-आईएफएस संजीव चतुर्वेदी की याचिका पर चार सप्ताह में जवाब पेश करने को कहा
नवीन समाचार, नैनीताल, 17 दिसम्बर 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश रवि कुमार मलिमथ व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने आईएफएस संजीव चतुर्वेदी की याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र व संघ लोक सेवा आयोग के साथ-साथ कैट के चेयरमैन जस्टिस नरसिम्हा रेड्डी को व्यक्तिगत रूप से नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जबाब पेश करने को कहा है।
मामले के अनुसार आईएफएस संजीव चतुर्वेदी ने फरवरी 2020 में केंद्र सरकार द्वारा सीधे भर्ती किए जा रहे संयुक्त सचिवों के मामले में तमाम दस्तावेजों के साथ अनियमितता का आरोप लगाकर जांच की मांग करते हुए कैट की नैनीताल बैंच में याचिका दायर की थी। याचिका में उनका कहना था कि अक्तूबर में केंद्र सरकार ने इस मामले की सुनवाई दिल्ली कैट में स्थानांतरित करने के लिए याचिका दायर की थी। इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कैट के चेयरमैन जस्टिस रेड्डी ने इसी महीने की चार तारीख को इस मामले की सुनवाई नैनीताल बैंच से दिल्ली बैंच स्थानांतरित करने के आदेश जारी किए थे। याची के अनुसार चेयरमैन ने अपने आदेश मे कहा था कि इस मामले की सुनवाई दिल्ली में करने से केंद्र सरकार की कार्यप्रणाली पर असर पड़ेगा इसलिए इस मामले की सुनवाई दिल्ली बैंच द्वारा ही की जानी उचित हैं। इस निर्णय को संजीव चतुर्वेदी ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय में चुनौती दी। याचिका में कहा गया कि इस मामले में पहले से ही जस्टिस रेड्डी और उनके बीच कई सारे वाद उत्तराखंड उच्च न्यायालय व सर्वोच्च न्यायालय में लंबित हैं। अतः जस्टिस रेड्डी इस मामले की सुनवाई जज के रूप में नहीं कर सकते हैं, क्योंकि इन मामलों में वे स्वयं भी एक पक्षकार है। उनका यह भी कहना है कि उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने वर्ष 2018 में भी जस्टिस रेड्डी के इसी तरह के आदेशों को रद्द करते हुए उनके विरुद्ध तीखी टिप्पणी की थी तथा केंद्र सरकार का रवैया भी प्रतिशोधात्मक बताते हुए 25 हजार का जुर्माना लगाया था। बाद में उच्चतम न्यायालय ने भी इस निर्णय को बरकरार रखते हुए जुर्माने की राशि बढ़ा कर 50 हजार रुपये कर दी थी। इसके बाद इन्ही मामलों में उत्तराखंड उच्च न्यायालय में जस्टिस रेड्डी को अवमानना का नोटिस भी जारी किया गया था। लिहाजा याची के अधिवक्ता द्वारा कोर्ट के सम्मुख यह भी कहा गया कि संजीव चतुर्वेदी और रेड्डी के बीच इतने सारे वादों के लंबित रहते हुए इस मामले की सुनवाई जस्टिस रेड्डी द्वारा नहीं की जा सकती, क्योंकि प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत है कि कोई भी व्यक्ति अपने मामले में जज नहीं बन सकता है और न ही निर्णय दे सकता है।
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-डिफॉल्टर चाय कंपनी से वसूली नही करने पर हाई कोर्ट सख्त
-मुख्य सचिव उत्तराखंड को कर्नाटक सरकार से संपर्क कर कार्यवाही करने के आदेश
नवीन समाचार, नैनीताल, 01 दिसम्बर 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश रवि कुमार मलिमथ व न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी की खंडपीठ ने कौसानी निवासी किशन चंद्र सिंह खत्री द्वारा दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई की। गत 23 नवंबर को हुई पिछली सुनवाई के आदेश के क्रम में आज राज्य सरकार द्वारा उच्च न्यायालय में एक शपथ पत्र दाखिल किया गया, जिसमें अपर सचिव कृषि किसान कल्याण विभाग उत्तराखंड शासन द्वारा कहा गया कि कर्नाटक स्थित मै. गिरियाज इन्वेस्टमेंट लिमिटेड की सहयोगी कंपनी मै. उत्तरांचल टी कंपनी प्राइवेट लिमिटेड से 25 लाख 85 हजार 269 रु की वसूली हेतु 26 नवम्बर 2020 को पत्र के माध्यम से मुख्य सचिव कर्नाटक सरकार बंगलौर को वसूली हेतु आवश्यक कार्यवाही करने का अनुरोध किया गया है।
इस पर खंडपीठ ने राज्य सरकार के द्वारा दाखिल शपथ पत्र पर असंतुष्टि व्यक्त करते हुए पुनः आदेश पारित किया कि 2015 से उत्तरांचल टी कंपनी से लंबित देनदारी की वसूली हेतु गंभीरता से कार्यवाही करें। खंडपीठ ने अपने आदेश में राज्य के मुख्य सचिव के द्वारा याचिका की एक प्रति डिफॉल्टर कंपनी को उपलब्ध कराने का सख्त आदेश भी पारित किया है। मामले में अगली सुनवाई 29 दिसंबर को होगी। उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्ता के अनुसार बागेश्वर जिले की पर्यटन नगरी कौसानी में चाय विकास बोर्ड उत्तराखंड की लापरवाही से करीब 6 वर्षो से एकमात्र चाय फैक्ट्री बंद पड़ी है। इससे न केवल 500 हेक्टेयर भूमि में चाय उत्पादन में लगे 1200 से अधिक लोगों का रोजगार प्रभावित हुआ है, बल्कि सरकार को चाय उत्पादन से होने वाले राजस्व का नुकसान भी हो रहा है। 2002 में कुमाऊं मंडल विकास निगम व उत्तराचंल चाय कंपनी के द्वारा संयुक्त उपक्रम द्वारा एक चाय फैक्ट्री का संचालन किया गया लेकिन फरवरी 2015 में उत्तरांचल चाय कंपनी ने फैक्टरी का संचालन बंद कर दिया जिसके कारण करीब 30 कर्मचारी प्रत्यक्ष रूप से बेरोजगार हो गए, साथ ही सुप्रसिद्ध पर्यटन स्थल कौसानी में पर्यटकों के आकर्षण का केंद व चाय से होने वाली आमदनी भी प्रभावित हुई। याचिका में यह भी कहा गया है कि बंद हो गयी चाय कंपनी के खिलाफ 44 लाख रुपये से अधिक की देनदारी लंबित रही जिसे राज्य सरकार वसूलने में असफल साबित हुई। याची ने चाय विकास बोर्ड व सरकार से कई बार बंद पड़ी चाय फैक्ट्री को खोले जाने हेतु आग्रह किया लेकिन अंत मे मजबूर होकर जनहित याचिका हाई कोर्ट में दाखिल करनी पड़ी। याचिका में उच्च न्यायालय से प्रार्थना की गयी है कि कौसानी में चाय फैक्ट्री का पुनः संचालन हेतु सरकार को निर्देश जारी किए जाये तथा उत्तरांचल चाय कंपनी से समस्त देय राशि की वसूली की जाये।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 4 नवम्बर 2020। नव स्थापित सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा के नवनियुक्त कुलपति प्रो. एनएस भंडारी की नियुक्ति का मामला उत्तराखंड उच्च न्यायालय पहुंच गया है। देहरादून निवासी रवींद्र जुगरान की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवि कुमार मलिमथ व न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी की खंडपीठ ने कुलपति प्रो. भंडारी को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने को कहा है।
उल्लेखनीय है कि याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार द्वारा सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा के नवनियुक्त कुलपति प्रो. भंडारी की नियुक्ति यूजीसी के नियमों को दरकिनार कर की गयी है। यूजीसी की नियमावली के अनुसार कुलपति नियुक्त होने के लिए दस साल प्रोफेशर होना आवश्यक है जबकि प्रो. भंडारी साढ़े आठ साल से ही प्रोफेसर रहे हैं। उसके बाद प्रो. भंडारी उत्तराखंड संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य नियुक्त रहे थे। उस दौरान की सेवा को उनके प्रोफेशर रहने में नहीं जोड़ा जा सकता है, इसलिए उनकी नियुक्ति अवैध है। याचिका में प्रो. भंडारी को पद से हटाने की मांग की गई है।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 28 अक्टूबर 2020। नैनीताल हाइकोर्ट ने सार्वजनिक स्थलों पर अवैध रूप से बनाए गए धार्मिक निर्माणों को अभी तक नहीं हटाने पर मुख्य सचिव ओम प्रकाश को अवमानना नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। न्यायमूर्ति शरद शर्मा की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई।
मामले के अनुसार अधिवक्ता विवेक शुक्ला ने अवमानना याचिका दायर कर कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने 29 सितंबर 2009 को सभी राज्यों को आदेश दिया था कि सार्वजनिक स्थानों पर अवैध रूप से बनाए गए धार्मिक निर्माणों को हटाएं लेकिन उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश का पालन कराने के लिए सभी उच्च न्यायालयों को भी आदेशित किया था। अवमानना याचिका में कहा गया कि जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं हुआ तो हाईकोर्ट ने मामले का का स्वत: संज्ञान लेते हुए 23 मार्च 2020 तक सार्वजनिक स्थलों से अवैध धार्मिक निर्माणों को हटाने के आदेश सभी जिलाधिकारियों को दिए थे लेकिन प्रदेश सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश का भी पालन नहीं किया। याचिकाकर्ता ने कहा कि सरकार ने अवैध धार्मिक निर्माणों के मामले में कोई नीति तक नहीं बनाई है।
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-राज्य के सभी जिलों के जिलाधिकारियों की अध्यक्षता में मॉनिटरिंग कमेटी होंगी गठित
-कमेटी में जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष व जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव भी होंगे सदस्य
नवीन समाचार, नैनीताल, 23 सितंबर 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश रवि कुमार मलिमथ व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने राज्य के क्वारंटाइन सेंटरों और कोरोना अस्पतालों की मॉनिटरिंग के लिये राज्य के सभी जिलाधिकारियों की अध्यक्षता में मॉनिटरिंग कमेटी गठित करने के निर्देश दिए हैं। इस कमेटी में सम्बंधित जिले के जिला बार एसोसिएशन के अध्यक्ष व जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव भी सदस्य होंगे। इस कमेटी की पहली बैठक आगामी 26 सितंबर शनिवार को अनिवार्य रूप से होगी। यह कमेटी निश्चित अवधि में अपनी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करेगी साथ ही याचिकाकर्ताओं से भी सम्पर्क बनाये रखेगी। मामले की सुनवाई अगले बुधवार को होगी।
मामले के अनुसार उत्तराखंड उच्च न्यायालय के अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली व देहरादून निवासी सच्चिदानंद डबराल ने राज्य में क्वारन्टाइन सेंटरों व कोविड अस्पतालों की बदहाली और उत्तराखंड वापस लौट रहे प्रवासियों की मदद और उनके लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने को लेकर उत्तराखंड उच्च न्यायालय में अलग अलग जनहित याचिकायें दायर की थीं। इन याचिकाओं पर पूर्व में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर माना कि उत्तराखंड के सभी क्वारंटाइन सेंटर बदहाल स्थिति में हैं और सरकार की ओर से वहां पर प्रवासियों के लिए कोई उचित व्यवस्था नहीं की गई है। बुधवार को पीठ ने इन अस्पतालों की नियमित मॉनिटरिंग के लिये जिलाधिकारियों की अध्यक्षता में कमेटी गठित करने के आदेश दिए।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 06 अगस्त 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रवि कुमार मलिमथ और न्यायमूर्ति एनएस धानिक की खंडपीठ ने प्रदेश के बदहाल क्वारंटाइन सेंटरों और कोरोना अस्पतालों की बदहाली के मामले को लेकर दायर याचिका पर बृहस्पतिवार को सुनवाई की। मामले में कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि कोरोना मरीजों के इलाज में डब्ल्यूएचओ यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी मानकों का कितना अनुपालन किया जा रहा है। उसकी विस्तृत रिपोर्ट 17 सितंबर तक कोर्ट में शपथपत्र के माध्यम से पेश की जाए।
उल्लेखनीय है कि अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली ने जनहित याचिका कर कहा है कि राज्य सरकार ने प्रदेश के छह अस्पतालों को कोविड-19 के रूप में स्थापित किया है। लेकिन इन अस्पतालों में कोई भी आधारभूत सुविधा नहीं है। जिसके बाद देहरादून निवासी सच्चिदानंद डबराल ने भी उत्तराखंड वापस लौट रहे प्रवासियों की मदद और उनके लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने को लेकर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी। बदहाल क्वारंटाइन सेंटरों के मामले में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट कोर्ट में पेश करते हुए माना है कि उत्तराखंड के सभी क्वारंटाइन सेंटर बदहाल स्थिति में हैं और सरकार की ओर से वहां पर प्रवासियों के लिए कोई उचित व्यवस्था नहीं की गई है। न ही ग्राम प्रधानों के पास कोई फंड उपलब्ध है। उल्लेखनीय है कि पूर्व में हाईकोर्ट ने सरकार और स्वास्थ्य सचिव को जवाब पेश करने का आदेश दिया था। इस आदेश के तहत जिला विधिक प्राधिकरण की रिपोर्ट के आधार पर क्वारंटाइन सेंटरों की कमियों को 14 दिन के अंदर दूर कर विस्तृत रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने को कहा था।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 07 अगस्त 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश रवि कुमार मलिमथ व न्यायमूर्ति एनएस धनिक की खंडपीठ ने बाबा रामदेव द्वारा कोरोना वायरस से निजात दिलाने की बनाई गई दवा ‘कोरोनिल’ को लांच किए जाने के खिलाफ मणि कुमार की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए गलत तथ्य पेश करने पर याचिकाकर्ता पर न्यायालय का समय बरबाद करने के लिए 25 हजार का जुर्माना लगाते हुए जनहित याचिका को खारीज कर दिया है। याचिकाकर्ता ने जनहित याचिका को वापस लेने हेतु कोर्ट से प्रार्थना भी की, परंतु खंडपीठ ने कहा कि इससे न्यायालय का अमूल्य समय बरबाद हुआ है तथा गलत तथ्य पेश करने पर समाज मे इसका गलत प्रभाव भी पड़ता है।
उल्लेखनीय है कि इस मामले में ऊधमसिंह नगर जनपद के अधिवक्ता मणि कुमार ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि बाबा रामदेव व उनके सहयोगी आचार्य बालकृष्ण ने पिछले मंगलवार को हरिद्वार में कोरोना वायरस से निजात दिलाने के लिए पतंजलि योगपीठ के दिव्य फॉर्मेसी द्वारा निर्मित कोरोनिल दवा लांच की। इसमें आईसीएमआर द्वारा जारी गाइड लाइनों का पालन नहीं किया गया है और आयुष मंत्रालय भारत सरकार की अनुमति भी नही ली गई है। केवल आयुष विभाग उत्तराखंड से रोग प्रतिरोधक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए लाइसेंस लिया गया और दवा कोरोना के इलाज के नाम पर बना दी गई। इसके साथ ही कंपनी ने दावा किया कि निम्स विश्विद्यालय राजस्थान द्वारा दवा का परीक्षण किया गया है, जबकि निम्स का कहना है कि उन्होंने ऐसी किसी भी दवा का कोई क्लीनिकल परीक्षण नहीं किया है। उनका यह भी कहना है कि बाबा रामदेव लोगों में अपनी इस दवा का भ्रामक प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। यह दवा न ही आईसीएमआर से प्रमाणित है न ही उनके पास इसे बनाने का लाइसेंस है। इस दवा का अभी तक क्लीनिकल परीक्षण तक नहीं किया गया है। इसके उपयोग से शरीर मे क्या साइड इफेक्ट होंगे इसका कोई इतिहास नहीं है, इसलिए दवा पर पूर्ण रोक लगाई जाए और आईसीएमआर द्वारा जारी गाइड लाइनों के आधार पर भ्रामक प्रचार हेतु कानूनी कार्यवाही की जाए। खंडपीठ के एक आदेश से बाबा रामदेव को उनकी कोरोनिल दवा पर मुंह चिढ़ा रहे विरोधियों को करारा झटका लगने की उम्मीद है।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 21 जुलाई 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायाधीश रवि कुमार मलिमथ और न्यायमूर्ति एनएस धानिक की खंडपीठ ने बाबा रामदेव की कोरोना विषाणु की दवा कोरोनिल लांच किए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर विपक्षियों से अगली सुनवाई की तिथि 27 जुलाई तक जवाब मांगा है।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 1 जुलाई 2020। बाबा रामदेव एवं आचार्य बालकृष्ण के लिए उनके पतंजलि योगपीठ द्वारा कथित तौर पर कोरोना के उपचार के लिए ‘कोरोनिल’ नाम की दवा बनाने का मामला गले की हड्डी बन गया है, जो न अब उगलते बन रहा है और न उगलते। वहीं उत्तराखंड हाईकोर्ट भी मामले में सख्त हो गया है। हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने इस मामले को बेहद गंभीरता से लेते बुधवार को लगातार इस मामले में सुनवाई की और केंद्र व राज्य सरकार के साथ ही पतंजलि, आयुष उत्तराखंड के निदेशक, आईसीएमआर के साथ कोरोनिल का कथित तौर पर परीक्षण करने वाले निम्स विवि राजस्थान को भी नोटिस जारी कर एक सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 4 जुलाई 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया व न्यायमूर्ति रवींद्र मैठाणी की खंडपीठ ने राज्य में हो रही कोरोना जांच की संख्या को कम मानते हुए जांच की क्षमता बढ़ाने के निर्देश दिये हैं, और इस संबंध में सरकार से 13 जुलाई तक रिपोर्ट देने को कहा है।
उल्लेखनीय है कि अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली, हरिद्वार के सच्चिदानंद डबराल व अन्य की जनहित याचिका में शुक्रवार को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने पीठ को बताया कि कोरोना की महामारी व लॉकडाउन के दौरान राज्य में तीन लाख से अधिक प्रवासी लौट चुके हैं मगर अब तक प्रवासियों सहित राज्य वासियों के करीब 65 हजार ही कोरोना टेस्ट हुए हैं। वहीं सरकार की ओर से पीठ को बताया गया कि नैनीताल के मुक्तेश्वर में आईवीआरआई में कोरोना जांच की लैब ने काम करना आरंभ कर दिया है। साथ ही प्राइवेट लैबों में भी जांच के लिए निविदा जारी की जा चुकी है।
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-बरिंदरजीत सिंह के मामले की अगली सुनवाई 25 को होगीनवीन समाचार, नैनीताल, 21 अगस्त 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने आईपीएस बरिंदरजीत सिंह के एसएसपी ऊधमसिंह नगर पद से आईआरबी बैलपडाव रामनगर स्थानांतरण किए जाने के आदेश व उच्चाधिकारियों पर प्रताडना का आरोप लगाने वाली याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई की और अगली सुनवाई के लिए 25 अगस्त की तिथि नियत कर दी है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रविकुमार मलिमथ एवं न्यायमूर्ति एनएस धानिक की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान आईपीएस बरिंदरजीत सिंह ने पिछली सुनवाई की तरह इस बार भी स्वयं ही अपने मामले की पैरवी की।
मामले के अनुसार एसएसपी बरिंदरजीत सिंह ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि उसका स्थानांतरण आईआरबी कमांडेंट बैलपड़ाव के पद पर कर दिया गया। उन्होंने याचिका में प्रदेश के डीजीपी अनिल रतूडी, डीजी-कानून व्यवस्था अशोक कुमार, सेवानिवृत्त आईजी जगत राम जोशी पर महत्वपूर्ण मामलों में निष्पक्ष जांच में अड़ंगा लगाने का आरोप लगाया था। याचिका में कहा कि उन्हें इसके लिए चेतावनी भी दी गई। जब उन्होंने पत्राचार किया तब चेतावनी वापस ली गई मगर उत्पीड़न जारी रहा। याचिका में कहा कि 12 वर्ष की सेवा में ईमानदारी व कर्तव्यनिष्ठ होने का ईनाम आठ बार तबादला कर दिया गया। पूर्व में कोर्ट ने मामले में डीजीपी, डीजी लॉ एंड ऑर्डर व पूर्व आईजी को नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने इस प्रकरण पर सुनवाई के लिए 25 अगस्त की तिथि नियत की है।
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-याची ने जल्द सुनवाई हेतु दिया प्रार्थना पत्र, पीठ ने 14 अगस्त की तिथि लगाई
नवीन समाचार, नैनीताल, 12 अगस्त 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश रवि कुमार मलिमथ व न्यायमुर्ति एनएस धनिक की खंडपीठ ने प्रदेश में बिजली विभाग में तैनात अधिकारियों, कर्मचारियों व रिटायर कर्मचारियों को पावर कारपोरेशन द्वारा सस्ती बिजली उपलब्ध कराने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। मामले में आज संस्था की ओर से याचिका पर जल्द सुनवाई हेतु प्रार्थना पत्र पेश किया, जिस पर न्यायालय ने सुनवाई करते हेतु अगली सुनवाई हेतु 14 अगस्त की तिथि नियत की है।
मामले के अनुसार देहरादून के आरटीआई क्लब ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि सरकार विद्युत विभाग में तैनात अधिकारियों व कर्मचारियों से एक माह का बिल मात्र 100 रुपये वसूल रही है, जबकि आम लोगो से 400 से 500 रुपए ले रही है। जबकि इनका बिल लाखांे में आता है, लेकिन इसका बोझ सीधे जनता पर पड़ रहा है। याचिकाकर्ता का कहना है कि प्रदेश में कई अधिकारियों के घर बिजली के मीटर तक नहीं लगे हैं, और जो लगे भी है वे खराब स्थिति में हैं। कारपोरेशन ने वर्तमान कर्मचारियों के अलावा सेवानिवृत्त व उनके आश्रितों को भी बिजली मुफ्त में दी है, जिसका सीधा भार आम जनता की जेब पर पड़ रहा है। याची का कहना है कि उत्तराखंड ऊर्जा प्रदेश घोषित है, लेकिन यहां हिमांचल से अधिक मंहगी बिजली है, जबकि वहाँ बिजली का उत्पादन तक नही होता है। याची का यह भी कहना है कि घरों में लगे मीटरों का किराया पावर कारपोरेशन कब का वसूल कर चुका है परंतु हर माह के बिल के साथ जुडकर आता है जो गलत है।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 10 अगस्त 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश रवि कुमार मलिमथ व न्यायमूर्ति एनएस धनिक की खंडपीठ ने ऑन लाइन शॉपिंग कराने वाली कम्पनियांे द्वारा उत्पाद से जुड़ी जानकारियां उत्पाद में नहीं दिखाए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए याची से अपनी शिकायत केंद्र सरकार को दर्ज कराने को कहा है। इसके साथ ही खंडपीठ ने जनहित याचिका को इस आधार पर निरस्त कर दिया है कि याची ने अपनी शिकायत केंद्र सरकार को नही भेजी थी। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि अगर उनकी शिकायत पर केंद्र सरकार सम्बंधित कम्पनी पर कोई दण्डात्मक कार्यवाही नही करती है तो याचिकर्ता दुबारा याचिका दायर कर सकता है। सुनवाई के दौरान असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल राकेश थपलियाल ने केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि याची ने अभी इस सम्बंध में कोई शिकायत केंद्र सरकार को नही दी है।
मामले के अनुसार नैनीताल निवासी अवनीश उपाध्याय ने जनहित याचिका दायर कर ऑन लाइन शॉपिंग कराने वाली कम्पनियां अमेजॉन, फिलिप्कार्ट, मिंत्रा, नायका ई-रिटेल, स्नैपडील, अजीजों, लाइफ स्टाइल इंटरनेशनल को पक्षकार बनाया है। याची का कहना है कि इन कम्पनियो के द्वारा ऑन लाइन शॉपिंग कराते वक्त उनके द्वारा उपलब्ध कराया जा रहा उत्पाद कहाँ बना है, किस देश मे बना है, और उसकी मदर कम्पनी किस देश की है, यह नही दिखाया जाता है। इसके कारण उपभोक्ता स्वयं को ठगा सा महसूस करते हैं। इस कारण अगर उपभोक्ता उत्पाद सही नही होने पर उसके खिलाफ उपभोक्ता फोरम में शिकायत करना चाहता है तो नही कर सकता, क्योंकि उस कम्पनी का पता ज्ञात नहीं होता है। याची के अधिवक्ता राजीव बिष्ट का कहना था कि इस सम्बंध में केंद्र सरकार ने 2011 में लीगल मिट्रोलॉजी एक्ट बनाया था और 2018 में इस एक्ट को संशोधित भी किया था। जिसमंे कहा गया कि ऑन लाइन शॉपिंग कराने वाली कम्पनियां उत्पाद के साथ उसकी निर्माण अवधि, किस स्थान पर बना है, किस देश का है आदि उससे जुड़ी सभी जानकारियां उत्पाद के साथ देंगे, परन्तु ये कम्पनियां ऐसी कोई जानकारी नही देती हैं।
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नवीन समाचार, देहरादून, 25 जून 2020। लॉक डाउन के दौरान उत्तर प्रदेश के विवादित विधायक अमनमणि त्रिपाठी यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के स्वर्गीय पिता के पितृकर्म का झूठा बहाना लेकर चारधाम की यात्रा पर विशेष पास लेकर जा रहे थे। उत्तराखंड उच्च न्यायालय के द्वारा पिछली तिथि में मांगे जाने पर बृहस्पतिवार को देहरादून और और डीजीपी उत्तराखंड ने अपना जवाब दाखिल कर दिया। इस मामले में प्रदेश के अपर मुख्य सचिव पर विशेष पास जारी करने को लेकर अंगुलियां उठा रहे थे। लेकिन जवाब में डीएम देहरादून ने अपर मुख्य सचिव का बचाव करते हुए कहा है कि विशेष पास एडीएम देहरादून द्वारा जारी किया गया था, अपर मुख्य सचिव के द्वारा नहीं। इसके साथ पीठ ने अन्य पक्षों को 10 दिन में जवाब दाखिल करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई अब सात जुलाई को होगी। वहीं अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश ने जवाब दाखिल करने के लिए 10 दिन के अतिरिक्त समय की मांग की, जिसे न्यायालय ने स्वीकार कर लिया।
उल्लेखनीय है कि इस मामले की सीबीआई जांच की मांग के साथ जनहित याचिका दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री के सचिव अपर मुख्य सचिव ने अपने पद का दुरुपयोग कर तथा केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों का उलंघन करते हुए अमनमणि त्रिपाठी सहित 11 लोगों को विशेश पास जारी किया। याचिकाकर्ता द्वारा मुख्य सचिव और डीजीपी से लिखित शिकायत करने के बाद भी राज्य सरकार द्वारा अपर मुख्य सचिव पर कोई कार्रवाई नहीं कि गयी, लिहाजा इस मामले की सीबीआई जांच कर दोषी के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाए।
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-बागेश्वर जिले के अधिकारियों से जिम्मेदारियों का ठीक से निर्वहन करवाएं : हाईकोर्ट
नवीन समाचार, नैनीताल, 23 जून 2020। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने गरुड़-बागेश्वर में राज्य सरकार द्वारा प्रवासियों को प्राथमिक विद्यालयों व पंचायत भवनों में क्वारन्टाइन करने के खिलाफ दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए प्रदेश के स्वास्थ्य सचिव को बागेश्वर जिले के स्वास्थ्य सम्बन्धी तथ्यों व शिकायतों का संज्ञान लेते हुए जिम्मेदार अधिकारियों को अपनी जिम्मेदारी ठीक से निर्वहन करने हेतु निर्देश देने और 30 जून तक इस पर विस्तृत रिपोर्ट न्यायालय में पेश करने को कहा है। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति सुधांशु धुलिया व न्यायमूर्ति रविन्द्र मैठाणी की खंडपीठ में हुई। मामले की अगली सुनवाई की तिथि 30 जून की तिथि नियत की है।
आज सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के द्वारा कोर्ट को बताया गया कि राज्य सरकार ने महामारी से लड़ने के लिए जिले के ग्राम प्रधानों को अभी तक फंड नही दिया गया है। महामारी से लड़ने के लिए जब गरुड़ क्षेत्र के ग्राम प्रधानों ने जिम्मेदार अधिकारियों से फोन पर शिकायत करनी चाही तो उनके मोबाइल नंबर बंद मिले और उन्होंने अपनी जिम्मेदारियां आंगनबाड़ी कार्यकर्तियो व आशा वर्करों को दे दी हैं। क्वारन्टाइन सेंटरों में न तो आने-जाने वाले लोगों का रिकार्ड रखा जा रहा है न ही सेंटरों में सेनेटाइजिंग की जा रही है। मामले के अनुसार अधिवक्ता डीके जोशी ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि गरुड़ बागेश्वर में राज्य सरकार द्वारा प्रवासियों को लाकर विद्यालयों व पंचायत भवनों में क्वारन्टाइन किया जा रहा है जिनमें कोई सुविधा नहीं है।ं इसलिए उनको तहसील या जिला स्तर पर क्वारन्टाइन किया जाये। इस सम्बंध में गरुड़ के ग्राम प्रधानों ने जिला अधिकारी को ज्ञापन देकर कहा था कि अगर उनकी मांग पूरी नही की जाती है तो वे सामूहिक रूप से इस्तीफा दे देंगे।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 19 जून 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अल्मोड़ा जिले के सल्ट ब्लॉक में थापला-तया मोटर मार्ग के निर्माण पर रोक लगा दी है। पीठ ने इस मामले में सख्त रुख अपनाते हुए कहा है कि अगर रोक के बाद भी सड़क का निर्माण हुआ तो डीएफओ जिम्मेदार होंगे। पीठ ने अपने आदेश में पूरे मामले की राजस्व पुलिस से जांच कर तीन दिन के भीतर रेगुलर पुलिस से जांच कराने और जांच कराकर आरोपितों के खिलाफ कार्रवाई की रिपोर्ट 13 जुलाई को उच्च न्यायालय में पेश करने को कहा है। साथ ही पीठ ने ठेकेदार द्वारा पेड़ काटने और राजस्व पुलिस द्वारा अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज करने पर सवाल खड़े किए है।
उल्लेखनीय है कि रामनगर के खुशाल रावत ने जनहित याचिका दाखिल कर कहा है कि थापला तया मोटरमार्ग का निर्माण नियम विरुद्ध चल रहा है। सड़क निर्माण में संरक्षित प्रजाति के 224 पेड़ों का कटान किया गया है । याचिका में कहा गया है कि ग्रामीणों ने इसका विरोध किया तो ठेकेदार ने उनको धमकी दी और गांव के आसपास गोलियां चला दीं। ग्रामीणों ने कहा है कि जब शिकायत राजस्व पुलिस की की गई तो आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई के बजाए अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। याचिका में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है।
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-याचिका में बोर्ड के चेयरमैन की पुत्रवधु को लाभ पहुंचाने का लगाया गया है आरोप, बोर्ड चेयरमैन को हटाने और बोर्ड की गतिविधियों की जांच की मांग
नवीन समाचार, नैनीताल, 17 जून 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति रमेश चंद्र खुल्बे की खंडपीठ ने उत्तराखंड भवन निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड में गड़बड़ियों और निर्माण में लगे श्रमिकों को फायदा पहुंचाने के बजाय बोर्ड द्वारा बोर्ड चेयरमैन की पुत्रवधू के एनजीओ को लाभ पहुंचाने के मामले में बोर्ड के चेयरमैन श्रम मंत्री हरक सिंह रावत व उनकी पुत्रवधू अनुकृति गुसाईं सहित श्रम आयुक्त उत्तराखंड तथा केंद्रीय श्रम सचिव को नोटिस जारी कर 2 सप्ताह में जवाब मांगा है। साथ ही अधिकांश बड़े निर्माणों और निर्माण श्रमिकों के नियोक्ताओं व बिल्डरों से कल्याणकारी सैस की जानबूझकर वसूली न करने पर शपथ पत्र दायर करने को भी कहा है। मामले की अगली सुनवाई 2 सप्ताह बाद होगी।
उल्लेखनीय है कि हल्द्वानी निवासी अमित पांडे ने याचिका दायर कर उत्तराखंड भवन निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड पर मजदूरों के हित में कार्य ना करने, बल्कि बोर्ड के साधनों से बोर्ड के चेयरमैन की पुत्रवधू के एनजीओ को लाभ पहुंचाने का आरोप लगाया है। साथ ही याचिका में बोर्ड की गतिविधियों की जांच और बोर्ड चेयरमैन को इमानदारी से पद का निर्वहन न करने के कारण हटाने की मांग भी की गई है। न्यायालय ने सामाजिक व राजनीतिक कार्यकर्ता अमित पांडे द्वारा मजदूरों के हित में उठाए गए इस अनियमितता के विषय को बहुत महत्वपूर्ण भी बताया है।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 9 जून 2020। उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति रमेश चंद्र खुल्बे की खंडपीठ ने हवाई सेवा से राज्य में आने वाले प्रवासियों के मामले में दायर जनहित याचिका को निस्तारित करते हुए केन्द्र व राज्य सरकार के साथ ही मुख्य सचिव, नागरिक उड्डयन सचिव को आदेश जारी कर कहा है कि यात्रियों को जबरन पेड क्वारंटीन में न भेजंे। बल्कि यात्रियों को उनकी सहमति से ही पेड या सरकारी क्वारंटीन सेंटरों में भेजा जाए।
मामले के अनुसार देहरादून निवासी उमेश कुमार ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि राज्य सरकार हवाई जहाज से आने वाले प्रवासियों के साथ भेदभाव कर रही है। सरकार की ओर से यहां आने वाले प्रवासियों को क्वारंटीन के नाम पर होटलों में रखा जा रहा है और उनके ठहरने व खाने-पीने का खर्चा उनसे वसूला जा रहा है जबकि अन्य यात्रियों का खर्चा राज्य सरकार खुद वहन कर रही है। जो कि गलत है। याचिकाकर्ता की ओर से इस मामले में केन्द्र व राज्य के साथ साथ प्रदेश के मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह, नागरिक उड्डयन सचिव व देहरादून के जिलाधिकारी को पक्षकार बनाया गया था।
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सुनवाई के दौरान आईसीएमआर द्वारा राज्य सरकार को एलिजा टेस्ट किट और आरटीसीटीपी किट जल्द उपलब्ध कराने का आश्वासन भी दिया गया है। राज्य सरकार द्वारा हाईकोर्ट को बताया गया कि सभी कोरोना अस्पतालों में पूर्व आदेशों के क्रम में आईसीयू व वेंटिलेटर संचालित कर दिए गए हैं और अन्य जगह भी ये सुविधा जल्द उपलब्ध करायी जाएगी। सुनवाई के दौरान राज्य के स्वास्थ्य सचिव नितेश झा और महानिदेशक स्वास्थ्य डॉ अमिता उप्रेती भी वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से कोर्ट के सामने उपस्थित हुए। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया व न्यायमूर्ति रविंद्र मैठाणी की खंडपीठ में हुई। मामले की अगली सुनवाई 1 सप्ताह बाद होगी।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 18 अप्रैल 2020। उत्तराखंड हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह व न्यायमुर्ति रवींद्र मैठाणी की खण्डपीठ ने कोरोना की वैश्विक महामारी से निपटने के लिए चिकित्सकों, सहायक चिकित्सा कर्मियों की सुरक्षा व आवश्यक उपकरणों की घटिया किस्म उपलब्ध कराए जाने के विरुद्ध दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए सीएमओ नैनीताल व सुशीला तिवारी मेडिकल कालेज हल्द्वानी के प्राचार्य से 21 अप्रैल तक यह बताने को कहा है कि सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए सुरक्षा उपकरणों में क्या कमियां थीं। साथ ही खंडपीठ ने हाइकोर्ट के रजिस्ट्रार को निर्देश दिए है कि इससे सम्बन्धित सभी जनहित याचिकाओं को एक साथ लिस्ट करें।
शनिवार को मामले की सुनवााई के दौरान याचिकाकर्ता द्वारा पीठ को अवगत कराया गया कि सरकार द्वारा सुुशीला तिवारी मेडिकल कालेज को जो एक हजार पीपीई किट उपलब्ध कराये गई थे वे घटिया गुणवत्ता वाले थे। उनमें कई तरह की खामियां थीं। एक किट की कीमत नौ सौ रुपये थी। सरकार ने एक हजार किट नौ लाख में खरीदी थीं, जिसे बाद में वापस कर दिया था। मामले के अनुसार अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि प्रदेश में तेजी से फैल रहे कोरोना विषाणु के संक्रमण को देखते हुए राज्य में चिकित्सकों को उचित सुविधाएं मुहैया कराने के साथ ही उनको पूरी सुरक्षा दी जाए। साथ ही सुरक्षा में दी जा रही सुविधाओं पर भी सवाल खड़े किये हैं। यह भी कहा है कि सरकार ने पीपीई किट के बजाय एचआइवी किट भेज दी है जो इस महामारी से लड़ने के लिए उचित नही है। उन्होंने घटिया पीपीई किट आपूर्ति करने वाले आपूर्तिकर्ताओं के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग भी की है।
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मामले के अनुसार अधिवक्ता सनप्रीत अजमानी ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि कोरोना वायरस से लड़ने के लिए केंद्र व डब्ल्यूएचओ ने कई तरह के दिशा निर्देश जारी किए हैं, परन्तु उत्तराखंड में इन निर्देशों का कड़ाई से पालन नही कराया जा रहा है। न ही डॉक्टरों व इसमें लगे अन्य स्टाफ जरूरी किट उपलब्ध कराई जा रही न ही उनकी सुुरक्षा की जा रही है जिससे वायरस को बढ़ने में मदद मिल रही है। लोग सामाजिक दूरी का पालन भी नही कर रहे है। मेडिकल स्टोरों में एन 95 मास्क तक नही है। याचिकाकर्ता ने कोर्ट के सम्मुख बनभूलपुरा का उदाहरण देते हुए कहा कि यदि पहले से सुुरक्षा को लेकर सरकार ने इंतेजाम किये होते तो वहां घटना नही होती।
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उल्लेखनीय है कि इस मामले में हल्द्वानी निवासी अधिवक्ता राजेन्द्र आर्य ने उच्च न्यायालय में ऑनलाइन जनहित याचिका दायर की है। याचिक में कहा गया है कि लॉकडाउन की वजह से समाज के बड़े वर्ग की आमदनी पूरी तरह बंद है। लिहाजा सरकार को चाहिए कि बिलों को माफ किया जाए। बृहस्पतिवार को इस मामले में विडियो कॉन्फ्रेस के माध्यम से सुनवाई के दौरान प्रदेश के महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर, मुख्य स्थाई अधिवक्ता परेश त्रिपाठी, स्टैंडिंग काउंसिल अनिल बिष्ट व योगेश पांडेय तथा केंद्र सरकार की ओर सेे अधिवक्ता संजय भट्ट शामिल हुए।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 14 अप्रैल 2020। उत्तराखंड उच्च न्यायालय के लिए बुधवार 15 अप्रैल का दिन ऐतिहासिक होगा। इस दिन से उच्च न्यायालय में पहली बार वादों की सुनवाई वीडियो कांफ्रेसिंग द्वारा की जाएगी। पहले दिन दो जनहित याचिकाओं को सुनवाई हेतु सूचीबद्ध किया गया है। इन वादों की सुनवाई न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया एवं न्यायमूर्ति रविंद्र मैठाणी की खंडपीठ करेगी। मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन ने सुनवाई के लिए यह पीठ गठित की है। दोनों याचिकाएं ईमेल के द्वारा दायर की गई हैं। साथ ही दोनों याचिकाएं कोरोना महामारी के कारण गरीब कृषकों को हो रही परेशानी एवं चिकित्सकों व पैरा मैडिकल स्टाफ को सुरक्षा प्रदान किए जाने हेतु हाईकोर्ट से सरकार को आवश्यक दिशा निर्देश जारी किए जाने हेतु योजित की गई है। सुनवाई के लिए सभी पक्ष वीडियो कांफ्रेसिंग से ही सम्मिलित होंगे। हाईकोर्ट प्रशासन की ओर से इस निमित्त सभी तैयारियां कर ली गई है।
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री की ओर से 3 मई तक लॉकडाउन जारी रखने की घोषणा की गई है। वहीं उत्तराखंड उच्च न्यायालय की ओर से वादकारियों की परेशानी को मद्देनजर रखते हुए 15 अप्रैल से आवश्यक वादों की सुनवाई वीडियो कांफ्रेसिंग द्वारा करने का निर्णय लिया गया है।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 13 मार्च 2020। उत्तराखंड हाई कोर्ट ने पूर्व के आदेश का पालन नही करने पर हरिद्वार के डीएफओ आकाश कुमार वर्मा को जमानती वारन्ट जारी कर 16 को कारण सहित कोर्ट में पेश होने को कहा है। मामले की सुनवाई न्यायमुर्ति शरद कुमार शर्मा की एकलपीठ में हुई। मामले के अनुसार हरिद्वार निवासी रति राम ने अवमानना याचिका दायर कर कहा है कि कोर्ट ने पूर्व में उनके समस्त सेवाओ को जोड़ते हुए उनको पेंशनरी बेनिफिट के समस्त लाभ देने के आदेश दिए थे परन्तु डीएफओ हरिद्वार ने कोर्ट के आदेश का पालन नही करते हुए कहा कि उनकी रेगुलर सर्विस 10 साल से कम है इसलिए उनको पेंशन के समस्त लाभ नही दिये जा सकते हैं। जिसको लेकर उन्होंने उनके खिलाफ अवमानना याचिका दायर करनी पड़ी।
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मामले के अनुसार देहरादून निवासी अधिवक्ता राजेश सूरी की बहन रीता सूरी ने याचिका दायर कर कहा है कि अधिवक्ता राजेश सूरी की हत्या 30 नवम्बर 2014 को हुई थी जब राजेश सूरी नैनीताल हाईकोट से अदालत में पैरवी करके ट्रेन से देहरादून जा रहे थे तभी उनको ट्रेन में ही जहर देकर मार दिया गया था। यह भी आरोप लगाया था कि राजेश की सभी फाइलें भी ट्रेन से ही गायब हो गई थीं और केवल कपड़ों से भरा बैग मिला था। राजेश की बहन रीता ने बताया कि राजेश ने देहरादून के कई भ्रष्टाचार के मामले-घोटाले उजागर किए थे। इनमें से एक बलवीर रोड में जज र्क्वाटर घोटाला भी था। आरोप लगाया कि जिस भूमि में भगीरथ कालोनी बनी है उसे फर्जी कागज बनाकर बेच दिया गया था। इस पर 2003 में तत्कालीन जिलाधिकारी राधा रतूडी ने सम्पत्ति को फर्जी पाते हुए कुर्क करने के आदेश देने के साथ ही किसी भी तरह के निर्माण पर रोक लगा दी थी। याचिकाकर्ता का यह भी कहना है कि 2003 से अभी तक इसमें कोई कार्यवाही नही की गई है। कोर्ट ने मामले को सुनने के बाद जिला अधिकारी देहरादून को 24 फरवरी को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के आदेश दिए है।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 19 फरवरी 2020। हाईकोर्ट ने सिडकुल रुद्रपुर के पास कल्याणी नदी के किनारे उत्तराखंड के राज्यपाल के नाम दर्ज सरकारी भूमि पर अतिक्रमण कर उसे बेचे जाने के मामले में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद राज्य सरकार व सिडकुल प्रशासन को जांच कर रिपोर्ट एक सप्ताह के भीतर पेश करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 25 फरवरी की तिथि नियत की है।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 8 जनवरी 2020। उत्तराखंड की जेलों में बंद कैदी तीन माह में टेलीफोन से अपने घरों को बात कर पाएंगे। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने बुधवार को उत्तराखंड की जेलों में बंद कैदियों को टेलीफोन सुविधा उपलब्ध कराए जाने संबंधी जनहित याचिका पर सुनवाई की। इस दौरान राज्य सरकार ने अवगत कराया कि प्रदेश की सभी जेलों में भारत संचार निगम के माध्यम से टेलीफोन सेवा उपलब्ध कराने के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इस पर कोर्ट ने इसके लिए सरकार को तीन माह का समय दिया और जनहित याचिका को निस्तारित घोषित कर दिया है।
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उल्लेखनीय है कि जेल में बंद कैदी- पूर्व सैनिक विनोद बिष्ट ने हाइकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर इस समस्या के संबंध में जानकारी दी थी। कहा था कि प्रदेश की विभिन्न जेलों में बंद कैदियों के लिए टेलीफोन की सुविधा नहीं है, जिससे उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इससे वह अपने परिजनों की कुशलक्षेम भी नहीं जान पाते। यह भी कहा गया कि राज्य सरकार ने परीक्षण के तौर पर देहरादून व हरिद्वार की जेलों में यह सुविधा उपलब्ध कराई है। उन्होंने वहीं की तर्ज पर प्रदेश की अन्य जेलों में भी यह सुविधा उपलब्ध कराने की मांग की थी। इस पत्र को कोर्ट ने जनहित याचिका के रूप में स्वीकार कर लिया। इसमें सरकार से स्थिति स्पष्ट करने को कहा था। बुधवार को सरकार की ओर से मामले में शपथपत्र पेश किया गया। इसमें न्यायालय को बताया गया कि 16 जून 2016 को मुख्यालय के कारागार अधीक्षक वीपी पांडे और जिला कारागार अधीक्षक देहरादून महेंद्र सिंह ग्वाल ने इन सुविधाओं को जानने के लिए केंद्रीय कारागार अंबाला का भ्रमण किया था। इसके बाद देहरादून व हरिद्वार की जेलों में परीक्षण के तौर पर इसे लागू करने के लिए बीएसएनएल के साथ समझौता किया था। इसी क्रम में प्रदेश की अन्य जेलों में भी टेलीफोन सुविधा शुरू कर दी जाएगी।
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नवीन समाचार, नैनीताल, 11 दिसंबर 2019। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने रामनगर के पास मोहान में स्थापित केंद्र सरकार की मिनी रत्न कम्पनी आईएमपीसीएल यानी इंडियन मेडिसिन फार्मास्युटिकल्स कॉरपोरेशन लिमिटेड के निजीकरण के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए इसकी विनिवेश प्रकिया को बड़ा झटका दिया है। रामनगर निवासी एडवोकेट नीरज तिवारी की जनहित याचिका में कहा गया है कि रामनगर के पास मोहान (अल्मोड़ा) में केंद्र सरकार की आयुर्वेदिक एवं यूनानी दवा निर्माता कंपनी आईएमपीसीएल है। दवा कंपनी हर साल शत-प्रतिशत शुद्ध लाभ देती आई है और भारत सरकार की चंद कंपनियों में शामिल है, जो कि आज भी शुद्ध लाभ दे रही है।
आईएमपीसीएल में केंद्र सरकार की 98.11 प्रतिशत हिस्सेदारी है जबकि शेष 1.89 प्रतिशत हिस्सेदारी उत्तराखंड सरकार के कुमाऊं मंडल विकास निगम लिमिटेड के पास है। सरकार ने आईएमपीसीएल में अपनी पूरी हिस्सेदारी बेचने के लिये प्रस्तावित रणनीतिक विनिवेश के तहत ‘‘वैश्विक स्तर’’ पर रुचि पत्र आमंत्रित किये हैं। इस तरह केद्र सरकार शत प्रतिशत शुद्ध लाभ दे रही आईएमपीसीएल कंपनी को केंद्रीय वित्त मंत्रालय निजी हाथों में देने जा रहा है। जबकि यह कम्पनी लगभग 500 लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार और इस पिछड़े क्षेत्र के जड़ी बूटी उगाने और कम्पनी को आपूर्ति करने वाले वाले लगभग 5000 किसानों को अप्रत्यक्ष रोजगार देती है। इसके उत्पादन की उत्कृष्ट दवाइयां देश भर के सरकारी आयुर्वेदिक अस्पतालों में सस्ती दरों पर उपलब्ध कराईं जाती हैं। निजीकरण से ये दवाएं भी महंगी हो जाएंगी जो कि स्वास्थ्य के अधिकार का उल्लंघन होगा। स्वयं मुख्यमंत्री उत्तराखंड, केंद्रीय आयुष मंत्रालय तथा सांसदों और विधायकों ने लिखित में इस कम्पनी के विनिवेश का विरोध किया है फिर भी कम्पनी का निजीकरण किया जा रहा है।
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