-भवाली सेनिटोरियम का किसी अन्य जनहित के कार्य में सदुपयोग करेगी सरकार: मुख्य सचिव
-मुख्य सचिव ने किया भवाली सेनिटोरियम का निरीक्षण

नवीन समाचार, नैनीताल, 7 दिसंबर 2019। कभी देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की धर्मपत्नी कमला नेहरू को टीबी यानी क्षय रोग का बेहतरीन इलाज उपलब्ध कराने वाले व आजादी से पूर्व से ही टीबी के उपचार के लिए देश-दुनियां में मशहूर भवाली सेनीटोरियम का उपयोग सरकार किसी अन्य जनहित के कार्य में करने जा रही है। प्रदेश के मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिह ने शनिवार को वित्त सचिव अमित नेगी के साथ टीवी सेनिटोरियम का निरीक्षण करने के दौरान कहा कि अब हर जगह टीबी का इलाज उपलब्ध हो जाने तथा यहां टीबी मरीजों की संख्या यहां तैनात के कर्मियों से काफी कम रह जाने की स्थितियों में सरकार सेनीटोरियम का उपयोग किसी अन्य जनहित के लिए किये जाने के लिए मंथन कर रही है।
श्री सिह ने कहा कि 107 वर्ष पहले 1912 में टीबी के इलाज के लिए भवाली की टीबी के उपचार के लिए मुफीद आवोहवा को दृष्टिगत रखते हुये सेनीटोरियम स्थापित किया गया था। तब देश में टीबी का इलाज कही और उपलब्ध नहीं था। तब देश के कोने-कोने से टीबी के मरीज बेहतर इलाज के लिए भवाली सैनीटोरियम रेफर किये जाते थे। लेकिन वर्तमान में टीबी के इलाज की सुविधायंे काफी स्थानों पर उपलब्ध हो जाने के कारण अब भवाली सेनीटोरियम मे 114 चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों सहित 141 कर्मचारी कार्यरत हैं, जबकि मात्र 18 यानी इनके सापेक्ष करीब 10 फीसद मरीज ही इलाज करा रहे हैं। डीएम सविन बंसल ने बताया कि 48 हेक्टेयर भूमि पर स्थापित सेनीटोरियम में भर्ती मरीजों को बजट के अभाव में सुगमता से नाश्ता व भोजन देने एवं चिकित्सकों व अन्य पैरामेडिकल कर्मियों के अभाव में सेवाएं देने में कठिनाई हो रही है। उन्होंने मुख्य सचिव को बताया कि विगत वर्षों में सेनीटोरियम तथा राजस्व की जो भूमि इमामी तथा लक्मे फर्म को आवंटित हुई थी, उसे उच्च न्यायालय ने एक जनहित याचिका के परिपेक्ष में सेनीटोरियम को वापस किये जाने के लिए आदेश पारित किये है। शासन द्वारा माननीय न्यायालय के आदेशों के क्रम में सेनीटोरियम को राजस्व भूमि आवंटित करने की बात कही। निरीक्षण के दौरान मंडलायुक्त राजीव रौतेला, सीडीओ विनीत कुमार, एसएसपी सुनील कुमार मीणा, एडीएम एसएस जंगपांगी, निदेशक चिकित्सा स्वास्थ डा. संजय साह, सीएमओ डा. भारती राणा, प्रभारी चिकित्सा अधीक्षक डा. तारा आर्या, सेनीटोरियम के प्रभारी सीएमएस डा. रजत कुमार भट्ट, चिकित्सक डा. शशि बाला व एसडीएम गौरव चटवाल आदि मौजूद रहेे।
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-मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल बनाने का पूर्व आदेश होगा प्रभावी

नैनीताल, 16 अगस्त 2018। उत्तराखण्ड हाईकोर्ट की कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश राजीव शर्मा न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की खण्डपीठ ने भवाली टीबी सेनीटोरियम के एक हिस्से को वर्ष 2010 में तत्कालीन मुख्यमन्त्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा आयुश ग्राम बनाने के लिए इमामी ग्रुप को 35 साल के लिये लीज पर देने के आदेश को निरस्त कर दिया है मामले के अनुसार भवाली निवासी मोहम्मद आजम ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि भवाली सेनीटोरिएम ब्रिटिश कालीन ऐतिहासिक अस्पताल है। यह अस्पताल कई राजनेताओं के इलाज का गवाह बना है। पूर्व में तत्कालीन मुख्यमंत्री एनडी तिवारी ने इस अस्पताल को चेस्ट इंस्टिट्यूट के रूप में विकसित करने के लिए करोड़ो रूपये की मशीने मंगाई थीं, जो अब बिना किसी उपयोग के बेकार हो गयी हैं। वहीं वर्ष 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने टीबी सेनीटोरियम के एक हिस्से को आयुष ग्राम बनाने के लिए 35 साल की लीज पर दे दी। याची ने इसे इस सम्पति को खुर्द-बुर्द करने की साजिश बताया। मामले को सुनने के बाद खंडपीठ ने सरकार के 2010 के आदेश को निरस्त कर दिया, साथ ही इस अस्पताल को मल्टी स्पेशलिटी अस्पताल बनाने के संदर्भ में अधिवक्ता दीपक रुवाली की जनहित याचिका में दिए गए निर्देशो को प्रभावी माना है।
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- भवाली सेनिटोरियम में लघु निर्माण मद में अलग-अलग भागों में 11 लाख एवं अनुरक्षण मद में रंगाई-पुताई पर 11 लाख के घोटाले का अंदेशा
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- महानिदेशक के आदेशों पर स्वास्थ्य निदेशक कुमाऊं की जांच में सेनिटोरियम की तत्कालीन प्रमुख अधीक्षक सहित तीन अधिकारियों को उत्तरदायी बताते हुये की गई है विशेष जांच की संस्तुति
- गठिया के पूर्व ग्राम ट्रेवोर मेसी व नैनीताल के पूर्व सभासद संजय साह द्वारा सूचना के अधिकार के तहत ली गयी जानकारी में हुआ खुलासा
नवीन जोशी, नैनीताल। जनपद में एनआरएचएम के बाद भवाली स्थित ऐतिहासिक टीबी सेनीटोरियम में पिछले वित्तीय वर्ष 2014-15 में 22 लाख रुपये के कार्यों में घोटाले का नया मामला प्रकाश में आया है। प्रदेश की स्वास्थ्य महानिदेशक के आदेशों पर स्वास्थ्य निदेशक कुमाऊं डा. गीता शर्मा द्वारा की गई जांच सूचना के अधिकार के तहत उजागर हुई है। जांच रिपोर्ट में साफ तौर पर इस धनराशि से हुये रंगाई-पुताई व अन्य लघु निर्माण के कार्यों को गैर तर्कसंगत तरीके से गैंग मजदूरों से बिना आगणन गठित किये करने व बिलों का सत्यापन किसी अभियंता से न कराये जाने का हवाला देते हुये कहा गया है कि तत्कालीन प्रमुख अधीक्षक डा. तारा आर्या, सहायक अधीक्षक केएल गौतम और प्रधान सहायक डीडी पांडे उत्तरदायी प्रतीत होते हैं, लिहाजा मामले में विशेष सम्प्रेक्षा की संस्तुति की गई है। इसके अलावा आगे ऐसे कार्यों में नियमानुसार प्रक्रिया अपनाये जाने की भी संस्तुति की गई है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार वित्तीय वर्ष 2014-15 में श्रय रोगाश्रम भवाली में लघु निर्माण मद में अलग-अलग भागों में 11 लाख एवं अनुरक्षण मद में 11 लाख का बजट आवंटित हुआ था। इसमें से अनुरक्षण पद में आवासीय एवं अनावासीय भवनों की दीपावली पर रंगाई-पुताई का कार्य तत्कालीन प्रमुख अधीक्षक के स्तर पर गठित कमेटी द्वारा कोटेशन के आधार पर प्राप्त दरों से न्यूनतम दरों पर सामग्री क्रय करने के उपरांत सभी कार्मिकों को सामग्री वितरित कर दी गई। इन कार्यों का पूर्व आगणन तथा कार्य के उपरांत बिलों का सत्यापन विभागीय अभियंता से नहीं कराया गया। इसे जांच अधिकारी निदेशक डा. शर्मा ने गलत ठहराया है।
कमला नेहरु चेस्ट इंस्टिट्यूट और आयुष ग्राम बनने के टूटे ख्वाब भी देख चुका है ऐतिहासिक भवाली सेनीटोरियम
नैनीताल। वर्ष 1912 में अंग्रेजों ने 220 एकड़ भूमि में सम्राट एडवर्ड सप्तम की याद में भवाली में एशिया के सबसे बड़े 320 बेड के टीबी संस्थान की स्थापना की थी। 16 जून 1929 को यहां महात्मा गांधी भी आये थे, और 11 अक्टूबर 1934 को नैनी जेल में रहने के दौरान देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू को यहां डा. प्रेम लाल से टीबी के उपचार कराने के लिये भर्ती कराया गया था। इस कारण 1935 में नेहरू को पत्नी के करीब रहने के लिये नैनी से अल्मोड़ा जेल स्थानांतरित किया गया था। यहां कमला नेहरू के नाम से एक वार्ड अब भी है। इधर टीबी का इलाज घर बैठे डॉट विधि से किये जाने की व्यवस्था के बाद से इसके बुरे दिन शुरू हुये। वर्ष 2002 में तत्कालीन सीएम एनडी तिवारी की सरकार ने यहां बेडों की संख्या 150 तक सीमित करते हुये जापान के सहयोग व 50 करोड़ रुपये की लागत से कमला नेहरू चेस्ट इंस्टिट्यूट की स्थापना के लिये शासनादेश भी जारी कर दिया था, और इस हेतु 2.67 करोड़ रुपये से अत्याधुनिक सीटी स्कैन, 44 लाख रुपये से अल्ट्रासाउंड व 11.89 लाख से ऑटो ऐनालाइजर सहित कई अन्य मशीनें भी ले आई गई थीं। तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डा. तिलक राज बेहड़ ने चेस्ट इंस्टिट्यूट का उद्घाटन भी कर दिया था। लेकिन विशेषज्ञ चिकित्सकों की तैनाती न होने से करोड़ों की मशीनें कबाड़ में तब्दील हो गयीं। आगे 2010 में तत्कालीन सीएम डा. रमेश पोखरियाल निशंक ने यहां करीब 10 एकड़ भूमि पर देश की प्रमुख सौंदर्य प्रसाधन कंपनी-इमामी की मदद से करीब 50 करोड़ रुपये से आयुष ग्राम बनाने का प्रस्ताव तैयार करवाया, लेकिन डा. निशंक का यह ड्रीम प्रोजेक्ट भी परवान नहीं चढ़ पाया।
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Delhi: Ramesh Pokhriyal ‘Nishank’ takes charge as Minister of Human Resource Development. #UnionCabinet pic.twitter.com/9KF9JX6E8c
— ANI (@ANI) May 31, 2019
नवीन समाचार, नैनीताल, 31 मई 2019। उत्तराखंड के हरिद्वार से सांसद व पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ को देश का नया मानव संसाधन विकास मंत्रालय सोंपा गया है। इसके बाद डा. निशंक ने देश के अगले मानव संसाधन विकास मंत्री के पद का पदभार ग्रहण कर लिया है। उत्तराखंड के लिए यह बड़ी बात, और बड़ा संयोग है कि इससे पूर्व भी पूर्ववर्ती अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपानीत एनडीए सरकार में उत्तराखंड के ही अल्मोड़ा के मूल निवासी डा. मुरली मनोहर जोशी भी केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री बनाया गया था। वे 1998 से 2004 तक पूरे पांच वर्ष इस पद पर रहे थे। डा. निशंक को देश का इतने महत्वपूर्ण मंत्रालय मिलने पर उत्तराखंड की जनता में हर्ष का माहौल है। डा. निशंक के केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री बनने से उत्तराखंड एक और केंद्रीय विश्वविद्यालय मिलने और राज्य में उच्च शिक्षा की स्थिति सुधरने की उम्मीद की जा सकती है।
शिशु मंदिर के आचार्य से केंद्रीय मंत्री तक, गुरबत की जिंदगी से संघर्ष कर शिखर तक ऐसे पहुंचे ‘निशंक’
मोदी कैबिनेट में जगह बनाने वाले उत्तराखंड में हरिद्वार के सांसद डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक गुरबत की जिंदगी से गुजरकर संघर्ष के दम पर शिखर तक पहुंचे है। पौड़ी गढ़वाल के पिनानी में गरीब परिवार में जन्में निशंक की जीवन यात्रा कई उतार चढ़ावों से गुजरी। सरस्वती शिशु मंदिर के आचार्य से मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री बनने की उनकी यात्रा बेहद अनूठी है। जोशीमठ स्थित सरस्वती शिशु विद्या मंदिर में निशंक प्राचार्य रहे। जो उनके जीवन का कठिन दौर था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक होने के साथ-साथ उन्हें अध्यापन का दोहरा दायित्व निभाना होता था। अध्यापन कार्य के दौरान निशंक समाज सेवा और सक्रिय राजनीति से जुड़ गए। राजनीति में उनके कदम जमें तो फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। अस्सी के दशक में निशंक उत्तराखंड राज्य के संघर्ष समिति के केंद्रीय प्रवक्ता बनें। 1991 में वे पहली कर्णप्रयाग विधानसभा से निर्वाचित हुए और उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहुंचे। वे इस सीट पर 1993 और 1996 में भी चुनाव जीते। वे उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में पांच बार विधायक निर्वाचित हुए और दो बार लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं। 2009 में मुख्यमंत्री बनें और अब केंद्रीय मंत्री बनने का उन्हें सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
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-नामांकन को चुनौती देती एसएलपी याचिका भी खारिज
नवीन समाचार, नैनीताल, 12 अप्रैल 2019। पूर्व मुख्यमंत्री एवं हरिद्वार से भाजपा प्रत्याशी डा. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ के नामांकन को चुनौती देने वाली एसएलपी यानी विशेष याचिका भी उत्तराखंड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूति रमेश रंगनाथन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने खारिज कर उनकी राह ‘निशंक’ यानी शंका रहित कर दी है। उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व एकलपीठ ने भी उनके विरुद्ध याचिका खारिज कर दी थी। खंडपीठ ने कहा कि याचिका नियमानुसार पोषणीय ही नहीं है। मालूम हो कि एकलपीठ ने भी इसी आधार पर याचिका को खारिज किया था।
गौरतलब है कि भाजपा के बागी व हरिद्वार से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे देहरादून निवासी मनीष वर्मा ने मतदान के मात्र 2 दिन शेष रहते उत्तराखंड उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। याचिका में कमोबेश उन्हीं बिंदुओं को उठाया गया है, जिन पर उनकी याचिका को उच्च न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति आलोक सिंह की एकलपीठ पिछली 2 अप्रैल को खारिज कर दिया गया था। खंडपीठ ने कहा कि याचिका चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार धारा 80 व 81 का उल्लंघन होने के कारण पोषणीय नहीं है। नामांकन को चुनाव का परिणाम आ जाने के बाद ही 45 दिन के अंतर्गत चुनौती दी जा सकती है। चूंकि अभी नामांकन प्रक्रिया चल रही है और चुनाव नहीं हुए हैं, इसलिए चुनाव के दौरान इसे चुनौती नही दी जा सकती है। साथ ही यह भी कहा कि चुनाव प्रक्रिया के दौरान सरकार तथा राज्य एवं केंद्रीय निर्वाचन आयोग को पार्टी नही बनाया जा सकता।
उल्लेखनीय है कि हरिद्वार से निशंक के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ रहे भाजपा के बागी बताये जा रहे देहरादून निवासी मनीष वर्मा ने पूर्व में गत 28 मार्च को हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि निशंक ने अपने नामांकन में भरे गए शपथपत्र पत्र में कई तथ्यों को छुपाया है। खासकर अपनी पुत्रियों श्रीयाशी व विदूषी निशंक के बैंक खातों का उल्लेख नही किया है। साथ ही निशंक ने उत्तराखंड का मुख्यमंत्री रहते हुए मुख्यमंत्री आवास के बकाया भुगतान का भी शपथपत्र में उल्लेख नहीं किया है। सांसद आवास के संबंध में भी निशंक ने प्रोविजनल सर्टिफिकेट लगाया है, जबकि इसके स्थान पर वास्तविक नोड्यूज सर्टिफिकेट लगाने का नियम है। प्रोविजनल नोड्यूज सर्टिफिकेट लगाने पर खास तौर पर आपत्ति की गयी थी। याची का कहना है कि उन्होंने इसकी शिकायत रिटर्निंग ऑफिसर से भी की, लेकिन निशंक ने रिटर्निंग अधिकारी को दिए जवाब में कहा कि उनकी बेटी श्रीयांशी उन पर निर्भर नहीं बल्कि आत्मनिर्भर हैं। सांसद आवास के बारे में उन्होंने कहा कि वह अब भी सांसद हैं। रिटर्निंग ऑफिसर ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद याची की आपत्ति निरस्त कर दी। इसलिए उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है।