हम बहुत से देवताओं व साधु-संतों की दिल से पूजा करते हैं, लेकिन बाद में लगता है कि उनकी कृपा नहीं मिली, ऐसा इसलिए कि हम उनके बारे में पूरा ज्ञान नहीं रखते और गलत तरह से उनकी पूजा करते हैं।

यदि हम उनके बारे में पूरा जान लें और सही तरह से उनकी पूजा करें तो निश्चित ही हम पर उनकी कृपा बरसेगी। इसलिए आज हम बाबा नीब करौरी के बारे में पूरी जानकारी आपको दे रहे हैं।

सबसे पहले बाबा जी का हम नाम ही गलत लेते हैं। उनका नाम बाबा नीब करौरी है, बाबा नीम करौली नहीं। नीम और करेले से बाबा का नाम जोड़ने वालों पर बाबा की कृपा बरसनी मुश्किल है।

बाबा जी का जन्म आगरा के निकट फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर में जमींदार घराने में मार्गशीर्ष माह की अष्टमी तिथि को हुआ था। उनका वास्तविक नाम लक्ष्मण दास शर्मा था।

बाबा जी विवाहित थे। 11 वर्ष की उम्र में ही विवाह हो गया था। लेकिन उन्होंने जल्दी ही घर छोड़ दिया और करीब 10 वर्षों तक घर से दूर रहे।

गृहस्थ जीवन के दौरान उनके दो बेटे और एक बेटी हुई। 1958 के आस-पास उन्होंने फिर से गृहस्थी के बाद घर त्याग कर दिया।

उन्हें मात्र 17 वर्ष की आयु में ज्ञान प्राप्त हो गया था। गुजरात के बवानिया मोरबी में बाबा जी ने साधना की और वे ‘तलैयां वाले बाबा’, ‘महाराज जी’, ‘चमत्कारी बाबा’ और ‘लक्ष्मण दास’, ‘हांड़ी वाला बाबा’, ‘तिकोनिया वाले बाबा’ व ‘भगवान जी’ आदि नामों से भी प्रसिद्ध हुए।

फर्रुखाबाद जिले के नीब करौरी गाँव में वह सर्वप्रथम साधू के रूप में दिखाई दिए। यहां उन्हें बिना टिकट उतारने के कारण ट्रेन नहीं चल पाई, इसलिए उनका नाम ‘बाबा नीब करौरी’ पड़ा।

बाबा जी की हनुमान जी के प्रति अगाध आस्था थी। बाबा के भक्त उनमें भी हनुमान जी की ही छवि देखते हैं, और उन्हें हनुमान का अवतार मानते हैं।

नीब करौरी बाबा का चमत्कारी मंत्र: ‘’मै हूँ बुद्धि मलीन अति श्रद्धा भक्ति विहीन। करू विनय कछु आपकी, होउ सब ही विधि दिन। कृपासिंधु गुरुदेव प्रभु, करि लीजे स्वीकार।’’ 

बाबा सर्वप्रथम 1942 में कैंची आए। यहां तक सोमवारी बाबा रहते थे। उन्होंने 20 वर्ष बाद यहां लौटने की बात कही थी। वादे के अनुसार 1962 में वह रानीखेत से नैनीताल लौटते समय पुनः कैंची में रुके और यहां अपने पहले आश्रम की स्थापना की।

15 जून 1973 को यहां विंध्यवासिनी माता के मंदिर की स्थापना हुई। और ठीक एक साल बाद मां वैष्णों देवी की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई। इस कारण ही 15 जून को हर वर्ष कैंची धाम मंदिर का स्थापना दिवस मनाया जा रहा है।

अपने जीवन के आखिरी पड़ाव पर बाबा जी 9 सितम्बर 1973 को कैंची से आगरा के लिए लौटे थे, जिसके दो दिन बाद ही समय बाद इसी वर्ष अनन्त चतुर्दशी के दिन 11 सितम्बर को वृन्दावन में उन्होंने महाप्रयाण किया। उनकी समाधि वृंदावन में ही है।

बाबा जी की मृत्यु के उपरांत बाबा जी के मंदिर का निर्माण कार्य 1974 में शुरू हुआ। इस मंदिर में 15 जून 1976 को महाराज जी की मूर्ति की स्थापना और अभिषेक हुआ। 15 जून को ही विभिन्न वर्षों में   हनुमानजी और अन्य मूर्तियों की मूर्तियों की प्राण-प्रतीष्ठ की गई ।

बाबा जी के बारे में कहा जाता है कि वह अपनी दैवीय ऊर्जा से अचानक ही कहीं भी भक्तों के बीच प्रकट हो जाते थे और फिर अचानक ही लुप्त भी हो जाते थे। आज भी इसी तरह वह कई बार अपने भक्तों को दर्शन देते हैं और कृपा बरसाते हैं।

बाबा जी ने अपने जीवनकाल में 22 आश्रमों और करीब 108 हनुमान मंदिरों का निर्माण कराया। वह अपने आश्रम में हर व्यक्ति को सबसे पहले भोजन करने के लिए कहते थे।

कहते हैं कि जब किसी पर बाबा अपनी कृपा बरसाने वाले होते हैं तो उसे स्वप्न में बंदर यानी हनुमान जी के रूप के दर्शन होते हैं और कैंची धाम आने की तीव्र इच्छा मन में जागृत होती है।