उत्तराखंड का दिलचस्प चुनावी इतिहास: तब ‘कमल का फूल’ नहीं, ‘फूल चढ़ाती महिला’ के चुनाव चिन्ह पर जीते थे दो प्रत्याशी, एक केंद्र में मंत्री भी बने थे…
नवीन समाचार, नैनीताल, 10 मार्च 2024 (Interesting Election History of Uttarakhand)। देश-प्रदेश की राजनीति कैसे बदल जाती है, पता भी नहीं चलता। पिछले चुनावों तक उत्तराखंड में जब भी चुनाव होते थे तो बड़े से बड़े राजनीतिक पंडित भी यह बताने से बचते थे कि कि किसी सीट पर या राज्य में कांग्रेस या भाजपा में से किस पार्टी का प्रत्याशी जीतेगा।
ऐसे में ‘कांटे का मुकाबला’ होने की बात कहकर खुद को बचा लिया जाता था, और चुनाव परिणाम आने के बाद कहा जाता था, ‘अंदर से अमुख पार्टी के लिये साइलेंट वेभ थी’। लेकिन आज के दौर में राजनीति की समझ न रखने वाले लोग भी कह देते हैं कि उत्तराखंड की पांचों लोक सभा सीटों पर भाजपा जीतेगी।
इन स्थितियों को स्वयं कांग्रेस के नेता भी मान रहे हैं। पार्टी के बड़े नेता स्वयं चुनाव लड़ने को तैयार नहीं हैं। पौड़ी लोकसभा के 3 प्रत्याशियों के पैनल में जिन मनीष खंडूड़ी का नाम सबसे ऊपर था, यानी उन्हें टिकट मिलना तय था, वह कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो गये हैं। ऐसे में कांग्रेस को 5 सीटों के लिये प्रत्याशी नहीं मिल पा रहे हैं।
केवल वे लोग चुनाव लड़ने को तैयार हैं जो जीवन में विधानसभा का चुनाव भी नहीं लड़े। ऐसा लगता है कि वह लोक सभा चुनाव लड़कर वह केवल स्वयं का नाम आगे बढ़ाना चाहते हैं, और बहुत संभव है कि चुनाव के बाद या अगले विधानसभा चुनाव से पूर्व वह अपनी पहचान बनाकर भाजपा में शामिल हो जाएं।
हमेशा से नहीं थी ऐसी स्थिति (Interesting Election History of Uttarakhand)
उत्तराखंड में 90 के दशक तक कांग्रेस के तिरंगे झंडे, वामपंथियों के लाल निशान या फिर जनता पार्टी और जनता दल की लहर का प्रभाव रहा। वर्ष 1991 में आई राम लहर से उत्तराखंड की वादियां इतनी अधिक प्रभावित हुई कि यह पर्वतीय क्षेत्र भगवा रंग में रंग गया और उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव में भगवा रंग ही परचम लहराता रहा। राज्य की पांचों सीटों पर पिछले 10 वर्षों से भाजपा का कब्जा है।
इतिहास की बात करें तो देश के पहले लोक सभा चुनाव यानी वर्ष 1952 से लेकर 1990 तक उत्तराखंड की सभी सीटों पर ज्यादातर कांग्रेस का कब्जा रहा है। लेकिन वर्ष 1975 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा आपातकाल लगाने के बाद वर्ष 1977 में जनता लहर आई और कांग्रेस का उत्तराखंड में सफाया हो गया। इसके बाद कांग्रेस वापस लौटी तो 1989 में पुनः विश्वनाथ प्रताप की अगुवाई में आई जनता दल की लहर में भी कांग्रेस को यहां नुकसान उठाना पड़ा।
उत्तराखंड की राजनीति राष्ट्र की राजनीति से प्रभावित रही (Interesting Election History of Uttarakhand)
उत्तराखंड की राजनीति हमेशा देश की राष्ट्रीय राजनीति से प्रभावित रही है और यहां की जनता ने उत्तराखंड क्रांति दल सहित सभी क्षेत्रीय दलों को कभी कोई महत्त्व नहीं दिया है। 1990 के दशक से पहले कांग्रेस को उत्तराखंड में हमेशा वामपंथी दल चुनाव में टक्कर देते थे। तब उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल का टिहरी क्षेत्र हमेशा वामपंथियों के कब्जे में रहता था और ‘लालघाटी’ के रूप में प्रसिद्ध था।
यहां से वामपंथी पार्टियों के विधायक चुने जाते रहे हैं। अलबत्ता लोकसभा में उत्तराखंड से वामपंथी दल कभी भी अपना प्रतिनिधि नहीं भेज पाए। 1990 के दशक से पहले जनसंघ या भाजपा का यहां कोई प्रभाव नहीं रहा। राम जन्मभूमि आंदोलन ने उत्तराखंड की देवभूमि को अपने प्रभाव में इतना अधिक आगोश में लिया कि लोकसभा की पांचों सीटों पर भाजपा का ही राज चला आ रहा है और मुख्य दल भाजपा ही है और भाजपा के सामने कांग्रेस दूसरे नंबर की और विपक्षी दल बन कर रह गयी है।
हेमवती नंदन बहुगुणा ने कांग्रेस उम्मीदवार को हटाया (Interesting Election History of Uttarakhand)
उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के पौड़ी संसदीय क्षेत्र ने पूरे देश की राजनीति को प्रभावित किया है। एक जमाने में देश की राजनीति के दिग्गज हेमवती नंदन बहुगुणा की यह लोकसभा सीट जन्मभूमि-कर्मभूमि दोनों रही। 1980 में बहुगुणा इस सीट पर कांग्रेस के टिकट पर जीते। उन्होंने कुछ दिनों बाद इंदिरा गांधी से खटपट होने के कारण लोकसभा सीट और कांग्रेस दोनों से इस्तीफा दे दिया। फिर भी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़े हुए और उन्होंने कांग्रेस की उम्मीदवार को इस सीट पर हराया।
यह उपचुनाव ऐतिहासिक था। इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री रहते हुए इस सीट को प्रतिष्ठा की सीट बना लिया था और 36 जनसभाएं गढ़वाल मंडल में की थी और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की वीपी सिंह यानी विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार थी और पूरी सरकार उपचुनाव में गढ़वाल मंडल में कांग्रेस उम्मीदवार को जिताने के लिए पड़ी रही परंतु हेमवती नंदन बहुगुणा इतने लोकप्रिय थे कि कांग्रेस की केंद्र और राज्य की सरकार उन्हें नहीं हरा सकी और उनकी ऐतिहासिक जीत हुई।
एनडी तिवारी की पार्टी ने कांग्रेस को दो सीटों पर हराया (Interesting Election History of Uttarakhand)
इसी तरह नैनीताल सीट पर पंडित नारायण दत्त तिवारी कांग्रेस के बड़े नेता रहे, लेकिन एक दौर ऐसा भी आया जब उन्होंने कांग्रेस से नाता तोड़कर कांग्रेस को अपनी एक नहीं बल्कि दो सीटों पर हराया। यह बात वर्ष 1994 की है जब तिवारी कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष सीताराम केसरी और पीवी नरसिम्हा राव की कार्यप्रणाली से असंतुष्ट हो गए थे और गांधी परिवार के प्रति अपनी ईमानदारी प्रदर्शित करने के मकसद से उन्होंने अपनी अलग पार्टी बना ली जिसका नाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस-तिवारी रखा गया।
बकायदा 1995 में दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में इस नयी पार्टी के गठन के लिए तब के कांग्रेस के बड़े नेता अर्जुन सिंह, माखन लाल फोतेदार, नटवर सिंह, मोहसिना किदवई और रंगराजन कुमारमंगल जैसे दिग्गज नेता दिल्ली में तिवारी के साथ खड़े हुए। (Interesting Election History of Uttarakhand)
उस समय तिवारी कांग्रेस ने 1996 का चुनाव देश की लगभग साढ़े तीन सौ सीटों पर लड़ा था। जिसमें उनकी पार्टी ने पांच सीटें जीती थी। जबकि उनके कई उम्मीदवार बहुत कम अंतर से भी हारे थे। स्वयं एनडी तिवारी नैनीताल और सतपाल महाराज पौड़ी संसदीय क्षेत्र से उनकी पार्टी के ‘फूल चढ़ाती हुई महिला’ के चुनाव चिन्ह पर चुनाव जीते थे। इसके बाद तिवारी कांग्रेस चुनाव के बाद बनी एचडी देवगौड़ा सरकार के मंत्रिमंडल में सतपाल महाराज को रेल राज्यमंत्री का ओहदा दिलाने भी कामयाब हो गयी थी। (Interesting Election History of Uttarakhand)
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