उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन-मंत्रिमंडल विस्तार, चर्चाएं क्यों और कितनी सही या सिर्फ अफवाहें…
डॉ. नवीन जोशी, नवीन समाचार, नैनीताल, 13 अगस्त 2024 (Uttarakhand-Leadership change-Cabinet Expansion)। पिछले कुछ दिनों से उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन से लेकर मंत्रिमंडल विस्तार तक की अनेक चर्चाएं हैं। यह चर्चाएं भाजपा के कुछ नेताओं के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और केंद्रीय नेताओं से मुलाकात से शुरू हुईं और इन्हें कांग्रेस नेता व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपनी हालिया संसद भवन की यात्रा के दौरान कुछ ‘सुनी-सुनायी’ बातों को सार्वजनिक करके हवा दी और मीडिया के एक वर्ग ने इन्हें सुर्खियां बनाने में देरी नहीं की। इन चर्चाओं को इसलिये भी बल मिला कि भाजपा क्या कांग्रेस में भी उत्तराखंड में मुख्यमंत्री को हर दो-तीन वर्षों में पत्तों की तरह फेंटने-बदलने की परंपरा सी रही है।
यूं भाजपा का हालिया दौर का इतिहास रहा है कि यहां जो कुछ भी होता है वह या तो अगले 24 से 48 घंटों के बीच ही हो जाता है, अन्यथा जो भी चर्चाएं होती हैं वह अफवाहें बनकर रह जाती हैं। इसलिये इस आधार पर मानें तो जो कुछ चर्चाएं रही हैं वह अफवाहों से इतर कुछ भी नहीं हैं।
वैसे जहां तक नेतृत्व परिवर्तन व मंत्रिमंडल विस्तार की बातें हो रही हैं, उनमें से यदि मंत्रिमंडल विस्तार की संभावना को सही मानें, जिसे समय-समय पर कई बार होते 3 वर्ष हो गये हैं तो नेतृत्व परिवर्तन का प्रश्न ही खड़ा नहीं होता है, और यदि नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाएं सही हों तो मंत्रिमंडल विस्तार का प्रश्न ही बेमानी हो जाता है।
बहरहाल, इसके बावजूद चर्चाएं हैं कि पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेताओं का धड़ा दिल्ली में केंद्रीय नेतृत्व से मिल कर मुख्यमंत्री धामी के विरुद्ध कान भर रहा है, तो यहां धामी भी विधायकों को चाय-नाश्ते पर बुलाकर अपने खेमे को मजबूत कर रहे हैं। यह भविष्य के लिये मुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री के विरोधियों की ओर से खेमेबंदी का प्रभाव भी हो सकता है।
बद्रीनाथ था सेमाइफाइनल और केदारनाथ फाइनल ! (Uttarakhand-Leadership change-Cabinet Expansion)
बहरहाल, हमारा मानना है कि यदि मुख्यमंत्री को बदला जाना होता तो मंगलौर व बद्रीनाथ के चुनाव परिणाम के बाद ही बदल दिया गया होता। खासकर बद्रीनाथ के चुनाव परिणाम के बाद, जिसमें भाजपा आंकड़ों के लिहाज से लोक सभा चुनाव के मुकाबले लगभग 14 हजार मतों से पिछड़ती दिखी है। लोक सभा चुनाव में उसे बद्रीनाथ में कांग्रेस पर 8.5 हजार मतों की बढ़त मिली थी और विधानसभा चुनाव वह लगभग 5224 मतों के अंतर से हार गयी।
आगे केदारनाथ में उप चुनाव और उच्च न्यायालय की सख्ती के बीच राज्य में निकाय चुनाव जल्द होने संभावित हैं, ऐसे में भाजपा नेतृत्व परिवर्तन करे और नये नेतृत्व को केदारनाथ व निकाय चुनावों की नयी परीक्षा में परीक्षा में बैठाये, इससे बेहतर तो यही होगा कि पहले से काबिज धामी को ही यह परीक्षा देने दे। यदि धामी इन परीक्षाओं में पास हुए तो आगे भी बने रहेंगे और नहीं तो उन्हें हटाया भी जा सकता है। यानी केदारनाथ व निकाय चुनाव धामी के लिये अग्नि परीक्षा साबित हो सकते हैं।
वैसे भी भले धामी भले पहले केवल अनुभवहीन विधायक रहते और बाद में चुनाव हारने के बाद भी मुख्यमंत्री पद पर बैठाये गये हों लेकिन आज की तिथि में यदि मुख्यमंत्री पद पर अनुभव की बात करें तो वह एकमात्र पूरे 5 वर्ष मुख्यमंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी के बाद सर्वाधिक समय तक मुख्यमंत्री पद पर रहकर राज्य के अन्य नेताओं से इस पद के लिये सर्वाधिक अनुभवी ही कहे जाएंगे।
धामी का भविष्य (Uttarakhand-Leadership change-Cabinet Expansion)
हालांकि जैसा कि धामी को मुख्यमंत्री बनाने के दौरान और कई अन्य राज्यों में मुख्यमंत्रियों को बनाने के दौरान देखा गया, भाजपा में खासकर मुख्यमंत्री पद पर अनुभव को महत्व दिये जाने के उदाहरण कम ही हैं। खासकर कार्यकाल के पूरा होने से पहले यानी विधानसभा चुनाव से कुछ समय पहले मुख्यमंत्री बदलकर सरकार के विरुद्ध ‘एंटी इंकमबेंसी’ करने का भाजपा का प्रयोग कई बार सही साबित हुआ है। स्वयं धामी भी इसी कारण मुख्यमंत्री बने। ऐसे में माना जा सकता है कि वह अगले एक-डेढ़ वर्ष इस पद पर बने रह सकते हैं।
वैसे भी चाहे उनके मंत्रिमंडल के कोई अन्य सहयोगी हों या विधायकों में से कोई, कोई भी मुख्यमंत्री बनने पर चमकते चेहरे के साथ राज्य में उत्साह का माहौल ला पाए, ऐसा नहीं दिखता है। भाजपा अब केंद्र में सांसदों की कम संख्या को देखते हुए किसी सांसद को मुख्यमंत्री बनाने की स्थिति में भी नहीं है। यह सभी बातें भी मुख्यमंत्री धामी के पक्ष में जा सकती हैं।
पार्टी नेताओं के लिए संभावनाएं (Uttarakhand-Leadership change-Cabinet Expansion)
अलबत्ता निकाय व केदारनाथ चुनाव से पहले मंत्रिमंडल विस्तार या दायित्व देने की संभावना बन सकती है, लेकिन भाजपा का पिछला इतिहास यह भी रहा है कि वह पहले देकर परिणाम लेने की जगह परिणाम देने का झांसा देती दिखती है और दायित्व देने व मंत्री पद देने में कंजूसी बरतती दिखती है। हमेशा भाजपा सरकार में मंत्री पद रिक्त रहते हैं और पार्टी नेता दायित्व मिलने की बाट जोहते रहते हैं। और ऐसा लगता है कि पार्टी जनों से कहा जाता है कि पहले वह चुनाव जितायें, तब उन्हें ईनाम में दायित्व या मंत्रीपद दिये जाएंगे, और चुनाव निपटने के बाद फिर इस विषय में चर्चा भी नहीं होती है।
बहरहाल, इधर मंत्रिमंडल विस्तार की संभावना पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी में सभी निर्णय संगठन स्तर से होते हैं और इसके लिए प्रक्रिया चल रही है। साथ ही प्रदेश प्रभारी दुष्यंत कुमार गौतम ने भी बताया है कि उत्तराखंड में मंत्रिमंडल विस्तार के लिए होमवर्क पूरा हो गया है और शीर्ष नेतृत्व की हरी झंडी के बाद जल्द ही इस पर कार्रवाई की जाएगी।
गौरतलब है कि राज्य मंत्रिमंडल में चार पद रिक्त हैं। इनमें से तीन पद धामी सरकार के गठन के समय ही, जबकि एक पद काबीना मंत्री चंदन राम दास के निधन के बाद से रिक्त चल रहा है। कहा जा रहा है कि अगले 15 दिनों में मंत्रिमंडल विस्तार संभावित है। (Uttarakhand-Leadership change-Cabinet Expansion)
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