‘नवीन समाचार’ में हम बच्चों की रचनात्मकता को मंच प्रदान करने के लिए ‘विद्यार्थियों की कलम से’ (Vidyarthiyon ki Kalam se) नाम से एक नया स्तंभ शुरू कर रहे हैं। इस स्तंभ में हम बच्चों की चुनिंदा, मौलिक व स्तरीय रचनाओं को प्रकाशित करेंगे। इस स्तंभ हेतु बच्चे अपनी रचनाएं अधिकतम 500 शब्दों में क्रुतिदेव-10 या यूनीकोड फॉंट में हमें saharanavinjoshi@gmail.com पर ईमेल के माध्यम से भेज सकते हैं। -संपादक
Vidyarthiyon ki Kalam se-2
मणिपुर एक बहुत खूबसूरत और गहरी संस्कृति वाला स्थान है। हालांकि, इस खूबसूरती के पीछे मणिपुर में कई मुश्किलें हैं जिनसे संकट पैदा होता है। न्याय, शांति, ईमानदारी और सृजन की दिशा में प्रतिबद्ध जेपिक समूह, जो सेंट मैरीज कॉन्वेंट कॉलेज नैनीताल की सृजनात्मकता को बढ़ावा देने में लगा हुआ है, उन समस्याओं के बारे में जागरूकता फैलाने, समझ को बढ़ावा देने और सकारात्मक प्रभाव डालने का प्रयास कर रहा है।
न्याय
मणिपुर में संकट के बीच, न्याय की खोज केंद्र स्तर पर होती है, जो इस क्षेत्र के सामने आने वाली मुश्किलों के निष्पक्ष और न्यायसंगत समाधान की आवश्यकता को प्रकाशित करती है। यह सिर्फ अच्छा होने के बारे में नहीं है, बल्कि यह एक मौलिक नियम है कि हर किसी के साथ उचित व्यवहार किया जाना चाहिए। यह एक बड़ी लड़ाई के बारे में है जिसमें दुनिया भर में कई लोग जुटे हुए हैं। वे चाहते हैं कि सभी को उनके अधिकार मिलें, सभी के साथ भले तरीके से व्यवहार किया जाए और सभी का सम्मान किया जाए।
शांति
जो अमानवीय घटनाएं मणिपुर में घटित हो रही है उससेे संपूर्ण भारत की शांति भंग हो रही है । अगर समय रहते कोई सार्थक कदम नहीं उठाए गए तो स्थिति और भी गंभीर होती चली जाएगी । प्रत्येक मनुष्य का परम कर्तव्य बनता है कि वह संपूर्ण भारत में शांति का प्रवाह करें एवं ऐसे जगत के निर्माण के लिए अपना योगदान दे जहां चारों ओर शांति एवं एकता की गूंज गूंजे।
ईमानदारी
मणिपुर एक जटिल संकट से जूझ रहा है जो पहचान, अखंडता और शासन के मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमता है। राज्य की अखंडता विवाद का विषय रही है, कुछ की मान्यता की मांग के साथ जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्त क्षेत्र या यहां तक कि अलग प्रशासनिक इकाइयों के रूप में। ये मांगें अक्सर एकजुट मणिपुर बनाए रखने की आवश्यकता से टकराती हैं, जिससे शासन संरचनाओं पर सवाल उठते हैं जो स्थानीय स्वायत्तता और राज्य की समग्र सुसंगतता दोनों को समायोजित कर सकते हैं।
सृजन
जब हम सृजन नहीं कर सकते तो क्या हमें विध्वंस करने का अधिकार है? मणिपुर हिंसा के पिछले तीन महीनों में कम से कम 130 लोग मारे गए हैं और 400 घायल हुए हैं। हिंसा को रोकने के लिए सेना, अर्धसैनिक बलों और पुलिस के संघर्ष के कारण 60,000 से अधिक लोगों को अपने घरों से मजबूर होना पड़ा है। क्या महिलाओं ने अपनी पवित्रता और आत्मसम्मान बनाए रखने का अधिकार खो दिया है? मानव पूंजी भारी मात्रा में नष्ट हो गई है और अब समय आ गया है कि हम चुप न रहें और इस विकृत शो के मात्र दर्शक न बने रहें ।
अक्षिता बिष्ट – 12B
दिव्यांशी तिवारी – 12B
फातिमा सिद्दीकी- 11-A
आद्या जोशी -10A
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Vidyarthiyon ki Kalam se-1: मणिपुर हिंसा
एक विद्यार्थी का एकमात्र शस्त्र होती है-उसकी कलम। आज इसी कलम के उपयोग द्वारा मैं आप सभी के हृदय में सजगता का संचार करना चाहूँगी। हम सभी भलीभांति अवगत हैं दिनांक 3 मई, 2023 से मणिपुर में घटित अमानवीय दुर्घटनाओं से। आज ऐसी बेहाल स्थिति ने मुझे यह लिखने पर विवश कर दिया।
दो पक्षों के बीच में जब कोई विवाद छिड़ता है तो उसके दुष्परिणाम केवल उन दो पक्षों को ही नहीं भोगने पड़ते हैं बल्कि कई अन्य मासूम जिन्दगियाँ भी अपने प्राणों की आहुति देने पर विवश हो जाती हैं। इस गंभीर स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है-इस पर मुझे अपना निर्णय सुनाने का कोई अधिकार नहीं है। मैं केवल काँपते हाथों से यह लिखते समय उन मासूम लोगों की कराहों की गूँज सुन सकती हूँ जिन्होंने अपनी अमूल्य जान गंवायी।
मैं उन हजारों लोगों की पीड़ा का आभास कर सकती हूँ जो अपने ही घरों से बेघर कर दिए गए। मैं अपनी आँखों में वह दृश्य देख सकती हूँ जब छोटी-छोटी बच्चियों एवं स्त्रियों के साथ इतनी शर्मनाक घटनाएँ घटित हुई होंगी। नारी को तो सभ्य समाज में अत्यंत पूजनीय माना जाता था। तो अब यह मान्यता धुंधली कैसे पड़ गयी ? आज ईश्वरतुल्य नारी की अस्मिता खतरे में है।
ऐसी निंदनीय एवं अमानवीय घटनाएँ जो मणिपुर में हो रही हैं, उसके कल्पना-मात्र से ही मेरा हृदय पीड़ा से द्रवित हो उठता है। एक बार, बस-एक बार मणिपुर में पीड़ित लोगों की स्थिति का अनुमान लगाकर देखिए। आज क्या मानवता कहीं इतनी लुप्त हो गयी है कि सम्पूर्ण घटना ज्ञात होने पर भी हम उसे नजरअंदाज कर देते हैं।
हमारे पास सोशल मीडिया नेटवर्किंग साइट्स पर मनोरंजन के लिए भिन्न-भिन्न पोस्ट डालने के लिए तो पर्याप्त समय है। परंतु बात जब अपने देश के लिए कोई कदम उठाने की आती है तब क्यों हम केवल मूक दर्शक बनकर ही रह जाते हैं ? देश के प्रति सजगता केवल 15 अगस्त था 26 जनवरी को नहीं दिखायी जाती बल्कि देश के प्रति प्रेम एवं देशवासियों के प्रति सांत्वना ऐसे अवसरों पर ही दिखायी जाती है।
कहने को तो हम सभी ने अपने विद्यालयों में प्रभात सभा के समय पर यह वाक्य हजारों बार दोहराया होगा ‘प्रत्येक देशवासी मेरे भाई-बहन हैं’। परंतु क्या हमने यह बोलते समय कभी भी इस पंक्ति को महसूस किया ? मैं देश की आने वाली पीढ़ी हूँ और बड़े दुख से मुझे आज यह कहना पड़ रहा कि मेरे देशवासियों में प्रेम से अधिक ईर्ष्या, अहिंसा से ज्यादा हिंसा और दया से ज्यादा निर्दयता देखने को मिलती है।
‘देश की एक सजग नागरिक’ होने के कारण कम-से-कम मैं अपनी लेखनी को शस्त्र के रूप में ढालकर यदि किसी एक भी व्यक्ति के हृदय में कुछ करुणा के भाव उजागर कर पाई तो अपनी लेखनी को सफल समझूंगी। यह कलम लोक-निर्माण के लिए उठी है और मुझे पूरा विश्वास है कि इसका सकारात्मक एवं क्रांतिकारी प्रभाव अवश्थ पड़ेगा। जय हिंद, जय भारत।।
-फातिमा सिद्दीकी, सेंट मैरी कॉन्वेंट कॉलेज, नैनीताल।
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