पर देश के संदर्भ में समझें तो उत्तराखंड मंे मौजूद 11 हजार 235 बूथों पर भाजपा करीब 20 गुना यानी करीब ढाई लाख पन्ना प्रमुख तैनात कर रही है। बताया जा रहा है कि इनमें से करीब 70 फीसद पन्ना प्रमुख तैनात भी किये जा चुके हैं। इसी तरह देश में देश में पिछली बार से एक लाख अधिक करीब 10 लाख पोलिंग बूथ हैं। इनमें भाजपा करीब 2 करोड़ पन्ना प्रमुखों को चुनाव जिताने की सीधी जिम्मेदारी से जोड़ने जा रही है।

प्रियंका के दांव से हरिद्वार से रणछोड़ होंगे हरीश रावत

नवीन समाचार, हरिद्वार, 20 मार्च 2019। लगता है प्रियंका गांधी का राजनीति में पदार्पण दांव ही उल्टा बैठा है। दलित नेता ‘रावण’ से हुई प्रियंका की मुलाकात के बाद यूपी के ‘साथी’ (सायकिल व हाथी) ने ‘हाथ’ बुरी तरह से झटक दिया है, और उत्तराखंड में भी पांचों सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर दिये हैं। इसकी मार बसपा के अच्छे प्रभाव वाली हरिद्वार सीट पर हरीश रावत पर पड़ना तय हो गया है। ऐसे में ‘लौट के हरीश रावत नैनीताल आये’ के लिए मजबूर हो गए हैं। उन्हें नैनीताल से टिकट न मिलने पर उनके प्रिय हरीश धामी ने विधायकी से इस्तीफा देने की घोषणा कर दी है। ऐसे में नैनीताल से भाजपा प्रत्याशी घोषित करने पर भाजपा को भी ठिठकना पड़ गया है।

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-भाजपा में मोदी, शाह के साथ ही इन स्टार प्रचारकों की फौज तो कंाग्रेस घर के जुगनुओं के ही भरोसे

नैनीताल में मोदी को माता नंदा-सुनंदा के चित्र युक्त प्रतीक चिन्ह भेंट करते बची सिंह रावत, बलराज पासी व अन्य स्थानीय नेता।

नवीन समाचार, नैनीताल, 19 मार्च 2019। लोक सभा चुनाव के लिए भले भाजपा-कांग्रेस ने अपने प्रत्याशियों की घोषणा न की हो, परंतु अब जबकि नामांकन के लिए वास्तविक तौर पर केवल तीन दिन-20, 23 व 25 अप्रैल की तिथियां ही बची हैं। ऐसे में भाजपा-कांग्रेस दोनों ने अपने स्टार प्रचारकों के नामों पर भी अंतिम मंथन शुरू कर दिया है। पिछले दिनों रुद्रपुर के कार्यक्रम के बावजूद मोदी के यहां न पहुंच पाने और योगी आदित्यनाथ के हल्द्वानी में कार्यक्रम के बावजूद न पहुंच पाने की स्थितियेां के बाद अब भाजपा की कोशिश इसकी भरपाई की भी है। माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी आगामी 28 मार्च को हल्द्वानी या रुद्रपुर में से कहीं आ सकते हैं। वहीं इसके अलावा मोदी का एक कार्यक्रम देहरादून या हरिद्वार में से किसी एक स्थान पर लगाने की भी कोशिश की जा रही है।
इसके अलावा यदि मोदी हल्द्वानी की जगह रुद्रपुर आते हैं तो ऐसी स्थिति में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रैली हल्द्वानी में और मोदी के हल्द्वानी आने पर अल्मोड़ा में शाह की रैली हो सकती है। इसके अलावा भाजपा के स्टार प्रचारकों में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण, पूर्व सेना प्रमुख और केंद्रीय मंत्री वीके सिंह, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा, हेमा मालिनी और दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी भी शामिल हैं। वहीं देहरादून में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की रैली से पहले ही राज्य में चुनावी शंखनाद कर चुकी कांग्रेस के पास अब कोई बड़ा राष्ट्रीय स्तर का नेता नहीं बचा है। सोनिया गांधी का स्वास्थ्य कारणों से तो प्रियंका गांधी का यूपी में व्यस्त होने की वजह से उत्तराखंड आने का कोई कार्यक्रम बनने की संभावना फिल्हाल बिलकुल क्षींण है। ऐसे में कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह, नेता प्रतिपक्ष इंदिरा ह्रदयेश और पार्टी के राज्य प्रभारी अनुग्रह नारायण के भरोसे ही रह सकती है।

बड़ा सवाल: ‘एक तिहाई खंडूड़ी’ पाकर कांग्रेस क्या जीत पाएगी ‘पौड़ी’

नवीन समाचार, देहरादून, 16 मार्च 2019। उत्तराखंड की पौड़ी सीट से लोकसभा सांसद और वरिष्ठ भाजपा नेता भुवन चंद्र खंडूरी के पुत्र मनीष खंडूरी शनिवार को देहरादून में राहुल गांधी की जनसभा के दौरान कांग्रेस में शामिल हो गये। मनीष के कांग्रेस में शामिल होने के बाद पिछले कई दिनों से उनके पार्टी में शामिल होने की अटकलों पर विराम लग गया है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंच पर उनका पार्टी में स्वागत किया और उनके आने पर खुशी जाहिर की।
लेकिन हम यहां ‘एक तिहाई खंडूड़ी’ की बात कर रहे हैं तो क्यों ? थोड़ा सा भी विषय को गंभीरता से समझेंगे तो बात साफ हो जाएगी कि खंडूड़ी परिवार के अब तीन सदस्य राजनीति में हैं। पहले उत्तराखंड के पूर्व सीएम व भाजपा नेता भुवन चंद्र खंडूड़ी, दूसरी उनकी पुत्री भाजपा विधायक ऋतु खंडूड़ी और तीसरे आज नये-नये राजनेता बने उनके पुत्र मनीश खंडूड़ी। गणितीय दृष्टिकोण से इन तीनों में से हर कोई राजनीतिक खंड़ूड़ी परिवार का ‘एक तिहाई’ हिस्सा ही हैं, और इनमें से आज एक तिहाई हिस्सा राजनीतिक तौर पर पैदा होते ही कांग्रेस में शामिल हो गया है। बहुत संभावना है कि कांग्रेस पार्टी उन्हें मीडियाई संभावनाओं के अनुसार पौड़ी से लोक सभा का टिकट भी दे सकती है। ऐसे में यह संभावना भी बन सकती है कि पौड़ी से पिता-पुत्र यानी सीनियर और जूनियर खंडूड़ी आमने-सामने हो सकते हैं। हालांकि ऐसा होने की संभावना लगभग नगण्य है। सीनियर खंडूड़ी पहले ही अपनी बढ़ती उम्र का हवाला देकर भाजपा से चुनाव न लड़ने की बात कह चुके हैं। अब यह वे ही बेहतर जानते होंगे कि ऐसा वे अपने पुत्र मनीश को अपनी जगह पौड़ी से भाजपा का टिकट देने की दबाव बनाने के लिए कह रहे थे, अथवा बेटे की राजनीतिक पसंद के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी।
यदि मनीश का कांग्रेस में शामिल होना उनकी अपनी इच्छा और पसंद का विषय है, और इससे सीनियर खंडूड़ी के चुनाव न लड़ने की घोषणा का कोई संबंध नहीं है तो कहना गलत न होगा कि मनीश कांग्रेस में ‘एक-तिहाई खंडूड़ी’ के तौर पर ही गये हैं। जहां वे नितांत अकेले होंगे। जैसा कि उनके कांग्रेस की सदस्यता लेते हुए भी दिखाई दिया। राहुल गांधी को कहना पड़ा-‘‘आप इनके पिता को तो आप अच्छी तरह से जानते ही हैं।’’ यानी भले मनीश अपने पिता के चुनावों का ‘वॉर रूम’ संभालते रहे हों लेकिन उनकी अपनी अब तक कोई राजनीतिक पहचान नहीं है। यह भी बहुत संभव नहीं लगता कि बिना भाजपा से साफ तौर पर इस्तीफा देकर अलग हुए पिता खंडूड़ी सीधे तौर पर उन्हें टिकट मिलने पर भी उनकी कोई मदद करेंगे, और यही स्थिति भाजपा विधायक के तौर पर उनकी बहन ऋतु के साथ भी होगी। दूसरी ओर कांग्रेसी व खासकर पार्टी के बड़े, लोकसभा टिकट के दावेदार स्तर के नेता भी उनके आने से अपनी राजनीतिक हत्या जैसी स्थिति में उनकी कोई मदद करेंगे। ऐसे में मनीश कांग्रेस में एक तिहाई खंडूड़ी के तौर पर पहुंचकर क्या जीत हासिल कर पाएंगे, इसकी संभावना नगण्य नहीं तो कम ही है।

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भुवन चंद्र खंडूड़ी

नवीन समाचार, देहरादून, 13 मार्च 2019। उत्तराखंड के 2012 के विधानसभा चुनावों में तत्कालीन सीएम भुवन चंद्र खंडूड़ी का स्वयं गढ़ा गया नारा ‘खंडूड़ी है जरूरी’ हालांकि जनता ने तब ही खारिज कर दिया था, लेकिन खंडूड़ी इसके बाद भी खुद को ‘जरूरी’ बताने की भरसक कोशिश करते रहे हैं। 2012 के चुनावों में पार्टी को मिली ठीक-ठाक सीटों के बावजूद खुद को मिली शर्मनाक हार से पार्टी को सत्ता से बाहर होने का दर्द दिलाने के बाद भी खंडूड़ी ने 2014 के लोकसभा चुनावों में खुद को जरूरी बताकर लोक सभा का टिकट हासिल किया और ‘मोदी लहर’ पर सवार हो चुनाव जीते। इस बीच बढ़ती उम्र का अहसास हुआ तो 2017 के विधानसभा में अपनी किसी भी तरह का राजनीतिक अनुभव न रखने वाली अपनी पुत्री ऋतु खंडूड़ी के लिए ‘उत्तराखंड भाजपा में पहला परिवारवाद पर आधारित टिकट प्राप्त किया, जिसके लिये भाजपा अब तक कांग्रेस को कोसती थी।
लेकिन इधर 2019 के लोक सभा चुनावों से पहले भी खंडूड़ी अपनी परिवारवाद की गाड़ी में इस तरह ‘दूसरा गियर’ लगाएंगे, इसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। अब तक खंडूड़ी के चुनाव लड़ने से आनाकानी करने को राजनीति के जानकार उनकी बढ़ती उम्र व स्वास्थ्य कारणों से जोड़कर देख रहे थे किंतु जिस तरह से अब उनके पुत्र मनीश खंडूड़ी का नाम 16 मार्च को देहरादून में राहुल गांधी के आगमन पर कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के लिए आ रहा है, और स्वयं खंडूड़ी सहित कोई इससे इंकार भी नहीं कर रहा है, उसके पीछे की कहानी को आसानी से समझा जा सकता है। संभव हो यह मनीश को पौड़ी से उनकी जगह भाजपा से टिकट दिलाने के लिए दबाव बनाने की रणनीति हो। बड़ी सरल सी बात है, खंडूड़ी अपने सामने ही पुत्री के साथ पुत्र का भी राजनीतिक भविष्य व्यवस्थित कर लेना चाहते हैं। और यह खंडूड़ी का परिवारवाद को बढ़ाने के लिए दूसरा कदम होगा।
उल्लेखनीय है कि खंडूड़ी उत्तराखंड के वे ही राजनेता हैं जो 2007 में तब अचानक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बन गये थे, जब विधानसभा में मिली जीत का श्रेय ‘जननेता’ कहे जा रहे भगत सिंह कोश्यारी को दिया जा रहा था। लेकिन तभी, जैसा बाद में 2012 में हरीश रावत की मेहनत से कांग्रेस की सरकार आने पर विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बना दिया गया, अचानक खंडूड़ी मुख्यमंत्री बन गये थे। लेकिन उनका वह कार्यकाल कैसा रहा, यह बताने के लिए केवल एक शब्द ‘सारंगी’ कह देना ही पर्याप्त होगा। विपक्षी नहीं, उनकी पार्टी के लोग, यहां तक कि उनके अपने विधायक भी आज भी उन बुरी यादों को याद करना नहीं चाहते, जब खंडूड़ी अपने विधायकों को पहचानने से ही इंकार कर देते थे। विकास कार्यों की स्थिति की तो बात ही करनी बेमानी होगी। एक भी कार्य किसी को याद हो तो बताये। इन्हीं स्थितियों में भाजपा हाईकमान को उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के अपने फैसले पर दो वर्ष बाद ही पुर्नविचार करना पड़ा और उन्हें 27 मार्च 2009 को पद से हटना पड़ा। डा. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ को मुख्यमंत्री बनाया गया, किंतु इस बीच खंडूड़ी क्या कर रहे थे, इस बात का पता इस बात से ही लग जाता है कि कुंभ मेले के निर्माण कार्यों में कैग द्वारा महज ‘औचित्य पर सवाल’ उठाने भर से खंडूड़ी 11 सितंबर 2011 से एक ही कार्यकाल में फिर से मुख्यमंत्री पद हासिल करने में सफल हो गये। इस बीच और इसके बाद खंडूड़ी की छवि ‘उत्तराखंड के सबसे इमानदार राजनीतिज्ञ’ की बन अथवा बना दी गयी। यह अलग बात है कि उनके ईमानदार कार्यों की भी किसी को जानकारी नहीं हैं। उनके बनाये लोकपाल आज तक भी नहीं बने हैं। उनका बनाया ‘ट्रांसफर एक्ट’ आज तक भी लागू नहीं हुआ है।
इससे पहले भी खंडूड़ी का विवादों से ‘चोली-दामन’ का साथ रहा है। ‘उत्तराखंड आंदोलन’ में करीब से शामिल रहे और नेतृत्वकर्ता लोग उन पर उत्तराखंड आंदोलन के सबसे बड़े खलनायक और खासकर उत्तराखंड आंदोलन के दौरान मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा कांड में अपनी जान और अपनी आबरू गंवाने वाली आंदोलनकारी मां-बहन-बेटियों के सबसे बड़े गुनाहगार होने का आरोप लगाते रहे हैं। खास बात यह भी है खंडूड़ी इन आरोपों से कभी भी इंकार नहीं कर पाये हैं। यह तथ्य हैं कि 1994 में जब उत्तराखंड आंदोलनकारियों ने दो अक्टूबर को दिल्ली के लाल किले के पीछे वाले मैदान में विशाल रैली का कार्यक्रम तय किया था, तब दिल्ली पुलिस के डीजीपी को दिल्ली कूच कर रहे उत्तराखंड आंदोलनकारियों के हथियारों के साथ दिल्ली कूच करने की जानकारी मिली थी। इसके पीछे खंडूड़ी का वह बयान था, जिसमें उन्होंने कहा था कि उत्तराखंड से हजारों की संख्या में वर्दीधारी पूर्व सैनिक हथियारों के साथ दिल्ली कूच करेंगे। साफ सी बात है देश की राजधानी के डीजीपी को जब ऐसा पता चलेगा तो वह क्या करेंगे। सख्ती बरतेंगे। और यही उन्होंने किया। एक-एक उत्तराखंडी की उनके पास हथियार होने को लेकर तलाशी ली गई, लेकिन हथियार किसी के पास नहीं थे। यानी खंडूड़ी का बयान पूरी तरह से झूठा और पुलिस को वह सब करने के लिए उकसाने वाला था जो उसने किया। खंडूड़ी के बयान के कारण ही आंदोलनकारियों को यूपी पुलिस के दमन का सामना करना पड़ा। साफ है कि इस सबके लिये खंडूड़ी दोषी थे, बावजूद उनकी खुद को राजनीति नहीं आने की बात कहने के बावजूद दिखाई गयी राजनीतिक चाल-चतुराई ही है कि वह हमेशा उत्तराखंड की राजनीति के लिए ‘जरूरी’ बने रहे। पर आगे भी बने रहेंगे, इसमें संशय है।

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नवीन समाचार, नैनीताल, 15 मार्च 2019। कई बार लोक सभा चुनाव लड़ने से इंकार कर नैनीताल के लोक सभा सांसद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट का नाम टिकट के लिए आगे कर सकते हैं। उल्लेखनीय है कि अजय कोश्यारी के काफी प्रिय माने जाते हैं। उनके प्रदेश अध्यक्ष बनने में भी कोश्यारी की प्रमुख भूमिका मानी जाती है। हालांकि खटीमा के विधायक पुष्कर कोश्यारी भी उनके करीब हैं। किंतु कोश्यारी सांसद पद के लिए युवा के साथ ही उपयुक्त प्रत्याशी के रूप में अजय भट्ट को देखते हैं। वहीं कोश्यारी के चुनाव न लड़ने की स्थिति में यूपी के दौर से, सात बार के विधायक पूर्व काबीना मंत्री बंशीधर भगत भी सबसे वरिष्ठ के नाते टिकट की दौड़ में हैं। जबकि युवा के रूप में प्रदेश महामंत्री, खटीमा से आने वाले राजू भंडारी के प्रशंसक उन्हें भी टिकट मिलने की उम्मीद जता रहे हैं। बावजूद भरोसेमंद सूत्रों के अनुसार नैनीताल से भाजपा कोश्यारी को ही टिकट दे सकती है। क्योंकि पार्टी कोई भी रिस्क लेने की भूल नहीं करना चाह रही है।

यह है कोश्यारी के चुनाव लड़ने से इंकार की वजह
नैनीताल। पूर्व में 75 से अधिक उम्र के पार्टी नेताओं को सक्रिय राजनीति में न रखने की पक्षधर भाजपा ने हालांकि पिछले दिनों लोकसभा चुनाव के लिए टिकट लड़ने के मामले में यह शर्त हटा दी है, लेकिन बताया गया है कि इसके साथ ही एक शर्त यह भी जोड़ दी है कि 75 से अधिक उम्र के सांसदों को केंद्र में मंत्री नहीं बनाया जाएगा। इस शर्त के कारण ही कोश्यारी चुनाव लड़ने से इंकार कर रहे हैं। कोश्यारी पिछली बार भी केंद्र में मंत्री पद की उम्मीद कर रहे थे। उनकी जगह अल्मोड़ा से युवा सांसद अजय टम्टा को मंत्रीपद मिलने से भी वे खिन्न हुए। इसके साथ ही कोश्यारी को पूरा कार्यकाल उत्तराखंड का मुख्यमंत्री न रह पाने का भी मलाल है। 2007 में उनके नेतृत्व में भाजपा चुनाव जीती लेकिन वे सीएम नहीं बन पाये। इसलिये भी वे लोक सभा का चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं हैं और फिर से मुख्यमंत्री पद उनकी प्राथमिकता में है।

 

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नवीन समाचार, टिहरी, 13 मार्च 2019। ‘नवीन समाचार’ ने कल कांग्रेस द्वारा उत्तराखंड की कुछ सीटों पर भाजपाइयों पर डोरे डालने का इशारा किया था। इसी कड़ी में एक दिन बाद ही दो घटनाएं हुई हैं। इस खबर के बाद मार्च 2017 में कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए नेताओं-मंत्रियों पर शक की सुई आ टिकने के बाद काबीना मंत्री सतपाल महाराज को बुधवार को दिल्ली में बकायदा पत्रकार वार्ता करनी पड़ी। जिसमें उन्होंने कांग्रेस में जाने की हर तरह की संभावनाओं को पूरी तरह से खारिज किया और कांग्रेस पार्टी की ऐसा दुष्प्रचार करने के लिए जमकर मजम्मत की।
वहीं इसके बाद कांग्रेस ने एक नया दांव खेला है। अब कांग्रेस के लिए ‘खंड़ूड़ी’ यानी पूर्व सीएम व सांसद नहीं बल्कि उनके पुत्र मनीश खंडूड़ी जरूरी हो गये हैं। कांग्रेस नेता कह रहे हैं कि मनीश करीब एक सप्ताह से उनके संपर्क में हैं और 16 मार्च को राहुल गांधी की देहरादून में जनसभा के दोरान कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। उन्हें टिहरी से टिकट देने की बात भी कही जा रही है। इसके अलावा कांग्रेस में भाजपा से टिकट चाह रहे कर्नल अजय कोठियाल को शामिल कराकर टिकट देने की भी चर्चाएं हैं, वहीं टिहरी से कांग्रेस के दावेदार गणेश गोदियाल व राजेंद्र भंडारी ने ऐसा होने पर नाराजगी भी जता दी है। कहा है कि पार्टी के किसी भी पुराने कार्यकर्ता को टिकट मिले पर किसी बाहरी को टिकट मिला तो वे चुप नहीं बैठेंगे। इधर भाजपा भी मनीश के कांग्रेस में जाने के प्रति बेफिक्र नजर आ रही है। कारण मनीश का कोई राजनीतिक अनुभव नहीं है। उनकी बहन भाजपा से विधायक व पिता सांसद हैं। पिता को इस बार भाजपा से टिकट न भी मिला तो भी वे बेटे की कांग्रेस में किसी तरह की मदद करेंगे, इसकी संभावना नगण्य है। भाजपा अध्यक्ष अजय भट्ट ने कहा है कि मनीश भाजपा के प्राथमिक सदस्य भी नहीं हैं। भाजपा का मानना है कि मनीश को कांग्रेस से टिकट मिलता भी है तो इससे कांग्रेस के रही-सही स्थिति भी खराब हो जाएगी।

राज्य की इन दो सीटों पर प्रत्याशी बदल सकती है भाजपा

सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी राज्य की दो- पौड़ी और टिहरी लोकसभा सीटों पर मौजूदा सांसदों की जगह नए चेहरों को मौका दे सकती है। इन अटकलों के पीछे वजह यह है कि खंडूरी ने केंद्रीय नेतृत्व को स्वास्थ्य कारणों के चलते चुनाव लड़ने के प्रति अनिच्छा का संकेत दिया है। ऐसी स्थिति में पौड़ी से टिकट पाने वाले दावेदारों में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के पुत्र शौर्य डोवाल, राज्य के कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज या उनकी पत्नी अमृता रावत और कुछ महीने पहले पार्टी में शामिल हुए नेहरू पर्वतारोहण संस्थान के पूर्व निदेशक कर्नल अजय कोठियाल में से किसी को टिकट मिल सकता है। वहीं टिहरी सीट पर राजरानी के प्रति आम जनचर्चा क्षेत्र में कम रहने की है।

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नवीन समाचार, देहरादून, 12 मार्च 2019। लोक सभा की दुंदुभि बजने के साथ ही प्रदेश की मुख्य पार्टियों-भाजपा व कांग्रेस में मतदान से पहले ही एक-दूसरे को मनोवैज्ञानिक तौर पर शह-मात देने की होड़ भी शुरू हो गयी है। इस कड़ी में जहां सत्तारूढ़ भाजपा में ‘सिटिंग-गेटिंग’ का फॉर्मूला लागू करने के दबाव के साथ ही कमोबेश हर सीट पर बराबर क्षमता के नेताओं की लंबी फेहरिस्त मौजूद है, वहीं मार्च 2017 में हुए विघटन के बाद से विधानसभा के स्तर के नेताओं की कमी से भी जूझती नजर आई विपक्षी कांग्रेस में खासकर पर्वतीय सीटों पर जिताऊ दावेदारों की कमी दिखाई दे रही है। ऐसे में विश्वस्त सूत्रों के अनुसार कांग्रेस भाजपा से टिकट न मिलने वाले दावेदारों पर भी डोरे डाल सकती है। यहां तक कि सीने में सांसदी’ का ख्वाब दबाये बैठे त्रिवेंद्र रावत सरकार में मंत्री पद भोग रहे कुछ पूर्व कांग्रेसी नेताओं के भी वापस कांग्रेस में शामिल होने के शिगूफे छोड़े जा रहे हैं। वहीं अपने टूटे कुनबे के सदस्यों को फिर से बिना शर्त पार्टी में शामिल करने के लिए भी पार्टी लालायित नजर आ रही है। इसी कड़ी में घनशाली विधानसभा सीट से बागी के रूप में चुनाव लड़े कांग्रेस नेता धनी लाल शाह को मंगलवार 12 मार्च को देहरादून में प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने पार्टी की सदस्यता दिला दी है। वहीं आगे सूत्रों पर यकीन करें तो कांग्रेस पार्टी पौड़ी सीट पर जिताऊ उम्मीदवार न होने से सर्वाधिक चिंतित है। यहां तक कहा जा रहा है कि कांग्रेस की नजर पौड़ी सीट के लिए भाजपा के एक दावेदार पर है। साथ ही कांग्रेस आगामी 16 मार्च को पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के उत्तराखंड आगमन पर भी ऐसा कोई ‘धमाका’ करने के मूड में बताई जा रही है। ऐसे में भाजपा अपने प्रत्याशियों की घोषणा 25 मार्च की नामांकन की आखिरी तिथि के करीब तक भी लटका सकती है। इसके अलावा भाजपा की कोशिश इस दौरान खासकर युवाओं व सैनिक मतदाताओं को पार्टी से जोड़कर उन्हें सदस्यता दिलाने की बताई जा रही है। हालांकि इस बार दलबदल कम होने की संभावना बताई गयी है और इसमें भी एक दल विशेष में शामिल होने वालों की संख्या अधिक रहने की राजनीतिक पंडित संभावना जता रहे हैं।

यह है चुनाव का पूरा कार्यक्रम
चुनाव अधिसूचना जारी होने की तिथि: 18 मार्च 2019
नामांकन की आखिरी तिथि: 25 मार्च 2019
नामांकन पत्रों की जांच: 26 मार्च 2019
नाम वापसी की आखिरी तिथि: 28 मार्च 2019
मतदान की तिथि: 11 अप्रैल 2019
एवं मतगणना-चुनाव परिणाम: 23 मई 2019।

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नवीन समाचार, नई दिल्ली, 10 मार्च 2019। भारत निर्वाचन आयोग ने रविवार को पहले से तय माने जा रहे कार्यक्रम के तहत देश में आम चुनाव की घोषणा कर दी है। घोषणा के अनुसार देश की कुल 543 लोकसभा की सीटों पर 7 चरणों में चुनाव होंगे। चुनाव 11, 18, 23, 29 अप्रैल एवं 6, 12 और 19 मई होंगे, तथा सभी चरणों की मतगणना एक साथ 23 मई को होगी। खास बात यह भी है कि उत्तराखंड सहित देश के 22 राज्यों और केंद्र शामित प्रदेशों में एक चरण में ही मतदान होगा। इसके साथ ही आयोग ने आंध्र प्रदेश, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश एवं सिक्किम में विधानसभा चुनावों का भी ऐलान कर दिया है। यहां लोकसभा की के साथ विधानसभा के लिए भी मतदान कराया जाएगा।
खास बात यह भी है कि पहले चरण में उत्तराखंड की सभी पांच सीटों सहित 20 राज्यों की जिन 91 सीटों पर मतदान होगा, उन्हें मतगणना के लिए सर्वाधिक करीब सवा माह का इंतजार करना पड़ेगा। वहीं दूसरे चरण में 13 राज्यों की 97 सीटों पर मतदान होगा। तीसरे चरण में 14 राज्यों की 115 सीटों पर, चौथे दौर में 9 राज्यों की 71 सीटों, 5वें में 7 राज्यों की 51 सीटों, छठे राउंड में 7 राज्यों की 59 सीटों और 7वें एवं आखिरी दौर में 8 राज्यों की 59 सीटों पर मतदान होगा। साथ ही 12 राज्यों की 34 विधानसभा सीटों के उपचुनाव के लिए भी लोकसभा चुनाव के साथ ही मतदान होगा।

इसलिये भी खास होंगे यह चुनाव

मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने बताया कि इस बार के चुनाव में सभी ईवीएम वीवीपैट से जुड़ी होंगी और सभी मतदान केंद्रों पर सीसीटीवी कैमरे भी लगाये जाएंगे।
यह भी बताया जा रहा है कि यह चुनाव खर्च के मामले में अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में हुए खर्च के रिकॉर्ड को तोड़ सकता है। यदि ऐसा होता है तो यह सर्वाधिक चुनाव खर्च के मामले में विश्व रिकार्ड हो सकता है। बताया गया है कि 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में 650 करोड़ डॉलर यानी करीब 46,211 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, जबकि भारत में 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में 35,547 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। इस बार जहां लोक सभा के साथ ही चार राज्यों के विधानसभा चुनाव और 12 राज्यों की 34 विधानसभा सीटों के उपचुनाव भी होने हैं, ऐसे में इस बार का चुनाव अमेरिकी चुनावों का रिकॉर्ड तोड़ सकता है।

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नवीन समाचार, देहरादून, 5 मार्च 2019। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बाद अब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का उत्तराखंड दौरा तय हो गया है। राहुल आगामी 16 मार्च को देहरादून के दौरे पर आने वाले हैं। लोकसभा चुनावों की तैयारी के सिलसिले में उनका यह दौरा बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों पीएम नरेंद्र मोदी उत्तराखंड में जिम कार्बेट पार्क और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह देहरादून का दौरा कर चुके हैं।
उत्तराखंड कांग्रेस के केंद्रीय प्रभारी अनुग्रह नारायण सिंह के हवाले से कांग्रेस के मुख्य प्रचार समन्वयक धीरेंद्र प्रताप ने राहुल गांधी के दौरे के बारे में जानकारी दी है। उन्हें इस बारे में ने बताया। उनका दावा है कि राहुल गांधी के दौरे से राज्य की सभी 5 सीटों पर पार्टी के जीतने की संभावनाओं को मजबूती मिलेगी। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस ने लोक सभा चुनाव के मद्देनगर अपनी तैयारियों को अगले चरण में ले जाने के उद्देश्य से सभी लोक सभाओं के लिए पर्यवेक्षकों की नियुक्ति कर दी है, और अब पर्यवेक्षक रायशुमारी शुरू कर रहे हैं।

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नवीन समाचार, देहरादून, 4 मार्च 2019। केन्द्रीय रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने भरे मंच पर जब वीर नारियों के पैर छुए तो हर कोई देखता रह गया। वहीं उन्होंने ऐसी बातें कही जिसने सबका दिल छू लिया। सम्मान पाकर वीर नारियां भी भावुक हो उठीं। उन्होंने कहा कि वीर भूमि उत्तराखंड से उनका पहले से ही जुड़ाव रहा है। अब बतौर रक्षामंत्री सर्वाधिक सैन्य अनुपात वाले राज्य से उनका विशेष लगाव है। पहले उत्तराखंड उनके लिए मायके जैसा था, अब ससुराल जैसा लगता है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने सैनिकों, पूर्व सैनिकों और उनके परिवारों के लिए कई कल्याणकारी कदम उठाए हैं, जिसका लाखों परिवारों को लाभ मिला है।रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण सोमवार को कैंट क्षेत्र के विधायक गणेश जोशी द्वारा हाथी बड़कला स्थित सर्वे ऑफ इंडिया के प्रेक्षागृह में आयोजित शौर्य सम्मान समारोह में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रही थीं। रक्षा मंत्री ने प्रत्येक वीर नारी को शॉल ओढ़ाने के बाद उनके पैर छुए। उन्होंने वीर नारियों से उनकी दिक्कतों के बारे में भी पूछा। 

उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्पष्ट नीति है कि सैनिक और पूर्व सैनिकों के सम्मान को किसी तरह की ठेस नहीं लगनी चाहिए, पीएम ने ओआरओपी और नेशनल वॉर मेमोरियल बनाने के वायदे को पूरा करके दिखा दिया है। सम्मान समारोह में वीर नारी कमला देवी, वीरा देवी, शकुंतला देवी, रानी थापा, उर्मिला देवी, इंदिरा देवी, उर्मिला देवी, आनंद देवी, हेम कुमारी, शांति बोरा, चित्रा देवी, अनीता, माला देवी, विजय लक्ष्मी के अलावा शहीद भूपेन्द्र कंडारी के पिता गजेन्द्र कंडारी को भी सम्मानित किया गया। इस दोोरान छावनी परिषद क्लेमेनटाउन में देश की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने 15.60 करोड की पेयजल योजनाओं का शिलान्यास किया।  कहा-पुलवामा हमले के बाद वायुसेना की कार्रवाई से पूरे विश्व में संदेश गया है कि हम आतंकवाद को समाप्त करने के लिए दुश्मन की सीमा में घुसेंगे भी, मारेेंगे भी और सुरक्षित वापस भी आ जाएंगे।

देहरादून पहुंचीं रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) को लेकर पूर्व सैनिक सरकार की नीयत पर शक ना करें, यदि उनका कोई सवाल है तो सरकार आंख से आंख मिलाकर उसका जवाब देने को तैयार है। उन्होंने बताया कि 35 हजार करोड़ रुपये अब तक पूर्व सैनिकों के खातों में जा चुका है। हर वर्ष आठ हजार करोड़ पेंशन में दिए जा रहे हैं। चार किश्तों में एरियर का भुगतान कर दिया गया है। शॉर्ट सर्विस कमीशन में महिलाओं को भी पुरुषों की तरह नियमित किया जाएगा। डिसेबिलिटी कॉम्पोनेंट ऑफ  पेंशन के 83 प्रकरणों में से 63 में सरकार ने अपील न करने का फैसला लिया है। शस्त्र बलों को सिविल से ऊपर का दर्जा देने का काम किया गया है।

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गजराज बिष्ट।

नवीन समाचार, नैनीताल, 28 फरवरी 2019। भाजपा के प्रदेश महामंत्री गजराज बिष्ट ने पूर्व मुख्यमंत्री व नैनीताल-ऊधमसिंह नगर संसदीय क्षेत्र के सांसद भगत सिंह कोश्यारी पर उल्लेखनीय बयान दिया है। बृहस्पतिवार को मुख्यालय में मौजूद गजराज ने ‘नवीन समाचार’ से बात करते हुए उन्होंने पूर्व में कोश्यारी को अपना राजनीतिक गुरु बताने से इंकार करने की बात दोहराई। साथ ही कहा कि कोश्यारी पूरे प्रदेश के साथ उनके भी नेता हैं। कहा कि कोश्यारी ने पिछले पांच वर्षों में केवल अपनी लोकसभा क्षेत्र में ही नहीं, पूरे प्रदेश एवं पड़ोसी देश नेपाल के साथ संबंधों की बेहतरी के लिये कार्य किया है। मोदी जी के नेतृत्व एवं कोश्यारी की अगुवाई में पूरी लोकसभा में लोक सभा में सड़कों का जाल बिछ रहा है। काठगोदाम-टनकपुर से रेल सेवाओं का विस्तार हुआ है एवं जमरानी बांध भी बनने की स्थिति में आ रहा है। दावा किया कि वे पूरे पांच वर्ष सक्रिय रहे हैं। साथ ही गजराज ने उत्तराखंड को सैनिक बहुल राज्य बताते हुए देश भर के सैनिकों को ‘ओआरओपी’ यानी ‘वन रेंक-वन पेंशन’ का लाभ मिलने के लिए भी कोश्यारी को श्रेय दिया। कहा कि कोश्यारी की अध्यक्षता वाली समिति की वजह से ही ओआरओपी संभव हो पाया।
वहीं नैनीताल लोक सभा से चुनाव हेतु अपनी दावेदारी पर उन्होंने कहा कि अन्य दावेदारों की तरह वे भी यहां दावेदार हैं। पार्टी के सभी कार्यकर्ताओं को दावेदारी का अधिकार है। कहा कि केंद्रीय नेतृत्व जीतने वाले दावेदार को ही पार्टी का उम्मीदवार बनायेगा, और जिसे भी टिकट मिलेगा, दावेदारों सहित सभी लोग उनके पीछे लगकर मोदी को देश की बागडोर दुबारा सोंपने के लिए कार्य करेंगे।
‘एयर स्ट्राइक’ से पूरी दुनिया ने देखी ‘नये व बदलते भारत’ की तस्वीर
‘एयर स्ट्राइक’ पर भाजपा नेता गजराज बिष्ट ने कहा कि पाकिस्तान पर ‘एयर स्ट्राइक’ के साथ पूरी दुनिया ने ‘नये व बदलते भारत’ की तस्वीर देख ली है। इसके बाद भारत पूरी दुनिया में ताकतवर व विकसित देश के रूप में प्रस्तुत हुआ है। देश की सेना व खास तौर पर एयर स्ट्राइक करने वाली टीम को बधाई देते हुए उन्होंने विश्वास जताया कि पाकिस्तान के कब्जे में फंसे पायलट विंग कमांडर अभिनंदन जल्द सकुशल भारत लौटेंगे।

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-कहा इस घटना को राजनीतिक लाभ-हानि से देखना गलत, पर अब भाजपा का 400 सीटें पार करना निश्चित
-नैनीताल लोकसभा के प्रबुद्ध नागरिक संगोष्ठी में कहा अंत्योदय के सिद्धांत के तहत कार्य किये हैं भाजपा सरकार ने

नवीन समाचार, नैनीताल, 27 फरवरी 2019। भाजपा के राष्ट्रीय सह महामंत्री संगठन ने कहा कि भारत दूसरे देश में घुसकर बदला लेने के लिये सर्जिकल स्ट्राइक और एयर सर्जिकल स्ट्राइक करने के मामले में अमेरिका और इजराइल की श्रेणी में आ गया है। मुख्यालय में पत्रकार वार्ता में उन्होंने इसके साथ ही कहा कि यह राजनीतिक लाभ-हानि का विषय नहीं है। वहीं बाद में नगर के प्रबुद्ध वर्ग के लिए आयोजित प्रबुद्ध नागरिक संगोष्ठी में बोलते हुए उन्होंने अपने वक्तव्य की शुरुआत करते हुए कहा कि भाजपा ने करीब दो माह पूर्व ‘अब की बार भाजपा सरकार’ नारा दिया था, जो कल की घटना के बाद होने ही वाला है। कहा आज भाजपा के कार्यकर्ता ही नहीं देश की सवा सौ करोड़ जनता भी मोदी के नेतृत्व में ही देश का भविष्य देखती है।
सरोवरनगरी के नैनीताल क्लब स्थित शैले हॉल में आयोजित प्रबुद्ध नागरिक संगोष्ठी में शिव प्रकाश ने कहा कि 16 मई 2014 को भाजपा के बहुमत हासिल करने के बाद ही दो दिन बाद 18 मई को विदेशी समाचार पत्र-द गार्जियन ने प्रकाशित किया था कि पहली बार भारत में ब्रिटिश से मुक्त भारत की सरकार बनने जा रही है। भाजपा की सरकार पंडित दीन दयाल उपाध्याय के एकात्ममानववाद यानी अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के उत्थान को विकास का पैमाना बताने के सिद्धांत पर चली है। इसीलिए सरकार की हर योजना का अंतिम लक्ष्य गरीब व्यक्ति का जीवन स्तर उठाना रहा। इसके साथ ही सरकार ने ढांचागत सुविधाओं के विकास, खासकर सड़क, पानी व हवा में आवागमन की सुविधाओं के विस्तार पर फोकस किया है। इस मौके पर स्थानीय विधायक संजीव आर्य ने नैनीताल नगर की सबसे बड़ी पार्किंग की समस्या पर जल्द ही केंद्र सरकार से सैद्धांतिक व विधिवत स्वीकृति मिलने की जानकारी दी, तथा नगर की पेयजल और नैनी झील क ेजल संरक्षण के लिये कोसी नदी में बांध बनाकर पानी लाने, मुख्यालय के लिए बेल-बसानी के रास्ते वैकल्पिक मार्ग और रानीबाग से रोपवे बनाने की योजनाओं पर आगे कार्य करने का इरादा जताया। इस मौके पर प्रदेश महामंत्री गजराज बिष्ट, जिलाध्यक्ष प्रदीप बिष्ट, केएमवीएन के अध्यक्ष केदार जोशी, हल्द्वानी के मेयर जोगेंद्र बिष्ट, भवाली के नगर पालिकाध्यक्ष संजय वर्मा, कार्यक्रम संयोजक अरविंद पडियार, नगर अध्यक्ष मनोज जोशी के साथ ही डीएसबी परिसर के पूर्व निदेशक प्रो. एसपीएस मेहता, इतिहासकार व पर्यावरणविद् डा. अजय रावत, यूजीसी एचआरडीसी के निदेशक प्रो. बीएल साह, पूर्व सभासद डीएन भट्ट, प्रो. हरीश चंदोला, प्रो.एमएस मावड़ी, प्रो.एसएस बर्गली, होटल एसोसिएशन से वेद साह, दिग्विजय बिष्ट, गीता साह, विवेक साह, आनंद बिष्ट, निखिल बिष्ट सहित बड़ी संख्या में उच्च न्यायालय के अधिवक्ता व कुविवि के प्रोफेसर सहित अन्य लोग मौजूद रहे।

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नवीन समाचार, नैनीताल, 9 फरवरी 2019। बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने आनेवाले लोकसभा चुनाव को लेकर उत्तर प्रदेश के बाद मध्य प्रदेश और उत्तराखंड में भी एक साथ चुनावी मैदान में उतरने का निर्णय किया है। उत्तराखंड की 5 लोकसभा सीट में एसपी एक और बीएसपी तीन सीट पर चुनाव लड़ेगी। इस बात की जानकारी अखिलेश और मायावती की तरफ से जारी संयुक्त बयान में दी गई है। साफ किया है कि सपा उत्तराखंड में पौड़ी सीट से जबकि बसपा शेष सभी अन्य नैनीताल, अल्मोड़ा, हरिद्वार व टिहरी सीटों से चुनाव लड़ेंगे।

जबकि, समाजवादी पार्टी मध्य प्रदेश की कुल 29 सीटों में से 3 लोकसभा सीट पर अपना उम्मीदवार उतारेगी जबकि बाकी बची 26 सीटों पर बीएसपी के प्रत्याशी होंगे।उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा में सीटों की घोषणा के करीब हफ्ते भर बाद मध्य प्रदेश और उत्तराखंड में सीट बंटवारे की खबर आई है। यूपी में बीएसीप 38 सीटों पर चुनाव लड़ेगी जबकि सपा 37 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी।

नैनीताल: भाजपा-कांग्रेस से ‘भगत-सिंह’ को टिकट मिलना तय !

नवीन जोशी, नवीन समाचार, नैनीताल, 9 फरवरी 2019। तय खाकों में सिमट चुकी राजनीति में, जबकि अभी लोक सभा चुनाव की रणभेरी बजी भी नहीं है, और केवल कयास ही लगाये जा सकते हैं, बावजूद आम जनता में यह बात दावे के साथ कही जा रही है कि नैनीताल-ऊधमसिंह नगर लोक सभा सीट से भाजपा व कांग्रेस से ‘भगत-सिंह’ को टिकट मिलना तय है। कारण, प्रत्याशी की गुण-क्षमताओं से इतर टिकट मिलने का एकमात्र. मानक जीत का हो जाना है, और जीत के लिए जातिगत समीकरण बैठाना राजनीतिक शगल बन गया है। उल्लेखनीय है कि नैनीताल-ऊधमसिंह नगर लोक सभा सीट के साथ यह बड़ा संयोग भी जुड़ा है कि एक-दो मौकों को छोड़कर जिस पार्टी का प्रत्याशी इस सीट से जीतता है, उसी पार्टी की देश में भी सरकार बनती है।
जब हम भाजपा व कांग्रेस दोनों से ‘भगत-सिंह’ को टिकट मिलने की बात कर रहे हैं तो कई लोग चौंक सकते हैं। भाजपा से तो मौजूदा सांसद भगत सिंह कोश्यारी को टिकट मिलने की बात कही जा सकती है, पर कांग्रेस से कैसे ? जबकि जाहिर तौर पर स्थिति यह भी है कि कोश्यारी कई सार्वजनिक मंचों पर चुनाव ही न लड़ने की बात कह चुके हैं। साथ ही उनकी 75 पार की उम्र भी उनकी पार्टी भाजपा के पिछले लोक सभा चुनाव के दौरान तय मानकों के अनुसार चुनाव लड़ने की नहीं वरन ‘मार्गदर्शक मंडल’ अथवा ‘राजनीतिक पुर्नवास’ पर जाने की हो चुकी है।
सबसे पहले भाजपा की बात करते हैं। भाजपा राष्ट्रीय नेतृत्व के पिछले लोक सभा चुनाव के दौर में अपनाये गये आयु संबंधी अघोषित प्रतिबंध को देखकर नैनीताल के मौजूदा सांसद कोश्यारी कई बार सार्वजनिक तौर पर चुनाव लड़ने से मना कर चुके हैं, किंतु ऐसा नहीं है कि यह उनके भीतर की आवाज हो। ऐसा कुछ हालिया घटनाओं से जाहिर हो जाता है। बीते कुछ समय से कुछ शारीरिक समस्याओं के बावजूद उनकी क्षेत्र में दौड़ बढ़ गयी है। क्षेत्रवासियों का कहना है कि पूरे पांच वर्ष नजर न आये कोश्यारी अब दिखने लगे हैं। बीते कुछ दिनों में ही वह नैनीताल से लेकर बेतालघाट और ओखलकांडा तक के दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों का चक्कर लगा आये हैं। दूसरी ओर उन्होंने अपने ऐसे कुछ सिपहसालार भी मैदान में आगे कर दिये हैं, जिनका कहना है कि यदि कोश्यारी चुनाव न लड़े तो वे दावेदार हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार इस तरह कोश्यारी स्वयं को ‘जरूरी’ बताने का दांव चल रहे हैं, और वे इस कोशिश में काफी हद तक सफल भी रहे हैं। पिछले पांच वर्षों में किसी अन्य भाजपा नेता के द्वारा स्वयं को नैनीताल लोकसभा के लिये तैयार न कर पाना और उनका पिछले लोक सभा चुनाव में राज्य में सर्वाधिक 2.84 लाख से भी अधिक सीटों से चुनाव जीतना भी उन्हें टिकट मिलने की संभावना को सबसे ऊपर रखने वाला रहा है। लेकिन यह भी सही है कि कोश्यारी के पास जनता को अपनी पांच वर्ष की उपलब्धियां बताने के लिए कुछ भी खास नहीं है। ना ही वे पांच वर्षों में जमरानी बांध बना पाये हैं, ना नैनीताल मुख्यालय को एक अदद पार्किंग दिला पाये हैं, ना ही उनके कार्यकाल में हल्द्वानी में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम और अन्य स्टेडियम आकार ले पाये हैं, और आईएसबीटी तो अपने तय स्थान से ही गायब हो गया है। यहां तक कि अपने गोद लिये गांव को ‘आदर्श गांव’ बनाने का दावा करने की स्थिति में भी वे नहीं हैं। ऐसे में यह भी साफ है कि अगर वे फिर से दावेदार होंगे तो उन्हें खुद से अधिक ‘मोदी’ नाम का ही सहारा लेना होगा।
ऐसे में भाजपा से ‘कोश्यारी नहीं तो मैं’ कहने वाले दावेदारों से इतर जो एक अन्य दावेदार उभर कर आते और क्षेत्र की दौड़ लगाते दिख रहे हैं, वे हैं यूपी व उत्तराखंड सरकार में कई बार कैबिनेट मंत्री रहे बंशीधर भगत। भगत सिंह कोश्यारी के नाम से अपने जाति नाम की साम्यता वाले बंशीधर नैनीताल लोकसभा के लिए कोश्यारी की तरह बाहरी भी नहीं हैं। किसी दौर में आज के नैनीताल जनपद के बड़े हिस्से को समाने वाली नैनीताल विधानसभा के भी विधायक रहे बंशी तभी से घर-घर से जुड़ाव भी रखते हैं। कहा जाता है बंशी दूरस्थ गांवो तक हर जन्म के बाद होने वाले नामकरण के साथ ही पशुओं की नयी संतति पर होने वाली बौधांण पूजा में भी शामिल होने पहुंचते रहे हैं। यूपी के दौर से मंत्री रहने के बावजूद मौजूदा उत्तराखंड सरकार में किसी कारण मंत्री न बन पाये बंशीधर को इधर हाल में हल्द्वानी नगर निगम एवं हल्द्वानी विकास खंड में कांग्रेस की कद्दावर मंत्री डा. इंदिरा हृदयेश को सीधी मात देने का भी श्रेय दिया जा रहा है। हालिया कार्यक्रमों में प्रदेश के मुख्यमंत्री भी इन कारणों से उनकी क्षमता के कायल दिखे हैं। ऐसे में कोश्यारी को टिकट न मिलने की स्थिति में बंशीधर भाजपा की दूसरी पसंद या ‘छुपे रुस्तम’ हो सकते हैं।

अब बात कांग्रेस पार्टी की। कांग्रेस पार्टी पूरे प्रदेश के साथ ही नैनीताल लोकसभा में भी साफ तौर पर दो ध्रुव़ों में बंटी हुई नजर आती है। इन दो ध्रुवों की रहनुमाई पूर्व मुख्यमंत्री हरीश चंद्र सिंह रावत यानी हरीश रावत और मौजूदा नेता प्रतिपक्ष डा. इंदिरा हृदयेश करते हैं। इन दोनों धु्रवों में पूर्व में खुद का अधिक बड़ा जनाधार दिखाने की होड़ दिखती थी किंतु पिछले विधानसभा चुनावों के बाद से यह होड़ खुद की हार को छोटा दिखाने में सीमित हो गयी है। विधानसभा चुनावों में हरीश रावत मुख्यमंत्री रहते दो चुनाव लड़े और नैनीताल विधानसभा के अंतर्गत आने वाली किच्छा सहित दोनों हार गये, जबकि इंदिरा अपनी सीट बचाने में सफल रही। ऐसे में इंदिरा को हरीश पर हमलावर होने का मौका मिल गया। उन्हें प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की बुरी हार के बावजूद नेता प्रतिपक्ष के रूप में कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी मिल गया।

28 जून को अजय भट्ट के हाथ थामे डा. इंदिरा हृदयेश.

लेकिन इधर हाल में प्रदेश में हुए निकाय चुनाव में इंदिरा भी हरीश की अपनी पत्नी को टिकट दिलाने व पुत्र-पुत्री को अपनी राजनीतिक विरासत सोंपने की कोशिश करने की गलती दोहराते हुए ‘अंधा बांटे रेवड़ी फिर-फिर अपने दे..’ की तर्ज पर अपने पुत्र सौरभ को हल्द्वानी के महापौर पर टिकट क्या दे बैठीं, पूरा प्रदेश छोड़ पुत्र की जीत के लिए हर हथकंडा अपनाने के बावजूद हार मिलने से हारे हुए हरीश के स्तर पर ही पहुंच गयीं। इससे उनका नैनीताल लोक सभा से चुनाव लड़ने का दावा भी ठंडा पड़ गया। उधर हरीश भी जाहिर तौर पर अपनी दावेदारी करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं, किंतु हरिद्वार के साथ नैनीताल सीट से चुनाव लड़ने की उनकी आतुरता किसी से छिपी नहीं है। राजनीतिक तौर पर गांधी परिवार से संजय गांधी के दौर से करीबी रखने वाले रावत के लिए अपनी मनचाही सीट से टिकट लाना अधिक कठिन नहीं होगा। ऐसे में वे स्वयंभू तरीके से कांग्रेस से सबसे सशक्त उम्मीदवार बताये जा रहे हैं।

नये वर्ष पर लगी डा. पाल की होर्डिंग।

वहीं राजपरिवार से आने वाले इस लोकसभा के दो बार के पूर्व सांसद एवं 2014 में कोश्यारी से हारे केसी सिंह बाबा किसी राजपरिवार के व्यक्ति को ही अपनी राजनीतिक विरासत सोंपने के हामी हैं। ऐसे में उन्होंने जनता दल व कांग्रेस से एक-एक बार सांसद रहे डा. महेंद्र सिंह पाल का नाम टिकट के लिए आगे कर दिया है। वहीं सूत्रों की मानें तो पाल के नाम पर डा. इंदिरा हृदयेश ने भी पूर्व के मतभेदों को भुलाकर अपनी सहमति दे दी है, क्योंकि वे हरीश रावत को किसी कीमत पर यहां नहीं आने देना चाहती हैं। ऐसे में साफ है कि नैनीताल सीट से भाजपा किसी ‘भगत’ (भगत सिंह कोश्यारी अथवा बंशीधर भगत) तथा कांग्रेस किसी ‘सिंह’ (हरीश चंद्र सिंह रावत अथवा डा. महेंद्र सिंह पाल) को ही टिकट दे सकते हैं। वहीं दोनों पार्टियों से किसी ‘सिंह’ यानी श्रत्रिय को ही टिकट दिये जाने के पीछे विधानसभा में श्रत्रियों की सबसे बड़ी संख्या होने का कारण भी मूल में है।

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-योगी का 9 को हल्द्वानी आगमन स्थगित, 14 को रुद्रपुर आयेंगे मोदी 

नवीन समाचार, रुद्रपुर 7 फरवरी 2019। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह व आरएसएस के प्रमुख डॉ. मोहन भागवत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 14 फरवरी को उत्तराखंड के रुद्रपुर पहुँच रहे हैं। इस दौरान वे सहकारिता विभाग की 3400 करोड़ रुपयों की योजना का शुभारंभ करेंगे, जो बेरोजगारों के लिए बड़ी सौगात होगी। 

वहीँ इस कारण यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का हल्द्वानी में 9 फरवरी को प्रस्तावित त्रिशक्ति सम्मेलन स्थगित कर दिया गया है। सम्मेलन के लिए एमबी इंटर कॉलेज में मंच लगभग तैयार कर दिया गया था, कहा जा रहा है कि चूंकि रुद्रपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 14 फरवरी को सभा हैं, इस कारण पार्टी के लोग रुद्रपुर की सभा की तैयारी करेंगे। प्रधानमंत्री की सभा के बाद त्रिशक्ति सम्मेलन के लिए आगे की तिथि निर्धारित की जाएगी। 

उधर प्रधानमंत्री के कार्यक्रम को अंतिम रूप देने के लिए पार्टी के वरिष्ठ नेता भी अपने स्तर से जुट गए हैं।

रुद्रपुर के विधायक राजकुमार ठुकराल ठुकराल ने वर्ष 2014 की विधानसभा चुनाव से पूर्व प्रधानमंत्री मोदी की रूद्रपुर में हुई जनसभा का जिक्र करते हुए बताया कि जिस तरह तब मोदी की रुद्रपुर की जनसभा ने भाजपा को पूरे कुमाऊं मंडल एवं प्रदेश में एकतरफा जीत दिलाई थी। इसी तरह लोकसभा चुनाव से पहले मोदी का आगमन भी भाजपा के लिए वैसे ही यानी 5 में से 5 सीटें दिलाने वाला और कांग्रेस के लिए वाटर लू साबित होगा । रुद्रपुर में प्रधानमंत्री मोदी की जनसभा ऐतिहासिक होगी।

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पत्रकार वार्ता करते डा. महेंद्र पाल।

नवीन समाचार, नैनीताल, 3 फरवरी 2019। कांग्रेस पार्टी से नैनीताल लोक सभा से चुनाव लड़ने के लिये आवेदन कर चुके पूर्व जनता दल व कांग्रेस सांसद एवं वरिष्ठ अधिवक्ता डा. महेंद्र पाल ने अपनी दावेदारी के साथ बरसों बाद पत्रकार वार्ता करते हुए कहा कि 2004 में सर्वाधिक मतों से जीतने के बाद भी उन्हें लोकसभा का टिकट नहीं मिला। इस बार चुनाव के लिए पूरी तैयारी है। उन्होंने केंद्र सरकार के अंतरिम बजट को कांग्रेस व राहुल गांधी की पहलों का प्रभाव बताया तथा राज्य व केंद्र सरकार पर अपने घोषणा पत्र पर फेल होने का आरोप लगाया। कहा कि भाजपा के राज्य में पांचों सांसद और 57 सांसद हैं। इसलिये आगामी चुनावों में कांग्रेस के पास खोने को कुछ भी नहीं है, और अब खोने की बारी भाजपा की है व कांग्रेस के लिये चढ़ने का समय है।

पूछा-उत्तराखंड भाजपा को इतना ही प्यारा है तो उपेक्षा क्यों ?

पाल ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बयान पर तंज कसते हुए पूछा कि यह भाजपा व मोदी को बकौल शाह उत्तराखंड इतना ही प्यारा है तो उत्तराखंड की डबल इंजन में भी क्यों उपेक्षा हो रही है। देश में अभी हाल में 13 केंद्रीय विश्वविद्यालय खोलने की घोषणा हुई है, लेकिन राज्य के कुमाऊं मंडल में एक केंद्रीय विवि की स्थापना क्यों नहीं की जा रही है। उन्होंने राज्य सरकार के ‘जीरो टॉलरेंस’ पर भी तंज कसा और कहा कि खुद की जांच एजेंसियों से जांच कराकर जीरो भ्रष्टाचार बताने की कोई तुक नहीं है। एनएच-74 घोटाले में करीब तीन दर्जन किसानों पर चार्जशीट दाखिल होने व समाज कल्याण विभाग की छात्रवृत्ति में 500 करोड़ रुपये का घोटाला बताते पर कड़ी नाराजगी व्यक्त करते हुए उन्होंने इन दोनों के साथ ही सिडकुल घोटाले में सरकार को सीबीआई जांच कराने को कहा। पत्रकार वार्ता में पूर्व दायित्वधारी रईश भाई, जेके शर्मा, मनमोहन कनवाल, सूरप पांडे व गोपाल बिष्ट सहित कई कांग्रेस कार्यकर्ता भी मौजूद रहे।

लोग कह रहे लोक पाल नहीं ला सकते तो महेंद्र पाल को लाओ…

नैनीताल। डा. महेंद्र पाल ने प्रदेश में लोकपाल के लागू न होने पर भाजपा सरकार के साथ ही कांग्रेस की पूर्ववर्ती सरकार को भी घेरा। कहा कि खंडूड़ी सरकार द्वारा लाये गये लोकपाल की अन्ना हजारे ने भी तारीफ की थी किंतु इसे न ही भाजपा न पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने लागू किया। यह लागू होता, तभी भ्रष्टाचार मुक्त उत्तराखंड की कल्पना की जा सकती थी। कहा कि इन स्थितियों पर लोग कहने लगे हैं, लोकपाल नहीं ला सकते तो महेंद्र पाल को लाओ।
पत्रकार वार्ता करते डा. महेंद्र पाल।

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8 जुलाई 2018 को अपने हाथों से त्रिवेन्द्र रावत को आम खिलाते हरीश रावत.

नवीन समाचार, नैनीताल, 18 जनवरी, 2019। उत्तराखंड में भाजपा-कांग्रेस नेता लोक सभा चुनाव का बिगुल बजाने पर आतुर नजर आ रहे हैं। इस कोशिश में अपनी ओर हाईकमान का ध्यान आकृष्ट करने के लिए कुछ खुलकर अपनी दावेदारी जाहिर कर रहे हैं तो अन्य अन्यान्य तरीके आजमा रहे हैं। इसी कड़ी में एक पूर्व सीएम हरीश रावत द्वारा पार्टी में अपनी ताकत का प्रदर्शन करने के लिए ईजाद किया ‘पार्टियां’ करने का तरीका लगता है उनके पूर्व से ही प्रतिद्धंद्वी रहे एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री को भा गया लगता है।
पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व वरिष्ठ कांग्रेस व अब भाजपा नेता विजय बहुगुणा ने कहने को नगर निकाय के नव निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के लिए ‘डिनर पार्टी’ रखी, लेकिन इस पार्टी के समय को लेकर सियासी गलियारों में चर्चाओं का दौर आरंभ हो गया है। माना जा रहा है कि बहुगुणा लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं। उल्लेखनीय है कि बहुगुणा मार्च 2016 में कांग्रेस में हुई टूट के सूत्रधार रहे हैं। उनके ही नेतृत्व में तब नौ विधायकों ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामा था। हालांकि बाद में दो और विधायक रेखा आर्य और यशपाल आर्य भी भाजपा से जुड़े। भाजपा ने इन सभी को पूरा सम्मान दिया। अधिकांश ने भाजपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन विजय बहुगुणा और पूर्व मंत्री अमृता रावत चुनावी दावेदारी से दूर रहे। विजय बहुगुणा की जगह उनके पुत्र सौरभ बहुगुणा और अमृता की जगह उनके पति सतपाल महाराज चुनाव लड़े और विधायक चुन लिए गए। बहुगुणा के विधानसभा चुनाव न लड़ने पर माना गया कि वह राज्यसभा या लोकसभा का चुनाव लड़ सकते हैं, लेकिन पिछले साल राज्य की एक राज्यसभा सीट के लिए हुए चुनाव में बहुगुणा को मौका नहीं मिला। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि विजय बहुगुणा पिछले दो साल के दौरान सूबे की सियासत में बहुत ज्यादा सक्रिय भी नहीं दिखे। अब लोकसभा चुनाव नजदीक हैं, तो अचानक बहुगुणा ने राजधानी देहरादून में रात्रिभोज का आयोजन करने का फैसला किया। इसके निमंत्रण पत्र बंटते ही चर्चाओं का दौर भी शुरू हो गया। दरअसल, भाजपा में पौने तीन साल पहले ही शामिल होने के बावजूद मौजूदा समय में विजय बहुगुणा खेमे के विधायकों की संख्या भाजपा में ठीकठाक है। यानी, भाजपा में नए होने के बावजूद उनकी कद्दावर सियासी शख्सियत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। सियासी हलकों में माना जा रहा है कि बहुगुणा की अचानक सक्रियता का कारण आगामी लोकसभा चुनाव ही हैं। हालांकि उन्होंने अभी स्वयं लोकसभा चुनाव लड़ने का दावा तो नहीं पेश किया है, लेकिन अगर बहुगुणा अपनी दावेदारी पेश करें तो भाजपा को उन्हें दरकिनार करना मुश्किल होगा। वैसे भी बहुगुणा टिहरी संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व पूर्व में कर चुके हैं। अलबत्ता बहुगुणा के करीबी माने जाने वाले राज्य के कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि बहुगुणा हर साल ही नववर्ष के मौके पर दावत देते हैं। इस बार निकायों के नवनिर्वाचित जनप्रतिनिधियों के साथ ही अन्य लोगों को उन्होंने आमंत्रित किया है। लिहाजा इस दावत को लेकर सियासी निहितार्थ नहीं निकाले जाने चाहिए।

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नैनीताल में मोदी को माता नंदा-सुनंदा के चित्र युक्त प्रतीक चिन्ह भेंट करते बची सिंह रावत, बलराज पासी व अन्य स्थानीय नेता। 

नवीन समाचार, देहरादून, 14 जनवरी 2019। उत्तराखंड में सत्तारूढ़ लोकसभा की चुनाव की तैयारियों को गति प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह उत्तराखंड पर खास फोकस करने जा रहे हैं। शाह उत्तराखंड में भाजपा के चुनाव अभियान का शंखनाद आगामी दो फरवरी को भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह देहरादून में आयोजित होने जा रहे त्रिशक्ति सम्मेलन को संबोधित करके करेंगे। वहीं प्रधानमंत्री मोदी मार्च माह से अपने चुनावी अभियान की शुरुआत कर सकते हैं। मोदी के प्रशंसकों के लिए अच्छी खबर यह भी है कि उन्हें मोदी को देखने व सुनने के लिए अधिक दूर नहीं जाना पड़ेगा, बल्कि वे प्रदेश के हर जिले में आकर चुनावी सभा करेंगे।
यूपी में हुए सपा-बसपा के चुनावी गठबंधन के बाद भाजपा की कोशिश उन राज्यों पर फोकस करने की है, जहां भाजपा सत्ता में है, और मजबूत है, अथवा जहां उसका प्रदर्शन 2014 के लोक सभा चुनावों में अच्छा नहीं रहा, परंतु इस बीच वहां उसने अपनी ताकत बढ़ा ली है। भाजपा आगामी लोकसभा चुनाव में राज्य की पांचों सीटों पर फिर से परचम फहराने के लिए भाजपा कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती। इन्हें बरकरार रखने पर पार्टी ने ध्यान केंद्रित किया हुआ है। चुनाव के मद्देनजर पार्टी ने मार्च तक के कार्यक्रम पहले ही तय कर दिए हैं। दिल्ली में हुई राष्ट्रीय कार्यसमिति से भाग लेकर लौटे प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने राष्ट्रीय अध्यक्ष के दौरे के बाद मार्च में प्रधानमंत्री यहां आने की संभावना जताई है, जबकि काबीना मंत्री प्रकाश पंत ने हर जनपद में मोदी के आने की बात कही है।

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नये वर्ष पर लगी डा. पाल की होर्डिंग।

-अब पूर्व सांसद़ डा. महेंद्र पाल ने मुख्यालय में लगाये शुभकामना संदेशों के होर्डिंग
नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 1 जनवरी 2019। नव वर्ष, लोहड़ी, गणतंत्र दिवस व मकर संक्रांति की शुभकामनाओं के बहाने मुख्यालय में कांग्रेस के एक और दावेदार की होर्डिंग के जरिये इंट्री हो गयी है। नगर के साथ ही निकटवर्ती भवाली-भीमताल आदि में भी पूर्व सांसद डा. महेंद पाल ने बड़ी होर्डिंग लगाकर क्षेत्रवासियों को बधाइयां दी हैं। इसे भी साफ तौर पर उनकी दावेदारी से जोड़ा जा रहा है। पाल ने अपनी होर्डिंग में राहुल गांधी की खुद के बराबर ही फोटो लगाई है, साथ ही केंद्र से लेकर राज्य के बड़े कांग्रेसी नेताओं को भी अपनी होर्डिंग में जगह दी है। माना जा रहा है कि आने वाले समय पर कांग्रेस में होर्डिंग व दावेदारी-वार और अधिक तेज हो सकता है।
उल्लेखनीय है कि दो दिन पूर्व जब पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत रुद्रपुर में वहां के पूर्व विधायक व मंत्री रहे तिलक राज बेहड़ के साथ सने हुए नींबू एवं गुड़ की चाय की पार्टी दे रहे थे, उसी दिन राज्य के राजघरानों से आने वाले दो पूर्व सांसद केसी सिंह बाबा और डा. महेंद्र पाल की मुलाकात भी हुई थी, और बाबा ने स्वयं की उम्र अधिक होने का हवाला देते हुए पाल का नाम सांसद पद के लिए आगे किया था। उल्लेखनीय है कि रावत एवं बेहड़ पहले ही अपनी दावेदारी जता चुके हैं, ऐसे में इसी दिन बाबा व पाल की जुगलबंदी को इसके काउंटर के रूप में देखा जा सकता है। गौरतलब है कि नेता प्रतिपक्ष डा. इंदिरा हृदयेश व पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले प्रकाश जोशी भी सांसद पद के लिए दावेदारी कर चुके हैं।

-अब पूर्व सांसद़ डा. महेंद्र पाल ने मुख्यालय में लगाये शुभकामना संदेशों के होर्डिंग
नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 1 जनवरी 2019। नव वर्ष, लोहड़ी, गणतंत्र दिवस व मकर संक्रांति की शुभकामनाओं के बहाने मुख्यालय में कांग्रेस के एक और दावेदार की होर्डिंग के जरिये इंट्री हो गयी है। नगर के साथ ही निकटवर्ती भवाली-भीमताल आदि में भी पूर्व सांसद डा. महेंद पाल ने बड़ी होर्डिंग लगाकर क्षेत्रवासियों को बधाइयां दी हैं। इसे भी साफ तौर पर उनकी दावेदारी से जोड़ा जा रहा है। पाल ने अपनी होर्डिंग में राहुल गांधी की खुद के बराबर ही फोटो लगाई है, साथ ही केंद्र से लेकर राज्य के बड़े कांग्रेसी नेताओं को भी अपनी होर्डिंग में जगह दी है। माना जा रहा है कि आने वाले समय पर कांग्रेस में होर्डिंग व दावेदारी-वार और अधिक तेज हो सकता है।
उल्लेखनीय है कि दो दिन पूर्व जब पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत रुद्रपुर में वहां के पूर्व विधायक व मंत्री रहे तिलक राज बेहड़ के साथ सने हुए नींबू एवं गुड़ की चाय की पार्टी दे रहे थे, उसी दिन राज्य के राजघरानों से आने वाले दो पूर्व सांसद केसी सिंह बाबा और डा. महेंद्र पाल की मुलाकात भी हुई थी, और बाबा ने स्वयं की उम्र अधिक होने का हवाला देते हुए पाल का नाम सांसद पद के लिए आगे किया था। उल्लेखनीय है कि रावत एवं बेहड़ पहले ही अपनी दावेदारी जता चुके हैं, ऐसे में इसी दिन बाबा व पाल की जुगलबंदी को इसके काउंटर के रूप में देखा जा सकता है। गौरतलब है कि नेता प्रतिपक्ष डा. इंदिरा हृदयेश व पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले प्रकाश जोशी भी सांसद पद के लिए दावेदारी कर चुके हैं।

पूर्व समाचार : पूर्व रुद्रपुर विधायक तिलक राज बेहड़ ने मुख्यालय में होर्डिंग लगाकर गर्माया माहौल

  • नये वर्ष में और तेज होगा कांग्रेस में लोस चुनाव के लिए संघर्ष

नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 30 दिसंबर 2018। राजनेता त्योहारों की बधाइयां भी यूं ही नहीं देते हैं, बल्कि इसमें भी उनका राजनीतिक स्वार्थ छुपा होता है। नगर में ताजा व अनपेक्षित तौर पर लगे प्रदेश के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री एवं रुद्रपुर के पूर्व विधायक तिलक राज बेहड़ के नव वर्ष, लोहड़ी, गणतंत्र दिवस व मकर संक्रांति की शुभकामनाएं देते होर्डिंग भी साफ तौर पर इसी कड़ी का हिस्सा नजर आ रहे हैं, लेकिन इसके साथ ही यह संकेत भी दे रहे हैं कि कांग्रेस में नये वर्ष में लोक सभा चुनाव के लिए टिकट प्राप्त करने का संघर्ष और अधिक तेज होना तय है।


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उल्लेखनीय है कि बेहड़ ने नगर वासियों को इस तरह की त्योहारों की शुभकामनाएं पहले कभी नहीं दी हैं। जबकि इस बार उन्होंने नगर ही नहीं, आसपास के भवाली-भीमताल, ज्योलीकोट आदि छोटे-बड़े पहाड़ी कस्बों में भी होर्डिंग लगाकर एक तरह से साफ तौर पर आगामी लोक सभा चुनावों के लिए अपनी दावेदारी ठोक दी है। पूर्व में भाजपा नेता व पूर्व सांसद बलराज पासी भी पिछले वर्ष के कैंची मेले व हरेला के मौके पर यही कर चुके है। हालांकि बेहड़ ने अपने होर्डिंग में स्थानीय कांग्रेसी नेताओं के फोटो लगाने से भी गुरेज नहीं किया है और केंद्रीय नेताओं के साथ प्रदेश के हरीश रावत, इंदिरा, प्रीतम से लेकर स्थानीय विधायक सरिता आर्य व पूर्व सांसद डा. महेंद्र पाल आदि के फोटो लगाकर स्वयं को गुटीय राजनीति से अलग रखने की कोशिश भी की है। किंतु रविवार को वे रुद्रपुर में पूर्व सीएम हरीश रावत द्वारा आहूत की गयी ‘पहाड़ी सने नीबू व गुड़ की चाय’ की पार्टी में भी प्रमुख रूप से शामिल रहे हैं। इस प्रकार उन्होंने चाहे-अनचाहे यह भी संकेत दे दिया है कि किसके इशारे पर उन्होंने यह होर्डिंग लगाये हैं। उल्लेखनीय है कि नैनीताल लोक सभा सीट पर हरीश रावत एवं नेता प्रतिपक्ष डा. इंदिरा हृदयेश की आपसी रार एवं लोक सभा के टिकट के लिए संघर्ष किसी से छुपा नहीं है। यह दोनों नेता पहले ही अपनी दावेदारी खुलकर व्यक्त करने के साथ ही एक-दूसरे के खिलाफ जहर उगलने में भी कभी परदा नहीं कर रहे। ऐसे में बेहड़ की दावेदारी को हरीश रावत खेमे की ओर से एक और नाम आगे करने का उपक्रम माना जा रहा है। उल्लेखनीय है कि इसी बीच राजपरिवारों से जुड़े दो पूर्व कांग्रेसी सांसद केसी सिंह बाबा व डा. महेंद्र पाल भी लोस की दावेदारी के मुद्दे पर आगे आ चुके हैं। बाबा ने स्वयं की उम्र का हवाला देकर पाल का नाम आगे बढ़ाया है। वहीं राहुल गांधी के करीबी प्रकाश जोशी की भी इस सीट के लिए दावेदारी बताई जा रही है। ऐसे में आने वाले नये वर्ष में कांग्रेस में लोक सभा टिकट के लिए संघर्ष तेज होने व सिर-फुटौव्वल के स्तर तक जाने की भी उम्मीद की जा रही है।

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बदलाव की हर बयार में नैनीताल ने भी बदली है करवट, कइयों को राजनीति का ककहरा सीखते ही दिल्ली पहुंचाया है नैनीताल ने -1971 के बाद नैनीताल से दूसरी बार नहीं जीता कोई भी सांसद -भारत रत्न पं. गोविंद बल्लभ पंत व एनडी तिवारी की परंपरागत सीट रही है नैनीताल नवीन जोशी, नैनीताल। देश की सर्वाधिक शिक्षित संसदीय क्षेत्रों में शुमार एवं भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत के परिवार एवं पं.एनडी तिवारी की परंपरागत सीट माने जाने नैनीताल ने देश में चल रही हर बदलाव की बयार में खुद भी करवट बदली है। देश में अच्छी सरकार चलती रही तो यहां के मतदाताओं ने सत्तारूढ़ पार्टी के प्रत्याशी को ही सिर-माथे पर बिठाया है, लेकिन जहां सत्तारूढ़ पार्टी ने चूक की और नैनीताल को अपनी परम्परागत सीट मानकर गुमान में रही, तो उसे यहां के मतदाताओं ने जमीन दिखाने से भी गुरेज नहीं किया। इसके साथ ही नैनीताल संसदीय सीट के साथ यह संयोग भी स्थापित होता चला गया है कि नैनीताल से जिस पार्टी का प्रत्याशी जीता, उसी पार्टी की देश में सरकार भी बनती रही। साथ ही पिछली करीब आधी सदी में यह संयोग भी बनता चला गया है कि नैनीताल ने अपने किसी प्रत्याशी को दुबारा दुबारा संसद पहुंचने का मौका नहीं दिया। इन संयोगों के साथ नैनीताल सीट पर भाजपा-कांग्रेस दोनों राजनीतिक दलों की नजर है। नैनीताल लोकसभा सीट के अतीत के पन्नों को पलटें तो पता चलता है कि नैनीताल देश की आजादी के बाद भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत के परिवार और बाद में एनडी तिवारी सरीखे नेताओं की परंपरागत सीट रही है। साथ ही दोनों को ही संसद पहुंचने की सीढ़ी चढ़ने का ककहरा भी नैनीताल ने ही सिखाया है। मगर यह भी मानना होगा कि यहां के मतदाताओं की मंशा को कोई नेता ठीक से नहीं समझ पाया। इसीलिये एनडी भी यहां से हारे और पं. पंत के पुत्र केसी पंत भी। इसी तरह कांग्रेस की परंपरागत सीट माने जाने के बावजूद कांग्रेस के नेता भी हर चुनाव में यहां असमंजस के दौर से ही गुजरते रहे हैं, जबकि देश की सत्ता संभाल रही भाजपा यहां से वर्तमान सहित सिर्फ तीन बार ही जीत हासिल कर पाई है। वहीं जनता पार्टी और जनता दल के नेताओं को भी नैनीताल ने अपना प्रतिनिधित्व करने का मौका देने से गुरेज नहीं किया। वर्ष 1971 के चुनाव तक यहां के मतदाताओं ने कुछ खास नेताओं को ही गले लगाया, पर इसके बाद उन्होंने अपने किसी भी प्रतिनिधि को दुबारा नहीं जिताया। इसके साथ ही देश में चल रही राजनीतिक हवा का असर नैनीताल सीट पर भी सीधा पड़ता रहा है। देश के शुरुआती 1951 व 1957 तक के लोक सभा चुनावों में पंडित गोविंद बल्लभ पंत के दामाद सीडी पांडे और 1962 से 1971 तक के तीन चुनावों में पं. पंत के पुत्र केसी पंत कांग्रेस के टिकट पर नैनीताल से सांसद रहे, और देश में कांग्रेस की सरकारें भी बनती रहीं। मगर 1977 के चुनाव में आपातकाल के दौर में तीन बार के सांसद केसी पंत को भारतीय लोकदल के नए चेहरे भारत भूषण ने पराजित कर दिया। तब देश में पहली बार विपक्ष की सरकार बनी। लेकिन विपक्ष का प्रयोग विफल रहने पर 1980 में एनडी तिवारी को उनके पहले संसदीय चुनाव में ही नैनीताल ने दिल्ली पहुंचा दिया। लेकिन अपने कार्यकाल के बीच ही 1984 में तिवारी सांसदी छोड़ यूपी का सीएम बनने चले तो उनके शागिर्द सतेंद्र चंद्र गुड़िया को भी जनता ने जीत का सम्मान दिया। 1989 के चुनाव में देश भर में मंडल आयोग की हवा चली तो जनता दल के नए चेहरे डा. महेंद्र पाल नैनीताल से चुनाव जीत गए और जनता दल की ही केंद्र में सरकार बनी। 1991 के चुनाव में नैनीताल के मतदाता देश में चल रही राम लहर की हवा में बहे और बलराज पासी ने भाजपा के टिकट पर जीतकर इतिहास रच दिया। तब केंद्र में भाजपा की सरकार बनी। 1998 में बीच में एचडी देवगौड़ा और आरके गुजराल के नेतृत्व वाली जनता दल की सरकार की विफलता के बाद हुए उपचुनाव में भाजपा की इला पंत ने एनडी तिवारी को पटखनी दी और दुबारा केंद्र में भाजपा की सरकार बनी। इसके बाद से 2004 व 2009 के चुनावों में कांग्रेस के केसी सिंह बाबा यहां से सांसद बने और दोनों मौकों पर कांग्रेस की सरकार ही देश में बनी। वहीं इधर 2014 में भाजपा के टिकट पर उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी नैनीताल से सांसद बने तो देश में फिर से भाजपा की सरकार भी बनने से यहां से जीतने वाले दल की ही दिल्ली में सरकार बनने का मिथक पूरी तरह से स्थापित हो गया।

एनडी ने दो बार तोड़ा था मिथक नैनीताल में जीतने वाली पार्टी की ही केंद्र में सरकार बनने के मिथक को एनडी तिवारी 1996 और 1999 में विरोधी पार्टियों की लहर में भी नैनीताल से चुनाव जीतने के साथ तोड़ने में सफल रहे। 1996 में एनडी ने कांग्रेस से नाराज होकर सतपाल महाराज शीशराम ओला व अन्य के साथ मिलकर कांग्रेस (तिवारी) बनाई और चुनाव जीतने में सफल रहे। लेकिन इस चुनाव के बाद केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनी। इसी तरह 1999 के चुनाव में भी एनडी तिवारी ने फिर अपवाद दोहराया, जब कांग्रेस से तिवारी तीसरी बार सांसद बने, लेकिन फिर केंद्र में भाजपा की ही सरकार बनी। वर्ष 2002 में उनके उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनने पर हुए उपचुनाव में जनता दल से कांग्रेस में आए डा. महेंद्र पाल भी उनकी सीट बचाने में सफल रहे।

कांग्रेस में दूसरे की बड़ी हार में खुद का टिकट देख रहे नेता उत्तराखंड में निकाय चुनावों एवं मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में हुए पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों के निपटने के साथ ही लोक सभा चुनावों की तैयारियां भी शुरू हो गयी हैं। नैनीताल सीट पर भाजपा-कांग्रेस दोनों खेमों से टिकट पाने की होड़ शुरू हो गयी है। पिछले विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री रहते नैनीताल लोक सभा की किच्छा विधानसभा सहित दो सीटों से चुनाव लड़ने के बाद दोनों सीटों से चुनाव हारने वाले हरीश रावत का दावा कांग्रेस की ओर से टिकट पाने में मजबूत बताया जा रहा है। जबकि अब तक दो सीटों की हार पर हरीश रावत को मुंह चिढ़ा रही कांग्रेस की दिग्गज नेत्री डा. इंदिरा हृदयेश हाल में हुए निकाय चुनाव में पूरे प्रदेश को छोड़ हल्द्वानी नगर निगम की महापौर सीट पर अपनी पार्टी के नेताओं की हर स्तर की नाराजगी मोल लेने के बावजू अपने पुत्र सुमित हृदयेश को न जिता पाने के बाद से हर ओर से हमले झेलने को मजबूर हैं। उनका मुख्यमंत्री के परिवार की स्टिंग सीडी से लेकर चुनाव में ‘हल्का हाथ’ रखने के कथित बयान सहित हर दांव इन दियों उल्टे बैठ रहे हैं। बावजूद वे भी टिकट की प्रमुख दावेदार बतायी जा रही हैं।

भाजपा में नैनीताल से टिकट के लिए हल्द्वानी में घर बनाने की होड़ नैनीताल। भाजपा में नैनीताल से टिकट पाने के लिए हल्द्वानी में घर बनाने की जबर्दस्त होड़ दिखाई दे रही है। काबीना मंत्री प्रकाश पंत से लेकर पूर्व सांसद बलराज पासी और खटीमा के विधायक पुष्कर धामी तक नैनीताल में घर बना चुके हैं, जबकि हल्द्वानी में पहले से घर वाले पूर्व काबीना मंत्री बंशीधर भगत ने खुलकर अपनी दावेदारी ठोक दी है। जबकि वर्तमान सांसद कोश्यारी पहले ही हल्द्वानी में घर बना चुके हैं, अलबत्ता भाजपा हाईकमान के 75 वर्ष से ऊपर के नेताओं को सक्रिय राजनीति से बाहर करने का इशारा देखकर भीतर से चुनाव लड़ने की उत्कठ इच्छा के बावजूद बाहर से चुनाव न लड़ने की बात कर रहे हैं।

संजीव के साथ बेतालघाट साधने निकले भगत

नैनीताल, 30 सितंबर 2018। आगामी लोकसभा चुनावों के लिये भाजपा से टिकट हेतु अपनी दावेदारी जता चुके पूर्व मंत्री और इन दिनों पार्टी के नेपथ्य में चल रहे कालाढुंगी विधायक बंशीधर भगत ने रविवार को जनपद के दूरस्थ बेतालघाट में कार्यकर्ताओं में जोश भरते हुए मिशन-2019 का मंत्र फूका। इस दौरान भगत ने क्षेत्रीय विधायक संजीव आर्य द्वारा कराए जा रहे विकास कार्यों की सराहना करते हुए उनके कार्यों को इन्हें क्षेत्र के विकास में मील का पत्थर बताया। संजीव भी इस दौरान उनके साथ कार्यक्रम में रहे। इस दौरान लंबे समय बाद क्षेत्र में आगमन पर भगत के स्वागत के लिए जनता में भी जोश देखा गया।
इस दौरान आयोजित सभा को संबोधित करते हुए विधायक संजीव आर्य ने विधानसभा क्षेत्र में किए गए विकास कार्यों की उपलब्धियां गिनाईं, वही बंशीधर भगत ने मोदी सरकार को देश हित में वरदान बताते हुए केंद्र सरकार की उपलब्धियों को जनता के सामने रखा। भगत ने कहा कि 2019 में भले ही टिकट किसी को भी मिले सबने साथ मिलकर मोदी को मजबूत करना है। चुनावी चुटकी लेते हुए भगत ने यह भी कहा कि वह भी टिकट की दौड़ में हैं, और इसी के चलते मुझे अपने पुराने क्षेत्र के साथियो से मिलने आये हैं। इस अवसर पर जिला प्रभारी कमल नारायण जोशी, अरविंद पडियार, संजय वर्मा, जिपं सदस्य पीसी गोरखा, मंजू पंत, लक्ष्मण महरा, धीरज, दलीप सिंह, दीवानी राम, राजेंद्र जैड़ा, माया बोरा, अम्बा दरमाल सहित दर्जनों पदाधिकारी एवं सैकड़ों कार्यकर्ता उपस्थित रहे ।
महरा को कराई भाजपा में वापसी
बेतालघाट। विगत विधानसभा चुनावों से पार्टी से नाराज चल रहे सहकारी समिति हल्द्यानी के अध्यक्ष लक्ष्मण सिंह महरा ने रविवार को भाजपा में वापसी कर ली। पूर्व मंत्री बंशीधर भगत एवं संजीव आर्य ने माल्यार्पण कर उनकी पार्टी में वापसी कराई।

यह भी पढ़ें : योगी के गढ़ में ‘बुआ-बबुआ’ की जीत से 2019 के संदेश, ‘जंगल बुक’ में छुपा है विपक्ष की जीत का फ़ॉर्मूला 

नवीन जोशी, नैनीताल। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ द्वारा छोड़ी गयी गोरखपुर और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की फूलपुर लोक सभा सीटों पर समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी जीते हैं। इस जीत के तरह-तरह के मायने निकाले जा रहे हैं। कहीं इसे भारतीय राजनीति में ‘मोदी की अगुवाई वाले भाजपा युग’ के तिलिस्म का टूटना माना जा रहा है, तो कहीं इसे मोदी को 2019 में हटाने का ख्वाब पाल रहे विपक्ष के लिए जीत का मंत्र माना जा रहा है। राजनीति में कुछ भी चिरस्थायी नहीं होता। न नेता, और न उनके फॉर्मूले। यह भी होता है कि कई बार एक का फॉर्मूला दूसरे के लिए सफलता की राह खोल देता है। लेकिन इस जीत-हार का असल मूल मंत्र उभर कर आ रहा है ‘संघे-शक्तिः’। जिस ‘सबका साथ-सबका विकास’ के फॉर्मूले से मोदी एक के बाद एक राज्य जीतते जा रहे हैं, वही फॉर्मूला इस बार ‘बुआ-बबुआ’ यानी बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा प्रमुख अखिलेश यादव के प्रत्याशियों के लिए काम कर गया है। इस जीत को बिहार के विधानसभा चुनावों में लालू एवं नितीश के गठबंधन और दिल्ली के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी के ‘झाड़ू’ की ‘क्लीन स्वीप’ जीत से जोड़कर भी देखा जा सकता है। लेकिन यह जीत कितनी स्थायी होगी, इसके लिए ‘जंगल बुक’ के उस दृश्य का दृष्टांत उपयुक्त होगा, जिसमें सूखा पड़ने की स्थिति में नदी में ‘शांति शिला’ उभर आती है, और जंगल के सभी हिंसक-अहिंसक, शिकारी-शिकार जानवर ‘शांति काल’ की घोषणा कर एक घाट से पानी पीने लगते हैं, किंतु प्यास बुझते ही फिर एक-दूसरे की जान के प्यासे हो जाते हैं। बिहार का उदाहरण अधिक पुराना नहीं है, जहां जीत आधे कार्यकाल की भी नहीं रही, और अब लालू-नितीश अलग-अलग खेमों में खड़े अपने ‘चुनावी साथ’ को ‘सबसे बड़ी भूल’ करार दे चुके हैं। जरूर 1993 में सपा-बसपा के इसी तरह के गठबंधन को मिली जीत के केवल दो वर्ष बाद 2 जून 1995 को हुए लखनऊ के ‘गेस्ट हाउस कांड’ के बाद गोमती में बहुत पानी बह चुका है, सपा तब के मुलायम के हाथों से छिनकर ‘टीपू’ के हाथों में आ चुकी है, पर मायावती वही हैं। उन्हें इस कांड में बचाने वाले ‘संघी पंडित भाई’ की पार्टी उनके लिए आज भी सबसे बड़ी ‘मनुवादी-अछूत’ है। जीत के बाद बधाई देने गये सपा नेताआंे को बसपाइयों की तरह खड़े रखकर उन्होंने फिर बता दिया है वे मनुवाद को लाख गलियाने के बावजूद आज भी अपने खेमे की ‘मनुवादी दौर की पंडित’ ही हैं, जहां उनसे ऊपर कोई नहीं हो सकता।
बहरहाल, गोरखपुर व फूलपुर में चुनाव परिणाम उसी फॉर्मूले पर आये हैं, जिसके तहत मोदी भाजपा को जिताते आए हैं, यानी सबका साथ…, इस फॉर्मूले के पार्श्व में मोदी चाहे जो भी राजनीतिक दांव-पेंच चलते रहे हों, लेकिन मूल में यही मंत्र रहता है कि अधिकाधिक वोटों का ध्रुवीकरण कैसे भाजपा के पक्ष में हो। इस ध्रुवीकरण के साथ विपक्ष का आपस में बंटा होना भी भाजपा की जीत में निर्विवाद तौर पर बड़ी भूमिका निभाता रहा है। लेकिन जहां भी विपक्ष का बिखराव ‘जंगल बुक’ की स्थितियों में एका में बदलता है, मोदी हार जाते हैं। बिहार में भी यही हुआ, दिल्ली में भी और अब यूपी के गोरखपुर व फूलपुर में भी। इसमें कुछ भी अप्रत्याशित नहीं है।
लेकिन बात यहां से आगे 2019 में जाने, भविष्य की करें तो ‘बुआ-बबुआ’ के कोष्ठों में इकट्ठा हुआ विपक्ष आगे स्थायी एकता के प्रति आश्वस्त नहीं करता। अनुभवी सोनिया गांधी के हाथों से युवा राहुल के हाथों में आ चुकी ‘कांग्रेसी छतरी’ भी विपक्ष को राजनीतिक सुरक्षा दिलाने के प्रति भरोसा नहीं दिलाती। राहुल अभी भी चुनाव के समय-बेसमय ननिहाल जाने का बचपना नहीं छोड़ पा रहे। नितीश राजग में आ चुके हैं, लालू जेल में हैं, ममता की अपनी सीमाएं हैं। बुआ-बबुआ एक ही राज्य से आते हैं। बुआ को 2019 के लोस चुनावों में 60 सीटें चाहिए। बाम किला त्रिपुरा में भी ध्वस्त हो चुका है, और केरल के प्रति भी सशंकित है। बावजूद विपक्ष यदि 2019 को ‘शांति काल’ घोषित कर एक हो जाए तो मोदी का तिलिस्म टूटना नामुमकिन नहीं है, पर ‘हो पाएगा ?’ इस प्रश्न में ही 2019 का चुनाव परिणाम निहित है।

बीएसपी का वोट एसपी को ट्रांसपर

यूपी उपचुनाव में जीत इस जीत में एक बात साफ नजर आई की कि बीएसपी अपना वोट एसपी को पूरी तरह ट्रांसफर करने में सफल रही। इस जीत के बात ऐसी सुगबुगाहट होने लगी है कि दोनों दल 2019 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन के साथ उतर सकते हैं। गोरखपुर चुनाव में हार यूपी के सीएम आदित्यनाथ के लिए निजी तौर पर काफी मुश्किलों वाला है। आदित्यनाथ 1998 से यहां से लगातार 5 बार सांसद रह चुके हैं।

उपचुनाव में यह रहा वोटों का गणित

बिहार के अररिया में आरजेडी को 49 फीसदी वोट मिले और 2014 की तुलना में उसका वोट शेयर करीब 7 फीसदी ज्यादा रहा। वहीं, एनडीए को यहां 43 फीसदी वोट मिले और 2014 की तुलना में उसका वोट शेयर करीब 16 फीसदी बढ़ा। जहानाबाद विधानसभा उपचुनाव में महागठबंधन को 55 फीसदी वोट मिले जो 2015 की तुलना में 4 फीसदी ज्यादा रहा। वहीं एनडीए को 30 फीसदी वोट मिले। भभुआ विधानसभा में एनडीए को कुल 48 फीसदी वोट मिले और 2015 की तुलना में उसका वोट शेयर करीब 13 प्रतिशत बढ़ा जबकि महागठबंधन को यहां 37 फीसदी वोट प्राप्त हुए जो 2015 विधानसभा चुनाव की तुलना में 8 प्रतिशत ज्यादा था।

2019 के लिए बढ़ी चिंता
एसपी की गोरखपुर और फूलपुर में जीत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के माथे पर शिकन ला दिया है। 2019 लोकसभा चुनाव में करीब एक साल का वक्त शेष है और विपक्ष की इस जीत ने भगवा पार्टी के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। मुस्लिमों का वोट बीजेपी को हराने वाली पार्टी के लिए गया है। गोरखपुर में कांग्रेस की मुस्लिम उम्मीदवार को केवल 2 फीसदी वोट मिले वहीं, फूलपुर में स्वतंत्र उम्मीदवार अतीक अहमद केवल 6.5 फीसदी वोट ही पा सके हैं। 2014 की तुलना में गोरखपुर और फूलपुर में बीजेपी का वोट शेयर गिरा है। एसपी की जीत में मुस्लिमों की भूमिका अहम रही है। बीजेपी चीफ अमित शाह केंद्र और राज्य सरकार पर वादे पूरे करने का दबाव बनाए हुए हैं। यूपी में दो लोकसभा सीट पर हार के बाद लोकसभा में बीजेपी के एमपी की संख्या घटकर 275 हो गई है। बीजेपी को अलवर, अजमेर, रतलाम और गुरदासपुर लोकसभा उपचुनाव में भी हार का सामना करना पड़ा था।

बिहार उपचुनाव के नतीजे भी इसी तरफ इशारा करते हैं कि यहां भी अंकगणित सत्तारूढ़ पार्टी के लिए सही नहीं रहा। 2014 के लोकसभा चुनाव में अररिया में बीजेपी को 2.6 लाख वोट मिले थे जबकि जेडीयू को 2.2 लाख वोट। दोनों पार्टियों का वोट मिला ले तो आंकड़ा 4.8 लाख वोटों का बनता है और यह आरजेडी (4.1 लाख वोट) को हराने के लिए काफी था। बावजूद इसके आरजेडी ने यह सीट करीब 62 हजार के अंतर से जीत लिया। मतलब साफ है एनडीए गठबंधन से वोट छिटका है।

2014 के लोकसभा चुनाव में गोरखपुर सीट का हाल

समझें 2018 उपचुनाव के वोटों का गणित
2018 के उपचुनाव में यूपी में दोनों लोकसभा क्षेत्र में बीजेपी के वोट प्रतिशत में कमी आई है। बीजेपी ने गोरखपुर में 2014 में जहां 52 फीसदी वोट पाए थे वहीं, उपचुनाव में उसे 47 फीसदी वोट ही मिले, यानी 5 फीसदी वोट का नुकसान। फूलपुर में 2014 के चुनाव में बीजेपी को 52 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि उपचुनाव में उसका प्रतिशत 13 प्रतिशत घटकर 39 प्रतिशत पहुंच गया।

यह भी पढ़ें : नितीश के ‘महानायक’ होने का सच

d9125मीडिया में बहुप्रचारित हो रहा है-‘महागठबंधन की महाजीत, महानायक बने नितीश’। मानो एक प्रांत बिहार जीते नितीश में मोदी से खार खाए लोगों को उनके खिलाफ मोहरा मिल गया है। नितीश बाबू भी राष्ट्रीय चैनलों पर राष्ट्रीय नेता बनने के दिवास्वप्न देखते दिखाए जा रहे हैं। जबकि सच्चाई यह है कि चुनाव परिणाम की रात नितीश सो नहीं पाए हैं। सच है कि उन्हें महागठबंधन ने अपने नेता के रूप में पेश किया था, इसलिए उनकीं तीसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री पद पर ताजपोशी तय है। लेकिन भीतर का मन सवाल कर कचोट रहा है, पिछली बार के मुकाबले सीटें और वोट दोनों कम मिले हैं। गठबंधन में ‘छोटे भाई’ लालू, अधिक सीटों (80)के साथ ‘बड़े भाई’ बनकर उभरे हैं। पीछे से मन कह रहा है, जिस भाजपा को पिटा हुआ बता रहे हैं, वह तो 24.8 फीसद वोटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। मीडिया कह रहा है, उन (नितीश) का जादू चला है, जबकि सच्चाई यह है कि उन्हें लोक सभा चुनाव (16.04फीसद)  से महज 0.76 फीसद अधिक ही और भाजपा से आठ फीसद से भी कम, महज 16.8 फीसद वोट मिले हैं, और उनके सहयोगी लालू व कांग्रेस को मिलाकर पूरे महागठबंधन का वोट प्रतिशत भी लोक सभा चुनाव के मुकाबले करीब पांच फीसद गिरा है। लोक सभा चुनाव में जहां लालू को 20.46 फीसद वोट मिले थे, वहीं अबकी 18.4 फीसद मिले हैं। चार से 27 सीटों पर पहुंचकर ‘बाल सुलभ’ बल्लियां उछल रही राहुल बाबा की कांग्रेस को भी लोक सभा के 8.56 फीसद के बजाय 6.7 फीसद वोट ही मिले हैं और कुल मिलाकर महागठबंधन को भी जहां लोक सभा चुनाव में 46.28 फीसद वोट मिले थे, वहीं इस बार महज 41.9 फीसद वोट ही मिले हैं।

वहीँ, 2010 के वोटों से तुलना करने पर भी नितीश की पार्टी जदयू सबसेे कमजोर प्रदर्शन कर पाई है, जबकि भाजपा का प्रदर्शन सबसे बेहतर रहा है। भाजपा को जहां 2010 में 16.49 फीसद वोट मिले थे, वहीं अबके करीब आठ फीसद की बढ़ोत्तरी के साथ 24.8 फीसद वोट मिले हैं, और वोटों में बढ़ोत्तरी वाली वह इकलौती पार्टी है। उसके उलट नितीश बाबू की जदयू 5.78 फीसद के सबसे बड़े घाटे में रही है। उसे तब 22.58 फीसद वोट मिले थे, और अबकी महज 16.8 फीसद। लालू का राजद भी सबसे बड़ा दल बनने के बावजूद पिछली बार के मुकाबले 0.44 फीसद की मामूली ही सही लेकिन वोट फीसद के मामले में नुकसान में रहा है। वहीं कांग्रेस को 1.67 फीसद का नुकसान हुआ है। उसे 2010 में 8.3 फीसद और अब 6.7 फीसद वोट मिले हैं, जबकि राम विलास पासवान की लोजपा का नुकसान 1.94 फीसद का है। लोजपा को 2010 में 6.74 फीसद वोट मिले थे और अब 2014 में 4.8 फीसद वोट मिले हैं। इस प्रकार कह सकते हैं बिहार में महागठबंधन की जीत और एनडीए की हार आंकड़ों की सच्चाई के लिहाज से किसी भी खेमे के लिए खुश होने का कारण नहीं है।

चुुनावी ‘जीत’ के लिए देश को ना हराएं

बिहार में हुई चुनावी जंग के बाद से देश में ना तो ‘बीफ’ की कोई बात सुनाई दी है, और ना ही ‘असहिष्णुता’ की। ‘अखलाक-कलबुर्गी’ तो सपने में भी नहीं आ रहे हैं, और पुरस्कार लौटाने की ‘आंधी’ भी पूरी तरह से रुक गई है। लिहाजा लग रहा है मानो देश अचानक फिर से वापस ‘सहिष्णु’ हो गया है। दाल की कीमतें भी जैसे अचानक नीचे लौट आई हैं, ‘ओआरओपी’ पर लौटने वाले पुरस्कार भी थम गए हैं। लगता है देश में सब कुछ ठीक-ठाक हो गया है, या कि ‘अच्छे दिन’ आ गए हैं !
चुनाव बीत गया है सो समय है कुछ पीछे जाने का, कि किस तरह सरकार की कथित असहिष्णुता के खिलाफ हमारे साहित्यकारों ने अपनी ओर से ‘अपनी तरह की क्या खूब सहिष्णुता’ दिखाते हुए पुरस्कार लौटाए। शायद इससे पूर्व वह साबित कर चुके थे कि एक दक्षिणपंथी दल की सरकार के प्रति वे एक-डेढ़ वर्ष ‘सहिष्णु’ रह चुके हैं, और इससे अधिक समय नहीं रह (झेल) सकते। आखिर वह कैसे उनके साथ कदम से कदम मिलाकर ‘लेफ्ट-राइट’ कर सकते हैं। दिल्ली में वह बड़ी चालाकी से ‘आम आदमी’ के साथ हो गए थे, और उसके (आम आदमी के) ‘हाथ’ को साथ लेकर दक्षिण पंथ को धूल चटा दी थी। बिहार में कोई ‘चारा’ नहीं था, इसलिए यह सब किया-कराया, और चुनाव जीत भी गए। लेकिन इस ‘जीत’ की कोशिश में देश को दुनिया के समक्ष कितना ‘हरा’ दिया, क्या वे सोचेंगे भी ?

भारत में जीत का फार्मूलाः ज्यादा गाली खाओ-जीत पाओ

जी हां, भारतीय राजनीति में जीत का यह फार्मूला अब से नहीं पिछले करीब ढाई दशक से लगातार मजबूत होता जा रहा है। बिहार चुनावों से यह फार्मूला राज्यों की ओर भी जाता और सही साबित होता नजर आ रहा है। याद कीजिए, 1998 का लोक सभा चुनाव, जब भाजपा अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व में दूसरी बार चुनाव लड़ रही थी, और विपक्ष सांप्रदायिकता के नाम पर बाजपेयी के खिलाफ जमकर विष वमन कर रहा था। नतीजा भाजपा व एनडीए को सत्ता प्राप्ति के रूप् में मिला। 2004 के चुनावों में जहां बाजपेयी आत्ममुग्धता के साथ ‘फील गुड’ और ‘इंडिया शाइनिंग’ के नारे के साथ ही सोनिया गांधी पर ‘विदेशी मूल’ का ठप्पा लगाकर चुनाव मैदान में गए थे, कांग्रेस की 13 वर्ष के बनवास के बाद सत्ता में वापसी हुई थी। सोनिया की जगह प्रधानमंत्री बने मनमोहन सिंह की सरकार 2009 के चुनाव में बहुत सुविधाजनक स्थिति में नहीं गई थी, लेकिन भाजपा की ओर से लाल कृष्ण आडवाणी और तब उनके सारथी की भूमिका में रहे नरेंद्र मोदी ने मनमोहन को ‘कमजोर प्रधानमंत्री’ कह कर जमकर हमला किया था। नतीजा मनमोहन को और मजबूत कर सत्ता में वापसी करा गया। इधर 2014 के चुनावों में हर किसी के निशाने पर नरेंद्र मोदी थे, और वह पहली सबसे बड़े बहुमत की गैर भाजपाई सरकार के करिश्मे के साथ दिल्ली की गद्दी पर आसीन हुए। दिल्ली विधानसभा के चुनावों में कुछ ऐसे ही निसाने पर केजरीवाल रहे थे, और उन्हें भी एक तरफा जीत मिली, और अब यही कहानी ‘जंगलराज पार्ट-टू’ के लिए कुप्रचारित लालू के बिहार विधान सभा में सबसे बड़े दल के रूप में उभरने के रूप में दिखाई दे रही है। यानी यदि आप यदि सत्ता में वापसी के लिए चुनाव में हैं तो आत्ममुग्धता में स्वयं ‘अपने मुंह मियां मिट्ठू’ बनते हुए शेखी न बघारें और हर स्थिति में दूसरे प्रत्याशी पर कमर से नीचे वार करते हुए हमला न बोलें, यह भारतीय चुनाव में जीत की गारंटी हो सकता है। 

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