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November 22, 2024

प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति को सोंपा उत्तराखंड की खास लंबी-खुशबूदार बासमती (Basmati) का तोहफा, सीएम धामी ने जताया आभार, जानें बासमती का सच्चा-झूठा इतिहास…

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During his visit to the United States, Prime Minister Narendra Modi presented special gifts to President Joe Biden and First Lady Jill Biden, including a unique donation of long-scented Basmati rice from Uttarakhand. This gesture has been met with gratitude from Uttarakhand Chief Minister Pushkar Singh Dhami, who considers it a proud moment for the state. Basmati rice from Uttarakhand has gained popularity not only within the country but also internationally, and its inclusion in the gifts highlights the state’s prestige on the global stage.

Basmati

नवीन समाचार, देहरादून, 23 जून 2023। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और अमेरिका की प्रथम महिला जिल बाइडेन को भारतीय परंपराओं के अनुसार खास उपहार भी अमेरिका के राष्ट्रपति को भेंट दिए हैं। इन खास उपहारों में देश के विभिन्न राज्यों को प्रतिनिधित्व देते हुए गौदान यानी गाय का दान, भूदान यानी भूमि का दान, तिलदान यानी तिल के बीज का दान, हिरण्यदान यानी सोने के दान के अंतर्गत राजस्थान में हस्तनिर्मित 24 कैरेट का शुद्ध और हॉलमार्क वाला सोने का सिक्का, रौप्यदान यानी चांदी का दान, लवंदन यानी नमक का दान के रूप में गुजरात का नमक व धान्यदान के रूप में उत्तराखंड का लंबा सुगंधित बासमती (Basmati) चावल तथा गणेश जी की मूर्ति, एक दीया यानी तेल का दीपक, पंजाब का घी और महाराष्ट्र का गुड़ शामिल हैं। इसके बाद ह्वाइट हाउस की रसोई में उत्तराखंड के बासमती चावलों की खुशबू महकेगी।

इस पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने प्रधानमंत्री मोदी का धन्यवाद अदा किया है। उन्होंने कहा, देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने उत्तराखण्ड में उत्पादित होने वाले प्रसिद्ध लंबे दाने के चावलों को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन जी को उपहार स्वरूप भेंट किए हैं। आदरणीय प्रधानमंत्री जी का उत्तराखण्ड के प्रति विशेष लगाव है और आज उन्होंने उत्तराखण्ड के किसानों और समस्त प्रदेशवासियों को गौरवान्वित महसूस कराते हुए देवभूमि में उत्पादित लंबे चावल व उत्तराखण्ड को विश्व पटल पर एक नई पहचान दी है। समस्त प्रदेशवासियों की ओर से कोटि-कोटि आभार आदरणीय प्रधानमंत्री जी !’ 

उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड और खासकर देहरादून में पैदा होने वाली बेहद लंबे और सुगंधित बासमती चावल की मांग देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के राष्ट्रपति को भेंट में दी गई सामग्री में उत्तराखंड की बासमती चावल को भी शामिल किया है। इससे दुनिया में उत्तराखंड का मान बढ़ा है।

उत्तराखंड के बासमती चावल का इतिहास-History of Basmati

Basmatiकुछ आज के दौर के इतिहासकारों का कहना है कि देहरादून की बासमती मूलतः अफगानिस्तान से लाई गई बासमती है। वर्ष 1839 से 1842 तक अंग्रेजों और अफगानों के बीच युद्ध चला था। अफगान हारे तो अफगानी शासक दोस्त मोहम्मद खान को देश निकाला दिया गया। इस पर दोस्त मोहम्मद खान ने मसूरी में निर्वासित जीवन बिताया। कहते हैं कि दोस्त मोहम्मद को देहरादून में अपने चावल की याद आई तो उन्होंने अफगानिस्तान से बासमती के बीज मंगवाए। बासमती के बीज देहरादून की वादियों में सेवला कला क्षेत्र में बोए गए तो यहां की आबोहवा, मिट्टी-पानी अफगानी बासमती को रास आ गई। इस तरह देहरादून की घाटी बासमती चावल के लिए जानी जाने लगी। इस बासमती की खासियत यह है कि यह स्वादिष्ट तो होती ही है, इसकी महक दूर से पता चल जाती है। अपने लंबे आकार के कारण आकर्षक दिखने के साथ कम चावलों में ही प्लेट के भर जाने के कारण इसे बड़े होटलों में भी काफी पसंद किया जाता है। घरों में खास मेहमानों के आने पर भी बासमती परोसी जाती है। इसकी खुशबू से पूरा घर भी महकने लगता है।

लेकिन इतिहासकारों का एक दूसरा राष्ट्रवादी वर्ग है जो मानता है कि उत्तराखंड में सोलहवीं सदी से बासमती का जिक्र किया जाता है। कहा जाता है कि सिरमौर के राजा मौली चंद व गढ़वाल के राजा मानशाही के बीच बासमती की वजह से युद्ध भी हुआ था। यह भी कहा जाता है कि बासमती 16वीं सदी में बद्रीनाथ में भोग में चढ़ती थी। इसका जिक्र पाँवडों, लोकगाथाओं, जागरों, लोकगीतों में भी मिलता है। एक उदाहरण प्रस्तुत है:

“सिरीनगर को राजा होलो मानशाही, कुमाऊँ को राजा होलो गुरु ज्ञानचंद,
सिरमौर कु राजा मौलीचंद होलो! दिल्ली म होला अकबर बादशाही*!
मानशाही होलो धर्मी राजा, मान को धनि होलो आण को पक्को!
सुर्ज सी प्रचंड होलो, द्यो सी दानी! उत्तराखंड की भूमि मा होलो तपोवन!
तपोवन मा होंदी होली जीरा बासमती! जीरा बासमती अनमनि भांति!
तब देश देश का रज्जा करदन रीस! यो सिरी नगर को रज्जा कन खान्द बासमती भात!’

कहा जाता है कि तपोवन व मालकी दून (दून घाटी) में गढ़नरेश राजा सहजपाल (1548-1561 ईसवी) के काल से लेकर प्रद्युम्न शाह (1785-1804 ईसवी) तक मुगल, सिरमौर राजा व सिख गुरुओं के बीच दून की झीरी बासमती के लिए प्रसिद्ध इस घाटी को अपने कब्जे में लेने के लिए संघर्ष रहा। इनमें सबसे बड़ा संघर्ष सिरमौर के राजा मौलीचंद व गढ़वाल के राजा मानशाही की सेनाओं के बीच हुआ।

इस युद्ध में सिरमौर के राजा मौली चंद ने अपने नाई त्यूणा की मदद से गढ़तोडू के भड़ भौंसिंग रिखोला को, जब वह सिरमौर पर विजय पताका फहराकर शेषधारा में स्नान कर संध्या करने के लिए बैठा था, धोखे से मार दिया था। बदले में त्यूणा नाई ने मौली चंद से दरबार में नाईयों की दीवान पदवी पाई। गढ़ नरेश महीपति शाह के काल में इसका बदला भौंसिंग रिखोला के पुत्र लोदी रिखोला ने लिया। उसने न सिर्फ माल की दूण तपोवन जीता बल्कि सिरमौर राज्य का अधिकाँश भाग भी अपने कब्जे में कर लिया। आगे राजा मौली चंद की पुत्री मंगला ज्योति ने अपने पिता के प्राणदान की प्रार्थना कर लोदी रिखोला से विवाह रचा लिया। 

यह भी कहा जाता है कि तपोवन व मालकी दून (दून घाटी) में गढ़नरेश राजा सहजपाल (1548-1561) के काल में 1552-53 ई. उनके पौत्र राजा मानशाह के काल (1591-1611) उनके पौत्र महिपत शाह के काल (1631 से 1635 ई.), उनके पुत्र पृथ्वीपति शाह (1640-1664 ई.) के काल (संदर्भ- गढ़राजवंश काव्य, जहाँगीरनामा, शाहजहाँनामा, मआसिर अल उमरा), उनके पुत्र मेदनीशाह के काल (1664-1684 ई.), उनके पुत्र फ़तेह शाह के काल (1684-1716 ई.) फतेह्शाह के पुत्र प्रदीप शाह के काल (1717-1772 ई.), प्रदीप शाह के पुत्र ललित शाह (1772-80 ई.) व प्रद्युम्न शाह (1785-1804 ई.) व अकबर* (शासनकाल 27 जनवरी 1556 से 29 अक्तूबर 1605) जिसका जिक्र ऊपर लिखी लोकगाथा में भी आता है, तक मुग़ल, सिरमौर राजा व सिख गुरुओं ने झीरी बासमती के लिए प्रसिद्ध इस घाटी को अपने कब्जे में लेने के लिए संघर्ष किये। 

गढ़राजवंश काव्य, जहाँगीरनामा, शाहजहाँनामा, मआसिर अल उमरा के अनुसार भी गढ़नरेश पृथ्वीपति शाह के काल में वर्ष 1635 से 1640 के मध्य इसी तपोवन क्षेत्र जिसमें बासमती उगती थी, सिरमौर के राजा की सहायता से मुगल मनसबदार नजावतखां ने आक्रमण कर शेरगढ़, कालसी व बैरागढ़ क्षेत्र पर अधिकार जमा लिया लेकिन फिर भी वह मालकी दूण पर कब्जा करने में असमर्थ रहा।

आगे झीरी बासमती का जिक्र 1783 में भी आता है, जब झीरी बासमती को लेकर सिखों ने गढ़नरेश जयकृत शाह के राज्यकाल में दून क्षेत्र में आक्रमण किया। सिक्खों से संधि हुई व “राखी कर’ के रूप में जयकृत शाह द्वारा प्रतिवर्ष एक चौथाई हिस्सा झीरी बासमती का सिखों को देना स्वीकार किया। इसके अलावा भी कई युद्ध इस क्षेत्र के लिए होते रहे।

यही नहीं बासमती का भोग बद्रीनाथ को भी लगता था। यह भी बताया जाता है कि माधौ सिंह भंडारी, भौं रिखोला, लोदी रिखोला सहित बहुत से वीर भडों की विजयगाथा में बासमती चावल का वर्णन आता है। बताया जाता है कि दून घाटी में बासमती धान की ‘बासमती 1121’ प्रजाति किसानों और खाने वालों के बीच बहुत प्रसिद्ध थी। (डॉ. नवीन जोशी) आज के अन्य एवं अधिक पढ़े जा रहे ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें। यदि आपको लगता है कि ‘नवीन समाचार’ अच्छा कार्य कर रहा है तो हमें सहयोग करें..

Prime Minister Modi handed over the special long-scented Basmati gift of Uttarakhand to the US President, CM Dhami expressed gratitude, know the true-false history of Basmati…

Naveen Samachar, Dehradun, 23 June 2023. Prime Minister Narendra Modi has also presented special gifts to US President Joe Biden and US First Lady Jill Biden as per Indian traditions during his US visit. Representing different states of the country in these special gifts, Gaudan i.e. donation of cow, Bhoodan i.e. donation of land, Tildaan i.e. donation of sesame seeds, Hiranyadan i.e. donation of gold handmade 24 carat pure and hallmarked gold in Rajasthan Coin,, Raupyadan i.e. silver donation, Lavandan i.e. salt from Gujarat as donation and long fragrant basmati rice from Uttarakhand as grain donation and idol of Ganesha, a lamp i.e. oil lamp, Ghee from Punjab and Maharashtra Contains Jaggery. After this, the fragrance of basmati rice from Uttarakhand will be there in the kitchen of the White House.
Uttarakhand Chief Minister Pushkar Singh Dhami has thanked Prime Minister Modi on this. Dhami has termed it as a proud moment on behalf of every Uttarakhand resident for giving a place to Uttarakhand and its identity on the international stage.

It is noteworthy that the long and fragrant basmati rice produced in Uttarakhand and especially in Dehradun is not only in demand in the country but also in foreign countries. This is the reason why Prime Minister Narendra Modi has also included basmati rice of Uttarakhand in the material presented to the President of America. This has increased the prestige of Uttarakhand in the world.

History of basmati rice of Uttarakhand

Some modern-day historians say that Basmati of Dehradun is originally Basmati brought from Afghanistan. From 1839 to 1842 there was a war between the British and the Afghans. When the Afghans lost, the Afghan ruler Dost Mohammad Khan was thrown out of the country. On this Dost Mohammad Khan spent his life in exile in Mussoorie. It is said that when Dost Mohammad remembered his rice in Dehradun, he ordered basmati rice from Afghanistan. When Basmati was sown in the Sevla Kala Kshetra in the plains of Dehradun, the climate, soil and water of this place suited Afghani Basmati. This is how the valley of Dehradun became known for basmati rice. The specialty of this basmati is that it is not only tasty, but its smell is known from far away. Due to its long shape and attractive appearance, it is also very popular in big hotels as it fills the plate with less rice. Basmati is also served when special guests arrive in homes. The whole house also starts smelling due to its fragrance.

But there is another nationalist section of historians who believe that Basmati is mentioned in Uttarakhand since the sixteenth century. It is said that there was a war between King Mauli Chand of Sirmaur and King Manshahi of Garhwal because of Basmati. It is also said that Basmati used to be offered as bhog in Badrinath in the 16th century.
It is also told that in Tapovan and Malaki Doon (Doon Valley) from the period of Garhanresh Raja Sahajpal (1548-1561 AD) to Pradyuman Shah (1785-1804 AD), Mughal, Sirmaur Raja and Sikh Gurus exchanged Jhiri Basmati of Doon. There was a struggle to take possession of this valley famous for The biggest conflict took place between the army of King Maulichand of Sirmaur and Garhwal King Manshahi. Its mention is also found in paavdas, folk tales, jagars, folk songs. Here is an example:

“May Manshahi be the king of Sirinagar, Guru Gyanchand be the king of Kumaon,
Sirmaur Ku Raja Maulichand Holo! Akbar reigns in Delhi!
May you be a righteous king, may you be rich in respect and may you be strong!
Be strong like the sun, benevolent like a lamp! Holo Tapovan in the land of Uttarakhand!
Tapovan ma hondi holi jeera basmati! Cumin Basmati is like no mani!
Then the country’s raja kardan rees! Yo Siri Nagar Ko Razza Kan Khand Basmati Bhat!

It is said that in this battle Mauli Chand, the king of Sirmaur, with the help of his barber Tuna, had treacherously killed Bhad Bhansing Rikhola of Garhtodu, when he had hoisted the victory flag over Sirmaur and sat down to bathe in Sheshdhara and take an evening bath. In return Tuna Nai got the title of Dewan of barbers in the court from Mauli Chand. Lodi Rikhola, the son of Bhaunsing Rikhola, took revenge during the reign of Garh King Mahipati Shah. He not only won Mal’s Doon Tapovan but also captured most of the Sirmaur state. Next, Mangala Jyoti, daughter of Raja Mauli Chand, married Lodi Rikhola after praying for her father’s life.
Further mention of Jhiri Basmati also comes in 1783, when the Sikhs attacked the Doon region during the reign of Garhanresh Jaikrit Shah with Jhiri Basmati. A treaty was made with the Sikhs and in the form of “Rakhi tax” Jaykrit Shah accepted to give one-fourth part of Jhiri Basmati to the Sikhs every year. Apart from this, many wars continued to happen for this region.
Not only this, Badrinath used to enjoy Basmati. It is also told that the description of basmati rice comes in the Vijaygatha of many brave Bhadons including Madhau Singh Bhandari, Bhaun Rikhola, Lodi Rikhola. It is said that the ‘Basmati 1121’ variety of Basmati paddy in the Doon Valley was very famous among farmers and eaters.

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