April 27, 2024

Aitihasik Kahaniyan : देश का नाम केवल ‘भारत’ रखने के पीछे 2 तरह से उत्तराखंड…

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Aitihasik Kahaniyan

-जानें कैसे ? साथ ही जानें किनके नाम से और क्यों पड़ा देश का नाम भारत ? क्या थी उनमें ऐसी खाशियत ? और क्या वाकई मोदी सरकार ‘इंडिया’ नाम हटायेगी ?

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 6 सितंबर 2023 (Aitihasik Kahaniyan)। देश की राष्ट्रªपति द्रोपदी मुर्मू ने जी-20 के नई दिल्ली में आयोजित हो रहे वैश्विक सम्मेलन के लिए दिये गये आमंत्रणों में परंपरा से हटकर ‘प्रेजीडेंट ऑफ इंडिया’ की जगह ‘प्रेजीडेंट ऑफ भारत’ लिखा है। 

Aitihasik Kahaniyan, Bharat Vs India Name Change Reaction; Jairam Ramesh | Narendra Modi  Government | AAP ने कहा- हम I.N.D.I.A को भारत करने पर विचार करेंगे, BJP देश  का नया नाम सोचे - Dainik Bhaskarइसके बाद चर्चा है कि केंद्र की मोदी सरकार संसद में देश का नाम भारतीय संविधान में उल्लेखित ‘भारत दैट इज इंडिया’ या अब तक अंग्रेजी भाषा में प्रयुक्त ‘रिपब्लिक ऑफ इंडिया’ की जगह केवल ‘भारत’ रखने का प्रस्ताव ला सकती है। यदि देश का नाम केवल ‘भारत’ रखा जाता है तो यह देश के भाल व देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड के लिए दो संदर्भों से सुखद हो सकता है।

पहला, उत्तराखंड के ही एक सांसद, राज्य सभा सांसद नरेश बंसल ने राज्यसभा के पिछले सत्र में देश का नाम ‘इंडिया’ से बदलकर ‘भारत’ रखने का प्रस्ताव रखा था। और दूसरे जिन चक्रवर्ती सम्राट भरत के नाम से देश का नाम भारत पड़ा, वह उत्तराखंड में ही पले-बढ़े थे।

राज्यसभा के पिछले सत्र में उत्तराखंड के राज्यसभा सांसद नरेश बंसल ने राष्ट्रपति के सामने प्रस्ताव रखा था कि किसी भी देश के दो नाम नहीं होते, लेकिन ‘भारत’ के दो नाम होने से उन्हें आपत्ति है। उन्होंने कहा था कि तमाम कार्यक्रम में पत्राचार में जहां-जहां पर भी ‘इंडिया’ शब्द लिखा जाता है। उसे ‘भारत’ में बदला जाये। और संविधान में संशोधन करके ‘इंडिया’ का नाम बदलकर ‘भारत’ रखा जाये। भाजपा के कई सांसदों ने उनके इस प्रस्ताव का राज्यसभा में समर्थन किया था।

(Aitihasik Kahaniyan) राजा भरत की कहानी:

(Aitihasik Kahaniyan) द्वापर युग में कुरु वंश के कौरव एवं पांडवों के बीच ‘भारत’ के नाम से जुड़ा महाभारत का युद्ध हुआ था। इस कुरु वंश का संस्थापक महाराज पुरु को माना जाता है। इसी वंश में एक राजा विश्वामित्र हुए, जिन्हें कौशिक भी कहा जाता था। ऋषि-मुनियों की शक्ति को देखते हुए, उन्हें किसी वजह से ऐसा लगा कि राजाओं की शक्ति ऋषियों के मुकाबले बहुत कम होती है। इसलिए वह राजा के रूप में जन्म लेने के बावजूद ऋषि बनना चाहते थे। उन्होंने वन में जाकर घोर तपस्या शुरू कर दी।

उनके घोर तप को देखते हुए, स्वर्ग के राजा इंद्र को लगा कि अगर विश्वामित्र की तपस्या पूर्ण हो गई तो उनकी श्रेष्ठता खतरे में पड़ जाएगी। इसलिए उन्होंने स्वर्ग से अपनी एक अप्सरा मेनका को उन्हें रिझाकर उनका तप व साधना को भंग करने के लिए भेजा। मेनका ने विश्वामित्र का तप भंग कर दिया। विश्वामित्र से मेनका ने एक बेटी को जन्म दिया।

तप भंग होने पर विश्वामित्र को दुःख हुआ कि उन्होंने अपनी साधना से जो कुछ पाया था, उसे वह अपना ध्यान भंग होने के कारण खो चुके हैं। इसलिए वह कुपित होकर मां और बेटी दोनों को वहीं छोड़कर चले गए। उधर मेनका भी स्वर्ग की एक अप्सरा होने के कारण पृथ्वी पर अधिक समय तक नहीं रह सकती थी। इसलिए वह अपनी नन्ही बच्ची को मालिनी नदी के किनारे छोड़कर स्वर्ग को चली गई।

(Aitihasik Kahaniyan) नन्ही बच्ची को मालिनी नदी के पास कुछ शकुन प्रजाति के पक्षियों ने दूसरे जीवों से बचाकर रखा। एक दिन, कण्व ऋषि वहां से गुजरे तो उन्होंने इस विचित्र स्थिति को देखा। वह बच्ची को उठाकर अपने आश्रम ले आए और उसका पालन-पोषण किया। शकुन पक्षियों द्वारा बचाए जाने के कारण, उन्होंने उस बच्ची का नाम शकुंतला रखा।

उल्लेखनीय है कि महर्षि कण्व का आश्रम उत्तराखण्ड में कोटद्वार से 14 किलोमीटर की दूरी पर माना जाता है। यहां अब भी बहने वाली नदी को मालिनी नदी ही कहा जाता है। महाकवि कालीदास के ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम’ में कण्वाश्रम का परिचय इस प्रकार दिया गया है: ‘एस कण्व खलु कुलाधिपति आश्रम’। इसके अलावा ‘स्कन्द पुराण’ के केदारखंड के 57वें अध्याय में भी इस पुण्य क्षेत्र का उल्लेख इस प्रकार से किया गया हैः ‘कण्वाश्रम समारम्य याव नंदा गिरी भवेत। यावत क्षेत्रम परम पुण्य मुक्ति प्रदायक।।’

(Aitihasik Kahaniyan) यहीं कण्वाश्रम में शकुंतला बड़ी होकर एक खूबसूरत युवती बनी। एक दिन राजा दुष्यंत ने एक लड़ाई से वापस लौटते समय इस क्षेत्र में एक हिरण को तीर मारा, लेकिन हिरण भाग गया। दुष्यंत ने उसका पीछा किया तो देखा कि वह शकुंतला की गोद में था। वह शकुंतला का पालतू हिरण था और वह बहुत प्यार से उसकी मरहम पट्टी कर रही थी। यह देखकर दुष्यंत शकुंतला के प्रेम में पड़ गए। वह कुछ समय तक वह यहीं रहे और कण्व ऋषि की अनुमति से उन्होंने शकुंतला से विवाह कर लिया।

कुछ समय बाद दुष्यंत शकुंतला को अपनी यादगार निशानी और विवाह के चिह्न के रूप में अपनी शाही अंगूठी पहनाकर कुछ दिनों बाद लौटने का वादा कर अपने राज्य को लौट गए। दुष्यंत के जाने के बाद शकुंतला लगातार उनके सपने में खोई रहने लगी।

(Aitihasik Kahaniyan) एक दिन दुर्वासा ऋषि कण्व के आश्रम आए। वह बहुत क्रोधी व्यक्ति थे। उन्होंने शकुंतला को बुलाया मगर शकुंतला ने सुना नहीं। उसकी आंखें खुली थीं, मगर वह कुछ देख नहीं पा रही थी। दुर्वासा ने इसे अपना अपमान समझा और उसे श्राप दिया, ‘अभी तुम जिसके ख्यालों में खोई हो, वह तुम्हें सदा के लिए भूल जायेगा।’ अचानक शकुंतला को होश आया तो वह रोने लगी। अपनी भूल की क्षमा मांगने लगी।

आश्रम के लोगों ने भी दुर्वासा को पूरी बात बताते हुए उसे माफ करने का अनुरोध किया। इस पर दुर्वासा ने अपने श्राप का प्रभाव कम करते हुए कहा कि वह तुम्हें भूल गया है मगर जैसे ही तुम उसे कोई ऐसी चीज दिखाओगी, जो उसे तुम्हारी याद दिलाये, तो उसे सब कुछ याद आ जाएगा।’

(Aitihasik Kahaniyan) इसके बाद शकुंतला को भूल जाने के कारण दुष्यंत लौटकर नहीं आये। इस बीच शकुंतला को एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम भरत रखा गया। उसी के नाम पर हमारे देश का नाम भारत पड़ा क्योंकि इस सम्राट में बहुत सारे गुण थे। वह एक आदर्श इंसान था।

भरत जंगल में ही बड़े हुए। एक दिन कण्व ऋषि ने शकुंतला से कहा, ‘तुम्हें जाकर राजा दुष्यंत को याद दिलाना चाहिए कि तुम उसकी पत्नी हो और तुम्हारा एक बेटा है। यह अच्छी बात नहीं है कि एक राजा का पुत्र अपने पिता के बिना बड़ा हो रहा है।’ शकुंतला अपने बेटे को लेकर महल के लिए चल पड़ी। इस बीच उन्हें नौका से एक नदी पार करने के दौरान गलती से उसकी अंगुली से राजा दुष्यंत की अंगूठी नदी में गिर गई। उसे इस बात का पता भी नहीं चला।

(Aitihasik Kahaniyan) वह राजा दुष्यंत के दरबार में पहुंची, लेकिन दुष्यंत श्राप के कारण उसे पहचान नहीं सके। उसने उन्हें उनकी यादगार अंगूठी दिखानी चाही, लेकिन वह भी उसे नहीं मिली। ऐसे में राजा दुष्यंत ने उसे महल से बाहर निकाल दिया गया। उसे निराश होकर वापस लौटना पड़ा। अब वह महर्षि कण्व आश्रम के पीछे और भी घने जंगल में चली गई और दुःखी होकर अपने बेटे के साथ वीराने में रहने लगी। भरत जंगली जानवरों के साथ बड़ा हुआ। वह बहुत बहादुर और शक्तिशाली था।

(Aitihasik Kahaniyan) एक दिन दुष्यंत इस जंगल में शिकार खेलने आए। उन्होंने एक छोटे बच्चे को बड़े शेरों के साथ खेलते व हाथियों पर चढ़ते देखा। उन्होंने बच्चे को देखकर पूछा, ‘तुम कौन हो? क्या तुम किसी तरह के महामानव या देवता हो? बच्चा बोला, ‘नहीं, मैं भरत हूं, दुष्यंत का पुत्र।’ राजा बोला, ‘मैं ही दुष्यंत हूं। फिर मैं भला तुम्हें कैसे नहीं जानता?’ फिर कण्व ऋषि आए और उन्हें पूरी कहानी बताई। आखिरकार दुष्यंत को सब कुछ याद आ गया और वह शकुंतला तथा भरत को लेकर महल लौट गए।

(Aitihasik Kahaniyan) दुष्यंत के बाद भरत राजा बने। उनके पांच बेटे थे। जब वे बड़े हुए, तो भरत ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर उन सब पर विचार करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि वे अच्छे राजा नहीं बन सकते। पहली बार किसी राजा ने ऐसी बात कही थी कि सिर्फ राजा का बेटा होना-राजा बनने के लिए काफी नहीं है। भरत अपने मानसिक संतुलन, निष्पक्षता और सब को साथ लेकर चलने, सबको समाहित करने की भावना के लिए भी प्रसिद्ध थे।

उन्होंने तय किया कि सिर्फ राजा के घर पैदा होने से कोई राजा बनने के योग्य नहीं हो जाता। उनकी इस बात को बहुत महत्व दिया गया, क्योंकि पहली बार दुनिया में राजा का चुनाव जन्म के आधार पर नहीं गुणों के आधार पर हो रहा था। यह भी एक वजह है कि उनके नाम पर ही हमारे देश का नाम रखा गया। उन्हें लोकतंत्र का जनक भी कहा जा सकता है। 

आज भी भारत में राजा का बेटा ही राजा न बनने का जो मंत्र दिया जाता है, और जो लोकतंत्र का आधार भी है, उसकी परंपरा सर्वप्रथम राजा भरत ने ही शुरू की थी, इसलिए देश उन्हें अपना आदर्श मानता है और इतनी सदियों के बाद भी उनके नाम से देश का नाम सर्वमान्य तरीके से भारत कहा जाता है।

क्या मोदी सरकार इंडिया नाम हटाकर केवल भारत रखेगी

अब प्रश्न यह उठ रहा है कि क्या मोदी सरकार इंडिया नाम हटाकर केवल भारत रखेगी ? इस प्रश्न का उत्तर तमाम संभावनाओं के बावजूद अभी स्पष्ट तौर पर नहीं दिया जा सकता है। देश के नाम से इंडिया हटाने से जहां अनेकों संस्थानों-स्मारकों व योजनाओं के नाम से ‘इंडिया’ शब्द को हटाना पड़ेगा,

वहीं मीडियो रिपोर्टों से एक तथ्य यह भी सामने आ रहा है कि भारत के यह नाम छोड़ने के बाद भारत की ही कोख से जन्मा पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र संघ में इंडिया नाम की मांग कर सकता है। क्योंकि वह पाकिस्तान में बहने वाली ‘इंडस’ भी कही जाने वाली सिंधु नदी से जोड़कर ‘इंडिया’ शब्द पर पहले से दावा करता रहा है।

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यह भी पढ़ें (Aitihasik Kahaniyan) : महाभारत की अन्जानी कहानी : दुर्योधन की पत्नी भानुमती ने किया था अर्जुन से विवाह !

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 2 मई 2022 (Aitihasik Kahaniyan)। जी, हां, दुर्योधन की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी भानुमती ने अर्जुन से विवाह किया था। ऐसा कई कथाओं में कहा जाता है। इसके पीछे कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध में कौरव कुल का नाश हो जाने के बाद नवसृजन के लिए भानुमती ने अर्जुन से विवाह किया था।

(Aitihasik Kahaniyan) यह पहली बार नहीं था, जब किसी महिला ने अपने देवर से विवाह किया हो। इससे पूर्व त्रेता युग में रावण की पत्नी मंदोदरी ने भी रावण की मृत्यु हो जाने के बाद रावण के भाई विभीषण से विवाह किया था। कहा जाता है कि राम-रावण के युद्ध में भी रावण के सभी 100 पुत्रों की मृत्यु हो गई थी।

(Aitihasik Kahaniyan) वहीं द्वापर युग में भी महर्षि वेद व्यास ने भीष्म द्वारा विवाह न करने की प्रतिज्ञा लेने एवं अपने अन्य भाइयों चित्रांगद की युद्ध में एवं विचित्रवीर्य की पुत्र उत्पन्न होने से पूर्व ही मृत्यु हो जाने के कारण उनकी पत्नियां-अंबिका व अंबालिका से ‘नियोग’ कर धृतराष्ट्र एवं पांडु को उत्पन्न किया था। बाद में वेदव्यास ने ही धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी का गर्भ 101 हिस्सों में चूर-चूर हो जाने के कारण उससे 100 कौरव पुत्र व एक पुत्री दुःशला को जन्म दिया था।

(Aitihasik Kahaniyan) अलबत्ता यह साफ नहीं है कि अर्जुन ने भानुमती से विवाह किया था, या नियोग। क्योंकि तब नियोग की एक व्यवस्था थी जिसके तहत कोई स्त्री अपने पति से पुत्र न होने या उसकी मृत्यु हो जाने की स्थिति में पवित्र मन से किसी पुरुष से नियोग यानी केवल पुत्र उत्पन्न करने के लिए केवल एक बार संभोग करती थी। ‘नियोग’ के बारे में और अधिक पढ़ सकते हैं। इसलिए हो सकता है कि भानुमती का एकमात्र पुत्र लक्ष्मण चूंकि महाभारत के युद्ध में अभिमन्यु के हाथों मारा जा चुका था, इसलिए उसने दुर्योधन का वंश आगे बढ़ाने को अर्जुन से नियोग किया हो।

(Aitihasik Kahaniyan) गौरतलब है कि दुर्योधन की पत्नी भानुमती के नाम से ही ‘कहां का ईट-कहां को रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा’ नाम की एक कहावत कही जाती है। शायद इसलिए कि उसने अर्जुन से विवाह किया था। और शायद इसलिए भी दुर्योधन से स्वयंवर में उसका वरण, जबर्दस्ती उसके हाथों से अपने गले में वरमाला डलवाकर की थी। महाभारत युद्ध के बाद में उसकी एकमात्र बची लक्ष्मणा का विवाह भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब ने जबर्दस्ती उसका अपहरण किया था।

(Aitihasik Kahaniyan) हालांकि महाकवि भास द्वारा महाभारत पर आधारित लिखित नाटक ‘उरुभंगम’ के अनुसार दुर्योधन की दो और पत्नियां मालवी व पौरवी भी थीं। इनमें से मालवी का दुर्जय नाम का एक पुत्र भी था। नाटक के एक महत्वपूर्ण दृश्य में दुर्योधन अपनी टूटी हुई उरु यानी जंघा पर दुर्जय को न बैठा पाने पर दुःख जताता है, और उसे दुर्योधन की मृत्यु के बाद हस्तिनापुर का अगला राजा बनाने की बात होती है। इसका अर्थ यह है कि दुर्योधन का एक पुत्र दुर्जय महाभारत के युद्ध के बाद भी जीवित रहा था। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

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