आज का दिन बहुत खास, माता लक्ष्मी का अवतरण दिवस, अक्षय तृतीया व परशुराम जयंती
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 10 मई 2023। (Akshyay Tritiya-Parashuram Jayanti ko kya karen) आज शुक्रवार का दिन बहुत खास है। आज माता लक्ष्मी के अवतरण दिवस के रूप में मनाई जाने वाली अक्षय तृतीया है। साथ ही भगवान विष्णु के अवतार भगवान परशुराम की जयंती है। आइए जानते हैं, आज के दिन का महत्व, व खासकर अक्षय तृतीया के मौके पर आज खरीददारी के लिए क्या है शुभ मुहूर्त। यह भी पढ़ें : बाबा नीब करौरी, जिन्होंने नैनीताल की फल पट्टी के सेब को चख कर बना दिया दुनिया का ‘एप्पल’, बाबा व उनके कैंची धाम के बारे में पूरी जानकारी
अक्षय तृतीया या आखा तीज वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनायी जाती है। यह पर्व इस बार 10 मई, शुक्रवार को है। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार इस दिन जो भी शुभ कार्य किये जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। इसी कारण इसे अक्षय तृतीया कहा जाता है। वैसे तो सभी बारह महीनों की शुक्ल पक्षीय तृतीया शुभ होती है, किन्तु वैशाख माह की तिथि स्वयंसिद्ध मुहूर्तो में मानी गई है। यह भी पढ़ें : विराट-अनुष्का सहित हजारों श्रद्धालुओं ने किए बाबा नीब करौली के दर्शन
त्रेता और सतयुग का आरम्भ भी इसी तिथि को हुआ था, इसलिए इसे कृतयुगादि तृतीया भी कहते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार इस दिन स्नान, दान, जप, होम, स्वाध्याय, तर्पण आदि जो भी कर्म किए जाते हैं, वे सब अक्षय हो जाते हैं। यह तिथि सम्पूर्ण पापों का नाश करने वाली और सभी सुखों को प्रदान करने वाली मानी गई है। आइए जानते हैं कि अक्षय तृतीया पर कौन से कार्य करने से जीवन में खुशहाली आती है।
आज क्या करें खरीददारी (Akshyay Tritiya-Parashuram Jayanti ko kya karen)
अक्षय तृतीया पर धन की देवी मां लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन स्वर्ण यानी की खरीदारी करने की भी परंपरा है। पौराणिक मान्यता है कि ऐसा करने से घर में धन, वैभव व समृद्धि बढ़ती है और जातक के जीवन में किसी चीज की कमी नहीं रहती। इस दिन किए जाने वाले मांगलिक कार्य से कई गुना शुभ फल मिलता है। यह भी पढ़ें : बाबा नीब करौरी की कृपा से महिला विश्व चैंपियनशिप में जड़ा ऐतिहासिक ‘गोल्डन पंच’
इस बार की अक्षय तृतीया बेहद खास है। इस दिन छह शुभ योग का निर्माण हो रहा है। इनमें त्रिपुष्कर योग, आयुष्मान योग, सौभाग्य योग, रवि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, अमृत सिद्धि योग शामिल हैं। इन शुभ योग में कुछ कार्य करने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। यह भी पढ़ें : बाबा नीब करौरी ने बताये उन संकेतों को जानें, जिनसे आपके जीवन में आने वाले हैं ‘अच्छे दिन’
शुभ कार्य आरंभ (Akshyay Tritiya-Parashuram Jayanti ko kya karen)
बिना पंचांग देखे भी इस दिन कोई भी शुभ मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, घर, भूखंड या वाहन आदि की खरीदारी से सम्बंधित कार्य किए जा सकते हैं। व्यापार आरम्भ, गृह प्रवेश, वैवाहिक कार्य, सकाम अनुष्ठान, दान-पुण्य, पूजा-पाठ अक्षय रहता है अर्थात वह कभी नष्ट नहीं होता।
सोना खरीदना है शुभ (Akshyay Tritiya-Parashuram Jayanti ko kya karen)
धर्मग्रंथों के अनुसार स्वर्ण में देवी लक्ष्मी का वास माना गया है, इसलिए इस दिन सोने-चांदी के आभूषण खरीदना काफी शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इससे पूरे साल घर में सुख और समृद्धि आती है।
इस तरह करें पूजा (Akshyay Tritiya-Parashuram Jayanti ko kya karen)
इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा करने से इनकी कृपा बरसती है। समृद्धि और जीवन धन-धान्य से भरपूर होता है और इनकी पूजा से मनुष्य को संतान सुख मिलता है।
अक्षय तृतीया के दिन सुबह स्नान करने के बाद घर की सफाई करें। तत्पश्चात स्वच्छ स्थान पर भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें। उनको पहले गंगाजल मिले जल से और फिर दूध, दही, घी, शहद व चीनी से बने पंचामृत से स्नान कराएं। अब भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी को चंदन व इत्र लगाएं। तुलसी दल और पुष्प अर्पित करें। गुड़, चने के सत्तू और मिश्री का भोग लगाएं। अंत में भगवान विष्णु की आरती करें। यह भी पढ़ें : नाम के पहले अक्षर से जानें किसी भी व्यक्ति के बारे में सब कुछ
अक्षय तृतीया का महत्व, आज क्या कर सकते हैं (Akshyay Tritiya-Parashuram Jayanti ko kya karen)
अक्षय तृतीया का सर्वसिद्ध मुहूर्त के रूप में भी विशेष महत्त्व है। मान्यता है कि इस दिन बिना कोई पंचांग देखे कोई भी शुभ व मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, भूखण्ड, वाहन आदि की खरीददारी से सम्बन्धित कार्य किए जा सकते हैं। (Akshyay Tritiya-Parashuram Jayanti ko kya karen)
नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था, समाज आदि की स्थापना या उदघाटन का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है। पुराणों में लिखा है कि इस दिन पितरों को किया गया तर्पण तथा पिन्डदान अथवा किसी और प्रकार का दान, अक्षय फल प्रदान करता है। काम की बातें : अपने नाम में ऐसे मामूली सा बदलाव कर लाएं अपने भाग्य में चमत्कारिक बदलाव…
इस दिन गंगा स्नान करने से तथा भगवत पूजन से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यहाँ तक कि इस दिन किया गया जप, तप, हवन, स्वाध्याय और दान भी अक्षय हो जाता है। यह तिथि यदि सोमवार तथा रोहिणी नक्षत्र के दिन आए तो इस दिन किए गए दान, जप-तप का फल बहुत अधिक बढ़ जाता हैं। इसके अतिरिक्त यदि यह तृतीया मध्याह्न से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो बहुत ही श्रेष्ठ मानी जाती है। (Akshyay Tritiya-Parashuram Jayanti ko kya karen)
यह भी माना जाता है कि आज के दिन मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करे तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उसे सदगुण प्रदान करते हैं, अतः आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सदगुणों का वरदान माँगने की परम्परा भी है। यह भी पढ़ें : भगवान राम की नगरी के समीप माता सीता का वन ‘सीतावनी’
पेड़ लगाएं (Akshyay Tritiya-Parashuram Jayanti ko kya karen)
इस दिन पीपल, आम, पाकड़, गूलर, बरगद, आंवला, बेल, जामुन व अन्य फलदार वृक्ष लगाने से प्राणी को सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं। जिस प्रकार अक्षय तृतीया को लगाए गए वृक्ष हरे-भरे होकर पल्लवित-पुष्पित होते हैं उसी प्रकार इस दिन वृक्षारोपण करने वाला व्यक्ति भी प्रगति पथ की ओर अग्रसर होता है।
दान करें (Akshyay Tritiya-Parashuram Jayanti ko kya karen)
अक्षय तृतीया के दिन जल से भरे घड़े, कुल्हड़, सकोरे, पंखे, पादुका, चटाई, छाता, चावल, नमक, घी, ख़रबूज़ा, ककड़ी, मिश्री, सत्तू आदि गर्मी में लाभकारी वस्तुओं का दान महापुण्यकारी माना गया है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन दान देने वाला प्राणी सूर्यलोक को जाता है। जो इस तिथि को उपवास करता है वह सुख-शांति, ऐश्वर्य और श्री से संपन्न हो जाता है।
ये न करें (Akshyay Tritiya-Parashuram Jayanti ko kya karen)
अक्षय तृतीया वर्ष के श्रेष्ठतम मुहूर्तों में से एक है। इस दिन किया गया कोई भी शुभ-अशुभ कार्य निष्फल नहीं होता। इसलिए इस दिन कोई भी अप्रिय कार्य नहीं करना चाहिए यदि आप ऐसा करते हैं तो वह उसी रूप में उम्र भर आपका पीछा करता रहेगा। यदि इस दिन महिलाएं उपवास करती हैं तो मान्यता के अनुसार उन्हें यह व्रत करते हुए नमक का पूरी तरह से त्याग करना चाहिए।
हिन्दू धर्म में महत्त्व (Akshyay Tritiya-Parashuram Jayanti ko kya karen)
अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर समुद्र व गंगा स्नान करके और शान्त चित्त होकर, भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करने का प्रावधान है। नैवेद्य में जौ व गेहूँ का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पित किया जाता है। तत्पश्चात फल, फूल, पात्र, तथा वस्त्र आदि दान करके ब्राह्मणों को दक्षिणा दी जाती है। ब्राह्मण को भोजन करवाना कल्याणकारी समझा जाता है। मान्यता है कि इस दिन सत्तू अवश्य खाना चाहिए तथा नए वस्त्र और आभूषण पहनने चाहिए। (Akshyay Tritiya-Parashuram Jayanti ko kya karen)
गौ, भूमि, स्वर्ण पात्र इत्यादि का दान भी इस दिन किया जाता है। यह तिथि वसन्त ऋतु के अन्त और ग्रीष्म ऋतु का प्रारम्भ का दिन भी है इसलिए अक्षय तृतीया के दिन जल से भरे घड़े, कुल्हड, सकोरे, पंखे, खडाऊँ, छाता, चावल, नमक, घी, खरबूजा, ककड़ी, शक्कर, साग, इमली, सत्तू आदि घर्मी में लाभकारी वस्तुओं का दान पुण्यकारी माना गया है। (Akshyay Tritiya-Parashuram Jayanti ko kya karen)
इस दान के पीछे यह लोक विश्वास है कि इस दिन जिन-जिन वस्तुओं का दान किया जाएगा, वे समस्त वस्तुएँ स्वर्ग व अगले जन्म में प्राप्त होगी। इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा श्वेत कमल अथवा श्ववेत पाटल (गुलाब) व पीले पाटल से करनी चाहिये और यह मंत्र पढ़ना चाहिए: “सर्वत्र शुक्ल पुष्पाणि प्रशस्तानि सदार्चने।दानकाले च सर्वत्र मन्त्र मेत मुदीरयेत्। (Akshyay Tritiya-Parashuram Jayanti ko kya karen)
अर्थात सभी महीनों की तृतीया में श्वेत पुष्प से किया गया पूजन प्रशंसनीय माना गया है। ऐसी भी मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर अपने अच्छे आचरण और सद्गुणों से दूसरों का आशीर्वाद लेना अक्षय रहता है। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा विशेष फलदायी मानी गई है। इस दिन किया गया आचरण और सत्कर्म अक्षय रहता है। यह भी पढ़ें : सच्चा न्याय दिलाने वाली माता कोटगाड़ी: जहां कालिया नाग को भी मिला था अभयदान
आज ही खुलते हैं भगवान बद्रीनाथ व बांके बिहारी के कपाट
भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की युगादि तिथियों में गणना होती है, सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है। भगवान विष्णु, नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम जी का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था। ब्रह्माजी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था। इस दिन श्री बद्रीनाथ जी की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं। (Akshyay Tritiya-Parashuram Jayanti ko kya karen)
प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं। वृन्दावन स्थित श्री बाँके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं। यह भी पढ़ें : भद्रकालीः जहां वैष्णो देवी की तरह त्रि-पिंडी स्वरूप में साथ विराजती हैं माता सरस्वती, लक्ष्मी और महाकाली (Akshyay Tritiya-Parashuram Jayanti ko kya karen)
तृतीया 41 घटी 21 पल होती है तथा धर्म सिन्धु एवं निर्णय सिन्धु ग्रन्थ के अनुसार अक्षय तृतीया 6 घटी से अधिक होना चाहिए। पद्म पुराण के अनुसार इस तृतीया को अपराह्न व्यापिनी मानना चाहिए। इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था और द्वापर युग का समापन भी इसी दिन हुआ था। ऐसी मान्यता है कि इस दिन से प्रारम्भ किए गए कार्य अथवा इस दिन को किए गए दान का कभी भी क्षय नहीं होता। मदनरत्न के अनुसार: ‘अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं। तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥
उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः। तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥ यह भी पढ़ें : प्रसिद्ध वैष्णो देवी शक्तिपीठ सदृश रामायण-महाभारतकालीन द्रोणगिरि वैष्णवी शक्तिपीठ दूनागिरि (Akshyay Tritiya-Parashuram Jayanti ko kya karen)
प्रचलित कथाएँ (Akshyay Tritiya-Parashuram Jayanti ko kya karen)
अक्षय तृतीया की अनेक व्रत कथाएँ प्रचलित हैं। ऐसी ही एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक धर्मदास नामक वैश्य था। उसकी सदाचार, देव और ब्राह्मणों के प्रति बहुत श्रद्धा थी। इस व्रत के माहात्म्य को सुनने के पश्चात उसने इस पर्व के आने पर गंगा में स्नान करके विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की, व्रत के दिन स्वर्ण, वस्त्र तथा दिव्य वस्तुएँ ब्राह्मणों को दान में दी। अनेक रोगों से ग्रस्त तथा वृद्ध होने पर भी उसने उपवास करके धर्म-कर्म और दान पुण्य किया। यही वैश्य दूसरे जन्म में कुशावती का राजा बना। (Akshyay Tritiya-Parashuram Jayanti ko kya karen)
कहते हैं कि अक्षय तृतीया के दिन किए गए दान व पूजन के कारण वह बहुत धनी प्रतापी बना। वह इतना धनी और प्रतापी राजा था कि त्रिदेव तक उसकी सभा में अक्षय तृतीया के दिन ब्राह्मण का वेष धारण करके उसके महायज्ञ में सम्मिलित होते थे। अपनी श्रद्धा और भक्ति का उसे कभी घमण्ड नहीं हुआ और महान वैभवशाली होने पर भी वह धर्म मार्ग से विचलित नहीं हुआ। माना जाता है कि यही राजा आगे चलकर राजा चंद्रगुप्त के रूप में जन्मा। यह भी पढ़ें : नागेशं दारूका वने… ज्योर्तिलिंग जागेश्वर : यहीं से शुरू हुई थी शिवलिंग की पूजा, यहाँ होते हैं शिव के बाल स्वरुप की पूजा (Akshyay Tritiya-Parashuram Jayanti ko kya karen)
स्कंद पुराण और भविष्य पुराण में उल्लेख है कि वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को रेणुका के गर्भ से भगवान विष्णु ने परशुराम रूप में जन्म लिया। इस दिन कोंकण और चिप्लून के परशुराम मंदिरों सहित पूरे देश में इस तिथि को परशुराम जयन्ती बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है। परशुराम जयन्ती होने के कारण इस तिथि में भगवान परशुराम के आविर्भाव की कथा भी सुनी जाती है। (Akshyay Tritiya-Parashuram Jayanti ko kya karen)
इस दिन परशुराम जी की पूजा करके उन्हें अर्घ्य देने का बड़ा माहात्म्य माना गया है। सौभाग्यवती स्त्रियाँ और क्वारी कन्याएँ इस दिन गौरी-पूजा करके मिठाई, फल और भीगे हुए चने बाँटती हैं, गौरी-पार्वती की पूजा करके धातु या मिट्टी के कलश में जल, फल, फूल, तिल, अन्न आदि लेकर दान करती हैं। यह भी पढ़ें : पाषाण देवी शक्तिपीठ: जहां घी, दूध का भोग करती हैं सिंदूर सजीं मां वैष्णवी (Akshyay Tritiya-Parashuram Jayanti ko kya karen)
मान्यता है कि इसी दिन जन्म से ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय भृगुवंशी परशुराम का जन्म हुआ था। एक कथा के अनुसार परशुराम की माता और विश्वामित्र की माता के पूजन के उपरान्त प्रसाद देते समय ऋषि ने प्रसाद परिवर्तित कर दे दिया था। जिसके प्रभाव से परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय स्वभाव के थे और क्षत्रिय पुत्र होने पर भी ब्रह्मर्षि कहलाए। (Akshyay Tritiya-Parashuram Jayanti ko kya karen)
उल्लेख है कि सीता स्वयंवर के समय परशुराम जी अपना धनुष बाण श्री राम को समर्पित कर संन्यासी का जीवन बिताने अन्यत्र चले गए। अपने साथ एक परशु रखते थे तभी उनका नाम परशुराम पड़ा। यह भी पढ़ें : राजुला-मालूशाही और उत्तराखंड की रक्तहीन क्रांति की धरती, कुमाऊं की काशी-बागेश्वर (Akshyay Tritiya-Parashuram Jayanti ko kya karen)
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