April 18, 2024

जानें बाबा नीब करौरी के गुरु, स्वामी विवेकानंद और एनडी तिवारी पर कृपा बरसाने वाले सोमवारी बाबा व उनके चमत्कारों के बारे में… अंग्रेजों को भी सिखाया था सबक..

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नवीन समाचार, नैनीताल, 30 अप्रैल 2023। उत्तराखंड को देवभूमि यूं ही नहीं कहा जाता। यहां कई ऐसे अवतार पुरुष भी रहे हैं जो देवताओं की भांति एक पल में ही एक स्थान से अचानक आंखों से ओझल हो जाते थे और कहीं और प्रकट हो जाते थे। हाल के दौर के संतों में बाबा नीब करौरी के बारे में भी यह बात कही जाती है। लेकिन आज हम ऐसे संत के बारे में पूरी जानकारी देने जा रहे हैं जिन्हें बाबा नीब करौरी अपना गुरु मानते थे। उनके धाम में ही स्वामी विवेकानंद को भी ज्ञान प्राप्त हुआ था। उन्होंने दो प्रदेशों उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के मुख्यमंत्री व केंद्रीय मंत्री पंडित नारायण दत्त तिवारी के बारे में सटीक भविष्यवाणियां की थीं। यह भी सच्चाई है कि बाबा नीब करौरी के बारे में जिन कुछ चमत्कारों को जोड़ा जाता है, वह चमत्कार वास्तव में उन संत गुरु ने किए थे। देखें वीडिओ सोमवारी बाबा और उत्तराखंड :

हम आज ऐसे संत सोमवारी बाबा महाराज के बारे में बात कर रहे हैं। सोमवारी बाबा महाराज तथा बाबा हैड़ाखान समकालीन थे। दोनों को ही भगवान शंकर का रूद्र रूप माना जाता है। दोनों एक-दूसरे को खुद से बड़ा बताते थे। सोमवारी बाबा के जीवन से सम्बन्धित तिथियों के सम्बन्ध में कोई सर्वमान्य तथ्य उपलब्ध नहीं है। अलबत्ता बताया जाता है कि उनका जन्म 1808 में और मृत्यु 1929 में हुई थी।

सोमवारी बाबा का जन्म स्थान
अल्मोड़ा से प्रकाशित ‘शक्ति’ साप्ताहिक समाचार पत्र के अनुसार उच्चारण, आकृति, आचार-व्यवहार, स्मृति और शास्त्रानुसार सोमवारी बाबा सिन्धी प्रतीत होते थे। अनुमान लगाया जाता है कि उनका जन्म पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत यानी वर्तमान पाकिस्तान के सिन्ध हैदराबाद क्षेत्र के पिण्डदादन खां नामक स्थान में हुआ था। उनके जो चित्र उपलब्ध है उनसे प्रतीत होता है कि वह बेहद कम वस्त्र पहनते थे। अधो अंग में कोपीन और ऊपरी शरीर में केवल एक वस्त्र ही धारण करते थे। वे लम्बे थे तथा छोटी जटाओं, छोटी दाढ़ी तथा सुन्दर नेत्रों वाले थे।

सोमवारी बाबा का परिवार
उनका मूल नाम किसी को मालूम न था। अलबत्ता बताया जाता है कि वह उच्च और सम्पन्न कुल के ब्राह्मण थे। उनके पिता उस समय के जाने-माने बेरिस्टर यानी अधिवक्ता थे और बाद में सेशन जज भी रहे, यानी अति सम्पन्न थे। लेकिन पिता व परिवार की सम्पन्नता के बावजूद सोमवारी बाबा बाल्यावस्था से ही सांसारिकता से विमुख रहे। उन्होंने 12 वर्ष की आयु में ही गृह त्याग कर दिया था। कहा जाता है कि सन्यासी जीवन जीने के लिए उन्होंने चित्रकूट जाकर विवेकी एक महात्मा से दीक्षा ली और चित्रकूट में भी कुछ समय निवास किया।

नारायण दत्त तिवारी से संबंधित प्रसंग
उनका जीवनकाल वर्ष 1919 तक स्वीकार किया जाता है। हालांकि कुछ लोग 1929 तक भी उन्हें देखने के दावे करते हैं। इस बात की पुष्टि इस बात से भी होती है कि उन्होंने 1925 में जन्मे स्वर्गीय नारायण दत्त तिवारी के बारे में सटीक भविष्यवाणियां की थीं। गौरतलब है कि सोमवारी बाबा का अंतिम समय नारायण दत्त के गांव पदमपुरी में बीता। कहते हैं कि उन्होंने नारायण के बारे में कहा था कि वह देश ही नहीं विदेश में भी अपना नाम रोशन करेंगे, लेकिन शीर्ष पद पर नहीं पहुंच पाएंगे। जब नारायण प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने के बावजूद प्रधानमंत्री नहीं बन पाए थे, तब यह बात काफी सुर्खियों में रही थी। कहते हैं कि नारायण के पिता पूर्णानंद तिवारी ने नारायण से घर से दो कद्दू बाबा जी को देने के लिए भिजवाए थे, लेकिन रास्ते में एक कद्दू कहीं गिर गया और एक ही बाबा तक पहुंच पाया। इस पर बाबा ने कहा था नारायण कभी अपनी मंजिल पर पहुंच नहीं पाएंगे (जैसे वह दोनों कद्दू सहित अपनी मंजिल पर नहीं पहुंच पाए)।

अंग्रेजों को सबक सिखाने का प्रसंग
Sombari Baba- सोमवारी बाबा महाराज | Tharaliयह अंग्रेजी दौर की बात है, जब सोमवारी बाबा कुमाऊं के नैनीताल जनपद में नैनीताल-अल्मोड़ा मार्ग पर खैरना से आगे कोसी नदी के किनारे काकड़ीघाट नाम के स्थान पर रहते थे। बाबा नीब करौरी के भक्त केके साह द्वारा लिखित पुस्तक के अनुसार 19वीं सदी की शुरुआत में जब भारत में अंग्रेजों का शासन था। एक बार एक अंग्रेज अधिकारी अपने कर्मचारियों के साथ कोसी नदी में विशाल मछलियां होने की जानकारी पर उनका शिकार करने के लिए आया। उसने नदी किनारे टेंट लगाया और मछलियां पकडने का चारा डाला। लेकिन सुबह से शाम तक बैठे रहने के बाद भी मछलियां नहीं फंसी। उस दौरान पास ही रहने वाले सोमवारी बाबा के पास कुछ नागा साधु बैठे थे। सोमवारी बाबा ने नदी में मछलियों के शिकार पर रोक लगाई हुई थी। इसलिए अंग्रेजों को मछलियां पकड़ने की कवायद करते देख नागा साधु बहुत नाराज हुए। वह अपने त्रिशूल उठाकर अंग्रेजों से लड़ने के लिए जैसे ही उठे, बाबा ने उन्हें रोकते हुए कहा, परेशान क्यों होते हो, भगवान सबका रक्षक है। उन्हें अपना काम करने दो।

दूसरी ओर अंग्रेज अधिकारियों को पूरे दिन एक भी मछली न फंसने से बड़ी निराशा हुई। तब उनके स्थानीय कर्मचारियों ने बताया कि बाबा के प्रताप से ही मछलियां उनके चारे के पास नहीं आईं। इतना ही नहीं, अंग्रेजों के डेरे में रात भर भी अजीब घटनाएं होती रहीं। इस पर सुबह होते ही उन्होंने बाबा से मिलने की इच्छा जताई। तब कर्मचारियों ने कहा कि पहले इसके लिए बाबा से अनुमति लेनी होती है। अंग्रेजों ने एक आदमी भेजकर अनुमति मांगी और बाबा उनसे मिलने को राजी भी हो गए। अंग्रेजों को पता था कि भारतीय संतों के पास मिलने जाएं तो कुछ प्रसाद भी ले जाते हैं। वह पास के गांव से सूखे मेवे और फल लेकर बाबा के पास गए। प्रसाद लेकर वह बाबा के पास पहुंचे। बाबा ने उनसे प्रसाद लेकर कहा कि इसे जाकर नदी में मछलियों को खिला आएं।

अंग्रेजों ने ऐसा ही किया, लेकिन हैरान रह गए कि मछलियां वह प्रसाद सूंघतीं लेकिन उसे चखती तक नहीं, और दूर चली जातीं। इससे अंग्रेज निराश होकर बाबा के पास पहुंचे। उन्होंने जब बाबा को सब बताया तो बाबा ने कहा, आप लोग सोचते हैं कि भारत पर आपका राज है तो मछलियां भी आपकी गुलाम हैं। लेकिन ऐसा नहीं हैं। अबकी जाएं तो प्रेम भरे हदय से मछलियों को प्रसाद डालें। अंग्रेज अधिकारियों ने ऐसा ही किया और अबकी बार नदी का तट मछलियों से भर गया। उन्होंने पल भर में ही पूरा प्रसाद खत्म कर दिया। जब अंग्रेज लौटकर बाबा के पास पहुंचे तो बाबा ने कहा, यह कुछ नहीं केवल प्रेम की शक्ति है।

गुरु हर्षदेवपुरी, जंगम बाबा तथा गुदड़ी महाराज की भूमि पर स्वामी विवेकानंद का आमगन
माना जाता है कि उन्नीसवीं शती के अन्त में महाराज काकड़ीघाट आये थे। स्वामी विवेकानंद के कारण चर्चित हुआ यह विश्व प्रसिद्ध स्थल सोमवारी बाबा आश्रम से थोड़ा ही पहले कोसी और सिरोता नदियों के संगम पर शमशान पर स्थित है। यह स्थल पूर्व में चंद राजा देवीचंद (1720-1726) के गुरु हर्षदेवपुरी, जंगम बाबा तथा गुदड़ी महाराज आदि प्रसिद्ध संतों की तपःस्थली रहा था। संत हर्षदेव पुरी ने इस स्थान पर जीवित समाधि ली थी। वर्ष 1890 में स्वामी विवेकानन्द भी अल्मोड़ा जाते समय काकड़ीघाट में इस स्थल के पास ही रुके थे। सोमवारी आश्रम के नजदीक ही शिवालय में पीपल के वृक्ष के नीचे स्वामी विवेकानंद को भाव समाधि में ज्ञान प्राप्त हुआ था।

सोमवारी बाबा और पदमपुरी, सांई बाबा की तरह पानी से दिए जलाते थे, पूड़ियां तलते थे
सोमवारी महाराज ने अपने जीवन का अधिकतर समय काकड़ीघाट और पदमपुरी आदि में बिताया। बाबा गर्मियों में काकड़ीघाट तथा शीतकाल मे पदमपुरी में रहते थे। उन्होंने अल्मोड़ा के पास खगमरा कोट में भी तपस्या की थी। लेकिन जीवन के अन्तिम वर्षों में वे पदमपुरी में ही रहे और यहीं समाधि ली। यह भी कहा जाता है कि इसके बाद भी वह काकड़ीघाट व काठगोदाम में दिखाई दिए थे।

कहते हैं कि पदमपुरी में बाबा एक गुफा में रहते थे और कई बार वहां से अंतरर्ध्यान हो जाते थे। मंदिर में हर सोमवार को भंडारा होता थे, संभवतया इसी कारण उनका नाम सोमवारी बाबा पड़ा हो। कहते हैं कि कई बार भंडारे के लिए या दिए जलाने के लिए घी खत्म हो जाता तो पास में बहती पहाड़ी नदी से पानी मंगवाकर उसके घी के रूप में प्रयोग कर लेते थे और जब घी आ जाता तो उसे ‘गंगा मैया का पैंचा’ यानी उधार लिया हुआ बताकर नदी में प्रवाहित कर देते थे। वह अंतरयामी थे। कोई श्रद्धालु यदि घर से लड़-झगड़कर दूध-दही आदि कोई सामग्री लाता था तो उसे भी पहले से जानकर नदी में प्रवाहित करवा देते थे।

सभी धर्मों के थे बाबा के अनुयायी
तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर गोविन्द राम काला जी की पुस्तक ‘द मेमोरीज ऑफ द राज’ के ‘द हरमिट आप पदमबोरी’ अध्याय के पृष्ठ 30-35 में लिखा है, ‘पूज्य सोमवारी गिरि के विषय में जहाँ तक में जानता हूँ, उनके गुरु एक मुस्लिम फकीर थे, जिनके दर्शन उन्हें पंजाब में सतलज नदी के तट पर हुए थे। उनके समान आध्यात्मिक शक्ति से पूर्ण दूसरे साधु बाबा हैड़ाखान थे।’ सन 1937 के ‘कल्याण’ के सन्त अंक में श्रीयुत श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी ने लिखा है कि ‘सन्त सोमवारी जी सभी जाति और धर्म से सम्बन्धित थे। उनके शिष्यों में अल्मोड़ा के कई मुसलमान भक्त भी थे।’ भारत की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि को विदेशियों के समक्ष प्रकट करने का श्रेय प्राप्त पाल ब्रन्टन ने अपनी विश्व विख्यात पुस्तक ‘हिमालया इन सर्च आफ सीक्रेट इंडिया’ में इस दिव्य पृष्ठभूमि का वर्णन किया है।

नीब करौरी बाबा ने बनाया मंदिर
Sombari Baba- सोमवारी बाबा महाराज - राम राम 🌺🙏🏻 One night after the gate  was closed and all the guests had retired, I was going around checking that  things were all right.बाबा नीब करौरी की सोमवारी महाराज पर असीम आस्था थी। नीब करौरी महाराज द्वारा स्थापित वर्तमान कैंची धाम भी पूर्व में सोमवारी महाराज की धूनी का स्थान रहा था। यहां एक कन्दरा में सोमवारी बाबा ने प्रवास भी किया था। यही कारण था कि नीब करौरी महाराज ने कैंची और काकड़ीघाट, जो सोमवारी महाराज के साधना स्थल थे, वहाँ हनुमान आदि देवी देवताओं के सुन्दर मन्दिर बनवाए एवं इन स्थानों को तीर्थ के रूप में विकसित किया। वर्ष 1965 में नींव करोरी महाराज ने यहां हनुमान जी के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा विधिविधान पूर्वक कराई। अब इस आश्रम में नए कलेवर में भी सोमवारी महाराज द्वारा पूजित शिवलिंग, मंदिर एवं धूनी आदि को पूर्व की भांति ही रखा गया है। यहां सोमवारी बाबा के चित्र भी लगे हैं। परिसर में ही प्राचीन संतों की चार समाधियां भी हैं। गुदड़ी महाराज की कुटिया को भी पूर्व रूप में ही संरक्षित किया गया है।

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