लोक सभा चुनाव की तैयारियों में कहां भाजपा, कहां कांग्रेस और दूसरे दल, एक विश्लेषण..
डॉ. नवीन जोशी नवीन समाचार, नैनीताल, 6 मई 2023। अगले वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए एक वर्ष का ही वक्त बचा है, और इससे पहले राज्य में निकाय चुनाव भी होने हैं। ऐसे में राजनीतिक पार्टियां संगठन स्तर पर खुद को मजबूत करने की कवायद में जुट गई हैं। विभिन्न राजनीतिक दलों की तैयारियों पर हमने एक खास रिपोर्ट तैयार की है। आइए देखते हैं विभिन्न राजनीतिक दल किस तरह इन चुनावों की तैयारी कर रहे हैं।
सबसे पहले बात, राज्य व देश की सत्तासीन भाजपा की। भाजपा हर चुनाव की तरह आगामी लोकसभा और निकाय चुनाव को लेकर भाजपा भी कोई भी कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है। इसलिए अभी से ही भाजपा बूथ स्तर से लेकर शक्ति केंद्रों तक कार्यकर्ताओं को एकजुट करने उनकी फौज खड़ी करने में जुट गई है। वहीं कांग्रेस अभी भी जहां एक ओर आपस के झगड़े निपटाने में लगी है, वहीं महंगाई व बेरोजगारी के अलावा कालाधन, केद्र सरकार के हर व्यक्ति को कथित तौर पर 5 लाख रुपए देने के वादे जैसे कई चुनावों में पिट चुके मुद्दों पर ही अटकी नजर आ रही है।
साथ ही हर बार की तरह उसे यह भी उम्मीद है कि लंबे समय तक सत्तारूढ़ होने से भाजपा के प्रति जनता में नाराजगी बढ़ेगी और उसका लाभ कांग्रेस को बैठे-बिठाए मिल जाएगा। इसके अलावा वह प्रदेश सरकार के एक मंत्री द्वारा सड़क पर एक व्यक्ति की पिटाई करने और दिल्ली में धरने पर बैठे खिलाड़ियों के प्रदर्शन जैसे बैठे-बिठाए मिलने वाले मुद्दों को लपकने और इनके जरिए सरकार के प्रति जनता को एक तरह से भड़काने-उद्वेलित करने की रणनीति पर भी चलती नजर आ रही है।
लेकिन वह अपनी ओर से कोई ठोस, बेहतर व वैकल्पिक राजनीति का खाका जनता के सामने प्रस्तुत नहीं कर पा रही है। उसके पास जनता से कहने के लिए कुछ नया भी नजर नहीं आ रहा है। इन मुद्दों पर भी पूरी गंभीरता के साथ लंबी लड़ाई लड़ने की अक्षमता के कारण वह जनता के बीच लगातार अपना विश्वास खो रही है, और पहले तो वह सरकार के कार्यों की सही आलोचना के मुद्दों को उठा ही नहीं पाती, और यदा-कदा जब उठाती भी है, तो उन पर जनता का विश्वास प्राप्त नहीं कर पाती है। उसके पास कार्यकर्ताओं और समर्थकों की अब वैसी फौज भी नहीं रही जो उसकी बातों को जनता के मन में बैठा सके। ऐसे में जनता ने एक तरह से कांग्रेस को गंभीरता से लेना बंद या कम कर दिया है।
कमोबेश ठीक ऐसा और इससे भी बुरा हाल राज्य की अवधारणा से जुड़े और सर्वाधिक संभावनाओं वाले उत्तराखंड क्रांति दल का तथा नयी राजनीति का राग अलापने के साथ पुराने राजनीतिक दलों से भी गए-गुजरे स्तर की राजनीति करने वाली आम आदमी पार्टी का भी है। इन दलों के पास भी लगातार अपने मुद्दों पर लड़ने का साहस तो दूर प्रयास भी नहीं दिखता है। उन्हें बस लगता है कि वह चुनाव के दौरान मीडिया में सक्रिय होकर अपनी मेहनत से नहीं, बल्कि परिस्थितिजन्य कारणों से लाभ प्राप्त कर कुछ सीटें प्राप्त कर लेंगे और राजनीति में उपस्थित और प्रासंगिक बने रहेंगे।
इसके इतर भाजपा बूथों और शक्ति केंद्रों पर पन्ना प्रमुख और बूथ टोलियों का भी गठन कर चुकी है। जिनकी संख्या 4 लाख से अधिक है। चुनाव से पहले भाजपा ने जो रणनीति बनाई है उसके तहत पार्टी कार्यकर्ता राज्य के 11 हजार 676 बूथों पर अपने-अपने क्षेत्र में पांच-पांच लोगों को जोड़ने का काम करेंगे। पार्टी ने लोकसभा चुनाव की जंग को जीतने के लिए करीब 2 लाख 90 हजार पन्ना प्रमुख बना लिए हैं। पार्टी ने बूथ पर भी अपने टोलियों का गठन कर लिया है। यह करीब 1 लाख 29 लाख कार्यकर्ता लोकसभा चुनाव के दौरान बूथ प्रबंधन संभालते नजर आएंगे।
भाजपा ने बूथ टोलियों के हर सदस्य को पांच-पांच लोगों को भी अपने साथ जोड़ने को कहा है। अनुमान के अनुसार चुनाव से पहले भाजपा के पास 20 लाख से ज्यादा ऐसे समर्पित कार्यकर्ताओं की फौज तैयार होने की संभावना है, जो चुनाव में पार्टी संगठन को मजबूती प्रदान करने के साथ ही जनता को पार्टी के प्रति लामबंद करने का काम करेंगी। यानी राज्य की जनता में ही हर छठा-सातवां व्यक्ति भाजपा से जुड़ा होगा। यह फौज कहीं न कही विपक्षी दलों को चुनाव मैदान में खड़े होने लायक साहस जुटाने से भी झिझका सकती है।
इसके लिए पार्टी हर बूथ स्तर पर सरकार की योजनाओं से लाभ प्राप्त करने वाले आम लोगों को सम्मानित करने का एक कार्यक्रम शुरू कर रही है। इससे गैर भाजपाई विचारधारा के सरकार से लाभ प्राप्त करने वाले लोग भाजपा को भले वोट न देने के अपने पूर्वाग्रह पर अडिग रहने का प्रयास करें लेकिन मनोवैज्ञानिक तौर पर भाजपा सरकार के खिलाफ समाज में खुल कर नहीं बोल पाएंगे। इससे जनता में सरकार विरोधी माहौल नहीं बन पाएगा।
वहीं मतदाता सूची के हर पन्ने के पन्ना प्रमुख कुछ भी नही तो अपना व अपने परिवार का वोट तो भाजपा को देने को मजबूर रहेंगे। इसके अलावा पार्टी की योजना अपनी कमजोरी वाले बूथों पर खास तौर पर ध्यान देने की भी है। इसके लिए सांसद से लेकर बूथ, शक्ति केंद्र व पन्ना प्रमुख स्तर के कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी सोंपी जा रही है। इससे साफ है कि अन्य विरोधी दल भाजपा के सामने कितना टिक पाएंगे। (डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।
(Where is the BJP, where is the Congress and other parties in the preparations for the Lok Sabha elections, an analysis, lok sabha chunaav kee taiyaariyon mein kahaan bhaajapa, kahaan kaangres aur doosare dal, ek vishleshan)