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November 7, 2024

High Court on Officers-हाईकोर्ट का नौकरशाही को बड़ा संदेश, एसडीएम पर लगाया 25 हजार का जुर्माना, व्यक्तिगत तौर पर अदालत में पेश होने के आदेश भी…

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High Court on Officers : The Uttarakhand High Court, headed by Chief Justice Vipin Sanghi and Justice Rakesh Thapliyal, has issued an order for the removal of Sunil Kumar Joshi from his position as Vice-Chancellor of Ayurvedic University. The court deemed his appointment as a violation of the rules governing the position. The decision was made after a petition filed by Vinod Kumar Chauhan, a resident of Haridwar, alleging illegal appointment and financial irregularities by Joshi. The petitioner argued that Joshi lacked the required qualifications and experience for the role, and further accused him of misusing his authority and making decisions contrary to government directives.

नवीन समाचार, नैनीताल, 8 जुलाई 2023। (High Court on Officers) उत्तराखंड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने काशीपुर में बरखेड़ा पांडे गांव की सीलिंग भूमि के मामले में पूर्व में दिए गए आदेश का पालन नहीं करने पर काशीपुर के एसडीएम पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाकर उसे राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा करने के आदेश दिए हैं। साथ ही एसडीएम को शपथ पत्र दाखिल करने का अंतिम अवसर देते हुए उन्हें 20 जुलाई को न्यायालय में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहने को भी कहा है।
Uttarakhand High Court, High Court Bar Association Election, PACS elections, Lokayukta,मामले के अनुसार काशीपुर के बरखेड़ा पांडे के पूर्व प्रधान सरफराज ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि बरखेड़ा पांडे गांव में करीब 13.87 एकड़ सीलिंग की भूमि है। इस सीलिंग की भूमि को कुछ लोगों ने अतिक्रमण कर लिया है और गैर कानूनी ढंग से बेच दिया है। उच्चाधिकारियों से शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। जबकि सीलिंग भूमि को नहीं बेचा जा सकता है।

26 अगस्त 2022 को उच्च न्यायालय ने ऊधमसिंह नगर के जिलाधिकारी तथा काशीपुर के उपजिलाधिकारी व तहसीलदार के अलावा परमहंस, लखविंदर सिंह, कश्मीरी देवी, प्रभात कुमार, राजविंदर और परमजीत कौर को नोटिस जारी कर जवाब पेश करने को कहा था। लेकिन एसडीएम ने इस आदेश का पालन नहीं करते हुए विवादित भूमि पर काबिज लोगों को नोटिस जारी कर दिए।

इस नोटिस को कश्मीरी देवी और परमहंस ने याचिका दायर कर चुनौती दी। इस पर न्यायालय ने पिछली तिथि पर एसडीएम काशीपुर को उनके प्रत्यावेदनों के निस्तारण के आदेश दिए थे, लेकिन इस आदेश का पालन नहीं हुआ और ना ही एसडीएम की तरफ से कोई शपथ पत्र कोर्ट में पेश किया गया। इस पर न्यायालय ने नाराजगी व्यक्त करते हुए आदेश का पालन नहीं करने पर एसडीएम पर 25 हजार का जुर्माना लगाते हुए 20 जुलाई को कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होने के आदेश दिए हैं। 

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यह भी पढ़ें : High Court on Officers-उच्च न्यायालय ने आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति को नियम विरुद्ध बताते हुए दिए पद से हटाने के आदेश..

नवीन समाचार, नैनीताल, 5 जुलाई 2023। (High Court on Officers) उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय के कुलपति सुनील कुमार जोशी की नियुक्ति को नियम विरुद्ध बताते हुए उन्हें पद से हटाने के आदेश दिए है। इस मामले में खंडपीठ ने गत 15 जून को सुनवाई पूरी कर अपना निर्णय को सुरक्षित रख लिया था और आज बुधवार को अपना फैसला सुनाया।

उल्लेखनीय है कि हरिद्वार निवासी विनोद कुमार चौहान ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा था कि आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय के कुलपति सुनील कुमार जोशी की नियुक्ति अवैध तरीके से हुई है। जोशी कुलपति के पद के लिए निर्धारित योग्यता नहीं रखते हैं।

उनके पास कुलपति के पद का अनुभव भी नहीं है, इसलिए उन्हें पद से हटाया जाये। यह भी कहा था कि कुलपति ने अपने पद का दुरुप्रयोग कर वित्तीय अनियमितताएं की हैं और शासकीय निर्णयों के विरुद्ध जाकर स्वयं निर्णय लिए हैं। 

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यह भी पढ़ें : High Court on Officers : अधिकारियों को भारी पड़ा वाहन को नियमविरुद्ध सीज करना, डीएम संबंधित अधिकारी से 5 लाख रुपए वसूल कर वाहन मालिक को मुआवजा देंगे…

नवीन समाचार, नैनीताल, 14 जनवरी 2023। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति संजय मिश्रा की एकलपीठ ने थल पिथौरागढ़ निवासी एक व्यक्ति का वाहन नियम विरुद्ध सीज करने पर पिथौरागढ़ के जिलाधिकारी से तत्कालीन डीडीहाट के उप जिलाधिकारी से एक माह के भीतर पांच लाख की मुआवजा राशि वसूलने के निर्देश दिए हैं। यह भी पढ़ें : नैनीताल: मॉल रोड पर बाइक ने दो लोगों को मारी टक्कर, गंभीर घायल…

मामले के अनुसार थल निवासी धरम सिंह ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा था कि वर्ष 2015 में उनके वाहन संख्या यूके05एसटीए-1140 को ओवरलोड न होने के बावजूद ओवरलोडिंग के जुर्म में थल के थानाध्यक्ष ने सीज कर आपराधिक मुकदमा शुरू कर दिया था। यह भी कहा था कि दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 451 और 457 के अनुसार मजिस्ट्रेट के पास एक अंतरिम आदेश पारित करने या वाहन को छोड़ने का ही अधिकार है,

साथ ही कोई जांच एजेंसी किसी वाहन को जब्त करती है, तो इसकी सूचना प्राधिकरण को दी जानी चाहिए थी, लेकिन इन नियमों का पालन कर मजिस्ट्रेट ने खुद वाहन को जब्त कर लिया, और किसी भी सक्षम न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष कोई चालान दायर नहीं किया, तथा लंबे समय के बाद भी उनके वाहन को मुक्त नहीं किया। यह भी पढ़ें : नैनीताल : रेस्टोरेंट का शटर तोड़कर गल्ले से चोरी, पास का ही निकला आरोपित….

फलस्वरूप जब्ती की तारीख से अद्यतन वाहन थाने में निष्क्रिय और अनुपयोगी पड़ा रहा, जो कि सुंदरलाल अंबालाल देसाई के मामले सुप्रीम कोर्ट में संपत्ति के निपटान के साथ-साथ आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 में कानून और सामग्री के प्रावधानों के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों का स्पष्ट उल्लंघन है। यह भी पढ़ें : बड़ा समाचार : प्रतिबंधित एकल प्रयोग प्लास्टिक के उपयोग व भंडारण पर लगेगा 1 से 5 लाख रुपए का जुर्माना, आदेश जारी….

एकलपीठ ने शिकायत एवं अधिवक्ता के तर्कों के आधार पर वाहन को तुरंत याचिकाकर्ता को मुक्त करने एवं जब्त की अवधि से अब तक की अवधि के लिए कोई भी कर याचिकाकर्ता से वसूल न करने और याचिकाकर्ता को 5 लाख का मुआवजा देने के निर्देश दिए हैं। मुआवजे की 5 लाख रुपए की राशि पिथौरागढ़ के जिलाधिकारी डीडीहाट के तत्कालीन उप जिलाधिकारी से 30 दिनों की अवधि के भीतर वसूल करेंगे। 

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यह भी पढ़ें : High Court on Officers : पूर्व डीजीपी को उच्च न्यायालय से गिरफ्तारी पर तात्कालिक राहत, जानें किस दलील पर मिली राहत…

नवीन समाचार, नैनीताल, 4 नवंबर 2022। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने उत्तराखंड के पूर्व पुलिस महानिदेशक बीएस सिद्धू के सिर पर लटकी गिरफ्तारी की तलवार को तात्कालिक राहत दे दी है। सिद्धू के खिलाफ देहरादून के राजपुर थाने में सरकारी आरक्षित वन भूमि पर कब्जा करने व पेड़ काटने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया है। यह भी पढ़ें : 24 घंटे से पहले हल्द्वानी के कारोबारी पर गोली चलाने वालों के साथ पुलिस की मुठभेड़, एक बदमाश को गोली लगी

इस मामले में सिंद्धू ने अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए उत्तराखंड उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। इस पर उच्च न्यायालय की वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय मिश्रा की एकलपीठ ने मामले की सुनवाई के बाद सिद्धू की गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए उनसे जांच में सहयोग करने को कहा है। साथ ही सरकार से एक आरोप में दो बार मुकदमा दर्ज करने पर स्थिति स्पष्ट करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई के लिए 16 नवम्बर की तिथि नियत की गई है। यह भी पढ़ें : गजब: पति की मौत के बाद लाचारी में बैंक खाता बंद करने पहुंची मजदूरी करने को मजबूर महिला, बैंक ने थमा दिया 2 लाख का चेक

अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए सिद्धू ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा है कि इसी आरोप में उनके खिलाफ 2013 में भी मुकदमा हुआ था, जो विचाराधीन है और उसी मामले में फिर से मुकदमा दर्ज किया गया है। नियमानुसार एक आरोप के लिये दो मुकदमे दर्ज नहीं किये जा सकते। इसलिए उन्होंने 23 अक्टूबर को उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 166, 167, 419, 420, 467, 468, 471 व 120बी आदि के तहत दर्ज प्राथमिकी को निरस्त करने की मांग की है। यह भी पढ़ें : हल्द्वानी में दिन दहाड़े बड़ी वारदात, पुलिस कर्मी की पत्नी की घर में घुसकर हत्या

उल्लेखनीय है कि सिद्धू पर 2012 में अपर पुलिस महानिदेशक के पद पर रहते हुए मसूरी वन प्रभाग में पुरानी मसूरी रोड स्थित वीरगिरवाली गांव में 0.7450 हेक्टेयर आरक्षित वन भूमि कथित रूप से फर्जीवाड़ा कर खरीदने और उस जमीन पर लगे साल के 25 वृक्षों को अवैध तरीके से कटवाने का आरोप है। यह भी पढ़ें : नैनीताल में पिछले दिनों हुई बाइक, टीवी, मंगलसूत्र, लैपटॉप आदि की चोरियों का खुलासा

उनके डीजीपी के पद पर रहते हुए यह मामला दबा रहा, जबकि इधर, उत्तराखंड सरकार से अनुमति मिलने के बाद मसूरी के प्रभागीय वन अधिकारी आशुतोष सिंह ने गत 23 अक्टूबर को सिद्धू और सात अन्य के खिलाफ राजपुर थाने में आरक्षित वन भूमि जमीन कब्जाने और सरकारी पद का दुरुपयोग करने का मुकदमा दर्ज कराया है। इस मुकदमे पर सिद्धू ने दावा किया था कि यह मामला पहले से ही अदालत में विचाराधीन है। शासन को गुमराह कर उनके खिलाफ दोबारा मुकदमा दर्ज किया गया है। 

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यह भी पढ़ें : High Court on Officers : पदोन्नति में आरक्षण : UK सरकार ने 6 वर्ष से रिपोर्ट पर नहीं लिया कोई निर्णय, हाईकोर्ट ने 6 माह में जवाब देने को कहा..

नवीन समाचार, देहरादून, 19 सितंबर 2022। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने पदोन्नति में आरक्षण के मामले में गठित न्यायमूर्ति इरशाद हुसैन कमेटी की छह वर्ष पूर्व 2016 में आई रिपोर्ट पर अभी तक कोई कार्यवाही न करने पर राज्य सरकार से जवाब तलब किया है। न्यायालय ने पूछा है कि न्यायमूर्ति हुसैन कमेटी की रिपोर्ट पर क्या निर्णय लिया, इस पर छह सप्ताह में जवाब दाखिल करें। मामले की अगली सुनवाई 23 फरवरी की तिथि नियत की है।

उल्लेखनीय है कि सचिवालय अनुसूचित जाति एवं जनजाति कार्मिक संगठन के अध्यक्ष वीरेंद्र पाल सिंह ने याचिका दायर कर कहा है कि सर्वोच्च न्यायलय ने 28 जनवरी 2021 को जनरैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण के मामले में आदेश दिए थे कि राजकीय सेवा में राज्य सरकार पदोन्नति में आरक्षण के लिए कैडर वार रोस्टर तैयार करे, परन्तु अभी तक इस आदेश का पालन नहीं किया गया।

याचिका में यह भी कहा गया कि 2012 में पूर्व मुख्य सचिव इंदु कुमार पांडे कमेटी की रिपोर्ट ने माना था कि उत्तराखंड के राजकीय सेवाओं में पदोन्नति में आरक्षण के लिए अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों के प्रत्यावेदनों का प्रतिनिधित्व कम है। इसी को लेकर न्यायमूर्ति इरशाद हुसैन की कमेटी भी गठित की गई थी। जिसने अपनी रिपोर्ट सरकार को 2016 में सौंप दी थी लेकिन अभी तक कमेटी की रिपोर्ट को सरकार ने सार्वजनिक नहीं किया है। साथ ही दस साल बीत जाने के बाद भी इंदु कुमार पांडे की रिपोर्ट पर पुनर्विचार भी नहीं किया गया। 

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यह भी पढ़ें : High Court on Officers : आय से 500 गुना अधिक संपत्ति के आरोपित उत्तराखंड के आईएएस राम विलास यादव को कल विजीलेंस के सामने बयान दर्ज कराने के आदेश…

आईएएस अफसर के तीन ठिकानों पर विजिलेंस का छापा, देहरादून से लेकर लखनऊ तक  कार्रवाई जारी - Uttarakhand Newsडॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 21 जून 2022। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने आय से 500 गुना अधिक सम्पति अर्जित करने के मामले में आरोपित प्रदेश के अपर सचिव समाज कल्याण राम विलास यादव की गिरफ्तारी पर रोक लगाने से संबंधित याचिका पर आरोपित से बुधवार तक अपना बयान विजिलेंस के सम्मुख दर्ज कराने को कहा है। साथ ही सरकार से सुनवाई की अगली तिथि 23 जून तक स्थिति स्पष्ट करने के आदेश दिए हैं।

मंगलवार को आरोपित की गिरफ्तारी के मामले में दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान याची की ओर से न्यायालय को बताया गया कि उन पर आय से अधिक सम्पति अर्जित करने के झूठे आरोप लगाए गए हैं। उनकी बेटी विदेश में और बेटा सर्वोच्च न्यायालय में अधिवक्ता और पत्नी कालेज की प्रबंधक और खुद वे आईएएस अधिकारी है। यह सम्पति इनकी मेहनत से अर्जित की गई है। जिस व्यक्ति ने उनके खिलाफ शिकायत दर्ज की है, उसके खिलाफ कई आपराधिक मुकदमे चल रहे है।

इस मामले में उनको अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया है। सरकार ने जो कमेटी गठित की थी उनको पक्ष रखने से पहले ही भंग कर दिया गया। दूसरी ओर सरकार की ओर से कहा गया कि विजिलेंस टीम ने आरोपित को कई बार अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया परन्तु वह मुख्यमंत्री, प्रमुख सचिव व कई मंत्रियों से मिले, लेकिन टीम के समक्ष अपना पक्ष रखने नहीं आए।

बताया गया है कि उत्तराखंड सरकार में समाज कल्याण विभाग में अपर सचिव आईएएस राम विलास यादव पूर्व में उत्तर प्रदेश सरकार में लखनऊ विकास प्राधिकरण के सचिव एवं मंडी परिषद के निदेशक भी रह चुके है। उनके खिलाफ लखनऊ में एक व्यक्ति द्वारा आय से अधिक सम्पति रखने की शिकायत दर्ज की थी। इसके आधार पर उत्तराखंड सरकार ने जांच शुरू की। विजिलेंस टीम ने उनके लखनऊ, देहरादून व गाजीपुर के ठिकानों पर छापा मारा जिसमे आय से 500 गुना अधिक सम्पति मिली। इसके आधार पर सरकार ने उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया। अपनी गिरफ्तारी से बचने के लिए उन्होंने उच्च न्यायलय की शरण ली है। 

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यह भी पढ़ें : न्याय की धारणा के विरुद्ध निर्णय करने पर काशीपुर की तहसीलदार को निलंबित करने के निर्देश…

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 5 मई 2022। आदेश की गलत व्याख्या करने पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा की एकलपीठ ने काशीपुर की तहसीलदार पूनम पंत के विरुद्ध प्रशासनिक कार्रवाई करते हुए ऊधम सिंह नगर के डीएम को उन्हें निलंबित करने तथा उन पर की गई कार्रवाई की रिपोर्ट सात मई को न्यायालय के समक्ष पेश करने के निर्देश दिए हैं।

मामले के अनुसार काशीपुर निवासी मो. इमरान ने याचिका दायर कर कहा कि वह उत्तराखंड सरकार की ओर से ओबीसी यानी अन्य पिछड़ी जाति के रूप में अधिसूचित तेली जाति से हैं। उसने 1994 के अधिनियम के प्रविधान के अनुसार ओबीसी प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया था। जिसे तहसीलदार ने खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए अपने बड़े भाई द्वारा छह अगस्त 2021 को एक याचिका के माध्यम से प्राप्त आदेश की तरह उच्च न्यायालय से आदेश प्राप्त करना होगा।

एकलपीठ ने तहसीलदार काशीपुर के इस निर्णय को न्यायिक धारणा के विरुद्ध मानते हुए याचिकाकर्ता को भी तत्काल 2021 में मो. रिजवान बनाम उत्तराखंड सरकार में दिए निर्देशों के अनुसार ओबीसी प्रमाण पत्र जारी करने के निर्देश दिए है। यानी न्यायालय का एक तरह से कहना है कि जब पहले से एक मामले में न्यायालय का आदेश है तो अधिकारी क्यों उसी तरह के निर्णय के लिए आवेदक को न्यायालय भेज रहे हैं।

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यह भी पढ़ें : ऊधमसिंह नगर की जिलाधिकारी को उच्च न्यायालय से अवमानना नोटिस जारी

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 4 जनवरी 2022। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने पूर्व के आदेश का पालन नहीं करने पर ऊधमसिंह नगर की जिलाधिकारी रंजना राजगुरु को अवमानना नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह में जवाब पेश करने को कहा है।

उल्लेखनीय है कि पूर्व में न्यायालय ने जिलाधिकारी को याचिकाकर्ताओं के मुआवजा संबंधी प्रत्यावेदन चार सप्ताह के भीतर निस्तारित करने के आदेश दिए थे। लेकिन चार सप्ताह बीत जाने के बाद भी उनके प्रत्यावेदन निस्तारित नहीं किए गए। इसके कारण उनके खिलाफ अवमानना याचिका दायर की गई है।

गौरतलब है कि शिवराजपुर पट्टी, जिला ऊधमसिंह नगर निवासी राम सिंह व 40 अन्य लोगों ने पूर्व में उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर कहा था कि उनके खेतों के ऊपर से 33 हजार केवी बिजली की लाइन जा रही है। इसकी वजह से उनके खेतों में स्थित यूकेलिप्टस व अन्य पेड़ काटे गए हैं।

उन्हें काटे गए पेड़ों को प्रति पेड़ दो सौ से पांच सौ रुपये के बीच मुआवजा दिया गया। जबकि बरेली जोन ने उन्हें दोगुनी दरों पर मुआवजा स्वीकृत किया था। लिहाजा उन्होंने अपनी याचिका में बरेली जोन द्वारा निर्धारित मुआवजा दिलाए जाने की मांग की थी। 

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यह भी पढ़ें : कांग्रेस नेता के घर में आगजनी के मामले में भाजपा नेता की गिरफ्तारी पर रोक के आदेश…

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 3 दिसंबर 2021। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने गत 15 नवंबर को पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस सांसद सलमान खुर्शीद के प्यूड़ा सतखोल स्थित कोठी में आगजनी और गोली चलाने के मामले में भाजपा नेता कुंदन चिलवाल की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। अलबत्ता चिलवाल से जांच में सहयोग करने को कहा है।

उल्लेखनीय है कि इस मामले में पुलिस ने न्यायालय को बताया था कि इस मामले की जांच में कुंदन की कोई भूमिका नजर नहीं आई हैै। जबकि पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद के अधिवक्ताओं ने कड़ा विरोध किया और कोर्ट को बताया कि कुंदन मुख्य आरोपित है और इसी के नेतृत्व के सभी लोग आगजनी करने गए थे। शुक्रवार को न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की एकलपीठ ने कुंदन की याचिका पर सुनवाई करते हुए गिरफ्तारी पर रोक लगा दी। आज के अन्य ताजा ‘नवीन समाचार’ पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें।

यह भी पढ़ें : बिग ब्रेकिंग: निलंबित हुए नैनीताल के कोतवाल, मामले की जांच भी होगी

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 17 नवंबर 2021। मुख्यालय स्थित मल्लीताल कोतवाली के कोतवाल प्रीतम सिंह निलंबित कर दिए गए हैं। साथ ही उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई एवं संबंधित मामले की जांच भी की जाएगी। प्रदेश के डीजीपी अशोक कुमार ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय में यह बात कही है।

इसके अलावा अधिवक्ता सना हुसैन व उनके परिवार व संपत्ति को पुलिस की सुरक्षा देने की भी पुलिस ने स्वीकृति की है। हालांकि इस बारे में पुलिस के कोई भी अधिकारी अभी कुछ भी नहीं बोल रहे हैं। बल्कि अधिकारियों के फोन ही नहीं उठ रहे हैं।

मामला दो दिन पूर्व मुख्यालय स्थित हांडी-बांडी स्थित कैलाश विहार कॉलोनी के फ्लैट में कब्जे को लेकर विवाद से जुड़ा बताया जा रहा  है। यहां एक पक्ष के पूर्व कर्मचारी नेता व रंगकर्मी मंजूर हुसैन, उनके पुत्र साऊद हुसैन, अधिवक्ता पुत्री सना हुसैन व रेहान तथा दूसरे पक्ष के कुमाऊं विवि कर्मी व शिक्षणेत्तर कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष कुलदीप कुमार, राहुल आदि के बीच संपत्ति को लेकर विवाद व मारपीट हुई थी।

इस मामले में पूर्व में मंजूर हुसैन पक्ष की ओर से मारपीट होने पर कुलदीप कुमार, राहुल व अन्य के खिलाफ मारपीट के आरोप में तहरीर दी थी, लेकिन पुलिस ने इस पर कार्रवाई नहीं की। जबकि अगले दिन कुलदीप कुमार की ओर से मंजूर हुसैन के पक्ष के खिलाफ जब मारपीट की तहरीर दी गई तो पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर साऊद हुसैन को जेल भेज दिया।

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यह भी पढ़ें : नैनीताल : दो कर्मचारी नेताओं के बीच संपत्ति विवाद को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश,

इस मामले को लेकर अधिवक्ता सना हुसैन ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। इस पर मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान एवं आलोक कुमार वर्मा की संयुक्त पीठ ने सुनवाई के दौरान इस बात को गंभीरता से लिया कि एक पक्ष की तहरीर पर कार्रवाई नहीं की गई, जबकि दूसरे पक्ष की तहरीर पर मुकदमा दर्ज कर एक व्यक्ति को गिरफ्तार भी कर लिया गया। इस पर पीठ ने जनपद की एसएसपी को वर्चुअली न्यायालय में पेश करने को कहा, पर अधिकारी उनसे संपर्क नहीं कर पाए।

इस पर डीआईजी डॉ. नीलेश आनंद भरणे व नैनीताल के एसपी न्यायालय में एवं प्रदेश के डीजीपी अशोक कुमार न्यायालय में वर्चुअली न्यायालय में पेश हुए और उन्होंने कोतवाल को निलंबित करने व उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने तथा अधिवक्ता व उनके परिवार तथा संपत्ति को सुरक्षा देने की बात कही।

इस दौरान न्यायालय ने पुलिस विभाग को अपने अधिकारी की लोकेशन के बारे में न बता पाने पर कड़ी फटकार भी लगाई। अब इस मामले में पुलिस पर दूसरे पक्ष के आरोपितों-कुलदीप कुमार, राहुल व अन्य के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव भी बन गया है। 

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यह भी पढ़ें : उत्तराखंड उच्च न्यायालय का दिन का दूसरा बड़ा फैसला, अल्मोड़ा विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति निरस्त

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 9 नवंबर 2021। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति एनएस धानिक की खंडपीठ ने प्रदेश के गत वर्ष ही अस्तित्व में आए सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा के पहले कुलपति प्रो. नरेंद्र सिंह भंडारी की नियुक्ति को निरस्त कर दिया है। देखें विडियो :

इस मामले में बुधवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए पीठ ने प्रो. भंडारी की नियुक्ति को यूजीसी की नियमावली के विरुद्ध पाते हुए निरस्त किया है। पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि प्रो. भंडारी ने यूजीसी की नियमावली के अनुसार दस साल प्रोफेसर नहीं रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि देहरादून निवासी रवींद्र जुगरान ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि यूजीसी की नियमावली के अनुसार किसी विश्वविद्यालय का कुलपति बनने के लिए दस साल प्रोफेसर के रूप में कार्य करना जरूरी है। जबकि प्रो. भंडारी करीब आठ साल प्रोफेसर रहे हैं। बाद में वह उत्तराखंड लोक सेवा आयोग के सदस्य नियुक्त हुए। उस दौरान की उनकी सेवा को उनके प्रोफेसर के रूप में कार्य करने के रूप में नहीं जोड़ा जा सकता है। इसलिए उनकी नियुक्ति अवैध है। लिहाजा उन्हें पद से हटाया जाए।

उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड लोक सेवा आयोग के सदस्य और एसएसजे परिसर अल्मोड़ा में रसायन विभाग के विभागाध्यक्ष रह चुके प्रो. भंडारी को गत वर्ष ही अस्तित्व में आए सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा का 11 अगस्त 2020 को तीन अथवा 65 वर्ष की आयु पूरी होने तक के लिए पहला कुलपति बनाया गया था। उनका कार्यकाल करीब सवा वर्ष का ही रह पाया है। 

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यह भी पढ़ें : आय से अधिक संपत्ति के मामले में सरकार से जवाब तलब

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 8 अक्टूबर 2021। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की ने आय से अधिक संपत्ति मामले में फंसे सहायक समाज कल्याण अधिकारी एनके शर्मा की याचिका पर सरकार को अगली सुनवाई की तिथि 24 अक्टूबर तक जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। गौरतलब है कि शर्मा ने याचिका में गिरफ्तारी पर रोक लगाने की याचना की है।

मामले के अनुसार देहरादून के एसके सिंह ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर शर्मा पर आय से अधिक संपत्ति जुटाने का आरोप लगाते हुए जांच की मांग की थी। विजिलेंस ने जांच के बाद आय से अधिक संपत्ति मामले में 10 मई को सहायक निदेशक शर्मा के खिलाफ मामला दर्ज किया है। शर्मा ने याचिका दायर कर विजिलेंस की प्राथमिकी निरस्त करने व गिरफ्तारी पर रोक लगाने की याचना की है। गुरुवार को न्यायालय में सरकार की ओर से जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा गया। 

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यह भी पढ़ें : बहुचर्चित मामले में सरकार ने HC में कहा, गबन नहीं हुआ, गलती से 20 करोड़ गए, लापरवाही में बहुचर्चित सचिव भी

डॉ. नवीन जोशी, नवीन समाचार, नैनीताल, 17 सितंबर 2021। प्रदेश के बहुचर्चित भवन एवं सन्निर्माण कल्याण बोर्ड में भ्रष्टाचार के मामले में सरकार ने शुक्रवार को उत्तराखंड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ के समक्ष जांच रिपोर्ट दाखिल की। जांच रिपोर्ट में बताया है कि 20 करोड़ का गबन नहीं हुआ था, बल्कि 20 करोड़ रुपए बोर्ड की लापरवाही के कारण गलत कंपनी को दे दिए गए थे, जो अब सरकारी खाते में आ चुकी है।

मामले में विभागीय जांच बैठा दी गई है। तथा बोर्ड की तत्कालीन सचिव दमयंती रावत, कर्मचारी राज्य बीमा योजना के मुख्य चिकित्साधिकारी डा. आकाशदीप व मुख्य फार्मासिस्ट बीएन सेमवाल, श्रम विभाग के वरिष्ठ सहायक नवाब सिंह आदि के खिलाफ लापरवाही बरतने के आरोप में उत्तराखंड सरकारी सेवक अनुशासनिक संशोधित नियमावली 2010 के प्राविधानों के तहत कार्रवाई की जा रही है। न्यायाल ने मामले में अगली सुनवाई के लिए दस नवंबर की तिथि नियत कर दी है।

उल्लेखनीय है कि काशीपुर निवासी खुर्शीद अहमद ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि वर्ष 2020 में भवन एवं सन्निर्माण कल्याण बोर्ड की ओर से श्रमिकों को टूल किट, सिलाई मशीन एवं साइकिल देने के लिए समाचार पत्रों में विज्ञापन दिया गया था। इनकी खरीद में बोर्ड अधिकारियों ने वित्तीय अनियमितता बरती। इसकी शिकायत जब राज्यपाल व प्रशासन से की गई तो अक्टूबर 2020 में बोर्ड को भंग कर दिया गया।

नया चेयरमैन शमशेर सिंह सत्याल को नियुक्त किया गया। इसकी जांच जब चेयरमैन की ओर से कराई गई तो घोटाले की पुष्टि हुई। मामले में श्रम आयुक्त उत्तराखंड की ओर से भी जांच की गई, जिसमें कई नेताओं व अधिकारियों के नाम सामने आए। लेकिन सरकार ने उनको हटाकर उनकी जगह नया जांच अधिकारी नियुक्त कर दिया, जिसके द्वारा निष्पक्ष जांच नहीं की जा रही है। याचिका में पूरे प्रकरण की उच्चस्तरीय कमेटी गठित कर निष्पक्ष जांच की मांग की गई है। 

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यह भी पढ़ें : यूपी के पूर्व बाहुबली सांसद को तीसरी बार अल्पकालिक जमानत, पर इस बार आखिरी…

डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 26 अगस्त 2021। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने गाजियाबाद के विधायक रहे महेंद्र भाटी की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे यूपी के बाहुबली नेता व पूर्व सांसद डीपी यादव को इलाज हेतु एक माह की अल्पकालिक जमानत दी है।

पीठ ने अल्पकालिक जमानत कहते हुए यह भी कहा है कि वह इस बार अपना इलाज करा ले, इसके बाद आगे कोई अल्पकालिक जमानत नही दी जाएगी। उल्लेखनीय है कि उच्च न्यायालय इससे पहले यादव को दो बार अल्पकालिक जमानत दे चुका है।

उल्लेखनीय है कि बृहस्प्तिवार को सजायाफ्ता पूर्व सांसद यादव की ओर से न्यायालय में प्रार्थना पत्र देकर कहा था कि उसे पूर्व में मिली अल्पकालिक जमानत की अवधि में एक ऑपरेशन हुआ, लेकिन बीमारी ठीक नहीं हो पाई। अल्पकालिक जमानत की अवधि समाप्त होने से पहले उसने आत्मसमर्पण भी कर दिया है।

इसलिए पूरा उपचार कराने के लिए और अल्पकालिक जमानत दी जाये। उल्लेखनीय है कि यादव को इससे पहले गत 20 अप्रैल को दो माह की अल्पकालिक जमानत दी गई थी जिसकी अवधि 20 जून को समाप्त हो गयी थी। उसके बाद डीपी यादव की ओर से अल्पकालिक जमानत की अवधि बढ़ाने हेतु प्रार्थना पत्र दिया गया था। 

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नवीन समाचार पर पूर्व में प्रकाशित अधिकारियों से संबंधित मामलों के समाचार पढ़ने को यहां क्लिक करें।

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