Hindi Samagra : दुनिया में पौने दो अरब लोगों की भाषा बनने के साथ विश्वभाषा बनने की राह पर चल पड़ी है हिंदी…
-बाजार, क्रिकेट, फिल्मों और इंटरनेट की वजह से बढ़ा है उपयोग
डॉ. नवीन जोशी @ नवीन समाचार, नैनीताल, 14 सितंबर 2023 (Hindi Samagra)। दुनिया में 50 करोड़ लोग हिंदी भाषा बोलते हैं, और दुनिया में हिंदी भाषी चौथे नंबर पर हैं। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार करीब सवा सौ करोड़ की जनसंख्या के भारत देश में करीब 32 फीसद यानी 40 करोड़ लोगों ने अपनी मातृभाषा हिंदी बताई है, जबकि देश में करीब 90 करोड लोग हिंदी बोल व समझ सकते हैं।
वहीं दुनिया के अन्य देशों में हिंदी बोलने वाले लोगों की बात करें तो यह संख्या भी करीब 80 करोड़ तक पहुंच गई है, और इसके साथ ही दुनिया में हिंदी बोलने वालों की संख्या करीब 1.75 अरब तक पहुंच गई है और हिंदी चीन की मंदारिन के बाद दुनिया की सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा बन गई है। (हालाँकि आधिकारिक तौर पर कुल 1,365,053,177 यानी 1,36 अरब लोग ही मंदारिन बोलते हैं)
आंकड़े बताते हैं कि अमेरिका में 6.5 लाख लोग हिंदी बोलते हैं, जबकि पड़ोसी देश नेपाल के साथ ही पाकिस्तान, श्रीलंका, अफगानिस्तान, त्रिनिदाद, हंगरी व मॉरीशश के साथ ही टेक्सास अमेरिका में भी हिंदी बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है, और यह दुनियां के 68 देशों में बोली जा रही है।
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हिंदी के बारे में एक अन्य दिलचस्प तथ्य के अनुसार भारत में 60 करोड़ शिक्षितों में से केवल 3 करोड़ ही अंग्रेजी जानते हैं, इसलिए भारत में हिंदी को बाजार अत्यधिक महत्वपूर्ण और ‘उपभोक्ता समाज की भाषा’ मान रहा है। यही कारण है कि भारत में हिंदी सिखाने का व्यवसाय एक स्विस बहुराष्ट्रीय कंपनी के द्वारा किया जा रहा है, ताकि वह हिंदी भाषी उपभोक्ताओं को अपने उत्पाद बेच सकें। इसी के साथ एक दुखद पक्ष भी सामने रखा गया है कि आजादी के आन्दोलन में जहाँ ‘अंग्रेजी हटाओ-हिंदी लाओ’ के नारे लगते थे, वहीँ अब ‘अंग्रेजी का विरोध न करें-हिंदी का प्रचार करें’ कहा जा रहा है।
भारत में लोग आर्थिक कष्ट उठाकर भी अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं। एक खास बात यह भी देखने में आ रही है की भले अंग्रेजीदां लोग और अंतर्राष्ट्रीय बाजार भी मौके का फायदा उठाने के लिए हिंदी सीख-बोल रहे हैं, लेकिन लेखन के तौर पर हिंदी की जगह अंग्रेजी का ही (रोमन ही सही) प्रयोग किया जा रहा है। (राष्ट्रीय सहारा 22 नवम्बर 2015, पेज-9)
वहीं डा. जयंती प्रसाद नौटियाल के ताजा शोध अध्ययन-2015 के अनुसार विश्व भाषा बनने की ओर आगे बढ़ रही हिंदी को दुनिया की 18 प्रतिशत जनसंख्या जानती-समझती है। धार्मिक और पर्यटन स्थलों पर तो हिंदी पहले से ही लोकप्रिय थी, जबकि अब यह उद्योग, व्यापार, शिक्षा और मनोरंजन के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण स्थान बना चुकी है। बताया गया है कि केवल भारत या पड़ोसी देशों तक ही नहीं वरन हिंदी सुदूर कैरेबियाई देशों तक फैली है।
मॉरीशश, फिजी, गुयाना, सूरीनाम, ट्रिनीडाड और टोबेगो जैसे देशों में हिंदी राजभाषा के रूप में प्रतिष्ठित है, जबकि इंडोनेशिया, अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका और खाड़ी के देशों में भी बहुत लोकप्रिय है। शोध अध्ययन में अनुमानित आंकड़ों के अनुसार कहा गया है कि भारत में 1012 मिलियन यानी 101.2 करोड़ यानी एक अरब से अधिक लोग हिंदी जानते हैं, जबकि भारत के पड़ोसी देशों की बात करें तो पाकिस्तान में 16.5 लाख, बांग्ला देश में सात लाख और नेपाल में ढाई लाख यानी भारतीय उपमहाद्वीप में 127.2 लाख यानी 1.27 अरब लोग हिंदी बोलते हैं।
वहीं अध्ययन के अनुसार विश्व के अन्य देशों में 2.8 लाख लोग हिंदी जानते हैं, इस प्रकार दुनिया में हिंदी जानने वालों की संख्या 1.3 अरब आंकी गई है। आगे अध्यययन में कहा गया है कि वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषाओं को बोलने वालों की संख्या 3.34 बिलियन यानी 3.34 अरब है, जो कि विश्व की आबादी के हिसाब से करीब आधी है। इसमें यदि हिंदी को भी शामिल कर लिया जाता है तो संयुक्त राष्ट्र संघ की आधिकारिक भाषाओं को बोलने वालों की संख्या 4.64 अरब हो जाएगी, जो कि विश्व की जनसंख्या के 64.26 प्रतिशत जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करेगी।
वहीं अन्य श्रोतों की जानकारी के अनुसार मौजूदा समय में चीन के नौ, जर्मनी के सात, अमेरिका के पांच, ब्रिटेन के चार, कनाडा के तीन तथा रूस, इटली, हंगरी, फ्रांस तथा जापान के दो-दो विश्वविद्यालयों सहित दुनिया के करीब 150 विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में हिंदी किसी-न-किसी रूप में शामिल है। साथ ही विभिन्न देशों के विश्वविद्यालयों में ‘हिंदी पीठ” स्थापित हैं, और विदेशों में तीन दर्जन के करीब अधिक हिंदी की नियमिति पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं।
इधर आस्ट्रेलिया में हिंदी को पाठ्यक्रम में अनिवार्य किए जाने की भी खबर है। इसके साथ ही विदेशों में हिंदी के अनेक गीत-संगीत और समाचार के रेडियो चैनल भी कई वर्षों से चल रहे हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा क्रिकेट दर्शकों में 56 करोड़ हिंदीभाषी, 22 करोड़ बांग्लाभाषी, 11 करोड़ पंजाबी तथा आठ-आठ करोड़ मराठी व अंग्रेजीभाषी हैं।
इस तरह से दर्शकों की संख्या के लिहाज से हिंदीभाषी क्रिकेट दर्शक पहले और अंग्रेजीभाषी चौथे नंबर पर हैं। कई अंग्रेजी चैनलों में भी अब हिंदी में कमेंट्री प्रसारित होने लगी है। ऐसे में यह भी कहा जा रहा है कि इसी गति से हिंदी बोलने और जानने वालों की संख्या बढ़ती रही तो 2050 तक हिंदी पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोले जाने वाली भाषा हो जाएगी।
कमजोर हिंदी (Hindi Samagra) के कारण नहीं बना था पीएम: प्रणव मुखर्जी
पिछले दिनों ही पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने कहा था कि जब उनके नाम का ऐलान प्रधानमंत्री के तौर पर हुआ तो वह खुद हैरान थे क्योंकि प्रणब मुखर्जी उनसे अधिक योग्य व्यक्ति थे। इस पर प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि वह इसलिए पीएम नहीं बन सके क्योंकि वह हिंदी में कमजोर थे। उन्होंने कहा कि मनमोहन सिंह अच्छे पीएम रहे, लेकिन मैं इसलिए नहीं बन सका क्योंकि मैं जनता की भाषा यानी हिंदी में कमजोर था।प्रणब मुखर्जी ने कहा, ‘डॉक्टर साहिब (मनमोहन सिंह) हमेशा बहुत अच्छे विकल्प रहे।
निसंदेह वह बहुत अच्छे पीएम थे। मैं तब भी कहा था और बाद में भी कि कांग्रेसियों में पीएम के तौर पर सबसे अच्छे विकल्प मनमोहन सिंह ही थे। मैं पीएम के तौर पर उपयुक्त नहीं था क्योंकि मैं हिंदी में कमजोर होने के चलते जनता के साथ संवाद नहीं कर सकता था। कोई भी व्यक्ति जनता से संवाद करने की भाषा में सक्षम न होने पर पीएम नहीं बना सकता, जब तक कि कोई अन्य राजनीतिक कारण न हों।’
हिंदी दिवस 2016 को डीडी-1 पर प्रसारित और हिंदुस्तान में छपी एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार:
दुनिया के 10 देशों-ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, गुयाना, मॉरीशस, दक्षिण अफ्रीका, फिजी, नीदरलैंड तथा त्रिनिदाद व टोबैगो में हिंदी भाषी लोग रहते हैं। हिंदी दुनिया के सामने एक बड़ा बाजार बनकर सामने आयी है। हालिया समय में हिंदी साहित्य को इंटरनेट पर उपलब्ध कराने का कार्य तेजी से हुआ है।
स्मार्टफोन पर हिंदी के ऐप का और इंटरनेट-यूट्यूब पर हिंदी में वीडियो देखने का प्रचलन बढ़ा है। डिजिटल होती इंटरनेट आधारित दुनिया में यूनीकोड जैसी तकनीक ने दुनिया में हिंदी को बढ़ावा दिया है। दुनिया के कई देशों के छात्र हर वर्ष भारत आकर हिंदी सीख रहे हैं। अमेरिका के 48 विश्वविद्यालयों और 75 कॉलेजों सहित दुनिया के 500 से ज्यादा विदेशी संस्थानों में हिंदी पढ़ाई जाती है। चीन में भी हिंदी को लेकर दिलचस्पी लगातार बढ़ रही है।
डिजिटल दुनिया में हिंदी की मांग अंग्रेजी की तुलना में पांच गुना ज्यादा तेज है। अंग्रेजी की तुलना में हिंदी 5 गुना तेजी से बढ़ रही है। भारत में हर पांचवा इंटरनेट प्रयोगकर्ता हिंदी का उपयोग करता है। देश में जहाँ हिंदी सामग्री की डिजिटल मीडिया में खपत 94 फीसद की दर से बढ़ी है, वहीँ अंग्रेजी सामग्री की खपत केवल 19 फीसद की दर से ही बढ़ी है। दूसरी ओर भारतीयों में हिंदी के प्रति रुझान बढ़ा है। भारत में 50 करोड़ से ज्यादा लोग हिंदी बोलते हैं। जबकि करीब 21 प्रतिशत भारतीय हिंदी में इंटरनेट का प्रयोग करना चाहते हैं।
भारतीय युवाओं के स्मार्टफोन में औसतन 32 एप होते हैं, जिसमें 8-9 हिंदी के होते हैं। भारतीय युवा यूट्यूब पर 93 फीसद हिंदी वीडियो देखते हैं। इधर गूगल का मोबाइल और वेब विज्ञापन नेटवर्क एडसेंस हिंदी की साइटों में भी काम कर उनके साथ विज्ञापन राजस्व साझा करने लगा है, वहीं हिंदी में 15 से अधिक हिंदी सर्च इंजन कार्य करने लगे हैं। इसके बावजूद डिजिटल मीडिया पर हिंदी के समक्ष चुनौतियां भी कम नहीं हैं।
डिजिटल दुनिया में हिंदी के प्रशिक्षित लोगों की बेहद कमी है। हिंदी अभी भी इंटरनेट की 10 सर्वश्रेष्ठ भाषाओं में शामिल नहीं है। गूगल पर 95 फीसद सामग्री अब भी अंग्रेजी में है, जबकि केवल पांच प्रतिशत सामग्री ही हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं में तथा केवल 0.04 प्रतिशत वेबसाइटें ही हिंदी में हैं। (हिंदुस्तान, नई दिल्ली संस्करण, 14 सितंबर 2016, पेज-1।)
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संवेदना के स्तर पर बढ़े, तभी हिंदी का भला : टंडन
नैनीताल। कुमाऊं विवि की पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. नीरजा टंडन कहती हैं कि हिंदी के बोलने वालों में यह बढ़ोत्तरी मुख्यत: इसके बाजार की भाषा बनने की वजह से हुई है। इस कारण फिल्मों व क्रिकेट के साथ ही टीवी चैनलों पर आने वाले कॉमेडी नाइट्स जैसे कार्यक्रमों ने भी हिंदी को दुनिया में आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वहीं हिंदी के प्रसार में हिंदी ब्लॉगों ने भी बड़ी भूमिका निभाई है।
भारत में आज एक हजार से अधिक हिंदी ब्लॉग मौजूद हैं। इन ब्लॉगों के केवल भारत में ही नहीं दुनिया भर में पाठक हैं। इस प्रकार हिंदी को बढ़ाने में यूनीकोड हिंदी तथा इंटरनेट के माध्यम से हिंदी को बढ़ावा मिलना भी बड़े कारण हैं। उल्लेखनीय तथ्य है कि हिंदी के यूनीकोड फॉन्ट सर्वप्रथम जर्मनी में विकसित हुए हैं, जिनके माध्यम से अब हिंदी में लिखित ब्लॉग यूनीकोड एवं गूगल ट्रांसलेटर के माध्यम से पूरी दुनिया में वहां की अपनी भाषाओं में भी पढ़े जा रहे हैं।
प्रो. नीरजा टंडन कहती हैं कि इस तरह हिंदी के बढ़ने के साथ ही उसका संवेदना के स्तर पर बढ़ना भी अधिक जरूरी है। ताकि हमारे संस्कार और संबंध भी बचे रहें। यह जरूर है कि एक ओर अंग्रेजी स्कूलों व अंग्रेजी क्रिकेट चैनलों में भी हिंदी का प्रयोग हो रहा है, वहीं यह भी सही है कि हिंदी की वृद्धि में देश की देशी भाषाएं बोलने वालों के अपनी भाषा छोड़कर हिंदी को अपनाने का भी बड़ा कारण शामिल है।
प्रो. टंडन ‘इलियट’ का उद्धृत करते हुए कहती हैं कि हिंदी से लगातार गायब हो रहे शब्दों को वापस लाना हिंदी साहित्यकारों के साथ ही सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। इसके साथ ही अंग्रेजी की ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी की तरह यहां भी हिंदी की तकनीकी व वैज्ञानिक शब्दावली को पाठ्यक्रमों में शमिल करना तथा कला व वाणिज्य के साथ विज्ञान के छात्रों के लिए भी भाषा के रूप में अनिवार्यत: हिंदी को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।
इसलिए 14 सितम्बर को मनाया जाता है ‘हिंदी दिवस’
हिन्दी भाषा अपने आप में समर्थ भाषा होने के साथ भारतीयों की राष्ट्रीय चेतना की पहचान है। हिन्दी दिवस प्रत्येक वर्ष ’14 सितम्बर’ को मनाया जाता है। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एक मत से यह निर्णय लिया कि हिन्दी की खड़ी बोली ही भारत की राजभाषा होगी। इसी महत्वपूर्ण निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर सन् 1953 से संपूर्ण भारत में 14 सितंबर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाता है।
स्वतन्त्र भारत की राजभाषा के प्रश्न पर 14 सितंबर 1949 को काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया, जो भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343(1) में इस प्रकार वर्णित है:- संघ की राज भाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा। चूंकि यह निर्णय 14 सितंबर को लिया गया था।
इस कारण हिन्दी दिवस के लिए इस दिन को श्रेष्ठ माना गया था। लेकिन जब राजभाषा के रूप में इसे चुना गया और लागू किया गया तो गैर-हिन्दी भाषी राज्य के लोग इसका विरोध करने लगे और अंग्रेज़ी को भी राजभाषा का दर्जा देना पड़ा। इस कारण हिन्दी में भी अंग्रेज़ी भाषा का प्रभाव पड़ने लगा।
हिन्दी की शब्द सम्पदा अपार है और स्वय में सामर्थ्य रखती है इसे किसी के सहारे की आवश्यकता नही। बस हिन्दी प्रेमी इसका प्रयोग बेहिचक करें, और इसका विस्तार करें, फिर हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने का संकल्प स्वयं राह बनाएगा। हिन्दी का शब्दकोष बढ़ता जाता है, क्योंकि इसमें क्षेत्रीय भाषाओ के शब्दों को भी समय समय पर शामिल किया जाता है। भिन्न-भिन्न विषयों के निष्णात जन इसमें शब्दों को जोड़कर सहायता कर सकते हैं। इसलिए आइये हिन्दी को अपनायें, आगे बढ़ायें और राष्ट्र भाषा बनायें।
विश्व हिन्दी दिवस-10 जनवरी
विश्व हिन्दी दिवस प्रति वर्ष 10 जनवरी को मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विश्व में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता पैदा करना तथा हिन्दी को अन्तराष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करना है। भारत के प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह ने 10 जनवरी 2006 को प्रति वर्ष विश्व हिन्दी दिवस के रूप मनाये जाने की घोषणा की थी। उसके बाद से भारतीय विदेश मंत्रालय ने विदेश में 10 जनवरी 2006 को पहली बार विश्व हिन्दी दिवस मनाया था।
इस के बाद से ही विदेशों में भारत के दूतावास इस दिन को विशेष रूप से मनाते हैं। इस दिन सभी सरकारी कार्यालयों में विभिन्न विषयों पर हिन्दी में व्याख्यान आयोजित किये जाते हैं। 10 जनवरी को ही यह दिवस मनाने के पीछे कारण यह भी है कि विश्व मे हिन्दी का विकास करने और इसे प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से 10 जनवरी 1975 को नागपुर मे प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन मनाया गया था। इसी सम्मलेन के आखिरी दिन 14 जनवरी 1975 को यह संकल्प पारित हुआ कि प्रतिवर्ष 10 जनवरी को ‘विश्व हिंदी दिवस’ मनाया जाए।
उल्लेखनीय है कि अब तक मारीशस, नई दिल्ली, पुन: मारीशस, त्रिनिडाड व टोबेगो, लन्दन, सूरीनाम और न्यूयार्क और जोहांसबर्ग और भोपाल में विश्व हिंदी सम्मलेन मनाये जा चुके हैं जबकि इधर 10 से 12 सितंबर 2015 के बीच भोपाल में ‘हिन्दी जगत : विस्तार एवं सम्भावननाएं’ विषय पर दसवां विश्व हिंदी सम्मलेन मनाया गया है।
अचला ने खोले पिता अमृतलाल व उनके लेखन के कई राज
-36 वर्ष पहले ‘निकाह’ में उठाये थे ‘तीन तलाक’ व ‘हलाला’ के मुद्देः अचला
-महिलाएं समझें कि वे किसी से कम नहीं, पर अलग हैं, अपना अच्छा-बुरा सोच समझकर लें निर्णय
-सवाल उठाया कि पुरुषों के लिये हमेशा सदाबहार हो सकता है, तो महिलाओं के जीवन में पतझड़ क्यों
नवीन जोशी, नैनीताल। निकाह, बागवान, बाबुल व आखिर क्यों सरीखी अनेक सुप्रसिद्ध फिल्मों की पटकथा लेखिका डा. अचला नागर ने कहा कि तीन तलाक का विषय किसी मजहब का मुद्दा नहीं बल्कि महिलाओं की पीड़ा है। उन्होंने इस विषय पर मुस्लिम महिलाओं का दर्द सुनने के बाद एक कहानी लिखी थी, जिस पर 1982 में छपी प्रख्यात निर्माता निर्देशक बीआर चोपड़ा ने निकाह फिल्म बनाई।
इस फिल्म पर तब भी काफी विवाद हुआ था, लेकिन चोपड़ा साहब ने मुस्लिम विद्वानों को अलग से फिल्म दिखाई और उनकी ओर से फिल्म के पक्ष में फतवा जारी होने के बाद फिल्म न केवल प्रदर्शित हुई, बल्कि इसने सफलता के कई कीर्तिमान भी स्थापित किये। उन्होंने कहा कि आज भी बहुत लोग नहीं चाहते कि यह मुद्दा आगे बढ़े, महिलाओं को तीन तलाक से मुक्ति मिले। कहा, तब से इतना फर्क आया है कि तब महिलाएं इस कारण परदों में रोती थीं, लेकिन आज चीखने लगी हैं।
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महिलाओं की आजादी पर उन्होंने कहा, महिलाओं को समझना होगा कि वे किसी से कम नहीं हैं, पर शारीरिक संरचना के साथ पुरुषों से अलग हैं। वे किसी और के कहने पर न सही, वस्त्र पहनने और कहीं आने-जाने में स्वयं अपना अच्छा-बुरा सोच समझकर ही निर्णय लें। पुरुषों की स्वच्छंदता व महिलाओं पर पाबंदियों के संदर्भ में स्वयं को महिला लेखिका कहने से इंकार करते हुए और अपने पिता अमृतलाल नागर को संदर्भित करते हुए कि ‘कलम का कोई लिंग नहीं होता’,
उन्होंने सवाल उठाया कि जब पुरुषों के लिये हमेशा मौसम सदाबहार हो सकता है, तो महिलाओं के जीवन में पतझड़ क्यों। बताया कि इस विषय को वे ‘आखिर क्यों’ फिल्म में राजेश खन्ना, स्मिता पाटिल व टीना मुनीम के जरिये दिखा चुकी हैं। ‘अमृतलाल नागर के बाबू जी बेटा जी एंड कंपनी’ पुस्तक लिख चुकी लेखिका ने कहा कि उनके पिता ने शरत चंद्र चट्टोपाध्याय से ‘अनुभव से लिखने’ और कथाकार ‘मुंशी प्रेमचंद’ से समाज की समस्याएं लिखने का मंत्र लिया था।
अचला ने भी उनसे ‘समाज से जुड़कर’ लिखने के मंत्र लिये। बताया कि उनकी याददास्त गजब की थी। लेकिन वे कोई लेखकीय विचार आने के बाद उसे लिखकर दराज में रख लेते थे, और काफी समय बाद उसे पढ़ने पर उसमें कुछ दम नजर आने पर ही तब उस पर कुछ लिखते थे। अमृतलाल नागर भाषाओं के प्रति दीवाने थे, तथा कई भाषाएं जानते थे। विषय का गहन अध्ययन एवं पढ़कर लिखने का संदेश देने के पीछे उनका मानना था कि लेखक मार्गदृष्टा होता है। उसे कोई भी गलत जानकारी अपने पाठकों को नहीं देनी चाहिए। वे कहते थे, पाठकों को गुमराह करना पाप होता है।
उन्होंने बताया कि किस तरह उनके पिता ने सूरदास पर ‘खंजन नयन’ लिखने से पूर्व ब्रज क्षेत्र के पुराने नक्शों तथा जन्मान्धों का लंबा अध्ययन किया था, तथा ‘ये कोठेवालियां’ लिखने से पूर्व वे कोठे वालियों से मिले और उनकी समस्याओं का तथा ‘बूंदें और समुद्र’ कृति के लिये विषय का नौ वर्षों तक अध्ययन किया। इस मौके पर स्वर्गीय नागर के नवासे संदीपन विमलकांत नागर ने भी अनेक दिलचस्प बातें बतायीं।
बताया कि उनका नैनीताल से रिस्ता 56 वर्ष पुराना है। पहली बार केवल दो वर्ष की उम्र में वे अपने माता-पिता के साथ नैनीताल आये, और बाद में यहां के कलाकारों स्वर्गीय निर्मल पांडे, स्वर्गीय बीएम शाह, ललित तिवाड़ी, राजेश साह, अनिल घिल्डियाल आदि के साथ लगातार जुड़े व नाट्यकर्म करते रहे। इस अवसर पर अपने संबोधन में कुमाऊं विवि के कुलपति प्रो. दिनेश कुमार नौड़ियाल ने कहा कि संगोष्ठी में स्वर्गीय नागर की पुत्री डा. अचला नागर व उनके नवासे डा. संदीपन विमलकांत नागर के पहुंचने से विश्वविद्यालय गौरवान्वित हुआ है।
उन्होंने इस दौरान स्वर्गीय नागर को उनके कालजयी उपन्यास ‘नाच्यौ बहुत गोपाल’ के अपने पसंदीदा चरित्र ‘निर्गुनिया’ के साथ याद किया। समापन अवसर पर हिंदी विभाग की अध्यक्ष डा. नीरजा टंडन ने धर्मवीर भारती के स्वर्गीय नागर को ‘लखनऊ के चौक विश्वविद्यालय का कुलपति’ व तीन चौथाई नागर कही जाने वाली उनकी धर्मपत्नी प्रतिभा नागर के बेहद भावपूर्ण स्मरण के साथ याद किया।
पंत मामा, महादेवी बुआ, बाकी सब चाचा
नैनीताल। प्रख्यात लेखिका डा. अचला नागर ने अपने पिता के दौर की साहित्यिक बिरादरी के साथ अपने संबंधों पर कहा कि उत्तराखंड के निवासी सुप्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत को उनकी मां प्रतिभा नागर राखी बांधती थीं, तथा दूसरी छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा को उनके पिता जीजी, यानी दीदी कहते थे, इसलिये पंत को मामा और महादेवी को बुआ के अतिरिक्त अन्य सभी साहित्यकारों को चाचा कहा करती थीं। खुलासा किया कि काशीपुर में उनका ससुराल रहा। हालांकि बाद में उनके ससुराली गुजरात चले गये।
जीवन पर्यंत किराये के घर में रहे, अब स्मृति में बनेगा ‘राइटर्स होम’
नैनीताल। कार्यक्रम के संयोजक महादेवी वर्मा सृजन पीठ के शोध अधिकारी मोहन सिंह रावत ने बताया कि केंद्र सरकार इस वर्ष को पं. दीन दयाल उपाध्याय, गुरु गोविंद सिंह,एमएम सुब्बालक्ष्मी, बीजू पटनायक आदि 10 महानुभावों की जन्म शताब्दी वर्ष के रूप में मना रही है, इसमें एकमात्र अमृतलाल नागर ही साहित्यकार हैं। उनकी स्मृति में देश भर में 10 करोड़ रुपये से वर्ष भर कार्यक्रम हो रहे हैं।
इसी कड़ी में पीठ को कार्यक्रमों एवं महादेवी वर्मा के रामगढ़ स्थित घर ‘मीरा कुटीर’ को अमृतलाल जी की स्मृति में ‘राइटर्स होम’ बनाने के लिये 80 लाख सहित कुल 90 लाख रुपये स्वीकृत हुए हैं। यहां देश भर के साहित्यकार महादेवी के परिवेश में रहकर लेखन कर सकेंगे। इस हेतु अचला नागर को पहले लेखक के रूप में आमंत्रित किया गया है। वहीं अचला एवं उनके पुत्र संदीपन ने खुलासा किया कि अमृतलाल जी जीवन पर्यंत किराये के घर में रहे। लखनऊ के चौक क्षेत्र में वे जिस कोठी में रहते थे, वह खंडहर में तब्दील होेने को है। सरकार का इस ओर ध्यान नहीं है।
इलाचंद्र जोशी: एक पत्रकार के रूप में
नवीन चंद्र जोशी,
शोध छात्र,
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग,
डीएसबी परिसर, कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल।
उत्तराखंड की साहित्य रत्न गर्भा धरा अल्मोड़ा में जन्मे स्वनामधन्य हिंदी भाषा सेवी साहित्यकार इलाचंद्र जोशी का फलक न केवल बहुआयामी था और वे विविधतापूर्ण विषयों पर लेखनी चलाते थे, वरन उन्होंने सर्वाधिक विविध आयामों पर भी लेखनी चलाई। यह अलग बात है कि मूलतः एक उपन्यासकार एवं इससे बाहर एक कथाकार के रूप में ही उनके वृहद रचना संसार को संकुचित करने की असफल कोशिश की गई हैं।
लेकिन वह एक समीक्षक, समालोचक, अनुवादक, जीवनी लेखक और पत्रकार के रूप में भी बेहद सक्रिय रहे। हिंदी पत्रकारिता जगत के साधकों के लिए यह जानना दिलचस्प होगा वस्तुतः अपनी साहित्यिक यात्रा की शुरुआत जोशी जी ने एक पत्रकार के रूप मे ही की थी। बालक जब ठीक से कलम चलाना भी नहीं जानते, उस उम्र में वे अपनी पत्रिका का प्रकाशन करते हुए संपादक बन गए थे, तथा बाद में हिंदी पत्रकारिता के स्कूल जैसी संस्था और युगीन पत्रकारिता की ध्वजवाहक रही राष्ट्रीय हिंदी पत्रिका ‘धर्मयुग’ के संस्थापक संपादक भी रहे।
इलाचंद्र जोशी का जन्म उत्तराखंड की संस्कृति नगरी कहे जाने वाले अल्मोड़ा शहर में 13 दिसंबर 1903 को एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था। पिता चंद्रशेखर जोशी संगीत के विद्वान थे, जबकि बड़े भाई डा. हेम चंद्र जोशी की पहचान कई देशी-विदेशी भाषाओं के ज्ञाता और ख्याति प्राप्त भाषा वैज्ञानिक के रूप में रही। ऐसे में इलाचंद्र भी कहां पीछे रहने वाले थे। सातवीं कक्षा में पढ़ने के दौरान ही इस हिंदी सेवी ‘पूत के पांव’ मानो ‘पालने में ही’ तब दिखाई देने लगे जब उन्होंने करीब 13 वर्ष की उम्र में ही अल्मोड़ा से ‘सुधाकर’ नाम से एक हस्तलिखित साहित्यिक मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ कर दिया।
इस पत्रिका में हिंदी छायावादी कविता के सुकुमार कवि सुमित्रानंदन पंत और सुप्रसिद्ध नाटककार गोविंद बल्लभ पंत की रचनाएं भी प्रकाशित होती रहीं। लेकिन 1921 में बालपन से युवावस्था में पहुंचने तक फक्कड़ प्रकृति के इला घर छोड़ उस दौर की ‘हिंदी पत्रकारिता के जन्मस्थल’ कलकत्ता भाग आए, और यहां ‘कलकत्ता समाचार’ नाम के दैनिक समाचार पत्र में एक पत्रकार के रूप में नौकरी प्रारंभ कर दी। इस बीच 1929 में वह कलकत्ता में ‘सुधा’ नाम के पत्र से बतौर संपादक जुड़े।
कहते हैं कि इस पत्र के संपादकों से स्वाभिमानी इला की बनी नहीं, और शीघ्र ही उन्होंने इसे विदा कह दिया। इसी वर्ष उन्होंने अपने बड़े भाई डा. हेम के साथ संयुक्त रूप से ‘विश्ववाणी’ नाम के पत्र का संपादन किया, और इस तरह दोनों भाइयों की कलकत्ता और हिंदी पत्रकारिता जगत में ‘जोशी बंधु’ के रूप में भी अच्छी पहचान बन गई। 1931 में उन्होंने यहीं से विश्वमित्र पत्रिका का संपादन किया। आगे 1936 तक शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की नजदीकी में कलकत्ता में रहने के उपरांत वह गंगा-यमुना व सरस्वती के साथ ही उस दौर के साहित्यकारों की संगम नगरी इलाहाबाद आ गए।
यहां इस दौर में उनसे बहन का स्नेह रखने वाली छायावादी कवयित्री महादेवी वर्मा ‘चांद’ नाम की साहित्यिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक पत्रिका की संपादक थीं। इला भी इस पत्र से जुड़ गए और काफी समय तक महादेवी के साथ इस पत्र के सहयोगी संपादक के रूप में कार्य किया। गौरतलब है कि चांद आजादी के उस दौर में हिंदी पत्रकारिता की बेहद सम्माननीय प़ित्रका थी। इस पत्रिका के ‘नारी’, ‘फांसी’ और क्रांतिकारियों को समर्पित आदि विशेषांकों की चर्चा आज भी की जाती है।
आगे इलाहाबाद में स्थाई तौर पर रहते हुए उन्होंने हिंदी सेवी सम्मेलन की पत्रिका-‘सम्मेलन’, उस दौर के बेहद प्रसिद्ध सामाजिक-राजनीतिक समाचार पत्र-‘भारत’ और सामाजिक, राजनीतिक के साथ ही सांस्कृतिक पत्रिका-‘संगम’ का संपादन भी किया। 1950 में संगम का स्वर्ण जयंती अंक उनके संपादकत्व में ही निकला। इसी दौरान जनवरी 1950 में इला व हेम यानी ‘जोशी बंधुओं’ ने एक बार पुनः साथ-साथ हिंदी पत्रकारिता के एक ऐसे पौधे, राष्ट्रीय पत्रिका ‘धर्मयुग’ का बीजारोपण किया और इस वर्ष दिसंबर माह तक सभी 12 अंक निकाले, जो बाद में धर्मवीर भारती के दौर तक हिंदी पत्रकारिकता का स्कूल और उस दौरान ‘धर्मयुगीन पत्रकारिता का युग’ तक कहा गया।
आजादी के बाद भारत सरकार ने उनके अनुभवों का लाभ लेने के लिए उन्हें आकाशवाणी में नियुक्त कर दिया। यहां आकाशवाणी के निर्माता रहते हुए भी वह सेवानिवृत्ति तक पत्रकारिता के धर्म का निर्वाह करते रहे, साथ ही उस दौर में युवा साहित्यकारों-शैलेश मटियानी और लक्ष्मण सिंह बिष्ट ‘बटरोही’ जैसे अपनी मिट्टी के साहित्यकारों की आकाशवाणी में प्रसारणों के जरिए मदद और उन्हें आगे बढ़ाने के प्रयास भी करते रहे।
प्रत्यक्ष तौर पर एक पत्रकार से इतर एक बहुआयामी साहित्यकार की अन्य भूमिकाओं में भी इलाचंद्र जी के मन के भीतर बैठा पत्रकार हमेशा बाहर झांकता नजर आता है। अपने कवि मित्र सुमित्रानंदन पंत और बहन महादेवी वर्मा के छायावादी कविता के प्रमुख हस्ताक्षर होने और स्वयं भी शुरुआती दौर में 1936 में अपने कविता संग्रह-‘विजनवती’ में छायावादी कविताएं रचने के बावजूद जब उन्हें छायावादी कविता में कमी नजर आई तो बेखौफ उन्होंने इसकी कटु आलोचना की।
यही नहीं उस दौर में हिंदी उपन्यास के विश्व प्रसिद्ध नाम बन चुके मुंशी प्रेमचंद जैसे उपन्यासकार की उन्होंने उनके सम्मुख ही ‘उपन्यासकार ही न मानने’ बेहद कटु आलोचना कर धारा के विपरीत बहने और निडर पत्रकारिता के धर्म का पालन करने का मार्ग दिखाया। यह संयोग अथवा दुर्योग ही कहा जाएगा कि अपनी जन्मतिथि के एक दिन बाद ही यानी 14 जनवरी 1982 में इलाहाबाद में उनके साथ ही हिंदी साहित्य के एक युग का भी अंत हो गया।
खुशखबरी : हिंदी साहित्य जगत में नया प्रयास : फोन करें और अपनी रचना इंटरनेट पर प्रकाशित करें…
जी हाँ ! पिछले 11 वर्षों से हिंदी साहित्य की अंतहीन सामग्री को इंटरनेट पर प्रस्तुत करने में जुटा सहज, सरल, सुंदर. रचनाकार www.Rachanakar.org हिंदी के रचनाकारों और पाठकों के लिए, नवीन, उन्नत टेक्नॉलाज़ी का लाभ उठाते हुए, वाचिक रचना प्रकाशन का एक नया प्लेटफोर्म लेकर प्रस्तुत हुआ है. इस सुविधा के जरिये आप केवल एक फ़ोन कॉल कर अपना जीवंत रचना पाठ (लाइव ऑडियो पॉडकास्ट के रूप में) प्रकाशित कर सकते हैं. यानी आप फोन पर ही अपनी रचना का पाठ कर सकते हैं, और उसे रेकार्ड कर यूट्यूब अथवा अन्य पॉडकास्ट सेवा में प्रकाशित कर सकते हैं.
हिंदी साहित्य जगत में यह अपने किस्म का अकेला, नया और प्रथम प्रयास है. इसके लिए बस इस नंबर 07552660358 (यह लैंड लाइन नंबर है, भारत से बाहर के कॉलर +91 का उपयोग करें) पर कॉल करें, तीन रिंग बजने के बाद आपको रेकॉर्ड करने हेतु निर्देश सुनाई देंगे. निर्देशों को ध्यान से सुनें और, बीप की आवाज के बाद अपनी रचना का पाठ फ़ोन पर प्रारंभ कर दें.
रचना का पाठ पूरा हो जाने के बाद फोन काट दें. आपका रचना पाठ स्वचालित रेकॉर्ड कर लिया जाएगा, और उसे यथाशीघ्र इंटरनेट पर (प्रमुखतः यूट्यूब ऑडियो-वीडियो के रूप में, जिसकी पहुँच अधिक है) प्रकाशित कर दिया जाएगा, जिसकी जानकारी के लिए रचनाकार.ऑर्ग नियमित देखते रहें. रचना पाठ प्रकाशन की सूचना अलग से देने की व्यवस्था वर्तमान में नहीं है.
ध्यान रखें, यह नंबर आईवीआरएस ( अन अटैंडेड इंटरैक्टिव वाइस रेस्पांस सिस्टम) पर कार्य करता है, और इसे कोई अटैंड नहीं करता. अतः इस नंबर का उपयोग केवल अपनी रचना पाठ रेकॉर्ड करने के लिए ही करें. किसी तरह की पूछताछ अथवा जानकारी के लिए नहीं. जानकारी पाने के लिए ईमेल सेवा का उपयोग करें. यह सुविधा 24×7 उपलब्ध है – यानी आप कभी भी कहीं से भी किसी भी समय फ़ोन लगा कर अपना रचना पाठ रेकॉर्ड कर सकते हैं.
वर्तमान में रचना पाठ रेकार्ड करने की अधिकतम सीमा 5 मिनट है, अतः इस सीमा के भीतर ही अपनी छोटी – छोटी कविताएँ, लघुकथाएँ, कहानी, व्यंग्य, संस्मरण आदि रेकॉर्ड करें. यदि आपका पाठ 5 मिनट से अधिक है, तो इसे दो भाग में रेकार्ड करें, परंतु रेकार्ड करते समय भाग एक या भाग दो का उल्लेख आरंभ में अवश्य करें. यदि यह प्रकल्प लोकप्रिय होता है, और मांग होती है तो इस सीमा (5 मिनट को) असीमित समय के लिए बढ़ाया भी जा सकता है.
यदि आप पहली बार रचनाकार के लिए रचना भेज रहे हैं या पाठ कर रहे हैं तो यथा संभव अपने संक्षिप्त परिचय के साथ अपना फ़ोटो अवश्य भेजें. इसके लिए ईमेल की सेवा लें. अच्छा होगा यदि रचना पाठ रेकॉर्ड करने के बाद रचना पाठ का समय व दिन के बारे में ईमेल से जानकारी भी दे दें (यह वैकल्पिक है, आवश्यक नहीं) – हमें सुविधा होगी. तो, देर किस बात की? फ़ोन लगाएँ, रचना पाठ करें और पूरी दुनिया में छा जाएं!
हिंदी के साथ अंग्रेजी और कुमाउनी पुस्तकें भी लिख चुके हैं साहित्यकार पद्मश्री साह
-सुमित्रानंदन पंत व लीलाधर जगूड़ी के बाद यह सम्मान लेने वाले उत्तराखंड के तीसरे साहित्यकार
नैनीताल। शुक्रवार (19.12.14) को हुई घोषणा के अनुसार अपने नए उपन्यास ‘विनायक’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त करने वाले पद्मश्री रमेश चंद्र शाह देश के साहित्य के क्षेत्र में यह शीर्ष पुरस्कार प्राप्त करने वाले उत्तराखंड के तीसरे साहित्यकार होंगे। उनसे पहले यह पुरस्कार सुप्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत और लीलाधर जगूड़ी को प्राप्त हुआ है।
इसके अलावा भी यह बात कम ही लोग जानते होंगे कि 1937 में अल्मोड़ा में जन्में कवि, कथाकार, निबंधकार, चिंतक, आलोचक, नाटककार, यात्रा वृत्तांत लेखक, अनुवादक और संपादक पद्मश्री शाह पेशे से मूलत: हिंदी के नहीं वरन अंग्रेजी के प्रोफेसर रहे हैं, तथा अंग्रेजी में भी ‘इलियट’ सहित उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अब तक 90 से अधिक पुस्तकें लिख चुके पद्मश्री शाह की पुस्तकों में अंग्रेजी और हिंदी के साथ कुमाउनी कविताओं की पुस्तक, उकाव-हुलार भी शामिल है।
मूलत: सुमित्रानंदन पंत के ही अल्मोड़ा जिले के निवासी पद्मश्री शाह के छोटे भाई केपी शाह नगर के सीआरएसटी इंटर कॉलेज से सेवानिवृत्त शिक्षक बताते हैं कि पद्मश्री शाह का पूरा जीवन लेखन तथा पठन-पाठन में ही बीता है। यहां तक कि वह सार्वजनिक कार्यक्रमों, कवि एवं साहित्यिक सम्मेलनों में भी यदा-कदा ही प्रतिभाग करते हैं।
उनके प्रमुख कविता संग्रह ‘कछुए की पीठ पर’, ‘हरिश्चंद्र आओ’, ‘नदी भागती आई’, ‘उकाव हुलार’, ‘प्यारे मुचकुंद को’, ‘चाक पर’, ‘अनागरिक’, ‘आधुनिक कवि माला’ सहित 10 पुस्तकें, 11 उपन्यास, 7 कहानी संग्रह, 10 निबंध संग्रह, 5 बाल साहित्य पुस्तकें, 2 डायरी संग्रह, 1 यात्रा-वृतांत और 4 संपादित कृतियां प्रकाशित है।
उन्हें आचार्य नंददुलारे वाजपेयी पुरस्कार, वीर सिंह देव पुरस्कार, भवानी प्रसाद मिश्र पुरस्कार, भारतीय भाषा परिषद कोलकाता का कृति पुरस्कार, मध्य प्रदेश शासन, संस्कृति विभाग का शिखर सम्मान-राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार, व्यास सम्मान, पद्मश्री अलंकरण आदि सम्मान प्राप्त हुए हैं। वे 3 वर्षों तक निराला सृजन पीठ, भोपाल के निदेशक भी रहे हैं।
उन्हें देश का यह शीर्ष साहित्य सम्मान मिलने पर ‘नवीन जोशी समग्र’ और ‘हिंदी समग्र’ की ओर से हार्दिक बधाइयां !
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- पवन निशांत – या मेरा डर लौटेगा
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- संदीप शर्मा – दर्द ए दर्द
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- अविनाश चित्रांश – बेलाग
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- संजीव मिश्रा – कोई मेरे दिल से पूछे
- सलीम अख्तर सिद्दीकी – हकबात
- इरशाद – इरशादनामा
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- अभिषेक प्रसाद – खामोशी बहुत कुछ कहती है
- उमेश पंत – नई सोच
- रोशन कुमार झा – समदिया
- प्रदीप कुमार पांडेय – राजकाज
- दीप माधव – मेरे सपने
- कनिष्का कश्यप – कबिरा खड़ा बाजार में
- राजीव कुमार – सीधी बात
- कुणाल – मुसाफिर
- राकेश जुयाल – पहाड़1
- शिरीष खरे – दोस्त
- अक्षय – ट्रांसलेशन्स
- दर्पण साह – प्राची व उसके पार…
- संजय झा – संजय झा डाट काम
- आवेश तिवारी – कतरनें
- श्याम सिंह – बगिया
- निराला – बिदेसिया
- अनुराग तिवारी – अभिव्यक्ति
- ओपी सक्सेना – ओपी की दुनिया
- एसएन विनोद – चीरफाड़
- संजय सेन सागर – हिंदुस्तान का दर्द
- विनय बिहारी सिंह – दिव्य प्रकाश
- पंकज कुमार – कार्टूनिस्ट पंकज
- राकेश पांडेय – आप की आवाज
- आनंद सिंह – इनकनवीनिएंट ट्रुथ
- संजय नैथानी – जग कल्याण
- नीहारिका श्रीवास्तव – जीवन के अनुभव
- मनीष गुप्ता – मनीष4आल
- राजेश रंजन – यदा-कदा
- अमर कुमार – चुनावी चर्चा
- अशोक कुमार पांडेय – असुविधा
- संजीव पांडेय – सरीपुत्र
- मनोज द्विवेदी – पदमराग
- माधवी – आई एम एन इंडियन
- गोपाल राय – तीसरा स्वाधीनता आंदोलन
- राकेश डुमरा – जीतेंगे
- राजा संगवान – लोफर
- करुणा मदान – अनफुलफिल्ड
- अब्दुल वाहिद आज़ाद – E चौपाल
- देवेश गुप्ता- दुनिया मेरे आगे
- गोविंद गोयल- नारदमुनि जी
- विवेक रंजन श्रीवास्तव- बिजली चोरी के खिलाफ
- दिनेश कांडपाल- दिल्ली से
- मनोज ‘भावुक’- भोजपुरी कविता
- प्रकाश चंडालिया- बिग बॉस
- गजेंद्र ठाकुर- भालसरिक गाछ
- हरि जोशी- इर्द-गिर्द
- लाल बहादुर थापा- एक आम आदमी
- अमितेश- अमितेश का दालान
- अमिताभ बुधोलिया ‘फरोग’- गिद्ध
- हितेंद्र कुमार गुप्ता- हेलो मिथिला
- सचिन मिश्रा- ये है इंडिया मेरी जान
- संदीप त्रिपाठी- जिय रजा बनारस
- पीसी दुबे- तेरा तरंग
- प्रशांत जैन- कैसा देश है मेरा
- मुकुंद- कालचक्र
- आकाश कुमार- देश और दुनिया
- डा. भानु प्रताप सिंह- हिंदी के लिक्खाड़
- संजय टुटेजा – बात कुछ ऐसी है
- अमित द्विवेदी – ज़िंदगी एक सफर है सुहाना
- पुष्यमित्र – मैं अषाढ़ का पहला बादल, हजारों ख्वाहिशें ऐसी
- योगेश जादौन – बीहड़
- अनुजा – मत-विमत
- महावीर सेठ – गोनार्द की धरती
- राजीव कुमार – दो टूक, विचार
- पीसी रामपुरिया – रामपुरिया
- प्रवीण त्रिवेदी – प्राइमरी का मास्टर
- बृजेश सिंह – शहरनामा
- नदीम अख्तर – रांची हल्ला
- अनिल यादव – हारमोनियम
- रोहित त्रिपाठी – रोहित त्रिपाठी
- अफरोज आलम ‘साहिल’ – सूचना एक्सप्रेस
- नरेंद्र खोइया – युवा
- अमित कुमार – क्यों बिरादर
- कुमार विनोद – क्या सीन है
- हृदयेंद्र प्रताप सिंह – फुहार
- अनुराग मिश्र – ढपली
- अक्षत सक्सेना – मेरे विचार
- कमला भंडारी – फ्रीडम
- रवि रावत ‘ऋषि’ – ये जीवन है
- मनीष मिश्रा – लफ्फाजी
- विवेक रंजन श्रीवास्तव – रामभरोसे
- अंशुमाली रस्तोगी – प्रतिवाद
- दिनकर – आवाज़
- भागीरथ श्रीवास्तव – परिवेश
- वरुण राय – चौथा खंभा
- विकास परिहार- संवाद, इस हमाम में
- विद्युत प्रकाश मौर्य – लाल किला
- कौशल कमल – डिबिया
- प्रभात रंजन – हलफनामा
- रामकृष्ण डोंगरे – आधा आकाश, डोंगरे डायरी
- पवन तिवारी – अहा हुलास
- मंतोष कुमार सिंह – दर्पण
- उमेश चतुर्वेदी – बलिया बोले
- कवि कुलवंत सिंह – गीत सुनहरे
- अनिल भारद्वाज – शब्दयुद्ध
- आलोक तोमर – जनसत्ता, आलोक तोमर
- वीनस केशरी – आते हुए लोग
- धीरेश सैनी – एक जिद्दी धुन
- अबरार अहमद – लफ्ज
- अवनीश राय – अपनी जमात
- सुबोध – उम्मीद है…
- विनीत खरे – पान की दुकान
- राजेश त्रिपाठी – पुरकैफ ए मंजर
- देवेंद्र साहू – इस भरी दुनिया में
- गंदी – गंदी लड़की
- विकास शिशोदिया – मुद्दा
- मंजीत ठाकुर – गुस्ताख
- रमाशंकर शर्मा – सेक्स क्या
- विनीत उत्पल – विनीत उत्पल, मीडिया हंगामा
- सिद्धार्थ जोशी – ज्योतिष दर्शन, दर्शन-अध्यात्म
- शंकर कुमार – गुजरा जमाना
- शम्भू चौधरी – ई-हिन्दी साहित्य सभा
- प्रशांत प्रियदर्शी – मेरी छोटी सी दुनिया, तकनीकी संवाद
- डा. कमलकांत बुधकर – कुछ हमरी सुनि लीजै
- डा. अजीत तोमर – शेष फिर…
- सचिन श्रीवास्तव – नई इबारतें
- हरे प्रकाश उपाध्याय – हमारा देश तुम्हारा देश
- पंकज दीक्षित – सनक
- उमेश चतुर्वेदी – सूचना संसार
- पंकज पराशर – ख्वाब का दर
- दीपक – जनजागरूकता
- राहुल – बजार
- अकबर खान – नेटप्रेस
- अजीत कुमार मिश्रा – अजीतकुमारमिश्रा
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- गुलशन खट्टर – परदेसी
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- दिलीप डुग्गर – नई उम्मीद
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- राजीव जैन – शुरुआत, ब्लाग खबरिया
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