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December 22, 2024

पूर्णागिरि शक्तिपीठ, जहां गिरी थी माता की नाभि

Purnagiri Poornagiri

डॉ. नवीन जोशी, नवीन समाचार, नैनीताल, 5 अक्टूबर 2024 (Purnagiri Shakti Peeth-where the navel Fallen) चंपावत मुख्यालय से करीब 92 व टनकपुर से ठुलीगाड़ तक करीब 19 किमी की दूरी वाहनों से तथा शेष चार किमी पैदल चढ़ाई चढ़ते हुए अन्नपूर्णा चोटी के शिखर पर लगभग तीन हजार फीट की ऊंचाई पर मां भगवती की 108 सिद्धपीठों में से एक पूर्णागिरि (पुण्यादेवी) शक्ति पीठ स्थापित है। कहते हैं कि यहां माता सती की नाभि गिरी थी।

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आदिगुरु गोरखनाथ की धूनी सतयुग से लगातार प्रज्वलित (Purnagiri Shakti Peeth-where the navel Fallen

यहां आदिगुरु गोरखनाथ की धूनी सतयुग से लगातार प्रज्वलित बताई जाती है। यहां विश्वत संक्रांति से आरंभ होकर लगभग 40 दिन तक मेला चलता है। चैत्र नवरात्र (मार्च-अर्प्रैल) में विशाल तथा शेष पूरे वर्ष भर भी श्रद्धालुओं का मेला लगा रहता है। यहां घास पर गांठ लगाकर मनौतियां मांगने की परंपरा प्रचलित है।

पुराणों के अनुसार महाभारत काल में प्राचीन ब्रह्मकुंड के निकट पांडवों द्वारा देवी भगवती की आराधना तथा बह्मदेव मंडी में सृष्टिकर्ता ब्रह्मा द्वारा आयोजित विशाल यज्ञ में एकत्रित अपार सोने से यहां सोने का पर्वत बन गया।

(Purnagiri Shakti Peeth-where the navel Fallen Purnagiri Temple: पूर्णागिरी धाम में हुआ मेले का शुभारंभ, जानिए इस मंदिर का  पौराणिक महत्व - maa purnagiri temple annual fair starts before navratri in  uttarakhand significance - GNTएक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार एक बार यहां एक संतान विहीन सेठ को देवी ने स्वप्न में कहा कि मेरे दर्शन के बाद ही तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा। सेठ ने मां पूर्णागिरि के दर्शन किए और कहा कि यदि उसे पुत्र प्राप्त हुआ तो वह देवी के लिए सोने का मंदिर बनवाएगा।

मनौती पूरी होने पर सेठ ने लालच कर सोने के स्थान पर तांबे के मंदिर में सोने का पालिश लगाकर जब उसे देवी को अर्पित करने के लिए मंदिर की ओर आने लगा तो टुन्यास नामक स्थान पर पहुंचकर वह उक्त तांबे का मंदिर आगे नहीं ले जा सका तथा इस मंदिर को इसी स्थान पर रखना पडा। आज भी यह तांबे का मंदिर ‘झूठा मंदिर’ के नाम से जाना जाता है।

वहीं एक अन्य कथा के अनुसार एक साधु ने अनावश्यक रूप से मां पूर्णागिरि के उच्च शिखर पर पहुंचने की कोशिश की तो मां ने रुष्ट होकर पहले उसे शारदा नदी के उस पार फेंक दिया, और बाद में दया कर उस संत को सिद्ध बाबा के नाम से विख्यात कर आशीर्वाद दिया कि जो व्यक्ति मेरे दर्शन करेगा वह उसके बाद तुम्हारे दर्शन भी करने आएगा। जिससे उसकी मनौती पूर्ण होगी।

कुमाऊं के लोग आज भी सिद्धबाबा के नाम से मोटी रोटी बनाकर सिद्धबाबा को अर्पित करते हैं। शारदा नदी के दूसरी ओर नेपाल देश का प्रसिद्ध ब्रह्मा व विष्णु का ब्रह्मदेव मंदिर कंचनपुर में स्थित है।

प्रसिद्ध वन्याविद तथा आखेट प्रेमी जिम कार्बेट ने सन् 1927 में विश्राम कर अपनी यात्रा में पूर्णागिरि के प्रकाशपुंजों को स्वयं देखकर इस देवी शक्ति के चमत्कार का देशी व विदेशी अखबारों में उल्लेख कर इस पवित्र स्थल को काफी ख्याति प्रदान की। (Purnagiri Shakti Peeth-where the navel Fallen, About Purnagiri, History of Purnagiri Shakti Peeth, Purnagiri Shakti Peeth)

हिन्दू धर्म में 51 शक्तिपीठों का महत्व एवं कौन सा शक्तिपीठ कहाँ है, और वहाँ माता का कौन सा अंग या आभूषण गिरा :

हिन्दू धर्म के अनुसार, जहां-जहां माता सती के शरीर के अंग या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। ये पवित्र तीर्थ स्थल माने जाते हैं और सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हुए हैं। सती देवी के अंग गिरने के कारण ये शक्तिपीठ अस्तित्व में आए, जिन्हें अत्यंत पावन तीर्थ के रूप में पूजा जाता है। इनमें प्रमुख रूप से देवी के विभिन्न रूपों का वास माना जाता है और इनकी शक्ति अनंत मानी जाती है।

शक्तिपीठ देवी दुर्गा या पार्वती के विभिन्न रूपों के प्रतीक होते हैं, जैसे लक्ष्मी, सरस्वती, आदि। इन शक्तिपीठों में देवी के शरीर के विभिन्न अंग या आभूषण गिरे थे, जिन्हें भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से काटा था। ये सभी शक्तिपीठ हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए अत्यंत श्रद्धा के केंद्र हैं।

  1.  मणिकर्णिका घाटवाराणसी, उत्तर प्रदेश – यहां माता सती की मणिकर्णिका गिरी थी। यहां माता के विशालाक्षी और मणिकर्णी स्वरूप की पूजा होती है।

  2. माता ललिता देवी शक्तिपीठ, प्रयागराज – इलाहाबाद स्थित इस जगह पर माता सती के हाथ की अंगुली गिरी थी। यहां माता ललिता के नाम से जानी जाती हैं। 

  3. रामगिरीचित्रकूट, उत्तर प्रदेश में माता सती का दायां स्तन गिरा था। इस स्थान पर माता शिवानी के रूप में पूज्यनीय हैं।

  4. वृंदावन में उमा शक्तिपीठ स्थित है। इसे कात्यायनी शक्तिपीठ के नाम से भी जानते हैं। यहां माता के बाल के गुच्छ और चूड़ामणि गिरे थे।

  5. देवी पाटन मंदिर, बलरामपुर में माता का बायां स्कंध गिरा था। इस शक्तिपीठ में माता मातेश्वरी के रूप में विराजमान हैं। 

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नैना देवी, हिमाचल प्रदेश 

6. हरसिद्धि देवी शक्तिपीठ– मध्य प्रदेश में देवी के दो शक्तिपीठ हैं। इनमें से एक हरसिद्धी देवी शक्तिपीठ है, जहां माता सती की कोहनी गिरी थी। यह रूद्र सागर तालाब के पश्चिमी तट पर स्थित है।
7. शोणदेव नर्मता शक्तिपीठ– मध्यप्रदेश के अमरकंटक में माता का दया नितंब गिरा था। यहां पर नर्मदा नदी का उद्गम होने के कारण यहां माता को नर्मता स्वरूप में पूजा जाता है।
8. नैना देवी मंदिर– हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में शिवालिक पर्वत पर देवी सती की आंख गिरी थी। यहां माता देवी महिष मर्दिनी कही जाती हैं। इसके अलावा नैनीताल में भी माता की दानई आँख गिरने की बात कही जाती है। 
9. ज्वाला जी शक्तिपीठ– हिमाचल के कांगड़ा में देवी की जीभ गिरी थी, इस कारण इसका नाम सिधिदा या अंबिका पड़ा।
10. त्रिपुरमालिनी माता शक्तिपीठ– पंजाब के जालंधर में छावनी स्टेशन के पास माता का बायां स्तर गिरा था। 
11. अमरनाथ के पहलगांव, कश्मीर में माता सती का गला गिरा था, यहां महामाया की पूजा होती है।
12. हरियाणा के कुरुक्षेत्र में माता के पैर की एड़ी गिरी थी। यहां माता सावित्री का शक्तिपीठ स्थित है। (Purnagiri Shakti Peeth-where the navel Fallen, About Purnagiri, History of Purnagiri Shakti Peeth, Purnagiri Shakti Peeth, where the mother’s navel had fallen)

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विशालाक्षी शक्तिपीठ, वाराणसी

14.बिरात- राजस्थान में माता अंबिका का मंदिर है। यहां माता सती के बाएं पैर की उंगलियां गिरी थीं।
15. अंबाजी मंदिर– गुजरात में माता अम्बाजी का मंदिर है। मान्यता है कि यहां माता का हृदय गिरा था।
16. गुजरात के जूनागढ़ में देवी सती का आमाशय गिरा था। यहां माता को चंद्रभागा के नाम से जाना जाता है।
17. महाराष्ट्र के जनस्थान पर माता की ठोड़ी गिरी थी। उसके बाद यहां देवी के भ्रामरी स्वरूप की पूजा होने लगी। 
18. माताबाढ़ी पर्वत शिखर शक्तिपीठ त्रिपुरा में उदरपुर के राधाकिशोरपुर गांव में है। इस स्थान पर माता का दायां पैर गिरा था। यहां माता को देवी त्रिपुर सुंदरी कहलाती हैं। 
19. बंगाल में माता के सबसे अधिक शक्तिपीठ हैं। यहां पूर्व मेदिनीपुर जिले के तामलुक स्थित विभाष में देवी कपालिनी का मंदिर है। यहां माता की बायीं एड़ी गिरी थी।
20. बंगाल के हुगली में रत्नावली में माता सती का दायां कंधा गिरा था। इस मंदिर में माता को देवी कुमारी नाम से पुकारा जाता है। (Purnagiri Shakti Peeth-where the navel Fallen, About Purnagiri, History of Purnagiri Shakti Peeth, Purnagiri Shakti Peeth, where the mother’s navel had fallen)

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भद्रकाली देवीकूप शक्तिपीठ

21. मुर्शीदाबाद के किरीटकोण ग्राम में देवी सती का मुकुट गिरा था। यहां माता का शक्तिपीठ है और माता के विमला स्वरूप की पूजा की जाती है।
22. जलपाइगुड़ी के बोडा मंडल में सालबाढ़ी गांव में माता का बायां पैर गिरा था। इस स्थान पर माता के भ्रामरी देवी के रूप की पूजा की जाती है।
23. बहुला देवी शक्तिपीठ- वर्धमान जिले के केतुग्राम इलाके में माता सती का बायां हाथ गिरा था। 
24. मंगल चंद्रिका माता शक्तिपीठ – वर्धमान जिले के उज्जनि में माता का शक्तिपीठ है। यहां माता की दायीं कलाई गिरी थी। 
25. पश्चिम बंगाल के वक्रेश्वर में देवी सती का भ्रूमध्य गिरा था। इस स्थान पर माता को महिषमर्दिनी कहा जाता है। 
26. नलहाटी शक्तिपीठ- बीरभूम के नलहाटी में माता के पैर की हड्डी गिरी थी। 
27. फुल्लारा देवी शक्तिपीठ- पश्चिम बंगाल के अट्टहास में माता सती के होंठ गिरे थे। यहां माता फुल्लारा देवी कहलाती हैं। 
28. नंदीपुर शक्तिपीठ- पश्चिम बंगाल में माता सती का हार गिरा था। यहां मां नंदनी की पूजा की जाती है। 
29. युगाधा शक्तिपीठ- वर्धमान जिले के ही क्षीरग्राम में माता के दायें हाथ का अंगूठा गिरा। इस स्थान पर माता का शक्तिपीठ बन गया, जहां उन्हें देवी जुगाड्या के नाम से पुकारा जाता है। 
30. कलिका देवी शक्तिपीठ-मान्यताओं के मुताबिक, कालीघाट में माता के दाएं पैर की अंगूठा गिरा था। वे मां कालिका के नाम से यहां जानी जाती हैं। 

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